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GEN -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यहूदी परम्परा और बाइबल के अन्य लेखकों के अनुसार पुराने नियम की पहली पाँच पुस्तकें जिन्हें पेन्टाट्यूक या पंचग्रन्थ भी कहते हैं उनका लेखक मूसा है, जो इस्राएल का नबी और छुड़ानेवाला था। मिस्र के राजसी परिवार में मूसा का शिक्षण (प्रेरितों के कार्य 7:22) और यहोवा (इब्री भाषा में परमेश्वर का नाम) के साथ उसका घनिष्ठ सम्बन्ध इस विचार का समर्थन करता है। स्वयं यीशु ने (यूहन्ना 5:45-47) और उसके समय के फरीसियों और शास्त्रियों ने भी (मत्ती 19:7; 22:24) मूसा को इसका लेखक माना है।
GEN -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह एक सम्भावना है कि जिस वर्ष इस्राएल ने सीनै के जंगलों में छावनी डाली थी, उस समय संतः मूसा ने इस पुस्तक को लिखा।
GEN -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पुस्तक के श्रोतागण मिस्र की बंधुआई से निकल कर कनान अर्थात् प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने से पहले के आरम्भिक इस्राएली रहे होंगे।
GEN -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): मूसा ने इस पुस्तक को अपनी इस्राएली जाति के “पारिवारिक इतिहास” को दर्शाने के लिए लिखा था। उत्पत्ति की पुस्तक लिखने में मूसा का उद्देश्य यह दर्शाना था कि इस्राएली जाति किस प्रकार मिस्र की बंधुआई में पड़ गई थी(1:8), और यह भी कि वह देश जिसमें वे प्रवेश करने जा रहे थे उनका “प्रतिज्ञात देश” क्यों था (17:8), और वह यह भी दर्शाता है कि इस्राएल के साथ जो कुछ हुआ उन सब पर परमेश्वर की प्रभुता थी, और मिस्र में उनकी बंधुआई संयोग से होने वाली घटना नहीं बल्कि परमेश्वर की बड़ी योजना का एक भाग थी (15:13-16, 50:20), और यह दर्शाना कि अब्राहम का परमेश्वर, इसहाक का परमेश्वर और याकूब का परमेश्वर वही परमेश्वर है जिसने जगत की रचना की (3:15-16)। इस्राएल का परमेश्वर अनेक देवताओं में से कोई एक नहीं, बल्कि आकाश और पृथ्वी का बनानेवाला परमप्रधान सृष्टिकर्ता है।
EXO -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): परम्परा के अनुसार मूसा को इस पुस्तक का लेखक माना गया है। मूसा को इस पुस्तक का परमेश्वर प्रेरित लेखक मानने के दो ठोस कारण हैं। पहला, निर्गमन की पुस्तक ही में मूसा के लेखन कार्य की चर्चा की गई है। निर्गमन 34:27 में परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी थी, “ये वचन लिख ले।” बाइबल के एक और संदर्भ के अनुसार परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए मूसा ने परमेश्वर के सारे निर्देश लिख लिए थे, “जितनी बातें यहोवा ने कहीं, मूसा ने यहोवा के सब वचन लिख दिए” (24:4)। अतः यह मानना तर्क-सम्मत ही है कि ये पद निर्गमन की पुस्तक में मूसा द्वारा लिखी गई बातों के संदर्भ में ही है। दूसरा, निर्गमन में वर्णित घटनाओं को मूसा ने स्वयं देखा था या उनमें वह सहभागी हुआ था। मूसा फिरौन के राज परिवार में पाला गया था अतः वह लिखना-पढ़ना जानता था।
EXO -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग 1446-1405 ई. पू.इस तिथि से पूर्व इस्राएल 40 वर्ष अपनी अवज्ञा के कारण जंगल में भटक रहा था। इस पुस्तक के लेखन का यह सर्व-संभावित समय है।
EXO -1:15 ip introduction text possibly does not have closing punctuation (period): इस पुस्तक के लक्षित पाठक निर्गमन ही के समय की पीढ़ी थी। मूसा ने यह पुस्तक सीनै समुदाय के लिए लिखी थी जिसे वह मिस्र से निकाल कर लाया था। (निर्ग. 17:14; 24:4; 34:27-28)
EXO -1:17 ip introduction text does not have closing punctuation (period): निर्गमन की पुस्तक वृत्तान्त रूप में प्रस्तुत करती है कि इस्राएल कैसे यहोवा की प्रजा बना और वाचा की शर्तों को भी दर्शाती है कि उनके अनुसार वह जाति परमेश्वर की प्रजा होकर रहे। निर्गमन की पुस्तक में विश्वासयोग्य, सर्वशक्तिमान, उद्धारक, पवित्र परमेश्वर के गुण व्यक्त हैं जो इस्राएल के साथ वाचा बांधता है। परमेश्वर के गुण उसके नाम और काम दोनों ही से प्रगट हैं। इसमें प्रगट किया गया है कि अब्राहम को दी गई परमेश्वर की प्रतिज्ञा (उत्प. 15:12-16) कैसे पूरी हुई जब परमेश्वर ने अब्राहम के वंशजों को मिस्र के दासत्व से मुक्त कराया। यह एक परिवार की कहानी है जो चुनी हुई एक जाति बना। (निर्ग. 2:24; 6:5; 12:37) मिस्र से निकलने वाले इब्रानियों की संख्या लगभग 20 से 30 लाख होगी।
NUM -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यहूदी और मसीही परम्परायें वैश्विक रूप से मूसा को गिनती की पुस्तक का लेखक मानती हैं। इस पुस्तक में अनेक आंकड़ें, जनगणना, गोत्रों और पुरोहितों से उठे नायक तथा अन्य संख्यात्मक आंकड़े हैं। इस पुस्तक में 38 वर्षों का वृतान्त है, अर्थात् निर्गमन के बाद दूसरे वर्ष से (जब इस्राएल सीनै पर्वत के निकट छावनी डाले हुए था) 40 वर्ष बाद, जब नई पीढ़ी प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश करने पर थी। इसके अतिरिक्त, इस पुस्तक में निर्गमन के बाद दूसरे वर्ष और 40वें वर्ष की घटनाओं का मुख्य विवरण है, बीच के 38 वर्षों के बारे में वह मौन है, जब इस्राएल जंगल में भटक रहा था।
NUM -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पुस्तक का वृत्तान्त उन घटनाओं से आरंभ होता है जो इस्राएल द्वारा मिस्र से कूच करने के दूसरे वर्ष में घटी थी, जब वे सीनै पर्वत के निकट छावनी डाले हुए थे (1:1)।
NUM -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): गिनती की पुस्तक इस्राएल के लिए लिखी गई थी कि प्रतिज्ञा के देश की ओर उनकी यात्रा का लेखा प्रस्तुत करे परन्तु यह पुस्तक बाइबल के भावी लेखकों के लिए भी है कि हमारी स्वर्ग की ओर यात्रा में परमेश्वर हमारे साथ है।
NUM -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): जब दूसरी पीढ़ी प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश करने पर थी तब मूसा ने यह पुस्तक लिखी थी (गिन. 33:2)। कि परमेश्वर की प्रतिज्ञा के देश को अपनाने के लिए उस पीढ़ी को प्रोत्साहित करे। गिनती की पुस्तक में इस्राएल के प्रति परमेश्वर की शर्तरहित विश्वास- योग्यता दर्शाई गई है। पहली पीढ़ी ने तो वाचा की आशिषों को ठुकरा दिया था परन्तु परमेश्वर अपनी वाचा के निमित्त निष्ठावान था। इस्राएल के कुड़कुड़ाने तथा विद्रोह के उपरान्त भी परमेश्वर उन्हें आशिष देता है और दूसरी पीढ़ी के लिए प्रतिज्ञा के देश की अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करता है।
DEU -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): व्यवस्थाविवरण की पुस्तक मूसा ने लिखी थी जो वास्तव में इस्राएल को दिये गये मूसा के उपदेशों का संग्रह है। जब इस्राएल यरदन नदी पार करने पर था तब मूसा ने उन्हें शिक्षात्मक बातें कहीं थीं। “जो बातें मूसा ने यरदन के पास...सारे इस्राएल से कहीं वे ये हैं” (1:1) अन्तिम अध्याय का लेखक कोई और (संभवतः यहोशू) है। पुस्तक ही में अधिकांश विषयवस्तु मूसा के नाम है। (1:1,5; 31:24) व्यवस्थाविवरण की पुस्तक में मूसा और इस्राएल मोआब की सीमाओं में हैं, यह वह स्थान है जहां यरदन नदी मृत्त सागर में गिरती है। (1:5) व्यवस्थाविवरण के मूल शब्द (ड्यूटरो नोमोस) का अर्थ है, “दूसरी व्यवस्था” यह परमेश्वर और उसकी प्रजा इस्राएल के मध्य वाचा का पुनरावलोकन है।
DEU -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पुस्तक इस्राएल द्वारा प्रतिज्ञा के प्रदेश में प्रवेश से 40 दिन पूर्व के समय में लिखी गई थी।
DEU -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस्राएल की नई पीढ़ी इस पुस्तक के मूल पाठक थे जो प्रतिज्ञा के प्रदेश में प्रवेश करने के लिए तैयार थी (उनके माता-पिता के मिस्र से पलायन के 40 वर्ष पश्चात की पीढ़ी) परन्तु यह पुस्तक आने वाले सब बाइबल पाठकों के लिए भी है।
DEU -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): व्यवस्थाविवरण की पुस्तक इस्राएल के लिए मूसा का विदाई भाषण है। इस्राएल प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश हेतु खड़ा है। मिस्र से निर्गमन के 40 वर्ष बाद इस्राएल कनान पर विजय प्राप्त करने के लिए यरदन नदी पार करने पर है। परन्तु मूसा प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश नहीं करेगा उसके स्वर्ग सिधारने का समय आ गया है।
DEU -1:19 ip introduction text does not have closing punctuation (period): मूसा का विदाई भाषण में इस्राएल से एक भावनात्मक याचना है कि वे परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करें कि उस नये देश में उनके साथ सब मंगलमय हो (6:1-3,17-19)। इस भाषण में इस्राएल को स्मरण करवाया गया है कि उनका परमेश्वर कौन है (6:4) और उसने उनके लिए कैसे-कैसे काम किये हैं (6:10-12, 20-23)। मूसा उनसे आग्रह करता है कि वे परमेश्वर की इन आज्ञाओं को आने वाली पीढ़ियों में अवश्य पहुंचायें (6:6-9)।
SA1 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पुस्तक में लेखक स्पष्ट नहीं है। तथापि शमूएल संभावित लेखक है और निश्चय ही वह 1 शमू. 1:1-24:22 की जानकारी देता है जो उसकी मृत्यु तक उसके जीवन एवं कार्यों की गाथा है। अति संभव है कि भविष्यद्वक्ता शमूएल ने इस पुस्तक का एक भाग लिखा है। 1 शमूएल के अन्य संभावित लेखक हैं इतिहासकार/भविष्यद्वक्ता नातान एवं गाद (1 इतिहास 29:29)।
SA1 -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पुस्तक विभाजित राज्य के बाद लिखी गई है जो दोनों राज्यों, इस्राएल और यहूदिया, के अलग-अलग उल्लेखों से स्पष्ट होता है (1 शमू. 11:8; 17:52; 18:16; 2 शमू. 5:5; 11:11; 12:8; 19:42-43; 24:1-9)।
SA1 -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इसके मूल पाठक विभाजित राज्य, इस्राएल और यहूदिया की प्रजा थी जिन्हें दाऊद के राजवंश के औचित्य एवं उद्देश्य के निमित्त दिव्य दृष्टिकोण की आवश्यकता थी।
SA1 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): 1 शमूएल में कनान देश में न्यायियों से लेकर राजाओं के अधीन एक राष्ट्र होने तक का इतिहास है। शमूएल अन्तिम न्यायी हुआ था और वह प्रथम दो राजाओं शाऊल और दाऊद का अभिषेक करता है।
SA2 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): शमूएल की दूसरी पुस्तक अपने लेखक का नाम प्रगट नहीं करती है। इसका लेखक भविष्यद्वक्ता शमूएल नहीं हो सकता क्योंकि उसकी मृत्यु हो चुकी थी। आरंभ में 1 शमूएल और 2 शमूएल एक ही ग्रन्थ था। यूनानी पुराने नियम के अनुवादकों ने इसे दो पुस्तकों में विभाजित कर दिया था। अतः उन्होंने शाऊल की मृत्यु के वृत्तान्त तक के भाग को एक पुस्तक में रखा तथा दाऊद के राज्यकाल के आरम्भ अर्थात् दाऊद यहूदा का राजा कैसे बनाया गया तथा बाद में सम्पूर्ण इस्राएल का राजा होने का वृत्तान्त दूसरी पुस्तक में कर दिया।
SA2 -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पुस्तक बाबेल की बंधुआई के समय विधान को मुख्य मानने वालों की परम्परा के इतिहास का भाग है।
SA2 -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): एक प्रकार से इसके मूल पाठक राजा दाऊद और राजा सुलैमान की प्रजा (इस्राएल) तथा उनके वंशज थे।
SA2 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): 2 शमूएल की पुस्तक राजा दाऊद के राज्य का वृत्तान्त है। यह पुस्तक दाऊद के साथ बांधी गई परमेश्वर की वाचा को ऐतिहासिक परिदृश्य में व्यक्त करती है। दाऊद ने यरूशलेम को इस्राएल का राजनीतिक एवं धार्मिक केन्द्र बना दिया था। (2 शमू. 5:6-12; 6:1-17) यहोवा के वचन (2 शमू. 7:4-16) तथा दाऊद के वचन (2 शमू. 23:1-7) परमेश्वर प्रदत्त राज्य के महत्व को बल देते हैं। और मसीह की सहस्र वर्षीय प्रभुता की भविष्यद्वाणी है।
CH1 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): 1 इतिहास की पुस्तक में लेखक का नाम प्रगट नहीं है, यहूदी परम्परा के अनुसार एज्रा इसका लेखक है। 1 इतिहास की पुस्तक का आरम्भ इस्राएलियों के परिवारों की सूची से होता है। तदोपरान्त संगठित राज्य इस्राएल पर राजा दाऊद के राज्यकाल का वृतान्त दिया गया है। यह पुस्तक राजा दाऊद की कहानी की निकट झलक है जो पुराने नियम का एक महत्वपूर्ण नायक था। इसका व्यापक परिदृश्य प्राचीन इस्राएल का राजनीतिक एवं धार्मिक इतिहास है।
CH1 -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह स्पष्ट है कि इसका समय बाबेल की बन्धुआई से लौटने के बाद का है। 1 इति. 3:19-24 में दाऊद के वंश को जरुब्बाबेल के बाद तक, छठी पीढ़ी तक दर्शाया गया है।
CH1 -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): प्राचीनकाल के यहूदी तथा सब बाइबल पाठक
CH1 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): 1 इतिहास की पुस्तक बन्धुआई से लौटने वाले यहूदियों के लिए लिखी गई थी कि वे परमेश्वर की उपासना कैसे करें। इसका इतिहास दक्षिणी राज्य-यहूदा, बिन्यामीन और लेवी के गोत्रों, पर केन्द्रित है। ये गोत्र परमेश्वर के अधिक स्वामिभक्त प्रतीत होते थे। परमेश्वर ने दाऊद के परिवार या राज्य को सदा के लिए स्थिर रखने की वाचा बांधी थी, जिसके प्रति वह विश्वासयोग्य रहा। सांसारिक राजा ऐसा नहीं कर सकते थे, दाऊद और सुलैमान के द्वारा परमेश्वर ने अपना मन्दिर बनवाया जहाँ लोग आराधना के लिए आ सकते थे। सुलैमान द्वारा निर्मित मन्दिर बाबेल की सेना ने नष्ट कर दिया था।
CH2 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यहूदी परम्परा के अनुसार विधिशास्त्री एज्रा इसका लेखक है। 2 इतिहास की पुस्तक का आरंभ सुलैमान के राज्य के वृत्तान्त से होता है। सुलैमान की मृत्यु के बाद राज्य का विभाजन हो गया। 1 इतिहास की संलग्न पुस्तक, 2 इतिहास इब्रानियों के इतिहास का ही अनवरत वर्णन है- सुलैमान के राज्यकाल से लेकर बाबेल की बन्धुआई तक।
CH2 -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इतिहास की पुस्तक का तिथि निर्धारण बहुत कठिन है, यद्यपि यह स्पष्ट है कि उसका लेखनकाल बाबेल की बन्धुआई से लौटने के बाद का है।
CH2 -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): प्राचीनकाल के यहूदी तथा बाद के सब बाइबल पाठक।
CH2 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): 2 इतिहास की पुस्तक में अधिकतर 2 शमूएल और 2 राजाओं की पुस्तकों में दी गई जानकारियों का ही पुनरावलोकन है। 2 इतिहास की पुस्तक उस समय के पुरोहितीय पक्ष पर अधिक बल देती है। 2 इतिहास की पुस्तक मुख्यतः राष्ट्र के धार्मिक इतिहास का मूल्यांकन है।
JOB -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): कोई नहीं जानता कि अय्यूब की पुस्तक किसने लिखी थी। किसी भी लेखक का संकेत इसमें नहीं किया गया है। संभवतः एक से अधिक लेखक रहे होंगे। अय्यूब संभवतः बाइबल की प्राचीनतम् पुस्तक है। अय्यूब एक भला एवं धर्मी जन था जिसके साथ असहनीय त्रासदियां घटीं और उसने एवं उसके मित्रों ने ज्ञात करना चाहा था कि उसके साथ ऐसी आपदाओं का क्या प्रयोजन था। इस पुस्तक के प्रमुख नायक थे, अय्यूब, तामानी एलीपज, शूही बिलदद, नामाती, सोफार, बूजी एलीहू।
JOB -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग अज्ञान
JOB -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पुस्तक के अधिकांश अंश प्रगट करते हैं कि वह बहुत समय बाद लिखी गई है- निर्वासन के समय या उसके शीघ्र बाद। एलीहू का वृत्तान्त और भी बाद का हो सकता है।
JOB -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): प्राचीन काल के यहूदी तथा सब भावी बाइबल पाठक। यह भी माना जाता है कि अय्यूब की पुस्तक के मूल पाठक दासत्व में रहने वाली इस्राएल की सन्तान थी। ऐसा माना जाता है कि मूसा उन्हें ढाढ़स बंधाना चाहता था जब वे मिस्र में कष्ट भोग रहे थे।
JOB -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): अय्यूब की पुस्तक हमें निम्नलिखित बातों को समझने में सहायता प्रदान करती हैः शैतान आर्थिक एवं शारीरिक हानि नहीं पहुंचा सकता है। शैतान क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता उस पर परमेश्वर का अधिकार है। संसार के कष्टों में “क्यों” का उत्तर पाना हमारी क्षमता के परे है। दुष्ट को उसका फल मिलेगा। कभी-कभी हमारे जीवन में कष्ट हमारे शोधन, परखे जाने, शिक्षा या आत्मा की शक्ति के लिए होते हैं।
PSA -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): कविताओं का संग्रह, भजन संहिता पुराने नियम की पुस्तकों में एक है जिसमें अनेक रचयिताओं की रचनाओं का संग्रह है। इसके अनेक लेखक हैं: दाऊद, आसाप, कोरह के पुत्रों, सुलैमान, एतान, हेमान, मूसा और अज्ञात भजनकार हैं। सुलैमान और मूसा की अपेक्षा सब भजनकार या तो याजक थे या लैवी थे जो दाऊद के राज्य में पवित्र स्थान में उपासना हेतु संगीत की व्यवस्था का दायित्व निभा रहे थे।
PSA -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): व्यक्तिगत भजन इतिहास में मूसा के समय तक पुराने है और दाऊद, आसाप, सुलैमान तथा एज्रा पंथियों (बाबेल के दासत्व के बाद) तक के हैं। इसका अर्थ है कि इस पुस्तक में लगभग एक हजार वर्ष का भजन संग्रह है।
PSA -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस्राएल की प्रजा- परमेश्वर ने उनके लिए और संपूर्ण इतिहास में विश्वासियों के लिए क्या किया है।
PSA -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): भजनों के विषय रहे हैं: परमेश्वर और उसकी सृष्टि, युद्ध, आराधना, बुद्धि, पाप और बुराई, दण्ड, न्याय तथा मसीह का आगमन। भजन पाठकों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे परमेश्वर का तथा उसके कामों का गुणगान करें। भजन हमारे परमेश्वर की महानता को प्रकाशित करते हैं। संकटकाल में हमारे लिए उसकी विश्वासयोग्यता की पुष्टि करते हैं और हमें उसके वचन की परम केन्द्रिता का स्मरण करवाते हैं।
PRO -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): राजा सुलैमान नीतिवचनों का प्रमुख लेखक था। 1:1; 10:1, 25:1 में सुलैमान का नाम प्रगट है। अन्य योगदानकर्ताओं में एक समूह जो “बुद्धिमान” कहलाता था, आगूर तथा राजा लमूएल हैं। शेष बाइबल के सदृश्य नीतिवचन परमेश्वर के उद्धार की योजना की ओर संकेत करते हैं, परन्तु संभवतः अधिक सूक्ष्मता से। इस पुस्तक ने इस्राएलियों को परमेश्वर के मार्ग पर चलने का सही तरीका दिखाया। यह संभव है कि परमेश्वर ने सुलैमान को प्रेरित किया कि वह उन बुद्धिमानी के वचनों के आधार पर इसका संकलन करे जो उसने अपने संपूर्ण जीवन में सीखे थे।
PRO -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): सुलैमान राजा के राज्यकाल में इस्राएल में, नीतिवचन हजारों वर्ष पूर्व लिखे गए थे। इसकी बुद्धिमानी की बातें किसी भी संस्कृति में किसी भी समय व्यवहार्य हैं।
PRO -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): नीतिवचन के अनेक श्रोता हैं। यह बच्चों के निर्देशन हेतु माता-पिता के लिए है। बुद्धि के खोजी युवा-युवती के लिए भी यह है और अन्त में यह आज के बाइबल पाठकों के लिए, जो ईश्वर-भक्ति का जीवन जीना चाहते हैं, व्यावहारिक परामर्श है।
PRO -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): नीतिवचनों की पुस्तक में सुलैमान ऊँचे एवं श्रेष्ठ तथा साधारण एवं सामान्य दैनिक जीवन में परमेश्वर की सम्मति को प्रगट करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि सुलैमान राजा के अवलोकन में कोई विषय बचा नहीं। व्यक्तिगत सम्बन्ध, यौन सम्बन्ध, व्यापार, धन-सम्पदा, दान, आकांक्षा, अनुशासन, ऋण, लालन-पालन, चरित्र, मद्यपान, राजनीति, प्रतिशोध तथा ईश्वर-भक्ति आदि अनेक विषय बुद्धिमानी की बातों पर इस विपुल संग्रह में विचार किया गया है।
SNG -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): श्रेष्ठगीत पुस्तक के प्रथम पद से प्राप्त शीर्षक है जिसमें व्यक्त है कि यह गीत कौन गाता है। “श्रेष्ठगीत जो सुलैमान का है” (1:1) इस पुस्तक के शीर्षक ने अन्ततः राजा सुलैमान का नाम लिया क्योंकि सम्पूर्ण पुस्तक में उसके नाम का उल्लेख है (1:5; 3:7,9,11; 8:11-12)।
SNG -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पुस्तक सुलैमान ने इस्राएल पर अपने राज्यकाल के समय लिखी थी। विद्वान सुलैमान को इस पुस्तक का लेखक मानते हैं कि यह गीत उसके राज्यकाल के आरम्भ समय में लिखा गया था। कविता में जो युवा जोश व्यक्त किया गया है उसी भाग के कारण नहीं परन्तु इसलिए भी कि लेखक ने देश के उत्तर और दक्षिण दोनों ओर के स्थानों के नामों का भी उल्लेख किया है और लबानोन और मिस्र के नामों की भी चर्चा की गई है।
SNG -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): अविवाहित एवं विवाहित दोनों जो विवाह के बारे में सोचते हैं।
SNG -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): श्रेष्ठगीत एक कविता है जो प्रेम के सद्गुण का महिमान्वन करती है और स्पष्ट रूप से विवाह को परमेश्वर का विधान मानती है। स्त्री और पुरुष को विवाह की सीमाओं में रहना आवश्यक है और एक दूसरे के साथ आत्मिक, भाव प्रवण एवं शारीरिक प्रेम रखना है।
SNG -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): प्रेम और विवाह
ISA -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पुस्तक का नाम लेखक के नाम पर ही यशायाह की पुस्तक पड़ा है। उसका विवाह एक भविष्यद्वक्तिन से हुआ था जिससे उसके दो पुत्र थे (7:3; 8:3)। उसका सेवाकाल यहूदिया के चार राजाओं के राज्यकाल में रहा था- उजिय्याह, योतान, आहाज और हिजकिय्याह (1:1) और संभवत पांचवे राजा, दुष्ट मनश्शे के समय उसकी मृत्यु हुई थी।
ISA -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पुस्तक राजा उजिय्याह के राज्यकाल के अन्त समय में लिखी गई थी और लेखन कार्य राजा योतान, आहाज और हिजकिय्याह के युगों में चलता रहा।
ISA -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): प्रमुख श्रोता यहूदिया की प्रजा थी जो परमेश्वर के नियमों के अनुसार जीवन जीने में चूक रही थी।
ISA -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यशायाह की पुस्तक का उद्देश्य था कि संपूर्ण पुराने नियम में मसीह यीशु का व्यापक भविष्यद्वाणी गर्भित चित्रण प्रस्तुत करे। जिसमें उसके जीवन का संपूर्ण परिदृश्य, उसके आगमन की घोषणा (यशा. 4:3-5), उसका कुंवारी से जन्म (7:14), शुभ सन्देश की घोषणा (61:1), उसकी बलिदान की मृत्यु (52:13-53:2), और अपनों को लेने आना (60:2-3)।
ISA -1:19 ip introduction text does not have closing punctuation (period): भविष्यद्वक्ता यशायाह को मुख्यतः यहूदिया के राज्य में भविष्यद्वाणी का वचन सुनाने की बुलाहट थी। यहूदिया में जागृति के साथ-साथ विद्रोह भी था। यहूदिया को अश्शूरों और मिस्र का विनाशक संकट था परन्तु वह परमेश्वर की दया से बच गया था। यशायाह ने पाप से विमुख होने का तथा भविष्य में परमेश्वर के उद्धार की आशा का सन्देश दिया।
JER -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यिर्मयाह और उसका लिपिक बारूक। यिर्मयाह जो पुरोहित एवं भविष्यद्वक्ता दोनों था, वह हिल्कियाह नामक पुरोहित का पुत्र था। (यह हिल्कियाह 2 राजा 22:8 का प्रधान पुरोहित नहीं है) वह एक छोटे गांव अनातोत का रहने वाला था। सेवा में उसका एक सहायक था जिसका नाम बारूक था। बारूक विधि-शास्त्री था। यिर्मयाह उसे परमेश्वर से प्राप्त वचन लिखवा देता था। यिर्मयाह के सन्देशों के संग्रह का प्रभारी वही था। (यिर्म. 36:4,32; 45:1) यिर्मयाह सामान्यतः “रोता हुआ भविष्यद्वक्ता” कहलाता था। (देखें यिर्म. 9:1; 13:17;14:17) उसका जीवन संघर्षों से भरा था क्योंकि वह परमेश्वर के दण्ड की भविष्यद्वाणी करता था और कहता था कि बाबेल की सेना उन्हें पराजित करेगी।
JER -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पुस्तक का पूर्ण होना बाबेल की बन्धुआई में कभी किसी समय का है। कुछ विचारकों के अनुसार इस पुस्तक का संपादन और भी बाद तक होता रहा है।
JER -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यहूदा और इस्राएल की प्रजा तथा भावी बाइबल पाठक।
JER -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यिर्मयाह की पुस्तक उस नई वाचा की झलक प्रदान करती है जो परमेश्वर का मसीह पृथ्वी पर आने के बाद उसके लोगों के साथ बांधेगा। यह नई वाचा परमेश्वर की प्रजा के पुनः स्थापन के लिए होगी। इस वाचा में परमेश्वर अपनी आज्ञाओं को मनुष्यों के हृदयों पर लिखेगा, पत्थर की पट्टियों पर नहीं। यिर्मयाह की पुस्तक में यहूदिया के लिए अन्तिम भविष्यद्वाणियां हैं कि यदि इस्राएलियों ने विधर्म से मन नहीं फिराया तो उनका विनाश निकट है। यिर्मयाह इस्राएलियों को परमेश्वर के पास आ जाने के लिए पुकारता है। इसके साथ ही वह उनकी मूर्ति-पूजा और अनैतिकता के कारण अवश्यंभावी विनाश को भी देख रहा है।
LAM -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पुस्तक में लेखक का नाम नहीं है। यहूदी एवं मसीही परम्पराएँ दोनों यिर्मयाह को इसका लेखक मानती हैं। इस पुस्तक के लेखक ने यरूशलेम के विनाश के परिणाम देखे थे। ऐसा प्रतीत होता है कि उसने शत्रु की सेना का आक्रमण स्वयं देखा था (विला. 1:13-15)। यिर्मयाह दोनों ही घटनाओं के समय वहाँ उपस्थित था। यहूदिया ने परमेश्वर से विद्रोह करके वाचा तोड़ी थी। परमेश्वर ने उन्हें अनुशासित करने के लिए बाबेल को अपना साधन बनाया था। इस पुस्तक में घोर कष्टों के वर्णन के उपरान्त भी अध्याय 3 में आशा की प्रतिज्ञा है। यिर्मयाह परमेश्वर की भलाई को स्मरण करता है। वह परमेश्वर की विश्वासयोग्यता के सत्य द्वारा उन्हें ढाढ़स बंधाता है। वह पाठकों को परमेश्वर की करुणा और अचूक प्रेम के बारे में बताता है।
LAM -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यिर्मयाह द्वारा यहाँ बाबेल की सेना द्वारा यरूशलेम के घेराव एवं विनाश का प्रत्यक्ष वर्णन किया गया है।
LAM -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): निर्वासन में शेष रहे यहूदी जो स्वदेश लौट आए तथा सब बाइबल पाठक।
LAM -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पाप चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक, उसका परिणाम भोगना होता है। परमेश्वर अपने अनुयायियों को लौटा लाने के लिए मनुष्य तथा परिस्थिति को साधन बनाता है। आशा केवल परमेश्वर से होती है। जिस प्रकार परमेश्वर ने निर्वासन में कुछ यहूदियों को बचा कर रखा था उसी प्रकार उसने अपने पुत्र, यीशु को उद्धारक बनाकर दे दिया। पाप अनन्त मृत्यु लाता है परन्तु फिर भी परमेश्वर अपनी उद्धार की योजना द्वारा शाश्वत जीवन प्रदान करता है। विलापगीत की पुस्तक स्पष्ट दर्शाती है कि पाप और विद्रोह परमेश्वर के क्रोध को लाते हैं (1:8-9; 4:13; 5:16)।
LAM -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): विलाप
EZE -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पुस्तक बूजी के पुत्र यहेजकेल की कृति मानी जाती है। वह एक याजक एवं भविष्यद्वक्ता था। वह पुरोहितों के परिवार में यरूशलेम में बड़ा हुआ था। वह भी बाबेल की बन्धुआई में यहूदियों के साथ था। यहेजकेल की पुरोहित वृत्ति उसकी भविष्यद्वाणी की सेवा में दिखाई देती है। उसकी भविष्यद्वाणी में मन्दिर, पुरोहित की सेवाएं, परमेश्वर की महिमा तथा बलि पद्धति के विषय देखने को मिलते हैं।
EZE -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यद्यपि यहेजकेल ने बाबेल में अपना लेखन कार्य किया। उसकी भविष्यद्वाणी इस्राएली, मिस्र तथा अनेक पड़ोसी राज्यों के सम्बन्ध में भी थी।
EZE -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): बाबेल के बन्धुआ इस्राएली तथा स्वदेश में वास कर रहे इस्राएली और सब उत्तरकालीन बाइबल पाठक।
EZE -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यहेजकेल एक अत्यधिक पापी एवं पूर्णतः निकम्मी पीढ़ी के लिए सेवारत था। उसने अपनी भविष्यद्वाणी की सेवा के द्वारा अपने लोगों को तात्कालिक मन फिराव और भविष्य में आत्म-विश्वास के लिए प्रेरित किया था। उसने शिक्षा दी कि परमेश्वर मानवीय सन्देशवाहकों द्वारा काम करता है। चाहे हम पराजित हों और निराश हों, हमें परमेश्वर की परम प्रभुता में विश्वास करना है। परमेश्वर का वचन अचूक है। परमेश्वर सर्वत्र उपस्थित है और उसकी उपासना कहीं भी की जा सकती है। यहेजकेल की पुस्तक हमें स्मरण कराती है कि हमें उन अन्धकारपूर्ण समयों में भी जब हमें ऐसा प्रतीत हो कि हम भटक गए हैं, परमेश्वर की खोज करना है। हमें अपना आत्म-निरीक्षण करके एकमात्र सच्चे परमेश्वर से सम्बन्ध साधना है।
JOL -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पुस्तक में व्यक्त है कि इसका लेखक भविष्यद्वक्ता योएल था (योएल 1:1)। इस पुस्तक में निहित कुछ व्यक्तिगत विवरणों से परे हम योएल भविष्यद्वक्ता के बारे में कुछ अधिक नहीं जानते हैं। वह स्वयं को पतूएल का पुत्र कहता है और उसने यहूदा की प्रजा के लिए भविष्यद्वाणी की थी। यरूशलेम के लिए उसकी गहन चिन्ता इस पुस्तक में व्यक्त है। योएल ने मन्दिर के पुरोहितों पर अनेक टिप्पणियां की हैं जो यहूदा में आराधना के केन्द्र के बारे में उसकी जानकारी को दर्शाती हैं (योएल 1:13-14; 2:14,17)।
JOL -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): योएल संभवतः पुराने नियम के इतिहास में फारसी युग का है। उस युग में फारसी राजा ने कुछ यहूदियों को स्वदेश लौटने की अनुमति दे दी थी और मन्दिर का पुनः निर्माण हो गया था। योएल मन्दिर का जानकार था, अतः उसे उसके पुनः निर्माण के बाद दिनांकित किया जाना चाहिए।
JOL -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस्राएल की प्रजा एवं बाइबल के भावी पाठक
JOL -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): परमेश्वर दयालु है और मन फिराने वालों को क्षमा करता है। इस पुस्तक के मुख्य विषय दो घटनाएं हैं। टिड्डियों का आक्रमण और आत्मा का अवतरण। इसकी आरंभिक पूर्ति का संदर्भ पतरस ने दिया है- प्रेरितों के काम 2 में- पिन्तेकुस्त के दिन यह भविष्यद्वाणी पूरी हुई थी।
OBA -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पुस्तक उस भविष्यद्वाणी की कृति है जिसका नाम ओबद्याह है। हमारे पास उसकी जीवनी नहीं है। अन्य जाति एदोम देश के विरूद्ध उसकी भविष्यद्वाणी में यरूशलेम को जो महत्व वह देता है उससे कम से कम यहीं समझ में आता है कि ओबद्याह दक्षिणी राज्य, यहूदिया के इस पवित्र नगर के निकट का ही निवासी था।
OBA -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): अति संभव प्रतीत होता है कि ओबद्याह की पुस्तक यरूशलेम के पतन के बहुत बाद की नहीं है (ओबद्याह पद 11-14)। अर्थात् बेबीलोन की बन्धुआई के समय।
OBA -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): एदोम के आक्रमण के बुरे परिणाम के समय यहूदिया के लक्षित श्रोतागण।
OBA -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): ओबद्याह परमेश्वर का भविष्यद्वक्ता था जिसने एदोम को परमेश्वर और इस्राएल के विरूद्ध पाप करने का दोषी ठहराया। एदोमी एसाव के वंशज हैं और इस्राएली एसाव के जुड़वा भाई याकूब के वंशज हैं। दोनों भाईयों के झगड़े का दुष्परिणाम उनके वंशजों को भोगना पड़ा। इस भेद के कारण एदोमियों ने मिस्र से इस्राएल के निर्गमन के समय उन्हें अपने देश से जाने नहीं दिया था। एदोम के घमण्ड के पाप के लिए परमेश्वर से दण्ड का कठोर वचन सुनना आवश्यक था। पुस्तक के अन्त में सिय्योन की मुक्ति एवं परिपूर्णता की भविष्यद्वाणी है, अन्तिम दिनों में जब देश परमेश्वर की प्रजा को पुनः दे दिया जायेगा और परमेश्वर उन पर राज करेगा।
JNA -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): योना 1:1 स्पष्ट रूप से इस पुस्तक के लेखक का नाम दर्शाता है। योना नासरत के निकट गथेपेर नगर का निवासी था। यह क्षेत्र उत्तर काल में गलील कहलाया (2 राजा.14:25)। योना उन भविष्यद्वक्ताओं में से था जो उत्तरी राज्य, इस्राएल से थे। योना की पुस्तक में परमेश्वर के धीरज और दयापूर्ण प्रेम को उजागर किया गया है और यह भी कि परमेश्वर आज्ञा न मानने वालों को एक और अवसर देने के लिए तैयार रहता है।
JNA -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह कहानी इस्राएल से आरंभ होकर भूमध्य सागर के बन्दरगाह याफा होती हुई नीनवे में अन्त होती है। नीनवे अश्शूरों की राजधानी थी जो हिद्देकेल नदी के तट पर बसा था।
JNA -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस्राएल की प्रजा तथा भावी बाइबल पाठक
JNA -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पुस्तक के मुख्य विषय हैं अवज्ञा एवं आत्मिक जागृति। व्हेल मछली के पेट में योना का अनुभव उसे एक अद्वैत मुक्ति का असामान्य अवसर प्रदान करता है परन्तु जब वह पश्चाताप करता है। उसकी आरंभिक अवज्ञा उसकी व्यक्तिगत जागृति का ही नहीं नीनवे वासियों की भी जागृति का अवसर प्रदान करती है। परमेश्वर का यह सन्देश संपूर्ण संसार के लिए है, न कि हमारे प्रिय जनों के लिए या हम जैसों के लिए है। परमेश्वर सच्चा पश्चाताप खोजता है। वह हमारे मन और सच्ची भावनाओं को देखता है, न कि मनुष्यों को दिखाने के लिए भले कामों को।
MIC -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): मीका की पुस्तक का लेखक भविष्यद्वक्ता मीका था (मीका 1:1) मीका एक ग्रामीण भविष्यद्वकता था जिसे शहर में भेजा गया कि वह परमेश्वर के आने वाले दण्ड का सन्देश सुनाये जिसका कारण था सामाजिक एवं आत्मिक अन्याय एवं मूर्तिपूजा। देश के कृषि क्षेत्र में निवास करने के कारण मीका अपने देश के सरकारी केन्द्रों के प्रशासन की सीमा के बाहर था इस कारण वह समाज के दलित एवं वंचित मनुष्यों - लंगड़े, समाज से बहिष्कृत एवं कष्टिन जनों के प्रति अत्यधिक चिन्तित था (मीका 4:6)। मीका की पुस्तक सभी पुराने नियमों में यीशु मसीह के जन्म की सबसे महत्वपूर्ण भविष्यवाणियों को प्रदान करती है जो सैंकड़ों वर्ष पूर्व मसीह के जन्म, उसके जन्म स्थान, बेतलेहम और उसकी दिव्य प्रकृति का वर्णन करती है (मीका 5:2)।
MIC -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): मीका के आरंभिक वचन उत्तरी राज्य इस्राएल के पतन के कुछ ही पूर्वकाल के हैं (1:2-7)। मीका की पुस्तक के अन्य अंश बाबेल की बन्धुआई में लिखे गये प्रतीत होते हैं और बाद में जब कुछ निर्वासित जन स्वदेश लौटे तब के हैं।
MIC -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस्राएल के उत्तरी राज्य तथा दक्षिण राज्य यहूदा के निवासियों के लिए यह पुस्तक लक्षित थी।
MIC -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): मीका की पुस्तक में दो महत्वपूर्ण भविष्यद्वाणियां हैं। एक, इस्राएल और यहूदा को दण्ड की (1:1-3:12) और दूसरी, प्रभु के सहस्रवर्षीय राज में परमेश्वर के लोगों के पुनर्वास की (4:1-5:15)। परमेश्वर उन्हें अपने भले कामों का स्मरण करवाता है कि वह उनकी कैसी सुधि लेता है जबकि वे केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
NAH -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): नहूम की पुस्तक का लेखक अपना नाम नहूम बताता है। (इब्रानी में इसका अर्थ है, “शान्ति दाता”) वह एल्कोशवासी था (1:1)। भविष्यद्वक्ता रूप में नहूम अश्शूर में विशेष करके उनकी राजधानी नीनवे में मन फिराव का प्रचार करने भेजा गया था। यह योना से 150 वर्ष बाद की घटना है। अतः स्पष्ट है कि उन्होंने उस समय मन फिराया परन्तु पुनः मूर्ति पूजा करने लगे थे।
NAH -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): नहूम का लेखन समय स्पष्ट ज्ञात किया जा सकता है क्योंकि उसकी भविष्यद्वाणी दो चिरपरिचित घटनाओं के मध्य की है- थेबेस का पतन और नीनवे का पतन
NAH -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): नहूम की भविष्यद्वाणी उत्तरी राज्य के दस गोत्रों को बन्धुआई में ले जाने वाले अश्शूरों तथा दक्षिणी राज्य यहूदिया दोनों के लिए थी। यहूदिया को भय था कि उसका भी वही हाल होगा जो इस्राएल का होगा।
NAH -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): परमेश्वर का न्याय सही एवं निश्चित होता है। परमेश्वर ने 150 वर्ष पूर्व भविष्यद्वक्ता योना को उनके पास भेजा था और उनसे प्रतिज्ञा की थी कि यदि वे अपनी दुष्टता में रहेंगे तो क्या होगा। उस समय तो उन्होंने मन फिराया परन्तु अब वे और भी अधिक बुराई में थे। अश्शूर अपनी विजय में पूर्णतः पाशविक हो गए थे। नहूम यहूदिया की प्रजा से कह रहा था कि वे निराश न हों क्योंकि परमेश्वर ने न्याय की घोषणा कर दी है और अश्शूरों को उनके योग्य दण्ड मिलेगा।
HAB -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): हब. 1: 1 भविष्यद्वकता हबक्कूक के वचन के रूप में इस पुस्तक की पहचान करता है। उनके नाम के अतिरिक्त हम हबक्कूक के विषय में और कुछ नहीं जानते हैं। यह तथ्य कि उसे “हबक्कूक नबी” कहा गया है दर्शाता है कि वह एक चिरपरिचित मनुष्य था और उसकी पहचान की आवश्यकता नहीं थी।
HAB -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): हबक्कूक ने यह पुस्तक संभवतः दक्षिणी राज्य, यहूदा के पतन से पूर्व, बहुत ही कम समय पहले लिखी थी।
HAB -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): दक्षिणी राज्य, यहूदा की प्रजा तथा सर्वत्र परमेश्वर के लोगों के लिए एक पत्र।
HAB -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): हबक्कूक सोच रहा था कि परमेश्वर अपने चुने हुओं को उनके बैरियों के हाथों कष्ट क्यों भोगने दे रहा है। परमेश्वर उसे उत्तर देता है और उसका विश्वास दृढ़ होता है। इस पुस्तक का उद्देश्य है कि यहोवा, उसके लोगों का रक्षक, विश्वास करने वालों को सुरक्षित रखेगा और यह घोषणा करना कि यहोवा, यहूदा का परम-प्रधान योद्धा एक दिन अन्यायी बाबेल को दण्ड देगा। हबक्कूक की पुस्तक हमें घमण्डियों को विनम्र बनाने का चित्रण प्रस्तुत करती है जबकि धर्मनिष्ठ मनुष्य परमेश्वर में विश्वास के द्वारा जीवित रहते हैं (2:4)।
ZEP -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): सपन्याह 1:1 में लेखक अपना परिचय देता है, “सपन्याह... हिजकिय्याह का पुत्र, अमर्याह का परपोता और गदल्याह का पोता और कूशी का पुत्र था।” सपन्याह का अर्थ है, “परमेश्वर का रक्षित” वह यिर्मयाह (21:1; 29:25,29; 37:3; 52:24) में एक पुरोहित दर्शाया गया है परन्तु उपरिलेख में चर्चित सपन्याह से उसका कोई सम्बन्ध नहीं है। प्रायः कहा जाता है कि वंशावली के आधार पर सपन्याह राजसी परिवार से था। सपन्याह लेखक भविष्यद्वक्ताओं में सर्वप्रथम था जिसने यशायाह और मीका के समय के यहूदा के लिए भविष्यद्वाणी की थी।
ZEP -1:14 ip introduction text possibly does not have closing punctuation (period): पुस्तक से हमें विदित होता है कि सपन्याह योशिय्याह के राज्यकाल में भविष्यद्वाणी कर रहा था। (सपन्याह 1:1)
ZEP -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यहूदिया की प्रजा (दक्षिण राज्य) तथा सर्वत्र उपस्थित परमेश्वर के लोगों के लिए पत्र।
ZEP -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): सपन्याह के दण्ड और प्रोत्साहन के सन्देश में तीन शिक्षाएं हैं: परमेश्वर सब जातियों पर परम-प्रधान है, दुष्ट को दण्ड दिया जाएगा और धर्मनिष्ठ को न्याय के दिन प्रतिफल मिलेगा, मन फिराकर परमेश्वर में विश्वास करने वाले को वह आशिष देता है।
HAG -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): हाग्गै 1:1 में इस पुस्तक के लेखक की पहचान है, कि वह भविष्यद्वक्ता हाग्गै है। भविष्यद्वक्ता हाग्गै ने अपने चार सन्देश यरूशलेम के यहूदियों के लिए लिखे है। हाग्गै 2:3 से विदित होता है कि भविष्यद्वक्ता हाग्गै ने मन्दिर के विनाश और निर्वासन से पूर्व यरूशलेम को देखा था अर्थात् वह एक वृद्ध व्यक्ति था जो अपने देश की महिमा को स्मरण कर रहा था। वह एक ऐसा भविष्यद्वक्ता था जिसमें अपने लोगों को बन्धुआई की राख से उठकर संसार के लिए परमेश्वर की ज्योति के अधिकृत स्थान पर पुनः दावा करते देखने की तीव्र लालसा थी।
HAG -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पुस्तक बेबीलोन की बन्धुआई से लौटने के बाद लिखी गई थी।
HAG -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यरूशलेम वासी तथा बन्धुआई से स्वदेश आने वाले लोग
HAG -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): स्वदेश लौटने वाले यहूदियों को प्रोत्साहित करना कि स्वदेश लौटने का सन्तोष ही पर्याप्त नहीं है; राष्ट्र के प्रमुख लक्ष्य के निमित मन्दिर और आराधना के पुनः स्थापन के प्रयास के द्वारा विश्वास को अभिव्यक्त करना है, और उन्हें प्रोत्साहन देना कि ऐसा करने से यहोवा उन्हें और उनकी भूमि को आशीष देगा, और स्वदेश लौटने वालों को प्रोत्साहित करना कि उनके पूर्वकालिक विद्रोह के उपरान्त भी यहोवा ने उनके लिए भविष्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखा है।
ZEC -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): जकर्याह 1:1 में पुस्तक के लेखक का नाम बेरेक्याह का पुत्र, और इद्दो का पोता भविष्यद्वक्ता जकर्याह दिया गया है। इद्दो स्वदेश लौटने वाले निर्वासितों में पुरोहित परिवारों में से एक का मुखिया था (नहे. 12:14,16)। संभवतः स्वदेश लौटने के समय जकर्याह एक बालक ही था। पारिवारिक पृष्ठभूमि से जकर्याह भविष्यद्वक्ता होने के साथ-साथ पुरोहित भी था। अतः वह यहूदियों की आराधना विधि को घनिष्ठता से जानता था, यद्यपि उसने मन्दिर में सेवा नहीं की थी।
ZEC -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पुस्तक बाबेल की बन्धुआई से लौटने के बाद लिखी गई थी। जकर्याह ने अध्याय 1-8 मन्दिर निर्माण के पूरा होने के पूर्व तथा अध्याय 9-14 मन्दिर निर्माण के बाद लिखे थे।
ZEC -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यरूशलेमवासी तथा स्वदेश लौटे निर्वासित यहूदी।
ZEC -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पुस्तक का उद्देश्य था कि स्वदेश लौटने वालों को आशा बंधाई जाए और समझ प्रदान की जाए और वे आने वाले मसीह यीशु की प्रतीक्षा के लिए प्रेरित हो जाएं। जकर्याह ने बल देकर कहा कि परमेश्वर अपने भविष्यद्वक्ताओं को शिक्षा देने, चेतावनी देने और उसके लोगों का सुधार करने के लिए काम में लेता है। दुर्भाग्य से उन्होंने सुनने से इन्कार कर दिया। उनके पाप का दण्ड परमेश्वर ने उन्हें दिया। इस पुस्तक में यह प्रमाण है कि भविष्यद्वाणी भी भ्रष्ट हो सकती है।
MAL -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): मलाकी 1: 1 इस पुस्तक के लेखक भविष्यद्वक्ता मलाकी के रूप में पहचान कराता है। इब्रानी भाषा में इस शब्द का अर्थ है, “सन्देशवाहक” जिससे मलाकी की भविष्यद्वाणी की भूमिका प्रगट होती है। परमेश्वर की प्रजा को परमेश्वर का सन्देश सुनाना। इसके दो अभिप्राय हैं, एक तो यह कि मलाकी हम तक पुस्तक पहुँचानेवाला सन्देशवाहक और उसका सन्देश है कि परमेश्वर भविष्य में एक और सन्देशवाहक भेजेगा - महान भविष्यद्वक्ता एलिय्याह प्रभु के दिन से पूर्व आएगा।
MAL -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पुस्तक बाबेल की बन्धुआई से लौटने के बाद लिखी गई थी।
MAL -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यरूशलेमवासियों को पत्र और सर्वत्र परमेश्वर के लोगों को एक पत्र।
MAL -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लोगों को यह स्मरण कराना कि परमेश्वर अपने लोगों की सहायता हेतु यथासंभव सब कुछ करेगा और जब वह न्याय करने आएगा तब उनसे लेखा लेगा, और उनसे आग्रह करना कि वाचा की आशिषें प्राप्त करने के लिए बुराई से मन फिराएं। परमेश्वर ने मलाकी के द्वारा उन्हें चेतावनी दी कि वे परमेश्वर की ओर उन्मुख हो जाएं। पुराने नियम की इस अन्तिम पुस्तक के अंत में परमेश्वर के न्याय की घोषणा की गई है और आने वाले मसीह के द्वारा पुनः स्थापना की प्रतिज्ञा इस्राएलियों के कानों में गूंज रही है।
MAT -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पुस्तक का लेखक मत्ती, चुंगी लेनेवाला मनुष्य था, जिसने यीशु के अनुसरण हेतु अपना यह व्यवसाय त्याग दिया था (9:9-13)। मरकुस और लूका उसे अपनी पुस्तकों में लेवी नाम से पुकारते हैं। उसके नाम का अर्थ है, “परमेश्वर का वरदान”।
MAT -1:12 ip introduction text does not have closing punctuation (period): आरम्भिक कलीसिया के प्राचीन, मत्ती को जो बारह शिष्यों में से एक था, इस पुस्तक का एकमत होकर लेखक मानते थे। मत्ती यीशु की सेवा की सब घटनाओं का आँखों देखा गवाह था। अन्य शुभ सन्देश वृत्तान्तों के साथ मत्ती की पुस्तक की तुलना करने पर स्पष्ट प्रकट होता है कि प्रेरितों द्वारा दी गई मसीह की गवाही, अखण्ड एवं सत्य है।
MAT -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 50-70
MAT -1:15 ip introduction text does not have closing punctuation (period): मत्ती की पुस्तक का यहूदी स्वरूप देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि यह पुस्तक पलिश्तीन या सीरिया में लिखी गई थी। परन्तु अनेकों के विचार में इसकी रचना अन्ताकिया में की गई थी।
MAT -1:17 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पुस्तक की भाषा यूनानी है, इसलिए मत्ती का अभिप्राय सम्भवतः यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियों के लिए सुसमाचार लिखने का रहा होगा। इस कारण पुस्तक की सामग्री के अधिकांश भाग यहूदी पाठकों की ओर संकेत करते हैं। मत्ती के विषय: हैं, पुराने नियम की पूर्ति, यीशु की वंशावली का अब्राहम से आरम्भ (1:1-17), उसके द्वारा यहूदियों की शब्दावली का उपयोग (उदाहरणार्थ, “स्वर्ग का राज्य”, जहाँ स्वर्ग शब्द का उपयोग परमेश्वर के नाम के उपयोग में संकोच को प्रकट करता है और यीशु को “दाऊद का पुत्र” कहना- 1:1, 9:27; 12:23; 15:22; 20:30-31; 21:9,15; 22:41-45) आदि बातों से प्रकट होता है कि मत्ती के ध्यान में यहूदी समुदाय अधिक था।
MAT -1:19 ip introduction text does not have closing punctuation (period): अपनी पुस्तक में शुभ सन्देश लिखने का मत्ती का अभिप्राय यह था कि यहूदी पाठक यीशु को मसीह स्वीकार करें। यहाँ मत्ती का मुख्य उद्देश्य है कि परमेश्वर के राज्य को मानवजाति के मध्य लाने पर बल दिया जाए। वह बल देता है कि यीशु एक राजा है जो पुराने नियम की भविष्यद्वाणियों और आशाओं को पूरा करता है (मत्ती 1:1; 6:16; 20:28)।
MAT -1:21 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यीशु-यहूदियों का राजा
LUK -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): प्राचीन लेखकों का एकमत से मानना है कि, इस पुस्तक का लेखक वैद्य लूका है, और अपनी इस पुस्तक के आधार पर वह द्वितीय पीढ़ी का मसीही विश्वासी प्रतीत होता है। परम्परा के अनुसार वह एक अन्यजाति विश्वासी था। मुख्यतः वह एक सुसमाचार प्रचारक था। उसने मसीह के शुभ सन्देश का वृत्तान्त एवं प्रेरितों के काम की पुस्तकें लिखी थीं। वह मसीही प्रचार कार्य में पौलुस का सहकर्मी भी रहा था (कुलु. 4:14, 2 तीमु. 4:11; 11:1)।
LUK -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 60-80
LUK -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लूका ने इस पुस्तक को कैसरिया में लिखना आरम्भ किया और रोम में आकर उसे पूरा किया। लिखने के मुख्य स्थान बैतलहम, गलील, यहूदिया और यरूशलेम रहे होंगे।
LUK -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लूका द्वारा मसीह के शुभ सन्देश की यह पुस्तक थियुफिलुस को समर्पित है। थियुफिलुस का अर्थ है “परमेश्वर से प्रेम करनेवाला”। यह स्पष्ट नहीं है कि वह मसीही विश्वासी था या विश्वासी बनना चाहता था। यह तथ्य कि लूका उसे “अत्युत्तम” कहकर संबोधित करता है 1:3, यह सुझाव देता है कि वह एक रोमी उच्च पद का अधिकारी रहा होगा। अनेक प्रमाण अन्यजाति पाठकों की ओर संकेत करते हैं। उसकी प्रमुख अभिव्यक्तियाँ थीं, “मनुष्य का पुत्र” और “परमेश्वर का राज्य” (लूका 5:24; 19:10; 17:20-21; 13:18)।
LUK -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यीशु के जीवन का वृत्तान्त लिखते हुए, लूका यीशु को “मनुष्य का पुत्र” कहता है। उसने थियुफिलुस को लिखा कि, जिन बातों की शिक्षा उसे दी गई है उनकी उचित समझ उसे प्राप्त हो (लूका 1:4)। लूका सताव के समय अपने लेखों द्वारा मसीही विश्वास की रक्षा कर रहा था कि थियुफिलुस को समझ प्राप्त हो कि यीशु के अनुयायियों में अनिष्ट या बुराई वाली कोई बात नहीं है।
LUK -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यीशु- एक उत्तम व्यक्ति
ACT -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): वैद्य लूका इस पुस्तक का लेखक है। प्रेरितों के काम की पुस्तक में व्यक्त अनेक घटनाओं का वह आँखों देखा गवाह था। इसकी पुष्टि उसके द्वारा बहुवचन सर्वनाम शब्द “हम” के उपयोग से होती है (16:10-17; 20:5-21:18; 27:1-28:16)। परम्परा के अनुसार वह एक विजातीय विश्वासी था जो प्रचारक बना।
ACT -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 60-63
ACT -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लेखन कार्य के मुख्य स्थान यरूशलेम, सामरिया, लुद्दा, याफा, अन्ताकिया, इकुनियुस, लुस्त्रा, दिरबे, फिलिप्पी, थिस्सलुनीके, बिरीया, एथेंस, कुरिन्थ, इफिसुस, कैसरिया, माल्टा, और रोम रहे होंगे।
ACT -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लूका ने थियुफिलुस को लिखा था (प्रेरि. 1:1)। दुर्भाग्यवश, थियुफिलुस के बारे में अन्य कोई जानकारी नहीं है। सम्भव है कि वह लूका का अभिभावक था; या यह नाम थियुफिलुस (अर्थात् “परमेश्वर से प्रेम करनेवाला”) मसीही विश्वासियों के लिए काम में लिया गया व्यापक शब्द था।
ACT -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): प्रेरितों के काम की पुस्तक का उद्देश्य है की मसीही कलीसिया के आरम्भ और उसके विकास की कहानी प्रस्तुत करे। यह पुस्तक यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले, यीशु और शुभ सन्देश वृत्तान्तों में बारह शिष्यों के सन्देशों को प्रकट करती है। इस पुस्तक में पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र-आत्मा के अवतरण से लेकर मसीही विश्वास के प्रसारण का वृत्तान्त व्यक्त है।
ACT -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): सुसमाचार का प्रसार
ROM -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): रोम. 1:1 के अनुसार इस पत्र का लेखक पौलुस है। उसने यूनानी नगर कुरिन्थ से इस पत्री को लिखा था। यह वह समय था जब 16 वर्षीय नीरो रोमी साम्राज्य की गद्दी पर बैठा था। यह प्रमुख यूनानी नगर यौन अनैतिकता और मूर्तिपूजा का सक्रिय स्थान था। अतः जब पौलुस रोम की कलीसिया को लिखे इस पत्र में मनुष्यों के पाप और चमत्कारी रूप से मनुष्य के जीवन को पूर्णतः बदलने वाले परमेश्वर के अनुग्रह के सामर्थ्य की चर्चा करता है तो वह जनता था कि वह क्या कह रहा है। पौलुस मसीह के शुभ सन्देश के आधारभूत सिद्धान्तों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है और सब प्रमुख बातों का उल्लेख करता है जैसे: परमेश्वर की पवित्रता, मनुष्यजाति का पाप और मसीह यीशु द्वारा उपलब्ध उद्धारक अनुग्रह।
ROM -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 57, कुरिन्थ नगर से प्रमुख लक्षित स्थान रोम की कलीसिया
ROM -1:15 ip introduction text does not have closing punctuation (period): परमेश्वर के प्रिय सब रोमी विश्वासी जिन्हें उसमें पवित्र जन होने के लिए बुलाया गया है अर्थात् रोम नगर की मसीही कलीसिया (रोमि. 1:7)। रोम रोमी साम्राज्य की राजधानी थी।
ROM -1:17 ip introduction text does not have closing punctuation (period): रोम की कलीसिया को लिखा गया यह पत्र मसीही धर्म सिद्धान्तों का स्पष्टतम् एवं सर्वादित विधिवत् प्रस्तुतिकरण है। पौलुस मनुष्य के पापी स्वभाव की चर्चा से आरम्भ करता है। परमेश्वर से विद्रोह करने के कारण सब मनुष्य दोषी ठहराए गए हैं। तथापि परमेश्वर अपने अनुग्रह में हमें प्रभु यीशु में विश्वास के द्वारा न्यायोचित अवस्था प्रदान करता है। परमेश्वर द्वारा न्यायोचित ठहराए जाने पर हम उद्धार या मुक्ति पाते हैं; क्योंकि मसीह का लहू सब पापों को ढाँप लेता है। इन विषयों पर पौलुस का विवेचन तार्किक वरन् परिपूर्ण प्रस्तुतिकरण उपलब्ध करवाता है कि मनुष्य कैसे उसके पाप के दण्ड और पाप की प्रभुता से बच सकता है।
ROM -1:19 ip introduction text does not have closing punctuation (period): परमेश्वर की धार्मिकता
CO1 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस को इस पुस्तक का लेखक स्वीकार किया गया (1 कुरि.1:1-2;16:21)। इसे पौलुस का पत्र भी कहा जाता है। पौलुस जब इफिसुस नगर में था या वहां पहुंचने से पूर्व पौलुस ने यह पत्र कुरिन्थ नगर की कलीसिया को लिखा था। यह पत्र उसके प्रथम पत्र के बाद लिखा गया था (5:10-11)। उस पत्र को कुरिन्थ की कलीसिया ने गलत समझा था। दुर्भाग्य से वह पत्र खो गया है। इस प्रथम पत्र की विषयवस्तु अज्ञात है। यह पत्र पौलुस ने कुरिन्थ की कलीसिया द्वारा उसे लिखे गये पत्र के उत्तर में लिखा था। अति संभव है कि उन्होंने उस प्रथम पत्र के उत्तर में पौलुस को एक पत्र लिखा था।
CO1 -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 55-56
CO1 -1:14 ip introduction text possibly does not have closing punctuation (period): यह पत्र इफिसुस नगर से लिखा गया था। (1 कुरि. 16:8)
CO1 -1:16 ip introduction text possibly does not have closing punctuation (period): पौलुस के इस पत्र के अपेक्षित पाठक थे, कुरिन्थ नगर में परमेश्वर की कलीसिया के सदस्य (1 कुरि. 1:2)। परन्तु पौलुस यह भी लिखता है, “और उन सब के नाम भी जो हर जगह हमारे और हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से प्रार्थना करते हैं।” (1:2)
CO1 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस को कुरिन्थ की कलीसिया की वर्तमान परिस्थितियों की जानकारी अनेक स्रोतों से प्राप्त हुई थी। इस पत्र को लिखने के पीछे पौलुस का उद्देश्य था कि कलीसिया की दुर्बलताओं के बारे में उन्हें निर्देश दे और उसका पुनरूद्धार करे और उनके अनुचित अभ्यास जैसे कलीसिया में विभाजन आदि की प्रवृत्ति को दूर करे (1 कुरि. 1:10-4:21)। पुनरूत्थान के बारे में उनमें जो भ्रम उपजाया गया था उसे भी दूर करे। (1 कुरि. 15) तथा अनैतिकता के विरुद्ध अपना निर्णय दे (1 कुरि. 5, 6:12-20)। प्रभु भोज के अपमान को भी सुधारे (1 कुरि. 11:17-34)। कुरिन्थ की कलीसिया को वरदान प्राप्त थे (1:4-7)। परन्तु उनमें परिपक्वता एवं आत्मिकता की कमी थी (3:1-4)। अतः पौलुस ने एक महत्वपूर्ण आदर्श स्थापित किया कि कलीसिया में पाप के साथ क्या किया जाये। कलीसिया में विभाजनों तथा अनैतिकता को अनदेखा करने की अपेक्षा पौलुस ने सीधा उसका समाधान किया।
CO2 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस ने अपने जीवन के एक अति कोमल समय में कुरिन्थ की कलीसिया को यह दूसरा पत्र लिखा था। पौलुस को जब जानकारी प्राप्त हुई कि वह कलीसिया संघर्षरत है तो उसने कुछ करना चाहा कि उस कलीसिया की एकता सुरक्षित रहे। जब पौलुस ने यह पत्र लिखा था तब उसे कष्ट एवं व्यथा का अनुभव हो रहा था क्योंकि वह कुरिन्थ की कलीसिया से प्रेम रखता था। कष्ट मनुष्य की दुर्बलता को दर्शाते हैं परन्तु परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर्याप्त होती है, “मेरा अनुग्रह तेरे लिए बहुत है, क्योंकि मेरी सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होती है” (2 कुरि. 2:7-10)। इस पत्र में पौलुस अपनी सेवा और प्रेरितीय अधिकार की प्रबलता से रक्षा करता है। पत्र के आरंभ ही में वह इस तथ्य की पुष्टि करता है कि वह परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है (2 कुरि. 1:1)। पौलुस का यह पत्र उसके और मसीह विश्वास के बारे में बहुत कुछ दर्शाता है।
CO2 -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 55-56
CO2 -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): कुरिन्थ की कलीसिया को पौलुस का यह दूसरा पत्र मकिदुनिया से लिखा गया था।
CO2 -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): कुरिन्थ की कलीसिया और संपूर्ण अखाया जिसकी रोमी राजधानी कुरिन्थ थी (2 कुरि. 1:1)।
CO2 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र को लिखने में पौलुस के अनेक उद्देश्य थे। कुरिन्थ की कलीसिया ने पौलुस के पिछले दर्द भरे पत्र के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखाई इस कारण पौलुस को बड़ी शक्ति मिली थी और वह आनंद से भर गया था (1:3-4; 7:8-9,12-13)। वह उन्हें यह भी बताना चाहता था कि एशिया के क्षेत्र में उसने कैसी-कैसी परेशानियां उठाई थीं (1:8-11)। वह उनसे निवेदन करना चाहता था कि हानि पहुंचाने वाले दल को क्षमा कर दें (2:5-11)। उन्हें चेतावनी भी दी थी कि “अविश्वासियों के साथ उस असमान जूए में न जुतें”(6:14-7:1)। उन्हें मसीह की सेवा की सच्ची प्रकृति एवं उच्च बुलाहट को समझाया (2:14-7:4)। कुरिन्थ की कलीसिया को उसने दान देने के अनुग्रह की शिक्षा दी ताकि वे सुनिश्चित करें कि यरूशलेम के आपदाग्रस्त गरीब विश्वासियों के लिए दान एकत्र करके पहले ही तैयार रखें (अध्याय 8–9)।
GAL -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र का लेखक पौलुस है। आरम्भिक कलीसिया का यही एकमत विश्वास था। पौलुस ने दक्षिणी गलातिया क्षेत्र की कलीसियाओं को यह पत्र लिखा था। एशिया माइनर की प्रचार यात्रा के समय इन कलीसियाओं की स्थापना में पौलुस का भी हाथ था। गलातिया रोम या कुरिन्थ के जैसा एक सम्पूर्ण नगर नहीं था। वह एक रोमी प्रान्त था जिसमें अनेक नगर थे और वहाँ अनेक कलीसियाएँ स्थापित हो गई थीं। ये गलातियावासी जिन्हें पौलुस ने पत्र लिखा पौलुस द्वारा मसीही विश्वास में लाए गये थे।
GAL -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 48
GAL -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): सम्भव है कि पौलुस ने यह पत्र अन्ताकिया से लिखा था क्योंकि यह नगर उसका मुख्य निवास था।
GAL -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पत्र गलातिया प्रदेश की कलीसियाओं के सदस्यों को लिखा गया था (गला. 1:1-2)।
GAL -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र के पीछे का उद्देश्य यह था कि यहूदी पृष्ठभूमि के मसीही विश्वासियों की भ्रमित शिक्षा का खण्डन करे क्योंकि उनकी शिक्षा के अनुसार उद्धार पाने के लिए खतना करवाना आवश्यक था। वह गलातिया के विश्वासियों को उद्धार का वास्तविक आधार समझाना चाहता था। पौलुस अपने प्रेरितीय अधिकार की पुष्टि करके अपने द्वारा प्रचार किए गये शुभ सन्देश का सत्यापन करता है। मनुष्य अनुग्रह के द्वारा विश्वास ही से धर्मनिष्ठ माना जाता है और उन्हें केवल अपने विश्वास से आत्मा की स्वतंत्रता के इस जीवन में जीना सीखना है।
GAL -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): मसीह में स्वतंत्रता
EPH -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इफि. 1:1 से स्पष्ट होता है कि इस पत्री का लेखक पौलुस है। यह पत्री पौलुस द्वारा कलीसिया के आरम्भिक दिनों में लिखी गई प्रतीत होती है और आरम्भिक प्रेरितीय पितरों द्वारा इसका संदर्भ भी दिया गया है, जैसे रोम का क्लेमेंस, इग्नेशियस, हरमास तथा पोलीकार्प इत्यादि।
EPH -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 60
EPH -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): सम्भवतः जब पौलुस रोम में बन्दी था तब उसने यह पत्री लिखी।
EPH -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इसके प्रमुख पाठक इफिसुस की कलीसिया थी। पौलुस स्पष्ट संकेत देता है कि उसके लक्षित पाठक अन्यजाति विश्वासी हैं। इफि. 2:11-13 में वह स्पष्ट व्यक्त करता है कि; उसके पाठक “जन्म से अन्यजाति हैं।” (2:11) और इसी कारण यहूदी उन्हें “प्रतिज्ञा की वाचाओं के भागी” नहीं मानते थे (2:12)। इसी प्रकार इफि. 3:1 में भी वह अन्य जाति विश्वासियों का ही स्मरण करवाता है कि वह उनके लिए ही कारागार में है।
EPH -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस की इच्छा थी कि जो मसीह के तुल्य परिपक्वता चाहते हैं वे इस पत्र को स्वीकार करें। इस पत्र में परमेश्वर की सच्ची सन्तान स्वरूप विकास हेतु आवश्यक अनुशासन समझाया गया है। इसके अतिरिक्त, इफिसियों के इस पत्र में विश्वासी को विश्वास में स्थिर रहने एवं दृढ़ होने हेतु सहायता प्रदान की गई है कि वे परमेश्वर की बुलाहट एवं उद्देश्य को पूरा करने में सक्षम हों। पौलुस चाहता था कि इफिसुस के मसीही विश्वासी अपने विश्वास में दृढ़ हों, अतः वह उन्हें कलीसिया के स्वभाव एवं उद्देश्य को समझाता है।
EPH -1:19 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र में पौलुस ऐसे अनेक शब्दों को काम में लेता है जो अन्यजाति मसीही पाठक समझ सकते थे क्योंकि वे उनके पूर्व धर्म के थे जैसे सिर, देह, परिपूर्णता, भेद, युग, शासन आदि। उसने इन शब्दों का उपयोग इसलिए किया कि उसके पाठकों को समझ में आ जाये कि मसीह किसी भी देवगण या आत्मिक प्राणियों से सर्वश्रेष्ठ है।
EPH -1:21 ip introduction text does not have closing punctuation (period): मसीह में आशीष
PHP -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस स्वयं दावा करता है कि उसने यह पत्र लिखा है (1:1) तथा भाषा, शैली, ऐतिहासिक तथ्य इसकी पुष्टि करते हैं। आरम्भिक कलीसिया भी विषमता रहित पौलुस के लेखक होने और अधिकार की चर्चा करती है। फिलिप्पी की कलीसिया को लिखा गया यह पत्र मसीह का मन प्रकट करता है (2:1-11)। इस पत्र को लिखते समय पौलुस कारागार में था परन्तु वह आनन्दित था। यह पत्र हमें सिखाता है कि कठिनाइयों और कष्टों में भी मसीह के विश्वासी आनन्द का अनुभव कर सकते हैं। हमारे आनन्द का कारण मसीह में हमारी आशा है।
PHP -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 61
PHP -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस ने फिलिप्पी की कलीसिया को यह पत्र रोम के कारागार से लिखा था (प्रेरि. 28:30)। इस पत्र का वाहक इपफ्रुदीतुस था। वह फिलिप्पी की कलीसिया की ओर से पौलुस के लिए आर्थिक भेंट लेकर रोम आया था (फिलि. 2:25, 4:18)। वहाँ आकर इपफ्रुदीतुस बहुत बीमार हो गया था और इस कारण वह शीघ्र घर नहीं लौट पाया था। यही कारण था कि पत्र भी विलम्ब से पहुँचा (2:26,27)।
PHP -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): फिलिप्पी की कलीसिया, फिलिप्पी मकिदुनिया का एक प्रमुख नगर था।
PHP -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस कलीसिया को अपने कारावास की परिस्थितियों से (1:12-26) और वहाँ से मुक्त हो जाने पर उसकी क्या योजना है उससे अवगत कराना चाहता था (2:23-24)। ऐसा प्रतीत होता है कि उस कलीसिया में कलह और विभाजन थे। अतः पौलुस दीनता के द्वारा एकता के विषय में लिखता है (2:1-18; 4:2-3)। पास्तरीय धर्मशास्त्री, पौलुस नकारात्मक शिक्षा और कुछ झूठे शिक्षकों के परिणामों के बारे में सीधा प्रतिवादी पत्र लिखता है (3:2,3)। पौलुस ने तीमुथियुस को कलीसिया की देखरेख को सौंपना तथा इपफ्रुदीतुस के स्वास्थ्य एवं अपनी योजनाओं के बारे में चर्चा की है (2:19-30)। पौलुस उनकी आर्थिक भेंट एवं उसके प्रति उनकी चिन्ता के लिए भी आभार व्यक्त करता है (4:10-20)।
PHP -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): आनन्द भरा जीवन
COL -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): कुलुस्से की कलीसिया को लिखा गया यह पत्र पौलुस का ही प्रामाणिक पत्र है (1:1)। आरम्भिक कलीसिया में जो भी लेखक के विषय चर्चा करते हैं इसे पौलुस की कृति मानते हैं। कुलुस्से की कलीसिया स्वयं पौलुस ने आरम्भ नहीं की थी। पौलुस के किसी सहकर्मी सम्भवतः इपफ्रास ने वहाँ शुभ सन्देश पहुँचाया था (4:12,13)। वहाँ भी झूठे शिक्षक विचित्र नई शिक्षाएँ लेकर पहुँच गये थे। उन्होंने विजातीय तत्वज्ञान एवं यहूदी मान्यताओं को मसीही विश्वास में जोड़ दिया था। पौलुस ने इस झूठी शिक्षा का खण्डन करके यह सिद्ध किया कि मसीह ही सर्वेसर्वा है।
COL -1:12 ip introduction text does not have closing punctuation (period): कुलुस्से की कलीसिया को लिखा यह पत्र “सम्पूर्ण नये नियम में सबसे अधिक मसीह केन्द्रित पत्र” माना जाता है। इसमें मसीह यीशु को सब वस्तुओं पर परम-प्रधान दर्शाया गया है।
COL -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 60
COL -1:15 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस ने यह पत्र सम्भवतः रोम से लिखा था जब प्रथम बार कारागार में था।
COL -1:17 ip introduction text possibly does not have closing punctuation (period): पौलुस ने यह पत्र कुलुस्से की कलीसिया को लिखा था, “उन पवित्र और विश्वासी भाइयों के नाम जो कुलुस्से में रहते हैं।” (1:1-2) यह कलीसिया इफिसुस से लगभग 150 कि.मी. भीतर लाइकुस घाटी में थी। पौलुस इस कलीसिया में कभी नहीं गया। (1:4; 2:1)
COL -1:19 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस उस विनाशकारी झूठी शिक्षा के विरुद्ध परामर्श देता है जिसका उदय कुलुस्सियों में हुआ था। इन झूठी शिक्षाओं के प्रतिवाद में सम्पूर्ण सृष्टि पर मसीह की पूर्ण, अपरोक्ष एवं सतत् सर्वश्रेष्ठता को महत्त्व प्रदान करने के लिए (1:15; 3:4); पाठकों को सम्पूर्ण सृष्टि के परम-प्रधान मसीह को निहारते हुए जीवन जीने का प्रोत्साहन देने के लिए (3:5; 4:6)। और कलीसिया को प्रोत्साहित करने के लिए कि वे अनुशासित मसीही जीवन जीएँ तथा झूठे शिक्षकों द्वारा उत्पन्न संकट के समय अपने विश्वास में दृढ़ रहें, यह पत्री लिखी (2:2-5)।
COL -1:21 ip introduction text does not have closing punctuation (period): मसीह की सर्वोच्चता
TH1 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): प्रेरित पौलुस दो बार स्वयं को इसका लेखक बताता है (1:1, 2:18)। सीलास और तीमुथियुस पौलुस की दूसरी प्रचार यात्रा में उसके साथ थे (3:2,6)। जब उन्होंने यह कलीसिया आरम्भ की थी (प्रेरि. 17:1-9) तब उसने वहाँ से प्रस्थान करने के कुछ ही समय बाद वहाँ के विश्वासियों को यह पत्र लिखा था। थिस्सलुनीके नगर में पौलुस की मसीही सेवा ने स्पष्टतः यहूदी ही नहीं अन्यजाति को भी छुआ कलीसिया में अनेक अन्यजाति मूर्तिपूजक पृष्ठभूमि से आए थे परन्तु उस युग के यहूदियों की यह समस्या नहीं थी (1 थिस्स. 1:9)।
TH1 -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 51
TH1 -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस ने थिस्सलुनीके की कलीसिया को अपना प्रथम पत्र कुरिन्थ नगर से लिखा था।
TH1 -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): 1 थिस्स. 1:1 इस प्रथम पत्र के पाठकों की पहचान कराता है, “थिस्सलुनीके की कलीसिया के नाम” परन्तु सामान्यतः यह पत्र सर्वत्र उपस्थित विश्वासियों से बातें करता है।
TH1 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र के पीछे पौलुस का उद्देश्य था कि नये विश्वासियों को परीक्षा के समय में प्रोत्साहन प्रदान करे (3:3-5), और परमेश्वर परायण जीवन के निर्देश दे (4:1-12), और मसीह के पुनः आगमन से पूर्व मरणहार विश्वासियों को भविष्य के बारे में आश्वस्त करे (4:13-18) तथा कुछ नैतिक एवं व्यावहारिक विषयों में उनका सुधार करे।
TH1 -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): कलीसिया के लिए चिंतित
TH2 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): प्रथम पत्र के सदृश्य यह पत्र भी पौलुस, तीमुथियुस एवं सीलास की ओर से था। लेखक ने इस पत्र में भी वही लेखन शैली का इस्तेमाल किया है जो पौलुस ने 1 थिस्सलुनीकियों और अन्य पत्रों में किए है। इससे स्पष्ट होता है कि मुख्य लेखक पौलुस ही था। सीलास और तीमुथियुस का नाम अभिवादन में जोड़ा गया है (1:1)। अनेक पदों में “हम” लिखने का अर्थ है कि इस पत्र के लेखन में तीनों एक मन हैं। क्योंकि पौलुस ने अन्तिम नमस्कार एवं प्रार्थना अपने हाथों से लिखी थी, इस कारण पत्र लेखन कार्य पौलुस का नहीं है (3:17)। ऐसा प्रतीत होता है कि पौलुस ने तीमुथियुस या सीलास के हाथों यह पत्र लिखवाया था।
TH2 -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 51-52
TH2 -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस ने यह दूसरा पत्र कुरिन्थ नगर से लिखा था, जब वह प्रथम पत्र लिखते समय वहाँ उपस्थित था।
TH2 -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): 2 थिस्स. 1:1 पाठकों की पहचान कराता है कि वे “थिस्सलुनीके की कलीसिया” के सदस्य थे।
TH2 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्री का उद्देश्य था कि प्रभु के दिन के विषय में भ्रमित शिक्षा का खण्डन किया जाए। विश्वास में बने रहने के लिए उन्होंने जो यत्न किया उसके लिए उनकी प्रशंसा करे और उन्हें प्रोत्साहित करे और अन्त समय से सम्बंधित शिक्षा में भ्रम में पड़नेवालों को झिड़के क्योंकि उनकी शिक्षा के अनुसार प्रभु का दिन आ चुका था और प्रभु का आगमन अति निकट है। इस प्रकार वे इस शिक्षा के माध्यम से अपना स्वार्थ सिद्ध कर रहे थे।
TH2 -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): आशा में जीना
TI1 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इसका लेखक पौलुस है। पत्र की विषयवस्तु स्पष्ट व्यक्त करती है कि यह पत्र प्रेरित पौलुस के द्वारा ही लिखा गया था, “पौलुस की ओर से जो मसीह यीशु का प्रेरित है” (1:1)। आरम्भिक कलीसिया इसे पौलुस का प्रामाणिक पत्र मानती थी।
TI1 -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 62-64
TI1 -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस तीमुथियुस को इफिसुस में छोड़कर मकिदुनिया चला गया था। वहाँ से उसने उसे यह पत्र लिखा था (1 तीमु. 1:3;3:14,15)।
TI1 -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): जैसा नाम प्रकट करता है यह पत्र तीमुथियुस को जो प्रचार कार्य में उसका सहकर्मी एवं सहयोगी था, लिखा गया था। तीमुथियुस एवं सम्पूर्ण कलीसिया इसके लक्षित पाठक हैं।
TI1 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र का उद्देश्य यह था कि, तीमुथियुस को निर्देश देना कि परमेश्वर के परिवार का आचरण कैसा होना चाहिये (3:14–15)। और तीमुथियुस का इन निर्देशों पर स्थिर रहना। ये दो पद इस प्रथम पत्र में पौलुस के अभिप्रेत अर्थ को व्यक्त करते हैं। वह कहता है कि उसके लिखने का उद्देश्य है, “तू जान ले कि लोगों को स्वयं का संचालन किस तरह करना चाहिए परमेश्वर के घराने में, जो जीविते परमेश्वर की कलीसिया है, स्तम्भ और सच्चाई की नींव है, इस गद्यांश में प्रकट है कि पौलुस अपने सहकर्मियों को पत्र लिख रहा था और निर्देशन दे रहा था कि वे कलीसियाओं को कैसे दृढ़ एवं स्थिर करें।
TI1 -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): एक युवा शिष्य के लिए निर्देश
TI2 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): रोम के कारागार से मुक्त होकर और उसकी चौथी प्रचार यात्रा के बाद पौलुस फिर से सम्राट नीरो के अधीन बन्दी बनाया गया था। इस चौथी प्रचार यात्रा ही में पौलुस ने तीमुथियुस को पहला पत्र लिखा था। तीमुथियुस को दूसरा पत्र लिखते समय वह फिर से कारागार में था। पहली बार जब पौलुस बन्दी बनाया गया था वह तब एक किराये के मकान में नजरबन्द था (प्रेरि.का.28:30)। परन्तु इस समय वह काल कोठरी में था (4:13)। एक साधारण बन्दी के जैसा वह जंजीरों में जकड़ा हुआ था (1:16, 2:9)। पौलुस जानता था कि उसका कार्य पूरा हो गया है और उसका अन्त समय आ गया है (4:6-8)।
TI2 -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 66-67
TI2 -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस दूसरी बार बन्दी गृह में था जब उसने यह पत्र लिखा। अब उसे बस अपने शहीद होने की प्रतीक्षा थी।
TI2 -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र का मुख्य पाठक तीमुथियुस तो था ही परन्तु उसने निश्चय ही यह पत्र कलीसिया को भी पढ़ाया था।
TI2 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र के लिखने में पौलुस का यह उद्देश्य था कि, तीमुथियुस को अन्तिम बार प्रोत्साहित करना और प्रबोधित करना के जो कार्य पौलुस ने उसे सौंपा है उसे वह निर्भीक होकर (1:3-14) ध्यान केन्द्रित हो कर (2:1-26), और लगन से करे (3:14-17; 4:1-8)|
TI2 -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): विश्वासयोग्य सेवकाई करने का प्रभार
TIT -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस स्वयं को इस पत्र का लेखक कहता है। वह स्वयं को “परमेश्वर का दास एवं मसीह यीशु का प्रेरित” कहता है (तीतुस 1:1)। तीतुस के साथ पौलुस के सम्बंध का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है। हमें यही समझ में आता है कि उसने पौलुस की सेवा में मसीह को ग्रहण किया था। पौलुस उसे अपना पुत्र कहता है, “जो विश्वास की सहभागिता के विचार से मेरा सच्चा पुत्र है”(1:4)। पौलुस तीतुस को एक मित्र और सुसमाचार में सहकर्मी मानकर सम्मान प्रदान करता था। अनुराग, सत्यनिष्ठा और लोगों को शान्ति दिलाने के कारण वह उसकी प्रशंसा भी करता है।
TIT -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 63-65
TIT -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पहली बार कारागार से मुक्ति पाने के बाद पौलुस ने तीतुस को यह पत्र निकोपोलिस से लिखा था। तीमुथियुस को इफिसुस में छोड़ने के बाद पौलुस तीतुस के साथ क्रेते में आया था।
TIT -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): तीतुस, एक और सहकर्मी तथा विश्वास में पौलुस का पुत्र जो क्रेते में था।
TIT -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र को लिखने में पौलुस का उद्देश्य यह था की, क्रेते की कलीसिया में जो भी कमी थी उसे सुधारने के लिए तीतुस को परामर्श देना वहाँ व्यवस्था की कमी और कुछ अनुशासन रहित मनुष्यों के सुधार में सहायता करना (1) धर्मवृद्धों की नियुक्ति और (2) क्रेते में अविश्वासियों के मध्य विश्वास की उचित गवाही देना (तीतुस 1:5)।
TIT -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): आचरण की नियमावली
PHM -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र का लेखक पौलुस था (फिले.1:1)। इस पत्र में पौलुस फिलेमोन से कहता है कि वह उनेसिमुस को उसके पास फिर से भेज रहा है तथा कुलु. 4:9 में उनेसिमुस तुखिकुस के साथ कुलुस्से जा रहा था कि तुखिकुस फिलेमोन को पौलुस का पत्र दे। यह एक रोचक बात है कि पौलुस ने यह पत्र अपने हाथ से लिखा है कि इसका महत्त्व प्रकट हो।
PHM -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 60
PHM -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): फिलेमोन को यह पत्र लिखते समय पौलुस रोम के कारागार में बन्दी था।
PHM -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पौलुस ने यह पत्र फिलेमोन की तथा अरखिप्पुस की आवासीय कलीसिया को तथा बहन अफफिया को लिखा था। पत्र की विषयवस्तु से प्रकट होता है कि यह पत्र मुख्यतः फिलेमोन के लिए था।
PHM -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र को लिखने में पौलुस का उद्देश्य यह था कि उनेसिमुस को उसका स्वामी फिर से अपना ले (उनेसिमुस फिलेमोन का दास था जो उसके पास से चोरी करके भाग गया था) और उसे दण्ड न दे। (10-12,17)। इसके अतिरिक्त पौलुस चाहता था कि फिलेमोन उसे दास के रूप में नहीं “एक प्रिय भाई” के रूप में अपना ले। (15-16)। उनेसिमुस अब भी फिलेमोन की सम्पदा था और पौलुस उसके लिए मार्ग बनाना चाहता था कि फिलेमोन उसे सहर्ष ग्रहण कर ले। पौलुस के प्रचार द्वारा उनेसिमुस ने मसीह को ग्रहण कर लिया था (फिले.10)।
PHM -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): छुटकारा
HEB -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इब्रानियों के पत्र का लेखक एक रहस्य है। कुछ विद्वान पौलुस को इसका लेखक मानते हैं परन्तु इसका लेखक अज्ञात ही है। अन्य कोई भी पुस्तक ऐसी नहीं है जो विश्वासियों के लिये ऐसी सुन्दरता से मसीह को प्रधान पुरोहित दर्शाए। वह हारून के पुरोहित होने से भी श्रेष्ठ है और वही परमेश्वर प्रदत्त विधान और भविष्यद्वक्ताओं की पूर्ति है। यह पुस्तक मसीह को हमारे विश्वास का कर्ता एवं सिद्ध करने वाला दर्शाती है (इब्रा.12:2)।
HEB -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 64-70
HEB -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र का लेखन स्थान यरूशलेम था- यीशु के स्वर्गारोहण के बाद और इस्राएल के मन्दिर के ध्वंस होने से पूर्व।
HEB -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह पत्र मुख्यतः उन यहूदियों को लिखा गया था जिन्होंने मसीह को ग्रहण कर लिया था। वे पुराने नियम के ज्ञाता थे परन्तु वे परीक्षा में थे कि पुनः यहूदी मत में चले जायें या शुभ सन्देश को यहूदी विधि का बना दें। एक सुझाव यह भी है कि ये लोग “अधिक संख्या में पुरोहित थे जिन्होंने मसीही विश्वास को अपनाया था” (प्रे.का. 6:7)।
HEB -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र के लेखक ने अपने श्रोतागणों को उत्साहित किया कि वे स्थानीय यहूदी शिक्षाओं को त्याग कर यीशु से स्वामिभक्ति निभायें तथा प्रकट करें कि मसीह यीशु श्रेष्ठ है, परमेश्वर का पुत्र स्वर्गदूतों से, पुरोहितों से, पुराने नियम के अगुओं से या अन्य किसी भी धर्म से श्रेष्ठ है। क्रूस पर मरकर और फिर जीवित होकर यीशु विश्वासियों का उद्धार एवं अनन्त जीवन को सुनिश्चित करता है। हमारे पापों के लिए मसीह का बलिदान सिद्ध एवं परिपूर्ण था। विश्वास परमेश्वर को ग्रहणयोग्य है। हम परमेश्वर की आज्ञाओं को मानकर अपना विश्वास प्रकट करते हैं।
JAM -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र का लेखक याकूब है (1:1)। वह मसीह यीशु का भाई और यरूशलेम की कलीसिया का एक प्रमुख अगुआ था। याकूब के अतिरिक्त मसीह यीशु के और भी भाई थे। याकूब संभवतः सबसे बड़ा था क्योंकि मत्ती 13:55 की सूची में उसका नाम सबसे पहले आता है। आरम्भ में वह यीशु में विश्वास नहीं करता था। उसने उसे चुनौती भी दी थी और उसके सेवा कार्य को गलत समझा था (यूह.7:2-5)। बाद में वह कलीसिया में एक श्रेष्ठ अगुआ हुआ।
JAM -1:12 ip introduction text does not have closing punctuation (period): वह उन विशिष्ट वर्गों में था जिन्हें यीशु ने अपने पुनरूत्थान के बाद दर्शन दिया था (1 कुरि. 15:7)। पौलुस उसे कलीसिया का “खम्भा” कहता है (गला. 2:9)।
JAM -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 40-50
JAM -1:15 ip introduction text does not have closing punctuation (period): सन् 50 की यरूशलेम सभा से और सन् 70 में मन्दिर के ध्वंस होने से पूर्व।
JAM -1:17 ip introduction text does not have closing punctuation (period): संभवतः यहूदिया और सामरिया में तितर-बितर यहूदी जिन्होंने मसीह को ग्रहण कर लिया था तथापि, याकूब के अभिवादन के अनुसार, “उन बारह गोत्रों को जो तितर-बितर होकर रहते थे” इन वाक्यों से याकूब के मूल श्रोतागण की प्रबल सम्भावना व्यक्त होती हैं।
JAM -1:19 ip introduction text does not have closing punctuation (period): याकूब का प्रधान उद्देश्य याकूब 1:2-4 से विदित होता है। आरम्भिक शब्दों में याकूब अपने पाठकों से कहता है, “जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो, यह जानकर कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है।” इससे स्पष्ट होता है कि याकूब का लक्षित समुदाय अनेक प्रकार के कष्टों में था। याकूब ने इस पत्र के प्राप्तिकर्ताओं से आग्रह किया कि वे परमेश्वर से बुद्धि माँगे (1:5) कि परीक्षाओं में भी उन्हें आनन्द प्राप्त हो। याकूब के पत्र के प्राप्तिकर्ताओं में से कुछ विश्वास से भटक गये थे। याकूब ने उन्हें चेतावनी दी कि संसार से मित्रता करना परमेश्वर से बैर रखना है (4:4)। याकूब ने उन्हें परामर्श दिया कि वे दीन बनें जिससे कि परमेश्वर उन्हें प्रतिष्ठित करे। उसकी शिक्षा थी कि परमेश्वर के समक्ष दीन होना बुद्धि का मार्ग है (4:8-10)।
JAM -1:21 ip introduction text does not have closing punctuation (period): सच्चा विश्वास
PE1 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): प्रारंभिक पद से प्रकट होता है कि इस पत्र का लेखक पतरस है, “पतरस की ओर से जो यीशु मसीह का प्रेरित है।” वह स्वयं को “मसीह यीशु का प्रेरित” कहता है (1 पत. 1:1)। उस पत्र के द्वारा बार-बार मसीह यीशु के कष्टों की चर्चा करने (2:21-24; 3:18; 4:1; 5:1) से प्रकट होता है कि दु:खी दास का वह रूप उसकी स्मृति में छप गया था। वह मरकुस को अपना “पुत्र” कहता है (5:13), उस युवक एवं उसके परिवार के प्रति (प्रेरि. 12:12) वह अपना प्रेम प्रकट करता है। इन सब तथ्यों से स्पष्ट होता है कि प्रेरित पतरस ही इस पत्र का लेखक है।
PE1 -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 60-64
PE1 -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): 5:13 में लेखक बेबीलोन की कलीसिया की ओर से अभिवादन भेज रहा है।
PE1 -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पतरस ने यह पत्र एशिया माइनर के विभिन्न स्थानों में वास करने वाले मसीही विश्वासियों को लिखा था। सम्भवतः इस पत्र के प्राप्तिकर्ताओं में यहूदी एवं अन्य जाति विश्वासी दोनों थे।
PE1 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): पतरस इस पत्र को लिखने का उद्देश्य प्रकट करता हैः विश्वास के कारण सताए जा रहे विश्वासियों को प्रोत्साहित करना। वह उन्हें पूर्णतः आश्वस्त करना चाहता था कि मसीही विश्वास में ही परमेश्वर का अनुग्रह पाया जाता है, अतः इस विश्वास का त्याग नहीं करना चाहिये। जैसा 1 पत. 5:12 में लिखा है, “मैंने...संक्षेप में लिखकर तुम्हें समझाया है और यह गवाही दी है कि परमेश्वर का सच्चा अनुग्रह यही है, इसी में स्थिर रहो।”इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि उसके पाठकों में यह सताव व्यापक था। पतरस के प्रथम पत्र से प्रकट होता है कि सम्पूर्ण एशिया माइनर में मसीही विश्वासियों को सताया जा रहा था।
PE1 -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): कष्ट सहने वालों को उत्तर देना
JN3 -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यूहन्ना के ये तीनों पत्र निश्चय ही एक लेखक की कृति हैं और अधिकांश विद्वानों का कहना है कि वह प्रेरित यूहन्ना है। यूहन्ना स्वयं को “प्राचीन” कहता है, कलीसिया में उसके स्थान और उसकी आयु के कारण। उसका आरम्भ, अन्त एवं शैली तथा दृष्टिकोण यूहन्ना के दूसरे पत्र से इतने अधिक मिलते-जुलते हैं कि संदेह ही नहीं होता कि दोनों पत्र एक ही लेखक ने न लिखे हों।
JN3 -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 85-95
JN3 -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यूहन्ना ने एशिया माइनर के इफिसुस नगर से यह पत्र लिखा था।
JN3 -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यूहन्ना का तीसरा पत्र गयुस के नाम था। स्पष्ट है कि गयुस किसी कलीसिया का एक विशिष्ट अगुआ था जिसे यूहन्ना जानता था। गयुस अतिथि सत्कार के लिए जाना जाता था।
JN3 -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): स्थानीय कलीसिया की अगुआई में आत्म प्रतिष्ठा एवं अभिमान के विरुद्ध सावधान करना, गयुस के प्रशंसनीय आचरण का गुणगान करना कि वह सत्य के उपदेशकों की आवश्यकताओं को अपने से अधिक स्थान देता था (पद.5-8)।, दियुत्रिफेस के घृणित आचरण को दोषी ठहराना क्योंकि वह मसीह के प्रयोजन के समक्ष अपने को बड़ा बनाता था (पद.9)। दिमेत्रियुस को सराहना कि वह एक भ्रमणशील उपदेशक एवं इस पत्र का वाहक है (पद.12)।, अपने पाठकों को सूचित करना कि वह शीघ्र ही उनके पास आएगा (पद.14)।
JN3 -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): विश्वासियों का अतिथि-सत्कार
JDE -1:11 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लेखक स्वयं को यहूदा कहता है, “जो यीशु मसीह का दास और याकूब का भाई है” (1:1)। यहूदा संभवतः यूहन्ना 14:22 में व्यक्त यीशु के शिष्यों में से एक था। उसे सामान्यतः यीशु का भाई भी माना जाता है। वह पहले अविश्वासी था (यूह. 7:5)। परन्तु आगे चलकर वह यीशु के स्वर्गारोहण (प्रेरि.का.1:14) में अपनी माता और अन्य शिष्यों के साथ अटारी में था।
JDE -1:13 ip introduction text does not have closing punctuation (period): लगभग ई.स. 60-80
JDE -1:14 ip introduction text does not have closing punctuation (period): इस पत्र के लेखन स्थान को सिकन्दरिया से रोम तक माना जाता है।
JDE -1:16 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यह सामान्य उक्ति, “उन बुलाये हुओं के नाम जो परमेश्वर पिता में प्रिय और यीशु मसीह के लिए सुरक्षित हैं,” सब विश्वासियों के संदर्भ में प्रतीत होता है परन्तु झूठे शिष्यों के लिए उसके सन्देश का परीक्षण करने पर प्रकट होता है कि वह किसी एक समूह की अपेक्षा सब झूठे शिक्षकों के बारे में कह रहा है।
JDE -1:18 ip introduction text does not have closing punctuation (period): यहूदा ने यह पत्र कलीसिया को स्मरण कराने के लिए लिखा कि वे लगातार सतर्क रहकर विश्वास में दृढ़ हों और झूठी शिक्षाओं का विरोध करें। उसने सब विश्वासियों को प्रेरित करने के लिए लिखा था। वह चाहता था कि वे झूठी शिक्षाओं के संकट को पहचानें और स्वयं एवं अन्य विश्वासियों को बचायें तथा जो पथभ्रष्ट हो गये हैं उन्हें लौटा लाएँ। यहूदा अभक्त शिक्षकों के विरुद्ध लिख रहा था क्योंकि उनकी शिक्षा थी कि परमेश्वर के दण्ड की चिन्ता किए बिना वे जैसा चाहें वैसा जीवन जीएँ।
JDE -1:20 ip introduction text does not have closing punctuation (period): विश्वास के लिए संघर्ष करना
GEN -1:10 | लेखक |
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JDE -1:17 | उद्देश्य |
JDE -1:19 | मूल विषय |
GEN -1:19 | रुपरेखा |
EXO -1:18 | रूपरेखा |
NUM -1:19 | रूपरेखा |
DEU -1:20 | रूपरेखा |
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CO1 -1:19 | रूपरेखा |
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GAL -1:21 | रूपरेखा |
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PHP -1:21 | रूपरेखा |
COL -1:22 | रूपरेखा |
TH1 -1:21 | रूपरेखा |
TH2 -1:21 | रूपरेखा |
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TI2 -1:21 | रूपरेखा |
TIT -1:21 | रूपरेखा |
PHM -1:21 | रूपरेखा |
HEB -1:19 | रूपरेखा |
JAM -1:22 | रूपरेखा |
PE1 -1:21 | रूपरेखा |
JN3 -1:21 | रूपरेखा |
JDE -1:21 | रूपरेखा |
GEN -1:20 | 1. सृष्टि की रचना (1:1-2:25) |
GEN -1:21 | 2. मनुष्य का पाप में पतन (3:1-24) |
GEN -1:22 | 3. आदम की पीढ़ी (4:1-6:8) |
GEN -1:23 | 4. नूह की पीढ़ी (6:9-11:32) |
GEN -1:24 | 5. अब्राहम का वृत्तान्त (12:1-25:18) |
GEN -1:25 | 6. इसहाक और उसके पुत्रों का वृत्तान्त (25:19-36:43) |
GEN -1:26 | 7. याकूब की पीढ़ी (37:1-50:26) |
EXO -1:19 | 1. आमुख (1:1-2:25) |
EXO -1:20 | 2. मिस्र से इस्राएल की मुक्ति (3:1-18:27) |
EXO -1:21 | 3. सीनै पर्वत पर वाचा दी गई (19:1-24:18) |
EXO -1:22 | 4. परमेश्वर का राजसी तम्बू (25:1-31:18) |
EXO -1:23 | 5. विद्रोह के परिणामस्वरूप परमेश्वर से दूर होना (32:1-34:35) |
EXO -1:24 | 6. परमेश्वर के मिलाप वाले तम्बू की स्थापना (35:1-40:38) |
NUM -1:20 | 1. प्रतिज्ञा के देश के लिए कूच करने की तैयारी (1:1-10:10) |
NUM -1:21 | 2. सीनै से कादेश की यात्रा (10:11-12:16) |
NUM -1:22 | 3. विद्रोह के कारण विलम्ब (13:1-20:13) |
NUM -1:23 | 4. कादेश से मोआब के मैदानों तक यात्रा (20:14-22:1) |
NUM -1:24 | 5. मोआब में इस्राएल, प्रतिज्ञा के देश पर अधिकार की आशा के साथ (22:2-32:42) |
NUM -1:25 | 6. विभिन्न विषयों से संबंधित परिशिष्ट (33:1-36:13) |
DEU -1:21 | 1. मिस्र से इस्राएली यात्रा (1:1-3:29) |
DEU -1:22 | 2. परमेश्वर के साथ इस्राएल से संबंध (4:1-5:33) |
DEU -1:23 | 3. परमेश्वर के साथ स्वामिभक्ति का महत्व (6:1-11:32) |
DEU -1:24 | 4. परमेश्वर से प्रेम कैसे करें और उसकी आज्ञाओं का पालन कैसे करें (12:1-26:19) |
DEU -1:25 | 5. आशिषें और श्राप (27:1-30:20) |
DEU -1:26 | 6. मूसा की मृत्यु (31:1-34:12) |
SA1 -1:20 | 1. शमूएल का जीवन एवं सेवाकाल (1:1-8:22) |
SA1 -1:21 | 2. इस्राएल के प्रथम राजा शाऊल का जीवन (9:1-12:25) |
SA1 -1:22 | 3. शाऊल का असफल राजा होना (13:1-15:35) |
SA1 -1:23 | 4. दाऊद का जीवन (16:1-20:42) |
SA1 -1:24 | 5. इस्राएल के राजा के रूप में दाऊद का अनुभव (21:1-24:22) |
SA2 -1:20 | 1. दाऊद के राज्य का उदय (1:1-10:19) |
SA2 -1:21 | 2. दाऊद के राज्य का पतन (11:1-20:26) |
SA2 -1:22 | 3. परिशिष्ट (21:1-24:25) |
CH1 -1:20 | 1. वंशावली (1:1-9:44) |
CH1 -1:21 | 2. शाऊल की मृत्यु (10:1-14) |
CH1 -1:22 | 3. दाऊद का अभिषेक और सत्ता (11:1-29:30) |
CH2 -1:20 | 1. सुलैमान के समय का इस्राएल का इतिहास (1:1-9:31) |
CH2 -1:21 | 2. रहोबाम से आहाज तक (10:1-28:27) |
CH2 -1:22 | 3. हिजकिय्याह से अन्त तक (29:1-36:23) |
JOB -1:20 | 1. प्रस्तावना और शैतान का वार (1:1-2:13) |
JOB -1:21 | 2. अय्यूब अपने तीनों मित्रों के साथ अपने कष्टों पर विवाद करता है (3:1-31:40) |
JOB -1:22 | 3. एलीहू परमेश्वर की भलाई की घोषणा करता है (32:1-37:24) |
JOB -1:23 | 4. परमेश्वर अय्यूब पर अपनी परम-प्रधानता प्रगट करता है (38:1-41:34) |
JOB -1:24 | 5. परमेश्वर अय्यूब का पुनरुद्धार करता है (42:1-17) |
PSA -1:20 | 1. मसीही पुस्तक (1:1-41:13) |
PSA -1:21 | 2. मनोकामना की पुस्तक (42:1-72:20) |
PSA -1:22 | 3. इस्राएल की पुस्तक (73:1-89:52) |
PSA -1:23 | 4. परमेश्वर के शासन की पुस्तक (90:1-106:48) |
PSA -1:24 | 5. गुणगान की पुस्तक (107:1-150:6) |
PRO -1:20 | 1. बुद्धि के सद्गुण (1:1-9:18) |
PRO -1:21 | 2. सुलैमान के नीतिवचन (10:1-22:16) |
PRO -1:22 | 3. बुद्धिमानों के वचन (22:17-24:34) |
PRO -1:23 | 4. आगूर के वचन (30:1-33) |
PRO -1:24 | 5. लमूएल के वचन (31:1-31) |
SNG -1:22 | 1. दुल्हन सुलैमान के बारे में सोचती है — 1:1-3:5 |
SNG -1:23 | 2. दुल्हन मंगनी को स्वीकार करके विवाह की प्रतीक्षा में है — 3:6-5:1 |
SNG -1:24 | 3. दुल्हन दुल्हे से विरक्त हो जाने की कल्पना करती है — 5:2-6:3 |
SNG -1:25 | 4. दुल्हा और दुल्हन एक दूसरे को सराहते हैं — 6:4-8:14 |
ISA -1:21 | 1. यहूदिया का अस्वीकरण (1:1-12:6) |
ISA -1:22 | 2. अन्य जातियों का अस्वीकरण (13:1-23:18) |
ISA -1:23 | 3. भावी क्लेश (24:1-27:13) |
ISA -1:24 | 4. इस्राएल और यहूदिया का अस्वीकरण (28:1-35:10) |
ISA -1:25 | 5. हिजकिय्याह और यशायाह का इतिहास (36:1-38:22) |
ISA -1:26 | 6. बाबेल की पृष्ठभूमि (39:1-47:15) |
ISA -1:27 | 6. परमेश्वर की शान्ति की योजना (48:1-66:24) |
JER -1:20 | 1. परमेश्वर द्वारा यिर्मयाह का बुलाया जाना (1:1-19) |
JER -1:21 | 2. यहूदा को चेतावनी (2:1-35:19) |
JER -1:22 | 3. यिर्मयाह के कष्ट (36:1-38:25) |
JER -1:23 | 4. यरूशलेम का पतन एवं उसके परिणाम (39:1-45:5) |
JER -1:24 | 5. अन्य जातियों के लिए भविष्यद्वाणी (46:1-51:64) |
JER -1:25 | 6. ऐतिहासिक परिशिष्ट (52:1-34) |
LAM -1:22 | 1. यिर्मयाह यरूशलेम के लिए विलाप करता है — 1:1-22 |
LAM -1:23 | 2. पाप परमेश्वर का क्रोध लाता है — 2:1-22 |
LAM -1:24 | 3. परमेश्वर अपने लोगों को कभी नहीं छोड़ता है — 3:1-66 |
LAM -1:25 | 4. यरूशलेम की महिमा का अन्त — 4:1-22 |
LAM -1:26 | 5. यिर्मयाह अपने लोगों के लिए मध्यस्थता करता है — 5:1-22 |
EZE -1:20 | 1. यहेजकेल की बुलाहट (1:1-3:27) |
EZE -1:21 | 2. यरूशलेम, यहूदिया और मन्दिर के विरुद्ध भविष्यद्वाणी (4:1-24:27) |
EZE -1:22 | 3. अन्य जातियों के विरुद्ध भविष्यद्वाणी (25:1-32:32) |
EZE -1:23 | 4. इस्राएलियों के लिए भविष्यद्वाणी (33:1-39:29) |
EZE -1:24 | 5. पुनरुद्धार का दर्शन (40:1-48:35) |
JOL -1:20 | 1. इस्राएल में टिड्डयों का आक्रमण (1:1-20) |
JOL -1:21 | 2. परमेश्वर का दण्ड (2:1-17) |
JOL -1:22 | 3. इस्राएल का पुनरुद्धार (2:18-32) |
JOL -1:23 | 4. उसकी प्रजा में वास करने वाली अन्य जातियों को दण्ड (3:1-21) |
OBA -1:20 | 1. एदोम का विनाश (1:1-14) |
OBA -1:21 | 2. इस्राएल की अन्तिम विजय (1:15-21) |
JNA -1:20 | 1. योना की अवज्ञा (1:1-14) |
JNA -1:21 | 2. व्हेल मछली द्वारा योना को निगलना (1:15-16) |
JNA -1:22 | 3. योना का पश्चाताप (1:17-2:10) |
JNA -1:23 | 4. नीनवे में योना का प्रचार (3:1-10) |
JNA -1:24 | 5. परमेश्वर की दया को देख योना कुपित होता है (4:1-11) |
MIC -1:20 | 1. परमेश्वर दण्ड देने आ रहा है (1:1-2:13) |
MIC -1:21 | 2. विनाश का सन्देश (3:1-5:15) |
MIC -1:22 | 3. दोषारोपण का सन्देश (6:1-7:10) |
MIC -1:23 | 4. परिशिष्ट (7:11-20) |
NAH -1:20 | 1. परमेश्वर की प्रभुसत्ता (1:1-14) |
NAH -1:21 | 2. नीनवे को परमेश्वर का दण्ड (1:15-3:19) |
HAB -1:20 | 1. हबक्कूक की शिकायत (1:1-2:20) |
HAB -1:21 | 2. हबक्कूक की प्रार्थना (3:1-19) |
ZEP -1:20 | 1. प्रभु के दिन का अवश्यंभावी दण्ड (1:1-18) |
ZEP -1:21 | 2. आशा का अन्तराल (2:1-3) |
ZEP -1:22 | 3. अन्य जातियों का विनाश (2:4-15) |
ZEP -1:23 | 4. यरूशलेम का विनाश (3:1-7) |
ZEP -1:24 | 5. आशा का पुनः उदय (3:8-20) |
HAG -1:20 | 1. मन्दिर के निर्माण की पुकार (1:1-15) |
HAG -1:21 | 2. परमेश्वर में साहस रखें (2:1-9) |
HAG -1:22 | 3. पवित्र जीवन की पुकार (2:10-19) |
HAG -1:23 | 4. भविष्य में विश्वास की पुकार (2:20-23) |
ZEC -1:20 | 1. मन-फिराव की पुकार (1:1-6) |
ZEC -1:21 | 2. जकर्याह का दर्शन (1:7-6:15) |
ZEC -1:22 | 3. उपवास से सम्बन्धित प्रश्न (7:1-8:23) |
ZEC -1:23 | 4. भविष्य के बोझ (9:1-14:21) |
MAL -1:20 | 1. पुरोहितों से परमेश्वर के सम्मान का आग्रह (1:1-2:9) |
MAL -1:21 | 2. यहूदा को निष्ठा का उपदेश (2:10-3:6) |
MAL -1:22 | 3. यहूदा को परमेश्वर के निकट आने का उपदेश (3:7-4:6) |
MAT -1:23 | 1. यीशु का जन्म — 1:1-2:23 |
MAT -1:24 | 2. यीशु की गलील क्षेत्र में सेवा — 3:1-18:35 |
MAT -1:25 | 3. यीशु की यहूदिया में सेवा — 19:1-20:34 |
MAT -1:26 | 4. यहूदिया में यीशु के अन्तिम दिन — 21:1-27:66 |
MAT -1:27 | 5. अन्तिम घटनाएँ — 28:1-20 |
LUK -1:22 | 1. यीशु का जन्म एवं आरम्भिक जीवन — 1:5-2:52 |
LUK -1:23 | 2. यीशु की सेवा का आरम्भ — 3:1 - 4:13 |
LUK -1:24 | 3. उद्धार का कर्ता यीशु — 4:14-9:50 |
LUK -1:25 | 4. यीशु का क्रूस की ओर बढ़ना — 9:51-19:27 |
LUK -1:26 | 5. यरूशलेम में यीशु का विजय प्रवेश, क्रूसीकरण और पुनरूत्थान — 19:28-24:53 |
ACT -1:22 | 1. पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा — 1:1-26 |
ACT -1:23 | 2. पवित्र आत्मा का प्रकटीकरण — 2:1-4 |
ACT -1:24 | 3. यरूशलेम में पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित प्रेरितों की सेवकाई और कलीसिया का उत्पीड़न — 2:5-8:3 |
ACT -1:25 | 4. यहूदिया और सामरिया में पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित प्रेरितों की सेवकाई — 8:4-12:25 |
ACT -1:26 | 5. दुनिया के अन्य हिस्सों में पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित प्रेरितों की सेवकाई — 13:1-28:31 |
ROM -1:21 | 1. दोषी अवस्था- पाप और न्यायोचित होने की आवश्यकता — 1:18-3:20 |
ROM -1:22 | 2. न्यायोचित अवस्था का रोपण-धार्मिकता — 3:21-5:21 |
ROM -1:23 | 3. न्यायोचित अवस्था का निवेश-पवित्रता — 6:1-8:39 |
ROM -1:24 | 4. इस्राएल के लिए परमेश्वर का प्रावधान — 9:1-11:36 |
ROM -1:25 | 5. न्यायोचित अभ्यास को करना — 12:1-15:13 |
ROM -1:26 | 6. उपसंहार-व्यक्तिगत सन्देश — 15:14-16:27 |
CO1 -1:20 | 1. प्रस्तावना (1:1-9) |
CO1 -1:21 | 2. कोरिन्थोस की कलीसिया में विभाजन (1:10-4:21) |
CO1 -1:22 | 3. नैतिकता एवं सदाचार संबंधित फूट (5:1-6:20) |
CO1 -1:23 | 4. विवाह के सिद्धान्त (7:1-40) |
CO1 -1:24 | 5. प्रेरितों से सम्बन्धित (8:1-11:1) |
CO1 -1:25 | 6. आराधना के निर्देश (11:2-34) |
CO1 -1:26 | 7. आत्मिक उपहार (12:1-14:40) |
CO1 -1:27 | 8. पुनरूत्थान की धर्मशिक्षा (15:1-16:24) |
CO2 -1:20 | 1. पौलुस द्वारा उसकी सेवा की व्याख्या (1:1-7:16) |
CO2 -1:21 | 2. यरूशलेम के विश्वासियों के लिए दान संग्रह (8:1-9:15) |
CO2 -1:22 | 3. पौलुस द्वारा अपने अधिकार की रक्षा (10:1-13:10) |
CO2 -1:23 | 4. त्रिएक आशीर्वाद द्वारा समापन (13:11-14) |
GAL -1:22 | 1. प्रस्तावना — 1:1-10 |
GAL -1:23 | 2. शुभ सन्देश का प्रमाणीकरण — 1:11-2:21 |
GAL -1:24 | 3. विश्वास के द्वारा धार्मिकता होना — 3:1-4:31 |
GAL -1:25 | 4. विश्वास के जीवन का आचरण एवं स्वतंत्रता — 5:1-6:18 |
EPH -1:23 | 1. कलीसिया के सदस्यों के लिए सिद्धान्त — 1:1-3:21 |
EPH -1:24 | 2. कलीसिया के सदस्यों के कर्तव्य — 4:1-6:24 |
PHP -1:22 | 1. नमस्कार — 1:1, 2 |
PHP -1:23 | 2. पौलुस की परिस्थिति एवं कलीसिया को प्रोत्साहन — 1:3-2:30 |
PHP -1:24 | 3. झूठे शिष्यों के विरुद्ध चेतावनी — 3:1-4:1 |
PHP -1:25 | 4. अन्तिम प्रबोधन — 4:2-9 |
PHP -1:26 | 5. आभारोक्ति — 4:10-20 |
PHP -1:27 | 6. अन्तिम नमस्कार — 4:21-23 |
COL -1:23 | 1. पौलुस की प्रार्थना — 1:1-14 |
COL -1:24 | 2. “मसीह में” पौलुस की शिक्षा — 1:15-23 |
COL -1:25 | 3. परमेश्वर की योजना एवं उद्देश्य में पौलुस का स्थान — 1:24-2:5 |
COL -1:26 | 4. झूठी शिक्षाओं के विरुद्ध चेतावनी — 2:6-15 |
COL -1:27 | 5. संकट पूर्ण झूठी शिक्षाओं से पौलुस का सामना — 2:16-3:4 |
COL -1:28 | 6. मसीह में नए मनुष्यत्व का वर्णन — 3:5-25 |
COL -1:29 | 7. प्रशंसा एवं समापन — 4:1-18 |
TH1 -1:22 | 1. धन्यवाद — 1:1-10 |
TH1 -1:23 | 2. प्रेरितों के काम की प्रतिरक्षा — 2:1-3:13 |
TH1 -1:24 | 3. थिस्सलुनीके की कलीसिया को प्रबोधन — 4:1-5:22 |
TH1 -1:25 | 4. समापन प्रार्थना एवं आशीर्वाद — 5:23-28 |
TH2 -1:22 | 1. अभिवादन — 1:1, 2 |
TH2 -1:23 | 2. कष्टों में ढाढ़स बाँधना — 1:3-12 |
TH2 -1:24 | 3. प्रभु के दिनों के बारे में त्रुटि सुधार — 2:1-12 |
TH2 -1:25 | 4. उनकी नियति के विषय स्मरण करवाना — 2:13-17 |
TH2 -1:26 | 5. व्यावहारिक विषयों में प्रबोधन — 3:1-15 |
TH2 -1:27 | 6. अन्तिम नमस्कार — 3:16-18 |
TI1 -1:22 | 1. सेवकाई के आचरण — 1:1-20 |
TI1 -1:23 | 2. सेवकाई के सिद्धान्त — 2:1-3:16 |
TI1 -1:24 | 3. सेवकाई की जिम्मेदारियाँ — 4:1-6:21 |
TI2 -1:22 | 1. सेवकाई के लिए प्रोत्साहन — 1:1-18 |
TI2 -1:23 | 2. सेवकाई के आदर्श — 2:1-26 |
TI2 -1:24 | 3. झूठी शिक्षा के खिलाफ चेतावनी — 3:1-17 |
TI2 -1:25 | 4. अन्तिम प्रबोधन एवं आशीर्वाद — 4:1-22 |
TIT -1:22 | 1. अभिवादन — 1:1–4 |
TIT -1:23 | 2. धर्मवृद्धों की नियुक्ति — 1:5-16 |
TIT -1:24 | 3. विभिन्न आयु के मनुष्यों के लिए निर्देश — 2:1-3:11 |
TIT -1:25 | 4. समापन टिप्पणी — 3:12-15 |
PHM -1:22 | 1. अभिवादन — 1:1-3 |
PHM -1:23 | 2. आभारोक्ति — 1:4-7 |
PHM -1:24 | 3. उनेसिमुस के लिए मध्यस्थता — 1:8-22 |
PHM -1:25 | 4. अन्तिम वचन — 1:23-25 |
HEB -1:20 | 1. मसीह यीशु स्वर्गदूतों से श्रेष्ठ (1:1-2:18) |
HEB -1:21 | 2. यीशु इस्राएल के विधान एवं पुरानी वाचा से श्रेष्ठ है (3:1-10:18) |
HEB -1:22 | 3. विश्वासयोग्य ठहरने तथा कष्ट सहन करने की बुलाहट (10:19-12:29) |
HEB -1:23 | 4. अन्तिम उद्बोधन एवं नमस्कार (13:1-25) |
JAM -1:23 | 1. सच्चे धर्म के विषय याकूब के निर्देश — 1:1-27 |
JAM -1:24 | 2. सच्चा विश्वास भले कामों से प्रकट होता है — 2:1-3:12 |
JAM -1:25 | 3. सच्चा बुद्धि परमेश्वर से प्राप्त होता है — 3:13-5:20 |
PE1 -1:22 | 1. अभिवादन — 1:1, 2 |
PE1 -1:23 | 2. परमेश्वर के अनुग्रह के लिए उसका गुणगान — 1:3-12 |
PE1 -1:24 | 3. पवित्र जीवन जीने का प्रबोधन — 1:13-5:12 |
PE1 -1:25 | 4. अन्तिम नमस्कार — 5:13, 14 |
JN3 -1:22 | 1. प्रस्तावना — 1:1-4 |
JN3 -1:23 | 2. भ्रमणशील सेवकों का अतिथि सत्कार — 1:5-8 |
JN3 -1:24 | 3. बुराई नहीं भलाई का अनुकरण करना — 1:9-12 |
JN3 -1:25 | 4. उपसंहार — 1:13-15 |
JDE -1:22 | 1. प्रस्तावना — 1:1, 2 |
JDE -1:23 | 2. झूठे शिक्षकों का वर्णन एवं अन्त — 1:3-16 |
JDE -1:24 | 3. मसीह के विश्वासियों को प्रोत्साहन — 1:17-25 |