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2 राजाओं

अहज्याह की मृत्यु

1  1 अहाब के मरने के बाद मोआब इस्राएल के विरुद्ध बलवा करने लगा। 2 अहज्याह एक जालीदार खिड़की में से जो सामरिया में उसकी अटारी में थी गिर पड़ा और बीमार हो गया। तब उसने दूतों को यह कहकर भेजा तुम जाकर एक्रोन के बाल-जबूब नामक देवता से यह पूछ आओ कि क्या मैं इस बीमारी से बचूँगा कि नहीं? 3 तब यहोवा के दूत ने तिशबी एलिय्याह से कहा उठकर सामरिया के राजा के दूतों से मिलने को जा और उनसे कह ‘क्या इस्राएल में कोई परमेश्‍वर नहीं जो तुम एक्रोन के बाल-जबूब देवता से पूछने जाते हो?’ 4 इसलिए अब यहोवा तुझ से यह कहता है ‘जिस पलंग पर तू पड़ा है उस पर से कभी न उठेगा परन्तु मर ही जाएगा।’ तब एलिय्याह चला गया। 5 जब अहज्याह के दूत उसके पास लौट आए तब उसने उनसे पूछा तुम क्यों लौट आए हो? 6 उन्होंने उससे कहा एक मनुष्य हम से मिलने को आया और कहा कि ‘जिस राजा ने तुम को भेजा उसके पास लौटकर कहो यहोवा यह कहता है कि क्या इस्राएल में कोई परमेश्‍वर नहीं जो तू एक्रोन के बाल-जबूब देवता से पूछने को भेजता है? इस कारण जिस पलंग पर तू पड़ा है उस पर से कभी न उठेगा परन्तु मर ही जाएगा।’ 7 उसने उनसे पूछा जो मनुष्य तुम से मिलने को आया और तुम से ये बातें कहीं उसका कैसा रंग-रूप था? 8 उन्होंने उसको उत्तर दिया वह तो रोंआर मनुष्य था और अपनी कमर में चमड़े का फेंटा बाँधे हुए था। उसने कहा वह तिशबी एलिय्याह होगा। 9 तब उसने उसके पास पचास सिपाहियों के एक प्रधान को उसके पचासों सिपाहियों समेत भेजा। प्रधान ने एलिय्याह के पास जाकर क्या देखा कि वह पहाड़ की चोटी पर बैठा है। उसने उससे कहा हे परमेश्‍वर के भक्त राजा ने कहा है ‘तू उतर आ।’ 10 एलिय्याह ने उस पचास सिपाहियों के प्रधान से कहा यदि मैं परमेश्‍वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे तेरे पचासों समेत भस्म कर डाले। तब आकाश से आग उतरी और उसे उसके पचासों समेत भस्म कर दिया। 11 फिर राजा ने उसके पास पचास सिपाहियों के एक और प्रधान को पचासों सिपाहियों समेत भेज दिया। प्रधान ने उससे कहा हे परमेश्‍वर के भक्त राजा ने कहा है ‘फुर्ती से तू उतर आ।’ 12 एलिय्याह ने उत्तर देकर उनसे कहा यदि मैं परमेश्‍वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे और तेरे पचासों समेत भस्म कर डाले। तब आकाश से परमेश्‍वर की आग उतरी और उसे उसके पचासों समेत भस्म कर दिया। 13 फिर राजा ने तीसरी बार पचास सिपाहियों के एक और प्रधान को पचासों सिपाहियों समेत भेज दिया और पचास का वह तीसरा प्रधान चढ़कर एलिय्याह के सामने घुटनों के बल गिरा और गिड़गिड़ाकर उससे विनती की हे परमेश्‍वर के भक्त मेरा प्राण और तेरे इन पचास दासों के प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरें। 14 पचास-पचास सिपाहियों के जो दो प्रधान अपने-अपने पचासों समेत पहले आए थे उनको तो आग ने आकाश से गिरकर भस्म कर डाला परन्तु अब मेरा प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरे। 15 तब यहोवा के दूत ने एलिय्याह से कहा उसके संग नीचे जा उससे मत डर। तब एलिय्याह उठकर उसके संग राजा के पास नीचे गया 16 और उससे कहा यहोवा यह कहता है ‘तूने तो एक्रोन के बाल-जबूब देवता से पूछने को दूत भेजे थे तो क्या इस्राएल में कोई परमेश्‍वर नहीं कि जिससे तू पूछ सके? इस कारण तू जिस पलंग पर पड़ा है उस पर से कभी न उठेगा परन्तु मर ही जाएगा।’ 17 यहोवा के इस वचन के अनुसार जो एलिय्याह ने कहा था वह मर गया। और उसकी सन्तान न होने के कारण यहोराम उसके स्थान पर यहूदा के राजा यहोशापात के पुत्र यहोराम के दूसरे वर्ष में राज्य करने लगा। 18 अहज्याह के और काम जो उसने किए वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं?

एलिय्याह का स्वर्गारोहण

2  1 जब यहोवा एलिय्याह को बवंडर के द्वारा स्वर्ग में उठा ले जाने को था तब एलिय्याह और एलीशा दोनों संग-संग गिलगाल से चले। 2 एलिय्याह ने एलीशा से कहा यहोवा मुझे बेतेल तक भेजता है इसलिए तू यहीं ठहरा रह। एलीशा ने कहा यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे नहीं छोड़ने का; इसलिए वे बेतेल को चले गए 3 और बेतेलवासी भविष्यद्वक्ताओं के दल एलीशा के पास आकर कहने लगे क्या तुझे मालूम है कि आज यहोवा तेरे स्वामी को तेरे पास से उठा लेने पर है? उसने कहा हाँ मुझे भी यह मालूम है तुम चुप रहो। 4 एलिय्याह ने उससे कहा हे एलीशा यहोवा मुझे यरीहो को भेजता है; इसलिए तू यहीं ठहरा रह। उसने कहा यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे नहीं छोड़ने का। अतः वे यरीहो को आए। 5 और यरीहोवासी भविष्यद्वक्ताओं के दल एलीशा के पास आकर कहने लगे क्या तुझे मालूम है कि आज यहोवा तेरे स्वामी को तेरे पास से उठा लेने पर है? उसने उत्तर दिया हाँ मुझे भी मालूम है तुम चुप रहो। 6 फिर एलिय्याह ने उससे कहा यहोवा मुझे यरदन तक भेजता है इसलिए तू यहीं ठहरा रह। उसने कहा यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे नहीं छोड़ने का। अतः वे दोनों आगे चले। 7 और भविष्यद्वक्ताओं के दल में से पचास जन जाकर उनके सामने दूर खड़े हुए और वे दोनों यरदन के किनारे खड़े हुए। 8 तब एलिय्याह ने अपनी चद्दर पकड़कर ऐंठ ली और जल पर मारा तब वह इधर-उधर दो भाग हो गया; और वे दोनों स्थल ही स्थल पार उतर गए। 9 उनके पार पहुँचने पर एलिय्याह ने एलीशा से कहा इससे पहले कि मैं तेरे पास से उठा लिया जाऊँ जो कुछ तू चाहे कि मैं तेरे लिये करूँ वह माँग। एलीशा ने कहा तुझ में जो आत्मा है उसका दो गुना भाग मुझे मिल जाए। 10 एलिय्याह ने कहा तूने कठिन बात माँगी है तो भी यदि तू मुझे उठा लिये जाने के बाद देखने पाए तो तेरे लिये ऐसा ही होगा; नहीं तो न होगा। 11 वे चलते-चलते बातें कर रहे थे कि अचानक एक अग्निमय रथ और अग्निमय घोड़ों ने उनको अलग-अलग किया और एलिय्याह बवंडर में होकर स्वर्ग पर चढ़ गया। 12 और उसे एलीशा देखता और पुकारता रहा हाय मेरे पिता हाय मेरे पिता हाय इस्राएल के रथ और सवारो जब वह उसको फिर दिखाई न पड़ा तब उसने अपने वस्त्र फाड़े और फाड़कर दो भाग कर दिए। 13 फिर उसने एलिय्याह की चद्दर उठाई जो उस पर से गिरी थी और वह लौट गया और यरदन के तट पर खड़ा हुआ। 14 तब उसने एलिय्याह की वह चद्दर जो उस पर से गिरी थी पकड़कर जल पर मारी और कहा एलिय्याह का परमेश्‍वर यहोवा कहाँ है? जब उसने जल पर मारा तब वह इधर-उधर दो भाग हो गया और एलीशा पार हो गया। 15 उसे देखकर भविष्यद्वक्ताओं के दल जो यरीहो में उसके सामने थे कहने लगे एलिय्याह में जो आत्मा थी वही एलीशा पर ठहर गई है। अतः वे उससे मिलने को आए और उसके सामने भूमि तक झुककर दण्डवत् की। 16 तब उन्होंने उससे कहा सुन तेरे दासों के पास पचास बलवान पुरुष हैं वे जाकर तेरे स्वामी को ढूँढ़ें सम्भव है कि क्या जाने यहोवा के आत्मा ने उसको उठाकर किसी पहाड़ पर या किसी तराई में डाल दिया हो। उसने कहा मत भेजो। 17 जब उन्होंने उसको यहाँ तक दबाया कि वह लज्जित हो गया तब उसने कहा भेज दो। अतः उन्होंने पचास पुरुष भेज दिए और वे उसे तीन दिन तक ढूँढ़ते रहे परन्तु न पाया। 18 उस समय तक वह यरीहो में ठहरा रहा अतः जब वे उसके पास लौट आए तब उसने उनसे कहा क्या मैंने तुम से न कहा था कि मत जाओ? 19 उस नगर के निवासियों ने एलीशा से कहा देख यह नगर मनभावने स्थान पर बसा है जैसा मेरा प्रभु देखता है परन्तु पानी बुरा है; और भूमि गर्भ गिरानेवाली है। 20 उसने कहा एक नये प्याले में नमक डालकर मेरे पास ले आओ। वे उसे उसके पास ले आए। 21 तब वह जल के सोते के पास गया और उसमें नमक डालकर कहा यहोवा यह कहता है कि मैं यह पानी ठीक कर देता हूँ जिससे वह फिर कभी मृत्यु या गर्भ गिरने का कारण न होगा। 22 एलीशा के इस वचन के अनुसार पानी ठीक हो गया और आज तक ऐसा ही है। 23 वहाँ से वह बेतेल को चला और मार्ग की चढ़ाई में चल रहा था कि नगर से छोटे लड़के निकलकर उसका उपहास करके कहने लगे हे चन्दुए चढ़ जा हे चन्दुए चढ़ जा। 24 तब उसने पीछे की ओर फिरकर उन पर दृष्टि की और यहोवा के नाम से उनको श्राप दिया तब जंगल में से दो रीछनियों ने निकलकर उनमें से बयालीस लड़के फाड़ डाले। 25 वहाँ से वह कर्मेल को गया और फिर वहाँ से सामरिया को लौट गया।

यहोराम के राज्य का आरम्भ

3  1 यहूदा के राजा यहोशापात के राज्य के अठारहवें वर्ष में अहाब का पुत्र यहोराम सामरिया में राज्य करने लगा और बारह वर्ष तक राज्य करता रहा। 2 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था तो भी उसने अपने माता-पिता के बराबर नहीं किया वरन् अपने पिता की बनवाई हुई बाल के स्तम्भ को दूर किया। 3 तो भी वह नबात के पुत्र यारोबाम के ऐसे पापों में जैसे उसने इस्राएल से भी कराए लिपटा रहा और उनसे न फिरा। 4 मोआब का राजा मेशा बहुत सी भेड़-बकरियाँ रखता था और इस्राएल के राजा को एक लाख बच्चे और एक लाख मेढ़ों का ऊन कर की रीति से दिया करता था। 5 जब अहाब मर गया तब मोआब के राजा ने इस्राएल के राजा से बलवा किया। 6 उस समय राजा यहोराम ने सामरिया से निकलकर सारे इस्राएल की गिनती ली। 7 और उसने जाकर यहूदा के राजा यहोशापात के पास यह सन्देश भेजा मोआब के राजा ने मुझसे बलवा किया है क्या तू मेरे संग मोआब से लड़ने को चलेगा? उसने कहा हाँ मैं चलूँगा जैसा तू वैसा मैं जैसी तेरी प्रजा वैसी मेरी प्रजा और जैसे तेरे घोड़े वैसे मेरे भी घोड़े हैं। 8 फिर उसने पूछा हम किस मार्ग से जाएँ? उसने उत्तर दिया एदोम के जंगल से होकर। 9 तब इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा और एदोम का राजा चले और जब सात दिन तक घूमकर चल चुके तब सेना और उसके पीछे-पीछे चलनेवाले पशुओं के लिये कुछ पानी न मिला। 10 और इस्राएल के राजा ने कहा हाय यहोवा ने इन तीन राजाओं को इसलिए इकट्ठा किया कि उनको मोआब के हाथ में कर दे। 11 परन्तु यहोशापात ने कहा क्या यहाँ यहोवा का कोई नबी नहीं है जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछें? इस्राएल के राजा के किसी कर्मचारी ने उत्तर देकर कहा हाँ शापात का पुत्र एलीशा जो एलिय्याह के हाथों को धुलाया करता था वह तो यहाँ है। 12 तब यहोशापात ने कहा उसके पास यहोवा का वचन पहुँचा करता है। तब इस्राएल का राजा और यहोशापात और एदोम का राजा उसके पास गए। 13 तब एलीशा ने इस्राएल के राजा से कहा मेरा तुझ से क्या काम है? अपने पिता के भविष्यद्वक्ताओं और अपनी माता के नबियों के पास जा। इस्राएल के राजा ने उससे कहा ऐसा न कह क्योंकि यहोवा ने इन तीनों राजाओं को इसलिए इकट्ठा किया कि इनको मोआब के हाथ में कर दे। 14 एलीशा ने कहा सेनाओं का यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्थित रहा करता हूँ उसके जीवन की शपथ यदि मैं यहूदा के राजा यहोशापात का आदरमान न करता तो मैं न तो तेरी ओर मुँह करता और न तुझ पर दृष्टि करता। 15 अब कोई बजानेवाला मेरे पास ले आओ। जब बजानेवाला बजाने लगा तब यहोवा की शक्ति एलीशा पर हुई 16 और उसने कहा इस नाले में तुम लोग इतना खोदो कि इसमें गड्ढे ही गड्ढे हो जाएँ। 17 क्योंकि यहोवा यह कहता है ‘तुम्हारे सामने न तो वायु चलेगी और न वर्षा होगी; तो भी यह नदी पानी से भर जाएगी; और अपने गाय बैलों और पशुओं समेत तुम पीने पाओगे। 18 और यह यहोवा की दृष्टि में छोटी सी बात है; यहोवा मोआब को भी तुम्हारे हाथ में कर देगा। 19 तब तुम सब गढ़वाले और उत्तम नगरों को नाश करना और सब अच्छे वृक्षों को काट डालना और जल के सब सोतों को भर देना और सब अच्छे खेतों में पत्थर फेंककर उन्हें बिगाड़ देना।’ 20 सवेरे को अन्नबलि चढ़ाने के समय एदोम की ओर से जल बह आया और देश जल से भर गया। 21 यह सुनकर कि राजाओं ने हम से युद्ध करने के लिये चढ़ाई की है जितने मोआबियों की अवस्था हथियार बांधने योग्य थी वे सब बुलाकर इकट्ठे किए गए और सीमा पर खड़े हुए। 22 सवेरे को जब वे उठे उस समय सूर्य की किरणें उस जल पर ऐसी पड़ीं कि वह मोआबियों के सामने की ओर से लहू सा लाल दिखाई पड़ा। 23 तो वे कहने लगे वह तो लहू होगा निःसन्देह वे राजा एक दूसरे को मारकर नाश हो गए हैं इसलिए अब हे मोआबियों लूट लेने को जाओ। 24 और जब वे इस्राएल की छावनी के पास आए ही थे कि इस्राएली उठकर मोआबियों को मारने लगे और वे उनके सामने से भाग गए; और वे मोआब को मारते-मारते उनके देश में पहुँच गए। 25 और उन्होंने नगरों को ढा दिया और सब अच्छे खेतों में एक-एक पुरुष ने अपना-अपना पत्थर डालकर उन्हें भर दिया; और जल के सब सोतों को भर दिया; और सब अच्छे-अच्छे वृक्षों को काट डाला यहाँ तक कि कीरहरासत के पत्थर तो रह गए परन्तु उसको भी चारों ओर गोफन चलानेवालों ने जाकर मारा। 26 यह देखकर कि हम युद्ध में हार चले मोआब के राजा ने सात सौ तलवार रखनेवाले पुरुष संग लेकर एदोम के राजा तक पाँति चीरकर पहुँचने का यत्न किया परन्तु पहुँच न सका। 27 तब उसने अपने जेठे पुत्र को जो उसके स्थान में राज्य करनेवाला था पकड़कर शहरपनाह पर होमबलि चढ़ाया। इस कारण इस्राएल पर बड़ा ही क्रोध हुआ इसलिए वे उसे छोड़कर अपने देश को लौट गए।

एलीशा के चार आश्चर्यकर्म

4  1 भविष्यद्वक्ताओं के दल में से एक की स्त्री ने एलीशा की दुहाई देकर कहा तेरा दास मेरा पति मर गया और तू जानता है कि वह यहोवा का भय माननेवाला था और जिसका वह कर्जदार था वह आया है कि मेरे दोनों पुत्रों को अपने दास बनाने के लिये ले जाए। 2 एलीशा ने उससे पूछा मैं तेरे लिये क्या करूँ? मुझे बता कि तेरे घर में क्या है? उसने कहा तेरी दासी के घर में एक हाँड़ी तेल को छोड़ और कुछ नहीं है। 3 उसने कहा तू बाहर जाकर अपनी सब पड़ोसिनों से खाली बर्तन माँग ले आ और थोड़े बर्तन न लाना। 4 फिर तू अपने बेटों समेत अपने घर में जा और द्वार बन्द करके उन सब बरतनों में तेल उण्डेल देना और जो भर जाए उन्हें अलग रखना। 5 तब वह उसके पास से चली गई और अपने बेटों समेत अपने घर जाकर द्वार बन्द किया; तब वे तो उसके पास बर्तन लाते गए और वह उण्डेलती गई। 6 जब बर्तन भर गए तब उसने अपने बेटे से कहा मेरे पास एक और भी ले आ; उसने उससे कहा और बर्तन तो नहीं रहा। तब तेल रुक गया। 7 तब उसने जाकर परमेश्‍वर के भक्त को यह बता दिया। और उसने कहा जा तेल बेचकर ऋण भर दे; और जो रह जाए उससे तू अपने पुत्रों सहित अपना निर्वाह करना। 8 फिर एक दिन की बात है कि एलीशा शूनेम को गया जहाँ एक कुलीन स्त्री थी और उसने उसे रोटी खाने के लिये विनती करके विवश किया। अतः जब-जब वह उधर से जाता तब-तब वह वहाँ रोटी खाने को उतरता था। 9 और उस स्त्री ने अपने पति से कहा सुन यह जो बार-बार हमारे यहाँ से होकर जाया करता है वह मुझे परमेश्‍वर का कोई पवित्र भक्त जान पड़ता है। 10 हम दीवार पर एक छोटी उपरौठी कोठरी बनाएँ और उसमें उसके लिये एक खाट एक मेज एक कुर्सी और एक दीवट रखें कि जब-जब वह हमारे यहाँ आए तब-तब उसी में टिका करे। 11 एक दिन की बात है कि वह वहाँ जाकर उस उपरौठी कोठरी में टिका और उसी में लेट गया। 12 और उसने अपने सेवक गेहजी से कहा उस शूनेमिन को बुला ले। उसके बुलाने से वह उसके सामने खड़ी हुई। 13 तब उसने गेहजी से कहा इससे कह कि तूने हमारे लिये ऐसी बड़ी चिन्ता की है तो तेरे लिये क्या किया जाए? क्या तेरी चर्चा राजा या प्रधान सेनापति से की जाए? उसने उत्तर दिया मैं तो अपने ही लोगों में रहती हूँ। 14 फिर उसने कहा तो इसके लिये क्या किया जाए? गेहजी ने उत्तर दिया निश्चय उसके कोई लड़का नहीं और उसका पति बूढ़ा है। 15 उसने कहा उसको बुला ले। और जब उसने उसे बुलाया तब वह द्वार में खड़ी हुई। 16 तब उसने कहा वसन्त ऋतु में दिन पूरे होने पर तू एक बेटा छाती से लगाएगी। स्त्री ने कहा हे मेरे प्रभु हे परमेश्‍वर के भक्त ऐसा नहीं अपनी दासी को धोखा न दे। 17 स्त्री को गर्भ रहा और वसन्त ऋतु का जो समय एलीशा ने उससे कहा था उसी समय जब दिन पूरे हुए तब उसके पुत्र उत्‍पन्‍न हुआ। 18 जब लड़का बड़ा हो गया तब एक दिन वह अपने पिता के पास लवनेवालों के निकट निकल गया। 19 और उसने अपने पिता से कहा आह मेरा सिर आह मेरा सिर। तब पिता ने अपने सेवक से कहा इसको इसकी माता के पास ले जा। 20 वह उसे उठाकर उसकी माता के पास ले गया फिर वह दोपहर तक उसके घुटनों पर बैठा रहा तब मर गया। 21 तब उसने चढ़कर उसको परमेश्‍वर के भक्त की खाट पर लिटा दिया और निकलकर किवाड़ बन्द किया तब उतर गई। 22 तब उसने अपने पति से पुकारकर कहा मेरे पास एक सेवक और एक गदही तुरन्त भेज दे कि मैं परमेश्‍वर के भक्त के यहाँ झटपट हो आऊँ। 23 उसने कहा आज तू उसके यहाँ क्यों जाएगी? आज न तो नये चाँद का और न विश्राम का दिन है; उसने कहा कल्याण होगा। 24 तब उस स्त्री ने गदही पर काठी बाँध कर अपने सेवक से कहा हाँके चल; और मेरे कहे बिना हाँकने में ढिलाई न करना। 25 तो वह चलते-चलते कर्मेल पर्वत को परमेश्‍वर के भक्त के निकट पहुँची। उसे दूर से देखकर परमेश्‍वर के भक्त ने अपने सेवक गेहजी से कहा देख उधर तो वह शूनेमिन है। 26 अब उससे मिलने को दौड़ जा और उससे पूछ कि तू कुशल से है? तेरा पति भी कुशल से है? और लड़का भी कुशल से है? पूछने पर स्त्री ने उत्तर दिया हाँ कुशल से हैं। 27 वह पहाड़ पर परमेश्‍वर के भक्त के पास पहुँची और उसके पाँव पकड़ने लगी तब गेहजी उसके पास गया कि उसे धक्का देकर हटाए परन्तु परमेश्‍वर के भक्त ने कहा उसे छोड़ दे उसका मन व्याकुल है; परन्तु यहोवा ने मुझ को नहीं बताया छिपा ही रखा है। 28 तब वह कहने लगी क्या मैंने अपने प्रभु से पुत्र का वर माँगा था? क्या मैंने न कहा था मुझे धोखा न दे? 29 तब एलीशा ने गेहजी से कहा अपनी कमर बाँध और मेरी छड़ी हाथ में लेकर चला जा मार्ग में यदि कोई तुझे मिले तो उसका कुशल न पूछना और कोई तेरा कुशल पूछे तो उसको उत्तर न देना और मेरी यह छड़ी उस लड़के के मुँह पर रख देना। 30 तब लड़के की माँ ने एलीशा से कहा यहोवा के और तेरे जीवन की शपथ मैं तुझे न छोड़ूँगी। तो वह उठकर उसके पीछे-पीछे चला। 31 उनसे पहले पहुँचकर गेहजी ने छड़ी को उस लड़के के मुँह पर रखा परन्तु कोई शब्द न सुन पड़ा और न उसमें कोई हरकत हुई तब वह एलीशा से मिलने को लौट आया और उसको बता दिया लड़का नहीं जागा। 32 जब एलीशा घर में आया तब क्या देखा कि लड़का मरा हुआ उसकी खाट पर पड़ा है। 33 तब उसने अकेला भीतर जाकर किवाड़ बन्द किया और यहोवा से प्रार्थना की। 34 तब वह चढ़कर लड़के पर इस रीति से लेट गया कि अपना मुँह उसके मुँह से और अपनी आँखें उसकी आँखों से और अपने हाथ उसके हाथों से मिला दिये और वह लड़के पर पसर गया तब लड़के की देह गर्म होने लगी। 35 वह उसे छोड़कर घर में इधर-उधर टहलने लगा और फिर चढ़कर लड़के पर पसर गया; तब लड़के ने सात बार छींका और अपनी आँखें खोलीं। 36 तब एलीशा ने गेहजी को बुलाकर कहा शूनेमिन को बुला ले। जब उसके बुलाने से वह उसके पास आई तब उसने कहा अपने बेटे को उठा ले। 37 वह भीतर गई और उसके पाँवों पर गिर भूमि तक झुककर दण्डवत् किया; फिर अपने बेटे को उठाकर निकल गई। 38 तब एलीशा गिलगाल को लौट गया। उस समय देश में अकाल था और भविष्यद्वक्ताओं के दल उसके सामने बैठे हुए थे और उसने अपने सेवक से कहा हण्डा चढ़ाकर भविष्यद्वक्ताओं के दल के लिये कुछ पका। 39 तब कोई मैदान में साग तोड़ने गया और कोई जंगली लता पाकर अपनी अँकवार भर जंगली फल तोड़ ले आया और फाँक-फाँक करके पकने के लिये हण्डे में डाल दिया और वे उसको न पहचानते थे। 40 तब उन्होंने उन मनुष्यों के खाने के लिये हण्डे में से परोसा। खाते समय वे चिल्लाकर बोल उठे हे परमेश्‍वर के भक्त हण्डे में जहर है; और वे उसमें से खा न सके। 41 तब एलीशा ने कहा अच्छा कुछ आटा ले आओ। तब उसने उसे हण्डे में डालकर कहा उन लोगों के खाने के लिये परोस दे। फिर हण्डे में कुछ हानि की वस्तु न रही। 42 कोई मनुष्य बालशालीशा से पहले उपजे हुए जौ की बीस रोटियाँ और अपनी बोरी में हरी बालें परमेश्‍वर के भक्त के पास ले आया; तो एलीशा ने कहा उन लोगों को खाने के लिये दे। 43 उसके टहलुए ने कहा क्या मैं सौ मनुष्यों के सामने इतना ही रख दूँ? उसने कहा लोगों को दे दे कि खाएँ क्योंकि यहोवा यह कहता है ‘उनके खाने के बाद कुछ बच भी जाएगा।’ 44 तब उसने उनके आगे रख दिया और यहोवा के वचन के अनुसार उनके खाने के बाद कुछ बच भी गया।

नामान कोढ़ी का शुद्ध किया जाना

5  1 अराम के राजा का नामान नामक सेनापति अपने स्वामी की दृष्टि में बड़ा और प्रतिष्ठित पुरुष था क्योंकि यहोवा ने उसके द्वारा अरामियों को विजयी किया था और वह शूरवीर था परन्तु कोढ़ी था। 2 अरामी लोग दल बाँधकर इस्राएल के देश में जाकर वहाँ से एक छोटी लड़की बन्दी बनाकर में ले आए थे और वह नामान की पत्‍नी की सेवा करती थी। 3 उसने अपनी स्वामिनी से कहा यदि मेरा स्वामी सामरिया के भविष्यद्वक्ता के पास होता तो क्या ही अच्छा होता क्योंकि वह उसको कोढ़ से चंगा कर देता। 4 तो नामान ने अपने प्रभु के पास जाकर कह दिया इस्राएली लड़की इस प्रकार कहती है। 5 अराम के राजा ने कहा तू जा मैं इस्राएल के राजा के पास एक पत्र भेजूँगा। तब वह दस किक्कार चाँदी और छः हजार टुकड़े सोना और दस जोड़े कपड़े साथ लेकर रवाना हो गया। 6 और वह इस्राएल के राजा के पास वह पत्र ले गया जिसमें यह लिखा था जब यह पत्र तुझे मिले तब जानना कि मैंने नामान नामक अपने एक कर्मचारी को तेरे पास इसलिए भेजा है कि तू उसका कोढ़ दूर कर दे। 7 यह पत्र पढ़ने पर इस्राएल के राजा ने अपने वस्त्र फाड़े और बोला क्या मैं मारनेवाला और जिलानेवाला परमेश्‍वर हूँ कि उस पुरुष ने मेरे पास किसी को इसलिए भेजा है कि मैं उसका कोढ़ दूर करूँ? सोच विचार तो करो वह मुझसे झगड़े का कारण ढूँढ़ता होगा। 8 यह सुनकर कि इस्राएल के राजा ने अपने वस्त्र फाड़े हैं परमेश्‍वर के भक्त एलीशा ने राजा के पास कहला भेजा तूने क्यों अपने वस्त्र फाड़े हैं? वह मेरे पास आए तब जान लेगा कि इस्राएल में भविष्यद्वक्ता है। 9 तब नामान घोड़ों और रथों समेत एलीशा के द्वार पर आकर खड़ा हुआ। 10 तब एलीशा ने एक दूत से उसके पास यह कहला भेजा तू जाकर यरदन में सात बार डुबकी मार तब तेरा शरीर ज्यों का त्यों हो जाएगा और तू शुद्ध होगा। 11 परन्तु नामान क्रोधित हो यह कहता हुआ चला गया मैंने तो सोचा था कि अवश्य वह मेरे पास बाहर आएगा और खड़ा होकर अपने परमेश्‍वर यहोवा से प्रार्थना करके कोढ़ के स्थान पर अपना हाथ फेरकर कोढ़ को दूर करेगा 12 क्या दमिश्क की अबाना और पर्पर नदियाँ इस्राएल के सब जलाशयों से उत्तम नहीं हैं? क्या मैं उनमें स्नान करके शुद्ध नहीं हो सकता हूँ? इसलिए वह क्रोध से भरा हुआ लौटकर चला गया। 13 तब उसके सेवक पास आकर कहने लगे हे हमारे पिता यदि भविष्यद्वक्ता तुझे कोई भारी काम करने की आज्ञा देता तो क्या तू उसे न करता? फिर जब वह कहता है कि स्नान करके शुद्ध हो जा तो कितना अधिक इसे मानना चाहिये। 14 तब उसने परमेश्‍वर के भक्त के वचन के अनुसार यरदन को जाकर उसमें सात बार डुबकी मारी और उसका शरीर छोटे लड़के का सा हो गया; और वह शुद्ध हो गया। 15 तब वह अपने सब दल बल समेत परमेश्‍वर के भक्त के यहाँ लौट आया और उसके सम्मुख खड़ा होकर कहने लगा सुन अब मैंने जान लिया है कि समस्त पृथ्वी में इस्राएल को छोड़ और कहीं परमेश्‍वर नहीं है इसलिए अब अपने दास की भेंट ग्रहण कर। 16 एलीशा ने कहा यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्थित रहता हूँ उसके जीवन की शपथ मैं कुछ भेंट न लूँगा; और जब उसने उसको बहुत विवश किया कि भेंट को ग्रहण करे तब भी वह इन्कार ही करता रहा। 17 तब नामान ने कहा अच्छा तो तेरे दास को दो खच्चर मिट्टी मिले क्योंकि आगे को तेरा दास यहोवा को छोड़ और किसी परमेश्‍वर को होमबलि या मेलबलि न चढ़ाएगा। 18 एक बात यहोवा तेरे दास की क्षमा करे कि जब मेरा स्वामी रिम्मोन के भवन में दण्डवत् करने को जाए और वह मेरे हाथ का सहारा ले और मुझे भी रिम्मोन के भवन में दण्डवत् करनी पड़े तब यहोवा तेरे दास का यह काम क्षमा करे कि मैं रिम्मोन के भवन में दण्डवत् करूँ। 19 उसने उससे कहा कुशल से विदा हो। वह उसके यहाँ से थोड़ी दूर चला गया था 20 कि परमेश्‍वर के भक्त एलीशा का सेवक गेहजी सोचने लगा मेरे स्वामी ने तो उस अरामी नामान को ऐसा ही छोड़ दिया है कि जो वह ले आया था उसको उसने न लिया परन्तु यहोवा के जीवन की शपथ मैं उसके पीछे दौड़कर उससे कुछ न कुछ ले लूँगा। 21 तब गेहजी नामान के पीछे दौड़ा नामान किसी को अपने पीछे दौड़ता हुआ देखकर उससे मिलने को रथ से उतर पड़ा और पूछा सब कुशल क्षेम तो है? 22 उसने कहा हाँ सब कुशल है; परन्तु मेरे स्वामी ने मुझे यह कहने को भेजा है ‘एप्रैम के पहाड़ी देश से भविष्यद्वक्ताओं के दल में से दो जवान मेरे यहाँ अभी आए हैं इसलिए उनके लिये एक किक्कार चाँदी और दो जोड़े वस्त्र दे।’ 23 नामान ने कहा खुशी से दो किक्कार ले-ले। तब उसने उससे बहुत विनती करके दो किक्कार चाँदी अलग थैलियों में बाँधकर दो जोड़े वस्त्र समेत अपने दो सेवकों पर लाद दिया और वे उन्हें उसके आगे-आगे ले चले। 24 जब वह टीले के पास पहुँचा तब उसने उन वस्तुओं को उनसे लेकर घर में रख दिया और उन मनुष्यों को विदा किया और वे चले गए। 25 और वह भीतर जाकर अपने स्वामी के सामने खड़ा हुआ। एलीशा ने उससे पूछा हे गेहजी तू कहाँ से आता है? उसने कहा तेरा दास तो कहीं नहीं गया। 26 उसने उससे कहा जब वह पुरुष इधर मुँह फेरकर तुझ से मिलने को अपने रथ पर से उतरा तब से वह पूरा हाल मुझे मालूम था; क्या यह समय चाँदी या वस्त्र या जैतून या दाख की बारियाँ भेड़-बकरियाँ गाय बैल और दास-दासी लेने का है? 27 इस कारण से नामान का कोढ़ तुझे और तेरे वंश को सदा लगा रहेगा। तब वह हिम सा श्वेत कोढ़ी होकर उसके सामने से चला गया।

एलीशा का एक और आश्चर्यकर्म

6  1 भविष्यद्वक्ताओं के दल में से किसी ने एलीशा से कहा यह स्थान जिसमें हम तेरे सामने रहते हैं वह हमारे लिये बहुत छोटा है। 2 इसलिए हम यरदन तक जाएँ और वहाँ से एक-एक बल्ली लेकर यहाँ अपने रहने के लिये एक स्थान बना लें; उसने कहा अच्छा जाओ। 3 तब किसी ने कहा अपने दासों के संग चल; उसने कहा चलता हूँ। 4 अतः वह उनके संग चला और वे यरदन के किनारे पहुँचकर लकड़ी काटने लगे। 5 परन्तु जब एक जन बल्ली काट रहा था तो कुल्हाड़ी बेंट से निकलकर जल में गिर गई; इसलिए वह चिल्लाकर कहने लगा हाय मेरे प्रभु वह तो माँगी हुई थी। 6 परमेश्‍वर के भक्त ने पूछा वह कहाँ गिरी? जब उसने स्थान दिखाया तब उसने एक लकड़ी काटकर वहाँ डाल दी और वह लोहा पानी पर तैरने लगा। 7 उसने कहा उसे उठा ले। तब उसने हाथ बढ़ाकर उसे ले लिया। 8 अराम का राजा इस्राएल से युद्ध कर रहा था और सम्मति करके अपने कर्मचारियों से कहा अमुक स्थान पर मेरी छावनी होगी। 9 तब परमेश्‍वर के भक्त ने इस्राएल के राजा के पास कहला भेजा चौकसी कर और अमुक स्थान से होकर न जाना क्योंकि वहाँ अरामी चढ़ाई करनेवाले हैं। 10 तब इस्राएल के राजा ने उस स्थान को जिसकी चर्चा करके परमेश्‍वर के भक्त ने उसे चिताया था दूत भेजकर अपनी रक्षा की; और उस प्रकार एक दो बार नहीं वरन् बहुत बार हुआ। 11 इस कारण अराम के राजा का मन बहुत घबरा गया; अतः उसने अपने कर्मचारियों को बुलाकर उनसे पूछा क्या तुम मुझे न बताओगे कि हम लोगों में से कौन इस्राएल के राजा की ओर का है? उसके एक कर्मचारी ने कहा हे मेरे प्रभु हे राजा ऐसा नहीं 12 एलीशा जो इस्राएल में भविष्यद्वक्ता है वह इस्राएल के राजा को वे बातें भी बताया करता है जो तू शयन की कोठरी में बोलता है। 13 राजा ने कहा जाकर देखो कि वह कहाँ है तब मैं भेजकर उसे पकड़वा मंगाऊँगा। उसको यह समाचार मिला: वह दोतान में है। 14 तब उसने वहाँ घोड़ों और रथों समेत एक भारी दल भेजा और उन्होंने रात को आकर नगर को घेर लिया। 15 भोर को परमेश्‍वर के भक्त का टहलुआ उठा और निकलकर क्या देखता है कि घोड़ों और रथों समेत एक दल नगर को घेरे हुए पड़ा है। तब उसके सेवक ने उससे कहा हाय मेरे स्वामी हम क्या करें? 16 उसने कहा मत डर; क्योंकि जो हमारी ओर हैं वह उनसे अधिक हैं जो उनकी ओर हैं। 17 तब एलीशा ने यह प्रार्थना की हे यहोवा इसकी आँखें खोल दे कि यह देख सके। तब यहोवा ने सेवक की आँखें खोल दीं और जब वह देख सका तब क्या देखा कि एलीशा के चारों ओर का पहाड़ अग्निमय घोड़ों और रथों से भरा हुआ है। 18 जब अरामी उसके पास आए तब एलीशा ने यहोवा से प्रार्थना की कि इस दल को अंधा कर डाल। एलीशा के इस वचन के अनुसार उसने उन्हें अंधा कर दिया। 19 तब एलीशा ने उनसे कहा यह तो मार्ग नहीं है और न यह नगर है मेरे पीछे हो लो; मैं तुम्हें उस मनुष्य के पास जिसे तुम ढूँढ़ रहे हो पहुँचाऊँगा। तब उसने उन्हें सामरिया को पहुँचा दिया। 20 जब वे सामरिया में आ गए तब एलीशा ने कहा हे यहोवा इन लोगों की आँखें खोल कि देख सकें। तब यहोवा ने उनकी आँखें खोलीं और जब वे देखने लगे तब क्या देखा कि हम सामरिया के मध्य में हैं। 21 उनको देखकर इस्राएल के राजा ने एलीशा से कहा हे मेरे पिता क्या मैं इनको मार लूँ? मैं उनको मार लूँ? 22 उसने उत्तर दिया मत मार। क्या तू उनको मार दिया करता है जिनको तू तलवार और धनुष से बन्दी बना लेता है? तू उनको अन्न जल दे कि खा पीकर अपने स्वामी के पास चले जाएँ। 23 तब उसने उनके लिये बड़ा भोज किया और जब वे खा पी चुके तब उसने उन्हें विदा किया और वे अपने स्वामी के पास चले गए। इसके बाद अराम के दल इस्राएल के देश में फिर न आए। 24 इसके बाद अराम के राजा बेन्हदद ने अपनी समस्त सेना इकट्ठी करके सामरिया पर चढ़ाई कर दी और उसको घेर लिया। 25 तब सामरिया में बड़ा अकाल पड़ा और वह ऐसा घिरा रहा कि अन्त में एक गदहे का सिर चाँदी के अस्सी टुकड़ों में और कब की चौथाई भर कबूतर की बीट पाँच टुकड़े चाँदी तक बिकने लगी। 26 एक दिन इस्राएल का राजा शहरपनाह पर टहल रहा था कि एक स्त्री ने पुकार के उससे कहा हे प्रभु हे राजा बचा। 27 उसने कहा यदि यहोवा तुझे न बचाए तो मैं कहाँ से तुझे बचाऊँ? क्या खलिहान में से या दाखरस के कुण्ड में से? 28 फिर राजा ने उससे पूछा तुझे क्या हुआ? उसने उत्तर दिया इस स्त्री ने मुझसे कहा था ‘मुझे अपना बेटा दे कि हम आज उसे खा लें फिर कल मैं अपना बेटा दूँगी और हम उसे भी खाएँगी’। 29 तब मेरे बेटे को पकाकर हमने खा लिया फिर दूसरे दिन जब मैंने इससे कहा अपना बेटा दे कि हम उसे खा लें तब इसने अपने बेटे को छिपा रखा। 30 उस स्त्री की ये बातें सुनते ही राजा ने अपने वस्त्र फाड़े undefined जब लोगों ने देखा तब उनको यह देख पड़ा कि वह भीतर अपनी देह पर टाट पहने है। 31 तब वह बोल उठा यदि मैं शापात के पुत्र एलीशा का सिर आज उसके धड़ पर रहने दूँ तो परमेश्‍वर मेरे साथ ऐसा ही वरन् इससे भी अधिक करे। 32 एलीशा अपने घर में बैठा हुआ था और पुरनिये भी उसके संग बैठे थे। सो जब राजा ने अपने पास से एक जन भेजा तब उस दूत के पहुँचने से पहले उसने पुरनियों से कहा देखो इस खूनी के बेटे ने किसी को मेरा सिर काटने को भेजा है; इसलिए जब वह दूत आए तब किवाड़ बन्द करके रोके रहना। क्या उसके स्वामी के पाँव की आहट उसके पीछे नहीं सुन पड़ती? 33 वह उनसे यह बातें कर ही रहा था कि दूत उसके पास आ पहुँचा। और राजा कहने लगा यह विपत्ति यहोवा की ओर से है अब मैं आगे को यहोवा की बाट क्यों जोहता रहूँ?

7  1 तब एलीशा ने कहा यहोवा का वचन सुनो यहोवा यह कहता है ‘कल इसी समय सामरिया के फाटक में सआ भर मैदा एक शेकेल में और दो सआ जौ भी एक शेकेल में बिकेगा।’ 2 तब उस सरदार ने जिसके हाथ पर राजा तकिया करता था परमेश्‍वर के भक्त को उत्तर देकर कहा सुन चाहे यहोवा आकाश के झरोखे खोले तो भी क्या ऐसी बात हो सकेगी? उसने कहा सुन तू यह अपनी आँखों से तो देखेगा परन्तु उस अन्न में से कुछ खाने न पाएगा। 3 चार कोढ़ी फाटक के बाहर थे; वे आपस में कहने लगे हम क्यों यहाँ बैठे-बैठे मर जाएँ? 4 यदि हम कहें ‘नगर में जाएँ’ तो वहाँ मर जाएँगे; क्योंकि वहाँ अकाल पड़ा है और यदि हम यहीं बैठे रहें तो भी मर ही जाएँगे। तो आओ हम अराम की सेना में पकड़े जाएँ; यदि वे हमको जिलाए रखें तो हम जीवित रहेंगे और यदि वे हमको मार डालें तो भी हमको मरना ही है। 5 तब वे सांझ को अराम की छावनी में जाने को चले और अराम की छावनी की छोर पर पहुँचकर क्या देखा कि वहाँ कोई नहीं है। 6 क्योंकि प्रभु ने अराम की सेना को रथों और घोड़ों की और भारी सेना की सी आहट सुनाई थी और वे आपस में कहने लगे थे सुनो इस्राएल के राजा ने हित्ती और मिस्री राजाओं को वेतन पर बुलवाया है कि हम पर चढ़ाई करें। 7 इसलिए वे सांझ को उठकर ऐसे भाग गए कि अपने डेरे घोड़े गदहे और छावनी जैसी की तैसी छोड़कर अपना-अपना प्राण लेकर भाग गए। 8 जब वे कोढ़ी छावनी की छोर के डेरों के पास पहुँचे तब एक डेरे में घुसकर खाया पिया और उसमें से चाँदी सोना और वस्त्र ले जाकर छिपा रखा; फिर लौटकर दूसरे डेरे में घुस गए और उसमें से भी ले जाकर छिपा रखा। 9 तब वे आपस में कहने लगे जो हम कर रहे हैं वह अच्छा काम नहीं है यह आनन्द के समाचार का दिन है परन्तु हम किसी को नहीं बताते। जो हम पौ फटने तक ठहरे रहें तो हमको दण्ड मिलेगा; सो अब आओ हम राजा के घराने के पास जाकर यह बात बता दें। 10 तब वे चले और नगर के चौकीदारों को बुलाकर बताया हम जो अराम की छावनी में गए तो क्या देखा कि वहाँ कोई नहीं है और मनुष्य की कुछ आहट नहीं है केवल बंधे हुए घोड़े और गदहे हैं और डेरे जैसे के तैसे हैं। 11 तब चौकीदारों ने पुकार के राजभवन के भीतर समाचार दिया। 12 तब राजा रात ही को उठा और अपने कर्मचारियों से कहा मैं तुम्हें बताता हूँ कि अरामियों ने हम से क्या किया है? वे जानते हैं कि हम लोग भूखे हैं इस कारण वे छावनी में से मैदान में छिपने को यह कहकर गए हैं कि जब वे नगर से निकलेंगे तब हम उनको जीवित ही पकड़कर नगर में घुसने पाएँगे। 13 परन्तु राजा के किसी कर्मचारी ने उत्तर देकर कहा जो घोड़े नगर में बच रहे हैं उनमें से लोग पाँच घोड़े लें और उनको भेजकर हम हाल जान लें। वे तो इस्राएल की सब भीड़ के समान हैं जो नगर में रह गई है वरन् इस्राएल की जो भीड़ मर मिट गई है वे उसी के समान हैं। 14 अतः उन्होंने दो रथ और उनके घोड़े लिये और राजा ने उनको अराम की सेना के पीछे भेजा; और कहा जाओे देखो। 15 तब वे यरदन तक उनके पीछे चले गए और क्या देखा कि पूरा मार्ग वस्त्रों और पात्रों से भरा पड़ा है जिन्हें अरामियों ने उतावली के मारे फेंक दिया था; तब दूत लौट आए और राजा से यह कह सुनाया। 16 तब लोगों ने निकलकर अराम के डेरों को लूट लिया; और यहोवा के वचन के अनुसार एक सआ मैदा एक शेकेल में और दो सआ जौ एक शेकेल में बिकने लगा। 17 अब राजा ने उस सरदार को जिसके हाथ पर वह तकिया करता था फाटक का अधिकारी ठहराया; तब वह फाटक में लोगों के पाँवों के नीचे दबकर मर गया। यह परमेश्‍वर के भक्त के उस वचन के अनुसार हुआ जो उसने राजा से उसके यहाँ आने के समय कहा था। 18 परमेश्‍वर के भक्त ने जैसा राजा से यह कहा था कल इसी समय सामरिया के फाटक में दो सआ जौ एक शेकेल में और एक सआ मैदा एक शेकेल में बिकेगा वैसा ही हुआ। 19 और उस सरदार ने परमेश्‍वर के भक्त को उत्तर देकर कहा था सुन चाहे यहोवा आकाश में झरोखे खोले तो भी क्या ऐसी बात हो सकेगी? और उसने कहा था सुन तू यह अपनी आँखों से तो देखेगा परन्तु उस अन्न में से खाने न पाएगा। 20 अतः उसके साथ ठीक वैसा ही हुआ अतएव वह फाटक में लोगों के पाँवों के नीचे दबकर मर गया।

एलीशा के आश्चर्यकर्मों की कीर्ति

8  1 जिस स्त्री के बेटे को एलीशा ने जिलाया था उससे उसने कहा था कि अपने घराने समेत यहाँ से जाकर जहाँ कहीं तू रह सके वहाँ रह; क्योंकि यहोवा की इच्छा है कि अकाल पड़े और वह इस देश में सात वर्ष तक बना रहेगा। 2 परमेश्‍वर के भक्त के इस वचन के अनुसार वह स्त्री अपने घराने समेत पलिश्तियों के देश में जाकर सात वर्ष रही। 3 सात वर्ष के बीतने पर वह पलिश्तियों के देश से लौट आई और अपने घर और भूमि के लिये दुहाई देने को राजा के पास गई। 4 राजा उस समय परमेश्‍वर के भक्त के सेवक गेहजी से बातें कर रहा था और उसने कहा जो बड़े-बड़े काम एलीशा ने किये हैं उनका मुझसे वर्णन कर। 5 जब वह राजा से यह वर्णन कर ही रहा था कि एलीशा ने एक मुर्दे को जिलाया तब जिस स्त्री के बेटे को उसने जिलाया था वही आकर अपने घर और भूमि के लिये दुहाई देने लगी। तब गेहजी ने कहा हे मेरे प्रभु हे राजा यह वही स्त्री है और यही उसका बेटा है जिसे एलीशा ने जिलाया था। 6 जब राजा ने स्त्री से पूछा तब उसने उससे सब कह दिया। तब राजा ने एक हाकिम को यह कहकर उसके साथ कर दिया कि जो कुछ इसका था वरन् जब से इसने देश को छोड़ दिया तब से इसके खेत की जितनी आमदनी अब तक हुई हो सब इसे फेर दे। 7 एलीशा दमिश्क को गया। और जब अराम के राजा बेन्हदद को जो रोगी था यह समाचार मिला परमेश्‍वर का भक्त यहाँ भी आया है 8 तब उसने हजाएल से कहा भेंट लेकर परमेश्‍वर के भक्त से मिलने को जा और उसके द्वारा यहोवा से यह पूछ ‘क्या बेन्हदद जो रोगी है वह बचेगा कि नहीं?’ 9 तब हजाएल भेंट के लिये दमिश्क की सब उत्तम-उत्तम वस्तुओं से चालीस ऊँट लदवाकर उससे मिलने को चला और उसके सम्मुख खड़ा होकर कहने लगा तेरे पुत्र अराम के राजा बेन्हदद ने मुझे तुझ से यह पूछने को भेजा है ‘क्या मैं जो रोगी हूँ तो बचूँगा कि नहीं?’ 10 एलीशा ने उससे कहा जाकर कह ‘तू निश्चय बच सकता’ तो भी यहोवा ने मुझ पर प्रगट किया है कि तू निःसन्देह मर जाएगा। 11 और वह उसकी ओर टकटकी बाँध कर देखता रहा यहाँ तक कि वह लज्जित हुआ। और परमेश्‍वर का भक्त रोने लगा। 12 तब हजाएल ने पूछा मेरा प्रभु क्यों रोता है? उसने उत्तर दिया इसलिए कि मुझे मालूम है कि तू इस्राएलियों पर क्या-क्या उपद्रव करेगा; उनके गढ़वाले नगरों को तू फूँक देगा; उनके जवानों को तू तलवार से घात करेगा उनके बाल-बच्चों को तू पटक देगा और उनकी गर्भवती स्त्रियों को तू चीर डालेगा। 13 हजाएल ने कहा तेरा दास जो कुत्ते सरीखा है वह क्या है कि ऐसा बड़ा काम करे? एलीशा ने कहा यहोवा ने मुझ पर यह प्रगट किया है कि तू अराम का राजा हो जाएगा। 14 तब वह एलीशा से विदा होकर अपने स्वामी के पास गया और उसने उससे पूछा एलीशा ने तुझ से क्या कहा? उसने उत्तर दिया उसने मुझसे कहा कि बेन्हदद निःसन्देह बचेगा। 15 दूसरे दिन उसने रजाई को लेकर जल से भिगो दिया और उसको उसके मुँह पर ऐसा ओढ़ा दिया कि वह मर गया। तब हजाएल उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 16 इस्राएल के राजा अहाब के पुत्र योराम के राज्य के पाँचवें वर्ष में जब यहूदा का राजा यहोशापात जीवित था तब यहोशापात का पुत्र यहोराम यहूदा पर राज्य करने लगा। 17 जब वह राजा हुआ तब बत्तीस वर्ष का था और आठ वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 18 वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला जैसे अहाब का घराना चलता था क्योंकि उसकी स्त्री अहाब की बेटी थी; और वह उस काम को करता था जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था। 19 तो भी यहोवा ने यहूदा को नाश करना न चाहा यह उसके दास दाऊद के कारण हुआ क्योंकि उसने उसको वचन दिया था कि तेरे वंश के निमित्त मैं सदा तेरे लिये एक दीपक जलता हुआ रखूँगा। 20 उसके दिनों में एदोम ने यहूदा की अधीनता छोड़कर अपना एक राजा बना लिया। 21 तब योराम अपने सब रथ साथ लिये हुए साईर को गया और रात को उठकर उन एदोमियों को जो उसे घेरे हुए थे और रथों के प्रधानों को भी मारा; और लोग अपने-अपने डेरे को भाग गए। 22 अतः एदोम यहूदा के वश से छूट गया और आज तक वैसा ही है। उस समय लिब्ना ने भी यहूदा की अधीनता छोड़ दी। 23 योराम के और सब काम और जो कुछ उसने किया वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 24 अन्त में योराम मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उनके बीच दाऊदपुर में उसे मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र अहज्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा।। 25 अहाब के पुत्र इस्राएल के राजा योराम के राज्य के बारहवें वर्ष में यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह राज्य करने लगा। 26 जब अहज्याह राजा बना तब बाईस वर्ष का था और यरूशलेम में एक ही वर्ष राज्य किया। और उसकी माता का नाम अतल्याह था जो इस्राएल के राजा ओम्री की पोती थी। 27 वह अहाब के घराने की चाल चला और अहाब के घराने के समान वह काम करता था जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है क्योंकि वह अहाब के घराने का दामाद था। 28 वह अहाब के पुत्र योराम के संग गिलाद के रामोत में अराम के राजा हजाएल से लड़ने को गया और अरामियों ने योराम को घायल किया। 29 राजा योराम इसलिए लौट गया कि यिज्रेल में उन घावों का इलाज कराए जो उसको अरामियों के हाथ से उस समय लगे जब वह हजाएल के साथ लड़ रहा था। और अहाब का पुत्र योराम तो यिज्रेल में रोगी था इस कारण यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह उसको देखने गया।

येहू का अभिषेक और राज्य

9  1 तब एलीशा भविष्यद्वक्ता ने भविष्यद्वक्ताओं के दल में से एक को बुलाकर उससे कहा कमर बाँध और हाथ में तेल की यह कुप्पी लेकर गिलाद के रामोत को जा। 2 और वहाँ पहुँचकर येहू को जो यहोशापात का पुत्र और निमशी का पोता है ढूँढ़ लेना; तब भीतर जा उसको खड़ा कराकर उसके भाइयों से अलग एक भीतर कोठरी में ले जाना। 3 तब तेल की यह कुप्पी लेकर तेल को उसके सिर पर यह कहकर डालना ‘यहोवा यह कहता है कि मैं इस्राएल का राजा होने के लिये तेरा अभिषेक कर देता हूँ।’ तब द्वार खोलकर भागना विलम्ब न करना। 4 अतः वह जवान भविष्यद्वक्ता गिलाद के रामोत को गया। 5 वहाँ पहुँचकर उसने क्या देखा कि सेनापति बैठे हुए हैं; तब उसने कहा हे सेनापति मुझे तुझ से कुछ कहना है। येहू ने पूछा हम सभी में किस से? उसने कहा हे सेनापति तुझी से 6 तब वह उठकर घर में गया; और उसने यह कहकर उसके सिर पर तेल डाला इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा यह कहता है मैं अपनी प्रजा इस्राएल पर राजा होने के लिये तेरा अभिषेक कर देता हूँ। 7 तो तू अपने स्वामी अहाब के घराने को मार डालना जिससे मुझे अपने दास भविष्यद्वक्ताओं के वरन् अपने सब दासों के खून का जो ईजेबेल ने बहाया बदला मिले। 8 क्योंकि अहाब का समस्त घराना नाश हो जाएगा और मैं अहाब के वंश के हर एक लड़के को और इस्राएल में के क्या बन्दी क्या स्वाधीन हर एक का नाश कर डालूँगा। 9 और मैं अहाब का घराना नबात के पुत्र यारोबाम का सा और अहिय्याह के पुत्र बाशा का सा कर दूँगा। 10 और ईजेबेल को यिज्रेल की भूमि में कुत्ते खाएँगे और उसको मिट्टी देनेवाला कोई न होगा। तब वह द्वार खोलकर भाग गया। 11 तब येहू अपने स्वामी के कर्मचारियों के पास निकल आया और एक ने उससे पूछा क्या कुशल है वह बावला क्यों तेरे पास आया था? उसने उनसे कहा तुम को मालूम होगा कि वह कौन है और उससे क्या बातचीत हुई। 12 उन्होंने कहा झूठ है हमें बता दे। उसने कहा उसने मुझसे कहा तो बहुत परन्तु मतलब यह है ‘यहोवा यह कहता है कि मैं इस्राएल का राजा होने के लिये तेरा अभिषेक कर देता हूँ।’ 13 तब उन्होंने झट अपना-अपना वस्त्र उतार कर उसके नीचे सीढ़ी ही पर बिछाया और नरसिंगे फूँककर कहने लगे येहू राजा है। 14 यह येहू जो निमशी का पोता और यहोशापात का पुत्र था उसने योराम से राजद्रोह की युक्ति की। (योराम तो सारे इस्राएल समेत अराम के राजा हजाएल के कारण गिलाद के रामोत की रक्षा कर रहा था; 15 परन्तु राजा योराम आप अपने घाव का जो अराम के राजा हजाएल से युद्ध करने के समय उसको अरामियों से लगे थे उनका इलाज कराने के लिये यिज्रेल को लौट गया था।) तब येहू ने कहा यदि तुम्हारा ऐसा मन हो तो इस नगर में से कोई निकलकर यिज्रेल में सुनाने को न जाने पाए। 16 तब येहू रथ पर चढ़कर यिज्रेल को चला जहाँ योराम पड़ा हुआ था; और यहूदा का राजा अहज्याह योराम के देखने को वहाँ आया था। 17 यिज्रेल के गुम्मट पर जो पहरुआ खड़ा था उसने येहू के संग आते हुए दल को देखकर कहा मुझे एक दल दिखता है; योराम ने कहा एक सवार को बुलाकर उन लोगों से मिलने को भेज और वह उनसे पूछे ‘क्या कुशल है?’ 18 तब एक सवार उससे मिलने को गया और उससे कहा राजा पूछता है ‘क्या कुशल है?’ undefined येहू ने कहा कुशल से तेरा क्या काम? हटकर मेरे पीछे चल। तब पहरुए ने कहा वह दूत उनके पास पहुँचा तो था परन्तु लौटकर नहीं आया। 19 तब उसने दूसरा सवार भेजा और उसने उनके पास पहुँचकर कहा राजा पूछता है ‘क्या कुशल है?’ येहू ने कहा कुशल से तेरा क्या काम? हटकर मेरे पीछे चल। 20 तब पहरुए ने कहा वह भी उनके पास पहुँचा तो था परन्तु लौटकर नहीं आया। हाँकना निमशी के पोते येहू का सा है; वह तो पागलों के समान हाँकता है। 21 योराम ने कहा मेरा रथ जुतवा। जब उसका रथ जुत गया तब इस्राएल का राजा योराम और यहूदा का राजा अहज्याह दोनों अपने-अपने रथ पर चढ़कर निकल गए और येहू से मिलने को बाहर जाकर यिज्रेल नाबोत की भूमि में उससे भेंट की। 22 येहू को देखते ही योराम ने पूछा हे येहू क्या कुशल है येहू ने उत्तर दिया जब तक तेरी माता ईजेबेल छिनालपन और टोना करती रहे तब तक कुशल कहाँ? 23 तब योराम रास फेर के और अहज्याह से यह कहकर भागा हे अहज्याह विश्वासघात है भाग चल। 24 तब येहू ने धनुष को कान तक खींचकर योराम के कंधों के बीच ऐसा तीर मारा कि वह उसका हृदय फोड़कर निकल गया और वह अपने रथ में झुककर गिर पड़ा। 25 तब येहू ने बिदकर नामक अपने एक सरदार से कहा उसे उठाकर यिज्रेली नाबोत की भूमि में फेंक दे; स्मरण तो कर कि जब मैं और तू हम दोनों एक संग सवार होकर उसके पिता अहाब के पीछे-पीछे चल रहे थे तब यहोवा ने उससे यह भारी वचन कहलवाया था 26 ‘यहोवा की यह वाणी है कि नाबोत और उसके पुत्रों का जो खून हुआ उसे मैंने देखा है और यहोवा की यह वाणी है कि मैं उसी भूमि में तुझे बदला दूँगा।’ तो अब यहोवा के उस वचन के अनुसार इसे उठाकर उसी भूमि में फेंक दे। 27 यह देखकर यहूदा का राजा अहज्याह बारी के भवन के मार्ग से भाग चला। और येहू ने उसका पीछा करके कहा उसे भी रथ ही पर मारो; तो वह भी यिबलाम के पास की गूर की चढ़ाई पर मारा गया और मगिद्दो तक भागकर मर गया। 28 तब उसके कर्मचारियों ने उसे रथ पर यरूशलेम को पहुँचाकर दाऊदपुर में उसके पुरखाओं के बीच मिट्टी दी। 29 अहज्याह तो अहाब के पुत्र योराम के राज्य के ग्यारहवें वर्ष में यहूदा पर राज्य करने लगा था। 30 जब येहू यिज्रेल को आया तब ईजेबेल यह सुन अपनी आँखों में सुरमा लगा अपना सिर संवारकर खिड़की में से झाँकने लगी। 31 जब येहू फाटक में होकर आ रहा था तब उसने कहा हे अपने स्वामी के घात करनेवाले जिम्री क्या कुशल है? 32 तब उसने खिड़की की ओर मुँह उठाकर पूछा मेरी ओर कौन है? कौन? इस पर दो तीन खोजों ने उसकी ओर झाँका। 33 तब उसने कहा उसे नीचे गिरा दो। अतः उन्होंने उसको नीचे गिरा दिया और उसके लहू के कुछ छींटे दीवार पर और कुछ घोड़ों पर पड़े और उन्होंने उसको पाँव से लताड़ दिया। 34 तब वह भीतर जाकर खाने-पीने लगा; और कहा जाओ उस श्रापित स्त्री को देख लो और उसे मिट्टी दो; वह तो राजा की बेटी है। 35 जब वे उसे मिट्टी देने गए तब उसकी खोपड़ी पाँवों और हथेलियों को छोड़कर उसका और कुछ न पाया। 36 अतः उन्होंने लौटकर उससे कह दिया; तब उसने कहा यह यहोवा का वह वचन है जो उसने अपने दास तिशबी एलिय्याह से कहलवाया था कि ईजेबेल का माँस यिज्रेल की भूमि में कुत्ते खाएँगे। 37 और ईजेबेल का शव यिज्रेल की भूमि पर खाद के समान पड़ा रहेगा यहाँ तक कि कोई न कहेगा ‘यह ईजेबेल है।’

अहाब के सत्तर बेटों का मारा जाना

10  1 अहाब के सत्तर बेटे पोते सामरिया में रहते थे। अतः येहू ने सामरिया में उन पुरनियों के पास और जो यिज्रेल के हाकिम थे और जो अहाब के लड़कों के पालनेवाले थे उनके पास पत्रों को लिखकर भेजा 2 तुम्हारे स्वामी के बेटे पोते तो तुम्हारे पास रहते हैं और तुम्हारे रथ और घोड़े भी हैं और तुम्हारे एक गढ़वाला नगर और हथियार भी हैं; तो इस पत्र के हाथ लगते ही 3 अपने स्वामी के बेटों में से जो सबसे अच्छा और योग्य हो उसको छांटकर उसके पिता की गद्दी पर बैठाओ और अपने स्वामी के घराने के लिये लड़ो। 4 परन्तु वे बहुत डर गए और कहने लगे उसके सामने दो राजा भी ठहर न सके फिर हम कहाँ ठहर सकेंगे? 5 तब जो राजघराने के काम पर था और जो नगर के ऊपर था उन्होंने और पुरनियों और लड़कों के पालनेवालों ने येहू के पास यह कहला भेजा हम तेरे दास हैं जो कुछ तू हम से कहे उसे हम करेंगे; हम किसी को राजा न बनाएँगे जो तुझे भाए वही कर। 6 तब उसने दूसरा पत्र लिखकर उनके पास भेजा यदि तुम मेरी ओर के हो और मेरी मानो तो अपने स्वामी के बेटों-पोतों के सिर कटवाकर कल इसी समय तक मेरे पास यिज्रेल में हाजिर होना। राजपुत्र तो जो सत्तर मनुष्य थे वे उस नगर के रईसों के पास पलते थे। 7 यह पत्र उनके हाथ लगते ही उन्होंने उन सत्तरों राजपुत्रों को पकड़कर मार डाला और उनके सिर टोकरियों में रखकर यिज्रेल को उसके पास भेज दिए। 8 जब एक दूत ने उसके पास जाकर बता दिया राजकुमारों के सिर आ गए हैं। तब उसने कहा उन्हें फाटक में दो ढेर करके सवेरे तक रखो। 9 सवेरे उसने बाहर जा खड़े होकर सब लोगों से कहा तुम तो निर्दोष हो मैंने अपने स्वामी से राजद्रोह की युक्ति करके उसे घात किया परन्तु इन सभी को किस ने मार डाला? 10 अब जान लो कि जो वचन यहोवा ने अपने दास एलिय्याह के द्वारा कहा था उसे उसने पूरा किया है; जो वचन यहोवा ने अहाब के घराने के विषय कहा उसमें से एक भी बात बिना पूरी हुए न रहेगी। 11 तब अहाब के घराने के जितने लोग यिज्रेल में रह गए उन सभी को और उसके जितने प्रधान पुरुष और मित्र और याजक थे उन सभी को येहू ने मार डाला यहाँ तक कि उसने किसी को जीवित न छोड़ा।। 12 तब वह वहाँ से चलकर सामरिया को गया। और मार्ग में चरवाहों के ऊन कतरने के स्थान पर पहुँचा ही था 13 कि यहूदा के राजा अहज्याह के भाई येहू से मिले और जब उसने पूछा तुम कौन हो? तब उन्होंने उत्तर दिया हम अहज्याह के भाई हैं और राजपुत्रों और राजमाता के बेटों का कुशलक्षेम पूछने को जाते हैं। 14 तब उसने कहा इन्हें जीवित पकड़ो। अतः उन्होंने उनको जो बयालीस पुरुष थे जीवित पकड़ा और ऊन कतरने के स्थान की बावली पर मार डाला उसने उनमें से किसी को न छोड़ा।। 15 जब वह वहाँ से चला तब रेकाब का पुत्र यहोनादाब सामने से आता हुआ उसको मिला। उसका कुशल उसने पूछकर कहा मेरा मन तो तेरे प्रति निष्कपट है क्या तेरा मन भी वैसा ही है? यहोनादाब ने कहा हाँ ऐसा ही है। फिर उसने कहा ऐसा हो तो अपना हाथ मुझे दे। उसने अपना हाथ उसे दिया और वह यह कहकर उसे अपने पास रथ पर चढ़ाने लगा 16 मेरे संग चल और देख कि मुझे यहोवा के निमित्त कैसी जलन रहती है। तब वह उसके रथ पर चढ़ा दिया गया। 17 सामरिया को पहुँचकर उसने यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उसने एलिय्याह से कहा था अहाब के जितने सामरिया में बचे रहे उन सभी को मार के विनाश किया। 18 तब येहू ने सब लोगों को इकट्ठा करके कहा अहाब ने तो बाल की थोड़ी ही उपासना की थी अब येहू उसकी उपासना बढ़के करेगा। 19 इसलिए अब बाल के सब नबियों सब उपासकों और सब याजकों को मेरे पास बुला लाओ उनमें से कोई भी न रह जाए; क्योंकि बाल के लिये मेरा एक बड़ा यज्ञ होनेवाला है; जो कोई न आए वह जीवित न बचेगा। येहू ने यह काम कपट करके बाल के सब उपासकों को नाश करने के लिये किया। 20 तब येहू ने कहा बाल की एक पवित्र महासभा का प्रचार करो। और लोगों ने प्रचार किया। 21 येहू ने सारे इस्राएल में दूत भेजे; तब बाल के सब उपासक आए यहाँ तक कि ऐसा कोई न रह गया जो न आया हो। वे बाल के भवन में इतने आए कि वह एक सिरे से दूसरे सिरे तक भर गया। 22 तब उसने उस मनुष्य से जो वस्त्र के घर का अधिकारी था कहा बाल के सब उपासकों के लिये वस्त्र निकाल ले आ। अतः वह उनके लिये वस्त्र निकाल ले आया। 23 तब येहू रेकाब के पुत्र यहोनादाब को संग लेकर बाल के भवन में गया और बाल के उपासकों से कहा ढूँढ़कर देखो कि यहाँ तुम्हारे संग यहोवा का कोई उपासक तो नहीं है केवल बाल ही के उपासक हैं। 24 तब वे मेलबलि और होमबलि चढ़ाने को भीतर गए। येहू ने तो अस्सी पुरुष बाहर ठहराकर उनसे कहा था यदि उन मनुष्यों में से जिन्हें मैं तुम्हारे हाथ कर दूँ कोई भी बचने पाए तो जो उसे जाने देगा उसका प्राण उसके प्राण के बदले जाएगा। 25 फिर जब होमबलि चढ़ चुका तब येहू ने पहरुओं और सरदारों से कहा भीतर जाकर उन्हें मार डालो; कोई निकलने न पाए। तब उन्होंने उन्हें तलवार से मारा और पहरुए और सरदार उनको बाहर फेंककर बाल के भवन के नगर को गए। 26 और उन्होंने बाल के भवन में की लाठें निकालकर फूँक दीं। 27 और बाल के स्तम्भ को उन्होंने तोड़ डाला; और बाल के भवन को ढाकर शौचालय बना दिया; और वह आज तक ऐसा ही है। 28 अतः येहू ने बाल को इस्राएल में से नाश करके दूर किया। 29 तो भी नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था उसके पापों के अनुसार करने अर्थात् बेतेल और दान में के सोने के बछड़ों की पूजा उससे येहू अलग न हुआ। 30 यहोवा ने येहू से कहा इसलिए कि तूने वह किया जो मेरी दृष्टि में ठीक है और अहाब के घराने से मेरी इच्छा के अनुसार बर्ताव किया है तेरे परपोते के पुत्र तक तेरी सन्तान इस्राएल की गद्दी पर विराजती रहेगी। 31 परन्तु येहू ने इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा की व्यवस्था पर पूर्ण मन से चलने की चौकसी न की वरन् यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था उसके पापों के अनुसार करने से वह अलग न हुआ। 32 उन दिनों यहोवा इस्राएल की सीमा को घटाने लगा इसलिए हजाएल ने इस्राएल के उन सारे देशों में उनको मारा: 33 यरदन से पूरब की ओर गिलाद का सारा देश और गादी और रूबेनी और मनश्शेई का देश अर्थात् अरोएर से लेकर जो अर्नोन की तराई के पास है गिलाद और बाशान तक। 34 येहू के और सब काम और जो कुछ उसने किया और उसकी पूर्ण वीरता यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 35 अन्त में येहू मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और सामरिया में उसको मिट्टी दी गई और उसका पुत्र यहोआहाज उसके स्थान पर राजा बन गया। 36 येहू के सामरिया में इस्राएल पर राज्य करने का समय तो अट्ठाईस वर्ष का था।

योहाश का राजा बनना

11  1 जब अहज्याह की माता अतल्याह ने देखा कि उसका पुत्र मर गया तब उसने पूरे राजवंश को नाश कर डाला। 2 परन्तु यहोशेबा जो राजा योराम की बेटी और अहज्याह की बहन थी उसने अहज्याह के पुत्र योआश को घात होनेवाले राजकुमारों के बीच में से चुराकर दाई समेत बिछौने रखने की कोठरी में छिपा दिया। और उन्होंने उसे अतल्याह से ऐसा छिपा रखा कि वह मारा न गया। 3 और वह उसके पास यहोवा के भवन में छः वर्ष छिपा रहा और अतल्याह देश पर राज्य करती रही। 4 सातवें वर्ष में यहोयादा ने अंगरक्षकों और पहरुओं के शतपतियों को बुला भेजा और उनको यहोवा के भवन में अपने पास ले आया; और उनसे वाचा बाँधी और यहोवा के भवन में उनको शपथ खिलाकर उनको राजपुत्र दिखाया। 5 और उसने उन्हें आज्ञा दी एक काम करो: अर्थात् तुम में से एक तिहाई लोग जो विश्रामदिन को आनेवाले हों वे राजभवन का पहरा दें। 6 और एक तिहाई लोग सूर नामक फाटक में ठहरे रहें और एक तिहाई लोग पहरुओं के पीछे के फाटक में रहें; अतः तुम भवन की चौकसी करके लोगों को रोके रहना; 7 और तुम्हारे दो दल अर्थात् जितने विश्रामदिन को बाहर जानेवाले हों वह राजा के आस-पास होकर यहोवा के भवन की चौकसी करें। 8 तुम अपने-अपने हाथ में हथियार लिये हुए राजा के चारों और रहना और जो कोई पाँतियों के भीतर घुसना चाहे वह मार डाला जाए और तुम राजा के आते-जाते समय उसके संग रहना। 9 यहोयादा याजक की इन सब आज्ञाओं के अनुसार शतपतियों ने किया। वे विश्रामदिन को आनेवाले और जानेवाले दोनों दलों के अपने-अपने जनों को संग लेकर यहोयादा याजक के पास गए। 10 तब याजक ने शतपतियों को राजा दाऊद के बर्छे और ढालें जो यहोवा के भवन में थीं दे दीं। 11 इसलिए वे पहरुए अपने-अपने हाथ में हथियार लिए हुए भवन के दक्षिणी कोने से लेकर उत्तरी कोने तक वेदी और भवन के पास राजा के चारों ओर उसको घेरकर खड़े हुए। 12 तब उसने राजकुमार को बाहर लाकर उसके सिर पर मुकुट और साक्षीपत्र रख दिया; तब लोगों ने उसका अभिषेक करके उसको राजा बनाया; फिर ताली बजा-बजाकर बोल उठे राजा जीवित रहे 13 जब अतल्याह को पहरुओं और लोगों की हलचल सुनाई पड़ी तब वह उनके पास यहोवा के भवन में गई; 14 और उसने क्या देखा कि राजा रीति के अनुसार खम्भे के पास खड़ा है और राजा के पास प्रधान और तुरही बजानेवाले खड़े हैं। और सब लोग आनन्द करते और तुरहियां बजा रहे हैं। तब अतल्याह अपने वस्त्र फाड़कर राजद्रोह राजद्रोह पुकारने लगी। 15 तब यहोयादा याजक ने दल के अधिकारी शतपतियों को आज्ञा दी उसे अपनी पाँतियों के बीच से निकाल ले जाओ; और जो कोई उसके पीछे चले उसे तलवार से मार डालो। क्योंकि याजक ने कहा वह यहोवा के भवन में न मार डाली जाए। 16 इसलिए उन्होंने दोनों ओर से उसको जगह दी और वह उस मार्ग के बीच से चली गई जिससे घोड़े राजभवन में जाया करते थे; और वहाँ वह मार डाली गई। 17 तब यहोयादा ने यहोवा के और राजा-प्रजा के बीच यहोवा की प्रजा होने की वाचा बँधाई और उसने राजा और प्रजा के मध्य भी वाचा बँधाई। 18 तब सब लोगों ने बाल के भवन को जाकर ढा दिया और उसकी वेदियाँ और मूरतें भली भाँति तोड़ दीं; और मत्तान नामक बाल के याजक को वेदियों के सामने ही घात किया। याजक ने यहोवा के भवन पर अधिकारी ठहरा दिए। 19 तब वह शतपतियों अंगरक्षकों और पहरुओं और सब लोगों को साथ लेकर राजा को यहोवा के भवन से नीचे ले गया और पहरुओं के फाटक के मार्ग से राजभवन को पहुँचा दिया। और राजा राजगद्दी पर विराजमान हुआ। 20 तब सब लोग आनन्दित हुए और नगर में शान्ति हुई। अतल्याह तो राजभवन के पास तलवार से मार डाली गई थी। 21 जब योआश राजा हुआ उस समय वह सात वर्ष का था।

यहोआश का राज्य

12  1 येहू के राज्य के सातवें वर्ष में योआश राज्य करने लगा और यरूशलेम में चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम सिब्या था जो बेर्शेबा की थी। 2 और जब तक यहोयादा याजक योआश को शिक्षा देता रहा तब तक वह वही काम करता रहा जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है। 3 तो भी ऊँचे स्थान गिराए न गए; प्रजा के लोग तब भी ऊँचे स्थान पर बलि चढ़ाते और धूप जलाते रहे। 4 योआश ने याजकों से कहा पवित्र की हुई वस्तुओं का जितना रुपया यहोवा के भवन में पहुँचाया जाए अर्थात् गिने हुए लोगों का रुपया और जितना रुपया देने के जो कोई योग्य ठहराया जाए और जितना रुपया जिसकी इच्छा यहोवा के भवन में ले आने की हो 5 इन सब को याजक लोग अपनी जान-पहचान के लोगों से लिया करें और भवन में जो कुछ टूटा फूटा हो उसको सुधार दें। 6 तो भी याजकों ने भवन में जो टूटा फूटा था उसे योआश राजा के राज्य के तेईसवें वर्ष तक नहीं सुधारा था। 7 इसलिए राजा योआश ने यहोयादा याजक और याजकों को बुलवाकर पूछा भवन में जो कुछ टूटा फूटा है उसे तुम क्यों नहीं सुधारते? अब से अपनी जान-पहचान के लोगों से और रुपया न लेना और जो तुम्हें मिले उसे भवन के सुधारने के लिये दे देना। 8 तब याजकों ने मान लिया कि न तो हम प्रजा से और रुपया लें और न भवन को सुधारें। 9 तब यहोयादा याजक ने एक सन्दूक लेकर उसके ढक्कन में छेद करके उसको यहोवा के भवन में आनेवालों के दाहिने हाथ पर वेदी के पास रख दिया; और द्वार की रखवाली करनेवाले याजक उसमें वह सब रुपया डालने लगे जो यहोवा के भवन में लाया जाता था। 10 जब उन्होंने देखा कि सन्दूक में बहुत रुपया है तब राजा के प्रधान और महायाजक ने आकर उसे थैलियों में बाँध दिया और यहोवा के भवन में पाए हुए रुपये को गिन लिया। 11 तब उन्होंने उस तौले हुए रुपये को उन काम करानेवालों के हाथ में दिया जो यहोवा के भवन में अधिकारी थे; और इन्होंने उसे यहोवा के भवन के बनानेवाले बढ़इयों राजमिस्त्रियों और संगतराशों को दिये। 12 और लकड़ी और गढ़े हुए पत्थर मोल लेने में वरन् जो कुछ भवन के टूटे फूटे की मरम्मत में खर्च होता था उसमें लगाया। 13 परन्तु जो रुपया यहोवा के भवन में आता था उससे चाँदी के तसले चिमटे कटोरे तुरहियां आदि सोने या चाँदी के किसी प्रकार के पात्र न बने। 14 परन्तु वह काम करनेवाले को दिया गया और उन्होंने उसे लेकर यहोवा के भवन की मरम्मत की। 15 और जिनके हाथ में काम करनेवालों को देने के लिये रुपया दिया जाता था उनसे कुछ हिसाब न लिया जाता था क्योंकि वे सच्चाई से काम करते थे। 16 जो रुपया दोषबलियों और पापबलियों के लिये दिया जाता था यह तो यहोवा के भवन में न लगाया गया वह याजकों को मिलता था। 17 तब अराम के राजा हजाएल ने गत नगर पर चढ़ाई की और उससे लड़ाई करके उसे ले लिया। तब उसने यरूशलेम पर भी चढ़ाई करने को अपना मुँह किया। 18 तब यहूदा के राजा योआश ने उन सब पवित्र वस्तुओं को जिन्हें उसके पुरखा यहोशापात यहोराम और अहज्याह नामक यहूदा के राजाओं ने पवित्र किया था और अपनी पवित्र की हुई वस्तुओं को भी और जितना सोना यहोवा के भवन के भण्डारों में और राजभवन में मिला उस सब को लेकर अराम के राजा हजाएल के पास भेज दिया; और वह यरूशलेम के पास से चला गया। 19 योआश के और सब काम जो उसने किया वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 20 योआश के कर्मचारियों ने राजद्रोह की युक्ति करके उसको मिल्लो के भवन में जो सिल्ला की ढलान पर था मार डाला। 21 अर्थात् शिमात का पुत्र योजाकार और शोमेर का पुत्र यहोजाबाद जो उसके कर्मचारी थे उन्होंने उसे ऐसा मारा कि वह मर गया। तब उसे उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी और उसका पुत्र अमस्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

यहोआहाज का राज्य

13  1 अहज्याह के पुत्र यहूदा के राजा योआश के राज्य के तेईसवें वर्ष में येहू का पुत्र यहोआहाज सामरिया में इस्राएल पर राज्य करने लगा और सत्रह वर्ष तक राज्य करता रहा। 2 और उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था अर्थात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था उसके पापों के अनुसार वह करता रहा और उनको छोड़ न दिया। 3 इसलिए यहोवा का क्रोध इस्राएलियों के विरुद्ध भड़क उठा और उसने उनको अराम के राजा हजाएल और उसके पुत्र बेन्हदद के अधीन कर दिया। 4 तब यहोआहाज यहोवा के सामने गिड़गिड़ाया और यहोवा ने उसकी सुन ली; क्योंकि उसने इस्राएल पर अंधेर देखा कि अराम का राजा उन पर कैसा अंधेर करता था। 5 इसलिए यहोवा ने इस्राएल को एक छुड़ानेवाला दिया और वे अराम के वश से छूट गए; और इस्राएली पिछले दिनों के समान फिर अपने-अपने डेरे में रहने लगे। 6 तो भी वे ऐसे पापों से न फिरे जैसे यारोबाम के घराने ने किया और जिनके अनुसार उसने इस्राएल से पाप कराए थे: परन्तु उनमें चलते रहे और सामरिया में अशेरा भी खड़ी रही। 7 अराम के राजा ने यहोआहाज की सेना में से केवल पचास सवार दस रथ और दस हजार प्यादे छोड़ दिए थे; क्योंकि उसने उनको नाश किया और रौंद रौंदकर के धूल में मिला दिया था। 8 यहोआहाज के और सब काम जो उसने किए और उसकी वीरता यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 9 अन्ततः यहोआहाज मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और सामरिया में उसे मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र यहोआश उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 10 यहूदा के राजा योआश के राज्य के सैंतीसवें वर्ष में यहोआहाज का पुत्र यहोआश सामरिया में इस्राएल पर राज्य करने लगा और सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। 11 और उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था अर्थात् नबात का पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था उसके पापों के अनुसार वह करता रहा और उनसे अलग न हुआ। 12 यहोआश के और सब काम जो उसने किए और जिस वीरता से वह यहूदा के राजा अमस्याह से लड़ा यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 13 अन्त में यहोआश मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और यारोबाम उसकी गद्दी पर विराजमान हुआ; और यहोआश को सामरिया में इस्राएल के राजाओं के बीच मिट्टी दी गई। 14 एलीशा को वह रोग लग गया जिससे उसकी मृत्यु होने पर थी तब इस्राएल का राजा यहोआश उसके पास गया और उसके ऊपर रोकर कहने लगा हाय मेरे पिता हाय मेरे पिता हाय इस्राएल के रथ और सवारो 15 एलीशा ने उससे कहा धनुष और तीर ले आ। वह उसके पास धनुष और तीर ले आया। 16 तब उसने इस्राएल के राजा से कहा धनुष पर अपना हाथ लगा। जब उसने अपना हाथ लगाया तब एलीशा ने अपने हाथ राजा के हाथों पर रख दिए। 17 तब उसने कहा पूर्व की खिड़की खोल। जब उसने उसे खोल दिया तब एलीशा ने कहा तीर छोड़ दे; उसने तीर छोड़ा। और एलीशा ने कहा यह तीर यहोवा की ओर से छुटकारे अर्थात् अराम से छुटकारे का चिन्ह है इसलिए तू अपेक में अराम को यहाँ तक मार लेगा कि उनका अन्त कर डालेगा। 18 फिर उसने कहा तीरों को ले; और जब उसने उन्हें लिया तब उसने इस्राएल के राजा से कहा भूमि पर मार; तब वह तीन बार मार कर ठहर गया। 19 और परमेश्‍वर के जन ने उस पर क्रोधित होकर कहा तुझे तो पाँच छः बार मारना चाहिये था। ऐसा करने से तो तू अराम को यहाँ तक मारता कि उनका अन्त कर डालता परन्तु अब तू उन्हें तीन ही बार मारेगा। 20 तब एलीशा मर गया और उसे मिट्टी दी गई। प्रति वर्ष वसन्त ऋतु में मोआब के दल देश पर आक्रमण करते थे। 21 लोग किसी मनुष्य को मिट्टी दे रहे थे कि एक दल उन्हें दिखाई पड़ा तब उन्होंने उस शव को एलीशा की कब्र में डाल दिया और एलीशा की हड्डियों से छूते ही वह जी उठा और अपने पाँवों के बल खड़ा हो गया। 22 यहोआहाज के जीवन भर अराम का राजा हजाएल इस्राएल पर अंधेर ही करता रहा। 23 परन्तु यहोवा ने उन पर अनुग्रह किया और उन पर दया करके अपनी उस वाचा के कारण जो उसने अब्राहम इसहाक और याकूब से बाँधी थी उन पर कृपादृष्‍टि की और न तो उन्हें नाश किया और न अपने सामने से निकाल दिया। 24 तब अराम का राजा हजाएल मर गया और उसका पुत्र बेन्हदद उसके स्थान पर राजा बन गया। 25 तब यहोआहाज के पुत्र यहोआश ने हजाएल के पुत्र बेन्हदद के हाथ से वे नगर फिर ले लिए जिन्हें उसने युद्ध करके उसके पिता यहोआहाज के हाथ से छीन लिया था। यहोआश ने उसको तीन बार जीतकर इस्राएल के नगर फिर ले लिए।

अमस्याह का राज्य

14  1 इस्राएल के राजा यहोआहाज के पुत्र योआश के राज्य के दूसरे वर्ष में यहूदा के राजा योआश का पुत्र अमस्याह राजा हुआ। 2 जब वह राज्य करने लगा तब वह पच्चीस वर्ष का था और यरूशलेम में उनतीस वर्ष राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम यहोअद्दान था जो यरूशलेम की थी। 3 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था तो भी अपने मूल पुरुष दाऊद के समान न किया; उसने ठीक अपने पिता योआश के से काम किए। 4 उसके दिनों में ऊँचे स्थान गिराए न गए; लोग तब भी उन पर बलि चढ़ाते और धूप जलाते रहे। 5 जब राज्य उसके हाथ में स्थिर हो गया तब उसने अपने उन कर्मचारियों को मृत्यु-दण्ड दिया जिन्होंने उसके पिता राजा को मार डाला था। 6 परन्तु उन खूनियों के बच्चों को उसने न मार डाला क्योंकि यहोवा की यह आज्ञा मूसा की व्यवस्था की पुस्तक में लिखी है: पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए और पिता के कारण पुत्र न मार डाला जाए; जिसने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए। 7 उसी अमस्याह ने नमक की तराई में दस हजार एदोमी पुरुष मार डाले और सेला नगर से युद्ध करके उसे ले लिया और उसका नाम योक्तेल रखा और वह नाम आज तक चलता है। 8 तब अमस्याह ने इस्राएल के राजा यहोआश के पास जो येहू का पोता और यहोआहाज का पुत्र था दूतों से कहला भेजा आ हम एक दूसरे का सामना करें। 9 इस्राएल के राजा यहोआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास यह सन्देश भेजा लबानोन पर की एक झड़बेरी ने लबानोन के एक देवदार के पास कहला भेजा ‘अपनी बेटी का मेरे बेटे से विवाह कर दे’ इतने में लबानोन में का एक वन पशु पास से चला गया और उस झड़बेरी को रौंद डाला। 10 तूने एदोमियों को जीता तो है इसलिए तू फूल उठा है। उसी पर बड़ाई मारता हुआ घर रह जा; तू अपनी हानि के लिये यहाँ क्यों हाथ उठाता है जिससे तू क्या वरन् यहूदा भी नीचा देखेगा? 11 परन्तु अमस्याह ने न माना। तब इस्राएल के राजा यहोआश ने चढ़ाई की और उसने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का सामना किया। 12 और यहूदा इस्राएल से हार गया और एक-एक अपने-अपने डेरे को भागा। 13 तब इस्राएल के राजा यहोआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को जो अहज्याह का पोता और योआश का पुत्र था बेतशेमेश में पकड़ लिया और यरूशलेम को गया और एप्रैमी फाटक से कोनेवाले फाटक तक चार सौ हाथ यरूशलेम की शहरपनाह गिरा दी। 14 और जितना सोना चाँदी और जितने पात्र यहोवा के भवन में और राजभवन के भण्डारों में मिले उन सब को और बन्धक लोगों को भी लेकर वह सामरिया को लौट गया।। 15 यहोआश के और काम जो उसने किए और उसकी वीरता और उसने किस रीति यहूदा के राजा अमस्याह से युद्ध किया यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 16 अन्त में यहोआश मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसे इस्राएल के राजाओं के बीच सामरिया में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र यारोबाम उसके स्थान पर राज्य करने लगा।। 17 यहोआहाज के पुत्र इस्राएल के राजा यहोआश के मरने के बाद योआश का पुत्र यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष जीवित रहा। 18 अमस्याह के और काम क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 19 जब यरूशलेम में उसके विरुद्ध राजद्रोह की गोष्ठी की गई तब वह लाकीश को भाग गया। अतः उन्होंने लाकीश तक उसका पीछा करके उसको वहाँ मार डाला। 20 तब वह घोड़ों पर रखकर यरूशलेम में पहुँचाया गया और वहाँ उसके पुरखाओं के बीच उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई। 21 तब सारी यहूदी प्रजा ने अजर्याह को लेकर जो सोलह वर्ष का था उसके पिता अमस्याह के स्थान पर राजा नियुक्त कर दिया। 22 राजा अमस्याह मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला तब उसके बाद अजर्याह ने एलत को दृढ़ करके यहूदा के वश में फिरकर लिया।। 23 यहूदा के राजा योआश के पुत्र अमस्याह के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष में इस्राएल के राजा यहोआश का पुत्र यारोबाम सामरिया में राज्य करने लगा और इकतालीस वर्ष राज्य करता रहा। 24 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था; अर्थात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था उसके पापों के अनुसार वह करता रहा और उनसे वह अलग न हुआ। 25 उसने इस्राएल की सीमा हमात की घाटी से ले अराबा के ताल तक ज्यों का त्यों कर दी जैसा कि इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा ने अमित्तै के पुत्र अपने दास गथेपेरवासी योना भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था। 26 क्योंकि यहोवा ने इस्राएल का दुःख देखा कि बहुत ही कठिन है वरन् क्या बन्दी क्या स्वाधीन कोई भी बचा न रहा और न इस्राएल के लिये कोई सहायक था। 27 यहोवा ने नहीं कहा था कि मैं इस्राएल का नाम धरती पर से मिटा डालूँगा। अतः उसने यहोआश के पुत्र यारोबाम के द्वारा उनको छुटकारा दिया। 28 यारोबाम के और सब काम जो उसने किए और कैसे पराक्रम के साथ उसने युद्ध किया और दमिश्क और हमात को जो पहले यहूदा के राज्य में थे इस्राएल के वश में फिर मिला लिया यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 29 अन्त में यारोबाम मर कर अपने पुरखाओं के संग जो इस्राएल के राजा थे जा मिला और उसका पुत्र जकर्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

अजर्याह का राज्य

15  1 इस्राएल के राजा यारोबाम के राज्य के सताईसवें वर्ष में यहूदा के राजा अमस्याह का पुत्र अजर्याह राजा हुआ। 2 जब वह राज्य करने लगा तब सोलह वर्ष का था और यरूशलेम में बावन वर्ष राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम यकोल्याह था जो यरूशलेम की थी। 3 जैसे उसका पिता अमस्याह किया करता था जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था वैसे ही वह भी करता था। 4 तो भी ऊँचे स्थान गिराए न गए; प्रजा के लोग उस समय भी उन पर बलि चढ़ाते और धूप जलाते रहे। 5 यहोवा ने उस राजा को ऐसा मारा कि वह मरने के दिन तक कोढ़ी रहा और अलग एक घर में रहता था। योताम नामक राजपुत्र उसके घराने के काम पर अधिकारी होकर देश के लोगों का न्याय करता था। 6 अजर्याह के और सब काम जो उसने किए वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 7 अन्त में अजर्याह मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसको दाऊदपुर में उसके पुरखाओं के बीच मिट्टी दी गई और उसका पुत्र योताम उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 8 यहूदा के राजा अजर्याह के राज्य के अड़तीसवें वर्ष में यारोबाम का पुत्र जकर्याह इस्राएल पर सामरिया में राज्य करने लगा और छः महीने राज्य किया। 9 उसने अपने पुरखाओं के समान वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है अर्थात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था उसके पापों के अनुसार वह करता रहा और उनसे वह अलग न हुआ। 10 और याबेश के पुत्र शल्लूम ने उससे राजद्रोह की गोष्ठी करके उसको प्रजा के सामने मारा और उसको घात करके उसके स्थान पर राजा हुआ। 11 जकर्याह के और काम इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 12 अतः यहोवा का वह वचन पूरा हुआ जो उसने येहू से कहा था तेरे परपोते के पुत्र तक तेरी सन्तान इस्राएल की गद्दी पर बैठती जाएगी। और वैसा ही हुआ। 13 यहूदा के राजा उज्जियाह के राज्य के उनतालीसवें वर्ष में याबेश का पुत्र शल्लूम राज्य करने लगा और महीने भर सामरिया में राज्य करता रहा। 14 क्योंकि गादी के पुत्र मनहेम ने तिर्सा से सामरिया को जाकर याबेश के पुत्र शल्लूम को वहीं मारा और उसे घात करके उसके स्थान पर राजा हुआ। 15 शल्लूम के अन्य काम और उसने राजद्रोह की जो गोष्ठी की यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है। 16 तब मनहेम ने तिर्सा से जाकर सब निवासियों और आस-पास के देश समेत तिप्सह को इस कारण मार लिया कि तिप्सहियों ने उसके लिये फाटक न खोले थे इस कारण उसने उन्हें मार दिया और उसमें जितनी गर्भवती स्त्रियाँ थीं उन सभी को चीर डाला। 17 यहूदा के राजा अजर्याह के राज्य के उनतालीसवें वर्ष में गादी का पुत्र मनहेम इस्राएल पर राज्य करने लगा और दस वर्ष सामरिया में राज्य करता रहा। 18 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था अर्थात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था उसके पापों के अनुसार वह करता रहा और उनसे वह जीवन भर अलग न हुआ। 19 अश्शूर के राजा पूल ने देश पर चढ़ाई की और मनहेम ने उसको हजार किक्कार चाँदी इस इच्छा से दी कि वह उसका सहायक होकर राज्य को उसके हाथ में स्थिर रखे। 20 यह चाँदी अश्शूर के राजा को देने के लिये मनहेम ने बड़े-बड़े धनवान इस्राएलियों से ले ली एक-एक पुरुष को पचास-पचास शेकेल चाँदी देनी पड़ी; तब अश्शूर का राजा देश को छोड़कर लौट गया। 21 मनहेम के और काम जो उसने किए वे सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 22 अन्त में मनहेम मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसका पुत्र पकहयाह उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 23 यहूदा के राजा अजर्याह के राज्य के पचासवें वर्ष में मनहेम का पुत्र पकहयाह सामरिया में इस्राएल पर राज्य करने लगा और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 24 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था अर्थात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था उसके पापों के अनुसार वह करता रहा और उनसे वह अलग न हुआ। 25 उसके सरदार रमल्याह के पुत्र पेकह ने उसके विरुद्ध राजद्रोह की गोष्ठी करके सामरिया के राजभवन के गुम्मट में उसको और उसके संग अर्गोब और अर्ये को मारा; और पेकह के संग पचास गिलादी पुरुष थे और वह उसका घात करके उसके स्थान पर राजा बन गया। 26 पकहयाह के और सब काम जो उसने किए वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 27 यहूदा के राजा अजर्याह के राज्य के बावनवें वर्ष में रमल्याह का पुत्र पेकह सामरिया में इस्राएल पर राज्य करने लगा और बीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 28 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था अर्थात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया था उसके पापों के अनुसार वह करता रहा और उनसे वह अलग न हुआ। 29 इस्राएल के राजा पेकह के दिनों में अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर ने आकर इय्योन आबेल्वेत्माका यानोह केदेश और हासोर नामक नगरों को और गिलाद और गलील वरन् नप्ताली के पूरे देश को भी ले लिया और उनके लोगों को बन्दी बनाकर अश्शूर को ले गया। 30 उज्जियाह के पुत्र योताम के बीसवें वर्ष में एला के पुत्र होशे ने रमल्याह के पुत्र पेकह के विरुद्ध राजद्रोह की गोष्ठी करके उसे मारा और उसे घात करके उसके स्थान पर राजा बन गया। 31 पेकह के और सब काम जो उसने किए वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 32 रमल्याह के पुत्र इस्राएल के राजा पेकह के राज्य के दूसरे वर्ष में यहूदा के राजा उज्जियाह का पुत्र योताम राजा हुआ। 33 जब वह राज्य करने लगा तब पच्चीस वर्ष का था और यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यरूशा था जो सादोक की बेटी थी। 34 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था अर्थात् जैसा उसके पिता उज्जियाह ने किया था ठीक वैसा ही उसने भी किया। 35 तो भी ऊँचे स्थान गिराए न गए प्रजा के लोग उन पर उस समय भी बलि चढ़ाते और धूप जलाते रहे। यहोवा के भवन के ऊँचे फाटक को इसी ने बनाया था। 36 योताम के और सब काम जो उसने किए वे क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 37 उन दिनों में यहोवा अराम के राजा रसीन को और रमल्याह के पुत्र पेकह को यहूदा के विरुद्ध भेजने लगा। 38 अन्त में योताम मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और अपने मूलपुरुष दाऊद के नगर में अपने पुरखाओं के बीच उसको मिट्टी दी गई और उसका पुत्र आहाज उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

आहाज का राज्य

16  1 रमल्याह के पुत्र पेकह के राज्य के सत्रहवें वर्ष में यहूदा के राजा योताम का पुत्र आहाज राज्य करने लगा। 2 जब आहाज राज्य करने लगा तब वह बीस वर्ष का था और सोलह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसने अपने मूलपुरुष दाऊद का सा काम नहीं किया जो उसके परमेश्‍वर यहोवा की दृष्टि में ठीक था। 3 परन्तु वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला वरन् उन जातियों के घिनौने कामों के अनुसार जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के सामने से देश से निकाल दिया था उसने अपने बेटे को भी आग में होम कर दिया। 4 वह ऊँचे स्थानों पर और पहाड़ियों पर और सब हरे वृक्षों के नीचे बलि चढ़ाया और धूप जलाया करता था। 5 तब अराम के राजा रसीन और रमल्याह के पुत्र इस्राएल के राजा पेकह ने लड़ने के लिये यरूशलेम पर चढ़ाई की और उन्होंने आहाज को घेर लिया परन्तु युद्ध करके उनसे कुछ बन न पड़ा। 6 उस समय अराम के राजा रसीन ने एलत को अराम के वश में करके यहूदियों को वहाँ से निकाल दिया; तब अरामी लोग एलत को गए और आज के दिन तक वहाँ रहते हैं। 7 अतः आहाज ने दूत भेजकर अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर के पास कहला भेजा मुझे अपना दास वरन् बेटा जानकर चढ़ाई कर और मुझे अराम के राजा और इस्राएल के राजा के हाथ से बचा जो मेरे विरुद्ध उठे हैं। 8 आहाज ने यहोवा के भवन में और राजभवन के भण्डारों में जितना सोना-चाँदी मिला उसे अश्शूर के राजा के पास भेंट करके भेज दिया। 9 उसकी मानकर अश्शूर के राजा ने दमिश्क पर चढ़ाई की और उसे लेकर उसके लोगों को बन्दी बनाकर कीर को ले गया और रसीन को मार डाला। 10 तब राजा आहाज अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर से भेंट करने के लिये दमिश्क को गया और वहाँ की वेदी देखकर उसकी सब बनावट के अनुसार उसका नक्शा ऊरिय्याह याजक के पास नमूना करके भेज दिया। 11 ठीक इसी नमूने के अनुसार जिसे राजा आहाज ने दमिश्क से भेजा था ऊरिय्याह याजक ने राजा आहाज के दमिश्क से आने तक एक वेदी बना दी। 12 जब राजा दमिश्क से आया तब उसने उस वेदी को देखा और उसके निकट जाकर उस पर बलि चढ़ाए। 13 उसी वेदी पर उसने अपना होमबलि और अन्नबलि जलाया और अर्घ दिया और मेलबलियों का लहू छिड़क दिया। 14 और पीतल की जो वेदी यहोवा के सामने रहती थी उसको उसने भवन के सामने से अर्थात् अपनी वेदी और यहोवा के भवन के बीच से हटाकर उस वेदी के उत्तर की ओर रख दिया। 15 तब राजा आहाज ने ऊरिय्याह याजक को यह आज्ञा दी भोर के होमबलि और सांझ के अन्नबलि राजा के होमबलि और उसके अन्नबलि और सब साधारण लोगों के होमबलि और अर्घ बड़ी वेदी पर चढ़ाया कर और होमबलियों और मेलबलियों का सब लहू उस पर छिड़क; और पीतल की वेदी को मैं यहोवा से पूछने के लिये प्रयोग करूँगा। 16 राजा आहाज की इस आज्ञा के अनुसार ऊरिय्याह याजक ने किया। 17 फिर राजा आहाज ने कुर्सियों की पटरियों को काट डाला और हौदियों को उन पर से उतार दिया और बड़े हौद को उन पीतल के बैलों पर से जो उसके नीचे थे उतारकर पत्थरों के फर्श पर रख दिया। 18 विश्राम के दिन के लिये जो छाया हुआ स्थान भवन में बना था और राजा के बाहरी प्रवेश-द्वार को उसने अश्शूर के राजा के कारण यहोवा के भवन से अलग कर दिया। 19 आहाज के और काम जो उसने किए वे क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 20 अन्त में आहाज मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसे उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी गई और उसका पुत्र हिजकिय्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

होशे का इस्राएल में शासन

17  1 यहूदा के राजा आहाज के राज्य के बारहवें वर्ष में एला का पुत्र होशे सामरिया में इस्राएल पर राज्य करने लगा और नौ वर्ष तक राज्य करता रहा। 2 उसने वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था परन्तु इस्राएल के उन राजाओं के बराबर नहीं जो उससे पहले थे। 3 उस पर अश्शूर के राजा शल्मनेसेर ने चढ़ाई की और होशे उसके अधीन होकर उसको भेंट देने लगा। 4 परन्तु अश्शूर के राजा ने होशे के राजद्रोह की गोष्ठी को जान लिया क्योंकि उसने सो नामक मिस्र के राजा के पास दूत भेजे थे और अश्शूर के राजा के पास वार्षिक भेंट भेजनी छोड़ दी; इस कारण अश्शूर के राजा ने उसको बन्दी बनाया और बेड़ी डालकर बन्दीगृह में डाल दिया। 5 तब अश्शूर के राजा ने पूरे देश पर चढ़ाई की और सामरिया को जाकर तीन वर्ष तक उसे घेरे रहा। 6 होशे के नौवें वर्ष में अश्शूर के राजा ने सामरिया को ले लिया और इस्राएलियों को अश्शूर में ले जाकर हलह में और गोजान की नदी हाबोर के पास और मादियों के नगरों में बसाया। 7 इसका यह कारण है कि यद्यपि इस्राएलियों का परमेश्‍वर यहोवा उनको मिस्र के राजा फ़िरौन के हाथ से छुड़ाकर मिस्र देश से निकाल लाया था तो भी उन्होंने उसके विरुद्ध पाप किया और पराये देवताओं का भय माना 8 और जिन जातियों को यहोवा ने इस्राएलियों के सामने से देश से निकाला था उनकी रीति पर और अपने राजाओं की चलाई हुई रीतियों पर चलते थे। 9 इस्राएलियों ने कपट करके अपने परमेश्‍वर यहोवा के विरुद्ध अनुचित काम किए अर्थात् पहरुओं के गुम्मट से लेकर गढ़वाले नगर तक अपनी सारी बस्तियों में ऊँचे स्थान बना लिए; 10 और सब ऊँची पहाड़ियों पर और सब हरे वृक्षों के नीचे लाठें और अशेरा खड़े कर लिए। 11 ऐसे ऊँचे स्थानों में उन जातियों के समान जिनको यहोवा ने उनके सामने से निकाल दिया था धूप जलाया और यहोवा को क्रोध दिलाने के योग्य बुरे काम किए 12 और मूरतों की उपासना की जिसके विषय यहोवा ने उनसे कहा था तुम यह काम न करना। 13 तो भी यहोवा ने सब भविष्यद्वक्ताओं और सब दर्शियों के द्वारा इस्राएल और यहूदा को यह कहकर चिताया था अपनी बुरी चाल छोड़कर उस सारी व्यवस्था के अनुसार जो मैंने तुम्हारे पुरखाओं को दी थी और अपने दास भविष्यद्वक्ताओं के हाथ तुम्हारे पास पहुँचाई है मेरी आज्ञाओं और विधियों को माना करो। 14 परन्तु उन्होंने न माना वरन् अपने उन पुरखाओं के समान जिन्होंने अपने परमेश्‍वर यहोवा का विश्वास न किया था वे भी हठीले बन गए। 15 वे उसकी विधियों और अपने पुरखाओं के साथ उसकी वाचा और जो चितौनियाँ उसने उन्हें दी थीं उनको तुच्छ जानकर निकम्मी बातों के पीछे हो लिए; जिससे वे आप निकम्मे हो गए और अपने चारों ओर की उन जातियों के पीछे भी हो लिए जिनके विषय यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी थी कि उनके से काम न करना। 16 वरन् उन्होंने अपने परमेश्‍वर यहोवा की सब आज्ञाओं को त्याग दिया और दो बछड़ों की मूरतें ढालकर बनाईं और अशेरा भी बनाई; और आकाश के सारे गणों को दण्डवत् की और बाल की उपासना की। 17 उन्होंने अपने बेटे-बेटियों को आग में होम करके चढ़ाया; और भावी कहनेवालों से पूछने और टोना करने लगे; और जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था जिससे वह क्रोधित भी होता है उसके करने को अपनी इच्छा से बिक गए। 18 इस कारण यहोवा इस्राएल से अति क्रोधित हुआ और उन्हें अपने सामने से दूर कर दिया; यहूदा का गोत्र छोड़ और कोई बचा न रहा। 19 यहूदा ने भी अपने परमेश्‍वर यहोवा की आज्ञाएँ न मानीं वरन् जो विधियाँ इस्राएल ने चलाई थीं उन पर चलने लगे। 20 तब यहोवा ने इस्राएल की सारी सन्तान को छोड़कर उनको दुःख दिया और लूटनेवालों के हाथ कर दिया और अन्त में उन्हें अपने सामने से निकाल दिया। 21 जब उसने इस्राएल को दाऊद के घराने के हाथ से छीन लिया तो उन्होंने नबात के पुत्र यारोबाम को अपना राजा बनाया; और यारोबाम ने इस्राएल को यहोवा के पीछे चलने से दूर खींचकर उनसे बड़ा पाप कराया। 22 अतः जैसे पाप यारोबाम ने किए थे वैसे ही पाप इस्राएली भी करते रहे और उनसे अलग न हुए। 23 अन्त में यहोवा ने इस्राएल को अपने सामने से दूर कर दिया जैसे कि उसने अपने सब दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा था। इस प्रकार इस्राएल अपने देश से निकालकर अश्शूर को पहुँचाया गया जहाँ वह आज के दिन तक रहता है। 24 अश्शूर के राजा ने बाबेल कूता अव्वा हमात और सपर्वैम नगरों से लोगों को लाकर इस्राएलियों के स्थान पर सामरिया के नगरों में बसाया; सो वे सामरिया के अधिकारी होकर उसके नगरों में रहने लगे। 25 जब वे वहाँ पहले-पहले रहने लगे तब यहोवा का भय न मानते थे इस कारण यहोवा ने उनके बीच सिंह भेजे जो उनको मार डालने लगे। 26 इस कारण उन्होंने अश्शूर के राजा के पास कहला भेजा कि जो जातियाँ तूने उनके देशों से निकालकर सामरिया के नगरों में बसा दी हैं वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानतीं इससे उसने उसके मध्य सिंह भेजे हैं जो उनको इसलिए मार डालते हैं कि वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानते। 27 तब अश्शूर के राजा ने आज्ञा दी जिन याजकों को तुम उस देश से ले आए उनमें से एक को वहाँ पहुँचा दो; और वह वहाँ जाकर रहे और वह उनको उस देश के देवता की रीति सिखाए। 28 तब जो याजक सामरिया से निकाले गए थे उनमें से एक जाकर बेतेल में रहने लगा और उनको सिखाने लगा कि यहोवा का भय किस रीति से मानना चाहिये। 29 तो भी एक-एक जाति के लोगों ने अपने-अपने निज देवता बनाकर अपने-अपने बसाए हुए नगर में उन ऊँचे स्थानों के भवनों में रखा जो सामरिया के वासियों ने बनाए थे। 30 बाबेल के मनुष्यों ने सुक्कोतबनोत को कूत के मनुष्यों ने नेर्गल को हमात के मनुष्यों ने अशीमा को 31 और अव्वियों ने निभज और तर्त्ताक को स्थापित किया; और सपर्वैमी लोग अपने बेटों को अद्रम्मेलेक और अनम्मेलेक नामक सपर्वैम के देवताओं के लिये होम करके चढ़ाने लगे। 32 अतः वे यहोवा का भय मानते तो थे परन्तु सब प्रकार के लोगों में से ऊँचे स्थानों के याजक भी ठहरा देते थे जो ऊँचे स्थानों के भवनों में उनके लिये बलि करते थे। 33 वे यहोवा का भय मानते तो थे परन्तु उन जातियों की रीति पर जिनके बीच से वे निकाले गए थे अपने-अपने देवताओं की भी उपासना करते रहे। 34 आज के दिन तक वे अपनी पुरानी रीतियों पर चलते हैं वे यहोवा का भय नहीं मानते।वे न तो उन विधियों और नियमों पर और न उस व्यवस्था और आज्ञा के अनुसार चलते हैं जो यहोवा ने याकूब की सन्तान को दी थी जिसका नाम उसने इस्राएल रखा था। 35 उनसे यहोवा ने वाचा बाँधकर उन्हें यह आज्ञा दी थी तुम पराये देवताओं का भय न मानना और न उन्हें दण्डवत् करना और न उनकी उपासना करना और न उनको बलि चढ़ाना। 36 परन्तु यहोवा जो तुम को बड़े बल और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा मिस्र देश से निकाल ले आया तुम उसी का भय मानना उसी को दण्डवत् करना और उसी को बलि चढ़ाना। 37 और उसने जो-जो विधियाँ और नियम और जो व्यवस्था और आज्ञाएँ तुम्हारे लिये लिखीं उन्हें तुम सदा चौकसी से मानते रहो; और पराये देवताओं का भय न मानना। 38 और जो वाचा मैंने तुम्हारे साथ बाँधी है उसे न भूलना और पराये देवताओं का भय न मानना। 39 केवल अपने परमेश्‍वर यहोवा का भय मानना वही तुम को तुम्हारे सब शत्रुओं के हाथ से बचाएगा। 40 तो भी उन्होंने न माना परन्तु वे अपनी पुरानी रीति के अनुसार करते रहे। 41 अतएव वे जातियाँ यहोवा का भय मानती तो थीं परन्तु अपनी खुदी हुई मूरतों की उपासना भी करती रहीं और जैसे वे करते थे वैसे ही उनके बेटे पोते भी आज के दिन तक करते हैं।

हिजकिय्याह के राज्य का आरम्भ

18  1 एला के पुत्र इस्राएल के राजा होशे के राज्य के तीसरे वर्ष में यहूदा के राजा आहाज का पुत्र हिजकिय्याह राजा हुआ। 2 जब वह राज्य करने लगा तब पच्चीस वर्ष का था और उनतीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम अबी था जो जकर्याह की बेटी थी। 3 जैसे उसके मूलपुरुष दाऊद ने किया था जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वैसा ही उसने भी किया। 4 उसने ऊँचे स्थान गिरा दिए लाठों को तोड़ दिया अशेरा को काट डाला। पीतल का जो साँप मूसा ने बनाया था उसको उसने इस कारण चूर-चूर कर दिया कि उन दिनों तक इस्राएली उसके लिये धूप जलाते थे; और उसने उसका नाम नहुशतान रखा। 5 वह इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा पर भरोसा रखता था और उसके बाद यहूदा के सब राजाओं में कोई उसके बराबर न हुआ और न उससे पहले भी ऐसा कोई हुआ था। 6 और वह यहोवा से लिपटा रहा और उसके पीछे चलना न छोड़ा; और जो आज्ञाएँ यहोवा ने मूसा को दी थीं उनका वह पालन करता रहा। 7 इसलिए यहोवा उसके संग रहा; और जहाँ कहीं वह जाता था वहाँ उसका काम सफल होता था। और उसने अश्शूर के राजा से बलवा करके उसकी अधीनता छोड़ दी। 8 उसने पलिश्तियों को गाज़ा और उसकी सीमा तक पहरुओं के गुम्मट और गढ़वाले नगर तक मारा। 9 राजा हिजकिय्याह के राज्य के चौथे वर्ष में जो एला के पुत्र इस्राएल के राजा होशे के राज्य का सातवाँ वर्ष था अश्शूर के राजा शल्मनेसेर ने सामरिया पर चढ़ाई करके उसे घेर लिया। 10 और तीन वर्ष के बीतने पर उन्होंने उसको ले लिया। इस प्रकार हिजकिय्याह के राज्य के छठवें वर्ष में जो इस्राएल के राजा होशे के राज्य का नौवाँ वर्ष था सामरिया ले लिया गया। 11 तब अश्शूर का राजा इस्राएलियों को बन्दी बनाकर अश्शूर में ले गया और हलह में और गोजान की नदी हाबोर के पास और मादियों के नगरों में उसे बसा दिया। 12 इसका कारण यह था कि उन्होंने अपने परमेश्‍वर यहोवा की बात न मानी वरन् उसकी वाचा को तोड़ा और जितनी आज्ञाएँ यहोवा के दास मूसा ने दी थीं उनको टाल दिया और न उनको सुना और न उनके अनुसार किया। 13 हिजकिय्याह राजा के राज्य के चौदहवें वर्ष में अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरों पर चढ़ाई करके उनको ले लिया। 14 तब यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने अश्शूर के राजा के पास लाकीश को संदेश भेजा मुझसे अपराध हुआ मेरे पास से लौट जा; और जो भार तू मुझ पर डालेगा उसको मैं उठाऊँगा। तो अश्शूर के राजा ने यहूदा के राजा हिजकिय्याह के लिये तीन सौ किक्कार चाँदी और तीस किक्कार सोना ठहरा दिया। 15 तब जितनी चाँदी यहोवा के भवन और राजभवन के भण्डारों में मिली उस सब को हिजकिय्याह ने उसे दे दिया। 16 उस समय हिजकिय्याह ने यहोवा के मन्दिर के दरवाज़ो से और उन खम्भों से भी जिन पर यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने सोना मढ़ा था सोने को छीलकर अश्शूर के राजा को दे दिया। 17 तो भी अश्शूर के राजा ने तर्त्तान रबसारीस और रबशाके को बड़ी सेना देकर लाकीश से यरूशलेम के पास हिजकिय्याह राजा के विरुद्ध भेज दिया। अतः वे यरूशलेम को गए और वहाँ पहुँचकर ऊपर के जलकुण्ड की नाली के पास धोबियों के खेत की सड़क पर जाकर खड़े हुए। 18 जब उन्होंने राजा को पुकारा तब हिल्किय्याह का पुत्र एलयाकीम जो राजघराने के काम पर था और शेबना जो मंत्री था और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास का लिखनेवाला था ये तीनों उनके पास बाहर निकल गए। 19 रबशाके ने उनसे कहा हिजकिय्याह से कहो कि महाराजाधिराज अर्थात् अश्शूर का राजा यह कहता है ‘तू किस पर भरोसा करता है? 20 तू जो कहता है कि मेरे यहाँ युद्ध के लिये युक्ति और पराक्रम है वह तो केवल बात ही बात है। तू किस पर भरोसा रखता है कि तूने मुझसे बलवा किया है? 21 सुन तू तो उस कुचले हुए नरकट अर्थात् मिस्र पर भरोसा रखता है उस पर यदि कोई टेक लगाए तो वह उसके हाथ में चुभकर छेदेगा। मिस्र का राजा फ़िरौन अपने सब भरोसा रखनेवालों के लिये ऐसा ही है। 22 फिर यदि तुम मुझसे कहो कि हमारा भरोसा अपने परमेश्‍वर यहोवा पर है तो क्या यह वही नहीं है जिसके ऊँचे स्थानों और वेदियों को हिजकिय्याह ने दूर करके यहूदा और यरूशलेम से कहा कि तुम इसी वेदी के सामने जो यरूशलेम में है दण्डवत् करना?’ 23 तो अब मेरे स्वामी अश्शूर के राजा के पास कुछ बन्धक रख तब मैं तुझे दो हजार घोड़े दूँगा क्या तू उन पर सवार चढ़ा सकेगा कि नहीं? 24 फिर तू मेरे स्वामी के छोटे से छोटे कर्मचारी का भी कहा न मान कर क्यों रथों और सवारों के लिये मिस्र पर भरोसा रखता है? 25 क्या मैंने यहोवा के बिना कहे इस स्थान को उजाड़ने के लिये चढ़ाई की है? यहोवा ने मुझसे कहा है कि उस देश पर चढ़ाई करके उसे उजाड़ दे। 26 तब हिल्किय्याह के पुत्र एलयाकीम और शेबना योआह ने रबशाके से कहा अपने दासों से अरामी भाषा में बातें कर क्योंकि हम उसे समझते हैं; और हम से यहूदी भाषा में शहरपनाह पर बैठे हुए लोगों के सुनते बातें न कर। 27 रबशाके ने उनसे कहा क्या मेरे स्वामी ने मुझे तुम्हारे स्वामी ही के या तुम्हारे ही पास ये बातें कहने को भेजा है? क्या उसने मुझे उन लोगों के पास नहीं भेजा जो शहरपनाह पर बैठे हैं ताकि तुम्हारे संग उनको भी अपना मल खाना और अपना मूत्र पीना पड़े? 28 तब रबशाके ने खड़े हो यहूदी भाषा में ऊँचे शब्द से कहा महाराजाधिराज अर्थात् अश्शूर के राजा की बात सुनो। 29 राजा यह कहता है ‘हिजकिय्याह तुम को धोखा देने न पाए क्योंकि वह तुम्हें मेरे हाथ से बचा न सकेगा। 30 और वह तुम से यह कहकर यहोवा पर भरोसा कराने न पाए कि यहोवा निश्चय हमको बचाएगा और यह नगर अश्शूर के राजा के वश में न पड़ेगा। 31 हिजकिय्याह की मत सुनो। अश्शूर का राजा कहता है कि भेंट भेजकर मुझे प्रसन्‍न करो और मेरे पास निकल आओ और प्रत्येक अपनी-अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष के फल खाता और अपने-अपने कुण्ड का पानी पीता रहे। 32 तब मैं आकर तुम को ऐसे देश में ले जाऊँगा जो तुम्हारे देश के समान अनाज और नये दाखमधु का देश रोटी और दाख की बारियों का देश जैतून और मधु का देश है वहाँ तुम मरोगे नहीं जीवित रहोगे; तो जब हिजकिय्याह यह कहकर तुम को बहकाए कि यहोवा हमको बचाएगा तब उसकी न सुनना। 33 क्या और जातियों के देवताओं ने अपने-अपने देश को अश्शूर के राजा के हाथ से कभी बचाया है? 34 हमात और अर्पाद के देवता कहाँ रहे? सपर्वैम हेना और इव्वा के देवता कहाँ रहे? क्या उन्होंने सामरिया को मेरे हाथ से बचाया है 35 देश-देश के सब देवताओं में से ऐसा कौन है जिस ने अपने देश को मेरे हाथ से बचाया हो? फिर क्या यहोवा यरूशलेम को मेरे हाथ से बचाएगा।’ 36 परन्तु सब लोग चुप रहे और उसके उत्तर में एक बात भी न कही क्योंकि राजा की ऐसी आज्ञा थी कि उसको उत्तर न देना। 37 तब हिल्किय्याह का पुत्र एलयाकीम जो राजघराने के काम पर था और शेबना जो मंत्री था और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास का लिखनेवाला था अपने वस्त्र फाड़े हुए हिजकिय्याह के पास जाकर रबशाके की बातें कह सुनाईं।

यशायाह के द्वारा छुटकारे की भविष्यद्वाणी

19  1 जब हिजकिय्याह राजा ने यह सुना, तब वह अपने वस्त्र फाड़, टाट ओढ़कर यहोवा के भवन में गया।

2 और उसने एलयाकीम को जो राजघराने के काम पर था, और शेबना मंत्री को, और याजकों के पुरनियों को, जो सब टाट ओढ़े हुए थे, आमोस के पुत्र यशायाह भविष्यद्वक्ता के पास भेज दिया।

3 उन्होंने उससे कहा, “हिजकिय्याह यह कहता है, आज का दिन संकट, और भर्त्सना, और निन्दा का दिन है; बच्चों के जन्म का समय तो हुआ पर जच्चा को जन्म देने का बल न रहा।

4 कदाचित् तेरा परमेश्वर यहोवा रबशाके की सब बातें सुने, जिसे उसके स्वामी अश्शूर के राजा ने जीविते परमेश्वर की निन्दा करने को भेजा है, और जो बातें तेरे परमेश्वर यहोवा ने सुनी हैं उन्हें डाँटे; इसलिए तू \itइन बचे हुओं के लिये जो रह गए हैं प्रार्थना कर।”

5 जब हिजकिय्याह राजा के कर्मचारी यशायाह के पास आए,

6 तब यशायाह ने उनसे कहा, “अपने स्वामी से कहो, ‘यहोवा यह कहता है, कि जो वचन तूने सुने हैं, जिनके द्वारा अश्शूर के राजा के जनों ने मेरी निन्दा की है, उनके कारण मत डर।

7 सुन, मैं उसके मन को प्रेरित करूँगा, कि वह कुछ समाचार सुनकर अपने देश को लौट जाए, और मैं उसको उसी के देश में तलवार से मरवा डालूँगा।’”

8 तब रबशाके ने लौटकर अश्शूर के राजा को लिब्ना नगर से युद्ध करते पाया, क्योंकि उसने सुना था कि वह लाकीश के पास से उठ गया है।

9 जब उसने कूश के राजा तिर्हाका के विषय यह सुना, “वह मुझसे लड़ने को निकला है,” तब उसने हिजकिय्याह के पास दूतों को यह कहकर भेजा,

10 “तुम यहूदा के राजा हिजकिय्याह से यह कहना: ‘तेरा परमेश्वर जिसका तू भरोसा करता है, यह कहकर तुझे धोखा न देने पाए, कि यरूशलेम अश्शूर के राजा के वश में न पड़ेगा।

11 देख, तूने तो सुना है कि अश्शूर के राजाओं ने सब देशों से कैसा व्यवहार किया है और उनका सत्यानाश कर दिया है। फिर क्या तू बचेगा?

12 गोजान और हारान और रेसेप और में रहनेवाले एदेनी, जिन जातियों को मेरे पुरखाओं ने नाश किया, क्या उनमें से किसी जाति के देवताओं ने उसको बचा लिया?

13 हमात का राजा, और अर्पाद का राजा, और सपर्वैम नगर का राजा, और हेना और इव्वा के राजा ये सब कहाँ रहे?’” इस पत्री को हिजकिय्याह ने दूतों के हाथ से लेकर पढ़ा।

14 तब यहोवा के भवन में जाकर उसको यहोवा के सामने फैला दिया।

15 और यहोवा से यह प्रार्थना की, “हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा! हे करूबों पर विराजनेवाले! पृथ्वी के सब राज्यों के ऊपर केवल तू ही परमेश्वर है। आकाश और पृथ्वी को तू ही ने बनाया है।

16 हे यहोवा! कान लगाकर सुन, हे यहोवा आँख खोलकर देख, और सन्हेरीब के वचनों को सुन ले, जो उसने जीविते परमेश्वर की निन्दा करने को कहला भेजे हैं।

17 हे यहोवा, सच तो है, कि अश्शूर के राजाओं ने जातियों को और उनके देशों को उजाड़ा है।

18 और \itउनके देवताओं को आग में झोंका है, क्योंकि वे ईश्वर न थे; वे मनुष्यों के बनाए हुए काठ और पत्थर ही के थे; इस कारण वे उनको नाश कर सके।

19 इसलिए अब हे हमारे परमेश्वर यहोवा तू हमें उसके हाथ से बचा, कि पृथ्वी के राज्य-राज्य के लोग जान लें कि केवल तू ही यहोवा है।”

20 तब आमोस के पुत्र यशायाह ने हिजकिय्याह के पास यह कहला भेजा, “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यह कहता है: जो प्रार्थना तूने अश्शूर के राजा सन्हेरीब के विषय मुझसे की, उसे मैंने सुना है।

21 उसके विषय में यहोवा ने यह वचन कहा है,

“सिय्योन की कुमारी कन्या तुझे तुच्छ जानती

और तुझे उपहास में उड़ाती है,

यरूशलेम की पुत्री, तुझ पर सिर हिलाती है।

22 “तूने जो नामधराई और निन्दा की है, वह किसकी की है?

और तूने जो बड़ा बोल बोला और घमण्ड किया है

वह किसके विरुद्ध किया है?

इस्राएल के पवित्र के विरुद्ध तूने किया है!

23 अपने दूतों के द्वारा तूने प्रभु की निन्दा करके कहा है,

कि बहुत से रथ लेकर मैं पर्वतों की चोटियों पर,

वरन् लबानोन के बीच तक चढ़ आया हूँ,

और मैं उसके ऊँचे-ऊँचे देवदारुओं और

अच्छे-अच्छे सनोवर को काट डालूँगा;

और उसमें जो सबसे ऊँचा टिकने का स्थान

होगा उसमें और उसके वन की फलदाई

बारियों में प्रवेश करूँगा।

24 मैंने तो खुदवाकर परदेश का पानी पिया;

और मिस्र की नहरों में पाँव धरते ही उन्हें सूखा डालूँगा।

25 क्या तूने नहीं सुना, कि प्राचीनकाल से मैंने यही ठहराया?

और पिछले दिनों से इसकी तैयारी की थी,

उन्हें अब मैंने पूरा भी किया है,

कि तू गढ़वाले नगरों को खण्डहर ही खण्डहर कर दे,

26 इसी कारण उनके रहनेवालों का बल घट गया;

वे विस्मित और लज्जित हुए;

वे मैदान के छोटे-छोटे पेड़ों और हरी घास और छत पर की घास,

और ऐसे अनाज के समान हो गए, जो बढ़ने से पहले सूख जाता है।

27 “मैं तो तेरा बैठा रहना, और कूच करना,

और लौट आना जानता हूँ,

और यह भी कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता है।

28 इस कारण कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता

और तेरे अभिमान की बातें मेरे कानों में पड़ी हैं;

मैं तेरी नाक में अपनी नकेल डालकर

और तेरे मुँह में अपना लगाम लगाकर,

जिस मार्ग से तू आया है, उसी से तुझे लौटा दूँगा।

29 “और तेरे लिये यह चिन्ह होगा, कि इस वर्ष तो तुम उसे खाओगे जो आप से आप उगें, और दूसरे वर्ष उसे जो उत्पन्न हो वह खाओगे; और तीसरे वर्ष बीज बोने और उसे लवने पाओगे, और दाख की बारियाँ लगाने और उनका फल खाने पाओगे।

30 और यहूदा के घराने के बचे हुए लोग फिर जड़ पकड़ेंगे, और फलेंगे भी।

31 क्योंकि यरूशलेम में से बचे हुए और सिय्योन पर्वत के भागे हुए लोग निकलेंगे। यहोवा यह काम अपनी जलन के कारण करेगा।

32 “इसलिए यहोवा अश्शूर के राजा के विषय में यह कहता है कि वह इस नगर में प्रवेश करने, वरन् इस पर एक तीर भी मारने न पाएगा, और न वह ढाल लेकर इसके सामने आने, या इसके विरुद्ध दमदमा बनाने पाएगा।

33 जिस मार्ग से वह आया, उसी से वह लौट भी जाएगा, और इस नगर में प्रवेश न करने पाएगा, यहोवा की यही वाणी है।

34 और मैं अपने निमित्त और अपने दास दाऊद के निमित्त \itइस नगर की रक्षा करके इसे बचाऊँगा।”

35 उसी रात में क्या हुआ, कि यहोवा के दूत ने निकलकर अश्शूरियों की छावनी में एक लाख पचासी हजार पुरुषों को मारा, और भोर को जब लोग सवेरे उठे, तब देखा, कि शव ही शव पड़े है।

36 तब अश्शूर का राजा सन्हेरीब चल दिया, और लौटकर नीनवे में रहने लगा।

37 वहाँ वह अपने देवता निस्रोक के मन्दिर में दण्डवत् कर रहा था, कि अद्रम्मेलेक और शरेसेर ने उसको तलवार से मारा, और अरारात देश में भाग गए। तब उसका पुत्र एसर्हद्दोन उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

हिजकिय्याह का मृत्यु से बचना

20  1 उन दिनों में हिजकिय्याह ऐसा रोगी हुआ कि मरने पर था और आमोस के पुत्र यशायाह भविष्यद्वक्ता ने उसके पास जाकर कहा यहोवा यह कहता है कि अपने घराने के विषय जो आज्ञा देनी हो वह दे; क्योंकि तू नहीं बचेगा मर जाएगा। 2 तब उसने दीवार की ओर मुँह फेर यहोवा से प्रार्थना करके कहा हे यहोवा 3 मैं विनती करता हूँ स्मरण कर कि मैं सच्चाई और खरे मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलता आया हूँ; और जो तुझे अच्छा लगता है वही मैं करता आया हूँ। तब हिजकिय्याह फूट-फूट कर रोया। 4 तब ऐसा हुआ कि यशायाह आँगन के बीच तक जाने भी न पाया था कि यहोवा का यह वचन उसके पास पहुँचा 5 लौटकर मेरी प्रजा के प्रधान हिजकिय्याह से कह कि तेरे मूलपुरुष दाऊद का परमेश्‍वर यहोवा यह कहता है कि मैंने तेरी प्रार्थना सुनी और तेरे आँसू देखे हैं; देख मैं तुझे चंगा करता हूँ; परसों तू यहोवा के भवन में जा सकेगा। 6 मैं तेरी आयु पन्द्रह वर्ष और बढ़ा दूँगा। अश्शूर के राजा के हाथ से तुझे और इस नगर को बचाऊँगा और मैं अपने निमित्त और अपने दास दाऊद के निमित्त इस नगर की रक्षा करूँगा। 7 तब यशायाह ने कहा अंजीरों की एक टिकिया लो। जब उन्होंने उसे लेकर फोड़े पर बाँधा तब वह चंगा हो गया। 8 हिजकिय्याह ने यशायाह से पूछा यहोवा जो मुझे चंगा करेगा और मैं परसों यहोवा के भवन को जा सकूँगा इसका क्या चिन्ह होगा? 9 यशायाह ने कहा यहोवा जो अपने कहे हुए वचन को पूरा करेगा इस बात का यहोवा की ओर से तेरे लिये यह चिन्ह होगा कि धूपघड़ी की छाया दस अंश आगे बढ़ जाएगी या दस अंश घट जाएगी। 10 हिजकिय्याह ने कहा छाया का दस अंश आगे बढ़ना तो हलकी बात है इसलिए ऐसा हो कि छाया दस अंश पीछे लौट जाए। 11 तब यशायाह भविष्यद्वक्ता ने यहोवा को पुकारा और आहाज की धूपघड़ी की छाया जो दस अंश ढल चुकी थी यहोवा ने उसको पीछे की ओर लौटा दिया। 12 उस समय बलदान का पुत्र बरोदक-बलदान जो बाबेल का राजा था उसने हिजकिय्याह के रोगी होने की चर्चा सुनकर उसके पास पत्री और भेंट भेजी। 13 उनके लानेवालों की मानकर हिजकिय्याह ने उनको अपने अनमोल पदार्थों का सब भण्डार और चाँदी और सोना और सुगन्ध-द्रव्य और उत्तम तेल और अपने हथियारों का पूरा घर और अपने भण्डारों में जो-जो वस्तुएँ थीं वे सब दिखाईं; हिजकिय्याह के भवन और राज्य भर में कोई ऐसी वस्तु न रही जो उसने उन्हें न दिखाई हो। 14 तब यशायाह भविष्यद्वक्ता ने हिजकिय्याह राजा के पास जाकर पूछा वे मनुष्य क्या कह गए? और कहाँ से तेरे पास आए थे? हिजकिय्याह ने कहा वे तो दूर देश से अर्थात् बाबेल से आए थे। 15 फिर उसने पूछा तेरे भवन में उन्होंने क्या-क्या देखा है? हिजकिय्याह ने कहा जो कुछ मेरे भवन में है वह सब उन्होंने देखा। मेरे भण्डारों में कोई ऐसी वस्तु नहीं जो मैंने उन्हें न दिखाई हो। 16 तब यशायाह ने हिजकिय्याह से कहा यहोवा का वचन सुन ले। 17 ऐसे दिन आनेवाले हैं जिनमें जो कुछ तेरे भवन में हैं और जो कुछ तेरे पुरखाओं का रखा हुआ आज के दिन तक भण्डारों में है वह सब बाबेल को उठ जाएगा; यहोवा यह कहता है कि कोई वस्तु न बचेगी। 18 और जो पुत्र तेरे वंश में उत्‍पन्‍न हों उनमें से भी कुछ को वे बन्दी बनाकर ले जाएँगे; और वे खोजे बनकर बाबेल के राजभवन में रहेंगे। 19 तब हिजकिय्याह ने यशायाह से कहा यहोवा का वचन जो तूने कहा है वह भला ही है; क्योंकि उसने सोचा यदि मेरे दिनों में शान्ति और सच्चाई बनी रहेंगी? तो क्या यह भला नहीं है? 20 हिजकिय्याह के और सब काम और उसकी सारी वीरता और किस रीति उसने एक जलाशय और नहर खुदवाकर नगर में पानी पहुँचा दिया यह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 21 अन्त में हिजकिय्याह मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसका पुत्र मनश्शे उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

मनश्शे का राज्य

21  1 जब मनश्शे राज्य करने लगा तब वह बारह वर्ष का था और यरूशलेम में पचपन वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम हेप्सीबा था। 2 उसने उन जातियों के घिनौने कामों के अनुसार जिनको यहोवा ने इस्राएलियों के सामने देश से निकाल दिया था वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था। 3 उसने उन ऊँचे स्थानों को जिनको उसके पिता हिजकिय्याह ने नष्ट किया था फिर बनाया और इस्राएल के राजा अहाब के समान बाल के लिये वेदियाँ और एक अशेरा बनवाई और आकाश के सारे गणों को दण्डवत् और उनकी उपासना करता रहा। 4 उसने यहोवा के उस भवन में वेदियाँ बनाईं जिसके विषय यहोवा ने कहा था यरूशलेम में मैं अपना नाम रखूँगा। 5 वरन् यहोवा के भवन के दोनों आँगनों में भी उसने आकाश के सारे गणों के लिये वेदियाँ बनाई। 6 फिर उसने अपने बेटे को आग में होम करके चढ़ाया; और शुभ-अशुभ मुहूर्त्तों को मानता और टोना करता और ओझों और भूत सिद्धिवालों से व्यवहार करता था; उसने ऐसे बहुत से काम किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे हैं और जिनसे वह क्रोधित होता है। 7 अशेरा की जो मूर्ति उसने खुदवाई उसको उसने उस भवन में स्थापित किया जिसके विषय यहोवा ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से कहा था इस भवन में और यरूशलेम में जिसको मैंने इस्राएल के सब गोत्रों में से चुन लिया है मैं सदैव अपना नाम रखूँगा। 8 और यदि वे मेरी सब आज्ञाओं के और मेरे दास मूसा की दी हुई पूरी व्यवस्था के अनुसार करने की चौकसी करें तो मैं ऐसा न करूँगा कि जो देश मैंने इस्राएल के पुरखाओं को दिया था उससे वे फिर निकलकर मारे-मारे फिरें। 9 परन्तु उन्होंने न माना वरन् मनश्शे ने उनको यहाँ तक भटका दिया कि उन्होंने उन जातियों से भी बढ़कर बुराई की जिनका यहोवा ने इस्राएलियों के सामने से विनाश किया था। 10 इसलिए यहोवा ने अपने दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा 11 यहूदा के राजा मनश्शे ने जो ये घृणित काम किए और जितनी बुराइयाँ एमोरियों ने जो उससे पहले थे की थीं उनसे भी अधिक बुराइयाँ की; और यहूदियों से अपनी बनाई हुई मूरतों की पूजा करवा के उन्हें पाप में फँसाया है। 12 इस कारण इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा यह कहता है कि सुनो मैं यरूशलेम और यहूदा पर ऐसी विपत्ति डालना चाहता हूँ कि जो कोई उसका समाचार सुनेगा वह बड़े सन्नाटे में आ जाएगा। 13 और जो मापने की डोरी मैंने सामरिया पर डाली है और जो साहुल मैंने अहाब के घराने पर लटकाया है वही यरूशलेम पर डालूँगा। और मैं यरूशलेम को ऐसा पोछूँगा जैसे कोई थाली को पोंछता है और उसे पोंछकर उलट देता है। 14 मैं अपने निज भाग के बचे हुओं को त्याग कर शत्रुओं के हाथ कर दूँगा और वे अपने सब शत्रुओं के लिए लूट और धन बन जाएँगे। 15 इसका कारण यह है कि जब से उनके पुरखा मिस्र से निकले तब से आज के दिन तक वे वह काम करके जो मेरी दृष्टि में बुरा है मुझे क्रोध दिलाते आ रहे हैं। 16 मनश्शे ने न केवल वह काम कराके यहूदियों से पाप कराया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है वरन् निर्दोषों का खून बहुत बहाया यहाँ तक कि उसने यरूशलेम को एक सिरे से दूसरे सिरे तक खून से भर दिया। 17 मनश्शे के और सब काम जो उसने किए और जो पाप उसने किए वह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 18 अन्त में मनश्शे मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसे उसके भवन की बारी में जो उज्जा की बारी कहलाती थी मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र आमोन उसके स्थान पर राजा हुआ। 19 जब आमोन राज्य करने लगा तब वह बाईस वर्ष का था और यरूशलेम में दो वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम मशुल्लेमेत था जो योत्बावासी हारूस की बेटी थी। 20 और उसने अपने पिता मनश्शे के समान वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 21 वह पूरी तरह अपने पिता के समान चाल चला और जिन मूरतों की उपासना उसका पिता करता था उनकी वह भी उपासना करता और उन्हें दण्डवत् करता था। 22 उसने अपने पितरों के परमेश्‍वर यहोवा को त्याग दिया और यहोवा के मार्ग पर न चला। 23 आमोन के कर्मचारियों ने विद्रोह की गोष्ठी करके राजा को उसी के भवन में मार डाला। 24 तब साधारण लोगों ने उन सभी को मार डाला जिन्होंने राजा आमोन के विरुद्ध-विद्रोह की गोष्ठी की थी और लोगों ने उसके पुत्र योशिय्याह को उसके स्थान पर राजा बनाया। 25 आमोन के और काम जो उसने किए वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं। 26 उसे भी उज्जा की बारी में उसकी निज कब्र में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र योशिय्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

व्यवस्था की पुस्तक का मिलना

22  1 जब योशिय्याह राज्य करने लगा तब वह आठ वर्ष का था और यरूशलेम में इकतीस वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यदीदा था जो बोस्कतवासी अदायाह की बेटी थी। 2 उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है और जिस मार्ग पर उसका मूलपुरुष दाऊद चला ठीक उसी पर वह भी चला और उससे न तो दाहिनी ओर न बाईं ओर मुड़ा। 3 अपने राज्य के अठारहवें वर्ष में राजा योशिय्याह ने असल्याह के पुत्र शापान मंत्री को जो मशुल्लाम का पोता था यहोवा के भवन में यह कहकर भेजा 4 हिल्किय्याह महायाजक के पास जाकर कह कि जो चाँदी यहोवा के भवन में लाई गई है और द्वारपालों ने प्रजा से इकट्ठी की है 5 उसको जोड़कर उन काम करानेवालों को सौंप दे जो यहोवा के भवन के काम पर मुखिये हैं; फिर वे उसको यहोवा के भवन में काम करनेवाले कारीगरों को दें इसलिए कि उसमें जो कुछ टूटा फूटा हो उसकी वे मरम्मत करें। 6 अर्थात् बढ़इयों राजमिस्त्रियों और संगतराशों को दें और भवन की मरम्मत के लिये लकड़ी और गढ़े हुए पत्थर मोल लेने में लगाएँ। 7 परन्तु जिनके हाथ में वह चाँदी सौंपी गई उनसे हिसाब न लिया गया क्योंकि वे सच्चाई से काम करते थे। 8 हिल्किय्याह महायाजक ने शापान मंत्री से कहा मुझे यहोवा के भवन में व्यवस्था की पुस्तक मिली है तब हिल्किय्याह ने शापान को वह पुस्तक दी और वह उसे पढ़ने लगा। 9 तब शापान मंत्री ने राजा के पास लौटकर यह सन्देश दिया जो चाँदी भवन में मिली उसे तेरे कर्मचारियों ने थैलियों में डालकर उनको सौंप दिया जो यहोवा के भवन में काम करानेवाले हैं। 10 फिर शापान मंत्री ने राजा को यह भी बता दिया हिल्किय्याह याजक ने उसे एक पुस्तक दी है। तब शापान उसे राजा को पढ़कर सुनाने लगा। 11 व्यवस्था की उस पुस्तक की बातें सुनकर राजा ने अपने वस्त्र फाड़े। 12 फिर उसने हिल्किय्याह याजक शापान के पुत्र अहीकाम मीकायाह के पुत्र अकबोर शापान मंत्री और असायाह नामक अपने एक कर्मचारी को आज्ञा दी 13 यह पुस्तक जो मिली है उसकी बातों के विषय तुम जाकर मेरी और प्रजा की और सब यहूदियों की ओर से यहोवा से पूछो क्योंकि यहोवा की बड़ी ही जलजलाहट हम पर इस कारण भड़की है कि हमारे पुरखाओं ने इस पुस्तक की बातें न मानी कि जो कुछ हमारे लिये लिखा है उसके अनुसार करते। 14 हिल्किय्याह याजक और अहीकाम अकबोर शापान और असायाह ने हुल्दा नबिया के पास जाकर उससे बातें की वह उस शल्लूम की पत्‍नी थी जो तिकवा का पुत्र और हर्हस का पोता और वस्त्रों का रखवाला था । 15 उसने उनसे कहा इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा यह कहता है कि जिस पुरुष ने तुम को मेरे पास भेजा उससे यह कहो 16 ‘यहोवा यह कहता है कि सुन जिस पुस्तक को यहूदा के राजा ने पढ़ा है उसकी सब बातों के अनुसार मैं इस स्थान और इसके निवासियों पर विपत्ति डालने पर हूँ। 17 उन लोगों ने मुझे त्याग कर पराये देवताओं के लिये धूप जलाया और अपनी बनाई हुई सब वस्तुओं के द्वारा मुझे क्रोध दिलाया है इस कारण मेरी जलजलाहट इस स्थान पर भड़केगी और फिर शान्त न होगी। 18 परन्तु यहूदा का राजा जिस ने तुम्हें यहोवा से पूछने को भेजा है उससे तुम यह कहो कि इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा कहता है 19 इसलिए कि तू वे बातें सुनकर दीन हुआ और मेरी वे बातें सुनकर कि इस स्थान और इसके निवासियों को देखकर लोग चकित होंगे और श्राप दिया करेंगे तूने यहोवा के सामने अपना सिर झुकाया और अपने वस्त्र फाड़कर मेरे सामने रोया है इस कारण मैंने तेरी सुनी है यहोवा की यही वाणी है। 20 इसलिए देख मैं ऐसा करूँगा कि तू अपने पुरखाओं के संग मिल जाएगा और तू शान्ति से अपनी कब्र को पहुँचाया जाएगा और जो विपत्ति मैं इस स्थान पर डालूँगा उसमें से तुझे अपनी आँखों से कुछ भी देखना न पड़ेगा।’ undefined तब उन्होंने लौटकर राजा को यही सन्देश दिया।

योशिय्याह का मूर्तिपूजा बन्द कराना

23  1 राजा ने यहूदा और यरूशलेम के सब पुरनियों को अपने पास बुलाकर इकट्ठा किया। 2 तब राजा यहूदा के सब लोगों और यरूशलेम के सब निवासियों और याजकों और नबियों वरन् छोटे बड़े सारी प्रजा के लोगों को संग लेकर यहोवा के भवन में गया। उसने जो वाचा की पुस्तक यहोवा के भवन में मिली थी उसकी सब बातें उनको पढ़कर सुनाईं। 3 तब राजा ने खम्भे के पास खड़ा होकर यहोवा से इस आशा की वाचा बाँधी कि मैं यहोवा के पीछे-पीछे चलूँगा और अपने सारे मन और सारे प्राण से उसकी आज्ञाएँ चितौनियाँ और विधियों का नित पालन किया करूँगा और इस वाचा की बातों को जो इस पुस्तक में लिखी हैं पूरी करूँगा; और सब प्रजा वाचा में सम्‍भागी हुई। 4 तब राजा ने हिल्किय्याह महायाजक और उसके नीचे के याजकों और द्वारपालों को आज्ञा दी कि जितने पात्र बाल और अशेरा और आकाश के सब गणों के लिये बने हैं उन सभी को यहोवा के मन्दिर में से निकाल ले आओ। तब उसने उनको यरूशलेम के बाहर किद्रोन के मैदानों में फूँककर उनकी राख बेतेल को पहुँचा दी। 5 जिन पुजारियों को यहूदा के राजाओं ने यहूदा के नगरों के ऊँचे स्थानों में और यरूशलेम के आस-पास के स्थानों में धूप जलाने के लिये ठहराया था उनको और जो बाल और सूर्य-चन्द्रमा राशिचक्र और आकाश के सारे गणों को धूप जलाते थे उनको भी राजा ने हटा दिया। 6 वह अशेरा को यहोवा के भवन में से निकालकर यरूशलेम के बाहर किद्रोन नाले में ले गया और वहीं उसको फूँक दिया और पीसकर बुकनी कर दिया। तब वह बुकनी साधारण लोगों की कब्रों पर फेंक दी। 7 फिर पुरुषगामियों के घर जो यहोवा के भवन में थे जहाँ स्त्रियाँ अशेरा के लिये पर्दे बुना करती थीं उनको उसने ढा दिया। 8 उसने यहूदा के सब नगरों से याजकों को बुलवाकर गेबा से बेर्शेबा तक के उन ऊँचे स्थानों को जहाँ उन याजकों ने धूप जलाया था अशुद्ध कर दिया; और फाटकों के ऊँचे स्थान अर्थात् जो स्थान नगर के यहोशू नामक हाकिम के फाटक पर थे और नगर के फाटक के भीतर जानेवाले के बाईं ओर थे उनको उसने ढा दिया। 9 तो भी ऊँचे स्थानों के याजक यरूशलेम में यहोवा की वेदी के पास न आए वे अख़मीरी रोटी अपने भाइयों के साथ खाते थे। 10 फिर उसने तोपेत जो हिन्नोमवंशियों की तराई में था अशुद्ध कर दिया ताकि कोई अपने बेटे या बेटी को मोलेक के लिये आग में होम करके न चढ़ाए। 11 जो घोड़े यहूदा के राजाओं ने सूर्य को अर्पण करके यहोवा के भवन के द्वार पर नतन्मेलेक नामक खोजे की बाहर की कोठरी में रखे थे उनको उसने दूर किया और सूर्य के रथों को आग में फूँक दिया। 12 आहाज की अटारी की छत पर जो वेदियाँ यहूदा के राजाओं की बनाई हुई थीं और जो वेदियाँ मनश्शे ने यहोवा के भवन के दोनों आँगनों में बनाई थीं उनको राजा ने ढाकर पीस डाला और उनकी बुकनी किद्रोन नाले में फेंक दी। 13 जो ऊँचे स्थान इस्राएल के राजा सुलैमान ने यरूशलेम के पूर्व की ओर और विकारी नामक पहाड़ी के दक्षिण ओर अश्तोरेत नामक सीदोनियों की घिनौनी देवी और कमोश नामक मोआबियों के घिनौने देवता और मिल्कोम नामक अम्मोनियों के घिनौने देवता के लिये बनवाए थे उनको राजा ने अशुद्ध कर दिया। 14 उसने लाठों को तोड़ दिया और अशेरों को काट डाला और उनके स्थान मनुष्यों की हड्डियों से भर दिए। 15 फिर बेतेल में जो वेदी थी और जो ऊँचा स्थान नबात के पुत्र यारोबाम ने बनाया था जिस ने इस्राएल से पाप कराया था उस वेदी और उस ऊँचे स्थान को उसने ढा दिया और ऊँचे स्थान को फूँककर बुकनी कर दिया और अशेरा को फूँक दिया। 16 तब योशिय्याह ने मुड़कर वहाँ के पहाड़ की कब्रों को देखा और लोगों को भेजकर उन कब्रों से हड्डियां निकलवा दीं और वेदी पर जलवाकर उसको अशुद्ध किया। यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ जो परमेश्‍वर के उस भक्त ने पुकारकर कहा था जिस ने इन्हीं बातों की चर्चा की थी। 17 तब उसने पूछा जो खम्भा मुझे दिखाई पड़ता है वह क्या है? तब नगर के लोगों ने उससे कहा वह परमेश्‍वर के उस भक्त जन की कब्र है जिस ने यहूदा से आकर इसी काम की चर्चा पुकारकर की थी जो तूने बेतेल की वेदी से किया है। 18 तब उसने कहा उसको छोड़ दो; उसकी हड्डियों को कोई न हटाए। तब उन्होंने उसकी हड्डियां उस नबी की हड्डियों के संग जो सामरिया से आया था रहने दीं। 19 फिर ऊँचे स्थान के जितने भवन सामरिया के नगरों में थे जिनको इस्राएल के राजाओं ने बनाकर यहोवा को क्रोध दिलाया था उन सभी को योशिय्याह ने गिरा दिया; और जैसा-जैसा उसने बेतेल में किया था वैसा-वैसा उनसे भी किया। 20 उन ऊँचे स्थानों के जितने याजक वहाँ थे उन सभी को उसने उन्हीं वेदियों पर बलि किया और उन पर मनुष्यों की हड्डियां जलाकर यरूशलेम को लौट गया। 21 राजा ने सारी प्रजा के लोगों को आज्ञा दी इस वाचा की पुस्तक में जो कुछ लिखा है उसके अनुसार अपने परमेश्‍वर यहोवा के लिये फसह का पर्व मानो। 22 निश्चय ऐसा फसह न तो न्यायियों के दिनों में माना गया था जो इस्राएल का न्याय करते थे और न इस्राएल या यहूदा के राजाओं के दिनों में माना गया था। 23 राजा योशिय्याह के राज्य के अठारहवें वर्ष में यहोवा के लिये यरूशलेम में यह फसह माना गया। 24 फिर ओझे भूतसिद्धिवाले गृहदेवता मूरतें और जितनी घिनौनी वस्तुएँ यहूदा देश और यरूशलेम में जहाँ कहीं दिखाई पड़ीं उन सभी को योशिय्याह ने इस मनसा से नाश किया कि व्यवस्था की जो बातें उस पुस्तक में लिखी थीं जो हिल्किय्याह याजक को यहोवा के भवन में मिली थी उनको वह पूरी करे। 25 उसके तुल्य न तो उससे पहले कोई ऐसा राजा हुआ और न उसके बाद ऐसा कोई राजा उठा जो मूसा की पूरी व्यवस्था के अनुसार अपने पूर्ण मन और पूर्ण प्राण और पूर्ण शक्ति से यहोवा की ओर फिरा हो। 26 तो भी यहोवा का भड़का हुआ बड़ा कोप शान्त न हुआ जो इस कारण से यहूदा पर भड़का था कि मनश्शे ने यहोवा को क्रोध पर क्रोध दिलाया था। 27 यहोवा ने कहा था जैसे मैंने इस्राएल को अपने सामने से दूर किया वैसे ही यहूदा को भी दूर करूँगा; और इस यरूशलेम नगर जिसे मैंने चुना और इस भवन जिसके विषय मैंने कहा कि यह मेरे नाम का निवास होगा के विरुद्ध मैं हाथ उठाऊँगा। 28 योशिय्याह के और सब काम जो उसने किए वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 29 उसके दिनों में फ़िरौन-नको नामक मिस्र का राजा अश्शूर के राजा की सहायता करने फरात महानद तक गया तो योशिय्याह राजा भी उसका सामना करने को गया और फ़िरौन-नको ने उसको देखते ही मगिद्दो में मार डाला। 30 तब उसके कर्मचारियों ने उसका शव एक रथ पर रख मगिद्दो से ले जाकर यरूशलेम को पहुँचाया और उसकी निज कब्र में रख दिया। तब साधारण लोगों ने योशिय्याह के पुत्र यहोआहाज को लेकर उसका अभिषेक कर के उसके पिता के स्थान पर राजा नियुक्त किया। 31 जब यहोआहाज राज्य करने लगा तब वह तेईस वर्ष का था और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; उसकी माता का नाम हमूतल था जो लिब्नावासी यिर्मयाह की बेटी थी। 32 उसने ठीक अपने पुरखाओं के समान वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 33 उसको फ़िरौन-नको ने हमात देश के रिबला नगर में बन्दी बना लिया ताकि वह यरूशलेम में राज्य न करने पाए फिर उसने देश पर सौ किक्कार चाँदी और किक्कार भर सोना जुर्माना किया। 34 तब फ़िरौन-नको ने योशिय्याह के पुत्र एलयाकीम को उसके पिता योशिय्याह के स्थान पर राजा नियुक्त किया और उसका नाम बदलकर यहोयाकीम रखा; परन्तु यहोआहाज को वह ले गया। और यहोआहाज मिस्र में जाकर वहीं मर गया। 35 यहोयाकीम ने फ़िरौन को वह चाँदी और सोना तो दिया परन्तु देश पर इसलिए कर लगाया कि फ़िरौन की आज्ञा के अनुसार उसे दे सके अर्थात् देश के सब लोगों से जितना जिस पर लगान लगा उतनी चाँदी और सोना उससे फ़िरौन-नको को देने के लिये ले लिया। 36 जब यहोयाकीम राज्य करने लगा तब वह पच्चीस वर्ष का था और ग्यारह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; उसकी माता का नाम जबीदा था जो रूमावासी पदायाह की बेटी थी। 37 उसने ठीक अपने पुरखाओं के समान वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है।

यहूदा पर शत्रुओं का आक्रमण

24  1 उसके दिनों में बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने चढ़ाई की और यहोयाकीम तीन वर्ष तक उसके अधीन रहा; तब उसने फिरकर उससे विद्रोह किया। 2 तब यहोवा ने उसके विरुद्ध और यहूदा को नाश करने के लिये कसदियों अरामियों मोआबियों और अम्मोनियों के दल भेजे यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ जो उसने अपने दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा था। 3 निःसन्देह यह यहूदा पर यहोवा की आज्ञा से हुआ ताकि वह उनको अपने सामने से दूर करे। यह मनश्शे के सब पापों के कारण हुआ। 4 और निर्दोष के उस खून के कारण जो उसने किया था; क्योंकि उसने यरूशलेम को निर्दोषों के खून से भर दिया था जिसको यहोवा ने क्षमा करना न चाहा। 5 यहोयाकीम के और सब काम जो उसने किए वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 6 अन्त में यहोयाकीम मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसका पुत्र यहोयाकीन उसके स्थान पर राजा हुआ। 7 और मिस्र का राजा अपने देश से बाहर फिर कभी न आया क्योंकि बाबेल के राजा ने मिस्र के नाले से लेकर फरात महानद तक जितना देश मिस्र के राजा का था सब को अपने वश में कर लिया था। 8 जब यहोयाकीन राज्य करने लगा तब वह अठारह वर्ष का था और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम नहुश्ता था जो यरूशलेम के एलनातान की बेटी थी। 9 उसने ठीक अपने पिता के समान वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 10 उसके दिनों में बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के कर्मचारियों ने यरूशलेम पर चढ़ाई करके नगर को घेर लिया। 11 जब बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के कर्मचारी नगर को घेरे हुए थे तब वह आप वहाँ आ गया। 12 तब यहूदा का राजा यहोयाकीन अपनी माता और कर्मचारियों हाकिमों और खोजों को संग लेकर बाबेल के राजा के पास गया और बाबेल के राजा ने अपने राज्य के आठवें वर्ष में उनको पकड़ लिया। 13 तब उसने यहोवा के भवन में और राजभवन में रखा हुआ पूरा धन वहाँ से निकाल लिया और सोने के जो पात्र इस्राएल के राजा सुलैमान ने बनाकर यहोवा के मन्दिर में रखे थे उन सभी को उसने टुकड़े-टुकड़े कर डाला जैसा कि यहोवा ने कहा था। 14 फिर वह पूरे यरूशलेम को अर्थात् सब हाकिमों और सब धनवानों को जो मिलकर दस हजार थे और सब कारीगरों और लोहारों को बन्दी बनाकर ले गया यहाँ तक कि साधारण लोगों में से कंगालों को छोड़ और कोई न रह गया। 15 वह यहोयाकीन को बाबेल में ले गया और उसकी माता और स्त्रियों और खोजों को और देश के बड़े लोगों को वह बन्दी बनाकर यरूशलेम से बाबेल को ले गया। 16 और सब धनवान जो सात हजार थे और कारीगर और लोहार जो मिलकर एक हजार थे और वे सब वीर और युद्ध के योग्य थे उन्हें बाबेल का राजा बन्दी बनाकर बाबेल को ले गया। 17 बाबेल के राजा ने उसके स्थान पर उसके चाचा मत्तन्याह को राजा नियुक्त किया और उसका नाम बदलकर सिदकिय्याह रखा। 18 जब सिदकिय्याह राज्य करने लगा तब वह इक्कीस वर्ष का था और यरूशलेम में ग्यारह वर्ष तक राज्य करता रहा; उसकी माता का नाम हमूतल था जो लिब्नावासी यिर्मयाह की बेटी थी। 19 उसने ठीक यहोयाकीम की लीक पर चलकर वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 20 क्योंकि यहोवा के कोप के कारण यरूशलेम और यहूदा की ऐसी दशा हुई, कि अन्त में उसने उनको अपने सामने से दूर किया।

यहूदा का पतन और गुलामी

25  1 सिदकिय्याह ने बाबेल के राजा से बलवा किया। उसके राज्य के नौवें वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन को बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने अपनी पूरी सेना लेकर यरूशलेम पर चढ़ाई की और उसको घेर लिया और उसके चारों ओर पटकोटा बनाए। 2 इस प्रकार नगर सिदकिय्याह राजा के राज्य के ग्यारहवें वर्ष तक घिरा हुआ रहा। 3 चौथे महीने के नौवें दिन से नगर में अकाल यहाँ तक बढ़ गई कि देश के लोगों के लिये कुछ खाने को न रहा। 4 तब नगर की शहरपनाह में दरार की गई और दोनों दीवारों के बीच जो फाटक राजा की बारी के निकट था उस मार्ग से सब योद्धा रात ही रात निकल भागे यद्यपि कसदी नगर को घेरे हुए थे राजा ने अराबा का मार्ग लिया। 5 तब कसदियों की सेना ने राजा का पीछा किया और उसको यरीहो के पास के मैदान में जा पकड़ा और उसकी पूरी सेना उसके पास से तितर-बितर हो गई। 6 तब वे राजा को पकड़कर रिबला में बाबेल के राजा के पास ले गए और उसे दण्ड की आज्ञा दी गई। 7 उन्होंने सिदकिय्याह के पुत्रों को उसके सामने घात किया और सिदकिय्याह की आँखें फोड़ डाली और उसे पीतल की बेड़ियों से जकड़कर बाबेल को ले गए। 8 बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के उन्नीसवें वर्ष के पाँचवें महीने के सातवें दिन को अंगरक्षकों का प्रधान नबूजरदान जो बाबेल के राजा का एक कर्मचारी था यरूशलेम में आया। 9 उसने यहोवा के भवन और राजभवन और यरूशलेम के सब घरों को अर्थात् हर एक बड़े घर को आग लगाकर फूँक दिया। 10 यरूशलेम के चारों ओर की शहरपनाह को कसदियों की पूरी सेना ने जो अंगरक्षकों के प्रधान के संग थी ढा दिया। 11 जो लोग नगर में रह गए थे और जो लोग बाबेल के राजा के पास भाग गए थे और साधारण लोग जो रह गए थे इन सभी को अंगरक्षकों का प्रधान नबूजरदान बन्दी बनाकर ले गया। 12 परन्तु अंगरक्षकों के प्रधान ने देश के कंगालों में से कितनों को दाख की बारियों की सेवा और काश्तकारी करने को छोड़ दिया। 13 यहोवा के भवन में जो पीतल के खम्भे थे और कुर्सियाँ और पीतल का हौद जो यहोवा के भवन में था इनको कसदी तोड़कर उनका पीतल बाबेल को ले गए। 14 हाँडियों फावड़ियों चिमटों धूपदानों और पीतल के सब पात्रों को भी जिनसे सेवा टहल होती थी वे ले गए। 15 करछे और कटोरियाँ जो सोने की थीं और जो कुछ चाँदी का था वह सब सोना चाँदी अंगरक्षकों का प्रधान ले गया। 16 दोनों खम्भे एक हौद और कुर्सियाँ जिसको सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिये बनाया था इन सब वस्तुओं का पीतल तौल से बाहर था। 17 एक-एक खम्भे की ऊँचाई अठारह-अठारह हाथ की थी और एक-एक खम्भे के ऊपर तीन-तीन हाथ ऊँची पीतल की एक-एक कँगनी थी और एक-एक कँगनी पर चारों ओर जो जाली और अनार बने थे वे सब पीतल के थे। 18 अंगरक्षकों के प्रधान ने सरायाह महायाजक और उसके नीचे के याजक सपन्याह और तीनों द्वारपालों को पकड़ लिया। 19 नगर में से उसने एक हाकिम को पकड़ा जो योद्धाओं के ऊपर था और जो पुरुष राजा के सम्मुख रहा करते थे उनमें से पाँच जन जो नगर में मिले और सेनापति का मुंशी जो लोगों को सेना में भरती किया करता था; और लोगों में से साठ पुरुष जो नगर में मिले। 20 इनको अंगरक्षकों का प्रधान नबूजरदान पकड़कर रिबला के राजा के पास ले गया। 21 तब बाबेल के राजा ने उन्हें हमात देश के रिबला में ऐसा मारा कि वे मर गए। अतः यहूदी बन्दी बनके अपने देश से निकाल दिए गए। 22 जो लोग यहूदा देश में रह गए जिनको बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने छोड़ दिया उन पर उसने अहीकाम के पुत्र गदल्याह को जो शापान का पोता था अधिकारी ठहराया। 23 जब दलों के सब प्रधानों ने अर्थात् नतन्याह के पुत्र इश्माएल कारेह के पुत्र योहानान नतोपाई तन्हूमेत के पुत्र सरायाह और किसी माकाई के पुत्र याजन्याह ने और उनके जनों ने यह सुना कि बाबेल के राजा ने गदल्याह को अधिकारी ठहराया है तब वे अपने-अपने जनों समेत मिस्पा में गदल्याह के पास आए। 24 गदल्याह ने उनसे और उनके जनों ने शपथ खाकर कहा कसदियों के सिपाहियों से न डरो देश में रहते हुए बाबेल के राजा के अधीन रहो तब तुम्हारा भला होगा। 25 परन्तु सातवें महीने में नतन्याह का पुत्र इश्माएल जो एलीशामा का पोता और राजवंश का था उसने दस जन संग ले गदल्याह के पास जाकर उसे ऐसा मारा कि वह मर गया और जो यहूदी और कसदी उसके संग मिस्पा में रहते थे उनको भी मार डाला। 26 तब क्या छोटे क्या बड़े सारी प्रजा के लोग और दलों के प्रधान कसदियों के डर के मारे उठकर मिस्र में जाकर रहने लगे। 27 फिर यहूदा के राजा यहोयाकीन की बँधुआई के तैंतीसवें वर्ष में अर्थात् जिस वर्ष बाबेल का राजा एवील्मरोदक राजगद्दी पर विराजमान हुआ उसी के बारहवें महीने के सताईसवें दिन को उसने यहूदा के राजा यहोयाकीन को बन्दीगृह से निकालकर बड़ा पद दिया। 28 उससे मधुर-मधुर वचन कहकर जो राजा उसके संग बाबेल में बन्धुए थे उनके सिंहासनों से उसके सिंहासन को अधिक ऊँचा किया 29 यहोयाकीन ने बन्दीगृह के वस्त्र बदल दिए और उसने जीवन भर नित्य राजा के सम्मुख भोजन किया। 30 और प्रतिदिन के खर्च के लिये राजा के यहाँ से नित्य का खर्च ठहराया गया जो उसके जीवन भर लगातार उसे मिलता रहा।