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कुलुस्सियों के नाम पौलुस प्रेरित की पत्री

लेखक

कुलुस्से की कलीसिया को लिखा गया यह पत्र पौलुस का ही प्रामाणिक पत्र है (1:1)। आरम्भिक कलीसिया में जो भी लेखक के विषय चर्चा करते हैं इसे पौलुस की कृति मानते हैं। कुलुस्से की कलीसिया स्वयं पौलुस ने आरम्भ नहीं की थी। पौलुस के किसी सहकर्मी सम्भवतः इपफ्रास ने वहाँ शुभ सन्देश पहुँचाया था (4:12,13)। वहाँ भी झूठे शिक्षक विचित्र नई शिक्षाएँ लेकर पहुँच गये थे। उन्होंने विजातीय तत्वज्ञान एवं यहूदी मान्यताओं को मसीही विश्वास में जोड़ दिया था। पौलुस ने इस झूठी शिक्षा का खण्डन करके यह सिद्ध किया कि मसीह ही सर्वेसर्वा है।

कुलुस्से की कलीसिया को लिखा यह पत्र “सम्पूर्ण नये नियम में सबसे अधिक मसीह केन्द्रित पत्र” माना जाता है। इसमें मसीह यीशु को सब वस्तुओं पर परम-प्रधान दर्शाया गया है।

लेखन तिथि एवं स्थान

लगभग ई.स. 60

पौलुस ने यह पत्र सम्भवतः रोम से लिखा था जब प्रथम बार कारागार में था।

प्रापक

पौलुस ने यह पत्र कुलुस्से की कलीसिया को लिखा था, “उन पवित्र और विश्वासी भाइयों के नाम जो कुलुस्से में रहते हैं।” (1:1-2) यह कलीसिया इफिसुस से लगभग 150 कि.मी. भीतर लाइकुस घाटी में थी। पौलुस इस कलीसिया में कभी नहीं गया। (1:4; 2:1)

उद्देश्य

पौलुस उस विनाशकारी झूठी शिक्षा के विरुद्ध परामर्श देता है जिसका उदय कुलुस्सियों में हुआ था। इन झूठी शिक्षाओं के प्रतिवाद में सम्पूर्ण सृष्टि पर मसीह की पूर्ण, अपरोक्ष एवं सतत् सर्वश्रेष्ठता को महत्त्व प्रदान करने के लिए (1:15; 3:4); पाठकों को सम्पूर्ण सृष्टि के परम-प्रधान मसीह को निहारते हुए जीवन जीने का प्रोत्साहन देने के लिए (3:5; 4:6)। और कलीसिया को प्रोत्साहित करने के लिए कि वे अनुशासित मसीही जीवन जीएँ तथा झूठे शिक्षकों द्वारा उत्पन्न संकट के समय अपने विश्वास में दृढ़ रहें, यह पत्री लिखी (2:2-5)।

मूल विषय

मसीह की सर्वोच्चता

रूपरेखा

1. पौलुस की प्रार्थना — 1:1-14

2. “मसीह में” पौलुस की शिक्षा — 1:15-23

3. परमेश्वर की योजना एवं उद्देश्य में पौलुस का स्थान — 1:24-2:5

4. झूठी शिक्षाओं के विरुद्ध चेतावनी — 2:6-15

5. संकट पूर्ण झूठी शिक्षाओं से पौलुस का सामना — 2:16-3:4

6. मसीह में नए मनुष्यत्व का वर्णन — 3:5-25

7. प्रशंसा एवं समापन — 4:1-18

शुभकामनाएँ

1  1 \zaln-s | x-strong="" x-lemma="" x-morph="" x-occurrence="1" x-occurrences="1" x-content="Παῦλος"\*पौलुस\zaln-e\* की ओर से, जो परमेश्वर की इच्छा से मसीह यीशु का प्रेरित है, और भाई तीमुथियुस की ओर से,

2 मसीह में उन पवित्र और विश्वासी भाइयों के नाम जो कुलुस्से में रहते हैं। हमारे पिता परमेश्वर की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति प्राप्त होती रहे।

धन्यवाद

3 हम तुम्हारे लिये नित प्रार्थना करके अपने प्रभु यीशु मसीह के पिता अर्थात् परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं।

4 क्योंकि हमने सुना है, कि मसीह यीशु पर तुम्हारा विश्वास है, और सब पवित्र लोगों से प्रेम रखते हो;

5 उस आशा की हुई वस्तु के कारण जो तुम्हारे लिये स्वर्ग में रखी हुई है, जिसका वर्णन तुम उस सुसमाचार के सत्य वचन में सुन चुके हो।

6 जो तुम्हारे पास पहुँचा है और जैसा जगत में भी फल लाता[fn], और बढ़ता जाता है; वैसे ही जिस दिन से तुम ने उसको सुना, और सच्चाई से परमेश्वर का अनुग्रह पहचाना है, तुम में भी ऐसा ही करता है।

7 उसी की शिक्षा तुम ने हमारे प्रिय सहकर्मी इपफ्रास से पाई, जो हमारे लिये मसीह का विश्वासयोग्य सेवक है।

8 उसी ने तुम्हारे प्रेम को जो आत्मा में है हम पर प्रगट किया।

आत्मिक उन्नति के लिये प्रार्थना

9 इसलिए जिस दिन से यह सुना है, हम भी तुम्हारे लिये यह प्रार्थना करने और विनती करने से नहीं चूकते कि तुम सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्वर की इच्छा की पहचान में परिपूर्ण हो जाओ,

10 ताकि तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो[fn], और वह सब प्रकार से प्रसन्न हो, और तुम में हर प्रकार के भले कामों का फल लगे, और परमेश्वर की पहचान में बढ़ते जाओ,

11 और उसकी महिमा की शक्ति के अनुसार सब प्रकार की सामर्थ्य से बलवन्त होते जाओ, यहाँ तक कि आनन्द के साथ हर प्रकार से धीरज और सहनशीलता दिखा सको।

12 और पिता का धन्यवाद करते रहो, जिसने हमें इस योग्य बनाया कि ज्योति में पवित्र लोगों के साथ विरासत में सहभागी हों।

13 उसी ने हमें अंधकार के वश से छुड़ाकर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में प्रवेश कराया,

14 जिसमें हमें छुटकारा अर्थात् पापों की क्षमा प्राप्त होती है।

मसीह की श्रेष्ठता और उसके कार्य

15 पुत्र तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप[fn] और सारी सृष्टि में पहिलौठा है।

16 क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएँ, क्या प्रधानताएँ, क्या अधिकार, सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं।

17 और वही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएँ उसी में स्थिर रहती हैं। (प्रका. 1:8)

18 वही देह, अर्थात् कलीसिया का सिर है; वही आदि है और मरे हुओं में से जी उठनेवालों में पहिलौठा कि सब बातों में वही प्रधान ठहरे।

19 क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उसमें सारी परिपूर्णता वास करे।

20 और उसके क्रूस पर बहे हुए लहू के द्वारा मेल-मिलाप करके, सब वस्तुओं को उसी के द्वारा से अपने साथ मेल कर ले चाहे वे पृथ्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग की।

21 तुम जो पहले पराए थे और बुरे कामों के कारण मन से बैरी थे।

22 उसने अब उसकी शारीरिक देह में मृत्यु के द्वारा तुम्हारा भी मेल कर लिया ताकि तुम्हें अपने सम्मुख पवित्र और निष्कलंक, और निर्दोष बनाकर उपस्थित करे।

23 यदि तुम विश्वास की नींव पर दृढ़ बने रहो, और उस सुसमाचार की आशा को जिसे तुम ने सुना है न छोड़ो, जिसका प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया; और जिसका मैं पौलुस सेवक बना।

कलीसिया के लिये परिश्रम

24 अब मैं उन दुःखों के कारण आनन्द करता हूँ, जो तुम्हारे लिये उठाता हूँ, और मसीह के क्लेशों की घटी उसकी देह के लिये, अर्थात् कलीसिया के लिये, अपने शरीर में पूरी किए देता हूँ,

25 जिसका मैं परमेश्वर के उस प्रबन्ध के अनुसार सेवक बना, जो तुम्हारे लिये मुझे सौंपा गया, ताकि मैं परमेश्वर के वचन को पूरा-पूरा प्रचार करूँ।

26 अर्थात् उस भेद को जो समयों और पीढ़ियों से गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगों पर प्रगट हुआ है।

27 जिन पर परमेश्वर ने प्रगट करना चाहा, कि उन्हें ज्ञात हो कि अन्यजातियों में उस भेद की महिमा का मूल्य क्या है, और वह यह है, कि मसीह जो महिमा की आशा है तुम में रहता है।

28 जिसका प्रचार करके हम हर एक मनुष्य को जता देते हैं और सारे ज्ञान से हर एक मनुष्य को सिखाते हैं, कि हम हर एक व्यक्ति को मसीह में सिद्ध करके उपस्थित करें।

29 और इसी के लिये मैं उसकी उस शक्ति के अनुसार जो मुझ में सामर्थ्य के साथ प्रभाव डालती है तन मन लगाकर परिश्रम भी करता हूँ।

2  1 मैं चाहता हूँ कि तुम जान लो, कि तुम्हारे और उनके जो लौदीकिया में हैं, और उन सब के लिये जिन्होंने मेरा शारीरिक मुँह नहीं देखा मैं कैसा परिश्रम करता हूँ।

2 ताकि उनके मनों को प्रोत्साहन मिले और वे प्रेम से आपस में गठे रहें[fn], और वे पूरी समझ का सारा धन प्राप्त करें, और परमेश्वर पिता के भेद को अर्थात् मसीह को पहचान लें।

3 जिसमें बुद्धि और ज्ञान के सारे भण्डार छिपे हुए हैं।

4 यह मैं इसलिए कहता हूँ, कि कोई मनुष्य तुम्हें लुभानेवाली बातों से धोखा न दे।

5 क्योंकि मैं यदि शरीर के भाव से तुम से दूर हूँ, तो भी आत्मिक भाव से तुम्हारे निकट हूँ, और तुम्हारे विधि-अनुसार चरित्र और तुम्हारे विश्वास की जो मसीह में है दृढ़ता देखकर प्रसन्न होता हूँ।

मसीह में बने रहो

6 इसलिए, जैसे तुम ने मसीह यीशु को प्रभु करके ग्रहण कर लिया है, वैसे ही उसी में चलते रहो।

7 और उसी में जड़ पकड़ते और बढ़ते जाओ; और जैसे तुम सिखाए गए वैसे ही विश्वास में दृढ़ होते जाओ, और अत्यन्त धन्यवाद करते रहो।

8 चौकस रहो कि कोई तुम्हें उस तत्व-ज्ञान और व्यर्थ धोखे के द्वारा अहेर न कर ले, जो मनुष्यों की परम्पराओं और संसार की आदि शिक्षा के अनुसार है, पर मसीह के अनुसार नहीं।

9 क्योंकि उसमें ईश्वरत्व की सारी परिपूर्णता सदेह वास करती है।

10 और तुम मसीह में भरपूर हो गए हो जो सारी प्रधानता और अधिकार का शिरोमणि है।

11 उसी में तुम्हारा ऐसा खतना हुआ है, जो हाथ से नहीं होता[fn], परन्तु मसीह का खतना हुआ, जिससे पापमय शारीरिक देह उतार दी जाती है।

12 और उसी के साथ बपतिस्मा में गाड़े गए, और उसी में परमेश्वर की शक्ति पर विश्वास करके, जिसने उसको मरे हुओं में से जिलाया, उसके साथ जी भी उठे।

13 और उसने तुम्हें भी, जो अपने अपराधों, और अपने शरीर की खतनारहित दशा में मुर्दा थे, उसके साथ जिलाया, और हमारे सब अपराधों को क्षमा किया।

14 और विधियों का वह लेख[fn] और सहायक नियम जो हमारे नाम पर और हमारे विरोध में था मिटा डाला; और उसे क्रूस पर कीलों से जड़कर सामने से हटा दिया है।

15 और उसने प्रधानताओं और अधिकारों को अपने ऊपर से उतार कर उनका खुल्लमखुल्ला तमाशा बनाया और क्रूस के कारण उन पर जय-जयकार की ध्वनि सुनाई।

16 इसलिए खाने-पीने या पर्व या नये चाँद, या सब्त के विषय में तुम्हारा कोई फैसला न करे।

17 क्योंकि ये सब आनेवाली बातों की छाया हैं, पर मूल वस्तुएँ मसीह की हैं।

18 कोई मनुष्य दीनता और स्वर्गदूतों की पूजा करके तुम्हें दौड़ के प्रतिफल से वंचित न करे। ऐसा मनुष्य देखी हुई बातों में लगा रहता है और अपनी शारीरिक समझ पर व्यर्थ फूलता है।

19 और उस शिरोमणि को पकड़े नहीं रहता जिससे सारी देह जोड़ों और पट्ठों के द्वारा पालन-पोषण पाकर और एक साथ गठकर, परमेश्वर की ओर से बढ़ती जाती है।

मसीह के साथ जीना और मरना

20 जबकि तुम मसीह के साथ संसार की आदि शिक्षा की ओर से मर गए हो, तो फिर क्यों उनके समान जो संसार में जीवन बिताते हैं और ऐसी विधियों के वश में क्यों रहते हो?

21 कि ‘यह न छूना,’ ‘उसे न चखना,’ और ‘उसे हाथ न लगाना’?,

22 क्योंकि ये सब वस्तु काम में लाते-लाते नाश हो जाएँगी क्योंकि ये मनुष्यों की आज्ञाओं और शिक्षाओं के अनुसार है।

23 इन विधियों में अपनी इच्छा के अनुसार गढ़ी हुई भक्ति की रीति, और दीनता, और शारीरिक अभ्यास के भाव से ज्ञान का नाम तो है, परन्तु शारीरिक लालसाओं को रोकने में इनसे कुछ भी लाभ नहीं होता।

पवित्र जीवन के नियम

3  1 तो जब तुम मसीह के साथ जिलाए गए, तो स्वर्गीय वस्तुओं की खोज में रहो, जहाँ मसीह वर्तमान है और परमेश्वर के दाहिनी ओर बैठा है। (मत्ती 6:20)

2 पृथ्वी पर की नहीं परन्तु स्वर्गीय वस्तुओं पर ध्यान लगाओ।

3 क्योंकि तुम तो मर गए[fn], और तुम्हारा जीवन मसीह के साथ परमेश्वर में छिपा हुआ है।

4 जब मसीह जो हमारा जीवन है, प्रगट होगा, तब तुम भी उसके साथ महिमा सहित प्रगट किए जाओगे।

5 इसलिए अपने उन अंगों को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्तिपूजा के बराबर है।

6 इन ही के कारण परमेश्वर का प्रकोप आज्ञा न माननेवालों पर पड़ता है।

7 और तुम भी, जब इन बुराइयों में जीवन बिताते थे, तो इन्हीं के अनुसार चलते थे।

8 पर अब तुम भी इन सब को अर्थात् क्रोध, रोष, बैर-भाव, निन्दा, और मुँह से गालियाँ बकना ये सब बातें छोड़ दो। (इफि. 4:23,24)

9 एक दूसरे से झूठ मत बोलो क्योंकि तुम ने पुराने मनुष्यत्व को उसके कामों समेत उतार डाला है।

10 और नये मनुष्यत्व को पहन लिया है जो अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने के लिये नया बनता जाता है।

11 उसमें न तो यूनानी रहा, न यहूदी, न खतना, न खतनारहित, न जंगली, न स्कूती, न दास और न स्वतंत्र केवल मसीह सब कुछ और सब में है[fn]

मसीही जीवन

12 इसलिए परमेश्वर के चुने हुओं के समान जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो;

13 और यदि किसी को किसी पर दोष देने को कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।

14 और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कमरबन्ध है बाँध लो।

15 और मसीह की शान्ति, जिसके लिये तुम एक देह होकर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो।

16 मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने-अपने मन में कृतज्ञता के साथ परमेश्वर के लिये भजन और स्तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ।

17 वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो[fn], और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो।

मसीही परिवार के लिये नियम

18 हे पत्नियों, जैसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपने-अपने पति के अधीन रहो। (इफि. 5:22)

19 हे पतियों, अपनी-अपनी पत्नी से प्रेम रखो, और उनसे कठोरता न करो।

20 हे बच्चों, सब बातों में अपने-अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इससे प्रसन्न होता है।

21 हे पिताओं, अपने बच्चों को भड़काया न करो, न हो कि उनका साहस टूट जाए।

22 हे सेवकों, जो शरीर के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, सब बातों में उनकी आज्ञा का पालन करो, मनुष्यों को प्रसन्न करनेवालों के समान दिखाने के लिये नहीं, परन्तु मन की सिधाई और परमेश्वर के भय से।

23 और जो कुछ तुम करते हो, तन मन से करो, यह समझकर कि मनुष्यों के लिये नहीं परन्तु प्रभु के लिये करते हो।

24 क्योंकि तुम जानते हो कि तुम्हें इसके बदले प्रभु से विरासत मिलेगी। तुम प्रभु मसीह की सेवा करते हो।

25 क्योंकि जो बुरा करता है, वह अपनी बुराई का फल पाएगा; वहाँ किसी का पक्षपात नहीं। (प्रेरि. 10:34, रोम. 2:11)

मसीही अनुग्रह

4  1 हे स्वामियों, अपने-अपने दासों के साथ न्याय और ठीक-ठीक व्यवहार करो, यह समझकर कि स्वर्ग में तुम्हारा भी एक स्वामी है। (लैव्य. 25:43, लैव्य. 25:53)

2 प्रार्थना में लगे रहो[fn], और धन्यवाद के साथ उसमें जागृत रहो;

3 और इसके साथ ही साथ हमारे लिये भी प्रार्थना करते रहो, कि परमेश्वर हमारे लिये वचन सुनाने का ऐसा द्वार खोल दे, कि हम मसीह के उस भेद का वर्णन कर सकें जिसके कारण मैं कैद में हूँ।

4 और उसे ऐसा प्रगट करूँ, जैसा मुझे करना उचित है।

5 अवसर को बहुमूल्य समझकर बाहरवालों के साथ बुद्धिमानी से बर्ताव करो।

6 तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित[fn] और सुहावना हो, कि तुम्हें हर मनुष्य को उचित रीति से उत्तर देना आ जाए।

अन्तिम नमस्कार

7 प्रिय भाई और विश्वासयोग्य सेवक, तुखिकुस जो प्रभु में मेरा सहकर्मी है, मेरी सब बातें तुम्हें बता देगा।

8 उसे मैंने इसलिए तुम्हारे पास भेजा है, कि तुम्हें हमारी दशा मालूम हो जाए और वह तुम्हारे हृदयों को प्रोत्साहित करे।

9 और उसके साथ उनेसिमुस को भी भेजा है; जो विश्वासयोग्य और प्रिय भाई और तुम ही में से है, वे तुम्हें यहाँ की सारी बातें बता देंगे।

10 अरिस्तर्खुस जो मेरे साथ कैदी है, और मरकुस जो बरनबास का भाई लगता है। (जिसके विषय में तुम ने निर्देश पाया था कि यदि वह तुम्हारे पास आए, तो उससे अच्छी तरह व्यवहार करना।)

11 और यीशु जो यूस्तुस कहलाता है, तुम्हें नमस्कार कहते हैं। खतना किए हुए लोगों में से केवल ये ही परमेश्वर के राज्य के लिये मेरे सहकर्मी और मेरे लिए सांत्वना ठहरे हैं।

12 इपफ्रास जो तुम में से है, और मसीह यीशु का दास है, तुम्हें नमस्कार कहता है और सदा तुम्हारे लिये प्रार्थनाओं में प्रयत्न करता है, ताकि तुम सिद्ध होकर पूर्ण विश्वास के साथ परमेश्वर की इच्छा पर स्थिर रहो।

13 मैं उसका गवाह हूँ, कि वह तुम्हारे लिये और लौदीकिया और हियरापुलिसवालों के लिये बड़ा यत्न करता रहता है।

14 प्रिय वैद्य लूका और देमास का तुम्हें नमस्कार।

15 लौदीकिया के भाइयों को और नुमफास और उसकी घर की कलीसिया को नमस्कार कहना।

16 और जब यह पत्र तुम्हारे यहाँ पढ़ लिया जाए, तो ऐसा करना कि लौदीकिया की कलीसिया में भी पढ़ा जाए, और वह पत्र जो लौदीकिया से आए उसे तुम भी पढ़ना।

17 फिर अरखिप्पुस से कहना कि जो सेवा प्रभु में तुझे सौंपी गई है, उसे सावधानी के साथ पूरी करना।

18 मुझ पौलुस का अपने हाथ से लिखा हुआ नमस्कार। मेरी जंजीरों को स्मरण रखना; तुम पर अनुग्रह होता रहे। आमीन।

Footnotes

1.6 फल लाता: धार्मिकता या अच्छा जीवन जीने का फल।

1.10 तुम्हारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो: ताकि आप प्रभु के अनुसरण करनेवाले शिष्य के रूप में जी सको।

1.15 पुत्र तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप: अर्थ है कि वह मानवजाति के लिए परमेश्वर की पूर्णता का प्रतिनिधित्व करता है।

2.2 वे प्रेम से आपस में गठे रहें: इसका मतलब, एक साथ आने के लिए, और इसलिए, दर्शाता है कि एकता में स्थिर रहें।

2.11 उसी में तुम्हारा ऐसा खतना हुआ है, जो हाथ से नहीं होता: सभी पापों का त्याग करने के द्वारा हृदय में बनाया गया।

2.14 विधियों का वह लेख: मूसा की व्यवस्था की कष्टदायक माँग को समाप्त कर दिया।

3.3 तुम तो मर गए: संसार के लिए मर गए, पाप के लिए मर गए, सांसारिक भोग विलास के लिए मर गए।

3.11 केवल मसीह सब कुछ और सब में है: है कलीसिया की विशिष्टता को जो महान बनाता है, वह यह है कि मसीह उद्धारकर्ता है, और सब उनके दोस्त और अनुसरणीय है।

3.17 जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो: यह सब करो क्योंकि वह चाहता है और आज्ञा देता हैं, और उनको सम्मान देने की इच्छा से यह सब करो।

4.2 प्रार्थना में लगे रहो: प्रार्थना के भाव को बनाए रखने के लिए उसकी उपेक्षा मत करो, सभी दिए गए समयों में उसका पालन करो।

4.6 तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित: हमारी बातचीत सदैव धार्मिकता के साथ या इसी तरह के अनुग्रह से होनी चाहिए जैसे हम भोजन में नमक का इस्तेमाल करते है।