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यशायाह

लेखक

पुस्तक का नाम लेखक के नाम पर ही यशायाह की पुस्तक पड़ा है। उसका विवाह एक भविष्यद्वक्तिन से हुआ था जिससे उसके दो पुत्र थे (7:3; 8:3)। उसका सेवाकाल यहूदिया के चार राजाओं के राज्यकाल में रहा था- उजिय्याह, योतान, आहाज और हिजकिय्याह (1:1) और संभवत पांचवे राजा, दुष्ट मनश्शे के समय उसकी मृत्यु हुई थी।

लेखन तिथि एवं स्थान

लगभग 740-680 ई. पू.

यह पुस्तक राजा उजिय्याह के राज्यकाल के अन्त समय में लिखी गई थी और लेखन कार्य राजा योतान, आहाज और हिजकिय्याह के युगों में चलता रहा।

प्रापक

प्रमुख श्रोता यहूदिया की प्रजा थी जो परमेश्वर के नियमों के अनुसार जीवन जीने में चूक रही थी।

उद्देश्य

यशायाह की पुस्तक का उद्देश्य था कि संपूर्ण पुराने नियम में मसीह यीशु का व्यापक भविष्यद्वाणी गर्भित चित्रण प्रस्तुत करे। जिसमें उसके जीवन का संपूर्ण परिदृश्य, उसके आगमन की घोषणा (यशा. 4:3-5), उसका कुंवारी से जन्म (7:14), शुभ सन्देश की घोषणा (61:1), उसकी बलिदान की मृत्यु (52:13-53:2), और अपनों को लेने आना (60:2-3)।

भविष्यद्वक्ता यशायाह को मुख्यतः यहूदिया के राज्य में भविष्यद्वाणी का वचन सुनाने की बुलाहट थी। यहूदिया में जागृति के साथ-साथ विद्रोह भी था। यहूदिया को अश्शूरों और मिस्र का विनाशक संकट था परन्तु वह परमेश्वर की दया से बच गया था। यशायाह ने पाप से विमुख होने का तथा भविष्य में परमेश्वर के उद्धार की आशा का सन्देश दिया।

रूपरेखा

1. यहूदिया का अस्वीकरण (1:1-12:6)

2. अन्य जातियों का अस्वीकरण (13:1-23:18)

3. भावी क्लेश (24:1-27:13)

4. इस्राएल और यहूदिया का अस्वीकरण (28:1-35:10)

5. हिजकिय्याह और यशायाह का इतिहास (36:1-38:22)

6. बाबेल की पृष्ठभूमि (39:1-47:15)

6. परमेश्वर की शान्ति की योजना (48:1-66:24)

1  1 \zaln-s | x-strong="H0531" x-lemma="אָמוֹץ" x-morph="He,Np" x-occurrence="1" x-occurrences="1" x-content="אָמ֔וֹץ"\*आमोस\zaln-e\* पुत्र यशायाह का दर्शन, जिसको उसने यहूदा और यरूशलेम के विषय में उज्जियाह, योताम, आहाज, और हिजकिय्याह नामक यहूदा के राजाओं के दिनों में पाया।

यहूदा का बलवा

2 हे स्वर्ग सुन, और हे पृथ्वी कान लगा; क्योंकि यहोवा कहता है: “मैंने बाल बच्चों का पालन-पोषण किया, और उनको बढ़ाया भी, परन्तु उन्होंने मुझसे बलवा किया।

3 बैल[fn] * तो अपने मालिक को और गदहा अपने स्वामी की चरनी को पहचानता है, परन्तु इस्राएल मुझें नहीं जानता, मेरी प्रजा विचार नहीं करती।”

4 हाय, यह जाति पाप से कैसी भरी है! यह समाज अधर्म से कैसा लदा हुआ है! इस वंश के लोग कैसे कुकर्मी हैं, ये बाल-बच्चे कैसे बिगड़े हुए हैं! उन्होंने यहोवा को छोड़ दिया, उन्होंने इस्राएल के पवित्र को तुच्छ जाना है! वे पराए बनकर दूर हो गए हैं।

5 तुम बलवा कर-करके क्यों अधिक मार खाना चाहते हो? तुम्हारा सिर घावों से भर गया, और तुम्हारा हृदय दुःख से भरा है।

6 पाँव से सिर तक कहीं भी कुछ आरोग्यता नहीं, केवल चोट और कोड़े की मार के चिन्ह और सड़े हुए घाव हैं जो न दबाये गए, न बाँधे गए, न तेल लगाकर नरमाये गए हैं।

7 तुम्हारा देश उजड़ा पड़ा है, तुम्हारे नगर भस्म हो गए हैं; तुम्हारे खेतों को परदेशी लोग तुम्हारे देखते ही निगल रहे हैं; वह परदेशियों से नाश किए हुए देश के समान उजाड़ है।

8 और सिय्योन की बेटी दाख की बारी में की झोपड़ी के समान छोड़ दी गई है, या ककड़ी के खेत में के मचान या घिरे हुए नगर के समान अकेली खड़ी है।

9 यदि सेनाओं का यहोवा हमारे थोड़े से लोगों को न बचा रखता, तो हम सदोम के समान हो जाते, और गमोरा के समान ठहरते। (योए. 2:32, रोम. 9:29)

10 हे सदोम के न्यायियों, यहोवा का वचन सुनो! हे गमोरा की प्रजा, हमारे परमेश्वर की व्यवस्था पर कान लगा। (उत्प. 13:13, यहे. 16:49)

11 यहोवा यह कहता है, “तुम्हारे बहुत से मेलबलि मेरे किस काम के हैं? मैं तो मेढ़ों के होमबलियों से और पाले हुए पशुओं की चर्बी से अघा गया हूँ; मैं बछड़ों या भेड़ के बच्चों या बकरों के लहू से प्रसन्न नहीं होता।

12 “तुम जब अपने मुँह मुझे दिखाने के लिये आते हो, तब यह कौन चाहता है कि तुम मेरे आँगनों को पाँव से रौंदो?

13 व्यर्थ अन्नबलि फिर मत लाओ; धूप से मुझे घृणा है। नये चाँद और विश्रामदिन का मानना, और सभाओं का प्रचार करना, यह मुझे बुरा लगता है। महासभा के साथ ही साथ अनर्थ काम करना मुझसे सहा नहीं जाता।

14 तुम्हारे नये चाँदों और नियत पर्वों के मानने से मैं जी से बैर रखता हूँ; वे सब मुझे बोझ से जान पड़ते हैं, मैं उनको सहते-सहते थक गया हूँ।

15 जब तुम मेरी ओर हाथ फैलाओ, तब मैं तुम से मुख फेर लूँगा; तुम कितनी ही प्रार्थना क्यों न करो, तो भी मैं तुम्हारी न सुनूँगा; क्योंकि तुम्हारे हाथ खून से भरे हैं। (नीति. 1:28, मीका 3:4)

16 अपने को धोकर पवित्र करो: मेरी आँखों के सामने से अपने बुरे कामों को दूर करो; भविष्य में बुराई करना छोड़ दो, (1 पत. 2:1, याकू. 4:8)

17 भलाई करना सीखो; यत्न से न्याय करो, उपद्रवी को सुधारो; अनाथ का न्याय चुकाओ, विधवा का मुकद्दमा लड़ो।”

18 यहोवा कहता है, “ आओ[fn] *, हम आपस में वाद-विवाद करें: तुम्हारे पाप चाहे लाल रंग के हों, तो भी वे हिम के समान उजले हो जाएँगे; और चाहे अर्गवानी रंग के हों, तो भी वे ऊन के समान श्वेत हो जाएँगे।

19 यदि तुम आज्ञाकारी होकर मेरी मानो,

20 तो इस देश के उत्तम से उत्तम पदार्थ खाओगे; और यदि तुम न मानो और बलवा करो, तो तलवार से मारे जाओगे; यहोवा का यही वचन है।”

विश्वासघाती यरूशलेम

21 जो नगरी विश्वासयोग्य थी वह कैसे व्‍यभिचारिण हो गई! वह न्याय से भरी थी और उसमें धार्मिकता पाया जाता था, परन्तु अब उसमें हत्यारे ही पाए जाते हैं।

22 तेरी चाँदी धातु का मैल[fn] * हो गई, तेरे दाखमधु में पानी मिल गया है।

23 तेरे हाकिम हठीले और चोरों से मिले हैं। वे सब के सब घूस खानेवाले और भेंट के लालची हैं। वे अनाथ का न्याय नहीं करते, और न विधवा का मुकद्दमा अपने पास आने देते हैं।

24 इस कारण प्रभु सेनाओं के यहोवा, इस्राएल के शक्तिमान की यह वाणी है: “सुनो, मैं अपने शत्रुओं को दूर करके शान्ति पाऊँगा, और अपने बैरियों से बदला लूँगा।

25 मैं तुम पर हाथ बढ़ाकर तुम्हारा धातु का मैल पूरी रीति से भस्म करूँगा और तुम्हारी मिलावट पूरी रीति से दूर करूँगा।

26 मैं तुम में पहले के समान न्यायी और आदिकाल के समान मंत्री फिर नियुक्त करूँगा। उसके बाद तू धर्मपुरी और विश्वासयोग्य नगरी कहलाएगी।”

27 सिय्योन न्याय के द्वारा, और जो उसमें फिरेंगे वे धार्मिकता के द्वारा छुड़ा लिए जाएँगे।

28 परन्तु बलवाइयों और पापियों का एक संग नाश होगा, और जिन्होंने यहोवा को त्यागा है, उनका अन्त हो जाएगा।

29 क्योंकि जिन बांज वृक्षों[fn] * से तुम प्रीति रखते थे, उनसे वे लज्जित होंगे, और जिन बारियों से तुम प्रसन्न रहते थे, उनके कारण तुम्हारे मुँह काले होंगे।

30 क्योंकि तुम पत्ते मुरझाएँ हुए बांज वृक्ष के पत्ते, और बिना जल की बारी के समान हो जाओगे।

31 बलवान तो सन और उसका काम चिंगारी बनेगा, और दोनों एक साथ जलेंगे, और कोई बुझानेवाला न होगा।

शान्ति का शहर

2  1 आमोस के पुत्र यशायाह का वचन, जो उसने यहूदा और यरूशलेम के विषय में दर्शन में पाया।

2 अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊँचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा के समान उसकी ओर चलेंगे।

3 और बहुत देशों के लोग आएँगे, और आपस में कहेंगे: “आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएँ; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर चलेंगे।” क्योंकि यहोवा की व्यवस्था सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा। (जक. 8:20-23)

4 वह जाति-जाति का न्याय करेगा, और देश-देश के लोगों के झगड़ों को मिटाएगा; और वे अपनी तलवारें पीट कर हल के फाल और अपने भालों को हँसिया बनाएँगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे। (भज. 46:9, मीका 4:3)

अहंकार नष्ट किया जाएगा

5 हे याकूब के घराने, आ, हम यहोवा के प्रकाश में चलें[fn] *। (इफि. 5:8, 1 यूह. 1:7)

6 तूने अपनी प्रजा याकूब के घराने को त्याग दिया है, क्योंकि वे पूर्वजों के व्यवहार पर तन मन से चलते और पलिश्तियों के समान टोना करते हैं, और परदेशियों के साथ हाथ मिलाते हैं।

7 उनका देश चाँदी और सोने से भरपूर है[fn] *, और उनके रखे हुए धन की सीमा नहीं; उनका देश घोड़ों से भरपूर है, और उनके रथ अनगिनत हैं।

8 उनका देश मूरतों से भरा है; वे अपने हाथों की बनाई हुई वस्तुओं को जिन्हें उन्होंने अपनी उँगलियों से संवारा है, दण्डवत् करते हैं।

9 इससे मनुष्य झुकते, और बड़े मनुष्य नीचे किए गए है, इस कारण उनको क्षमा न कर!

10 यहोवा के भय के कारण और उसके प्रताप के मारे चट्टान में घुस जा, और मिट्टी में छिप जा। (प्रका. 6:15, लूका 23:30)

11 क्योंकि आदमियों की घमण्ड भरी आँखें नीची की जाएँगी और मनुष्यों का घमण्ड दूर किया जाएगा; और उस दिन केवल यहोवा ही ऊँचे पर विराजमान रहेगा। (2 थिस्स. 1:9)

12 क्योंकि सेनाओं के यहोवा का दिन सब घमण्डियों और ऊँची गर्दनवालों पर और उन्नति से फूलनेवालों पर आएगा; और वे झुकाए जाएँगे;

13 और लबानोन के सब देवदारों पर जो ऊँचे और बड़े हैं;

14 बाशान के सब बांज वृक्षों पर; और सब ऊँचे पहाड़ों और सब ऊँची पहाड़ियों पर;

15 सब ऊँचे गुम्मटों और सब दृढ़ शहरपनाहों पर;

16 तर्शीश के सब जहाजों और सब सुन्दर चित्रकारी पर वह दिन आता है।

17 मनुष्य का गर्व मिटाया जाएगा, और मनुष्यों का घमण्ड नीचा किया जाएगा; और उस दिन केवल यहोवा ही ऊँचे पर विराजमान रहेगा।

18 मूरतें सब की सब नष्ट हो जाएँगी।

19 जब यहोवा पृथ्वी को कम्पित करने के लिये उठेगा, तब उसके भय के कारण और उसके प्रताप के मारे लोग चट्टानों की गुफाओं और भूमि के बिलों में जा घुसेंगे।

20 उस दिन लोग अपनी चाँदी-सोने की मूरतों को जिन्हें उन्होंने दण्डवत् करने के लिये बनाया था, छछून्दरों और चमगादड़ों के आगे फेकेंगे,

21 और जब यहोवा पृथ्वी को कम्पित करने के लिये उठेगा तब वे उसके भय के कारण और उसके प्रताप के मारे चट्टानों की दरारों और पहाड़ियों के छेदों में घुसेंगे।

22 इसलिए तुम मनुष्य से परे रहो जिसकी श्वास उसके नथनों में है[fn] *, क्योंकि उसका मूल्य है ही क्या?

यहूदा और यरूशलेम पर न्याय

3  1 सुनों, प्रभु सेनाओं का यहोवा यरूशलेम और यहूदा का सब प्रकार का सहारा और सिरहाना अर्थात् अन्न का सारा आधार, और जल का सारा आधार दूर कर देगा;

2 और वीर और योद्धा को, न्यायी और नबी को, भावी वक्ता और वृद्ध को, पचास सिपाहियों के सरदार और प्रतिष्ठित पुरुष को,

3 मंत्री और चतुर कारीगर को, और निपुण टोन्हे को भी दूर कर देगा।

4 मैं लड़कों को उनके हाकिम कर दूँगा, और बच्चे उन पर प्रभुता करेंगे।

5 प्रजा के लोग आपस में एक दूसरे पर, और हर एक अपने पड़ोसी पर अंधेर करेंगे; और जवान वृद्ध जनों से और नीच जन माननीय लोगों से असभ्यता का व्यवहार करेंगे।

6 उस समय जब कोई पुरुष अपने पिता के घर में अपने भाई को पकड़कर कहेगा, “तेरे पास तो वस्त्र है, आ हमारा न्यायी हो जा और इस उजड़े देश को अपने वश में कर ले;”

7 तब वह शपथ खाकर कहेगा, “मैं चंगा करनेवाला न होऊँगा; क्योंकि मेरे घर में न तो रोटी है और न कपड़े; इसलिए तुम मुझे प्रजा का न्यायी नहीं नियुक्त कर सकोगे।”

8 यरूशलेम तो डगमगाया और यहूदा गिर गया है; क्योंकि उनके वचन और उनके काम यहोवा के विरुद्ध हैं, जो उसकी तेजोमय आँखों के सामने बलवा करनेवाले ठहरे हैं।

9 उनका चेहरा भी उनके विरुद्ध साक्षी देता है; वे सदोमियों के समान अपने पाप को आप ही बखानते और नहीं छिपाते हैं। उन पर हाय! क्योंकि उन्होंने अपनी हानि आप ही की है।

10 धर्मियों से कहो कि उनका भला होगा, क्योंकि वे अपने कामों का फल प्राप्त करेंगे।

11 दुष्ट पर हाथ! उसका बुरा होगा, क्योंकि उसके कामों का फल उसको मिलेगा।

12 मेरी प्रजा पर बच्चे अंधेर करते और स्त्रियाँ उन पर प्रभुता करती हैं। हे मेरी प्रजा, तेरे अगुवे तुझे भटकाते हैं, और तेरे चलने का मार्ग भुला देते हैं।

अन्याय की निन्दा

13 यहोवा देश-देश के लोगों से मुकद्दमा लड़ने और उनका न्याय करने के लिये खड़ा है[fn] *।

14 यहोवा अपनी प्रजा के वृद्ध और हाकिमों के साथ यह विवाद करता है, “तुम ही ने बारी की दाख खा डाली है, और दीन लोगों का धन लूटकर तुमने अपने घरों में रखा है।”

15 सेनाओं के प्रभु यहोवा की यह वाणी है, “तुम क्यों मेरी प्रजा को दलते, और दीन लोगों को पीस डालते हो!”

सिय्योन की अभिमानी स्त्री

16 यहोवा ने यह भी कहा है, “क्योंकि सिय्योन की स्त्रियाँ घमण्ड करती और सिर ऊँचे किये आँखें मटकातीं और घुँघरूओं को छमछमाती हुई ठुमुक-ठुमुक चलती हैं,

17 इसलिए प्रभु यहोवा उनके सिर को गंजा करेगा, और उनके तन को उघरवाएगा।”

18 उस समय प्रभु घुँघरूओं, जालियों,

19 चँद्रहारों, झुमकों, कड़ों, घूँघटों,

20 पगड़ियों, पैकरियों, पटुकों, सुगन्धपात्रों, गण्डों,

21 अँगूठियों, नथों,

22 सुन्दर वस्त्रों, कुर्तियों, चद्दरों, बटुओं,

23 दर्पणों, मलमल के वस्त्रों, बुन्दियों, दुपट्टों इन सभी की शोभा को दूर करेगा।

24 सुगन्ध के बदले सड़ाहट, सुन्दर करधनी के बदले बन्धन की रस्सी, गूँथे हुए बालों के बदले गंजापन, सुन्दर पटुके के बदले टाट की पेटी, और सुन्दरता के बदले दाग होंगे।

25 तेरे पुरुष तलवार से, और शूरवीर युद्ध में मारे जाएँगे।

26 और उसके फाटकों[fn] * में साँस भरना और विलाप करना होगा; और वह भूमि पर अकेली बैठी रहेगी।

सिय्योन का नवीकरण

4  1 उस समय सात स्त्रियाँ एक पुरुष को पकड़कर कहेंगी, “रोटी तो हम अपनी ही खाएँगी, और वस्त्र अपने ही पहनेंगी, केवल हम तेरी कहलाएँ; हमारी नामधराई दूर कर।”

2 उस समय इस्राएल के बचे हुओं के लिये यहोवा की डाली, भूषण और महिमा ठहरेगी, और भूमि की उपज, बड़ाई और शोभा ठहरेगी। (यिर्म. 23:5, यशा. 27:6, यूह. 1:14)

3 और जो कोई सिय्योन में बचा रहे, और यरूशलेम में रहे, अर्थात् यरूशलेम में जितनों के नाम जीवनपत्र में लिखे हों, वे पवित्र कहलाएँगे। (प्रका. 17:8, प्रका. 20:15)

4 यह तब होगा, जब प्रभु न्याय करनेवाली और भस्म करनेवाली आत्मा के द्वारा सिय्योन की स्त्रियों के मल को धो चुकेगा और यरूशलेम के खून को दूर कर चुकेगा।

5 तब यहोवा सिय्योन पर्वत के एक-एक घर के ऊपर, और उसके सभास्थानों के ऊपर, दिन को तो धुएँ का बादल, और रात को धधकती आग का प्रकाश सिरजेगा[fn] *, और समस्त वैभव के ऊपर एक मण्डप छाया रहेगा।

6 वह दिन को धूप से बचाने के लिये और आँधी-पानी और झड़ी में एक शरण और आड़ होगा।

निकम्मी दाख की बारी

5  1 अब मैं अपने प्रिय के लिये और उसकी दाख की बारी के विषय में गीत गाऊँगा: एक अति उपजाऊ टीले पर मेरे प्रिय की एक दाख की बारी थी।

2 उसने उसकी मिट्टी खोदी और उसके पत्थर बीनकर उसमें उत्तम जाति की एक दाखलता लगाई; उसके बीच में उसने एक गुम्मट बनाया, और दाखरस के लिये एक कुण्ड भी खोदा; तब उसने दाख की आशा की, परन्तु उसमें निकम्मी दाखें ही लगीं।

3 अब हे यरूशलेम के निवासियों और हे यहूदा के मनुष्यों, मेरे और मेरी दाख की बारी के बीच न्याय करो।

4 मेरी दाख की बारी के लिये और क्या करना रह गया जो मैंने उसके लिये न किया हो? फिर क्या कारण है कि जब मैंने दाख की आशा की तब उसमें निकम्मी दाखें लगीं?

5 अब मैं तुम को बताता हूँ कि अपनी दाख की बारी से क्या करूँगा। मैं उसके काँटेवाले बाड़े को उखाड़ दूँगा कि वह चट की जाए, और उसकी दीवार को ढा दूँगा कि वह रौंदी जाए।

6 मैं उसे उजाड़ दूँगा; वह न तो फिर छाँटी और न खोदी जाएगी और उसमें भाँति-भाँति के कटीले पेड़ उगेंगे; मैं मेघों को भी आज्ञा दूँगा कि उस पर जल न बरसाएँ।

7 क्योंकि सेनाओं के यहोवा की दाख की बारी[fn] * इस्राएल का घराना, और उसका मनभाऊ पौधा यहूदा के लोग है; और उसने उनमें न्याय की आशा की परन्तु अन्याय देख पड़ा; उसने धार्मिकता की आशा की, परन्तु उसे चिल्लाहट ही सुन पड़ी! (भज. 80:8, मत्ती 3:8-10)

यहूदा के पापों की निन्दा

8 हाय उन पर जो घर से घर, और खेत से खेत यहाँ तक मिलाते जाते हैं कि कुछ स्थान नहीं बचता, कि तुम देश के बीच अकेले रह जाओ।

9 सेनाओं के यहोवा ने मेरे सुनते कहा है: “निश्चय बहुत से घर सुनसान हो जाएँगे, और बड़े-बड़े और सुन्दर घर निर्जन हो जाएँगे। (आमो. 6:11, मत्ती 26:38)

10 क्योंकि दस बीघे की दाख की बारी से एक ही बत दाखमधु मिलेगा, और होमेर भर के बीच से एक ही एपा अन्न उत्पन्न होगा।”

11 हाय उन पर जो बड़े तड़के उठकर मदिरा पीने लगते हैं और बड़ी रात तक दाखमधु पीते रहते हैं जब तक उनको गर्मी न चढ़ जाए!

12 उनके भोजों में वीणा, सारंगी, डफ, बाँसुरी और दाखमधु, ये सब पाये जाते हैं; परन्तु वे यहोवा के कार्य की ओर दृष्टि नहीं करते, और उसके हाथों के काम को नहीं देखते।

13 इसलिए अज्ञानता के कारण मेरी प्रजा बँधुवाई में जाती है, उसके प्रतिष्ठित पुरुष भूखें मरते और साधारण लोग प्यास से व्याकुल होते हैं।

14 इसलिए अधोलोक ने अत्यन्त लालसा करके अपना मुँह हद से ज्यादा पसारा है, और उनका वैभव और भीड़-भाड़ और आनन्द करनेवाले सबके सब उसके मुँह में जा पड़ते हैं।

15 साधारण मनुष्य दबाए जाते और बड़े मनुष्य नीचे किए जाते हैं, और अभिमानियों की आँखें नीची की जाती हैं।

16 परन्तु सेनाओं का यहोवा न्याय करने के कारण महान ठहरता, और पवित्र परमेश्वर धर्मी होने के कारण पवित्र ठहरता है!

17 तब भेड़ों के बच्चे मानो अपने खेत में चरेंगे, परन्तु हष्टपुष्टों के उजड़े स्थान परदेशियों को चराई के लिये मिलेंगे।

18 हाय उन पर जो अधर्म को अनर्थ की रस्सियों से और पाप को मानो गाड़ी के रस्से से खींच ले आते हैं,

19 जो कहते हैं, “वह फुर्ती करे और अपने काम को शीघ्र करे कि हम उसको देखें; और इस्राएल के पवित्र की युक्ति प्रगट हो, वह निकट आए कि हम उसको समझें!”

20 हाय उन पर जो बुरे को भला और भले को बुरा कहते, जो अंधियारे को उजियाला और उजियाले को अंधियारा ठहराते, और कड़वे को मीठा और मीठे को कड़वा करके मानते हैं!

21 हाय उन पर जो अपनी दृष्टि में ज्ञानी और अपने लेखे बुद्धिमान हैं! (नीति. 3:7, 26:12, रोम. 12:16)

22 हाय उन पर जो दाखमधु पीने में वीर और मदिरा को तेज बनाने में बहादुर हैं,

23 जो घूस लेकर दुष्टों को निर्दोष, और निर्दोषों को दोषी ठहराते हैं!

24 इस कारण जैसे अग्नि की लौ से खूँटी भस्म होती है और सूखी घास जलकर बैठ जाती है, वैसे ही उनकी जड़ सड़ जाएगी और उनके फूल धूल होकर उड़ जाएँगे; क्योंकि उन्होंने सेनाओं के यहोवा की व्यवस्था को निकम्मी जाना, और इस्राएल के पवित्र के वचन को तुच्छ जाना है।

25 इस कारण यहोवा का क्रोध अपनी प्रजा पर भड़का है, और उसने उनके विरुद्ध हाथ बढ़ाकर उनको मारा है, और पहाड़ काँप उठे; और लोगों की लोथें सड़कों के बीच कूड़ा सी पड़ी हैं। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।

26 वह दूर-दूर की जातियों के लिये झण्डा खड़ा करेगा, और सींटी बजाकर उनको पृथ्वी की छोर से बुलाएगा; देखो, वे फुर्ती करके वेग से आएँगे!

27 उनमें कोई थका नहीं न कोई ठोकर खाता है; कोई उँघने या सोनेवाला नहीं, किसी का फेंटा नहीं खुला, और किसी के जूतों का बन्धन नहीं टूटा;

28 उनके तीर शुद्ध और धनुष चढ़ाए हुए हैं, उनके घोड़ों के खुर वज्र के-से और रथों के पहिये बवण्डर सरीखे हैं[fn] *।

29 वे सिंह या जवान सिंह के समान गरजते हैं; वे गुर्राकर अहेर को पकड़ लेते और उसको ले भागते हैं, और कोई उसे उनसे नहीं छुड़ा सकता।

30 उस समय वे उन पर समुद्र के गर्जन के समान गरजेंगे और यदि कोई देश की ओर देखे, तो उसे अंधकार और संकट देख पड़ेगा और ज्योति मेघों से छिप जाएगी।

यशायाह की बुलाहट

6  1 जिस वर्ष उज्जियाह राजा मरा, मैंने प्रभु को बहुत ही ऊँचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया। (प्रका. 4:2, 6, मत्ती 25:3, प्रका. 7:10)

2 उससे ऊँचे पर साराप दिखाई दिए; उनके छः-छः पंख थे; दो पंखों से वे अपने मुँह को ढाँपे थे[fn] * और दो से अपने पाँवों को, और दो से उड़ रहे थे।

3 और वे एक दूसरे से पुकार-पुकारकर कह रहे थे: “सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है; सारी पृथ्वी उसके तेज से भरपूर है।” (प्रका. 4:8, प्रका. 15:8)

4 और पुकारनेवाले के शब्द से डेवढ़ियों की नींवें डोल उठी, और भवन धुएँ से भर गया।

5 तब मैंने कहा, “हाय! हाय! मैं नाश हुआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठवाला मनुष्य हूँ, और अशुद्ध होंठवाले मनुष्यों के बीच में रहता हूँ; क्योंकि मैंने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आँखों से देखा है!”

6 तब एक साराप हाथ में अंगारा लिए हुए, जिसे उसने चिमटे से वेदी पर से उठा लिया था, मेरे पास उड़कर आया।

7 उसने उससे मेरे मुँह को छूकर कहा, “देख, इसने तेरे होंठों को छू लिया है, इसलिए तेरा अधर्म दूर हो गया और तेरे पाप क्षमा हो गए।”

8 तब मैंने प्रभु का यह वचन सुना, “मैं किस को भेजूँ, और हमारी ओर से कौन जाएगा?” तब मैंने कहा, “मैं यहाँ हूँ! मुझे भेज।”

9 उसने कहा, “जा, और इन लोगों से कह, ‘सुनते ही रहो, परन्तु न समझो; देखते ही रहो, परन्तु न बूझो।’

10 तू इन लोगों के मन को मोटे[fn] * और उनके कानों को भारी कर, और उनकी आँखों को बन्द कर; ऐसा न हो कि वे आँखों से देखें, और कानों से सुनें, और मन से बूझें, और मन फिराएँ और चंगे हो जाएँ।” (मत्ती 13:15, यूह. 12:40, प्रेरि. 28:26, 27, रोम. 11:8)

11 तब मैंने कहा, “हे प्रभु कब तक?” उसने कहा, “जब तक नगर न उजड़े और उनमें कोई रह न जाए, और घरों में कोई मनुष्य न रह जाए, और देश उजाड़ और सुनसान हो जाए,

12 और यहोवा मनुष्यों को उसमें से दूर कर दे, और देश के बहुत से स्थान निर्जन हो जाएँ।

13 चाहे उसके निवासियों का दसवाँ अंश भी रह जाए, तो भी वह नाश किया जाएगा, परन्तु जैसे छोटे या बड़े बांज वृक्ष को काट डालने पर भी उसका ठूँठ बना रहता है, वैसे ही पवित्र वंश उसका ठूँठ ठहरेगा।”

राजा आहाज के लिए सन्देश

7  1 यहूदा का राजा आहाज जो योताम का पुत्र और उज्जियाह का पोता था, उसके दिनों में अराम के राजा रसीन और इस्राएल के राजा रमल्याह के पुत्र पेकह ने यरूशलेम से लड़ने के लिये चढ़ाई की, परन्तु युद्ध करके उनसे कुछ न बन पड़ा।

2 जब दाऊद के घराने को यह समाचार मिला कि अरामियों ने एप्रैमियों से संधि की है, तब उसका और प्रजा का भी मन ऐसा काँप उठा जैसे वन के वृक्ष वायु चलने से काँप जाते हैं।

3 तब यहोवा ने यशायाह से कहा, “अपने पुत्र शार्याशूब[fn] * को लेकर धोबियों के खेत की सड़क से ऊपरवाले जलकुण्ड की नाली के सिरे पर आहाज से भेंट करने के लिये जा,

4 और उससे कह, ‘सावधान और शान्त हो; और उन दोनों धुआँ निकलती लुकटियों से अर्थात् रसीन और अरामियों के भड़के हुए कोप से, और रमल्याह के पुत्र से मत डर, और न तेरा मन कच्चा हो।

5 क्योंकि अरामियों और रमल्याह के पुत्र समेत एप्रैमियों ने यह कहकर तेरे विरुद्ध बुरी युक्ति ठानी है कि आओ,

6 हम यहूदा पर चढ़ाई करके उसको घबरा दें, और उसको अपने वश में लाकर ताबेल के पुत्र को राजा नियुक्त कर दें।

7 इसलिए प्रभु यहोवा ने यह कहा है कि यह युक्ति न तो सफल होगी और न पूरी।

8 क्योंकि अराम का सिर दमिश्क, और दमिश्क का सिर रसीन है। फिर एप्रैम का सिर सामरिया और सामरिया का सिर रमल्याह का पुत्र है।

9 पैंसठ वर्ष के भीतर एप्रैम का बल इतना टूट जाएगा कि वह जाति बनी न रहेगी। यदि तुम लोग इस बात पर विश्वास न करो; तो निश्चय तुम स्थिर न रहोगे।’”

इम्मानुएल का चिन्ह

10 फिर यहोवा ने आहाज से कहा,

11 “अपने परमेश्वर यहोवा से कोई चिन्ह माँग; चाहे वह गहरे स्थान का हो, या ऊपर आसमान का हो।”

12 आहाज ने कहा, “मैं नहीं माँगने का, और मैं यहोवा की परीक्षा नहीं करूँगा।”

13 तब उसने कहा, “हे दाऊद के घराने सुनो! क्या तुम मनुष्यों को थका देना छोटी बात समझकर अब मेरे परमेश्वर को भी थका दोगे[fn] *?

14 इस कारण प्रभु आप ही तुम को एक चिन्ह देगा। सुनो, एक कुमारी गर्भवती होगी और पुत्र जनेगी, और उसका नाम इम्मानुएल[fn] * रखेगी। (मत्ती 1:23, लूका 1:31)

15 और जब तक वह बुरे को त्यागना और भले को ग्रहण करना न जाने तब तक वह मक्खन और मधु खाएगा।

16 क्योंकि उससे पहले कि वह लड़का बुरे को त्यागना और भले को ग्रहण करना जाने, वह देश जिसके दोनों राजाओं से तू घबरा रहा है निर्जन हो जाएगा।

17 यहोवा तुझ पर, तेरी प्रजा पर और तेरे पिता के घराने पर ऐसे दिनों को ले आएगा कि जब से एप्रैम यहूदा से अलग हो गया, तब से वैसे दिन कभी नहीं आए - अर्थात् अश्शूर के राजा के दिन।”

18 उस समय यहोवा उन मक्खियों को जो मिस्र की नदियों के सिरों पर रहती हैं, और उन मधुमक्खियों को जो अश्शूर देश में रहती हैं, सीटी बजाकर बुलाएगा।

19 और वे सब की सब आकर इस देश के पहाड़ी नालों में, और चट्टानों की दरारों में, और सब कँटीली झाड़ियों और सब चराइयों पर बैठ जाएँगी।

20 उसी समय प्रभु फरात के पारवाले अश्शूर के राजा रूपी भाड़े के उस्तरे से सिर और पाँवों के रोएँ मूँड़ेगा, उससे दाढ़ी भी पूरी मुँड़ जाएगी।

21 उस समय ऐसा होगा कि मनुष्य केवल एक बछिया और दो भेड़ों को पालेगा;

22 और वे इतना दूध देंगी कि वह मक्खन खाया करेगा; क्योंकि जितने इस देश में रह जाएँगे वह सब मक्खन और मधु खाया करेंगे।

23 उस समय जिन-जिन स्थानों में हजार टुकड़े चाँदी की हजार दाखलताएँ हैं, उन सब स्थानों में कटीले ही कटीले पेड़ होंगे।

24 तीर और धनुष लेकर लोग वहाँ जाया करेंगे, क्योंकि सारे देश में कटीले पेड़ हो जाएँगे;

25 और जितने पहाड़ कुदाल से खोदे जाते हैं, उन सभी पर कटीले पेड़ों के डर के मारे कोई न जाएगा, वे गाय-बैलों के चरने के, और भेड़-बकरियों के रौंदने के लिये होंगे।

यशायाह का पुत्र : लोगों के लिये चिह्न

8  1 फिर यहोवा ने मुझसे कहा, “एक बड़ी पटिया लेकर उस पर साधारण अक्षरों से यह लिख: महेर्शालाल्हाशबज[fn] * के लिये।”

2 और मैं विश्वासयोग्य पुरुषों को अर्थात् ऊरिय्याह याजक और जेबेरेक्याह के पुत्र जकर्याह को इस बात की साक्षी करूँगा।

3 मैं अपनी पत्नी के पास गया, और वह गर्भवती हुई और उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। तब यहोवा ने मुझसे कहा, “उसका नाम महेर्शालाल्हाशबज रख;

4 क्योंकि इससे पहले कि वह लड़का बापू और माँ पुकारना जाने, दमिश्क और सामरिया दोनों की धन-सम्पत्ति लूटकर अश्शूर का राजा अपने देश को भेजेगा।”

अश्शूर के राजा का आगमन

5 यहोवा ने फिर मुझसे कहा,

6 “इसलिए कि लोग शीलोह के धीरे-धीरे बहनेवाले सोते को निकम्मा जानते हैं, और रसीन और रमल्याह के पुत्र के संग एका करके आनन्द करते हैं,

7 इस कारण सुन, प्रभु उन पर उस प्रबल और गहरे महानद को, अर्थात् अश्शूर के राजा को उसके सारे प्रताप के साथ चढ़ा लाएगा; और वह उनके सब नालों को भर देगा और सारे तटों से छलककर बहेगा;

8 और वह यहूदा पर भी चढ़ आएगा, और बढ़ते-बढ़ते उस पर चढ़ेगा और गले तक पहुँचेगा; और हे इम्मानुएल, तेरा समस्त देश उसके पंखों के फैलने से ढँप जाएगा।” (मत्ती 1:23)

9 हे लोगों, हल्ला करो तो करो, परन्तु तुम्हारा सत्यानाश हो जाएगा। हे पृथ्वी के दूर-दूर देश के सब लोगों कान लगाकर सुनो, अपनी-अपनी कमर कसो तो कसो, परन्तु तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े किए जाएँगे; अपनी कमर कसो तो कसो, परन्तु तुम्हारा सत्यानाश हो जाएगा।

10 तुम युक्ति करो तो करो, परन्तु वह निष्फल हो जाएगी, तुम कुछ भी कहो, परन्तु तुम्हारा कहा हुआ ठहरेगा नहीं, क्योंकि परमेश्वर हमारे संग है। (रोम. 8:31, नीति. 31:30)

परमेश्वर की चेतावनी

11 क्योंकि यहोवा दृढ़ता के साथ मुझसे बोला और इन लोगों की-सी चाल-चलने को मुझे मना किया,

12 और कहा, “जिस बात को यह लोग राजद्रोह कहें, उसको तुम राजद्रोह न कहना, और जिस बात से वे डरते हैं उससे तुम न डरना और न भय खाना।

13 सेनाओं के यहोवा ही को पवित्र जानना; उसी का डर मानना, और उसी का भय रखना। (प्रका. 15:4, लूका 12:5)

14 और वह शरणस्थान होगा[fn] *, परन्तु इस्राएल के दोनों घरानों के लिये ठोकर का पत्थर और ठेस की चट्टान, और यरूशलेम के निवासियों के लिये फंदा और जाल होगा। (रोम. 9:32, 33)

15 और बहुत से लोग ठोकर खाएँगे; वे गिरेंगे और चकनाचूर होंगे; वे फंदे में फसेंगे और पकड़े जाएँगे।” (मत्ती 21:44)

मुर्दों से पूछने के विरुद्ध चेतावनी

16 चितौनी का पत्र बन्द कर दो, मेरे चेलों के बीच शिक्षा पर छाप लगा दो।

17 मैं उस यहोवा की बाट जोहता रहूँगा जो अपने मुख को याकूब के घराने से छिपाये है, और मैं उसी पर आशा लगाए रहूँगा। (मीका 3:4, भज. 27:14)

18 देख, मैं और जो लड़के यहोवा ने मुझे सौंपे हैं, उसी सेनाओं के यहोवा की ओर से जो सिय्योन पर्वत पर निवास किए रहता है इस्राएलियों के लिये चिन्ह और चमत्कार हैं। (इब्रा. 2:13)

19 जब लोग तुम से कहें, “ओझाओं और टोन्हों के पास जाकर पूछो जो गुनगुनाते और फुसफुसाते हैं,” तब तुम यह कहना, “क्या प्रजा को अपने परमेश्वर ही के पास जाकर न पूछना चाहिये? क्या जीवितों के लिये मुर्दों से पूछना चाहिये?” (लैव्य. 20:6, 19:31)

20 व्यवस्था और चितौनी ही की चर्चा किया करो! यदि वे लोग इस वचनों के अनुसार न बोलें तो निश्चय उनके लिये पौ न फटेगी।

संकट का समय

21 वे इस देश में क्लेशित और भूखे फिरते रहेंगे; और जब वे भूखे होंगे, तब वे क्रोध में आकर अपने राजा और अपने परमेश्वर को श्राप देंगे, और अपना मुख ऊपर आकाश की ओर उठाएँगे[fn] *;

22 तब वे पृथ्वी की ओर दृष्टि करेंगे परन्तु उन्हें सकेती और अंधियारा अर्थात् संकट भरा अंधकार ही देख पड़ेगा; और वे घोर अंधकार में ढकेल दिए जाएँगे। (सप. 1:14, 15)

शान्ति के राजकुमार का जन्म

9  1 तो भी संकट-भरा अंधकार जाता रहेगा। पहले तो उसने जबूलून और नप्ताली के देशों का अपमान किया, परन्तु अन्तिम दिनों में ताल की ओर यरदन के पार की अन्यजातियों के गलील को महिमा देगा।

2 जो लोग अंधियारे में चल रहे थे[fn] * उन्होंने बड़ा उजियाला देखा; और जो लोग घोर अंधकार से भरे हुए मृत्यु के देश में रहते थे, उन पर ज्योति चमकी। (मत्ती 4:15, 16, लूका 1:79)

3 तूने जाति को बढ़ाया, तूने उसको बहुत आनन्द दिया; वे तेरे सामने कटनी के समय का सा आनन्द करते हैं, और ऐसे मगन हैं जैसे लोग लूट बाँटने के समय मगन रहते हैं।

4 क्योंकि तूने उसकी गर्दन पर के भारी जूए और उसके बहँगे के बाँस, उस पर अंधेर करनेवाले की लाठी, इन सभी को ऐसा तोड़ दिया है जैसे मिद्यानियों के दिन में किया था।

5 क्योंकि युद्ध में लड़नेवाले सिपाहियों के जूते और लहू में लथड़े हुए कपड़े सब आग का कौर हो जाएँगे।

6 क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके काँधे पर होगी[fn] *, और उसका नाम अद्भुत युक्ति करनेवाला पराक्रमी परमेश्वर, अनन्तकाल का पिता, और शान्ति का राजकुमार रखा जाएगा। (यूह. 1:45, इफि. 2:14)

7 उसकी प्रभुता सर्वदा बढ़ती रहेगी, और उसकी शान्ति का अन्त न होगा, इसलिए वह उसको दाऊद की राजगद्दी पर इस समय से लेकर सर्वदा के लिये न्याय और धर्म के द्वारा स्थिर किए ओर सम्भाले रहेगा। सेनाओं के और यहोवा की धुन के द्वारा यह हो जाएगा। (लूका 1:32, 33, यिर्म. 23:5)

इस्राएल के प्रति परमेश्वर का क्रोध

8 प्रभु ने याकूब के पास एक सन्देश भेजा है, और वह इस्राएल पर प्रगट हुआ है;

9 और सारी प्रजा को, एप्रैमियों और सामरिया के वासियों को मालूम हो जाएगा जो गर्व और कठोरता से बोलते हैं

10 “ईटें तो गिर गई हैं, परन्तु हम गढ़े हुए पत्थरों से घर बनाएँगे; गूलर के वृक्ष तो कट गए हैं परन्तु हम उनके बदले देवदारों से काम लेंगे।”

11 इस कारण यहोवा उन पर रसीन के बैरियों को प्रबल करेगा,

12 और उनके शत्रुओं को अर्थात् पहले अराम को और तब पलिश्तियों को उभारेगा, और वे मुँह खोलकर इस्राएलियों को निगल लेंगे। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।

13 तो भी ये लोग अपने मारनेवाले की ओर नहीं फिरे और न सेनाओं के यहोवा की खोज करते हैं।

14 इस कारण यहोवा इस्राएल में से सिर और पूँछ को, खजूर की डालियों और सरकण्डे को, एक ही दिन में काट डालेगा।

15 पुरनिया और प्रतिष्ठित पुरुष तो सिर हैं, और झूठी बातें सिखानेवाला नबी पूँछ है;

16 क्योंकि जो इन लोगों की अगुआई करते हैं वे इनको भटका देते हैं, और जिनकी अगुआई होती है वे नाश हो जाते हैं।

17 इस कारण प्रभु न तो इनके जवानों से प्रसन्न होगा, और न इनके अनाथ बालकों और विधवाओं पर दया करेगा; क्योंकि हर एक भक्तिहीन और कुकर्मी है, और हर एक के मुख से मूर्खता की बातें निकलती हैं। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।

18 क्योंकि दुष्टता आग के समान धधकती है, वह ऊँटकटारों और काँटों को भस्म करती है, वरन् वह घने वन की झाड़ियों में आग लगाती है और वह धुएँ में चकरा-चकराकर ऊपर की ओर उठती है।

19 सेनाओं के यहोवा के रोष के मारे यह देश जलाया गया है, और ये लोग आग की ईंधन के समान हैं; वे आपस में एक-दूसरे से दया का व्यवहार नहीं करते।

20 वे दाहिनी ओर से भोजनवस्तु छीनकर भी भूखे रहते, और बायीं ओर से खाकर भी तृप्त नहीं होते; उनमें से प्रत्येक मनुष्य अपनी-अपनी बाँहों का माँस खाता है,

21 मनश्शे एप्रैम के और एप्रैम मनश्शे के विरुद्ध होकर, और वे दोनों मिलकर यहूदा के विरुद्ध हैं इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ, और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।

10  1 हाय उन पर जो दुष्टता से न्याय करते, और उन पर जो उत्पात करने की आज्ञा लिख देते हैं,

2 कि वे कंगालों का न्याय बिगाड़ें और मेरी प्रजा के दीन लोगों का हक़ मारें, कि वे विधवाओं को लूटें और अनाथों का माल अपना लें!

3 तुम दण्ड के दिन और उस विपत्ति के दिन जो दूर से आएगी क्या करोगे? तुम सहायता के लिये किसके पास भाग कर जाओगे? तुम अपने वैभव को कहाँ रख छोड़ोगे? (अय्यू. 31:14, 1 पत. 2:12)

4 वे केवल बन्दियों के पैरों के पास गिर पड़ेंगे और मरे हुओं के नीचे दबे पड़े रहेंगे। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।

अश्शूर- क्रोध का साधन

5 अश्शूर[fn] पर हाय, जो मेरे क्रोध का लठ[fn] * और मेरे हाथ में का सोंटा है! वह मेरा क्रोध है।

6 मैं उसको एक भक्तिहीन जाति के विरुद्ध भेजूँगा, और जिन लोगों पर मेरा रोष भड़का है उनके विरुद्ध उसको आज्ञा दूँगा कि छीन-छान करे और लूट ले, और उनको सड़कों की कीच के समान लताड़े।

7 परन्तु उसकी ऐसी मनसा न होगी, न उसके मन में ऐसा विचार है, क्योंकि उसके मन में यही है कि मैं बहुत सी जातियों का नाश और अन्त कर डालूँ।

8 क्योंकि वह कहता है, “क्या मेरे सब हाकिम राजा के तुल्य नहीं?

9 क्या कलनो कर्कमीश के समान नहीं है? क्या हमात अर्पाद के और सामरिया दमिश्क के समान नहीं?

10 जिस प्रकार मेरा हाथ मूरतों से भरे हुए उन राज्यों पर पहुँचा जिनकी मूरतों यरूशलेम और सामरिया की मूरतों से बढ़कर थीं, और जिस प्रकार मैंने सामरिया और उसकी मूरतों से किया,

11 क्या उसी प्रकार मैं यरूशलेम से और उसकी मूरतों से भी न करूँ?”

अश्शूर पर न्याय

12 इस कारण जब प्रभु सिय्योन पर्वत पर और यरूशलेम में अपना सब काम कर चुकेगा, तब मैं अश्शूर के राजा के गर्व की बातों का, और उसकी घमण्ड भरी आँखों का बदला दूँगा।

13 उसने कहा है, “अपने ही बाहुबल और बुद्धि से मैंने यह काम किया है, क्योंकि मैं चतुर हूँ; मैंने देश-देश की सीमाओं को हटा दिया, और उनके रखे हुए धन को लूट लिया; मैंने वीर के समान गद्दी पर विराजनेहारों को उतार दिया है।

14 देश-देश के लोगों की धन-सम्पत्ति, चिड़ियों के घोंसलों के समान, मेरे हाथ आई है, और जैसे कोई छोड़े हुए अण्डों को बटोर ले वैसे ही मैंने सारी पृथ्वी को बटोर लिया है; और कोई पंख फड़फड़ाने या चोंच खोलने या चीं-चीं करनेवाला न था।”

15 क्या कुल्हाड़ा उसके विरुद्ध जो उससे काटता हो डींग मारे, या आरी उसके विरुद्ध जो उसे खींचता हो बड़ाई करे? क्या सोंटा अपने चलानेवाले को चलाए या छड़ी उसे उठाए जो काठ नहीं है!

16 इस कारण प्रभु अर्थात् सेनाओं का प्रभु उस राजा के हष्ट-पुष्ट योद्धाओं को दुबला कर देगा, और उसके ऐश्वर्य के नीचे आग की सी जलन[fn] * होगी।

17 इस्राएल की ज्योति तो आग ठहरेगी, और इस्राएल का पवित्र ज्वाला ठहरेगा; और वह उसके झाड़ - झँखाड़ को एक ही दिन में भस्म करेगा।

18 और जैसे रोगी के क्षीण हो जाने पर उसकी दशा होती है वैसी ही वह उसके वन और फलदाई बारी की शोभा पूरी रीति से नाश करेगा।

19 उस वन के वृक्ष इतने थोड़े रह जाएँगे कि लड़का भी उनको गिन कर लिख लेगा।

शेष इस्राएलियों की वापसी

20 उस समय इस्राएल के बचे हुए लोग और याकूब के घराने के भागे हुए, अपने मारनेवाले[fn] * पर फिर कभी भरोसा न रखेंगे, परन्तु यहोवा जो इस्राएल का पवित्र है, उसी पर वे सच्चाई से भरोसा रखेंगे।

21 याकूब में से बचे हुए लोग पराक्रमी परमेश्वर की ओर फिरेंगे।

22 क्योंकि हे इस्राएल, चाहे तेरे लोग समुद्र के रेतकणों के समान भी बहुत हों, तो भी निश्चय है कि उनमें से केवल बचे लोग ही लौटेंगे। सत्यानाश तो पूरे न्याय के साथ ठाना गया है।

23 क्योंकि प्रभु सेनाओं के यहोवा ने सारे देश का सत्यानाश कर देना ठाना है। (रोम. 9:27, 28)

परमेश्वर अश्शूर को दण्ड देगा

24 इसलिए प्रभु सेनाओं का यहोवा यह कहता है, “हे सिय्योन में रहनेवाली मेरी प्रजा, अश्शूर से मत डर; चाहे वह सोंटें से तुझे मारे और मिस्र के समान तेरे ऊपर छड़ी उठाए।

25 क्योंकि अब थोड़ी ही देर है कि मेरी जलन और क्रोध उनका सत्यानाश करके शान्त होगा

26 सेनाओं का यहोवा उसके विरुद्ध कोड़ा उठाकर उसको ऐसा मारेगा जैसा उसने ओरेब नामक चट्टान[fn] * पर मिद्यानियों को मारा था; और जैसा उसने मिस्रियों के विरुद्ध समुद्र पर लाठी बढ़ाई, वैसा ही उसकी ओर भी बढ़ाएगा।

27 उस समय ऐसा होगा कि उसका बोझ तेरे कंधे पर से और उसका जूआ तेरी गर्दन पर से उठा लिया जाएगा, और अभिषेक के कारण वह जूआ तोड़ डाला जाएगा।”

अश्शूरी सेना का आक्रमण

28 वह अय्यात में आया है, और मिग्रोन में से होकर आगे बढ़ गया है; मिकमाश में उसने अपना सामान रखा है।

29 वे घाटी से पार हो गए, उन्होंने गेबा में रात काटी; रामाह थरथरा उठा है, शाऊल का गिबा भाग निकला है।

30 हे गल्लीम की बेटी चिल्ला! हे लैशा के लोगों कान लगाओ! हाय बेचारा अनातोत!

31 मदमेना मारा-मारा फिरता है, गेबीम के निवासी भागने के लिये अपना-अपना समान इकट्ठा कर रहे हैं।

32 आज ही के दिन वह नोब[fn] * में टिकेगा; तब वह सिय्योन पहाड़ पर, और यरूशलेम की पहाड़ी पर हाथ उठाकर धमकाएगा।

33 देखो, प्रभु सेनाओं का यहोवा पेड़ों को भयानक रूप से छाँट डालेगा; ऊँचे-ऊँचे वृक्ष काटे जाएँगे, और जो ऊँचे हैं सो नीचे किए जाएँगे।

34 वह घने वन को लोहे से काट डालेगा और लबानोन एक प्रतापी के हाथ से नाश किया जाएगा।

यिशै के वंश का शासनकाल

11  1 तब यिशै[fn] * के ठूँठ में से एक डाली फूट निकलेगी और उसकी जड़ में से एक शाखा निकलकर फलवन्त होगी। (प्रेरि. 13:23, यिर्म. 23:5, प्रका. 22:16)

2 और यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी। (इफि. 1:17, यशा. 42:1, यूह. 14:17)

3 ओर उसको यहोवा का भय सुगन्ध—सा भाएगा। वह मुँह देखा न्याय न करेगा और न अपने कानों के सुनने के अनुसार निर्णय करेगा; (यूह. 8:15, 16, यूह. 7:24)

4 परन्तु वह कंगालों का न्याय धार्मिकता से, और पृथ्वी के नम्र लोगों का निर्णय खराई से करेगा; और वह पृथ्वी को अपने वचन के सोंटे से मारेगा, और अपने फूँक के झोंके से दुष्ट को मिटा डालेगा। (2 थिस्स. 2:8, प्रका. 19:15, नीति. 31:8, 9)

5 उसकी कटि का फेंटा धार्मिकता और उसकी कमर का फेंटा सच्चाई होगी। (यशा. 59:17, इफि. 6:14)

6 तब भेड़िया भेड़ के बच्चे के संग रहा करेगा, और चीता बकरी के बच्चे के साथ बैठा रहेगा, और बछड़ा और जवान सिंह और पाला पोसा हुआ बैल तीनों इकट्ठे रहेंगे, और एक छोटा लड़का उनकी अगुआई करेगा।

7 गाय और रीछनी मिलकर चरेंगी[fn] *, और उनके बच्चे इकट्ठे बैठेंगे; और सिंह बैल के समान भूसा खाया करेगा।

8 दूध-पीता बच्चा करैत के बिल पर खेलेगा, और दूध छुड़ाया हुआ लड़का नाग के बिल में हाथ डालेगा।

9 मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई दुःख देगा और न हानि करेगा; क्योंकि पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।

इस्राएलियों का पुनः इकट्ठा होना

10 उस समय यिशै की जड़ देश-देश के लोगों के लिये एक झण्डा होगी; सब राज्यों के लोग उसे ढूँढ़ेंगें, और उसका विश्रामस्थान तेजोमय होगा। (रोम. 15:12)

11 उस समय प्रभु अपना हाथ दूसरी बार बढ़ाकर बचे हुओं को, जो उसकी प्रजा के रह गए हैं, अश्शूर से, मिस्र से, पत्रोस से, कूश से, एलाम से, शिनार से, हमात से, और समुद्र के द्वीपों से मोल लेकर छुड़ाएगा।

12 वह अन्यजातियों के लिये झण्डा खड़ा करके इस्राएल के सब निकाले हुओं को, और यहूदा के सब बिखरे हुओं को पृथ्वी की चारों दिशाओं से इकट्ठा करेगा।

13 एप्रैम फिर डाह न करेगा और यहूदा के तंग करनेवाले काट डाले जाएँगे; न तो एप्रैम यहूदा से डाह करेगा और न यहूदा एप्रैम को तंग करेगा।

14 परन्तु वे पश्चिम की ओर पलिश्तियों के कंधे पर झपट्टा मारेंगे, और मिलकर पूर्वियों को लूटेंगे। वे एदोम और मोआब पर हाथ बढ़ाएँगे, और अम्मोनी उनके अधीन हो जाएँगे।

15 यहोवा मिस्र के समुद्र की कोल को सूखा डालेगा, और फरात पर अपना हाथ बढ़ाकर प्रचण्ड लू से ऐसा सुखाएगा कि वह सात धार हो जाएगा, और लोग जूता पहने हुए भी पार हो जाएँगे। (जक. 10:11)

16 उसकी प्रजा के बचे हुओं के लिये अश्शूर से एक ऐसा राज-मार्ग होगा जैसा मिस्र देश से चले आने के समय इस्राएल के लिये हुआ था।

धन्यवाद का गीत

12  1 उस दिन[fn] * तू कहेगा, “हे यहोवा, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ, क्योंकि यद्यपि तू मुझ पर क्रोधित हुआ था, परन्तु अब तेरा क्रोध शान्त हुआ, और तूने मुझे शान्ति दी है।”

2 देखो “परमेश्वर मेरा उद्धार है, मैं भरोसा रखूँगा और न थरथराऊँगा; क्योंकि प्रभु यहोवा मेरा बल और मेरे भजन का विषय है, और वह मेरा उद्धारकर्ता हो गया है।” (भज. 118:14, निर्ग. 15:2)

3 तुम आनन्दपूर्वक उद्धार के सोतों से जल भरोगे।

4 और उस दिन तुम कहोगे, “यहोवा की स्तुति करो, उससे प्रार्थना करो; सब जातियों में उसके बड़े कामों का प्रचार करो, और कहो कि उसका नाम महान है। (भज. 105:1, 2)

5 “ यहोवा का भजन गाओ, क्योंकि उसने प्रतापमय काम किए हैं[fn] *, इसे सारी पृथ्वी पर प्रगट करो।

6 हे सिय्योन में बसनेवाली तू जयजयकार कर और ऊँचे स्वर से गा, क्योंकि इस्राएल का पवित्र तुझ में महान है।”

बाबेल के विरुद्ध घोषणा

13  1 बाबेल के विषय की भारी भविष्यद्वाणी जिसको आमोस के पुत्र यशायाह ने दर्शन में पाया।

2 मुंडे पहाड़ पर एक झण्डा खड़ा करो, हाथ से संकेत करो और उनसे ऊँचे स्वर से पुकारो कि वे सरदारों के फाटकों में प्रवेश करें।

3 मैंने स्वयं अपने पवित्र किए हुओं को आज्ञा दी है, मैंने अपने क्रोध के लिये अपने वीरों को बुलाया है जो मेरे प्रताप के कारण प्रसन्न हैं।

4 पहाड़ों पर एक बड़ी भीड़ का सा कोलाहल हो रहा है, मानो एक बड़ी फौज की हलचल हों। राज्य-राज्य की इकट्ठी की हुई जातियाँ हलचल मचा रही हैं। सेनाओं का यहोवा युद्ध के लिये अपनी सेना इकट्ठी कर रहा है।

5 वे दूर देश से, आकाश के छोर से आए हैं, हाँ, यहोवा अपने क्रोध के हथियारों समेत सारे देश को नाश करने के लिये आया है।

6 हाय-हाय करो, क्योंकि यहोवा का दिन समीप है; वह सर्वशक्तिमान की ओर से मानो सत्यानाश करने के लिये आता है।

7 इस कारण सबके हाथ ढीले पड़ेंगे, और हर एक मनुष्य का हृदय पिघल जाएगा,

8 और वे घबरा जाएँगे। उनको पीड़ा और शोक होगा; उनको जच्चा की सी पीड़ाएँ उठेंगी। वे चकित होकर एक दूसरे को ताकेंगे; उनके मुँह जल जाएँगे। (1 थिस्स. 5:3)

9 देखो, यहोवा का वह दिन रोष और क्रोध और निर्दयता के साथ आता है कि वह पृथ्वी को उजाड़ डाले और पापियों को उसमें से नाश करे।

10 क्योंकि आकाश के तारागण और बड़े-बड़े नक्षत्र अपना प्रकाश न देंगे, और सूर्य उदय होते-होते अंधेरा हो जाएगा, और चन्द्रमा अपना प्रकाश न देगा। (मत्ती 24:29, मर. 13:24, प्रका. 6:12, 13)

11 मैं जगत के लोगों को उनकी बुराई के कारण, और दुष्टों को उनके अधर्म का दण्ड दूँगा; मैं अभिमानियों के अभिमान को नाश करूँगा और उपद्रव करनेवालों के घमण्ड को तोड़ूँगा।

12 मैं मनुष्य को कुन्दन से, और आदमी को ओपीर के सोने से भी अधिक महँगा करूँगा।

13 इसलिए मैं आकाश को कँपाऊँगा, और पृथ्वी अपने स्थान से टल जाएगी[fn] *; यह सेनाओं के यहोवा के रोष के कारण और उसके भड़के हुए क्रोध के दिन होगा।

14 और वे खदेड़े हुए हिरन, या बिन चरवाहे की भेड़ों के समान अपने-अपने लोगों की ओर फिरेंगे, और अपने-अपने देश को भाग जाएँगे।

15 जो कोई मिले वह बेधा जाएगा, और जो कोई पकड़ा जाए, वह तलवार से मार डाला जाएगा।

16 उनके बाल-बच्चे उनके सामने पटक दिए जाएँगे; और उनके घर लूटे जाएँगे, और उनकी स्त्रियाँ भ्रष्ट की जाएँगी।

17 देखो, मैं उनके विरुद्ध मादी लोगों को उभारूँगा जो न तो चाँदी का कुछ विचार करेंगे और न सोने का लालच करेंगे।

18 वे तीरों से जवानों को मारेंगे, और बच्चों पर कुछ दया न करेंगे, वे लड़कों पर कुछ तरस न खाएँगे।

19 बाबेल जो सब राज्यों का शिरोमणि है, और जिसकी शोभा पर कसदी लोग फूलते हैं, वह ऐसा हो जाएगा जैसे सदोम और गमोरा, जब परमेश्वर ने उन्हें उलट दिया था।

20 वह फिर कभी न बसेगा और युग-युग उसमें कोई वास न करेगा; अरबी लोग भी उसमें डेरा खड़ा न करेंगे, और न चरवाहे उसमें अपने पशु बैठाएँगे।

21 वहाँ जंगली जन्तु बैठेंगे, और उल्लू उनके घरों में भरे रहेंगे; वहाँ शुतुर्मुर्ग बसेंगे, और जंगली बकरे वहाँ नाचेंगे। (प्रका. 18:2)

22 उस नगर के राज-भवनों में हुँडार, और उसके सुख-विलास के मन्दिरों में गीदड़ बोला करेंगे; उसके नाश होने का समय निकट आ गया है, और उसके दिन अब बहुत नहीं रहे।

याकूब पर दया

14  1 यहोवा याकूब पर दया करेगा, और इस्राएल को फिर अपनाकर, उन्हीं के देश में बसाएगा, और परदेशी उनसे मिल जाएँगे और अपने-अपने को याकूब के घराने से मिला लेंगे।

2 देश-देश के लोग उनको उन्हीं के स्थान में पहुँचाएँगे, और इस्राएल का घराना यहोवा की भूमि पर उनका अधिकारी होकर उनको दास और दासियाँ बनाएगा; क्योंकि वे अपने बँधुवाई में ले जानेवालों को बन्दी बनाएँगे, और जो उन पर अत्याचार करते थे उन पर वे शासन करेंगे।

बाबेल के राजा का पतन

3 जिस दिन यहोवा तुझे तेरे सन्ताप और घबराहट से, और उस कठिन श्रम से जो तुझ से लिया गया विश्राम देगा,

4 उस दिन तू बाबेल के राजा पर ताना मारकर कहेगा, “परिश्रम करानेवाला कैसा नाश हो गया है, सुनहले मन्दिरों से भरी नगरी कैसी नाश हो गई है!

5 यहोवा ने दुष्टों के सोंटे को और अन्याय से शासन करनेवालों के लठ को[fn] * तोड़ दिया है,

6 जिससे वे मनुष्यों को लगातार रोष से मारते रहते थे, और जाति-जाति पर क्रोध से प्रभुता करते और लगातार उनके पीछे पड़े रहते थे।

7 अब सारी पृथ्वी को विश्राम मिला है, वह चैन से है; लोग ऊँचे स्वर से गा उठे हैं।

8 सनोवर और लबानोन के देवदार भी तुझ पर आनन्द करके कहते हैं, ‘जब से तू गिराया गया तब से कोई हमें काटने को नहीं आया।’

9 पाताल के नीचे अधोलोक में तुझ से मिलने के लिये हलचल हो रही है; वह तेरे लिये मुर्दों को अर्थात् पृथ्वी के सब सरदारों को जगाता है, और वह जाति-जाति से सब राजाओं को उनके सिंहासन पर से उठा खड़ा करता है।

10 वे सब तुझ से कहेंगे, ‘क्या तू भी हमारे समान निर्बल हो गया है? क्या तू हमारे समान ही बन गया?’

11 तेरा वैभव और तेरी सारंगियों को शब्द अधोलोक में उतारा गया है; कीड़े तेरा बिछौना और केंचुए तेरा ओढ़ना हैं।

भोर के चमकनेवाले तारे का पतन

12 “हे भोर के चमकनेवाले तारे तू कैसे आकाश से गिर पड़ा है? तू जो जाति-जाति को हरा देता था, तू अब कैसे काटकर भूमि पर गिराया गया है? (लूका 10:18, यहे. 28:13-17)

13 तू मन में कहता तो था, ‘ मैं स्वर्ग पर चढूँगा[fn] *; मैं अपने सिंहासन को परमेश्वर के तारागण से अधिक ऊँचा करूँगा; और उत्तर दिशा की छोर पर सभा के पर्वत पर विराजूँगा; (मत्ती 11:23, लूका 10:15)

14 मैं मेघों से भी ऊँचे-ऊँचे स्थानों के ऊपर चढूँगा, मैं परमप्रधान के तुल्य हो जाऊँगा।’

15 परन्तु तू अधोलोक में उस गड्ढे की तह तक उतारा जाएगा। (मत्ती 11:23, लूका 10:15)

16 जो तुझे देखेंगे तुझको ताकते हुए तेरे विषय में सोच-सोचकर कहेंगे, ‘क्या यह वही पुरुष है जो पृथ्वी को चैन से रहने न देता था और राज्य-राज्य में घबराहट डाल देता था;

17 जो जगत को जंगल बनाता और उसके नगरों को ढा देता था, और अपने बन्दियों को घर जाने नहीं देता था?’

18 जाति-जाति के सब राजा अपने-अपने घर पर महिमा के साथ आराम से पड़े हैं;

19 परन्तु तू निकम्मी शाख के समान अपनी कब्र में से फेंका गया; तू उन मारे हुओं की शवों से घिरा है जो तलवार से बिधकर गड्ढे में पत्थरों के बीच में लताड़ी हुई लोथ के समान पड़े है।

20 तू उनके साथ कब्र में न गाड़ा जाएगा, क्योंकि तूने अपने देश को उजाड़ दिया, और अपनी प्रजा का घात किया है।

“कुकर्मियों के वंश का नाम भी कभी न लिया जाएगा।

21 उनके पूर्वजों के अधर्म के कारण पुत्रों के घात की तैयारी करो, ऐसा न हो कि वे फिर उठकर पृथ्वी के अधिकारी हो जाएँ, और जगत में बहुत से नगर बसाएँ।”

बाबेल का पतन

22 सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है, “मैं उनके विरुद्ध उठूँगा, और बाबेल का नाम और निशान मिटा डालूँगा, और बेटों-पोतों को काट डालूँगा,” यहोवा की यही वाणी है।

23 “मैं उसको साही की मान्द और जल की झीलें कर दूँगा, और मैं उसे सत्यानाश के झाड़ू से झाड़ डालूँगा,” सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।

अश्शूरियों का पतन

24 सेनाओं के यहोवा ने यह शपथ खाई है[fn] *, “निःसन्देह जैसा मैंने ठाना है, वैसा ही हो जाएगा, और जैसी मैंने युक्ति की है, वैसी ही पूरी होगी,

25 कि मैं अश्शूर को अपने ही देश में तोड़ दूँगा, और अपने पहाड़ों पर उसे कुचल डालूँगा; तब उसका जूआ उनकी गर्दनों पर से और उसका बोझ उनके कंधों पर से उतर जाएगा।”

26 यही युक्ति सारी पृथ्वी के लिये ठहराई गई है; और यह वही हाथ है जो सब जातियों पर बढ़ा हुआ है।

27 क्योंकि सेनाओं के यहोवा ने युक्ति की है और कौन उसको टाल सकता है? उसका हाथ बढ़ाया गया है, उसे कौन रोक सकता है?

पलिश्तीन का पतन

28 जिस वर्ष में आहाज राजा मर गया उसी वर्ष यह भारी भविष्यद्वाणी हुई

29 “हे सारे पलिश्तीन तू इसलिए आनन्द न कर, कि तेरे मारनेवाले की लाठी टूट गई, क्योंकि सर्प की जड़ से एक काला नाग उत्पन्न होगा, और उसका फल एक उड़नेवाला और तेज विषवाला अग्निसर्प होगा।

30 तब कंगालों के जेठे खाएँगे और दरिद्र लोग निडर बैठने पाएँगे, परन्तु मैं तेरे वंश को भूख से मार डालूँगा, और तेरे बचे हुए लोग घात किए जाएँगे।

31 हे फाटक, तू हाय! हाय! कर; हे नगर, तू चिल्ला; हे पलिश्तीन तू सब का सब पिघल जा! क्योंकि उत्तर से एक धुआँ उठेगा और उसकी सेना में से कोई पीछे न रहेगा।”

32 तब जाति-जाति के दूतों को क्या उत्तर दिया जाएगा? यह कि “यहोवा ने सिय्योन की नींव डाली है, और उसकी प्रजा के दीन लोग उसमें शरण लेंगे।”

मोआब का पतन

15  1 मोआब के विषय भारी भविष्यद्वाणी। निश्चय मोआब का आर नगर एक ही रात में उजाड़ और नाश हो गया है; निश्चय मोआब का कीर नगर एक ही रात में उजाड़ और नाश हो गया है।

2 बैत और दीबोन ऊँचे स्थानों पर रोने के लिये चढ़ गए हैं; नबो और मेदबा[fn] * के ऊपर मोआब हाय! हाय! करता है। उन सभी के सिर मुँड़े हुए, और सभी की दाढ़ियाँ मुँढ़ी हुई हैं;

3 सड़कों में लोग टाट पहने हैं; छतों पर और चौकों में सब कोई आँसू बहाते हुए हाय! हाय! करते हैं।

4 हेशबोन और एलाले चिल्ला रहे हैं, उनका शब्द यहस तक सुनाई पड़ता है; इस कारण मोआब के हथियारबंद चिल्ला रहे हैं; उसका जी अति उदास है।

5 मेरा मन मोआब के लिये दुहाई देता है[fn] *; उसके रईस सोअर और एग्लत-शलीशिया तक भागे जाते हैं। देखो, लूहीत की चढ़ाई पर वे रोते हुए चढ़ रहे हैं; सुनो, होरोनैम के मार्ग में वे नाश होने की चिल्लाहट मचा रहे हैं।

6 निम्रीम का जल सूख गया; घास कुम्हला गई और हरियाली मुर्झा गई, और नमी कुछ भी नहीं रही।

7 इसलिए जो धन उन्होंने बचा रखा, और जो कुछ उन्होंने इकट्ठा किया है, उस सब को वे उस घाटी के पार लिये जा रहे हैं जिसमें मजनू वृक्ष हैं।

8 इस कारण मोआब के चारों ओर की सीमा में चिल्लाहट हो रही है, उसमें का हाहाकार एगलैम और बेरेलीम में भी सुन पड़ता है।

9 क्योंकि दीमोन का सोता लहू से भरा हुआ है; तो भी मैं दीमोन पर और दुःख डालूँगा, मैं बचे हुए मोआबियों और उनके देश से भागे हुओं के विरुद्ध सिंह भेजूँगा।

मोआब की निराशाजनक स्थिति

16  1 जंगल की ओर से सेला नगर से सिय्योन की बेटी के पर्वत पर देश के हाकिम के लिये भेड़ों के बच्चों को भेजो।

2 मोआब की बेटियाँ अर्नोन के घाट पर उजाड़े हुए घोंसले के पक्षी और उनके भटके हुए बच्चों के समान हैं।

3 सम्मति [fn] करो, न्याय चुकाओ; दोपहर ही में अपनी छाया को रात के समान करो; घर से निकाले हुओं को छिपा रखो, जो मारे-मारे फिरते हैं उनको मत पकड़वाओ।

4 मेरे लोग जो निकाले हुए हैं वे तेरे बीच में रहें; नाश करनेवाले से मोआब को बचाओ। पीसनेवाला नहीं रहा, लूट पाट फिर न होगी; क्योंकि देश में से अंधेर करनेवाले नाश हो गए हैं।

5 तब दया के साथ एक सिंहासन स्थिर किया जाएगा और उस पर दाऊद के तम्बू में सच्चाई के साथ एक विराजमान होगा जो सोच विचार कर सच्चा न्याय करेगा और धार्मिकता के काम पर तत्पर रहेगा।

6 हमने मोआब के गर्व के विषय सुना है कि वह अत्यन्त अभिमानी था; उसके अभिमान और गर्व और रोष के सम्बन्ध में भी सुना है—परन्तु उसका बड़ा बोल व्यर्थ है।

7 क्योंकि मोआब हाय! हाय! करेगा; सबके सब मोआब के लिये हाहाकार करेंगे। कीरहरासत की दाख की टिकियों के लिये वे अति निराश होकर लम्बी-लम्बी साँस लिया करेंगे।

8 क्योंकि हेशबोन के खेत और सिबमा की दाख लताएँ मुर्झा गईं; जाति-जाति के अधिकारियों ने उनकी उत्तम-उत्तम लताओं को काट-काटकर गिरा दिया है, वे याजेर तक पहुँची और जंगल में भी फैलती गईं; और बढ़ते-बढ़ते ताल के पार दूर तक बढ़ गई थीं।

9 मैं याजेर के साथ सिबमा की दाखलताओं के लिये भी रोऊँगा[fn] *; हे हेशबोन और एलाले, मैं तुम्हें अपने आँसुओं से सींचूँगा; क्योंकि तुम्हारे धूपकाल के फलों के और अनाज की कटनी के समय की ललकार सुनाई पड़ी है।

10 फलदाई बारियों में से आनन्द और मगनता जाती रही; दाख की बारियों में गीत न गाया जाएगा, न हर्ष का शब्द सुनाई देगा; और दाखरस के कुण्डों में कोई दाख न रौंदेगा, क्योंकि मैं उनके हर्ष के शब्द को बन्द करूँगा।

11 इसलिए मेरा मन मोआब के कारण और मेरा हृदय कीरहेरेस के कारण वीणा का सा क्रन्दन करता है।

12 और जब मोआब ऊँचे स्थान पर मुँह दिखाते-दिखाते थक जाए, और प्रार्थना करने को अपने पवित्रस्थान में आए, तो उसे कुछ लाभ न होगा।

13 यही वह बात है जो यहोवा ने इससे पहले मोआब के विषय में कही थी।

14 परन्तु अब यहोवा ने यह कहा है[fn] *, “मजदूरों के वर्षों के समान तीन वर्ष के भीतर मोआब का वैभव और उसकी भीड़-भाड़ सब तुच्छ ठहरेगी; और थोड़े जो बचेंगे उनका कोई बल न होगा।”

दमिश्क और इस्राएल के विरुद्ध घोषणा

17  1 दमिश्क के विषय भारी भविष्यद्वाणी[fn] *। देखो, दमिश्क नगर न रहेगा, वह खण्डहर ही खण्डहर हो जाएगा।

2 अरोएर के नगर निर्जन हो जाएँगे, वे पशुओं के झुण्डों की चराई बनेंगे; पशु उनमें बैठेंगे और उनका कोई भगानेवाला न होगा।

3 एप्रैम के गढ़वाले नगर, और दमिश्क का राज्य और बचे हुए अरामी, तीनों भविष्य में न रहेंगे; और जो दशा इस्राएलियों के वैभव की हुई वही उनकी होगी; सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।

4 उस समय याकूब का वैभव घट जाएगा, और उसकी मोटी देह दुबली हो जाएगी[fn] *।

5 और ऐसा होगा जैसा लवनेवाला अनाज काटकर बालों को अपनी अँकवार में समेटे या रपाईम नामक तराई में कोई सिला बीनता हो।

6 तो भी जैसे जैतून वृक्ष के झाड़ते समय कुछ फल रह जाते हैं, अर्थात् फुनगी पर दो-तीन फल, और फलवन्त डालियों में कहीं-कहीं चार-पाँच फल रह जाते हैं, वैसे ही उनमें सिला बिनाई होगी, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की यही वाणी है।

7 उस समय मनुष्य अपने कर्ता की ओर दृष्टि करेगा, और उसकी आँखें इस्राएल के पवित्र की ओर लगी रहेंगी;

8 वह अपनी बनाई हुई वेदियों की ओर दृष्टि न करेगा, और न अपनी बनाई हुई अशेरा नामक मूरतों या सूर्य की प्रतिमाओं की ओर देखेगा। (मीका 5:13, 14)

9 उस समय उनके गढ़वाले नगर घने वन, और उनके निर्जन स्थान पहाड़ों की चोटियों के समान होंगे जो इस्राएलियों के डर के मारे छोड़ दिए गए थे, और वे उजाड़ पड़े रहेंगे।

10 क्योंकि तू अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर को भूल गया और अपनी दृढ़ चट्टान का स्मरण नहीं रखा; इस कारण चाहे तू मनभावने पौधे लगाए और विदेशी कलम जमाये,

11 चाहे रोपने के दिन तू अपने चारों और बाड़ा बाँधे, और सवेरे ही को उनमें फूल खिलने लगें, तो भी सन्ताप और असाध्य दुःख के दिन उसका फल नाश हो जाएगा।

शत्रु राष्ट्रों की पराजय

12 हाय, हाय! देश-देश के बहुत से लोगों का कैसा नाद हो रहा है, वे समुद्र की लहरों के समान गरजते हैं। राज्य-राज्य के लोगों का कैसा गर्जन हो रहा है, वे प्रचण्ड धारा के समान नाद करते हैं!

13 राज्य-राज्य के लोग बाढ़ के बहुत से जल के समान नाद करते हैं, परन्तु वह उनको घुड़केगा[fn] *, और वे दूर भाग जाएँगे, और ऐसे उड़ाए जाएँगे जैसे पहाड़ों पर की भूसी वायु से, और धूल बवण्डर से घुमाकर उड़ाई जाती है।

14 सांझ को, देखो, घबराहट है! और भोर से पहले, वे लोप हो गये हैं! हमारे नाश करनेवालों का भाग और हमारे लूटनेवाले की यही दशा होगी।

कूश के विरुद्ध घोषणा

18  1 हाय, पंखों की फड़फड़ाहट से भरे हुए देश, तू जो कूश की नदियों के परे है;

2 और समुद्र पर दूतों को सरकण्डों की नावों में बैठाकर जल के मार्ग से यह कह के भेजता है, हे फुर्तीले दूतों, उस जाति के पास जाओ जिसके लोग बलिष्ठ और सुन्दर हैं, जो आदि से अब तक डरावने हैं, जो मापने और रौंदनेवाला भी हैं, और जिनका देश नदियों से विभाजित किया हुआ है।

3 हे जगत के सब रहनेवालों, और पृथ्वी के सब निवासियों, जब झण्डा पहाड़ों पर खड़ा किया जाए, उसे देखो! जब नरसिंगा फूँका जाए, तब सुनो!

4 क्योंकि यहोवा ने मुझसे यह कहा है, “धूप की तेज गर्मी या कटनी के समय के ओसवाले बादल के समान मैं शान्त होकर निहारूँगा[fn] *।”

5 क्योंकि दाख तोड़ने के समय से पहले जब फूल, फूल चुकें, और दाख के गुच्छे पकने लगें, तब वह टहनियों को हँसुओं से काट डालेगा, और फैली हुई डालियों को तोड़-तोड़कर अलग फेंक देगा।

6 वे पहाड़ों के माँसाहारी पक्षियों और वन-पशुओं के लिये इकट्ठे पड़े रहेंगे। और माँसाहारी पक्षी तो उनको नोचते-नोचते धूपकाल बिताएँगे, और सब भाँति के वन पशु उनको खाते-खाते सर्दी काटेंगे।

7 उस समय जिस जाति के लोग बलिष्ठ और सुन्दर हैं, और जो आदि ही से डरावने होते आए हैं, और जो सामर्थी और रौंदनेवाले हैं, और जिनका देश नदियों से विभाजित किया हुआ है, उस जाति से सेनाओं के यहोवा के नाम के स्थान सिय्योन पर्वत पर सेनाओं के यहोवा के पास भेंट पहुँचाई जाएगी।

मिस्र के विरुद्ध घोषणा

19  1 मिस्र के विषय में भारी भविष्यद्वाणी। देखो, यहोवा शीघ्र उड़नेवाले बादल पर सवार होकर मिस्र में आ रहा है; और मिस्र की मूरतें उसके आने से थरथरा उठेंगी, और मिस्रियों का हृदय पानी-पानी हो जाएगा। (यहे. 30:13, प्रका. 1:7)

2 और मैं मिस्रियों को एक दूसरे के विरुद्ध उभारूँगा, और वे आपस में लड़ेंगे, प्रत्येक अपने भाई से और हर एक अपने पड़ोसी से लड़ेगा, नगर-नगर में और राज्य-राज्य में युद्ध छिड़ेंगा; (मत्ती 10:21, 36)

3 और मिस्रियों की बुद्धि मारी जाएगी[fn] * और मैं उनकी युक्तियों को व्यर्थ कर दूँगा; और वे अपनी मूरतों के पास और ओझों और फुसफुसानेवाले टोन्हों के पास जा जाकर उनसे पूछेंगे;

4 परन्तु मैं मिस्रियों को एक कठोर स्वामी के हाथ में कर दूँगा; और एक क्रूर राजा उन पर प्रभुता करेगा, प्रभु सेनाओं के यहोवा की यही वाणी है।

5 और समुद्र का जल सूख जाएगा, और महानदी सूख कर खाली हो जाएगी;

6 और नाले से दुर्गन्ध आने लगेंगे, और मिस्र की नहरें भी सूख जाएँगी, और नरकट और हूगले कुम्हला जाएँगे।

7 नील नदी का तट उजड़ जाएगा, और उसके कछार की घास, और जो कुछ नील नदी के पास बोया जाएगा वह सूख कर नष्ट हो जाएगा, और उसका पता तक न लगेगा।

8 सब मछुए जितने नील नदी में बंसी डालते हैं विलाप करेंगे और लम्बी-लम्बी साँसें लेंगे, और जो जल के ऊपर जाल फेंकते हैं वे निर्बल हो जाएँगे।

9 फिर जो लोग धुने हुए सन से काम करते हैं और जो सूत से बुनते हैं उनकी आशा टूट जाएगी।

10 मिस्र के रईस तो निराश और उसके सब मजदूर उदास हो जाएँगे।

11 निश्चय सोअन के सब हाकिम मूर्ख हैं; और फ़िरौन के बुद्धिमान मंत्रियों की युक्ति पशु की सी ठहरी। फिर तुम फ़िरौन से कैसे कह सकते हो कि मैं बुद्धिमानों का पुत्र और प्राचीन राजाओं की सन्तान हूँ?

12 अब तेरे बुद्धिमान कहाँ है? सेनाओं के यहोवा ने मिस्र के विषय जो युक्ति की है, उसको यदि वे जानते हों तो तुझे बताएँ। (1 कुरि. 1:20)

13 सोअन के हाकिम मूर्ख बन गए हैं, नोप के हाकिमों ने धोखा खाया है; और जिन पर मिस्र के प्रधान लोगों का भरोसा था उन्होंने मिस्र को भरमा दिया है।

14 यहोवा ने उसमें भ्रमता उत्पन्न की है[fn] *; उन्होंने मिस्र को उसके सारे कामों में उस मतवाले के समान कर दिया है जो वमन करते हुए डगमगाता है।

15 और मिस्र के लिये कोई ऐसा काम न रहेगा जो सिर या पूँछ से अथवा खजूर की डालियों या सरकण्डे से हो सके।

मिस्र परमेश्वर की उपासना करेगा

16 उस समय मिस्री, स्त्रियों के समान हो जाएँगे, और सेनाओं का यहोवा जो अपना हाथ उन पर बढ़ाएगा उसके डर के मारे वे थरथराएँगे और काँप उठेंगे।

17 ओर यहूदा का देश मिस्र के लिये यहाँ तक भय का कारण होगा कि जो कोई उसकी चर्चा सुनेगा वह थरथरा उठेगा; सेनाओं के यहोवा की उस युक्ति का यही फल होगा जो वह मिस्र के विरुद्ध करता है।

18 उस समय मिस्र देश में पाँच नगर होंगे जिनके लोग कनान की भाषा बोलेंगे और यहोवा की शपथ खाएँगे। उनमें से एक का नाम नाशनगर रखा जाएगा।

19 उस समय मिस्र देश के बीच में यहोवा के लिये एक वेदी होगी, और उसकी सीमा के पास यहोवा के लिये एक खम्भा खड़ा होगा।

20 वह मिस्र देश में सेनाओं के यहोवा के लिये चिन्ह और साक्षी ठहरेगा; और जब वे अंधेर करनेवाले के कारण यहोवा की दुहाई देंगे, तब वह उनके पास एक उद्धारकर्ता और रक्षक भेजेगा, और उन्हें मुक्त करेगा।

21 तब यहोवा अपने आपको मिस्रियों पर प्रगट करेगा; और मिस्री उस समय यहोवा को पहचानेंगे और मेलबलि और अन्नबलि चढ़ाकर उसकी उपासना करेंगे, और यहोवा के लिये मन्नत मानकर पूरी भी करेंगे।

22 और यहोवा मिस्रियों को मारेगा, वह मारेगा और चंगा भी करेगा, और वे यहोवा की ओर फिरेंगे और वह उनकी विनती सुनकर उनको चंगा करेगा।

23 उस समय मिस्र से अश्शूर जाने का एक राजमार्ग होगा, और अश्शूरी मिस्र में आएँगे और मिस्री लोग अश्शूर को जाएँगे, और मिस्री अश्शूरियों के संग मिलकर आराधना करेंगे।

24 उस समय इस्राएल, मिस्र और अश्शूर तीनों मिलकर पृथ्वी के लिये आशीष का कारण होंगे।

25 क्योंकि सेनाओं का यहोवा उन तीनों को यह कहकर आशीष देगा, धन्य हो मेरी प्रजा मिस्र, और मेरा रचा हुआ अश्शूर, और मेरा निज भाग इस्राएल।

नग्‍न भविष्यद्वक्ता का चिन्ह

20  1 जिस वर्ष में अश्शूर के राजा सर्गोन की आज्ञा से तर्त्तान ने अश्दोद आकर उससे युद्ध किया और उसको ले भी लिया,

2 उसी वर्ष यहोवा ने आमोस के पुत्र यशायाह से कहा, “जाकर अपनी कमर का टाट खोल और अपनी जूतियाँ उतार;” अतः उसने वैसा ही किया, और वह नंगा और नंगे पाँव घूमता फिरता था[fn] *।

3 तब यहोवा ने कहा, “जिस प्रकार मेरा दास यशायाह तीन वर्ष से उघाड़ा और नंगे पाँव चलता आया है, कि मिस्र और कूश के लिये चिन्ह और लक्षण हो,

4 उसी प्रकार अश्शूर का राजा मिस्री और कूश के लोगों को बन्दी बनाकर देश-निकाला करेगा, क्या लड़के क्या बूढे़, सभी को बन्दी बनाकर उघाड़े और नंगे पाँव और नितम्ब खुले ले जाएगा, जिससे मिस्र लज्जित हो[fn] *।

5 तब वे कूश के कारण जिस पर उनकी आशा थी, और मिस्र के हेतु जिस पर वे फूलते थे व्याकुल और लज्जित हो जाएँगे*।

6 और समुद्र के इस पार के बसनेवाले उस समय यह कहेंगे, ‘देखो, जिन पर हम आशा रखते थे ओर जिनके पास हम अश्शूर के राजा से बचने के लिये भागने को थे उनकी ऐसी दशा हो गई है। तो फिर हम लोग कैसे बचेंगे’?”

बाबेल के पतन का दर्शन

21  1 समुद्र के पास के जंगल के विषय भारी वचन। जैसे दक्षिणी प्रचण्ड बवण्डर चला आता है, वह जंगल से अर्थात् डरावने देश से निकट आ रहा है।

2 कष्ट की बातों का मुझे दर्शन दिखाया गया है; विश्वासघाती विश्वासघात करता है, और नाशक नाश करता है। हे एलाम, चढ़ाई कर, हे मादै, घेर ले; उसका सब कराहना मैं बन्द करता हूँ।

3 इस कारण मेरी कटि में कठिन पीड़ा है; मुझ को मानो जच्चा की सी पीड़ा हो रही है; मैं ऐसे संकट में पड़ गया हूँ कि कुछ सुनाई नहीं देता, मैं ऐसा घबरा गया हूँ कि कुछ दिखाई नहीं देता।

4 मेरा हृदय धड़कता है, मैं अत्यन्त भयभीत हूँ, जिस सांझ की मैं बाट जोहता था उसे उसने मेरी थरथराहट का कारण कर दिया है।

5 भोजन की तैयारी हो रही है, पहरूए बैठाए जा रहे हैं, खाना-पीना हो रहा है। हे हाकिमों, उठो, ढाल में तेल मलो[fn] *!

6 क्योंकि प्रभु ने मुझसे यह कहा है, “जाकर एक पहरुआ खड़ा कर दे, और वह जो कुछ देखे उसे बताए।

7 जब वह सवार देखे जो दो-दो करके आते हों, और गदहों और ऊँटों के सवार, तब बहुत ही ध्यान देकर सुने।”

8 और उसने सिंह के से शब्द से पुकारा, “हे प्रभु मैं दिन भर खड़ा पहरा देता रहा और मैंने पूरी रातें पहरे पर काटी।

9 और क्या देखता हूँ कि मनुष्यों का दल और दो-दो करके सवार चले आ रहे हैं!” और वह बोल उठा, “गिर पड़ा, बाबेल गिर पड़ा; और उसके देवताओं के सब खुदी हुई मूरतें भूमि पर चकनाचूर कर डाली गई हैं।” (प्रका. 14:8, प्रका. 18:2)

10 हे मेरे दाएँ हुए, और मेरे खलिहान के अन्न, जो बातें मैंने इस्राएल के परमेश्वर सेनाओं के यहोवा से सुनी है, उनको मैंने तुम्हें जता दिया है।

एदोम के विरुद्ध घोषणा

11 दूमा के विषय भारी वचन। सेईर में से कोई मुझे पुकार रहा है, “हे पहरूए, रात का क्या समाचार है? हे पहरूए, रात की क्या ख़बर है?”

12 पहरूए ने कहा, “ भोर होती है[fn] * और रात भी। यदि तुम पूछना चाहते हो तो पूछो; फिर लौटकर आना।”

अरब के विरुद्ध घोषणा

13 अरब के विरुद्ध भारी वचन। हे ददानी बटोहियों, तुम को अरब के जंगल में रात बितानी पड़ेगी।

14 हे तेमा देश के रहनेवाले, प्यासे के पास जल लाओ और रोटी लेकर भागनेवाले से मिलने के लिये जाओ।

15 क्योंकि वे तलवारों के सामने से वरन् नंगी तलवार से और ताने हुए धनुष से और घोर युद्ध से भागे हैं।

16 क्योंकि प्रभु ने मुझसे यह कहा है, “मजदूर के वर्षों के अनुसार एक वर्ष में केदार का सारा वैभव मिटाया जाएगा;

17 और केदार के धनुर्धारी शूरवीरों में से थोड़े ही रह जाएँगे; क्योंकि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने ऐसा कहा है।”

यरूशलेम के विरुद्ध घोषणा

22  1 दर्शन की तराई के विषय में भारी वचन। तुम्हें क्या हुआ कि तुम सबके सब छतों पर चढ़ गए हो,

2 हे कोलाहल और ऊधम से भरी प्रसन्न नगरी? तुझ में जो मारे गए हैं वे न तो तलवार से और न लड़ाई में मारे गए हैं।

3 तेरे सब शासक एक संग भाग गए और बिना धनुष के बन्दी बनाए गए हैं। तेरे जितने शेष पाए गए वे एक संग बाँधे गए, यद्यपि वे दूर भागे थे।

4 इस कारण मैंने कहा, “ मेरी ओर से मुँह फेर लो[fn] * कि मैं बिलख-बिलख कर रोऊँ; मेरे नगर के सत्यानाश होने के शोक में मुझे शान्ति देने का यत्न मत करो।”

5 क्योंकि सेनाओं के प्रभु यहोवा का ठहराया हुआ दिन होगा, जब दर्शन की तराई में कोलाहल और रौंदा जाना और बेचैनी होगी; शहरपनाह में सुरंग लगाई जाएगी और दुहाई का शब्द पहाड़ों तक पहुँचेगा।

6 एलाम पैदलों के दल और सवारों समेत तरकश बाँधे हुए है, और कीर ढाल खोले हुए है।

7 तेरी उत्तम-उत्तम तराइयाँ रथों से भरी हुई होंगी और सवार फाटक के सामने पाँति बाँधेंगे। उसने यहूदा का घूँघट खोल दिया है।

8 उस दिन तूने वन नामक भवन के अस्त्र-शस्त्र का स्मरण किया,

9 और तूने दाऊदपुर की शहरपनाह की दरारों को देखा कि वे बहुत हैं, और तूने निचले जलकुण्ड के जल को इकट्ठा किया।

10 और यरूशलेम के घरों को गिनकर शहरपनाह के दृढ़ करने के लिये घरों को ढा दिया।

11 तूने दोनों दीवारों के बीच पुराने जलकुण्ड के जल के लिये एक कुण्ड खोदा। परन्तु तूने उसके कर्ता को स्मरण नहीं किया, जिसने प्राचीनकाल से उसको ठहरा रखा था, और न उसकी ओर तूने दृष्टि की।

12 उस समय सेनाओं के प्रभु यहोवा ने रोने-पीटने, सिर मुड़ाने और टाट पहनने के लिये कहा था;

13 परन्तु क्या देखा कि हर्ष और आनन्द मनाया जा रहा है, गाय-बैल का घात और भेड़-बकरी का वध किया जा रहा है, माँस खाया और दाखमधु पीया जा रहा है। और कहते हैं, “आओ खाएँ-पीएँ, क्योंकि कल तो हमें मरना है।” (1 कुरि. 15:32)

14 सेनाओं के यहोवा ने मेरे कान में कहा और अपने मन की बात प्रगट की, “निश्चय तुम लोगों के इस अधर्म का कुछ भी प्रायश्चित तुम्हारी मृत्यु तक न हो सकेगा,” सेनाओं के प्रभु यहोवा का यही कहना है।

शेबना को चेतावनी

15 सेनाओं का प्रभु यहोवा यह कहता है, “शेबना नामक उस भण्डारी के पास जो राजघराने के काम पर नियुक्त है जाकर कह,

16 ‘यहाँ तू क्या करता है? और यहाँ तेरा कौन है कि तूने अपनी कब्र यहाँ खुदवाई है? तू अपनी कब्र ऊँचे स्थान में खुदवाता और अपने रहने का स्थान चट्टान में खुदवाता है?

17 देख, यहोवा तुझको बड़ी शक्ति से पकड़कर बहुत दूर फेंक देगा।

18 वह तुझे मरोड़कर गेन्द के समान लम्बे चौड़े देश में फेंक देगा; हे अपने स्वामी के घराने को लज्जित करनेवाले वहाँ तू मरेगा और तेरे वैभव के रथ वहीं रह जाएँगे।

19 मैं तुझको तेरे स्थान पर से ढकेल दूँगा, और तू अपने पद से उतार दिया जाएगा।

20 उस समय मैं हिल्किय्याह के पुत्र अपने दास एलयाकीम[fn] * को बुलाकर, उसे तेरा अंगरखा पहनाऊँगा,

21 और उसकी कमर में तेरी पेटी कसकर बाँधूँगा, और तेरी प्रभुता उसके हाथ में दूँगा। और वह यरूशलेम के रहनेवालों और यहूदा के घराने का पिता ठहरेगा[fn] *।

22 मैं दाऊद के घराने की कुंजी उसके कंधे पर रखूँगा, और वह खोलेगा और कोई बन्द न कर सकेगा; वह बन्द करेगा और कोई खोल न सकेगा। (प्रका. 3:7)

23 और मैं उसको दृढ़ स्थान में खूँटी के समान गाड़ूँगा, और वह अपने पिता के घराने के लिये वैभव का कारण होगा।

24 और उसके पिता से घराने का सारा वैभव, वंश और सन्तान, सब छोटे-छोटे पात्र, क्या कटोरे क्या सुराहियाँ, सब उस पर टाँगी जाएँगी।

25 सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है कि उस समय वह खूँटी जो दृढ़ स्थान में गाड़ी गई थी, वह ढीली हो जाएगी, और काटकर गिराई जाएगी; और उस पर का बोझ गिर जाएगा, क्योंकि यहोवा ने यह कहा है।’”

सोर के विरुद्ध घोषणा

23  1 सोर के विषय में भारी वचन। हे तर्शीश के जहाजों हाय, हाय, करो; क्योंकि वह उजड़ गया; वहाँ न तो कोई घर और न कोई शरण का स्थान है! यह बात उनको कित्तियों के देश में से प्रगट की गई है।

2 हे समुद्र के निकट रहनेवालों, जिनको समुद्र के पार जानेवाले सीदोनी व्यापारियों ने धन से भर दिया है, चुप रहो!

3 शीहोर का अन्न, और नील नदी के पास की उपज महासागर के मार्ग से उसको मिलती थी, क्योंकि वह और जातियों के लिये व्यापार का स्थान था।

4 हे सीदोन, लज्जित हो, क्योंकि समुद्र ने अर्थात् समुद्र के दृढ़ स्थान ने यह कहा है, “मैंने न तो कभी प्रसव की पीड़ा जानी और न बालक को जन्म दिया, और न बेटों को पाला और न बेटियों को पोसा है।”

5 जब सोर का समाचार मिस्र में पहुँचे, तब वे सुनकर संकट में पड़ेंगे।

6 हे समुद्र के निकट रहनेवालों हाय, हाय, करो! पार होकर तर्शीश को जाओ।

7 क्या यह तुम्हारी प्रसन्नता से भरी हुई नगरी है जो प्राचीनकाल से बसी थी, जिसके पाँव उसे बसने को दूर ले जाते थे?

8 सोर जो राजाओं को गद्दी पर बैठाती थी, जिसके व्यापारी हाकिम थे, और जिसके महाजन पृथ्वी भर में प्रतिष्ठित थे, उसके विरुद्ध किसने ऐसी युक्ति की है? (यहे. 28:1, 2, 6-8)

9 सेनाओं के यहोवा ही ने ऐसी युक्ति की है कि समस्त गौरव के घमण्ड को तुच्छ कर दे और पृथ्वी के प्रतिष्ठितों का अपमान करवाए।

10 हे तर्शीश के निवासियों, नील नदी के समान अपने देश में फैल जाओ, अब कुछ अवरोध नहीं रहा।

11 उसने अपना हाथ समुद्र पर बढ़ाकर राज्यों को हिला दिया है; यहोवा ने कनान के दृढ़ किलों को नाश करने की आज्ञा दी है।

12 और उसने कहा है, “हे सीदोन, हे भ्रष्ट की हुई कुमारी, तू फिर प्रसन्न होने की नहीं; उठ, पार होकर कित्तियों के पास जा, परन्तु वहाँ भी तुझे चैन न मिलेगा।”

13 कसदियों के देश को देखो[fn] *, वह जाति अब न रही; अश्शूर ने उस देश को जंगली जन्तुओं का स्थान बनाया। उन्होंने मोर्चे बन्दी के अपने गुम्मट बनाए और राजभवनों को ढा दिया, और उसको खण्डहर कर दिया।

14 हे तर्शीश के जहाजों, हाय, हाय, करो, क्योंकि तुम्हारा दृढ़ स्थान उजड़ गया है।

15 उस समय एक राजा के दिनों के अनुसार सत्तर वर्ष तक सोर बिसरा हुआ रहेगा। सत्तर वर्ष के बीतने पर सोर वेश्या के समान गीत गाने लगेगा।

16 हे बिसरी हुई वेश्या, वीणा लेकर नगर में घूम, भली भाँति बजा, बहुत गीत गा, जिससे लोग फिर तुझे याद करें।

17 सत्तर वर्ष के बीतने पर यहोवा सोर की सुधि लेगा, और वह फिर छिनाले की कमाई पर मन लगाकर धरती भर के सब राज्यों के संग छिनाला करेंगी। (प्रका. 17:2)

18 उसके व्यापार की प्राप्ति, और उसके छिनाले की कमाई, यहोवा के लिये पवित्र की जाएगी; वह न भण्डार में रखी जाएगी न संचय की जाएगी, क्योंकि उसके व्यापार की प्राप्ति उन्हीं के काम में आएगी जो यहोवा के सामने रहा करेंगे, कि उनको भरपूर भोजन और चमकीला वस्त्र मिले।

सारी पृथ्वी पर प्रलय

24  1 सुनों, यहोवा पृथ्वी को निर्जन और सुनसान करने पर है, वह उसको उलटकर उसके रहनेवालों को तितर-बितर करेगा।

2 और जैसी यजमान की वैसी याजक की; जैसी दास की वैसी स्वामी की; जैसी दासी की वैसी स्वामिनी की; जैसी लेनेवाले की वैसी बेचनेवाले की; जैसी उधार देनेवाले की वैसी उधार लेनेवाले की; जैसी ब्याज लेनेवाले की वैसी ब्याज देनेवाले की; सभी की एक ही दशा होगी।

3 पृथ्वी शून्य और सत्यानाश हो जाएगी; क्योंकि यहोवा ही ने यह कहा है।

4 पृथ्वी विलाप करेगी और मुर्झाएगी, जगत कुम्हलाएगा और मुर्झा जाएगा; पृथ्वी के महान लोग भी कुम्हला जाएँगे।

5 पृथ्वी अपने रहनेवालों के कारण अशुद्ध हो गई है, क्योंकि उन्होंने व्यवस्था का उल्लंघन किया और विधि को पलट डाला, और सनातन वाचा को तोड़ दिया है।

6 इस कारण पृथ्वी को श्राप ग्रसेगा और उसमें रहनेवाले दोषी ठहरेंगे; और इसी कारण पृथ्वी के निवासी भस्म होंगे और थोड़े ही मनुष्य रह जाएँगे।

7 नया दाखमधु जाता रहेगा, दाखलता मुर्झा जाएगी, और जितने मन में आनन्द करते हैं सब लम्बी-लम्बी साँस लेंगे।

8 डफ का सुखदाई शब्द बन्द हो जाएगा, प्रसन्न होनेवालों का कोलाहल जाता रहेगा वीणा का सुखदाई शब्द शान्त हो जाएगा। (यहे. 26:13, प्रका. 18:22)

9 वे गाकर फिर दाखमधु न पीएँगे; पीनेवाले को मदिरा कड़वी लगेगी।

10 गड़बड़ी मचानेवाली नगरी नाश होगी, उसका हर एक घर ऐसा बन्द किया जाएगा कि कोई घुस न सकेगा।

11 सड़कों में लोग दाखमधु के लिये चिल्लाएँगे; आनन्द मिट जाएगा: देश का सारा हर्ष जाता रहेगा।

12 नगर उजाड़ ही उजाड़ रहेगा, और उसके फाटक तोड़कर नाश किए जाएँगे।

13 क्योंकि पृथ्वी पर देश-देश के लोगों में ऐसा होगा जैसा कि जैतून के झाड़ने के समय, या दाख तोड़ने के बाद कोई-कोई फल रह जाते हैं।

14 वे लोग गला खोलकर जयजयकार करेंगे, और यहोवा के माहात्म्य को देखकर समुद्र से ललकारेंगे।

15 इस कारण पूर्व में यहोवा की महिमा करो, और समुद्र के द्वीपों में इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का गुणानुवाद करो। (मला. 1:11, यशा. 42:10)

16 पृथ्वी की छोर से हमें ऐसे गीत की ध्वनि सुन पड़ती है, कि धर्मी की महिमा और बड़ाई हो। परन्तु मैंने कहा, “हाय, हाय! मैं नाश हो गया, नाश! क्योंकि विश्वासघाती विश्वासघात करते, वे बड़ा ही विश्वासघात करते हैं।”

17 हे पृथ्वी के रहनेवालों तुम्हारे लिये भय और गड्ढा और फंदा है! (लूका 21:35)

18 जो कोई भय के शब्द से भागे वह गड्ढे में गिरेगा, और जो कोई गड्ढे में से निकले वह फंदे में फंसेगा। क्योंकि आकाश के झरोखे खुल जाएँगे, और पृथ्वी की नींव डोल उठेगी।

19 पृथ्वी फटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाएगी[fn] * पृथ्वी अत्यन्त कम्पायमान होगी। (नहू. 1:5)

20 वह मतवाले के समान बहुत डगमगाएगी और मचान के समान डोलेगी; वह अपने पाप के बोझ से दबकर गिरेगी और फिर न उठेगी।

21 उस समय ऐसा होगा कि यहोवा आकाश की सेना को आकाश में और पृथ्वी के राजाओं[fn] * को पृथ्वी ही पर दण्ड देगा।

22 वे बन्दियों के समान गड्ढे में इकट्ठे किए जाएँगे और बन्दीगृह में बन्द किए जाएँगे; और बहुत दिनों के बाद उनकी सुधि ली जाएगी।

23 तब चन्द्रमा संकुचित हो जाएगा और सूर्य लज्जित होगा; क्योंकि सेनाओं का यहोवा सिय्योन पर्वत पर और यरूशलेम में अपनी प्रजा के पुरनियों के सामने प्रताप के साथ राज्य करेगा।

परमेश्वर की स्तुति करो

25  1 हे यहोवा, तू मेरा परमेश्वर है; मैं तुझे सराहूँगा, मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूँगा; क्योंकि तूने आश्चर्यकर्मों किए हैं, तूने प्राचीनकाल से पूरी सच्चाई के साथ युक्तियाँ की हैं।

2 तूने नगर को ढेर बना डाला, और उस गढ़वाले नगर को खण्डहर कर डाला है; तूने परदेशियों की राजपुरी को ऐसा उजाड़ा कि वह नगर नहीं रहा; वह फिर कभी बसाया न जाएगा।

3 इस कारण बलवन्त राज्य के लोग तेरी महिमा करेंगे; भयंकर जातियों के नगरों में तेरा भय माना जाएगा।

4 क्योंकि तू संकट में दीनों के लिये गढ़, और जब भयानक लोगों का झोंका दीवार पर बौछार के समान होता था, तब तू दरिद्रों के लिये उनकी शरण, और तपन में छाया का स्थान हुआ।

5 जैसे निर्जल देश में बादल की छाया से तपन ठण्डी होती है वैसे ही तू परदेशियों का कोलाहल और क्रूर लोगों को जयजयकार बन्द करता है।

परमेश्वर द्वारा तैयार भोज

6 सेनाओं का यहोवा इसी पर्वत पर सब देशों के लोगों के लिये ऐसा भोज तैयार करेगा जिसमें भाँति-भाँति का चिकना भोजन और निथरा हुआ दाखमधु होगा; उत्तम से उत्तम चिकना भोजन और बहुत ही निथरा हुआ दाखमधु होगा।

7 और जो परदा सब देशों के लोगों पर पड़ा है, जो घूँघट सब जातियों पर लटका हुआ है, उसे वह इसी पर्वत पर नाश करेगा। (इफि. 4:18)

8 वह मृत्यु को सदा के लिये नाश करेगा, और प्रभु यहोवा सभी के मुख पर से आँसू पोंछ डालेगा, और अपनी प्रजा की नामधराई सारी पृथ्वी पर से दूर करेगा; क्योंकि यहोवा ने ऐसा कहा है। (1 कुरि. 15:54, प्रका. 7:17, प्रका. 21:4)

9 उस समय यह कहा जाएगा, “देखो, हमारा परमेश्वर यही है; हम इसी की बाट जोहते आए हैं, कि वह हमारा उद्धार करे। यहोवा यही है; हम उसकी बाट जोहते आए हैं। हम उससे उद्धार पाकर मगन और आनन्दित होंगे।”

परमेश्वर मोआब को दण्ड देगा

10 क्योंकि इस पर्वत पर यहोवा का हाथ सर्वदा बना [fn] रहेगा और मोआब अपने ही स्थान में ऐसा लताड़ा जाएगा जैसा घूरे में पुआल लताड़ा जाता है।

11 वह उसमें अपने हाथ इस प्रकार फैलाएगा, जैसे कोई तैरते हुए फैलाए; परन्तु वह उसके गर्व को तोड़ेगा; और उसकी चतुराई को निष्फल कर देगा।

12 उसकी ऊँची-ऊँची और दृढ़ शहरपनाहों को वह झुकाएगा और नीचा करेगा, वरन् भूमि पर गिराकर मिट्टी में मिला देगा।

उद्धार का एक गीत

26  1 उस समय यहूदा देश में यह गीत गाया जाएगा, “हमारा एक दृढ़ नगर है; उद्धार का काम देने के लिये वह उसकी शहरपनाह और गढ़ को नियुक्त करता है।

2 फाटकों को खोलो कि सच्चाई का पालन करनेवाली एक धर्मी जाति प्रवेश करे।

3 जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए हैं, उसकी तू पूर्ण शान्ति के साथ रक्षा करता है, क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है। (फिलि. 4:7)

4 यहोवा पर सदा भरोसा रख, क्योंकि प्रभु यहोवा सनातन चट्टान है।

5 वह ऊँचे पदवाले को झुका देता, जो नगर ऊँचे पर बसा है उसको वह नीचे कर देता। वह उसको भूमि पर गिराकर मिट्टी में मिला देता है।

6 वह पाँवों से, वरन् दरिद्रों के पैरों से रौंदा जाएगा।”

7 धर्मी का मार्ग सच्चाई है; तू जो स्वयं सच्चाई है, तू धर्मी की अगुआई करता है।

8 हे यहोवा, तेरे न्याय के मार्ग में हम लोग तेरी बाट जोहते आए हैं; तेरे नाम के स्मरण की हमारे प्राणों में लालसा बनी रहती है।

9 रात के समय मैं जी से तेरी लालसा करता हूँ, मेरा सम्पूर्ण मन यत्न के साथ तुझे ढूँढ़ता है। क्योंकि जब तेरे न्याय के काम पृथ्वी पर प्रगट होते हैं, तब जगत के रहनेवाले धार्मिकता को सीखते हैं।

10 दुष्ट पर चाहे दया भी की जाए[fn] * तो भी वह धार्मिकता को न सीखेगा; धर्मराज्य में भी वह कुटिलता करेगा, और यहोवा का माहात्म्य उसे सूझ न पड़ेगा।

11 हे यहोवा, तेरा हाथ बढ़ा हुआ है, पर वे नहीं देखते। परन्तु वे जानेंगे कि तुझे प्रजा के लिये कैसी जलन है, और लजाएँगे। (मीका 5:9, इब्रा. 10:27)

12 तेरे बैरी आग से भस्म होंगे। हे यहोवा, तू हमारे लिये शान्ति ठहराएगा, हमने जो कुछ किया है उसे तू ही ने हमारे लिये किया है।

13 हे हमारे परमेश्वर यहोवा, तेरे सिवाय और स्वामी भी हम पर प्रभुता करते थे, परन्तु तेरी कृपा से हम केवल तेरे ही नाम का गुणानुवाद करेंगे।

14 वे मर गए हैं, फिर कभी जीवित नहीं होंगे; उनको मरे बहुत दिन हुए, वे फिर नहीं उठने के; तूने उनका विचार करके उनको ऐसा नाश किया कि वे फिर स्मरण में न आएँगे।

15 परन्तु तूने जाति को बढ़ाया; हे यहोवा, तूने जाति को बढ़ाया है; तूने अपनी महिमा दिखाई है और उस देश के सब सीमाओं को तूने बढ़ाया है।

16 हे यहोवा, दुःख में वे तुझे स्मरण करते थे, जब तू उन्हें ताड़ना देता था तब वे दबे स्वर से अपने मन की बात तुझ पर प्रगट करते थे।

17 जैसे गर्भवती स्त्री जनने के समय ऐंठती और पीड़ा के कारण चिल्ला उठती है, हम लोग भी, हे यहोवा, तेरे सामने वैसे ही हो गए हैं। (भज. 48:6)

18 हम भी गर्भवती हुए, हम भी ऐंठे, हमने मानो वायु ही को जन्म दिया[fn] *। हमने देश के लिये कोई उद्धार का काम नहीं किया, और न जगत के रहनेवाले उत्पन्न हुए।

19 तेरे मरे हुए लोग जीवित होंगे, मुर्दे उठ खड़े होंगे। हे मिट्टी में बसनेवालो, जागकर जयजयकार करो! क्योंकि तेरी ओस ज्योति से उत्पन्न होती है, और पृथ्वी मुर्दों को लौटा देगी[fn] *।

न्याय और छुटकारा

20 हे मेरे लोगों, आओ, अपनी-अपनी कोठरी में प्रवेश करके किवाड़ों को बन्द करो; थोड़ी देर तक जब तक क्रोध शान्त न हो तब तक अपने को छिपा रखो। (भज. 91:4, 32:7)

21 क्योंकि देखो, यहोवा पृथ्वी के निवासियों को अधर्म का दण्ड देने के लिये अपने स्थान से चला आता है, और पृथ्वी अपना खून प्रगट करेगी और घात किए हुओं को और अधिक न छिपा रखेगी।

इस्राएल का उद्धार

27  1 उस समय यहोवा अपनी कड़ी, बड़ी, और दृढ़ तलवार से लिव्यातान नामक वेग और टेढ़े चलनेवाले सर्प को दण्ड देगा, और जो अजगर समुद्र में रहता है उसको भी घात करेगा।

2 उस समय एक सुन्दर दाख की बारी होगी, तुम उसका यश गाना!

3 मैं यहोवा उसकी रक्षा करता हूँ; मैं क्षण-क्षण उसको सींचता रहूँगा[fn] *। मैं रात-दिन उसकी रक्षा करता रहूँगा ऐसा न हो कि कोई उसकी हानि करे।

4 मेरे मन में जलजलाहट नहीं है। यदि कोई भाँति-भाँति के कटीले पेड़ मुझसे लड़ने को खड़े करता, तो मैं उन पर पाँव बढ़ाकर उनको पूरी रीति से भस्म कर देता।

5 या मेरे साथ मेल करने को वे मेरी शरण लें, वे मेरे साथ मेल कर लें।

6 भविष्य में याकूब जड़ पकड़ेगा, और इस्राएल फूले-फलेगा, और उसके फलों से जगत भर जाएगा।

7 क्या उसने उसे मारा जैसा उसने उसके मारनेवालों को मारा था? क्या वह घात किया गया जैसे उसके घात किए हुए घात हुए?

8 जब तूने उसे निकाला, तब सोच-विचार कर उसको दुःख दिया: उसने पुरवाई के दिन उसको प्रचण्ड वायु से उड़ा दिया है।

9 इससे याकूब के अधर्म का प्रायश्चित किया जाएगा और उसके पाप के दूर होने का प्रतिफल यह होगा कि वे वेदी के सब पत्थरों को चूना बनाने के पत्थरों के समान चकनाचूर करेंगे, और अशेरा और सूर्य की प्रतिमाएँ फिर खड़ी न रहेंगी। (रोम. 11:27)

10 क्योंकि गढ़वाला नगर निर्जन हुआ है, वह छोड़ी हुई बस्ती के समान निर्जन और जंगल हो गया है; वहाँ बछड़े चरेंगे और वहीं बैठेंगे, और पेड़ों की डालियों की फुनगी को खा लेंगे।

11 जब उसकी शाखाएँ सूख जाएँ तब तोड़ी जाएँगी[fn] *; और स्त्रियाँ आकर उनको तोड़कर जला देंगी। क्योंकि ये लोग निर्बुद्धि हैं; इसलिए उनका कर्ता उन पर दया न करेगा, और उनका रचनेवाला उन पर अनुग्रह न करेगा।

12 उस समय यहोवा फरात से लेकर मिस्र के नाले तक अपने अन्न को फटकेगा, और हे इस्राएलियों तुम एक-एक करके इकट्ठे किए जाओगे।

13 उस समय बड़ा नरसिंगा फूँका जाएगा, और जो अश्शूर देश में नाश हो रहे थे और जो मिस्र देश में बरबस बसाए हुए थे वे यरूशलेम में आकर पवित्र पर्वत पर यहोवा को दण्डवत् करेंगे। (मत्ती 24:31)

एप्रैम और यरूशलेम पर हाय

28  1 घमण्ड के मुकुट पर हाय! जो एप्रैम के मतवालों का है, और उनकी भड़कीली सुन्दरता पर जो मुर्झानेवाला फूल है, जो अति उपजाऊ तराई के सिरे पर दाखमधु से मतवालों की है।

2 देखो, प्रभु के पास एक बलवन्त और सामर्थी है जो ओले की वर्षा या उजाड़नेवाली आँधी या बाढ़ की प्रचण्ड धार के समान है वह उसको कठोरता से भूमि पर गिरा देगा।

3 एप्रैमी मतवालों के घमण्ड का मुकुट पाँव से लताड़ा जाएगा;

4 और उनकी भड़कीली सुन्दरता का मुर्झानेवाला फूल जो अति उपजाऊ तराई के सिरे पर है, वह ग्रीष्मकाल से पहले पके अंजीर के समान होगा, जिसे देखनेवाला देखते ही हाथ में ले और निगल जाए।

5 उस समय सेनाओं का यहोवा स्वयं अपनी प्रजा के बचे हुओं के लिये सुन्दर और प्रतापी मुकुट ठहरेगा;

6 और जो न्याय करने को बैठते हैं उनके लिये न्याय करनेवाली आत्मा[fn] * और जो चढ़ाई करते हुए शत्रुओं को नगर के फाटक से हटा देते हैं, उनके लिये वह बल ठहरेगा।

7 ये भी दाखमधु के कारण डगमगाते और मदिरा से लड़खड़ाते हैं; याजक और नबी भी मदिरा के कारण डगमगाते हैं, दाखमधु ने उनको भुला दिया है, वे मदिरा के कारण लड़खड़ाते और दर्शन पाते हुए भटके जाते, और न्याय में भूल करते हैं।

8 क्योंकि सब भोजन आसन वमन और मल से भरे हैं, कोई शुद्ध स्थान नहीं बचा।

9 “वह किसको ज्ञान सिखाएगा, और किसको अपने समाचार का अर्थ समझाएगा? क्या उनको जो दूध छुड़ाए हुए और स्तन से अलगाए हुए हैं?

10 क्योंकि आज्ञा पर आज्ञा, आज्ञा पर आज्ञा, नियम पर नियम, नियम पर नियम थोड़ा यहाँ, थोड़ा वहाँ।”

11 वह तो इन लोगों से परदेशी होंठों और विदेशी भाषावालों के द्वारा बातें करेगा;

12 जिनसे उसने कहा, “विश्राम इसी से मिलेगा; इसी के द्वारा थके हुए को विश्राम दो;” परन्तु उन्होंने सुनना न चाहा।

13 इसलिए यहोवा का वचन उनके पास आज्ञा पर आज्ञा, आज्ञा पर आज्ञा, नियम पर नियम, नियम पर नियम है, थोड़ा यहाँ, थोड़ा वहाँ, जिससे वे ठोकर खाकर चित्त गिरें और घायल हो जाएँ, और फंदे में फँसकर पकड़े जाएँ।

सिय्योन में आधारशिला

14 इस कारण हे ठट्ठा करनेवालों[fn] *, यरूशलेमवासी प्रजा के हाकिमों, यहोवा का वचन सुनो!

15 तुमने कहा है “हमने मृत्यु से वाचा बाँधी और अधोलोक से प्रतिज्ञा कराई है; इस कारण विपत्ति जब बाढ़ के समान बढ़ आए तब हमारे पास न आएगी; क्योंकि हमने झूठ की शरण ली और मिथ्या की आड़ में छिपे हुए हैं।”

16 इसलिए प्रभु यहोवा यह कहता है, “देखो, मैंने सिय्योन में नींव का पत्थर रखा है, एक परखा हुआ पत्थर, कोने का अनमोल और अति दृढ़ नींव के योग्य पत्थर: और जो कोई विश्वास रखे वह उतावली न करेगा। (रोम. 9:33, 1 कुरि. 3:11, इफि. 2:20, 1 पत. 2:4-6)

17 और मैं न्याय को डोरी और धार्मिकता को साहुल ठहराऊँगा; और तुम्हारा झूठ का शरणस्थान ओलों से बह जाएगा, और तुम्हारे छिपने का स्थान जल से डूब जाएगा।”

18 तब जो वाचा तुमने मृत्यु से बाँधी है वह टूट जाएगी, और जो प्रतिज्ञा तुमने अधोलोक से कराई वह न ठहरेगी; जब विपत्ति बाढ़ के समान बढ़ आए, तब तुम उसमें डूब ही जाओगे।

19 जब-जब वह बढ़ आए, तब-तब वह तुम को ले जाएगी; वह प्रतिदिन वरन् रात-दिन बढ़ा करेंगी; और इस समाचार का सुनना ही व्याकुल होने का कारण होगा।

20 क्योंकि बिछौना टाँग फैलाने के लिये छोटा, और ओढ़ना ओढ़ने के लिये सकरा है।

21 क्योंकि यहोवा ऐसा उठ खड़ा होगा जैसा वह पराजीम नामक पर्वत पर खड़ा हुआ और जैसा गिबोन की तराई में उसने क्रोध दिखाया था; वह अब फिर क्रोध दिखाएगा, जिससे वह अपना काम करे, जो अचम्भित काम है, और वह कार्य करे जो अनोखा है।

22 इसलिए अब तुम ठट्ठा मत करो, नहीं तो तुम्हारे बन्धन कसे जाएँगे[fn] *; क्योंकि मैंने सेनाओं के प्रभु यहोवा से यह सुना है कि सारे देश का सत्यानाश ठाना गया है।

परमेश्वर का ज्ञान

23 कान लगाकर मेरी सुनो, ध्यान धरकर मेरा वचन सुनो।

24 क्या हल जोतनेवाला बीज बोने के लिये लगातार जोतता रहता है? क्या वह सदा धरती को चीरता और हेंगा फेरता रहता है?

25 क्या वह उसको चौरस करके सौंफ को नहीं छितराता, जीरे को नहीं बखेरता और गेहूँ को पाँति-पाँति करके और जौ को उसके निज स्थान पर, और कठिये गेहूँ को खेत की छोर पर नहीं बोता?

26 क्योंकि उसका परमेश्वर उसको ठीक-ठीक काम करना सिखाता और बताता है।

27 दाँवने की गाड़ी से तो सौंफ दाई नहीं जाती, और गाड़ी का पहिया जीरे के ऊपर नहीं चलाया जाता; परन्तु सौंफ छड़ी से, और जीरा सोंटे से झाड़ा जाता है।

28 रोटी के अन्न की दाँवनी की जाती है, परन्तु कोई उसको सदा दाँवता नहीं रहता; और न गाड़ी के पहिये न घोड़े उस पर चलाता है, वह उसे चूर-चूर नहीं करता।

29 यह भी सेनाओं के यहोवा की ओर से नियुक्त हुआ है, वह अद्भुत युक्तिवाला और महाबुद्धिमान है।

यरूशलेम पर हाय

29  1 हाय, अरीएल, अरीएल[fn] *, हाय उस नगर पर जिसमें दाऊद छावनी किए हुए रहा! वर्ष पर वर्ष जोड़ते जाओ, उत्सव के पर्व अपने-अपने समय पर मनाते जाओ।

2 तो भी मैं तो अरीएल को सकेती में डालूँगा, वहाँ रोना पीटना रहेगा, और वह मेरी दृष्टि में सचमुच अरीएल सा ठहरेगा।

3 मैं चारों ओर तेरे विरुद्ध छावनी करके तुझे कोटों से घेर लूँगा, और तेरे विरुद्ध गढ़ भी बनाऊँगा।

4 तब तू गिराकर भूमि में डाला जाएगा, और धूल पर से बोलेगा, और तेरी बात भूमि से धीमी-धीमी सुनाई देगी; तेरा बोल भूमि पर से प्रेत का सा होगा, और तू धूल से गुनगुनाकर बोलेगा।

5 तब तेरे परदेशी बैरियों की भीड़ सूक्ष्म धूल के समान, और उन भयानक लोगों की भीड़ भूसे के समान उड़ाई जाएगी।

6 सेनाओं का यहोवा अचानक बादल गरजाता, भूमि को कँपाता, और महाध्वनि करता, बवण्डर और आँधी चलाता, और नाश करनेवाली अग्नि भड़काता हुआ उसके पास आएगा।

7 और जातियों की सारी भीड़ जो अरीएल से युद्ध करेगी, और जितने लोग उसके और उसके गढ़ के विरुद्ध लड़ेंगे और उसको सकेती में डालेंगे, वे सब रात के देखे हुए स्वप्न के समान ठहरेंगे।

8 और जैसा कोई भूखा स्वप्न में तो देखता है कि वह खा रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका पेट भूखा ही है, या कोई प्यासा स्वप्न में देखें की वह पी रहा है, परन्तु जागकर देखता है कि उसका गला सूखा जाता है और वह प्यासा मर रहा है; वैसी ही उन सब जातियों की भीड़ की दशा होगी जो सिय्योन पर्वत से युद्ध करेंगी।

चेतावनियों को अनदेखा करना

9 ठहर जाओ और चकित हो! भोग विलास करो और अंधे हो जाओ! वे मतवाले तो हैं, परन्तु दाखमधु से नहीं[fn] *, वे डगमगाते तो हैं, परन्तु मदिरा पीने से नहीं!

10 यहोवा ने तुम को भारी नींद में डाल दिया है और उसने तुम्हारी नबीरूपी आँखों को बन्द कर दिया है और तुम्हारे दर्शीरूपी सिरों पर परदा डाला है। (रोम. 11:8)

11 इसलिए सारे दर्शन तुम्हारे लिये एक लपेटी और मुहरबन्द की हुई पुस्तक की बातों के समान हैं, जिसे कोई पढ़े-लिखे मनुष्य को यह कहकर दे, “इसे पढ़”, और वह कहे, “मैं नहीं पढ़ सकता क्योंकि इस पर मुहरबन्द की हुई है।” (प्रका. 5:1-3)

12 तब वही पुस्तक अनपढ़ को यह कहकर दी जाए, “इसे पढ़,” और वह कहे, “मैं तो अनपढ़ हूँ।”

13 प्रभु ने कहा, “ये लोग जो मुँह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझसे दूर रखते हैं, और जो केवल मनुष्यों की आज्ञा सुन सुनकर मेरा भय मानते हैं, (मत्ती 15:8, 9, मर. 7:6, 7)

14 इस कारण सुन, मैं इनके साथ अद्भुत काम वरन् अति अद्भुत और अचम्भे का काम करूँगा; तब इनके बुद्धिमानों की बुद्धि नष्ट होगी, और इनके प्रवीणों की प्रवीणता जाती रहेगी।” (1 कुरि. 1:19)

भविष्य की आशा

15 हाय उन पर जो अपनी युक्ति को यहोवा से छिपाने का बड़ा यत्न करते, और अपने काम अंधेरे में करके कहते हैं, “हमको कौन देखता है? हमको कौन जानता है?”

16 तुम्हारी कैसी उलटी समझ है! क्या कुम्हार मिट्टी के तुल्य गिना जाएगा? क्या बनाई हुई वस्तु अपने कर्ता के विषय कहे “उसने मुझे नहीं बनाया,” या रची हुई वस्तु अपने रचनेवाले के विषय कहे, “वह कुछ समझ नहीं रखता?” (रोम. 9:20, 21)

17 क्या अब थोड़े ही दिनों के बीतने पर लबानोन फिर फलदाई बारी न बन जाएगा, और फलदाई बारी जंगल न गिनी जाएगी?

18 उस समय बहरे पुस्तक की बातें सुनने लगेंगे, और अंधे जिन्हें अब कुछ नहीं सूझता, वे देखने लगेंगे। (मत्ती 11:5, प्रेरि. 26:18)

19 नम्र लोग यहोवा के कारण फिर आनन्दित होंगे, और दरिद्र मनुष्य इस्राएल के पवित्र के कारण मगन होंगे।

20 क्योंकि उपद्रवी फिर न रहेंगे और ठट्ठा करनेवालों का अन्त होगा, और जो अनर्थ करने के लिये जागते रहते हैं,

21 जो मनुष्यों को बातों में फँसाते हैं, और जो सभा में उलाहना देते उनके लिये फंदा लगाते, और धर्म को व्यर्थ बात के द्वारा बिगाड़ देते हैं, वे सब मिट जाएँगे।

22 इस कारण अब्राहम का छुड़ानेवाला[fn] * यहोवा, याकूब के घराने के विषय यह कहता है, “याकूब को फिर लज्जित होना न पड़ेगा, उसका मुख फिर नीचा न होगा।

23 क्योंकि जब उसके सन्तान मेरा काम देखेंगे, जो मैं उनके बीच में करूँगा, तब वे मेरे नाम को पवित्र ठहराएँगे, वे याकूब के पवित्र को पवित्र मानेंगे, और इस्राएल के परमेश्वर का अति भय मानेंगे।

24 उस समय जिनका मन भटका हो वे बुद्धि प्राप्त करेंगे, और जो कुड़कुड़ाते हैं वह शिक्षा ग्रहण करेंगे।”

मिस्र पर व्यर्थ आत्मविश्वास

30  1 यहोवा की यह वाणी है, “हाय उन बलवा करनेवाले लड़कों पर जो युक्ति तो करते परन्तु मेरी ओर से नहीं; वाचा तो बाँधते परन्तु मेरी आत्मा के सिखाये नहीं; और इस प्रकार पाप पर पाप बढ़ाते हैं।

2 वे मुझसे बिन पूछे मिस्र को जाते हैं कि फ़िरौन की रक्षा में रहे और मिस्र की छाया में शरण लें।

3 इसलिए फ़िरौन का शरणस्थान तुम्हारी लज्जा का, और मिस्र की छाया में शरण लेना तुम्हारी निन्दा का कारण होगा।

4 उसके हाकिम सोअन में आए तो हैं और उसके दूत अब हानेस में पहुँचे हैं।

5 वे सब एक ऐसी जाति के कारण लज्जित होंगे जिससे उनका कुछ लाभ न होगा, जो सहायता और लाभ के बदले लज्जा और नामधराई का कारण होगी।”

6 दक्षिण देश के पशुओं के विषय भारी वचन। वे अपनी धन सम्पत्ति को जवान गदहों की पीठ पर, और अपने खजानों को ऊँटों के कूबड़ों पर लादे हुए, संकट और सकेती के देश में होकर, जहाँ सिंह और सिंहनी, नाग और उड़नेवाले तेज विषधर सर्प रहते हैं, उन लोगों के पास जा रहे हैं जिनसे उनको लाभ न होगा।

7 क्योंकि मिस्र की सहायता व्यर्थ और निकम्मी है, इस कारण मैंने उसको ‘बैठी रहनेवाली रहब’ कहा है।

आज्ञा न माननेवाले लोग

8 अब जाकर इसको उनके सामने पटिया पर खोद, और पुस्तक में लिख, कि वह भविष्य के लिये वरन् सदा के लिये साक्षी बनी रहे।

9 क्योंकि वे बलवा करनेवाले लोग और झूठ बोलनेवाले लड़के हैं जो यहोवा की शिक्षा को सुनना नहीं चाहते।

10 वे दर्शियों से कहते हैं, “दर्शी मत बनो; और नबियों से कहते हैं, हमारे लिये ठीक नबूवत मत करो; हम से चिकनी-चुपड़ी बातें बोलो[fn] *, धोखा देनेवाली नबूवत करो।

11 मार्ग से मुड़ों, पथ से हटो, और इस्राएल के पवित्र को हमारे सामने से दूर करो।”

12 इस कारण इस्राएल का पवित्र यह कहता है, “तुम लोग जो मेरे इस वचन को निकम्मा जानते और अंधेर और कुटिलता पर भरोसा करके उन्हीं पर टेक लगाते हो;

13 इस कारण यह अधर्म तुम्हारे लिये ऊँची दीवार का टूटा हुआ भाग होगा जो फटकर गिरने पर हो, और वह अचानक पल भर में टूटकर गिर पड़ेगा,

14 और कुम्हार के बर्तन के समान फूटकर ऐसा चकनाचूर होगा कि उसके टुकड़ों का एक ठीकरा भी न मिलेगा जिससे अँगीठी में से आग ली जाए या हौद में से जल निकाला जाए।”

15 प्रभु यहोवा, इस्राएल का पवित्र यह कहता है, “लौट आने और शान्त रहने में तुम्हारा उद्धार है; शान्त रहते और भरोसा रखने में तुम्हारी वीरता है।” परन्तु तुमने ऐसा नहीं किया,

16 तुमने कहा, “नहीं, हम तो घोड़ों पर चढ़कर भागेंगे,” इसलिए तुम भागोगे; और यह भी कहा, “हम तेज सवारी पर चलेंगे,” इसलिए तुम्हारा पीछा करनेवाले उससे भी तेज होंगे।

17 एक ही की धमकी से एक हजार भागेंगे, और पाँच की धमकी से तुम ऐसा भागोगे कि अन्त में तुम पहाड़ की चोटी के डण्डे या टीले के ऊपर की ध्वजा के समान रह जाओगे जो चिन्ह के लिये गाड़े जाते हैं।

परमेश्वर का अपने लोगों पर अनुग्रह

18 तो भी यहोवा इसलिए विलम्ब करता है कि तुम पर अनुग्रह करे, और इसलिए ऊँचे उठेगा कि तुम पर दया करे। क्योंकि यहोवा न्यायी परमेश्वर है; क्या ही धन्य हैं वे जो उस पर आशा लगाए रहते हैं[fn] *।

19 हे सिय्योन के लोगों तुम यरूशलेम में बसे रहो; तुम फिर कभी न रोओगे, वह तुम्हारी दुहाई सुनते ही तुम पर निश्चय अनुग्रह करेगा: वह सुनते ही तुम्हारी मानेगा।

20 और चाहे प्रभु तुम्हें विपत्ति की रोटी और दुःख का जल भी दे, तो भी तुम्हारे उपदेशक फिर न छिपें, और तुम अपनी आँखों से अपने उपदेशकों को देखते रहोगे।

21 और जब कभी तुम दाहिनी या बायीं ओर मुड़ने लगो, तब तुम्हारे पीछे से यह वचन तुम्हारे कानों में पड़ेगा, “मार्ग यही है, इसी पर चलो।”

22 तब तुम वह चाँदी जिससे तुम्हारी खुदी हुई मूर्तियाँ मढ़ी हैं, और वह सोना जिससे तुम्हारी ढली हुई मूर्तियाँ आभूषित हैं, अशुद्ध करोगे। तुम उनको मैले कुचैले वस्त्र के समान फेंक दोगे और कहोगे, दूर हो।

23 वह तुम्हारे लिये जल बरसाएगा कि तुम खेत में बीज बो सको, और भूमि की उपज भी उत्तम और बहुतायत से होगी। उस समय तुम्हारे जानवरों को लम्बी-चौड़ी चराई मिलेगी।

24 और बैल और गदहे जो तुम्हारी खेती के काम में आएँगे, वे सूफ और डलिया से फटका हुआ स्वादिष्ट चारा खाएँगे।

25 उस महासंहार के समय जब गुम्मट गिर पड़ेंगे, सब ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों और पहाड़ियों पर नालियाँ और सोते पाए जाएँगे।

26 उस समय यहोवा अपनी प्रजा के लोगों का घाव बाँधेगा और उनकी चोट चंगा करेगा; तब चन्द्रमा का प्रकाश सूर्य का सा, और सूर्य का प्रकाश सात गुणा होगा, अर्थात् सप्ताह भर का प्रकाश एक दिन में होगा।

परमेश्वर अश्शूर को दण्ड देगा

27 देखो, यहोवा दूर से चला आता है, उसका प्रकोप भड़क उठा है, और धुएँ का बादल उठ रहा है; उसके होंठ क्रोध से भरे हुए और उसकी जीभ भस्म करनेवाली आग के समान है।

28 उसकी साँस ऐसी उमण्डनेवाली नदी के समान है जो गले तक पहुँचती है; वह सब जातियों को नाश के सूप से फटकेगा, और देश-देश के लोगों को भटकाने के लिये उनके जबड़ों में लगाम लगाएगा[fn] *

29 तब तुम पवित्र पर्व की रात का सा गीत गाओगे, और जैसा लोग यहोवा के पर्वत की ओर उससे मिलने को, जो इस्राएल की चट्टान है, बाँसुरी बजाते हुए जाते हैं, वैसे ही तुम्हारे मन में भी आनन्द होगा।

30 और यहोवा अपनी प्रतापीवाणी सुनाएगा, और अपना क्रोध भड़काता और आग की लौ से भस्म करता हुआ, और प्रचण्ड आँधी और अति वर्षा और ओलों के साथ अपना भुजबल दिखाएगा। (भज. 18:13, 14)

31 अश्शूर यहोवा के शब्द की शक्ति से नाश हो जाएगा, वह उसे सोंटे से मारेगा।

32 जब-जब यहोवा उसको दण्ड देगा, तब-तब साथ ही डफ और वीणा बजेंगी; और वह हाथ बढ़ाकर उसको लगातार मारता रहेगा।

33 बहुत काल से तोपेत[fn] * तैयार किया गया है, वह राजा ही के लिये ठहराया गया है, वह लम्बा-चौड़ा और गहरा भी बनाया गया है, वहाँ की चिता में आग और बहुत सी लकड़ी हैं; यहोवा की साँस जलती हुई गन्धक की धारा के समान उसको सुलगाएगी।

मिस्र पर भरोसा करने के लिए हाय

31  1 हाय उन पर जो सहायता पाने के लिये मिस्र को जाते हैं और घोड़ों का आसरा करते हैं; जो रथों पर भरोसा रखते क्योंकि वे बहुत हैं, और सवारों पर, क्योंकि वे अति बलवान हैं, पर इस्राएल के पवित्र की ओर दृष्टि नहीं करते और न यहोवा की खोज करते हैं!

2 परन्तु वह भी बुद्धिमान है[fn] * और दुःख देगा, वह अपने वचन न टालेगा, परन्तु उठकर कुकर्मियों के घराने पर और अनर्थकारियों के सहायकों पर भी चढ़ाई करेगा।

3 मिस्री लोग परमेश्वर नहीं, मनुष्य ही हैं; और उनके घोड़े आत्मा नहीं, माँस ही हैं। जब यहोवा हाथ बढ़ाएगा, तब सहायता करनेवाले और सहायता चाहनेवाले दोनों ठोकर खाकर गिरेंगे, और वे सब के सब एक संग नष्ट हो जाएँगे।

4 फिर यहोवा ने मुझसे यह कहा, “जिस प्रकार सिंह या जवान सिंह[fn] * जब अपने अहेर पर गुर्राता हो, और चरवाहे इकट्ठे होकर उसके विरुद्ध बड़ी भीड़ लगाएँ, तो भी वह उनके बोल से न घबराएगा और न उनके कोलाहल के कारण दबेगा, उसी प्रकार सेनाओं का यहोवा, सिय्योन पर्वत और यरूशलेम की पहाड़ी पर, युद्ध करने को उतरेगा।

5 पंख फैलाई हुई चिड़ियों के समान सेनाओं का यहोवा यरूशलेम की रक्षा करेगा; वह उसकी रक्षा करके बचाएगा, और उसको बिन छूए ही उद्धार करेगा।”

6 हे इस्राएलियों, जिसके विरुद्ध तुमने भारी बलवा किया है, उसी की ओर फिरो[fn] *।

7 उस समय तुम लोग सोने चाँदी की अपनी-अपनी मूर्तियों से जिन्हें तुम बनाकर पापी हो गए[fn] * हो घृणा करोगे।

8 “तब अश्शूर उस तलवार से गिराया जाएगा जो मनुष्य की नहीं; वह उस तलवार का कौर हो जाएगा जो आदमी की नहीं; और वह तलवार के सामने से भागेगा और उसके जवान बेगार में पकड़े जाएँगे।

9 वह भय के मारे अपने सुन्दर भवन से जाता रहेगा, और उसके हाकिम घबराहट के कारण ध्वजा त्याग कर भाग जाएँगे,” यहोवा जिसकी अग्नि सिय्योन में और जिसका भट्ठा यरूशलेम में हैं, उसी की यह वाणी है।

धार्मिकता का राज्य

32  1 देखो, एक राजा धार्मिकता से राज्य करेगा, और राजकुमार न्याय से हुकूमत करेंगे। (प्रका. 19:11, इब्रा. 1:8, 9)

2 हर एक मानो आँधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया।

3 उस समय देखनेवालों की आँखें धुँधली न होंगी, और सुननेवालों के कान लगे रहेंगे।

4 उतावलों के मन ज्ञान की बातें समझेंगे, और तुतलानेवालों की जीभ फुर्ती से और साफ बोलेगी।

5 मूर्ख फिर उदार न कहलाएगा और न कंजूस दानी कहा जाएगा।

6 क्योंकि मूर्ख तो मूर्खता ही की बातें बोलता[fn] * और मन में अनर्थ ही गढ़ता रहता है कि वह अधर्म के काम करे और यहोवा के विरुद्ध झूठ कहे, भूखे को भूखा ही रहने दे और प्यासे का जल रोक रखे।

7 छली की चालें बुरी होती हैं, वह दुष्ट युक्तियाँ निकालता है कि दरिद्र को भी झूठी बातों में लूटे जब कि वे ठीक और नम्रता से भी बोलते हों।

8 परन्तु उदार मनुष्य उदारता ही की युक्तियाँ निकालता है, वह उदारता में स्थिर भी रहेगा।

यरूशलेम की स्त्रियाँ

9 हे सुखी स्त्रियों, उठकर मेरी सुनो; हे निश्चिन्त पुत्रियों, मेरे वचन की ओर कान लगाओ।

10 हे निश्चिन्त स्त्रियों, वर्ष भर से कुछ ही अधिक समय में तुम विकल हो जाओगी; क्योंकि तोड़ने को दाखें न होंगी और न किसी भाँति के फल हाथ लगेंगे।

11 हे सुखी स्त्रियों, थरथराओ, हे निश्चिन्त स्त्रियों, विकल हो; अपने-अपने वस्त्र उतारकर अपनी-अपनी कमर में टाट कसो।

12 वे मनभाऊ खेतों और फलवन्त दाखलताओं के लिये छाती पीटेंगी।

13 मेरे लोगों के वरन् प्रसन्न नगर के सब हर्ष भरे घरों में भी भाँति-भाँति के कटीले पेड़ उपजेंगे।

14 क्योंकि राजभवन त्यागा जाएगा, कोलाहल से भरा नगर सुनसान हो जाएगा और पहाड़ी और उन पर के पहरुओं के घर सदा के लिये माँदे और जंगली गदहों का विहार-स्थान और घरेलू पशुओं की चराई उस समय तक बने रहेंगे

15 जब तक आत्मा ऊपर से हम पर उण्डेला न जाए, और जंगल फलदायक बारी न बने, और फलदायक बारी फिर वन न गिनी जाए।

16 तब उस जंगल में न्याय बसेगा, और उस फलदायक बारी में धार्मिकता रहेगा।

17 और धार्मिकता का फल शान्ति और उसका परिणाम सदा का चैन और निश्चिन्त रहना होगा। (रोम. 14:7, याकू. 3:18)

18 मेरे लोग शान्ति के स्थानों में निश्चिन्त रहेंगे, और विश्राम के स्थानों में सुख से रहेंगे।

19 वन के विनाश के समय ओले गिरेंगे, और नगर पूरी रीति से चौपट हो जाएगा।

20 क्या ही धन्य हो तुम जो सब जलाशयों के पास बीज बोते, और बैलों और गदहों को स्वतंत्रता से चराते हो।

गहरे संकट में प्रार्थना

33  1 हाय तुझ नाश करनेवाले पर जो नाश नहीं किया गया था; हाय तुझ विश्वासघाती पर, जिसके साथ विश्वासघात नहीं किया गया! जब तू नाश कर चुके, तब तू नाश किया जाएगा; और जब तू विश्वासघात कर चुके, तब तेरे साथ विश्वासघात किया जाएगा।

2 हे यहोवा, हम लोगों पर अनुग्रह कर; हम तेरी ही बाट जोहते हैं। भोर को तू उनका भुजबल, संकट के समय हमारा उद्धारकर्ता ठहर।

3 हुल्लड़ सुनते ही देश-देश के लोग भाग गए, तेरे उठने पर अन्यजातियाँ तितर-बितर हुई।

4 जैसे टिड्डियाँ चट करती हैं वैसे ही तुम्हारी लूट चट की जाएगी, और जैसे टिड्डियाँ टूट पड़ती हैं, वैसे ही वे उस पर टूट पड़ेंगे।

5 यहोवा महान हुआ है, वह ऊँचे पर रहता है; उसने सिय्योन को न्याय और धार्मिकता से परिपूर्ण किया है;

6 और उद्धार, बुद्धि और ज्ञान की बहुतायत तेरे दिनों का आधार होगी; यहोवा का भय उसका धन होगा।

7 देख, उनके शूरवीर बाहर चिल्ला रहे हैं; संधि के दूत बिलख-बिलख कर रो रहे हैं।

8 राजमार्ग सुनसान पड़े हैं, उन पर यात्री अब नहीं चलते। उसने वाचा को टाल दिया, नगरों को तुच्छ जाना, उसने मनुष्य को कुछ न समझा।

9 पृथ्वी विलाप करती और मुर्झा गई है; लबानोन कुम्हला गया और वह मुर्झा गया है; शारोन मरूभूमि के समान हो गया; बाशान और कर्मेल में पतझड़ हो रहा है।

सिय्योन पर न्याय

10 यहोवा कहता है, अब मैं उठूँगा, मैं अपना प्रताप दिखाऊँगा; अब मैं महान ठहरूँगा।

11 तुम में सूखी घास का गर्भ रहेगा, तुम से भूसी उत्पन्न होगी; तुम्हारी साँस आग है जो तुम्हें भस्म करेगी।

12 देश-देश के लोग फूँके हुए चूने के सामान हो जाएँगे, और कटे हुए कँटीली झाड़ियों के समान आग में जलाए जाएँगे।

13 हे दूर-दूर के लोगों[fn] *, सुनो कि मैंने क्या किया है? और तुम भी जो निकट हो, मेरा पराक्रम जान लो।

14 सिय्योन के पापी थरथरा गए हैं; भक्तिहीनों को कँपकँपी लगी है: हम में से कौन प्रचण्ड आग में रह सकता? हम में से कौन उस आग में बना रह सकता है जो कभी नहीं बुझेगी? (इब्रा. 12:29)

15 जो धार्मिकता से चलता और सीधी बातें बोलता; जो अंधेर के लाभ से घृणा करता, जो घूस नहीं लेता; जो खून की बात सुनने से कान बन्द करता, और बुराई देखने से आँख मूंद लेता है। वही ऊँचे स्थानों में निवास करेगा।

16 वह चट्टानों के गढ़ों में शरण लिए हुए रहेगा; उसको रोटी मिलेगी और पानी की घटी कभी न होगी।

उज्जवल भविष्य

17 तू अपनी आँखों से राजा को उसकी शोभा सहित देखेगा; और लम्बे-चौड़े देश पर दृष्टि करेगा। (मत्ती 17:2, यूह. 1:14)

18 तू भय के दिनों को स्मरण करेगा: लेखा लेनेवाला और कर तौलकर लेनेवाला कहाँ रहा? गुम्मटों का गिननेवाला कहाँ रहा? (1 कुरि. 1:20)

19 जिनकी कठिन भाषा तू नहीं समझता, और जिनकी लड़बड़ाती जीभ की बात तू नहीं बूझ सकता उन निर्दय लोगों को तू फिर न देखेगा।

20 हमारे पर्व के नगर सिय्योन पर दृष्टि कर! तू अपनी आँखों से यरूशलेम को देखेगा, वह विश्राम का स्थान, और ऐसा तम्बू है जो कभी गिराया नहीं जाएगा, जिसका कोई खूँटा कभी उखाड़ा न जाएगा, और न कोई रस्सी कभी टूटेगी।

21 वहाँ महाप्रतापी यहोवा हमारे लिये रहेगा, वह बहुत बड़ी-बड़ी नदियों और नहरों का स्थान होगा, जिसमें डाँडवाली नाव न चलेगी और न शोभायमान जहाज उसमें होकर जाएगा।

22 क्योंकि यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा हाकिम, यहोवा हमारा राजा है; वही हमारा उद्धार करेगा।

23 तेरी रस्सियाँ ढीली हो गईं, वे मस्तूल की जड़ को दृढ़ न रख सकीं[fn] *, और न पाल को तान सकीं।

तब बड़ी लूट छीनकर बाँटी गई, लँगड़े लोग भी लूट के भागी हुए।

24 कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूँ; और जो लोग उसमें बसेंगे, उनका अधर्म क्षमा किया जाएगा।

राष्ट्रों के विरुद्ध परमेश्वर का प्रकोप

34  1 हे जाति-जाति के लोगों, सुनने के लिये निकट आओ, और हे राज्य-राज्य के लोगों, ध्यान से सुनो! पृथ्वी भी, और जो कुछ उसमें है, जगत और जो कुछ उसमें उत्पन्न होता है, सब सुनो।

2 यहोवा सब जातियों पर क्रोध कर रहा है, और उनकी सारी सेना पर उसकी जलजलाहट भड़की हुई है[fn] *, उसने उनको सत्यानाश होने, और संहार होने को छोड़ दिया है।

3 उनके मारे हुए फेंक दिये जाएँगे, और उनके शवों की दुर्गन्ध उठेगी; उनके लहू से पहाड़ गल जाएँगे।

4 आकाश के सारे गण जाते रहेंगे और आकाश कागज के समान लपेटा जाएगा। और जैसे दाखलता या अंजीर के वृक्ष के पत्ते मुर्झाकर गिर जाते हैं, वैसे ही उसके सारे गण धुँधले होकर जाते रहेंगे। (मत्ती 24:29, मर. 13:25, लूका 21:26, 2 पत. 3:12, प्रका. 6:13, 14)

5 क्योंकि मेरी तलवार आकाश में पीकर तृप्त हुई है; देखो, वह न्याय करने को एदोम पर, और जिन पर मेरा श्राप है उन पर पड़ेगी।

6 यहोवा की तलवार लहू से भर गई है[fn] *, वह चर्बी से और भेड़ों के बच्चों और बकरों के लहू से, और मेढ़ों के गुर्दों की चर्बी से तृप्त हुई है। क्योंकि बोस्रा नगर में यहोवा का एक यज्ञ और एदोम देश में बड़ा संहार हुआ है।

7 उनके संग जंगली सांड और बछड़े और बैल वध होंगे, और उनकी भूमि लहू से भीग जाएगी और वहाँ की मिट्टी चर्बी से अघा जाएगी।

8 क्योंकि बदला लेने को यहोवा का एक दिन और सिय्योन का मुकद्दमा चुकाने का एक वर्ष नियुक्त है।

9 और एदोम की नदियाँ राल से और उसकी मिट्टी गन्धक से बदल जाएगी; उसकी भूमि जलती हुई राल बन जाएगी।

10 वह रात-दिन न बुझेगी; उसका धुआँ सदैव उठता रहेगा। युग-युग वह उजाड़ पड़ा रहेगा; कोई उसमें से होकर कभी न चलेगा। (प्रका. 14:11, प्रका. 19:3)

11 उसमें धनेश पक्षी और साही पाए जाएँगे और वह उल्लू और कौवे का बसेरा होगा। वह उस पर गड़बड़ की डोरी और सुनसानी का साहुल तानेगा। (प्रका. 18:2, सप. 2:14)

12 वहाँ न तो रईस होंगे और न ऐसा कोई होगा जो राज्य करने को ठहराया जाए; उसके सब हाकिमों का अन्त होगा। (प्रका. 6:15)

13 उसके महलों में कटीले पेड़, गढ़ों में बिच्छू पौधे और झाड़ उगेंगे। वह गीदड़ों का वासस्थान और शुतुर्मुर्गों का आँगन हो जाएगा।

14 वहाँ निर्जल देश के जन्तु सियारों के संग मिलकर बसेंगे और रोंआर जन्तु एक दूसरे को बुलाएँगे; वहाँ लीलीत नामक जन्तु वासस्थान पाकर चैन से रहेगा। (प्रका. 18:2)

15 वहाँ मादा उल्‍लू घोंसला बनाएगी; वे अण्डे देकर उन्हें सेएँगी और अपनी छाया में बटोर लेंगी; वहाँ गिद्ध अपनी साथिन के साथ इकट्ठे रहेंगे।

16 यहोवा की पुस्तक से ढूँढ़कर पढ़ो: इनमें से एक भी बात बिना पूरा हुए न रहेगी; कोई बिना जोड़ा न रहेगा। क्योंकि मैंने अपने मुँह से यह आज्ञा दी है और उसी की आत्मा ने उन्हें इकट्ठा किया है।

17 उसी ने उनके लिये चिट्ठी डाली, उसी ने अपने हाथ से डोरी डालकर उस देश को उनके लिये बाँट दिया है; वह सर्वदा उनका ही बना रहेगा और वे पीढ़ी से पीढ़ी तक उसमें बसे रहेंगे।

परमेश्वर की महिमा दिखेगी

35  1 जंगल और निर्जल देश प्रफुल्लित होंगे, मरूभूमि मगन होकर केसर के समान फूलेगी;

2 वह अत्यन्त प्रफुल्लित होगी और आनन्द के साथ जयजयकार करेगी। उसकी शोभा लबानोन की सी होगी[fn] * और वह कर्मेल और शारोन के तुल्य तेजोमय हो जाएगी। वे यहोवा की शोभा और हमारे परमेश्वर का तेज देखेंगे।

परमेश्वर द्वारा बदलाव और प्रतिफल

3 ढीले हाथों को दृढ़ करो और थरथराते हुए घुटनों को स्थिर करो। (इब्रा. 12:12)

4 घबरानेवालों से कहो, “हियाव बाँधो, मत डरो! देखो, तुम्हारा परमेश्वर बदला लेने और प्रतिफल देने को आ रहा है। हाँ, परमेश्वर आकर तुम्हारा उद्धार करेगा।”

5 तब अंधों की आँखें खोली जाएँगी और बहरो के कान भी खोले जाएँगे;

6 तब लँगड़ा हिरन की सी चौकड़ियाँ भरेगा और गूँगे अपनी जीभ से जयजयकार करेंगे। क्योंकि जंगल में जल के सोते फूट निकलेंगे और मरूभूमि में नदियाँ बहने लगेंगी; (मत्ती 11:5, यशा. 41:17, 18)

7 मृगतृष्णा ताल बन जाएगी और सूखी भूमि में सोते फूटेंगे; और जिस स्थान में सियार बैठा करते हैं उसमें घास और नरकट और सरकण्डे होंगे।

परमेश्वर के पवित्र राजमार्ग

8 वहाँ एक सड़क अर्थात् राजमार्ग होगा, उसका नाम पवित्र मार्ग होगा; कोई अशुद्ध जन उस पर से न चलने पाएगा[fn] *; वह तो उन्हीं के लिये रहेगा और उस मार्ग पर जो चलेंगे वह चाहे मूर्ख भी हों तो भी कभी न भटकेंगे।

9 वहाँ सिंह न होगा ओर न कोई हिंसक जन्तु उस पर न चढ़ेगा न वहाँ पाया जाएगा, परन्तु छुड़ाए हुए उसमें नित चलेंगे।

10 और यहोवा ने छुड़ाए हुए लोग लौटकर जयजयकार करते हुए सिय्योन में आएँगे; और उनके सिर पर सदा का आनन्द होगा; वे हर्ष और आनन्द पाएँगे और शोक और लम्बी साँस का लेना जाता रहेगा। (प्रका. 21:4)

अश्शूर का यहूदा पर आक्रमण

36  1 हिजकिय्याह राजा के राज्य के चौदहवें वर्ष में, अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरों पर चढ़ाई करके उनको ले लिया।

2 और अश्शूर के राजा ने रबशाके की बड़ी सेना देकर लाकीश से यरूशलेम के पास हिजकिय्याह राजा के विरुद्ध भेज दिया। और वह उत्तरी जलकुण्ड की नाली के पास धोबियों के खेत की सड़क पर जाकर खड़ा हुआ।

3 तब हिल्किय्याह का पुत्र एलयाकीम जो राजघराने के काम पर नियुक्त था, और शेबना जो मंत्री था, और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास का लेखक था, ये तीनों उससे मिलने को बाहर निकल गए।

4 रबशाके ने उनसे कहा, “हिजकिय्याह से कहो, ‘महाराजाधिराज अश्शूर का राजा यह कहता है कि तू किसका भरोसा किए बैठा है?

5 मेरा कहना है कि क्या मुँह से बातें बनाना ही युद्ध के लिये पराक्रम और युक्ति है? तू किस पर भरोसा रखता है कि तूने मुझसे बलवा किया है?

6 सुन, तू तो उस कुचले हुए नरकट[fn] * अर्थात् मिस्र पर भरोसा रखता है; उस पर यदि कोई टेक लगाए तो वह उसके हाथ में चुभकर छेद कर देगा। मिस्र का राजा फ़िरौन उन सब के साथ ऐसा ही करता है जो उस पर भरोसा रखते हैं।

7 फिर यदि तू मुझसे कहे, हमारा भरोसा अपने परमेश्वर यहोवा पर है, तो क्या वह वही नहीं है जिसके ऊँचे स्थानों और वेदियों को ढाकर हिजकिय्याह ने यहूदा और यरूशलेम के लोगों से कहा कि तुम इस वेदी के सामने दण्डवत् किया करो?

8 इसलिए अब मेरे स्वामी अश्शूर के राजा के साथ वाचा बाँध तब मैं तुझे दो हजार घोड़े दूँगा यदि तू उन पर सवार चढ़ा सके।

9 फिर तू रथों और सवारों के लिये मिस्र पर भरोसा रखकर मेरे स्वामी के छोटे से छोटे कर्मचारी को भी कैसे हटा सकेगा?

10 क्या मैंने यहोवा के बिना कहे इस देश को उजाड़ने के लिये चढ़ाई की है? यहोवा ने मुझसे कहा है, उस देश पर चढ़ाई करके उसे उजाड़ दे।’”

11 तब एलयाकीम, शेबना और योआह ने रबशाके से कहा, “अपने दासों से अरामी भाषा में बात कर क्योंकि हम उसे समझते हैं; हम से यहूदी भाषा में शहरपनाह पर बैठे हुए लोगों के सुनते बातें न कर।”

12 रबशाके ने कहा, “क्या मेरे स्वामी ने मुझे तेरे स्वामी ही के या तुम्हारे ही पास ये बातें कहने को भेजा है? क्या उसने मुझे उन लोगों के पास नहीं भेजा जो शहरपनाह पर बैठे हैं जिन्हें तुम्हारे संग अपनी विष्ठा खाना और अपना मूत्र पीना पड़ेगा?”

13 तब रबशाके ने खड़े होकर यहूदी भाषा में ऊँचे शब्द से कहा, “महाराजाधिराज अश्शूर के राजा की बातें सुनो!

14 राजा यह कहता है, ‘ हिजकिय्याह तुम को धोखा न दे[fn] *, क्योंकि वह तुम्हें बचा न सकेगा।

15 ऐसा न हो कि हिजकिय्याह तुम से यह कहकर यहोवा का भरोसा दिलाने पाए कि यहोवा निश्चय हमको बचाएगा कि यह नगर अश्शूर के राजा के वश में न पड़ेगा।

16 हिजकिय्याह की मत सुनो; अश्शूर का राजा कहता है, भेंट भेजकर मुझे प्रसन्न करो और मेरे पास निकल आओ; तब तुम अपनी-अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष के फल खा पाओगे, और अपने-अपने कुण्ड का पानी पिया करोगे;

17 जब तक मैं आकर तुम को ऐसे देश में न ले जाऊँ जो तुम्हारे देश के समान अनाज और नये दाखमधु का देश और रोटी और दाख की बारियों का देश है।

18 ऐसा न हो कि हिजकिय्याह यह कहकर तुम को बहकाए कि यहोवा हमको बचाएगा। क्या और जातियों के देवताओं ने अपने-अपने देश को अश्शूर के राजा के हाथ से बचाया है?

19 हमात और अर्पाद के देवता कहाँ रहे? सपर्वैम के देवता कहाँ रहे? क्या उन्होंने सामरिया को मेरे हाथ से बचाया?

20 देश-देश के सब देवतओं में से ऐसा कौन है जिसने अपने देश को मेरे हाथ से बचाया हो? फिर क्या यहोवा यरूशलेम को मेरे हाथ से बचाएगा?’”

21 परन्तु वे चुप रहे[fn] * और उसके उत्तर में एक बात भी न कही, क्योंकि राजा की ऐसी आज्ञा थी कि उसको उत्तर न देना।

22 तब हिल्किय्याह का पुत्र एलयाकीम जो राजघराने के काम पर नियुक्त था और शेबना जो मंत्री था और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास का लेखक था, इन्होंने हिजकिय्याह के पास वस्त्र फाड़े हुए जाकर रबशाके की बातें कह सुनाई।

हिजकिय्याह का यशायाह से सलाह माँगना

37  1 जब हिजकिय्याह राजा ने यह सुना, तब वह अपने वस्त्र फाड़ और टाट ओढ़कर यहोवा के भवन में गया।

2 और उसने एलयाकीम को जो राजघराने के काम पर नियुक्त था और शेबना मंत्री को और याजकों के पुरनियों को जो सब टाट ओढ़े हुए थे, आमोस के पुत्र यशायाह नबी के पास भेज दिया।

3 उन्होंने उससे कहा, “हिजकिय्याह यह कहता है कि ‘आज का दिन संकट और उलाहने और निन्दा का दिन है, बच्चे जन्मने पर हुए पर जच्चा को जनने का बल न रहा।

4 सम्भव है कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने रबशाके की बातें सुनी जिसे उसके स्वामी अश्शूर के राजा ने जीविते परमेश्वर की निन्दा करने को भेजा[fn] * है, और जो बातें तेरे परमेश्वर यहोवा ने सुनी हैं उसके लिये उन्हें दपटे; अतः तू इन बचे हुओं के लिये जो रह गए हैं, प्रार्थना कर।’”

5 जब हिजकिय्याह राजा के कर्मचारी यशायाह के पास आए।

6 तब यशायाह ने उनसे कहा, “अपने स्वामी से कहो, ‘यहोवा यह कहता है कि जो वचन तूने सुने हैं जिनके द्वारा अश्शूर के राजा के जनों ने मेरी निन्दा की है, उनके कारण मत डर।

7 सुन, मैं उसके मन में प्रेरणा उत्पन्न करूँगा जिससे वह कुछ समाचार सुनकर अपने देश को लौट जाए; और मैं उसको उसी देश में तलवार से मरवा डालूँगा।’”

सन्हेरीब का पत्र

8 तब रबशाके ने लौटकर अश्शूर के राजा को लिब्ना नगर से युद्ध करते पाया; क्योंकि उसने सुना था कि वह लाकीश के पास से उठ गया है।

9 उसने कूश के राजा तिर्हाका के विषय यह सुना कि वह उससे लड़ने को निकला है। तब उसने हिजकिय्याह के पास दूतों को यह कहकर भेजा।

10 “तुम यहूदा के राजा हिजकिय्याह से यह कहना, ‘तेरा परमेश्वर जिस पर तू भरोसा करता है, यह कहकर तुझे धोखा न देने पाए कि यरूशलेम अश्शूर के राजा के वश में न पड़ेगा।

11 देख, तूने सुना है कि अश्शूर के राजाओं ने सब देशों से कैसा व्यवहार किया कि उन्हें सत्यानाश ही कर दिया।

12 फिर क्या तू बच जाएगा? गोजान और हारान और रेसेप में रहनेवाली जिन जातियों को और तलस्सार में रहनेवाले एदेनी लोगों को मेरे पुरखाओं ने नाश किया, क्या उनके देवताओं ने उन्हें बचा लिया?

13 हमात का राजा, अर्पाद का राजा, सपर्वैम नगर का राजा, और हेना और इव्वा के राजा, ये सब कहाँ गए?’”

हिजकिय्याह की प्रार्थना

14 इस पत्री को हिजकिय्याह ने दूतों के हाथ से लेकर पढ़ा; तब उसने यहोवा के भवन में जाकर उस पत्री को यहोवा के सामने फैला दिया।

15 और यहोवा से यह प्रार्थना की,

16 “हे सेनाओं के यहोवा, हे करूबों पर विराजमान इस्राएल के परमेश्वर, पृथ्वी के सब राज्यों के ऊपर केवल तू ही परमेश्वर है; आकाश और पृथ्वी को तू ही ने बनाया है।

17 हे यहोवा, कान लगाकर सुन; हे यहोवा आँख खोलकर देख; और सन्हेरीब के सब वचनों को सुन ले, जिसने जीविते परमेश्वर की निन्दा करने को लिख भेजा है।

18 हे यहोवा, सच तो है कि अश्शूर के राजाओं ने सब जातियों के देशों को उजाड़ा है

19 और उनके देवताओं को आग में झोंका है; क्योंकि वे ईश्वर न थे, वे केवल मनुष्यों की कारीगरी, काठ और पत्थर ही थे; इस कारण वे उनको नाश कर सके। (भज. 115:4-8, गला. 4:8)

20 अब हे हमारे परमेश्वर यहोवा, तू हमें उसके हाथ से बचा जिससे पृथ्वी के राज्य-राज्य के लोग जान लें कि केवल तू ही यहोवा है।”

सन्हेरीब के विषय में परमेश्वर का वचन

21 तब आमोस के पुत्र यशायाह ने हिजकिय्याह के पास यह कहला भेजा, “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा यह कहता है, तूने जो अश्शूर के राजा सन्हेरीब के विषय में मुझसे प्रार्थना की है,

22 उसके विषय यहोवा ने यह वचन कहा है, ‘सिय्योन की कुँवारी कन्या तुझे तुच्छ जानती है और उपहास में उड़ाती है; यरूशलेम की पुत्री तुझ पर सिर हिलाती है।

23 “‘तूने किसकी नामधराई और निन्दा की है? और तू जो बड़ा बोल बोला और घमण्ड किया है, वह किसके विरुद्ध किया है? इस्राएल के पवित्र के विरुद्ध!

24 अपने कर्मचारियों के द्वारा तूने प्रभु की निन्दा करके कहा है कि बहुत से रथ लेकर मैं पर्वतों की चोटियों पर वरन् लबानोन के बीच तक चढ़ आया हूँ; मैं उसके ऊँचे-ऊँचे देवदारों और अच्छे-अच्छे सनोवर वृक्षों को काट डालूँगा और उसके दूर-दूर के ऊँचे स्थानों में और उसके वन की फलदाई बारियों में प्रवेश करूँगा।

25 मैंने खुदवाकर पानी पिया और मिस्र की नहरों में पाँव धरते ही उन्हें सूखा दिया।

26 क्या तूने नहीं सुना कि प्राचीनकाल से मैंने यही ठाना और पूर्वकाल से इसकी तैयारी की थी? इसलिए अब मैंने यह पूरा भी किया है[fn] * कि तू गढ़वाले नगरों को खण्डहर ही खण्डहर कर दे।

27 इसी कारण उनके रहनेवालों का बल घट गया और वे विस्मित और लज्जित हुए: वे मैदान के छोटे-छोटे पेड़ों और हरी घास और छत पर की घास और ऐसे अनाज के समान हो गए जो बढ़ने से पहले ही सूख जाता है।

28 “‘मैं तो तेरा बैठना, कूच करना और लौट आना जानता हूँ; और यह भी कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता है।

29 इस कारण कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता और तेरे अभिमान की बातें मेरे कानों में पड़ी हैं, मैं तेरी नाक में नकेल डालकर और तेरे मुँह में अपनी लगाम लगाकर जिस मार्ग से तू आया है उसी मार्ग से तुझे लौटा दूँगा।’

30 “और तेरे लिये यह चिन्ह होगा कि इस वर्ष तो तुम उसे खाओगे जो आप से आप उगें, और दूसरे वर्ष वह जो उससे उत्पन्न हो, और तीसरे वर्ष बीज बोकर उसे लवने पाओगे और दाख की बारियाँ लगाने और उनका फल खाने पाओगे।

31 और यहूदा के घराने के बचे हुए लोग फिर जड़ पकड़ेंगे और फूलें-फलेंगे;

32 क्योंकि यरूशलेम से बचे हुए और सिय्योन पर्वत से भागे हुए लोग निकलेंगे। सेनाओं का यहोवा अपनी जलन के कारण यह काम करेगा।

33 “इसलिए यहोवा अश्शूर के राजा के विषय यह कहता है कि वह इस नगर में प्रवेश करने, वरन् इस पर एक तीर भी मारने न पाएगा; और न वह ढाल लेकर इसके सामने आने या इसके विरुद्ध दमदमा बाँधने पाएगा।

34 जिस मार्ग से वह आया है उसी से वह लौट भी जाएगा और इस नगर में प्रवेश न करने पाएगा, यहोवा की यही वाणी है।

35 क्योंकि मैं अपने निमित्त और अपने दास दाऊद के निमित्त, इस नगर की रक्षा करके उसे बचाऊँगा[fn] *।”

सन्हेरीब की हार और मृत्यु

36 तब यहोवा के दूत ने निकलकर अश्शूरियों की छावनी में एक लाख पचासी हजार पुरुषों को मारा; और भोर को जब लोग उठे तब क्या देखा कि शव ही शव पड़े हैं।

37 तब अश्शूर का राजा सन्हेरीब चल दिया और लौटकर नीनवे में रहने लगा।

38 वहाँ वह अपने देवता निस्रोक के मन्दिर में दण्डवत् कर रहा था कि इतने में उसके पुत्र अद्रम्मेलेक और शरेसेर ने उसको तलवार से मारा और अरारात देश में भाग गए। और उसका पुत्र एसर्हद्दोन उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

हिजकिय्याह की बीमारी और चंगाई

38  1 उन दिनों में हिजकिय्याह ऐसा रोगी हुआ कि वह मरने पर था। और आमोस के पुत्र यशायाह नबी ने उसके पास जाकर कहा, “यहोवा यह कहता है, अपने घराने के विषय जो आज्ञा देनी हो वह दे, क्योंकि तू न बचेगा मर ही जाएगा।”

2 तब हिजकिय्याह ने दीवार की ओर मुँह फेरकर[fn] * यहोवा से प्रार्थना करके कहा;

3 “हे यहोवा, मैं विनती करता हूँ, स्मरण कर कि मैं सच्चाई और खरे मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलता आया हूँ और जो तेरी दृष्टि में उचित था वही करता आया हूँ।” और हिजकिय्याह बिलख-बिलख कर रोने लगा।

4 तब यहोवा का यह वचन यशायाह के पास पहुँचा,

5 “जाकर हिजकिय्याह से कह कि तेरे मूलपुरुष दाऊद का परमेश्वर यहोवा यह कहता है, ‘मैंने तेरी प्रार्थना सुनी और तेरे आँसू देखे हैं; सुन, मैं तेरी आयु पन्द्रह वर्ष और बढ़ा दूँगा।

6 अश्शूर के राजा के हाथ से मैं तेरी और इस नगर की रक्षा करके बचाऊँगा।’”

7 यहोवा अपने इस कहे हुए वचन को पूरा करेगा,

8 और यहोवा की ओर से इस बात का तेरे लिये यह चिन्ह होगा कि धूप की छाया जो आहाज की धूपघड़ी में ढल गई है, मैं दस अंश पीछे की ओर लौटा दूँगा। अतः वह छाया जो दस अंश ढल चुकी थी लौट गई।

9 यहूदा के राजा हिजकिय्याह का लेख जो उसने लिखा जब वह रोगी होकर चंगा हो गया था, वह यह है:

10 मैंने कहा, अपनी आयु के बीच ही मैं अधोलोक के फाटकों में प्रवेश करूँगा;

क्योंकि मेरी शेष आयु हर ली गई है। (मत्ती 16:18)

11 मैंने कहा, मैं यहोवा को जीवितों की भूमि में फिर न देखने पाऊँगा;

इस लोक के निवासियों को मैं फिर न देखूँगा।

12 मेरा घर चरवाहे के तम्बू के समान उठा लिया गया है;

मैंने जुलाहे के समान अपने जीवन को लपेट दिया है;

वह मुझे ताँत से काट लेगा;

एक ही दिन में तू मेरा अन्त कर डालेगा।

13 मैं भोर तक अपने मन को शान्त करता रहा;

वह सिंह के समान मेरी सब हड्डियों को तोड़ता है[fn] *;

एक ही दिन में तू मेरा अन्त कर डालता है।

14 मैं सूपाबेने या सारस के समान च्यूं-च्यूं करता, मैं पिंडुक के समान विलाप करता हूँ।

मेरी आँखें ऊपर देखते-देखते पत्थरा गई हैं।

हे यहोवा, मुझ पर अंधेर हो रहा है; तू मेरा सहारा हो!

15 मैं क्या कहूँ? उसी ने मुझसे प्रतिज्ञा की और पूरा भी किया है।

मैं जीवन भर कड़वाहट के साथ धीरे-धीरे चलता रहूँगा।

16 हे प्रभु, इन्हीं बातों से लोग जीवित हैं, और इन सभी से मेरी आत्मा को जीवन मिलता है।

तू मुझे चंगा कर और मुझे जीवित रख!

17 देख, शान्ति ही के लिये मुझे बड़ी कड़वाहट मिली;

परन्तु तूने स्नेह करके मुझे विनाश के गड्ढे से निकाला है,

क्योंकि मेरे सब पापों को तूने अपनी पीठ के पीछे फेंक दिया है।

18 क्योंकि अधोलोक तेरा धन्यवाद नहीं कर सकता, न मृत्यु तेरी स्तुति कर सकती है;

जो कब्र में पड़ें वे तेरी सच्चाई की आशा नहीं रख सकते

19 जीवित, हाँ जीवित ही तेरा धन्यवाद करता है, जैसा मैं आज कर रहा हूँ;

पिता तेरी सच्चाई का समाचार पुत्रों को देता है।

20 यहोवा मेरा उद्धार करेगा, इसलिए हम जीवन भर यहोवा के भवन में

तारवाले बाजों पर अपने रचे हुए गीत गाते रहेंगे।

21 यशायाह ने कहा था, “अंजीरों की एक टिकिया बनाकर हिजकिय्याह के फोड़े पर बाँधी जाए, तब वह बचेगा।”

22 हिजकिय्याह ने पूछा था, “इसका क्या चिन्ह है कि मैं यहोवा के भवन को फिर जाने पाऊँगा?”

हिजकिय्याह की मूर्खता

39  1 उस समय बलदान का पुत्र मरोदक बलदान, जो बाबेल का राजा था, उसने हिजकिय्याह के रोगी होने और फिर चंगे हो जाने की चर्चा सुनकर उसके पास पत्री और भेंट भेजी।

2 इनसे हिजकिय्याह ने प्रसन्न होकर अपने अनमोल पदार्थों का भण्डार और चाँदी, सोना, सुगन्ध-द्रव्य, उत्तम तेल और अपने अनमोल पदार्थों का भण्डारों में जो-जो वस्तुएँ थी, वे सब उनको दिखलाई। हिजकिय्याह के भवन और राज्य भर में कोई ऐसी वस्तु नहीं रह गई जो उसने उन्हें न दिखाई हो।

3 तब यशायाह नबी ने हिजकिय्याह राजा के पास जाकर पूछा, “वे मनुष्य क्या कह गए, और वे कहाँ से तेरे पास आए थे?” हिजकिय्याह ने कहा, “वे तो दूर देश से अर्थात् बाबेल से मेरे पास आए थे।”

4 फिर उसने पूछा, “ तेरे भवन में उन्होंने क्या-क्या देखा[fn] * है?” हिजकिय्याह ने कहा, “जो कुछ मेरे भवन में है, वह सब उन्होंने देखे है; मेरे भण्डारों में कोई ऐसी वस्तु नहीं जो मैंने उन्हें न दिखाई हो।”

5 तब यशायाह ने हिजकिय्याह से कहा, “सेनाओं के यहोवा का यह वचन सुन ले:

6 ऐसे दिन आनेवाले हैं, जिनमें जो कुछ तेरे भवन में है और जो कुछ आज के दिन तक तेरे पुरखाओं का रखा हुआ तेरे भण्डारों में हैं, वह सब बाबेल को उठ जाएगा; यहोवा यह कहता है कि कोई वस्तु न बचेगी।

7 जो पुत्र तेरे वंश में उत्पन्न हों, उनमें से भी कई को वे बँधुवाई में ले जाएँगे; और वे खोजे बनकर बाबेल के राजभवन में रहेंगे।”

8 हिजकिय्याह ने यशायाह से कहा, “यहोवा का वचन जो तूने कहा है वह भला ही है।” फिर उसने कहा, “मेरे दिनों में तो शान्ति और सच्चाई बनी रहेगी।”

परमेश्वर के लोगों को शान्ति

40  1 तुम्हारा परमेश्वर यह कहता है, मेरी प्रजा को शान्ति दो, शान्ति दो! (भज. 85:8, 2 कुरि. 1:4)

2 यरूशलेम से शान्ति की बातें कहो; और उससे पुकारकर कहो कि तेरी कठिन सेवा पूरी हुई है, तेरे अधर्म का दण्ड अंगीकार किया गया है: यहोवा के हाथ से तू अपने सब पापों का दूना दण्ड पा चुका है। (प्रका. 1:5)

3 किसी की पुकार सुनाई देती है, “जंगल में यहोवा का मार्ग सुधारो, हमारे परमेश्वर के लिये अराबा में एक राजमार्ग चौरस करो। (मत्ती 3:3, मर. 1:3, मला. 3:1, यूह. 1:23)

4 हर एक तराई भर दी जाए और हर एक पहाड़ और पहाड़ी गिरा दी जाए; जो टेढ़ा है वह सीधा और जो ऊँचा-नीचा है वह चौरस किया जाए।

5 तब यहोवा का तेज प्रगट होगा और सब प्राणी उसको एक संग देखेंगे; क्योंकि यहोवा ने आप ही ऐसा कहा है।” (भज. 72:19, लूका 3:6)

6 बोलनेवाले का वचन सुनाई दिया, “प्रचार कर!” मैंने कहा, “मैं क्या प्रचार करूँ?” सब प्राणी घास हैं, उनकी शोभा मैदान के फूल के समान है।

7 जब यहोवा की साँस उस पर चलती है, तब घास सूख जाती है, और फूल मुर्झा जाता है; निःसन्देह प्रजा घास है। (याकू. 1:10, 11)

8 घास तो सूख जाती, और फूल मुर्झा जाता है; परन्तु हमारे परमेश्वर का वचन सदैव अटल रहेगा[fn] *। (1 पत. 1:24, 25)

9 हे सिय्योन को शुभ समाचार सुनानेवाली, ऊँचे पहाड़ पर चढ़ जा; हे यरूशलेम को शुभ समाचार सुनानेवाली, बहुत ऊँचे शब्द से सुना, ऊँचे शब्द से सुना, मत डर; यहूदा के नगरों से कह, “अपने परमेश्वर को देखो!” (यशा. 52:7, 8)

10 देखो, प्रभु यहोवा सामर्थ्य दिखाता हुआ आ रहा है, वह अपने भुजबल से प्रभुता करेगा; देखो, जो मजदूरी देने की है वह उसके पास है और जो बदला देने का है वह उसके हाथ में है। (प्रका. 22:7-12)

11 वह चरवाहे के समान अपने झुण्ड को चराएगा, वह भेड़ों के बच्चों को अँकवार में लिए रहेगा और दूध पिलानेवालियों को धीरे-धीरे ले चलेगा। (यहे. 34:23, मीका 5:4)

इस्राएल का अतुलनीय परमेश्वर

12 किसने महासागर को चुल्लू से मापा और किसके बित्ते से आकाश का नाप हुआ, किसने पृथ्वी की मिट्टी को नपुए में भरा और पहाड़ों को तराजू में और पहाड़ियों को काँटे में तौला है?

13 किसने यहोवा की आत्मा को मार्ग बताया या उसका सलाहकार होकर उसको ज्ञान सिखाया[fn] * है? (1 कुरि. 2:16)

14 उसने किससे सम्मति ली और किसने उसे समझाकर न्याय का पथ बता दिया और ज्ञान सिखाकर बुद्धि का मार्ग जता दिया है? (रोम. 11:34, 35)

15 देखो, जातियाँ तो डोल की एक बूंद या पलड़ों पर की धूल के तुल्य ठहरीं; देखो, वह द्वीपों को धूल के किनकों सरीखे उठाता है।

16 लबानोन भी ईंधन के लिये थोड़ा होगा और उसमें के जीव-जन्तु होमबलि के लिये बस न होंगे।

17 सारी जातियाँ उसके सामने कुछ नहीं हैं, वे उसकी दृष्टि में लेश और शून्य से भी घट ठहरीं हैं।

18 तुम परमेश्वर को किसके समान बताओगे और उसकी उपमा किससे दोगे?

19 मूरत! कारीगर ढालता है, सुनार उसको सोने से मढ़ता और उसके लिये चाँदी की साँकलें ढालकर बनाता है।

20 जो कंगाल इतना अर्पण नहीं कर सकता, वह ऐसा वृक्ष चुन लेता है जो न घुने; तब एक निपुण कारीगर ढूँढ़कर मूरत खुदवाता और उसे ऐसा स्थिर कराता है कि वह हिल न सके। (प्रेरि. 17:29)

21 क्या तुम नहीं जानते? क्या तुमने नहीं सुना? क्या तुम को आरम्भ ही से नहीं बताया गया? क्या तुमने पृथ्वी की नींव पड़ने के समय ही से विचार नहीं किया?

22 यह वह है जो पृथ्वी के घेरे के ऊपर आकाशमण्डल पर विराजमान है; और पृथ्वी के रहनेवाले टिड्डी के तुल्य है; जो आकाश को मलमल के समान फैलाता और ऐसा तान देता है जैसा रहने के लिये तम्बू ताना जाता है;

23 जो बड़े-बड़े हाकिमों को तुच्छ कर देता है, और पृथ्वी के अधिकारियों को शून्य के समान कर देता है।

24 वे रोपे ही जाते, वे बोए ही जाते, उनके ठूँठ भूमि में जड़ ही पकड़ पाते कि वह उन पर पवन बहाता और वे सूख जाते, और आँधी उन्हें भूसे के समान उड़ा ले जाती है।

25 इसलिए तुम मुझे किसके समान बताओगे कि मैं उसके तुल्य ठहरूँ? उस पवित्र का यही वचन है।

26 अपनी आँखें ऊपर उठाकर देखो, किसने इनको सिरजा? वह इन गणों को गिन-गिनकर निकालता, उन सबको नाम ले-लेकर बुलाता है? वह ऐसा सामर्थी और अत्यन्त बलवन्त है कि उनमें से कोई बिना आए नहीं रहता।

27 हे याकूब, तू क्यों कहता है, हे इस्राएल तू क्यों बोलता है, “मेरा मार्ग यहोवा से छिपा हुआ है, मेरा परमेश्वर मेरे न्याय की कुछ चिन्ता नहीं करता?”

28 क्या तुम नहीं जानते? क्या तुमने नहीं सुना? यहोवा जो सनातन परमेश्वर और पृथ्वी भर का सृजनहार है, वह न थकता, न श्रमित होता है, उसकी बुद्धि अगम है।

29 वह थके हुए को बल देता है और शक्तिहीन को बहुत सामर्थ्य देता है।

30 तरूण तो थकते और श्रमित हो जाते हैं, और जवान ठोकर खाकर गिरते हैं;

31 परन्तु जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएँगे, वे उकाबों के समान उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे और श्रमित न होंगे, चलेंगे और थकित न होंगे।

इस्राएल को परमेश्वर का आश्वासन

41  1 हे द्वीपों, मेरे सामने चुप रहो; देश-देश के लोग नया बल प्राप्त करें; वे समीप आकर बोलें; हम आपस में न्याय के लिये एक-दूसरे के समीप आएँ।

2 किसने पूर्व दिशा से एक को उभारा है, जिसे वह धार्मिकता के साथ अपने पाँव के पास बुलाता है? वह जातियों को उसके वश में कर देता और उसको राजाओं पर अधिकारी ठहराता है; वह अपनी तलवार से उन्हें धूल के समान, और अपने धनुष से उड़ाए हुए भूसे के समान कर देता है।

3 वह उन्हें खदेड़ता[fn] * और ऐसे मार्ग से, जिस पर वह कभी न चला था, बिना रोक-टोक आगे बढ़ता है।

4 किसने यह काम किया है और आदि से पीढ़ियों को बुलाता आया है? मैं यहोवा, जो सबसे पहला, और अन्त के समय रहूँगा; मैं वहीं हूँ। (प्रका. 1:8, प्रका. 22:13, प्रका. 16:5)

5 द्वीप देखकर डरते हैं, पृथ्वी के दूर देश काँप उठे और निकट आ गए हैं।

6 वे एक दूसरे की सहायता करते हैं और उनमें से एक अपने भाई से कहता है, “हियाव बाँध!”

7 बढ़ई सुनार को और हथौड़े से बराबर करनेवाला निहाई पर मारनेवाले को यह कहकर हियाव बन्धा रहा है, “जोड़ तो अच्छी है,” अतः वह कील ठोंक-ठोंककर उसको ऐसा दृढ़ करता है कि वह स्थिर रहे।

8 हे मेरे दास इस्राएल, हे मेरे चुने हुए याकूब, हे मेरे मित्र अब्राहम के वंश; (याकू. 2:23, व्य. 14:2, भज. 105:6)

9 तू जिसे मैंने पृथ्वी के दूर-दूर देशों से लिया और पृथ्वी की छोर से बुलाकर यह कहा, “तू मेरा दास है, मैंने तुझे चुना है और त्यागा नहीं;” (भज. 107:2, 3, भज. 94:14)

10 मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूँ, इधर-उधर मत ताक, क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर हूँ; मैं तुझे दृढ़ करूँगा और तेरी सहायता करूँगा, अपने धर्ममय दाहिने हाथ से मैं तुझे सम्भाले रहूँगा। (यहो. 1:9, व्य. 31:6)

11 देख, जो तुझ से क्रोधित हैं, वे सब लज्जित होंगे; जो तुझ से झगड़ते हैं उनके मुँह काले होंगे और वे नाश होकर मिट जाएँगे।

12 जो तुझ से लड़ते हैं उन्हें ढूँढ़ने पर भी तू न पाएगा; जो तुझ से युद्ध करते हैं वे नाश होकर मिट जाएँगे।

13 क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा, तेरा दाहिना हाथ पकड़कर कहूँगा, “मत डर, मैं तेरी सहायता करूँगा।”

14 हे कीड़े सरीखे याकूब, हे इस्राएल के मनुष्यों, मत डरो! यहोवा की यह वाणी है, मैं तेरी सहायता करूँगा; इस्राएल का पवित्र तेरा छुड़ानेवाला है।

15 देख, मैंने तुझे छुरीवाले दाँवने का एक नया और उत्तम यन्त्र ठहराया है; तू पहाड़ों को दाँव-दाँवकर[fn] * सूक्ष्म धूल कर देगा, और पहाड़ियों को तू भूसे के समान कर देगा।

16 तू उनको फटकेगा, और पवन उन्हें उड़ा ले जाएगी, और आँधी उन्हें तितर-बितर कर देगी। परन्तु तू यहोवा के कारण मगन होगा, और इस्राएल के पवित्र के कारण बड़ाई मारेगा।

17 जब दीन और दरिद्र लोग जल ढूँढ़ने पर भी न पायें और उनका तालू प्यास के मारे सूख जाये; मैं यहोवा उनकी विनती सुनूँगा, मैं इस्राएल का परमेश्वर उनको त्याग न दूँगा।

18 मैं मुण्डे टीलों से भी नदियाँ और मैदानों के बीच में सोते बहाऊँगा; मैं जंगल को ताल और निर्जल देश को सोते ही सोते कर दूँगा।

19 मैं जंगल में देवदार, बबूल, मेंहदी, और जैतून उगाऊँगा; मैं अराबा में सनोवर, चिनार वृक्ष, और चीड़ इकट्ठे लगाऊँगा;

20 जिससे लोग देखकर जान लें, और सोचकर पूरी रीति से समझ लें कि यह यहोवा के हाथ का किया हुआ और इस्राएल के पवित्र का सृजा हुआ है।

मूर्तियों की निरर्थकता

21 यहोवा कहता है, “अपना मुकद्दमा लड़ो,” याकूब का राजा कहता है, “अपने प्रमाण दो।”

22 वे उन्हें देकर हमको बताएँ कि भविष्य में क्या होगा? पूर्वकाल की घटनाएँ बताओ कि आदि में क्या-क्या हुआ, जिससे हम उन्हें सोचकर जान सके कि भविष्य में उनका क्या फल होगा; या होनेवाली घटनाएँ हमको सुना दो।

23 भविष्य में जो कुछ घटेगा वह बताओ, तब हम मानेंगे कि तुम ईश्वर हो; भला या बुरा, कुछ तो करो कि हम देखकर चकित को जाएँ।

24 देखो, तुम कुछ नहीं हो[fn] *, तुम से कुछ नहीं बनता; जो कोई तुम्हें चाहता है वह घृणित है।

25 मैंने एक को उत्तर दिशा से उभारा, वह आ भी गया है; वह पूर्व दिशा से है और मेरा नाम लेता है; जैसा कुम्हार गीली मिट्टी को लताड़ता है, वैसा ही वह हाकिमों को कीच के समान लताड़ देगा।

26 किसने इस बात को पहले से बताया था, जिससे हम यह जानते? किसने पूर्वकाल से यह प्रगट किया जिससे हम कहें कि वह सच्चा है? कोई भी बतानेवाला नहीं, कोई भी सुनानेवाला नहीं, तुम्हारी बातों का कोई भी सुनानेवाला नहीं है।

27 मैं ही ने पहले सिय्योन से कहा, “देख, उन्हें देख,” और मैंने यरूशलेम को एक शुभ समाचार देनेवाला भेजा।

28 मैंने देखने पर भी किसी को न पाया; उनमें कोई मंत्री नहीं जो मेरे पूछने पर कुछ उत्तर दे सके।

29 सुनो, उन सभी के काम अनर्थ हैं; उनके काम तुच्छ हैं, और उनकी ढली हुई मूर्तियाँ वायु और मिथ्या हैं।

प्रभु का दास

42  1 मेरे दास को देखो जिसे मैं सम्भाले हूँ, मेरे चुने हुए को, जिससे मेरा जी प्रसन्न है; मैंने उस पर अपना आत्मा रखा है, वह जाति-जाति के लिये न्याय प्रगट करेगा। (मत्ती 3:17, लूका 9:35, 2 पत. 1:17)

2 न वह चिल्लाएगा और न ऊँचे शब्द से बोलेगा, न सड़क में अपनी वाणी सुनायेगा।

3 कुचले हुए नरकट[fn] * को वह न तोड़ेगा और न टिमटिमाती बत्ती को बुझाएगा; वह सच्चाई से न्याय चुकाएगा।

4 वह न थकेगा और न हियाव छोड़ेगा जब तक वह न्याय को पृथ्वी पर स्थिर न करे; और द्वीपों के लोग उसकी व्यवस्था की बाट जोहेंगे।

5 परमेश्वर जो आकाश का सृजने और ताननेवाला है, जो उपज सहित पृथ्वी का फैलानेवाला और उस पर के लोगों को साँस और उस पर के चलनेवालों को आत्मा देनेवाला यहोवा है, वह यह कहता है:

6 “मुझ यहोवा ने तुझको धार्मिकता से बुला लिया है, मैं तेरा हाथ थाम कर तेरी रक्षा करूँगा; मैं तुझे प्रजा के लिये वाचा और जातियों के लिये प्रकाश ठहराऊँगा; (लूका 2:32, प्रेरि. 13:47)

7 कि तू अंधों की आँखें खोले, बन्दियों को बन्दीगृह से निकाले और जो अंधियारे में बैठे हैं उनको कालकोठरी से निकाले। (यशा. 61:1, प्रेरि. 26:18)

8 मैं यहोवा हूँ, मेरा नाम यही है; अपनी महिमा मैं दूसरे को न दूँगा और जो स्तुति मेरे योग्य है वह खुदी हुई मूरतों को न दूँगा[fn] *।

9 देखो, पहली बातें तो हो चुकी है, अब मैं नई बातें बताता हूँ; उनके होने से पहले मैं तुम को सुनाता हूँ।”

स्तुति का एक गीत

10 हे समुद्र पर चलनेवालों, हे समुद्र के सब रहनेवालों, हे द्वीपों, तुम सब अपने रहनेवालों समेत यहोवा के लिये नया गीत गाओ और पृथ्वी की छोर से उसकी स्तुति करो। (भज. 96:1-3, भज. 97:1)

11 जंगल और उसमें की बस्तियाँ और केदार के बसे हुए गाँव जयजयकार करें; सेला के रहनेवाले जयजयकार करें, वे पहाड़ों की चोटियों पर से ऊँचे शब्द से ललकारें।

12 वे यहोवा की महिमा प्रगट करें और द्वीपों में उसका गुणानुवाद करें।

13 यहोवा वीर के समान निकलेगा और योद्धा के समान अपनी जलन भड़काएगा, वह ऊँचे शब्द से ललकारेगा और अपने शत्रुओं पर जयवन्त होगा।

14 बहुत काल से तो मैं चुप रहा और मौन साधे अपने को रोकता रहा; परन्तु अब जच्चा के समान चिल्लाऊँगा मैं हाँफ-हाँफकर साँस भरूँगा।

15 पहाड़ों और पहाड़ियों को मैं सूखा डालूँगा और उनकी सब हरियाली झुलसा दूँगा; मैं नदियों को द्वीप कर दूँगा और तालों को सूखा डालूँगा।

16 मैं अंधों को एक मार्ग से ले चलूँगा जिसे वे नहीं जानते और उनको ऐसे पथों से चलाऊँगा जिन्हें वे नहीं जानते। उनके आगे मैं अंधियारे को उजियाला करूँगा और टेढ़े मार्गों को सीधा करूँगा। मैं ऐसे-ऐसे काम करूँगा और उनको न त्यागूँगा। (लूका 3:5, यशा. 29:18)

17 जो लोग खुदी हुई मूरतों पर भरोसा रखते और ढली हुई मूरतों से कहते हैं, “तुम हमारे ईश्वर हो,” उनको पीछे हटना और अत्यन्त लज्जित होना पड़ेगा।

इस्राएल का अंधापन और बहरापन

18 हे बहरो, सुनो; हे अंधों, आँख खोलो कि तुम देख सको! (मत्ती 11:5)

19 मेरे दास के सिवाय कौन अंधा है? मेरे भेजे हुए दूत के तुल्य कौन बहरा है? मेरे मित्र के समान कौन अंधा या यहोवा के दास के तुल्य अंधा कौन है?

20 तू बहुत सी बातों पर दृष्टि करता है परन्तु उन्हें देखता नहीं है; कान तो खुले हैं परन्तु सुनता नहीं है[fn] *।

21 यहोवा को अपनी धार्मिकता के निमित्त ही यह भाया है कि व्यवस्था की बड़ाई अधिक करे। (मत्ती 5:17, 18, रोम. 7:12, 10:4)

22 परन्तु ये लोग लुट गए हैं, ये सब के सब गड्ढों में फँसे हुए और कालकोठरियों में बन्द किए हुए हैं; ये पकड़े गए और कोई इन्हें नहीं छुड़ाता; ये लुट गए और कोई आज्ञा नहीं देता कि उन्हें लौटा ले आओ।

23 तुम में से कौन इस पर कान लगाएगा? कौन ध्यान करके होनहार के लिये सुनेगा?

24 किसने याकूब को लुटवाया और इस्राएल को लुटेरों के वश में कर दिया? क्या यहोवा ने यह नहीं किया जिसके विरुद्ध हमने पाप किया, जिसके मार्गों पर उन्होंने चलना न चाहा और न उसकी व्यवस्था को माना?

25 इस कारण उस पर उसने अपने क्रोध की आग भड़काई और युद्ध का बल चलाया; और यद्यपि आग उसके चारों ओर लग गई, तो भी वह न समझा; वह जल भी गया, तो भी न चेता।

परमेश्वर हमेशा अपने लोगों के साथ

43  1 हे याकूब तेरा सृजनहार यहोवा, और हे इस्राएल तेरा रचनेवाला, अब यह कहता है, “मत डर, क्योंकि मैंने तुझे छुड़ा लिया है; मैंने तुझे नाम लेकर बुलाया है, तू मेरा ही है।

2 जब तू जल में होकर जाए, मैं तेरे संग-संग रहूँगा और जब तू नदियों में होकर चले, तब वे तुझे न डुबा सकेगी; जब तू आग में चले तब तुझे आँच न लगेगी, और उसकी लौ तुझे न जला सकेगी।

3 क्योंकि मैं यहोवा तेरा परमेश्वर हूँ, इस्राएल का पवित्र मैं तेरा उद्धारकर्ता हूँ, तेरी छुड़ौती में मैं मिस्र को और तेरे बदले कूश और सबा को देता हूँ।

4 मेरी दृष्टि में तू अनमोल और प्रतिष्ठित ठहरा है और मैं तुझ से प्रेम रखता हूँ, इस कारण मैं तेरे बदले मनुष्यों को और तेरे प्राण के बदले में राज्य-राज्य के लोगों को दे दूँगा।

5 मत डर, क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ; मैं तेरे वंश को पूर्व से ले आऊँगा, और पश्चिम से भी इकट्ठा करूँगा। (यहे. 36:24, जक. 8:7)

6 मैं उत्तर से कहूँगा, ‘दे दे’, और दक्षिण से कि ‘रोक मत रख;’ मेरे पुत्रों को दूर से और मेरी पुत्रियों को पृथ्वी की छोर से ले आओ; (भज. 107:2, 3)

7 हर एक को जो मेरा कहलाता है, जिसको मैंने अपनी महिमा के लिये सृजा, जिसको मैंने रचा और बनाया है।”

इस्राएल परमेश्वर का गवाह

8 आँख रहते हुए अंधे को और कान रखते हुए बहरो को निकाल ले आओ!

9 जाति-जाति के लोग इकट्ठे किए जाएँ और राज्य-राज्य के लोग एकत्रित हों। उनमें से कौन यह बात बता सकता[fn] * या बीती हुई बातें हमें सुना सकता है? वे अपने साक्षी ले आएँ जिससे वे सच्चे ठहरें, वे सुन लें और कहें, यह सत्य है।

10 यहोवा की वाणी है, “तुम मेरे साक्षी हो और मेरे दास हो, जिन्हें मैंने इसलिए चुना है कि समझकर मेरा विश्वास करो और यह जान लो कि मैं वही हूँ। मुझसे पहले कोई परमेश्वर न हुआ और न मेरे बाद कोई होगा। (यूह. 1:7, 8, यशा. 45:6)

11 मैं ही यहोवा हूँ और मुझे छोड़ कोई उद्धारकर्ता नहीं।

12 मैं ही ने समाचार दिया और उद्धार किया और वर्णन भी किया, जब तुम्हारे बीच में कोई पराया देवता न था; इसलिए तुम ही मेरे साक्षी हो,” यहोवा की यह वाणी है।

13 “मैं ही परमेश्वर हूँ और भविष्य में भी मैं ही हूँ; मेरे हाथ से कोई छुड़ा न सकेगा; जब मैं काम करना चाहूँ तब कौन मुझे रोक सकेगा।” (1 तीमु. 1:17, रोम. 9:18, 19)

बाबेल से बच जाना

14 तुम्हारा छुड़ानेवाला और इस्राएल का पवित्र यहोवा यह कहता है, “तुम्हारे निमित्त मैंने बाबेल को भेजा है, और उसके सब रहनेवालों को भगोड़ों की दशा में और कसदियों को भी उन्हीं के जहाजों पर चढ़ाकर ले आऊँगा जिनके विषय वे बड़ा बोल बोलते हैं।

15 मैं यहोवा तुम्हारा पवित्र, इस्राएल का सृजनहार, तुम्हारा राजा हूँ।”

16 यहोवा जो समुद्र में मार्ग और प्रचण्ड धारा में पथ बनाता है,

17 जो रथों और घोड़ों को और शूरवीरों समेत सेना को निकाल लाता है, (वे तो एक संग वहीं रह गए और फिर नहीं उठ सकते, वे बुझ गए, वे सन की बत्ती के समान बुझ गए हैं।) वह यह कहता है,

18 “अब बीती हुई घटनाओं का स्मरण मत करो, न प्राचीनकाल की बातों पर मन लगाओ।

19 देखो, मैं एक नई बात करता हूँ; वह अभी प्रगट होगी, क्या तुम उससे अनजान रहोगे? मैं जंगल में एक मार्ग बनाऊँगा और निर्जल देश में नदियाँ बहाऊँगा। (भज. 107:35)

20 गीदड़ और शुतुर्मुर्ग आदि जंगली जन्तु मेरी महिमा करेंगे; क्योंकि मैं अपनी चुनी हुई प्रजा के पीने के लिये जंगल में जल और निर्जल देश में नदियाँ बहाऊँगा।

21 इस प्रजा को मैंने अपने लिये बनाया है कि वे मेरा गुणानुवाद करें। (1 कुरि. 10:31, 1 पत. 2:9)

इस्राएल का पाप

22 “तो भी हे याकूब, तूने मुझसे प्रार्थना नहीं की; वरन् हे इस्राएल तू मुझसे थक गया है!

23 मेरे लिये होमबलि करने को तू मेम्ने नहीं लाया और न मेलबलि चढ़ाकर मेरी महिमा की है। देख, मैंने अन्नबलि चढ़ाने की कठिन सेवा तुझ से नहीं कराई, न तुझ से धूप लेकर तुझे थका दिया है।

24 तू मेरे लिये सुगन्धित नरकट रुपये से मोल नहीं लाया और न मेलबलियों की चर्बी से मुझे तृप्त किया। परन्तु तूने अपने पापों के कारण मुझ पर बोझ लाद दिया है, और अपने अधर्म के कामों से मुझे थका दिया है।

25 “मैं वही हूँ जो अपने नाम के निमित्त तेरे अपराधों को मिटा देता हूँ और तेरे पापों को स्मरण न करूँगा। (इब्रा. 10:17, 8:12, यिर्म. 31:34)

26 मुझे स्मरण करो, हम आपस में विवाद करें; तू अपनी बात का वर्णन कर जिससे तू निर्दोष ठहरे।

27 तेरा मूलपुरुष पापी हुआ और जो-जो मेरे और तुम्हारे बीच बिचवई हुए, वे मुझसे बलवा करते चले आए हैं।

28 इस कारण मैंने पवित्रस्थान के हाकिमों को अपवित्र ठहराया, मैंने याकूब को सत्यानाश और इस्राएल को निन्दित होने दिया है।

आत्मिक आशीष

44  1 “परन्तु अब हे मेरे दास याकूब, हे मेरे चुने हुए इस्राएल, सुन ले!

2 तेरा कर्ता यहोवा, जो तुझे गर्भ ही से बनाता आया और तेरी सहायता करेगा, यह कहता है: हे मेरे दास याकूब, हे मेरे चुने हुए यशूरून, मत डर!

3 क्योंकि मैं प्यासी भूमि पर जल और सूखी भूमि पर धाराएँ बहाऊँगा; मैं तेरे वंश पर अपनी आत्मा और तेरी सन्तान पर अपनी आशीष उण्डेलूँगा। (प्रका. 21:6, योए. 2:28)

4 वे उन मजनुओं के समान बढ़ेंगे जो धाराओं के पास घास के बीच में होते हैं।

5 कोई कहेगा, ‘मैं यहोवा का हूँ,’ कोई अपना नाम याकूब रखेगा, कोई अपने हाथ पर लिखेगा, ‘मैं यहोवा का हूँ,’ और अपना कुलनाम इस्राएली बताएगा।”

प्रभु यहोवा ही एकमात्र परमेश्वर

6 यहोवा, जो इस्राएल का राजा है, अर्थात् सेनाओं का यहोवा जो उसका छुड़ानेवाला है, वह यह कहता है, “मैं सबसे पहला हूँ, और मैं ही अन्त तक रहूँगा; मुझे छोड़ कोई परमेश्वर है ही नहीं। (प्रका. 1:17, व्य. 1:17, प्रका. 21:6, प्रका. 22:13)

7 जब से मैंने प्राचीनकाल में मनुष्यों को ठहराया, तब से कौन हुआ जो मेरे समान उसको प्रचार करे, या बताए या मेरे लिये रचे अथवा होनहार बातें पहले ही से प्रगट करे?

8 मत डरो और न भयभीत हो; क्या मैंने प्राचीनकाल ही से ये बातें तुम्हें नहीं सुनाईं और तुम पर प्रगट नहीं की? तुम मेरे साक्षी हो। क्या मुझे छोड़ कोई और परमेश्वर है? नहीं, मुझे छोड़ कोई चट्टान नहीं; मैं किसी और को नहीं जानता।”

मूर्तिपूजा मूर्खता है

9 जो मूरत खोदकर बनाते हैं, वे सबके सब व्यर्थ हैं और जिन वस्तुओं में वे आनन्द ढूँढ़ते उनसे कुछ लाभ न होगा; उनके साक्षी, न तो आप कुछ देखते और न कुछ जानते हैं, इसलिए उनको लज्जित होना पड़ेगा।

10 किसने देवता या निष्फल मूरत ढाली है?

11 देख, उसके सब संगियों को तो लज्जित होना पड़ेगा, कारीगर तो मनुष्य ही है; वे सबके सब इकट्ठे होकर खड़े हों; वे डर जाएँगे; वे सबके सब लज्जित होंगे।

12 लोहार एक बसूला अंगारों में बनाता और हथौड़ों से गढ़कर तैयार करता है, अपने भुजबल से वह उसको बनाता है; फिर वह भूखा हो जाता है और उसका बल घटता है, वह पानी नहीं पीता और थक जाता है।

13 बढ़ई सूत लगाकर टाँकी से रेखा करता है और रन्दनी से काम करता और परकार से रेखा खींचता है, वह उसका आकार और मनुष्य की सी सुन्दरता बनाता है ताकि लोग उसे घर में रखें।

14 वह देवदार को काटता या वन के वृक्षों में से जाति-जाति के बांज वृक्ष चुनकर देख-भाल करता है, वह देवदार का एक वृक्ष लगाता है जो वर्षा का जल पाकर बढ़ता है।

15 तब वह मनुष्य के ईंधन के काम में आता है[fn] *; वह उसमें से कुछ सुलगाकर तापता है, वह उसको जलाकर रोटी बनाता है; उसी से वह देवता भी बनाकर उसको दण्डवत् करता है; वह मूरत खुदवाकर उसके सामने प्रणाम करता है।

16 उसका एक भाग तो वह आग में जलाता और दूसरे भाग से माँस पकाकर खाता है, वह माँस भूनकर तृप्त होता; फिर तापकर कहता है, “अहा, मैं गर्म हो गया, मैंने आग देखी है!”

17 और उसके बचे हुए भाग को लेकर वह एक देवता अर्थात् एक मूरत खोदकर बनाता है; तब वह उसके सामने प्रणाम और दण्डवत् करता और उससे प्रार्थना करके कहता है, “मुझे बचा ले, क्योंकि तू मेरा देवता है!” (प्रेरि. 17:29)

18 वे कुछ नहीं जानते, न कुछ समझ रखते हैं; क्योंकि उनकी आँखें ऐसी बन्द की गई हैं कि वे देख नहीं सकते; और उनकी बुद्धि ऐसी कि वे बूझ नहीं सकते।

19 कोई इस पर ध्यान नहीं करता, और न किसी को इतना ज्ञान या समझ रहती है कि वह कह सके, “उसका एक भाग तो मैंने जला दिया और उसके कोयलों पर रोटी बनाई; और माँस भूनकर खाया है; फिर क्या मैं उसके बचे हुए भाग को घिनौनी वस्तु बनाऊँ? क्या मैं काठ को प्रणाम करूँ?”

20 वह राख खाता है[fn] *; भरमाई हुई बुद्धि के कारण वह भटकाया गया है और वह न अपने को बचा सकता और न यह कह सकता है, “क्या मेरे दाहिने हाथ में मिथ्या नहीं?”

परमेश्वर इस्राएल को नहीं भुला

21 हे याकूब, हे इस्राएल, इन बातों को स्मरण कर, तू मेरा दास है, मैंने तुझे रचा है; हे इस्राएल, तू मेरा दास है, मैं तुझको न भूलूँगा।

22 मैंने तेरे अपराधों को काली घटा के समान और तेरे पापों को बादल के समान मिटा दिया है; मेरी ओर फिर लौट आ, क्योंकि मैंने तुझे छुड़ा लिया है।

23 हे आकाश ऊँचे स्वर से गा, क्योंकि यहोवा ने यह काम किया है; हे पृथ्वी के गहरे स्थानों, जयजयकार करो; हे पहाड़ों, हे वन, हे वन के सब वृक्षों, गला खोलकर ऊँचे स्वर से गाओ! क्योंकि यहोवा ने याकूब को छुड़ा लिया है और इस्राएल में महिमावान होगा। (भज. 69:34, 35, यशा. 49:13)

24 यहोवा, तेरा उद्धारकर्ता, जो तुझे गर्भ ही से बनाता आया है, यह कहता है, “मैं यहोवा ही सब का बनानेवाला हूँ जिसने अकेले ही आकाश को ताना और पृथ्वी को अपनी ही शक्ति से फैलाया है।

25 मैं झूठे लोगों के कहे हुए चिन्हों को व्यर्थ कर देता और भावी कहनेवालों को बावला कर देता हूँ; जो बुद्धिमानों को पीछे हटा देता और उनकी पंडिताई को मूर्खता बनाता हूँ; (अय्यू. 5:12-14, 1 कुरि. 1:20)

26 और अपने दास के वचन को पूरा करता और अपने दूतों की युक्ति को सफल करता हूँ; जो यरूशलेम के विषय कहता है, ‘वह फिर बसाई जाएगी’ और यहूदा के नगरों के विषय, ‘वे फिर बनाए जाएँगे और मैं उनके खण्डहरों को सुधारूँगा,’

27 जो गहरे जल से कहता है, ‘तू सूख जा, मैं तेरी नदियों को सूखाऊँगा;’ (यिर्म. 51:36)

28 जो कुस्रू के विषय में कहता है, ‘वह मेरा ठहराया हुआ चरवाहा है और मेरी इच्छा पूरी करेगा;’ यरूशलेम के विषय कहता है, ‘वह बसाई जाएगी,’ और मन्दिर के विषय कि ‘तेरी नींव डाली जाएगी।’” (एज्रा 1:1-3)

कुस्रू जो परमेश्वर का अभिषिक्त है

45  1 यहोवा अपने अभिषिक्त कुस्रू के विषय यह कहता है, मैंने उसके दाहिने हाथ को इसलिए थाम लिया है कि उसके सामने जातियों को दबा दूँ और राजाओं की कमर ढीली करूँ, उसके सामने फाटकों को ऐसा खोल दूँ कि वे फाटक बन्द न किए जाएँ।

2 “ मैं तेरे आगे-आगे चलूँगा[fn] * और ऊँची-ऊँची भूमि को चौरस करूँगा, मैं पीतल के किवाड़ों को तोड़ डालूँगा और लोहे के बेंड़ों को टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा।

3 मैं तुझको अंधकार में छिपा हुआ और गुप्त स्थानों में गड़ा हुआ धन दूँगा, जिससे तू जाने कि मैं इस्राएल का परमेश्वर यहोवा हूँ जो तुझे नाम लेकर बुलाता है। (यिर्म. 27:5, कुलु. 2:3)

4 अपने दास याकूब और अपने चुने हुए इस्राएल के निमित्त मैंने नाम लेकर तुझे बुलाया है; यद्यपि तू मुझे नहीं जानता, तो भी मैंने तुझे पदवी दी है।

5 मैं यहोवा हूँ और दूसरा कोई नहीं, मुझे छोड़ कोई परमेश्वर नहीं; यद्यपि तू मुझे नहीं जानता, तो भी मैं तेरी कमर कसूँगा,

6 जिससे उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक लोग जान लें कि मुझ बिना कोई है ही नहीं; मैं यहोवा हूँ और दूसरा कोई नहीं है।

7 मैं उजियाले का बनानेवाला और अंधियारे का सृजनहार हूँ, मैं शान्ति का दाता और विपत्ति को रचता हूँ, मैं यहोवा ही इन सभी का कर्ता हूँ।

8 हे आकाश ऊपर से धार्मिकता बरसा, आकाशमण्डल से धार्मिकता की वर्षा हो; पृथ्वी खुले कि उद्धार उत्पन्न हो; और धार्मिकता भी उसके संग उगाए; मैं यहोवा ही ने उसे उत्पन्न किया है।

कुम्हार और मिट्टी

9 “हाय उस पर जो अपने रचनेवाले से झगड़ता है! वह तो मिट्टी के ठीकरों में से एक ठीकरा ही है! क्या मिट्टी कुम्हार से कहेगी, ‘तू यह क्या करता है?’ क्या कारीगर का बनाया हुआ कार्य उसके विषय कहेगा, ‘उसके हाथ नहीं है’? (रोम. 9:20, 21)

10 हाय उस पर जो अपने पिता से कहे, ‘तू क्या जन्माता है?’ और माँ से कहे, ‘तू किसकी माता है?’”

11 यहोवा जो इस्राएल का पवित्र और उसका बनानेवाला है वह यह कहता है, “क्या तुम आनेवाली घटनाएँ मुझसे पूछोगे? क्या मेरे पुत्रों और मेरे कामों के विषय मुझे आज्ञा दोगे?

12 मैं ही ने पृथ्वी को बनाया और उसके ऊपर मनुष्यों को सृजा है; मैंने अपने ही हाथों से आकाश को ताना और उसके सारे गणों को आज्ञा दी है।

13 मैं ही ने उस पुरुष को धार्मिकता में उभारा है और मैं उसके सब मार्गों को सीधा करूँगा; वह मेरे नगर को फिर बसाएगा और मेरे बन्दियों को बिना दाम या बदला लिए छुड़ा देगा,” सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।

केवल परमेश्वर उद्धारकर्ता

14 यहोवा यह कहता है, “मिस्रियों की कमाई और कूशियों के व्यापार का लाभ और सबाई लोग जो डील-डौलवाले हैं, तेरे पास चले आएँगे, और तेरे ही हो जाएँगे, वे तेरे पीछे-पीछे चलेंगे; वे साँकलों में बाँधे हुए चले आएँगे और तेरे सामने दण्डवत् कर तुझ से विनती करके कहेंगे, ‘निश्चय परमेश्वर तेरे ही साथ है और दूसरा कोई नहीं; उसके सिवाय कोई और परमेश्वर नहीं।’” (जक. 8:22, 23, प्रका. 3:9)

15 हे इस्राएल के परमेश्वर, हे उद्धारकर्ता! निश्चय तू ऐसा परमेश्वर है जो अपने को गुप्त रखता है। (रोम. 11:33)

16 मूर्तियों के गढ़नेवाले सबके सब लज्जित और चकित होंगे, वे सबके सब व्याकुल होंगे।

17 परन्तु इस्राएल यहोवा के द्वारा युग-युग का उद्धार पाएगा; तुम युग-युग वरन् अनन्तकाल तक न तो कभी लज्जित और न कभी व्याकुल होंगे। (रोम. 10:11, योए. 2:26, 27, इब्रा. 5:9)

18 क्योंकि यहोवा जो आकाश का सृजनहार है, वही परमेश्वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, उसी ने उसको स्थिर भी किया; उसने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है। वही यह कहता है, “मैं यहोवा हूँ, मेरे सिवाय दूसरा और कोई नहीं है।

19 मैंने न किसी गुप्त स्थान में, न अंधकार देश के किसी स्थान में बातें की; मैंने याकूब के वंश से नहीं कहा, ‘ मुझे व्यर्थ में ढूँढ़ो[fn] *।’ मैं यहोवा सत्य ही कहता हूँ, मैं उचित बातें ही बताता हूँ।

20 “हे जाति-जाति में से बचे हुए लोगों, इकट्ठे होकर आओ, एक संग मिलकर निकट आओ! वह जो अपनी लकड़ी की खोदी हुई मूरतें लिए फिरते हैं और ऐसे देवता से जिससे उद्धार नहीं हो सकता, प्रार्थना करते हैं, वे अज्ञान हैं।

21 तुम प्रचार करो और उनको लाओ; हाँ, वे आपस में सम्मति करें किसने प्राचीनकाल से यह प्रगट किया? किसने प्राचीनकाल में इसकी सूचना पहले ही से दी? क्या मैं यहोवा ही ने यह नहीं किया? इसलिए मुझे छोड़ कोई और दूसरा परमेश्वर नहीं है, धर्मी और उद्धारकर्ता परमेश्वर मुझे छोड़ और कोई नहीं है।

22 “हे पृथ्वी के दूर-दूर के देश के रहनेवालों, तुम मेरी ओर फिरो और उद्धार पाओ! क्योंकि मैं ही परमेश्वर हूँ और दूसरा कोई नहीं है।

23 मैंने अपनी ही शपथ खाई, धार्मिकता के अनुसार मेरे मुख से यह वचन निकला है और वह नहीं टलेगा, ‘प्रत्येक घुटना मेरे सम्मुख झुकेगा और प्रत्येक के मुख से मेरी ही शपथ खाई जाएगी।’ (इब्रा. 6:13, रोम. 14:11, फिलि. 2:10, 11)

24 “लोग मेरे विषय में कहेंगे, केवल यहोवा ही में धार्मिकता और शक्ति है। उसी के पास लोग आएँगे, और जो उससे रूठे रहेंगे, उन्हें लज्जित होना पड़ेगा।

25 इस्राएल के सारे वंश के लोग यहोवा ही के कारण धर्मी ठहरेंगे, और उसकी महिमा करेंगे।”

मृत मूर्तियाँ और जीवित परमेश्वर

46  1 बेल देवता झुक गया[fn] *, नबो देवता नब गया है, उनकी प्रतिमाएँ पशुओं वरन् घरेलू पशुओं पर लदी हैं; जिन वस्तुओं को तुम उठाए फिरते थे, वे अब भारी बोझ हो गईं और थकित पशुओं पर लदी हैं।

2 वे नब गए, वे एक संग झुक गए, वे उस भार को छुड़ा नहीं सके, और आप भी बँधुवाई में चले गए हैं।

3 “हे याकूब के घराने, हे इस्राएल के घराने के सब बचे हुए लोगों, मेरी ओर कान लगाकर सुनो; तुम को मैं तुम्हारी उत्पत्ति ही से उठाए रहा और जन्म ही से लिए फिरता आया हूँ।

4 तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं वैसा ही बना रहूँगा और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूँगा। मैंने तुम्हें बनाया और तुम्हें लिए फिरता रहूँगा; मैं तुम्हें उठाए रहूँगा और छुड़ाता भी रहूँगा।

5 “तुम किससे मेरी उपमा दोगे और मुझे किसके समान बताओगे, किससे मेरा मिलान करोगे कि हम एक समान ठहरें?

6 जो थैली से सोना उण्डेलते या काँटे में चाँदी तौलते हैं, जो सुनार को मजदूरी देकर उससे देवता बनवाते हैं, तब वे उसे प्रणाम करते वरन् दण्डवत् भी करते हैं! (निर्ग. 32:2-4)

7 वे उसको कंधे पर उठाकर लिए फिरते हैं, वे उसे उसके स्थान में रख देते और वह वहीं खड़ा रहता है; वह अपने स्थान से हट नहीं सकता; यदि कोई उसकी दुहाई भी दे, तो भी न वह सुन सकता है और न विपत्ति से उसका उद्धार कर सकता है।

8 “हे अपराधियों, इस बात को स्मरण करो और ध्यान दो, इस पर फिर मन लगाओ।

9 प्राचीनकाल की बातें स्मरण करो जो आरम्भ ही से है, क्योंकि परमेश्वर मैं ही हूँ, दूसरा कोई नहीं; मैं ही परमेश्वर हूँ और मेरे तुल्य कोई भी नहीं है।

10 मैं तो अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया हूँ जो अब तक नहीं हुई। मैं कहता हूँ, ‘ मेरी युक्ति स्थिर रहेगी[fn] * और मैं अपनी इच्छा को पूरी करूँगा।’

11 मैं पूर्व से एक उकाब पक्षी को अर्थात् दूर देश से अपनी युक्ति के पूरा करनेवाले पुरुष को बुलाता हूँ। मैं ही ने यह बात कही है और उसे पूरी भी करूँगा; मैंने यह विचार बाँधा है और उसे सफल भी करूँगा।

12 “हे कठोर मनवालों तुम जो धार्मिकता से दूर हो, कान लगाकर मेरी सुनो।

13 मैं अपनी धार्मिकता को समीप ले आने पर हूँ वह दूर नहीं है, और मेरे उद्धार करने में विलम्ब न होगा; मैं सिय्योन का उद्धार करूँगा और इस्राएल को महिमा दूँगा।”

बाबेल का पतन

47  1 हे बाबेल की कुमारी बेटी, उतर आ और धूल पर बैठ; हे कसदियों की बेटी तू बिना सिंहासन भूमि पर बैठ! क्योंकि तू अब फिर कोमल और सुकुमार न कहलाएगी।

2 चक्की लेकर आटा पीस, अपना घूँघट हटा और घाघरा समेंट ले और उघाड़ी टाँगों से नदियों को पार कर।

3 तेरी नग्नता उघाड़ी जाएगी[fn] * और तेरी लज्जा प्रगट होगी। मैं बदला लूँगा और किसी मनुष्य को न छोड़ूँगा।

4 हमारा छुटकारा देनेवाले का नाम सेनाओं का यहोवा और इस्राएल का पवित्र है।

5 हे कसदियों की बेटी, चुपचाप बैठी रह और अंधियारे में जा; क्योंकि तू अब राज्य-राज्य की स्वामिनी न कहलाएगी।

6 मैंने अपनी प्रजा से क्रोधित होकर अपने निज भाग को अपवित्र ठहराया और तेरे वश में कर दिया; तूने उन पर कुछ दया न की; बूढ़ों पर तूने अपना अत्यन्त भारी जूआ रख दिया।

7 तूने कहा, “मैं सर्वदा स्वामिनी बनी रहूँगी,” इसलिए तूने अपने मन में इन बातों पर विचार न किया और यह भी न सोचा कि उनका क्या फल होगा।

8 इसलिए सुन, तू जो राग-रंग में उलझी हुई निडर बैठी रहती है और मन में कहती है कि “मैं ही हूँ, और मुझे छोड़ कोई दूसरा नहीं; मैं विधवा के समान न बैठूँगी और न मेरे बाल-बच्चे मिटेंगे।” (सप. 2:15, प्रका. 18:7)

9 सुन, ये दोनों दुःख अर्थात् लड़कों का जाता रहना और विधवा हो जाना, अचानक एक ही दिन तुझ पर आ पड़ेंगे। तेरे बहुत से टोन्हों और तेरे भारी-भारी तंत्र-मंत्रों के रहते भी ये तुझ पर अपने पूरे बल से आ पड़ेंगे। (प्रका. 18:8, 23)

10 तूने अपनी दुष्टता पर भरोसा रखा[fn] *, तूने कहा, “मुझे कोई नहीं देखता;” तेरी बुद्धि और ज्ञान ने तुझे बहकाया और तूने अपने मन में कहा, “मैं ही हूँ और मेरे सिवाय कोई दूसरा नहीं।”

11 परन्तु तेरी ऐसी दुर्गति होगी जिसका मंत्र तू नहीं जानती, और तुझ पर ऐसी विपत्ति पड़ेगी कि तू प्रायश्चित करके उसका निवारण न कर सकेगी; अचानक विनाश तुझ पर आ पड़ेगा जिसका तुझे कुछ भी पता नहीं। (1 थिस्स. 5:3)

12 अपने तंत्र-मंत्र और बहुत से टोन्हों को, जिनका तूने बाल्यावस्था ही से अभ्यास किया है, उपयोग में ला, सम्भव है तू उनसे लाभ उठा सके या उनके बल से स्थिर रह सके।

13 तू तो युक्ति करते-करते थक गई है; अब तेरे ज्योतिषी जो नक्षत्रों को ध्यान से देखते और नये-नये चाँद को देखकर होनहार बताते हैं, वे खड़े होकर तुझे उन बातों से बचाएँ जो तुझ पर घटेंगी।

14 देख, वे भूसे के समान होकर आग से भस्म हो जाएँगे; वे अपने प्राणों को ज्वाला से न बचा सकेंगे। वह आग तापने के लिये नहीं, न ऐसी होगी जिसके सामने कोई बैठ सके!

15 जिनके लिये तू परिश्रम करती आई है वे सब तेरे लिये वैसे ही होंगे, और जो तेरी युवावस्था से तेरे संग व्यापार करते आए हैं, उनमें से प्रत्येक अपनी-अपनी दिशा की ओर चले जाएँगे; तेरा बचानेवाला कोई न रहेगा।

परमेश्वर भविष्य का भी स्वामी

48  1 हे याकूब के घराने, यह बात सुन, तुम जो इस्राएली कहलाते और यहूदा के सोतों के जल से उत्पन्न हुए हो; जो यहोवा के नाम की शपथ खाते हो और इस्राएल के परमेश्वर की चर्चा तो करते हो, परन्तु सच्चाई और धार्मिकता से नहीं करते।

2 क्योंकि वे अपने को पवित्र नगर के बताते हैं, और इस्राएल के परमेश्वर पर, जिसका नाम सेनाओं का यहोवा है भरोसा करते हैं।

3 “होनेवाली बातों को तो मैंने प्राचीनकाल ही से बताया है, और उनकी चर्चा मेरे मुँह से निकली, मैंने अचानक उन्हें प्रगट किया और वे बातें सचमुच हुईं।

4 मैं जानता था कि तू हठीला है और तेरी गर्दन लोहे की नस और तेरा माथा पीतल का है।

5 इस कारण मैंने इन बातों को प्राचीनकाल ही से तुझे बताया उनके होने से पहले ही मैंने तुझे बता दिया, ऐसा न हो कि तू यह कह पाए कि यह मेरे देवता का काम है, मेरी खोदी और ढली हुई मूर्तियों की आज्ञा से यह हुआ।

6 “तूने सुना है, अब इन सब बातों पर ध्यान कर; और देखो, क्या तुम उसका प्रचार न करोगे? अब से मैं तुझे नई-नई बातें और ऐसी गुप्त बातें सुनाऊँगा जिन्हें तू नहीं जानता। (प्रका. 1:19)

7 वे अभी-अभी रची गई हैं, प्राचीनकाल से नहीं; परन्तु आज से पहले तूने उन्हें सुना भी न था, ऐसा न हो कि तू कहे कि देख मैं तो इन्हें जानता था।

8 हाँ! निश्चय तूने उन्हें न तो सुना, न जाना, न इससे पहले तेरे कान ही खुले थे। क्योंकि मैं जानता था कि तू निश्चय विश्वासघात करेगा, और गर्भ ही से तेरा नाम अपराधी पड़ा है।

9 “अपने ही नाम के निमित्त मैं क्रोध करने में विलम्ब करता हूँ, और अपनी महिमा के निमित्त अपने आपको रोक रखता हूँ, ऐसा न हो कि मैं तुझे काट डालूँ।

10 देख, मैंने तुझे निर्मल तो किया, परन्तु, चाँदी के समान नहीं; मैंने दुःख की भट्ठी में परखकर तुझे चुन लिया है। (भज. 66:10, 1 पत. 1:7)

11 अपने निमित्त, हाँ अपने ही निमित्त मैंने यह किया है, मेरा नाम क्यों अपवित्र ठहरे? अपनी महिमा मैं दूसरे को नहीं दूँगा।

इस्राएल को छुड़ाने की परमेश्वर की पूर्व योजना

12 “हे याकूब, हे मेरे बुलाए हुए इस्राएल, मेरी ओर कान लगाकर सुन! मैं वही हूँ, मैं ही आदि और मैं ही अन्त हूँ।

13 निश्चय मेरे ही हाथ ने पृथ्वी की नींव डाली, और मेरे ही दाहिने हाथ ने आकाश फैलाया; जब मैं उनको बुलाता हूँ[fn] *, वे एक साथ उपस्थित हो जाते हैं।” (इब्रा. 1:10)

14 “तुम सब के सब इकट्ठे होकर सुनो! उनमें से किसने कभी इन बातों का समाचार दिया? यहोवा उससे प्रेम रखता है: वह बाबेल पर अपनी इच्छा पूरी करेगा, और कसदियों पर उसका हाथ पड़ेगा।

15 मैंने, हाँ मैंने ही ने कहा और उसको बुलाया है, मैं उसको ले आया हूँ, और उसका काम सफल होगा।

16 मेरे निकट आकर इस बात को सुनो आदि से लेकर अब तक मैंने कोई भी बात गुप्त में नहीं कही; जब से वह हुआ तब से मैं वहाँ हूँ।” और अब प्रभु यहोवा ने और उसकी आत्मा ने मुझे भेज दिया है।

परमेश्वर की योजना

17 यहोवा जो तेरा छुड़ानेवाला और इस्राएल का पवित्र है, वह यह कहता है: “मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूँ जो तुझे तेरे लाभ के लिये शिक्षा देता हूँ, और जिस मार्ग से तुझे जाना है उसी मार्ग पर तुझे ले चलता हूँ।

18 भला होता कि तूने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता[fn] *! तब तेरी शान्ति नदी के समान और तेरी धार्मिकता समुद्र की लहरों के समान होता;

19 तेरा वंश रेतकणों के तुल्य होता, और तेरी निज सन्तान उसके कणों के समान होती; उनका नाम मेरे सम्मुख से न कभी काटा और न मिटाया जाता।”

20 बाबेल में से निकल जाओ, कसदियों के बीच में से भाग जाओ; जयजयकार करते हुए इस बात का प्रचार करके सुनाओ, पृथ्वी की छोर तक इसकी चर्चा फैलाओ; कहते जाओ: “यहोवा ने अपने दास याकूब को छुड़ा लिया है!” (यिर्म. 90:8, 51:6, प्रका. 18:4)

21 जब वह उन्हें निर्जल देशों में ले गया, तब वे प्यासे न हुए; उसने उनके लिये चट्टान में से पानी निकाला; उसने चट्टान को चीरा और जल बह निकला।

22 “दुष्टों के लिये कुछ शान्ति नहीं,” यहोवा का यही वचन है।

दास, अन्यजातियों के लिए प्रकाश

49  1 हे द्वीपों, मेरी और कान लगाकर सुनो; हे दूर-दूर के राज्यों के लोगों, ध्यान लगाकर मेरी सुनो! यहोवा ने मुझे गर्भ ही में से बुलाया, जब मैं माता के पेट में था, तब ही उसने मेरा नाम बताया। (यिर्म. 90:8, गला. 1:15)

2 उसने मेरे मुँह को चोखी तलवार के समान बनाया[fn] * और अपने हाथ की आड़ में मुझे छिपा रखा; उसने मुझ को चमकीला तीर बनाकर अपने तरकश में गुप्त रखा;

3 और मुझसे कहा, “तू मेरा दास इस्राएल है, मैं तुझ में अपनी महिमा प्रगट करूँगा।” (2 थिस्स. 1:10)

4 तब मैंने कहा, “मैंने तो व्यर्थ परिश्रम किया, मैंने व्यर्थ ही अपना बल खो दिया है; तो भी निश्चय मेरा न्याय यहोवा के पास है और मेरे परिश्रम का फल मेरे परमेश्वर के हाथ में है।”

5 और अब यहोवा जिसने मुझे जन्म ही से इसलिए रचा कि मैं उसका दास होकर याकूब को उसकी ओर वापस ले आऊँ अर्थात् इस्राएल को उसके पास इकट्ठा करूँ, क्योंकि यहोवा की दृष्टि में मैं आदर योग्य हूँ और मेरा परमेश्वर मेरा बल है,

6 उसी ने मुझसे यह भी कहा है, “यह तो हलकी सी बात है कि तू याकूब के गोत्रों का उद्धार करने और इस्राएल के रक्षित लोगों को लौटा ले आने के लिये मेरा सेवक ठहरे; मैं तुझे जाति-जाति के लिये ज्योति ठहराऊँगा कि मेरा उद्धार पृथ्वी की एक ओर से दूसरी ओर तक फैल जाए।” (लूका 2:32, प्रेरि. 13:47, भज. 98:2, 3)

7 जो मनुष्यों से तुच्छ जाना जाता, जिससे जातियों को घृणा है, और जो अधिकारियों का दास है, इस्राएल का छुड़ानेवाला और उसका पवित्र अर्थात् यहोवा यह कहता है, “राजा उसे देखकर खड़े हो जाएँगे और हाकिम दण्डवत् करेंगे; यह यहोवा के निमित्त होगा, जो सच्चा और इस्राएल का पवित्र है और जिसने तुझे चुन लिया है।”

यरूशलेम का पुनः निर्माण

8 यहोवा यह कहता है, “ अपनी प्रसन्नता के समय[fn] * मैंने तेरी सुन ली, उद्धार करने के दिन मैंने तेरी सहायता की है; मैं तेरी रक्षा करके तुझे लोगों के लिये एक वाचा ठहराऊँगा, ताकि देश को स्थिर करे और उजड़े हुए स्थानों को उनके अधिकारियों के हाथ में दे दे; और बन्दियों से कहे, ‘बन्दीगृह से निकल आओ;’ (भज. 69:13, 2 कुरि. 6:2)

9 और जो अंधियारे में हैं उनसे कहे, ‘अपने आपको दिखलाओ।’ वे मार्गों के किनारे-किनारे पेट भरने पाएँगे, सब मुण्डे टीलों पर भी उनको चराई मिलेगी। (लूका 4:18)

10 वे भूखे और प्यासे न होंगे, न लूह और न घाम उन्हें लगेगा, क्योंकि, वह जो उन पर दया करता है, वही उनका अगुआ होगा, और जल के सोतों के पास उन्हें ले चलेगा। (प्रका. 7:16, 17)

11 मैं अपने सब पहाड़ों को मार्ग बना दूँगा, और मेरे राजमार्ग ऊँचे किए जाएँगे।

12 देखो, ये दूर से आएँगे, और, ये उत्तर और पश्चिम से और सीनियों के देश से आएँगे।”

13 हे आकाश जयजयकार कर, हे पृथ्वी, मगन हो; हे पहाड़ों, गला खोलकर जयजयकार करो! क्योंकि यहोवा ने अपनी प्रजा को शान्ति दी है और अपने दीन लोगों पर दया की है। (भज. 96:11-13, यिर्म. 31:13)

14 परन्तु सिय्योन ने कहा, “यहोवा ने मुझे त्याग दिया है, मेरा प्रभु मुझे भूल गया है।”

15 “क्या यह हो सकता है कि कोई माता अपने दूधपीते बच्चे को भूल जाए और अपने जन्माए हुए लड़के पर दया न करे? हाँ, वह तो भूल सकती है, परन्तु मैं तुझे नहीं भूल सकता।

16 देख, मैंने तेरा चित्र अपनी हथेलियों पर खोदकर बनाया है; तेरी शहरपनाह सदैव मेरी दृष्टि के सामने बनी रहती है।

17 तेरे बच्चें फुर्ती से आ रहे हैं और खण्डहर बनानेवाले और उजाड़नेवाले तेरे बीच से निकले जा रहे हैं।

18 अपनी आँखें उठाकर चारों ओर देख, वे सबके सब इकट्ठे होकर तेरे पास आ रहे हैं। यहोवा की यह वाणी है कि मेरे जीवन की शपथ, तू निश्चय उन सभी को गहने के समान पहन लेगी, तू दुल्हन के समान अपने शरीर में उन सबको बाँध लेगी।” (रोम. 14:11)

19 “तेरे जो स्थान सुनसान और उजड़े हैं, और तेरे जो देश खण्डहर ही खण्डहर हैं, उनमें अब निवासी न समाएँगे, और तुझे नष्ट करनेवाले दूर हो जाएँगे।

20 तेरे पुत्र जो तुझ से ले लिए गए वे फिर तेरे कान में कहने पाएँगे, ‘यह स्थान हमारे लिये छोटा है, हमें और स्थान दे कि उसमें रहें।’

21 तब तू मन में कहेगी, ‘किसने इनको मेरे लिये जन्माया? मैं तो पुत्रहीन और बाँझ हो गई थीं, दासत्व में और यहाँ-वहाँ मैं घूमती रही, इनको किसने पाला? देख, मैं अकेली रह गई थी; फिर ये कहाँ थे?’”

22 प्रभु यहोवा यह कहता है, “देख, मैं अपना हाथ जाति-जाति के लोगों की ओर उठाऊँगा[fn] *, और देश-देश के लोगों के सामने अपना झण्डा खड़ा करूँगा; तब वे तेरे पुत्रों को अपनी गोद में लिए आएँगे, और तेरी पुत्रियों को अपने कंधे पर चढ़ाकर तेरे पास पहुँचाएगे।

23 राजा तेरे बच्चों के निज-सेवक और उनकी रानियाँ दूध पिलाने के लिये तेरी दाइयां होंगी। वे अपनी नाक भूमि पर रगड़कर तुझे दण्डवत् करेंगे और तेरे पाँवों की धूल चाटेंगे। तब तू यह जान लेगी कि मैं ही यहोवा हूँ; मेरी बाट जोहनेवाले कभी लज्जित न होंगे।” (भज. 72:9-11, योए. 2:27)

24 क्या वीर के हाथ से शिकार छीना जा सकता है? क्या दुष्ट के बन्दी छुड़ाए जा सकते हैं? (मत्ती 12:29)

25 तो भी यहोवा यह कहता है, “हाँ, वीर के बन्दी उससे छीन लिए जाएँगे, और दुष्ट का शिकार उसके हाथ से छुड़ा लिया जाएगा, क्योंकि जो तुझ से लड़ते हैं उनसे मैं आप मुकद्दमा लड़ूँगा, और तेरे बाल-बच्चों का मैं उद्धार करूँगा।

26 जो तुझ पर अंधेर करते हैं उनको मैं उन्हीं का माँस खिलाऊँगा, और, वे अपना लहू पीकर ऐसे मतवाले होंगे जैसे नये दाखमधु से होते हैं। तब सब प्राणी जान लेंगे कि तेरा उद्धारकर्ता यहोवा और तेरा छुड़ानेवाला, याकूब का शक्तिमान मैं ही हूँ।” (प्रका. 16:6)

इस्राएल का पाप

50  1 “तुम्हारी माता का त्यागपत्र कहाँ है, जिसे मैंने उसे त्यागते समय दिया था? या मैंने किस व्यापारी के हाथ तुम्हें बेचा?” यहोवा यह कहता है, “सुनो, तुम अपने ही अधर्म के कामों के कारण बिक गए, और तुम्हारे ही अपराधों के कारण तुम्हारी माता छोड़ दी गई।

2 इसका क्या कारण है कि जब मैं आया तब कोई न मिला? और जब मैंने पुकारा, तब कोई न बोला? क्या मेरा हाथ ऐसा छोटा हो गया है कि छुड़ा नहीं सकता? क्या मुझ में उद्धार करने की शक्ति नहीं? देखो, मैं एक धमकी से समुद्र को सूखा देता हूँ, मैं महानदों को रेगिस्तान बना देता हूँ; उनकी मछलियाँ जल बिना मर जाती और बसाती हैं।

3 मैं आकाश को मानो शोक का काला कपड़ा पहनाता, और टाट को उनका ओढ़ना बना देता हूँ।”

आज्ञाकारी दास

4 प्रभु यहोवा ने मुझे सीखनेवालों की जीभ दी है कि मैं थके हुए को अपने वचन के द्वारा संभालना जानूँ। भोर को वह नित मुझे जगाता और मेरा कान खोलता है[fn] * कि मैं शिष्य के समान सुनूँ।

5 प्रभु यहोवा ने मेरा कान खोला है, और मैंने विरोध न किया, न पीछे हटा।

6 मैंने मारनेवालों को अपनी पीठ और गलमोछ नोचनेवालों की ओर अपने गाल किए; अपमानित होने और उनके थूकने से मैंने मुँह न छिपाया। (मत्ती 26:67, इब्रा. 12:2)

7 क्योंकि प्रभु यहोवा मेरी सहायता करता है, इस कारण मैंने संकोच नहीं किया; वरन् अपना माथा चकमक के समान कड़ा किया क्योंकि मुझे निश्चय था कि मुझे लज्जित होना न पड़ेगा।

8 जो मुझे धर्मी ठहराता है वह मेरे निकट है। मेरे साथ कौन मुकद्दमा करेगा? हम आमने-सामने खड़े हों। मेरा विरोधी कौन है? वह मेरे निकट आए। (रोम. 8:33, 34)

9 सुनो, प्रभु यहोवा मेरी सहायता करता है; मुझे कौन दोषी ठहरा सकेगा? देखो, वे सब कपड़े के समान पुराने हो जाएँगे; उनको कीड़े खा जाएँगे।

10 तुम में से कौन है जो यहोवा का भय मानता और उसके दास की बातें सुनता है, जो अंधियारे में चलता हो और उसके पास ज्योति न हो? वह यहोवा के नाम का भरोसा रखे, और अपने परमेश्वर पर आशा लगाए रहे।

11 देखो, तुम सब जो आग जलाते[fn] * और अग्निबाणों को कमर में बाँधते हो! तुम सब अपनी जलाई हुई आग में और अपने जलाए हुए अग्निबाणों के बीच आप ही चलो। तुम्हारी यह दशा मेरी ही ओर से होगी, तुम सन्ताप में पड़े रहोगे।

सिय्योन के लिये शान्तिदायक वचन

51  1 “हे धार्मिकता पर चलनेवालों, हे यहोवा के ढूँढ़ने वालो, कान लगाकर मेरी सुनो; जिस चट्टान में से तुम खोदे गए और जिस खदान में से तुम निकाले गए, उस पर ध्यान करो।

2 अपने मूलपुरुष अब्राहम और अपनी माता सारा पर ध्यान करो; जब वह अकेला था, तब ही से मैंने उसको बुलाया और आशीष दी और बढ़ा दिया।

3 यहोवा ने सिय्योन को शान्ति दी है, उसने उसके सब खण्डहरों को शान्ति दी है; वह उसके जंगल को अदन के समान और उसके निर्जल देश को यहोवा की वाटिका के समान बनाएगा; उसमें हर्ष और आनन्द और धन्यवाद और भजन गाने का शब्द सुनाई पड़ेगा।

4 “हे मेरी प्रजा के लोगों, मेरी ओर ध्यान धरो; हे मेरे लोगों, कान लगाकर मेरी सुनो; क्योंकि मेरी ओर से व्यवस्था दी जाएगी, और मैं अपना नियम देश-देश के लोगों की ज्योति होने के लिये स्थिर करूँगा।

5 मेरा छुटकारा निकट है; मेरा उद्धार प्रगट हुआ है; मैं अपने भुजबल से देश-देश के लोगों का न्याय करूँगा। द्वीप मेरी बाट जोहेंगे और मेरे भुजबल पर आशा रखेंगे।

6 आकाश की ओर अपनी आँखें उठाओ, और पृथ्वी को निहारो; क्योंकि आकाश धुएँ के समान लोप हो जाएगा, पृथ्वी कपड़े के समान पुरानी हो जाएगी, और उसके रहनेवाले ऐसे ही जाते रहेंगे; परन्तु जो उद्धार मैं करूँगा वह सर्वदा ठहरेगा, और मेरी धार्मिकता का अन्त न होगा।

7 “हे धार्मिकता के जाननेवालों, जिनके मन में मेरी व्यवस्था है, तुम कान लगाकर मेरी सुनो; मनुष्यों की नामधराई से मत डरो, और उनके निन्दा करने से विस्मित न हो।

8 क्योंकि घुन उन्हें कपड़े के समान और कीड़ा उन्हें ऊन के समान खाएगा; परन्तु मेरी धार्मिकता अनन्तकाल तक, और मेरा उद्धार पीढ़ी से पीढ़ी तक बना रहेगा।”

9 हे यहोवा की भुजा, जाग! जाग और बल धारण कर; जैसे प्राचीनकाल में और बीते हुए पीढ़ियों में, वैसे ही अब भी जाग। क्या तू वही नहीं है जिसने रहब को टुकड़े-टुकड़े किया[fn] * और अजगर को छेदा?

10 क्या तू वही नहीं जिसने समुद्र को अर्थात् गहरे सागर के जल को सूखा डाला और उसकी गहराई में अपने छुड़ाए हुओं के पार जाने के लिये मार्ग निकाला था?

11 सो यहोवा के छुड़ाए हुए लोग लौटकर जयजयकार करते हुए सिय्योन में आएँगे, और उनके सिरों पर अनन्त आनन्द गूँजता रहेगा; वे हर्ष और आनन्द प्राप्त करेंगे, और शोक और सिसकियों का अन्त हो जाएगा।

12 “मैं, मैं ही तेरा शान्तिदाता हूँ; तू कौन है जो मरनेवाले मनुष्य से, और घास के समान मुर्झानेवाले आदमी से डरता है,

13 और आकाश के ताननेवाले और पृथ्वी की नींव डालनेवाले अपने कर्ता यहोवा को भूल गया है, और जब द्रोही नाश करने को तैयार होता है तब उसकी जलजलाहट से दिन भर लगातार थरथराता है? परन्तु द्रोही की जलजलाहट कहाँ रही?

14 बन्दी शीघ्र ही स्वतन्त्र किया जाएगा; वह गड्ढे में न मरेगा और न उसे रोटी की कमी होगी।

15 जो समुद्र को उथल-पुथल करता जिससे उसकी लहरों में गर्जन होती है, वह मैं ही तेरा परमेश्वर यहोवा हूँ मेरा नाम सेनाओं का यहोवा है।

16 मैंने तेरे मुँह में अपने वचन डाले, और तुझे अपने हाथ की आड़ में छिपा रखा है; कि मैं आकाश को तानूँ और पृथ्वी की नींव डालूँ, और सिय्योन से कहूँ, ‘तुम मेरी प्रजा हो।’” (यिर्म. 31:33, इब्रा. 8:10)

परमेश्वर के रोष का अन्त

17 हे यरूशलेम जाग! जाग उठ! खड़ी हो जा, तूने यहोवा के हाथ से उसकी जलजलाहट के कटोरे में से पिया है[fn] *, तूने कटोरे का लड़खड़ा देनेवाला मद पूरा-पूरा ही पी लिया है। (प्रका. 14:10, 1 कुरि. 15:34)

18 जितने लड़कों ने उससे जन्म लिया उनमें से कोई न रहा जो उसकी अगुआई करके ले चले; और जितने लड़के उसने पाले-पोसे उनमें से कोई न रहा जो उसके हाथ को थाम ले।

19 ये दो विपत्तियाँ तुझ पर आ पड़ी हैं, कौन तेरे संग विलाप करेगा? उजाड़ और विनाश और अकाल और तलवार आ पड़ी है; कौन तुझे शान्ति देगा?

20 तेरे लड़के मूर्छित होकर हर एक सड़क के सिरे पर, महाजाल में फँसे हुए हिरन के समान पड़े हैं; यहोवा की जलजलाहट और तेरे परमेश्वर की धमकी के कारण वे अचेत पड़े हैं।

21 इस कारण हे दुःखियारी, सुन, तू मतवाली तो है, परन्तु दाखमधु पीकर नहीं;

22 तेरा प्रभु यहोवा जो अपनी प्रजा का मुकद्दमा लड़नेवाला तेरा परमेश्वर है, वह यह कहता है, “सुन, मैं लड़खड़ा देनेवाले मद के कटोरे को अर्थात् अपनी जलजलाहट के कटोरे को तेरे हाथ से ले लेता हूँ; तुझे उसमें से फिर कभी पीना न पड़ेगा;

23 और मैं उसे तेरे उन दुःख देनेवालों के हाथ में दूँगा, जिन्होंने तुझ से कहा, ‘लेट जा, कि हम तुझ पर पाँव धरकर आगे चलें;’ और तूने औंधे मुँह गिरकर अपनी पीठ को भूमि और आगे चलनेवालों के लिये सड़क बना दिया।”

इस्राएल का उद्धार होगा

52  1 हे सिय्योन, जाग, जाग! अपना बल धारण कर[fn] *; हे पवित्र नगर यरूशलेम, अपने शोभायमान वस्त्र पहन ले; क्योंकि तेरे बीच खतनारहित और अशुद्ध लोग फिर कभी प्रवेश न करने पाएँगे। (प्रका. 21:2, 10, 27)

2 अपने ऊपर से धूल झाड़ दे, हे यरूशलेम, उठ; हे सिय्योन की बन्दी बेटी, अपने गले के बन्धन को खोल दे।

3 क्योंकि यहोवा यह कहता है, “तुम जो सेंत-मेंत बिक गए थे, इसलिए अब बिना रुपया दिए छुड़ाए भी जाओगे। (भज. 44:12, 1 पत. 1:18)

4 प्रभु यहोवा यह कहता है: मेरी प्रजा पहले तो मिस्र में परदेशी होकर रहने को गई थी, और अश्शूरियों ने भी बिना कारण उन पर अत्याचार किया।

5 इसलिए यहोवा की यह वाणी है कि मैं अब यहाँ क्या करूँ जब कि मेरी प्रजा सेंत-मेंत हर ली गई है? यहोवा यह भी कहता है कि जो उन पर प्रभुता करते हैं वे ऊधम मचा रहे हैं, और मेरे नाम कि निन्दा लगातार दिन भर होती रहती है। (यहे. 36:20-23, रोम. 2:24)

6 इस कारण मेरी प्रजा मेरा नाम जान लेगी; वह उस समय जान लेगी कि जो बातें करता है वह यहोवा ही है; देखो, मैं ही हूँ।”

7 पहाड़ों पर उसके पाँव क्या ही सुहावने हैं जो शुभ समाचार लाता है, जो शान्ति की बातें सुनाता है और कल्याण का शुभ समाचार और उद्धार का सन्देश देता है, जो सिय्योन से कहता हैं, “तेरा परमेश्वर राज्य करता है।” (प्रेरि. 10:36, रोम. 10:15, नहू. 1:15)

8 सुन, तेरे पहरूए पुकार रहे हैं, वे एक साथ जयजयकार कर रहें हैं; क्योंकि वे साक्षात् देख रहे हैं कि यहोवा सिय्योन को लौट रहा है।

9 हे यरूशलेम के खण्डहरों, एक संग उमंग में आकर जयजयकार करो; क्योंकि यहोवा ने अपनी प्रजा को शान्ति दी है, उसने यरूशलेम को छुड़ा लिया है।

10 यहोवा ने सारी जातियों के सामने अपनी पवित्र भुजा प्रगट की है[fn] *; और पृथ्वी के दूर-दूर देशों के सब लोग हमारे परमेश्वर का किया हुआ उद्धार निश्चय देख लेंगे। (भज. 98:3, लूका 3:16, लूका 2:30, 31)

11 दूर हो, दूर, वहाँ से निकल जाओ, कोई अशुद्ध वस्तु मत छूओ; उसके बीच से निकल जाओ; हे यहोवा के पात्रों के ढोनेवालों, अपने को शुद्ध करो। (2 कुरि. 6:17, प्रका. 18:4)

12 क्योंकि तुम को उतावली से निकलना नहीं, और न भागते हुए चलना पड़ेगा; क्योंकि यहोवा तुम्हारे आगे-आगे अगुआई करता हुआ चलेगा, और इस्राएल का परमेश्वर तुम्हारे पीछे भी रक्षा करता चलेगा।

कष्ट सहता परमेश्वर का सेवक

13 देखो, मेरा दास बुद्धि से काम करेगा, वह ऊँचा, महान और अति महान हो जाएगा। (यिर्म. 23:5)

14 जैसे बहुत से लोग उसे देखकर चकित हुए (क्योंकि उसका रूप यहाँ तक बिगड़ा हुआ था कि मनुष्य का सा न जान पड़ता था और उसकी सुन्दरता भी आदमियों की सी न रह गई थी), (भज. 22:6, 7, यशा. 53:2, 3)

15 वैसे ही वह बहुत सी जातियों को पवित्र करेगा और उसको देखकर राजा शान्त रहेंगे; क्योंकि वे ऐसी बात देखेंगे जिसका वर्णन उनके सुनने में भी नहीं आया, और ऐसी बात उनकी समझ में आएगी जो उन्होंने अभी तक सुनी भी न थी। (रोम. 15:21, 1 कुरि. 2:9)

53  1 जो समाचार हमें दिया गया, उसका किसने विश्वास किया? और यहोवा का भुजबल किस पर प्रगट हुआ? (यूह. 12:38, रोम. 10:16)

2 क्योंकि वह उसके सामने अंकुर के समान, और ऐसी जड़ के समान उगा जो निर्जल भूमि[fn] * में फूट निकले; उसकी न तो कुछ सुन्दरता थी कि हम उसको देखते, और न उसका रूप ही हमें ऐसा दिखाई पड़ा कि हम उसको चाहते। (मत्ती 2:23)

3 वह तुच्छ जाना जाता और मनुष्यों का त्यागा हुआ था; वह दुःखी पुरुष था, रोग से उसकी जान-पहचान थी; और लोग उससे मुख फेर लेते थे। वह तुच्छ जाना गया, और, हमने उसका मूल्य न जाना। (मर. 9:12)

4 निश्चय उसने हमारे रोगों को सह लिया और हमारे ही दुःखों को उठा लिया; तो भी हमने उसे परमेश्वर का मारा-कूटा और दुर्दशा में पड़ा हुआ समझा। (मत्ती 8:17, 1 पत. 2:24)

5 परन्तु वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के कारण कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी कि उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे हो जाएँ। (रोम. 4:25, 1 पत. 2:24)

6 हम तो सबके सब भेड़ों के समान भटक गए थे; हम में से हर एक ने अपना-अपना मार्ग लिया; और यहोवा ने हम सभी के अधर्म का बोझ उसी पर लाद दिया। (प्रेरि. 10:43, 1 पत. 2:25)

7 वह सताया गया, तो भी वह सहता रहा और अपना मुँह न खोला; जिस प्रकार भेड़ वध होने के समय और भेड़ी ऊन कतरने के समय चुपचाप शान्त रहती है, वैसे ही उसने भी अपना मुँह न खोला। (यूह. 1:29, मत्ती 27:12, 14, मर. 15:4, 5, 1 कुरि. 5:7, प्रका. 5:6, 12)

8 अत्याचार करके और दोष लगाकर वे उसे ले गए; उस समय के लोगों में से किसने इस पर ध्यान दिया कि वह जीवितों के बीच में से उठा लिया गया? मेरे ही लोगों के अपराधों के कारण उस पर मार पड़ी। (प्रेरि. 8:32, 33)

9 उसकी कब्र भी दुष्टों के संग ठहराई गई, और मृत्यु के समय वह धनवान का संगी हुआ, यद्यपि उसने किसी प्रकार का उपद्रव न किया था और उसके मुँह से कभी छल की बात नहीं निकली थी। (1 कुरि. 15:3, 1 पत. 2:22, 1 यूह. 3:5, यूह. 19:38-42)

10 तो भी यहोवा को यही भाया कि उसे कुचले; उसी ने उसको रोगी कर दिया; जब वह अपना प्राण दोषबलि करे, तब वह अपना वंश देखने पाएगा, वह बहुत दिन जीवित रहेगा; उसके हाथ से यहोवा की इच्छा पूरी हो जाएगी।

11 वह अपने प्राणों का दुःख उठाकर उसे देखेगा और तृप्त होगा; अपने ज्ञान के द्वारा मेरा धर्मी दास बहुतेरों को धर्मी ठहराएगा; और उनके अधर्म के कामों का बोझ आप उठा लेगा। (रोम. 5:19)

12 इस कारण मैं उसे महान लोगों के संग भाग दूँगा, और, वह सामर्थियों के संग लूट बाँट लेगा; क्योंकि उसने अपना प्राण मृत्यु के लिये उण्डेल दिया, वह अपराधियों के संग गिना गया, तो भी उसने बहुतों के पाप का बोझ उठा लिया, और, अपराधी के लिये विनती करता है। (मत्ती 27:38, मर. 15:27, लूका 22:37, इब्रा. 9:28)

सदा की शान्ति की वाचा

54  1 “हे बाँझ, तू जो पुत्रहीन है जयजयकार कर; तू जिसे प्रसव पीड़ा नहीं हुई, गला खोलकर जयजयकार कर और पुकार! क्योंकि त्यागी हुई के लड़के सुहागिन के लड़कों से अधिक होंगे, यहोवा का यही वचन है। (भज. 113:9, गला. 4:27)

2 अपने तम्बू का स्थान चौड़ा कर, और तेरे डेरे के पट लम्बे किए जाएँ; हाथ मत रोक, रस्सियों को लम्बी और खूँटों को दृढ़ कर।

3 क्योंकि तू दाएँ-बाएँ फैलेगी, और तेरा वंश जाति-जाति का अधिकारी होगा और उजड़े हुए नगरों को फिर से बसाएगा।

4 “मत डर, क्योंकि तेरी आशा फिर नहीं टूटेगी; मत घबरा, क्योंकि तू फिर लज्जित न होगी और तुझ पर उदासी न छाएगी; क्योंकि तू अपनी जवानी की लज्जा भूल जाएगी[fn] *, और अपने विधवापन की नामधराई को फिर स्मरण न करेगी।

5 क्योंकि तेरा कर्ता तेरा पति है, उसका नाम सेनाओं का यहोवा है; और इस्राएल का पवित्र तेरा छुड़ानेवाला है, वह सारी पृथ्वी का भी परमेश्वर कहलाएगा।

6 क्योंकि यहोवा ने तुझे ऐसा बुलाया है, मानो तू छोड़ी हुई और मन की दुःखिया और जवानी की त्यागी हुई स्त्री हो, तेरे परमेश्वर का यही वचन है।

7 क्षण भर ही के लिये[fn] * मैंने तुझे छोड़ दिया था, परन्तु अब बड़ी दया करके मैं फिर तुझे रख लूँगा।

8 क्रोध के आवेग में आकर मैंने पल भर के लिये तुझ से मुँह छिपाया था, परन्तु अब अनन्त करुणा से मैं तुझ पर दया करूँगा, तेरे छुड़ानेवाले यहोवा का यही वचन है।

9 यह मेरी दृष्टि में नूह के समय के जल-प्रलय के समान है; क्योंकि जैसे मैंने शपथ खाई थी कि नूह के समय के जल-प्रलय से पृथ्वी फिर न डूबेगी, वैसे ही मैंने यह भी शपथ खाई है कि फिर कभी तुझ पर क्रोध न करूँगा और न तुझको धमकी दूँगा।

10 चाहे पहाड़ हट जाएँ और पहाड़ियाँ टल जाएँ, तो भी मेरी करुणा तुझ पर से कभी न हटेगी, और मेरी शान्तिदायक वाचा न टलेगी, यहोवा, जो तुझ पर दया करता है, उसका यही वचन है।

भावी यरूशलेम नगरी

11 “हे दुःखियारी, तू जो आँधी की सताई है और जिसको शान्ति नहीं मिली, सुन, मैं तेरे पत्थरों की पच्चीकारी करके बैठाऊँगा, और तेरी नींव नीलमणि से डालूँगा।

12 तेरे कलश मैं माणिकों से, तेरे फाटक लालड़ियों से और तेरे सब सीमाओं को मनोहर रत्नों से बनाऊँगा। (प्रका. 21:18, 19)

13 तेरे सब लड़के यहोवा के सिखाए हुए होंगे, और उनको बड़ी शान्ति मिलेगी। (भज. 119:165, यूह. 6:45)

14 तू धार्मिकता के द्वारा स्थिर होगी; तू अंधेर से बचेगी, क्योंकि तुझे डरना न पड़ेगा; और तू भयभीत होने से बचेगी, क्योंकि भय का कारण तेरे पास न आएगा।

15 सुन, लोग भीड़ लगाएँगे, परन्तु मेरी ओर से नहीं; जितने तेरे विरुद्ध भीड़ लगाएँगे वे तेरे कारण गिरेंगे।

16 सुन, एक लोहार कोएले की आग धोंककर इसके लिये हथियार बनाता है, वह मेरा ही सृजा हुआ है। उजाड़ने के लिये भी मेरी ओर से एक नाश करनेवाला सृजा गया है। (नीति. 16:4, निर्ग. 9:16, रोम. 9:22)

17 जितने हथियार तेरी हानि के लिये बनाए जाएँ, उनमें से कोई सफल न होगा, और जितने लोग मुद्दई होकर तुझ पर नालिश करें उन सभी से तू जीत जाएगा। यहोवा के दासों का यही भाग होगा, और वे मेरे ही कारण धर्मी ठहरेंगे, यहोवा की यही वाणी है।”

बहुतायत के जीवन के लिए एक निमंत्रण

55  1 “अहो सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ; और जिनके पास रुपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रुपये और बिना दाम[fn] * ही आकर ले लो। (यूह. 7:37, प्रका. 21:6, प्रका. 22:17)

2 जो भोजनवस्तु नहीं है, उसके लिये तुम क्यों रुपया लगाते हो, और जिससे पेट नहीं भरता उसके लिये क्यों परिश्रम करते हो? मेरी ओर मन लगाकर सुनो, तब उत्तम वस्तुएँ खाने पाओगे और चिकनी-चिकनी वस्तुएँ खाकर सन्तुष्ट हो जाओगे।

3 कान लगाओ, और मेरे पास आओ; सुनो, तब तुम जीवित रहोगे; और मैं तुम्हारे साथ सदा की वाचा बाँधूँगा, अर्थात् दाऊद पर की अटल करुणा की वाचा। (भज. 89:28, नीति. 4:20, प्रेरि. 13:34)

4 सुनो, मैंने उसको राज्य-राज्य के लोगों के लिये साक्षी और प्रधान और आज्ञा देनेवाला ठहराया है। (इब्रा. 2:10, इब्रा. 5:9, प्रका. 1:5)

5 सुन, तू ऐसी जाति को जिसे तू नहीं जानता बुलाएगा, और ऐसी जातियाँ जो तुझे नहीं जानती तेरे पास दौड़ी आएँगी, वे तेरे परमेश्वर यहोवा और इस्राएल के पवित्र के निमित्त यह करेंगी, क्योंकि उसने तुझे शोभायमान किया है।

6 “जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है[fn] * तब तक उसे पुकारो; (प्रेरि. 17:27)

7 दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच-विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा।

8 क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है। (रोम. 11:33)

9 क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है।

10 “जिस प्रकार से वर्षा और हिम आकाश से गिरते हैं और वहाँ ऐसे ही लौट नहीं जाते, वरन् भूमि पर पड़कर उपज उपजाते हैं जिससे बोलनेवाले को बीज और खानेवाले को रोटी मिलती है, (2 कुरि. 9:10)

11 उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा[fn] *, और जिस काम के लिये मैंने उसको भेजा है उसे वह सफल करेगा।

12 “क्योंकि तुम आनन्द के साथ निकलोगे, और शान्ति के साथ पहुँचाए जाओगे; तुम्हारे आगे-आगे पहाड़ और पहाड़ियाँ गला खोलकर जयजयकार करेंगी, और मैदान के सब वृक्ष आनन्द के मारे ताली बजाएँगे।

13 तब भटकटैयों के बदले सनोवर उगेंगे; और बिच्छू पेड़ों के बदले मेंहदी उगेगी; और इससे यहोवा का नाम होगा, जो सदा का चिन्ह होगा और कभी न मिटेगा।”

अन्यजातियों के लिए उद्धार

56  1 यहोवा यह कहता है, “न्याय का पालन करो, और धर्म के काम करो; क्योंकि मैं शीघ्र तुम्हारा उद्धार करूँगा, और मेरा धर्मी होना प्रगट होगा।

2 क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो ऐसा ही करता, और वह आदमी जो इस पर स्थिर रहता है, जो विश्रामदिन को पवित्र मानता और अपवित्र करने से बचा रहता है, और अपने हाथ को सब भाँति की बुराई करने से रोकता है।”

3 जो परदेशी यहोवा से मिल गए हैं, वे न कहें, “यहोवा हमें अपनी प्रजा से निश्चय अलग करेगा;” और खोजे भी न कहें, “ हम तो सूखे वृक्ष हैं[fn] *।”

4 “क्योंकि जो खोजे मेरे विश्रामदिन को मानते और जिस बात से मैं प्रसन्न रहता हूँ उसी को अपनाते और मेरी वाचा का पालन करते हैं,” उनके विषय यहोवा यह कहता है,

5 “मैं अपने भवन और अपनी शहरपनाह के भीतर उनको ऐसा नाम दूँगा जो पुत्र-पुत्रियों से कहीं उत्तम होगा; मैं उनका नाम सदा बनाए रखूँगा और वह कभी न मिटाया जाएगा।

6 “परदेशी भी जो यहोवा के साथ इस इच्छा से मिले हुए हैं कि उसकी सेवा टहल करें और यहोवा के नाम से प्रीति रखें और उसके दास हो जाएँ, जितने विश्रामदिन को अपवित्र करने से बचे रहते और मेरी वाचा को पालते हैं,

7 उनको मैं अपने पवित्र पर्वत पर ले आकर अपने प्रार्थना के भवन में आनन्दित करूँगा; उनके होमबलि और मेलबलि मेरी वेदी पर ग्रहण किए जाएँगे; क्योंकि मेरा भवन सब देशों के लोगों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा। (मला. 1:11, मर. 11:17, 1 पत. 2:5)

8 प्रभु यहोवा, जो निकाले हुए इस्राएलियों को इकट्ठे करनेवाला है, उसकी यह वाणी है कि जो इकट्ठे किए गए हैं उनके साथ मैं औरों को भी इकट्ठे करके मिला दूँगा।” (यूह. 10:16)

इस्राएल के गैर जिम्मेदार अगुवे

9 हे मैदान के सब जन्तुओं, हे वन के सब पशुओं, खाने के लिये आओ।

10 उसके पहरूए अंधे हैं, वे सब के सब अज्ञानी हैं, वे सब के सब गूँगे कुत्ते हैं जो भौंक नहीं सकते; वे स्वप्न देखनेवाले और लेटे रहकर सोते रहना चाहते हैं।

11 वे मरभूखे कुत्ते हैं जो कभी तृप्त नहीं होते। वे चरवाहे हैं जिनमें समझ ही नहीं[fn] *; उन सभी ने अपने-अपने लाभ के लिये अपना-अपना मार्ग लिया है।

12 वे कहते हैं, “आओ, हम दाखमधु ले आएँ, आओ मदिरा पीकर छक जाएँ; कल का दिन भी तो आज ही के समान अत्यन्त सुहावना होगा।” (लूका 12:19-20, 1 कुरि. 15:32)

इस्राएल की मूर्तिपूजा की भत्सर्ना

57  1 धर्मी जन नाश होता है, और कोई इस बात की चिन्ता नहीं करता; भक्त मनुष्य उठा लिए जाते हैं, परन्तु कोई नहीं सोचता। धर्मी जन इसलिए उठा लिया गया कि आनेवाली आपत्ति से बच जाए,

2 वह शान्ति को पहुँचता है; जो सीधी चाल चलता है वह अपनी खाट पर विश्राम करता है।

3 परन्तु तुम, हे जादूगरनी के पुत्रों, हे व्यभिचारी और व्यभिचारिणी की सन्तान, यहाँ निकट आओ।

4 तुम किस पर हँसी करते हो? तुम किस पर मुँह खोलकर जीभ निकालते हो? क्या तुम पाखण्डी और झूठे के वंश नहीं हो,

5 तुम, जो सब हरे वृक्षों के तले देवताओं के कारण कामातुर होते और नालों में और चट्टानों ही दरारों के बीच बाल-बच्चों को वध करते हो?

6 नालों के चिकने पत्थर ही तेरा भाग और अंश ठहरे; तूने उनके लिये तपावन दिया और अन्नबलि चढ़ाया है। क्या मैं इन बातों से शान्त हो जाऊँ?

7 एक बड़े ऊँचे पहाड़ पर तूने अपना बिछौना बिछाया है, वहीं तू बलि चढ़ाने को चढ़ गई।

8 तूने अपनी निशानी अपने द्वार के किवाड़ और चौखट की आड़ ही में रखी; मुझे छोड़कर तू औरों को अपने आपको दिखाने के लिये चढ़ी, तूने अपनी खाट चौड़ी की और उनसे वाचा बाँध ली, तूने उनकी खाट को जहाँ देखा, पसन्द किया।

9 तू तेल लिए हुए राजा[fn] * के पास गई और बहुत सुगन्धित तेल अपने काम में लाई; अपने दूत तूने दूर तक भेजे और अधोलोक तक अपने को नीचा किया।

10 तू अपनी यात्रा की लम्बाई के कारण थक गई, तो भी तूने न कहा कि यह व्यर्थ है; तेरा बल कुछ अधिक हो गया, इसी कारण तू नहीं थकी।

11 तूने किसके डर से झूठ कहा, और किसका भय मानकर ऐसा किया कि मुझ को स्मरण नहीं रखा न मुझ पर ध्यान दिया? क्या मैं बहुत काल से चुप नहीं रहा? इस कारण तू मेरा भय नहीं मानती।

12 मैं आप तेरी धार्मिकता और कर्मों का वर्णन करूँगा[fn] *, परन्तु उनसे तुझे कुछ लाभ न होगा।

13 जब तू दुहाई दे, तब जिन मूर्तियों को तूने जमा किया है वे ही तुझे छुड़ाएँ! वे तो सब की सब वायु से वरन् एक ही फूँक से उड़ जाएँगी। परन्तु जो मेरी शरण लेगा वह देश का अधिकारी होगा, और मेरे पवित्र पर्वत का भी अधिकारी होगा।

चंगाई और शान्ति

14 यह कहा जाएगा, “पाँति बाँध-बाँधकर राजमार्ग बनाओ, मेरी प्रजा के मार्ग में से हर एक ठोकर दूर करो।”

15 क्योंकि जो महान और उत्तम और सदैव स्थिर रहता, और जिसका नाम पवित्र है, वह यह कहता है, “मैं ऊँचे पर और पवित्रस्थान में निवास करता हूँ, और उसके संग भी रहता हूँ, जो खेदित और नम्र हैं, कि, नम्र लोगों के हृदय और खेदित लोगों के मन को हर्षित करूँ।

16 मैं सदा मुकद्दमा न लड़ता रहूँगा, न सर्वदा क्रोधित रहूँगा; क्योंकि आत्मा मेरे बनाए हुए हैं और जीव मेरे सामने मूर्छित हो जाते हैं।

17 उसके लोभ के पाप के कारण मैंने क्रोधित होकर उसको दुःख दिया था, और क्रोध के मारे उससे मुँह छिपाया था; परन्तु वह अपने मनमाने मार्ग में दूर भटकता चला गया था।

18 मैं उसकी चाल देखता आया हूँ, तो भी अब उसको चंगा करूँगा; मैं उसे ले चलूँगा और विशेष करके उसके शोक करनेवालों को शान्ति दूँगा।

19 मैं मुँह के फल का सृजनहार हूँ; यहोवा ने कहा है, जो दूर और जो निकट हैं, दोनों को पूरी शान्ति मिले; और मैं उसको चंगा करूँगा। (इफि. 2:13, 17, रोम. 2:39, इब्रा. 13:15)

20 परन्तु दुष्ट तो लहराते हुए समुद्र[fn] * के समान है जो स्थिर नहीं रह सकता; और उसका जल मैल और कीच उछालता है। (यहू. 1:13)

21 दुष्टों के लिये शान्ति नहीं है, मेरे परमेश्वर का यही वचन है।”

उचित और अनुचित उपवास

58  1 “गला खोलकर पुकार, कुछ न रख छोड़, नरसिंगे का सा ऊँचा शब्द कर; मेरी प्रजा को उसका अपराध अर्थात् याकूब के घराने को उसका पाप जता दे।

2 वे प्रतिदिन मेरे पास आते और मेरी गति जानने की इच्छा ऐसी रखते हैं मानो वे धर्मी लोग हैं जिन्होंने अपने परमेश्वर के नियमों को नहीं टाला; वे मुझसे धर्म के नियम पूछते और परमेश्वर के निकट आने से प्रसन्न होते हैं।

3 वे कहते हैं, ‘क्या कारण है कि हमने तो उपवास रखा, परन्तु तूने इसकी सुधि नहीं ली? हमने दुःख उठाया, परन्तु तूने कुछ ध्यान नहीं दिया?’ सुनो, उपवास के दिन तुम अपनी ही इच्छा पूरी करते हो और अपने सेवकों से कठिन कामों को कराते हो।

4 सुनो, तुम्हारे उपवास का फल यह होता है कि तुम आपस में लड़ते और झगड़ते और दुष्टता से घूँसे मारते हो। जैसा उपवास तुम आजकल रखते हो, उससे तुम्हारी प्रार्थना ऊपर नहीं सुनाई देगी।

5 जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूँ अर्थात् जिसमें मनुष्य स्वयं को दीन करे, क्या तुम इस प्रकार करते हो? क्या सिर को झाऊ के समान झुकाना, अपने नीचे टाट बिछाना, और राख फैलाने ही को तुम उपवास और यहोवा को प्रसन्न करने का दिन कहते हो? (मत्ती 6:16, जक. 7:5)

6 “जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूँ, वह क्या यह नहीं, कि, अन्याय से बनाए हुए दासों, और अंधेर सहनेवालों का जूआ तोड़कर उनको छुड़ा लेना, और, सब जूओं को टुकड़े-टुकड़े कर देना? (लूका 4:18, 19, नीति. 21:3, याकू. 1:27)

7 क्या वह यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बाँट देना, अनाथ और मारे-मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहनाना, और अपने जाति भाइयों से अपने को न छिपाना? (इब्रा. 13:2, 3, नीति. 25:21, 28:27, मत्ती 25:35, 36)

8 तब तेरा प्रकाश पौ फटने के समान चमकेगा, और तू शीघ्र चंगा हो जाएगा; तेरी धार्मिकता तेरे आगे-आगे चलेगी, यहोवा का तेज तेरे पीछे रक्षा करते चलेगा। (भज. 37:6, यिर्म. 33:6, लूका 1:78, 79)

9 तब तू पुकारेगा और यहोवा उत्तर देगा; तू दुहाई देगा और वह कहेगा, ‘मैं यहाँ हूँ।’ यदि तू अंधेर करना और उँगली उठाना, और, दुष्ट बातें बोलना छोड़ दे,

10 उदारता से भूखे की सहायता करे और दीन दुःखियों को सन्तुष्ट करे, तब अंधियारे में तेरा प्रकाश चमकेगा, और तेरा घोर अंधकार दोपहर का सा उजियाला हो जाएगा।

11 यहोवा तुझे लगातार लिए चलेगा, और अकाल के समय तुझे तृप्त और तेरी हड्डियों को हरी भरी करेगा[fn] *; और तू सींची हुई बारी और ऐसे सोते के समान होगा जिसका जल कभी नहीं सूखता। (यूह. 7:38)

12 तेरे वंश के लोग बहुत काल के उजड़े हुए स्थानों को फिर बसाएँगे; तू पीढ़ी-पीढ़ी की पड़ी हुई नींव पर घर उठाएगा; तेरा नाम टूटे हुए बाड़े का सुधारक और पथों का ठीक करनेवाला पड़ेगा।

विश्रामदिन का पालन करना

13 “ यदि तू विश्रामदिन को अशुद्ध न करे[fn] * अर्थात् मेरे उस पवित्र दिन में अपनी इच्छा पूरी करने का यत्न न करे, और विश्रामदिन को आनन्द का दिन और यहोवा का पवित्र किया हुआ दिन समझकर माने; यदि तू उसका सम्मान करके उस दिन अपने मार्ग पर न चले, अपनी इच्छा पूरी न करे, और अपनी ही बातें न बोले,

14 तो तू यहोवा के कारण सुखी होगा, और मैं तुझे देश के ऊँचे स्थानों पर चलने दूँगा; मैं तेरे मूलपुरुष याकूब के भाग की उपज में से तुझे खिलाऊँगा, क्योंकि यहोवा ही के मुख से यह वचन निकला है।”

परमेश्वर से अलगाव

59  1 सुनो, यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके, न वह ऐसा बहरा हो गया है कि सुन न सके;

2 परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्हारे परमेश्वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उसका मुँह तुम से ऐसा छिपा है कि वह नहीं सुनता।

3 क्योंकि तुम्हारे हाथ हत्या से और तुम्हारी अंगुलियाँ अधर्म के कर्मों से अपवित्र हो गईं हैं, तुम्हारे मुँह से तो झूठ और तुम्हारी जीभ से कुटिल बातें निकलती हैं।

4 कोई धर्म के साथ नालिश नहीं करता, न कोई सच्चाई से मुकद्दमा लड़ता है; वे मिथ्या पर भरोसा रखते हैं और झूठी बातें बकते हैं; उसको मानो उत्पात का गर्भ रहता, और वे अनर्थ को जन्म देते हैं।

5 वे साँपिन के अण्डे सेते और मकड़ी के जाले बनाते हैं; जो कोई उनके अण्डे खाता वह मर जाता है, और जब कोई एक को फोड़ता तब उसमें से सपोला निकलता है।

6 उनके जाले कपड़े का काम न देंगे, न वे अपने कामों से अपने को ढाँप सकेंगे। क्योंकि उनके काम अनर्थ ही के होते हैं, और उनके हाथों से उपद्रव का काम होता है।

7 वे बुराई करने को दौड़ते हैं, और निर्दोष की हत्या करने को तत्पर रहते हैं; उनकी युक्तियाँ[fn] * व्यर्थ हैं, उजाड़ और विनाश ही उनके मार्गों में हैं।

8 शान्ति का मार्ग वे जानते ही नहीं; और न उनके व्यवहार में न्याय है; उनके पथ टेढ़े हैं, जो कोई उन पर चले वह शान्ति न पाएगा। (रोम. 3:15-17)

इस्राएल के पापों के कारण विपत्ति का आना

9 इस कारण न्याय हम से दूर है, और धर्म हमारे समीप ही नहीं आता; हम उजियाले की बाट तो जोहते हैं, परन्तु, देखो अंधियारा ही बना रहता है, हम प्रकाश की आशा तो लगाए हैं, परन्तु, घोर अंधकार ही में चलते हैं।

10 हम अंधों के समान दीवार टटोलते हैं, हाँ, हम बिना आँख के लोगों के समान टटोलते हैं; हम दिन-दोपहर रात के समान ठोकर खाते हैं, हष्टपुष्टों के बीच हम मुर्दों के समान हैं।

11 हम सब के सब रीछों के समान चिल्लाते हैं और पिंडुकों के समान च्यूं-च्यूं करते हैं; हम न्याय की बाट तो जोहते हैं, पर वह कहीं नहीं; और उद्धार की बाट जोहते हैं पर वह हम से दूर ही रहता है।

12 क्योंकि हमारे अपराध तेरे सामने बहुत हुए हैं, हमारे पाप हमारे विरुद्ध साक्षी दे रहे हैं[fn] *; हमारे अपराध हमारे संग हैं और हम अपने अधर्म के काम जानते हैं:

13 हमने यहोवा का अपराध किया है, हम उससे मुकर गए और अपने परमेश्वर के पीछे चलना छोड़ दिया, हम अंधेर करने लगे और उलट फेर की बातें कहीं, हमने झूठी बातें मन में गढ़ीं और कही भी हैं।

14 न्याय तो पीछे हटाया गया और धर्म दूर खड़ा रह गया; सच्चाई बाजार में गिर पड़ी, और सिधाई प्रवेश नहीं करने पाती।

15 हाँ, सच्चाई खो गई, और जो बुराई से भागता है वह शिकार हो जाता है।

सिय्योन का उद्धारकर्ता

यह देखकर यहोवा ने बुरा माना, क्योंकि न्याय जाता रहा,

16 उसने देखा कि कोई भी पुरुष नहीं, और इससे अचम्भा किया कि कोई विनती करनेवाला नहीं; तब उसने अपने ही भुजबल से उद्धार किया, और अपने धर्मी होने के कारण वह सम्भल गया। (यहे. 22:30, इब्रा. 7:25, प्रका. 5:1-5, भज. 98:1)

17 उसने धार्मिकता को झिलम के समान पहन लिया, और उसके सिर पर उद्धार का टोप रखा गया; उसने बदला लेने का वस्त्र धारण किया, और जलजलाहट को बागे के समान पहन लिया है। (इफि. 6:14, इफि. 6:17, 1 थिस्स. 5:8)

18 उनके कर्मों के अनुसार वह उनको फल देगा, अपने द्रोहियों पर वह अपना क्रोध भड़काएगा और अपने शत्रुओं को उनकी कमाई देगा; वह द्वीपवासियों को भी उनकी कमाई भर देगा। (जक. 17:10, प्रका. 20:12, 13, नहू. 1:2, प्रका. 22:12)

19 तब पश्चिम की ओर लोग यहोवा के नाम का, और पूर्व की ओर उसकी महिमा का भय मानेंगे; क्योंकि जब शत्रु महानद के समान चढ़ाई करेंगे तब यहोवा का आत्मा उसके विरुद्ध झण्डा खड़ा करेगा। (मत्ती 8:11, लूका 13:29, भज. 102:15-16, 113:3)

20 “याकूब में जो अपराध से मन फिराते हैं उनके लिये सिय्योन में एक छुड़ानेवाला आएगा,” यहोवा की यही वाणी है। (रोम. 11:26)

21 यहोवा यह कहता है, “जो वाचा मैंने उनसे बाँधी है वह यह है, कि मेरा आत्मा तुझ पर ठहरा है, और अपने वचन जो मैंने तेरे मुँह में डाले हैं अब से लेकर सर्वदा तक वे तेरे मुँह से, और तेरे पुत्रों और पोतों के मुँह से भी कभी न हटेंगे।” (इब्रा. 10:16, रोम. 11:27)

सिय्योन में परमेश्वर की महिमा

60  1 उठ, प्रकाशमान हो; क्योंकि तेरा प्रकाश आ गया है, और यहोवा का तेज तेरे ऊपर उदय हुआ है। (इफि. 5:14)

2 देख, पृथ्वी पर तो अंधियारा और राज्य-राज्य के लोगों पर घोर अंधकार छाया हुआ है; परन्तु तेरे ऊपर यहोवा उदय होगा, और उसका तेज तुझ पर प्रगट होगा। (यूह. 1:14, प्रका. 21:23)

3 जाति-जाति तेरे पास प्रकाश के लिये और राजा तेरे आरोहण के प्रताप की ओर आएँगे। (प्रका. 21:24)

4 अपनी आँखें चारों ओर उठाकर देख; वे सब के सब इकट्ठे होकर तेरे पास आ रहे हैं; तेरे पुत्र दूर से आ रहे हैं, और तेरी पुत्रियाँ हाथों-हाथ पहुँचाई जा रही हैं।

5 तब तू इसे देखेगी और तेरा मुख चमकेगा, तेरा हृदय थरथराएगा और आनन्द से भर जाएगा; क्योंकि समुद्र का सारा धन और जाति-जाति की धन-सम्पत्ति तुझको मिलेगी। (यिर्म. 33:9, योए. 2:26, यशा. 61:6)

6 तेरे देश में ऊँटों के झुण्ड और मिद्यान और एपा देशों की साँड़नियाँ इकट्ठी होंगी; शेबा के सब लोग आकर सोना और लोबान भेंट लाएँगे और यहोवा का गुणानुवाद आनन्द से सुनाएँगे। (भज. 72:10, मत्ती 2:11)

7 केदार की सब भेड़-बकरियाँ इकट्ठी होकर तेरी हो जाएँगी, नबायोत के मेढ़े तेरी सेवा टहल के काम में आएँगे; मेरी वेदी पर वे ग्रहण किए जाएँगे और मैं अपने शोभायमान भवन को और भी प्रतापी कर दूँगा। (मत्ती 21:13)

8 ये कौन हैं जो बादल के समान और अपने दरबों की ओर उड़ते हुए कबूतरों के समान चले आते हैं?

9 निश्चय द्वीप मेरी ही बाट देखेंगे, पहले तो तर्शीश के जहाज आएँगे, कि तेरे पुत्रों को सोने- चाँदी समेत तेरे परमेश्वर यहोवा अर्थात् इस्राएल के पवित्र के नाम के निमित्त दूर से पहुँचाए, क्योंकि उसने तुझे शोभायमान किया है।

10 परदेशी लोग तेरी शहरपनाह को उठाएँगे[fn] *, और उनके राजा तेरी सेवा टहल करेंगे; क्योंकि मैंने क्रोध में आकर तुझे दुःख दिया था, परन्तु अब तुझ से प्रसन्न होकर तुझ पर दया की है।

11 तेरे फाटक सदैव खुले रहेंगे; दिन और रात वे बन्द न किए जाएँगे जिससे जाति-जाति की धन-सम्पत्ति और उनके राजा बन्दी होकर तेरे पास पहुँचाए जाएँ। (प्रका. 21:24, 26)

12 क्योंकि जो जाति और राज्य के लोग तेरी सेवा न करें वे नष्ट हो जाएँगे; हाँ ऐसी जातियाँ पूरी रीति से सत्यानाश हो जाएँगी।

13 लबानोन का वैभव अर्थात् सनोवर और देवदार और चीड़ के पेड़ एक साथ तेरे पास आएँगे कि मेरे पवित्रस्थान को सुशोभित करें; और मैं अपने चरणों के स्थान को महिमा दूँगा।

14 तेरे दुःख देनेवालों की सन्तान तेरे पास सिर झुकाए हुए आएँगी; और जिन्होंने तेरा तिरस्कार किया सब तेरे पाँवों पर गिरकर दण्डवत् करेंगे; वे तेरा नाम यहोवा का नगर, इस्राएल के पवित्र का सिय्योन रखेंगे।

15 तू जो त्यागी गई और घृणित ठहरी, यहाँ तक कि कोई तुझ में से होकर नहीं जाता था, इसके बदले मैं तुझे सदा के घमण्ड का और पीढ़ी-पीढ़ी के हर्ष का कारण ठहराऊँगा।

16 तू जाति-जाति का दूध पी लेगी, तू राजाओं की छातियाँ चूसेगी; और तू जान लेगी कि मैं यहोवा तेरा उद्धारकर्ता और तेरा छुड़ानेवाला, याकूब का सर्वशक्तिमान हूँ।

17 मैं पीतल के बदले सोना, लोहे के बदले चाँदी, लकड़ी के बदले पीतल और पत्थर के बदले लोहा लाऊँगा। मैं तेरे हाकिमों को मेल-मिलाप और तेरे चौधरियों को धार्मिकता ठहराऊँगा।

18 तेरे देश में फिर कभी उपद्रव और तेरी सीमाओं के भीतर उत्पात या अंधेर की चर्चा न सुनाई पड़ेगी[fn] *; परन्तु तू अपनी शहरपनाह का नाम उद्धार और अपने फाटकों का नाम यश रखेगी।

19 फिर दिन को सूर्य तेरा उजियाला न होगा, न चाँदनी के लिये चन्द्रमा परन्तु यहोवा तेरे लिये सदा का उजियाला और तेरा परमेश्वर तेरी शोभा ठहरेगा। (प्रका. 21:123, प्रका. 22:5)

20 तेरा सूर्य फिर कभी अस्त न होगा और न तेरे चन्द्रमा की ज्योति मलिन होगी; क्योंकि यहोवा तेरी सदैव की ज्योति होगा और तेरे विलाप के दिन समाप्त हो जाएँगे।

21 तेरे लोग सब के सब धर्मी होंगे; वे सर्वदा देश के अधिकारी रहेंगे, वे मेरे लगाए हुए पौधे और मेरे हाथों का काम ठहरेंगे, जिससे मेरी महिमा प्रगट हो। (प्रका. 21:27, इफि. 2:10, 2 पत. 3:13)

22 छोटे से छोटा एक हजार हो जाएगा[fn] * और सबसे दुर्बल एक सामर्थी जाति बन जाएगा। मैं यहोवा हूँ; ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूँगा।

उद्धार का शुभ सन्देश

61  1 प्रभु यहोवा का आत्मा मुझ पर है; क्योंकि यहोवा ने सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया और मुझे इसलिए भेजा है कि खेदित मन के लोगों को शान्ति दूँ; कि बन्दियों के लिये स्वतंत्रता का और कैदियों के लिये छुटकारे का प्रचार करूँ; (मत्ती 11:5, प्रेरि. 10:38, मत्ती 5:3, प्रेरि. 26:18, लूका 4:18)

2 कि यहोवा के प्रसन्न रहने के वर्ष का और हमारे परमेश्वर के पलटा लेने के दिन का प्रचार करूँ; कि सब विलाप करनेवालों को शान्ति दूँ। (लूका 4:18, 19, मत्ती 5:4)

3 और सिय्योन के विलाप करनेवालों के सिर पर की राख दूर करके सुन्दर पगड़ी बाँध दूँ, कि उनका विलाप दूर करके हर्ष का तेल लगाऊँ और उनकी उदासी हटाकर यश का ओढ़ना ओढ़ाऊँ; जिससे वे धार्मिकता के बांज वृक्ष और यहोवा के लगाए हुए कहलाएँ और जिससे उसकी महिमा प्रगट हो। (भज. 45:7, 30:11, लूका 6:21)

4 तब वे बहुत काल के उजड़े हुए स्थानों को फिर बसाएँगे, पूर्वकाल से पड़े हुए खण्डहरों में वे फिर घर बनाएँगे; उजड़े हुए नगरों को जो पीढ़ी-पीढ़ी से उजड़े हुए हों वे फिर नये सिरे से बसाएँगे।

5 परदेशी आ खड़े होंगे और तुम्हारी भेड़-बकरियों को चराएँगे और विदेशी लोग तुम्हारे हल चलानेवाले और दाख की बारी के माली होंगे;

6 पर तुम यहोवा के याजक कहलाओगे[fn] *, वे तुम को हमारे परमेश्वर के सेवक कहेंगे; और तुम जाति-जाति की धन-सम्पत्ति को खाओगे, उनके वैभव की वस्तुएँ पाकर तुम बड़ाई करोगे। (1 पत. 2:5, 9, प्रका. 1:6, प्रका. 5:10)

7 तुम्हारी नामधराई के बदले दूना भाग मिलेगा, अनादर के बदले तुम अपने भाग के कारण जयजयकार करोगे; तुम अपने देश में दूने भाग के अधिकारी होंगे; और सदा आनन्दित बने रहोगे।

8 क्योंकि, मैं यहोवा न्याय से प्रीति रखता हूँ, मैं अन्याय और डकैती से घृणा करता हूँ; इसलिए मैं उनको उनका प्रतिफल सच्चाई से दूँगा, और उनके साथ सदा की वाचा बाँधूँगा।

9 उनका वंश जाति-जाति में और उनकी सन्तान देश-देश के लोगों के बीच प्रसिद्ध होगी; जितने उनको देखेंगे, पहचान लेंगे कि यह वह वंश है जिसको परमेश्वर ने आशीष दी है।

10 मैं यहोवा के कारण अति आनन्दित होऊँगा[fn] *, मेरा प्राण परमेश्वर के कारण मगन रहेगा; क्योंकि उसने मुझे उद्धार के वस्त्र पहनाए, और धार्मिकता की चद्दर ऐसे ओढ़ा दी है जैसे दूल्हा फूलों की माला से अपने आपको सजाता और दुल्हन अपने गहनों से अपना सिंगार करती है। (इब्रा. 3:18, रोम. 5:11, प्रका. 19:7, 8)

11 क्योंकि जैसे भूमि अपनी उपज को उगाती, और बारी में जो कुछ बोया जाता है उसको वह उपजाती है, वैसे ही प्रभु यहोवा सब जातियों के सामने धार्मिकता और धन्यवाद को बढ़ाएगा।

सिय्योन के उद्धार का आश्वासन

62  1 सिय्योन के निमित्त मैं चुप न रहूँगा, और यरूशलेम के निमित्त मैं चैन न लूँगा, जब तक कि उसकी धार्मिकता प्रकाश के समान और उसका उद्धार जलती हुई मशाल के समान दिखाई न दे।

2 तब जाति-जाति के लोग तेरी धार्मिकता और सब राजा तेरी महिमा देखेंगे, और तेरा एक नया नाम रखा जाएगा[fn] * जो यहोवा के मुख से निकलेगा। (प्रका. 2:17, प्रका. 3:12)

3 तू यहोवा के हाथ में एक शोभायमान मुकुट और अपने परमेश्वर की हथेली में राजमुकुट ठहरेगी।

4 तू फिर त्यागी हुई न कहलाएगी, और तेरी भूमि फिर उजड़ी हुई न कहलाएगी; परन्तु तू हेप्सीबा और तेरी भूमि ब्यूला[fn] * कहलाएगी; क्योंकि यहोवा तुझ से प्रसन्न है, और तेरी भूमि सुहागन होगी।

5 क्योंकि जिस प्रकार जवान पुरुष एक कुमारी को ब्याह लाता है, वैसे ही तेरे पुत्र तुझे ब्याह लेंगे; और जैसे दुल्हा अपनी दुल्हन के कारण हर्षित होता है, वैसे ही तेरा परमेश्वर तेरे कारण हर्षित होगा।

6 हे यरूशलेम, मैंने तेरी शहरपनाह पर पहरूए बैठाए हैं; वे दिन-रात कभी चुप न रहेंगे। हे यहोवा को स्मरण करनेवालों, चुप न रहो, (यहे. 3:17-21, इब्रा. 13:17)

7 और जब तक वह यरूशलेम को स्थिर करके उसकी प्रशंसा पृथ्वी पर न फैला दे, तब तक उसे भी चैन न लेने दो।

8 यहोवा ने अपने दाहिने हाथ की और अपनी बलवन्त भुजा की शपथ खाई है: निश्चय मैं भविष्य में तेरा अन्न अब फिर तेरे शत्रुओं को खाने के लिये न दूँगा, और परदेशियों के पुत्र तेरा नया दाखमधु जिसके लिये तूने परिश्रम किया है, नहीं पीने पाएँगे;

9 केवल वे ही, जिन्होंने उसे खत्ते में रखा हो, उसमें से खाकर यहोवा की स्तुति करेंगे, और जिन्होंने दाखमधु भण्डारों में रखा हो, वे ही उसे मेरे पवित्रस्थान के आँगनों में पीने पाएँगे।

10 जाओ, फाटकों में से निकल जाओ, प्रजा के लिये मार्ग सुधारो; राजमार्ग सुधारकर ऊँचा करो[fn] *, उसमें से पत्थर बीन-बीनकर फेंक दो, देश-देश के लोगों के लिये झण्डा खड़ा करो।

11 देखो, यहोवा ने पृथ्वी की छोर तक इस आज्ञा का प्रचार किया है: सिय्योन की बेटी से कहो, “देख, तेरा उद्धारकर्ता आता है, देख, जो मजदूरी उसको देनी है वह उसके पास है और उसका काम उसके सामने है।” (मत्ती 21:5, प्रका. 22:12)

12 और लोग उनको पवित्र प्रजा और यहोवा के छुड़ाए हुए कहेंगे; और तेरा नाम ग्रहण की हुई अर्थात् न-त्यागी हुई नगरी पड़ेगा।

परमेश्वर का न्याय और उद्धार

63  1 यह कौन है जो एदोम देश के बोस्रा नगर से लाल वस्त्र पहने हुए चला आता है, जो अति बलवान और भड़कीला पहरावा पहने हुए झूमता चला आता है?

“यह मैं ही हूँ, जो धार्मिकता से बोलता और पूरा उद्धार करने की शक्ति रखता हूँ।”

2 तेरा पहरावा क्यों लाल है? और क्या कारण है कि तेरे वस्त्र हौद में दाख रौंदनेवाले के समान हैं?

3 “ मैंने तो अकेले ही हौद में दाखें रौंदी हैं[fn] *, और देश के लोगों में से किसी ने मेरा साथ नहीं दिया; हाँ, मैंने अपने क्रोध में आकर उन्हें रौंदा और जलकर उन्हें लताड़ा; उनके लहू के छींटे मेरे वस्त्रों पर पड़े हैं, इससे मेरा सारा पहरावा धब्बेदार हो गया है। (प्रका. 19:15, प्रका. 14:20)

4 क्योंकि बदला लेने का दिन मेरे मन में था, और मेरी छुड़ाई हुई प्रजा का वर्ष आ पहुँचा है।

5 मैंने खोजा, पर कोई सहायक न दिखाई पड़ा; मैंने इससे अचम्भा भी किया कि कोई सम्भालनेवाला नहीं था; तब मैंने अपने ही भुजबल से उद्धार किया, और मेरी जलजलाहट ही ने मुझे सम्भाला।

6 हाँ, मैंने अपने क्रोध में आकर देश-देश के लोगों को लताड़ा, अपनी जलजलाहट से मैंने उन्हें मतवाला कर दिया, और उनके लहू को भूमि पर बहा दिया।”

अनुग्रह का स्मरण

7 जितना उपकार यहोवा ने हम लोगों का किया अर्थात् इस्राएल के घराने पर दया और अत्यन्त करुणा करके उसने हम से जितनी भलाई कि, उस सबके अनुसार मैं यहोवा के करुणामय कामों का वर्णन और उसका गुणानुवाद करूँगा।

8 क्योंकि उसने कहा, निःसन्देह ये मेरी प्रजा के लोग हैं, ऐसे लड़के हैं जो धोखा न देंगे; और वह उनका उद्धारकर्ता हो गया।

9 उनके सारे संकट में उसने भी कष्ट उठाया, और उसके सम्मुख रहनेवाले दूत ने उनका उद्धार किया; प्रेम और कोमलता से उसने आप ही उनको छुड़ाया; उसने उन्हें उठाया और प्राचीनकाल से सदा उन्हें लिए फिरा।

10 तो भी उन्होंने बलवा किया और उसके पवित्र आत्मा को खेदित किया; इस कारण वह पलटकर उनका शत्रु हो गया, और स्वयं उनसे लड़ने लगा। (प्रेरि. 7:51, इफि. 4:30)

11 तब उसके लोगों को उनके प्राचीन दिन अर्थात् मूसा के दिन स्मरण आए, वे कहने लगे कि जो अपनी भेड़ों को उनके चरवाहे समेत समुद्र में से निकाल लाया वह कहाँ है? जिसने उनके बीच अपना पवित्र आत्मा डाला, वह कहाँ है?

12 जिसने अपने प्रतापी भुजबल को मूसा के दाहिने हाथ के साथ कर दिया, जिसने उनके सामने जल को दो भाग करके अपना सदा का नाम कर लिया,

13 जो उनको गहरे समुद्र में से ले चला; जैसा घोड़े को जंगल में वैसे ही उनको भी ठोकर न लगी, वह कहाँ है?

14 जैसे घरेलू पशु तराई में उतर जाता है, वैसे ही यहोवा के आत्मा ने उनको विश्राम दिया। इसी प्रकार से तूने अपनी प्रजा की अगुआई की ताकि अपना नाम महिमायुक्त बनाए।

इस्राएल की प्रार्थना

15 स्वर्ग से, जो तेरा पवित्र और महिमापूर्ण वासस्थान है, दृष्टि कर[fn] *। तेरी जलन और पराक्रम कहाँ रहे? तेरी दया और करुणा मुझ पर से हट गई हैं।

16 निश्चय तू हमारा पिता है, यद्यपि अब्राहम हमें नहीं पहचानता, और इस्राएल हमें ग्रहण नहीं करता; तो भी, हे यहोवा, तू हमारा पिता और हमारा छुड़ानेवाला है; प्राचीनकाल से यही तेरा नाम है। (यूह. 8:41)

17 हे यहोवा, तू क्यों हमको अपने मार्गों से भटका देता, और हमारे मन ऐसे कठोर करता है कि हम तेरा भय नहीं मानते? अपने दास, अपने निज भाग के गोत्रों के निमित्त लौट आ।

18 तेरी पवित्र प्रजा तो थोड़े ही समय तक तेरे पवित्रस्थान की अधिकारी रही; हमारे द्रोहियों ने उसे लताड़ दिया है। (लूका 21:24, प्रका. 11:2)

19 हम लोग तो ऐसे हो गए हैं, मानो तूने हम पर कभी प्रभुता नहीं की, और उनके समान जो कभी तेरे न कहलाए।

64  1 भला हो कि तू आकाश को फाड़कर उतर आए और पहाड़ तेरे सामने काँप उठे।

2 जैसे आग झाड़-झँखाड़ को जला देती या जल को उबालती है, उसी रीति से तू अपने शत्रुओं पर अपना नाम ऐसा प्रगट कर कि जाति-जाति के लोग तेरे प्रताप से काँप उठें!

3 जब तूने ऐसे भयानक काम किए जो हमारी आशा से भी बढ़कर थे, तब तू उतर आया, पहाड़ तेरे प्रताप से काँप उठे।

4 क्योंकि प्राचीनकाल ही से तुझे छोड़ कोई और ऐसा परमेश्वर न तो कभी देखा गया और न कान से उसकी चर्चा सुनी गई जो अपनी बाट जोहनेवालों के लिये काम करे। (भज. 31:19, 1 कुरि. 2:9)

5 तू तो उन्हीं से मिलता है जो धर्म के काम हर्ष के साथ करते, और तेरे मार्गों पर चलते हुए तुझे स्मरण करते हैं। देख, तू क्रोधित हुआ था, क्योंकि हमने पाप किया; हमारी यह दशा तो बहुत समय से है, क्या हमारा उद्धार हो सकता है?

6 हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं[fn] *, और हमारे धार्मिकता के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते के समान मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु के समान उड़ा दिया है।

7 कोई भी तुझ से प्रार्थना नहीं करता, न कोई तुझ से सहायता लेने के लिये चौकसी करता है कि तुझ से लिपटा रहे; क्योंकि हमारे अधर्म के कामों के कारण तूने हम से अपना मुँह छिपा लिया है, और हमें हमारी बुराइयों के वश में छोड़ दिया है।

8 तो भी, हे यहोवा, तू हमारा पिता है; देख, हम तो मिट्टी है, और तू हमारा कुम्हार है; हम सब के सब तेरे हाथ के काम हैं[fn] *। (भज. 100:3, गला. 3:26)

9 इसलिए हे यहोवा, अत्यन्त क्रोधित न हो, और अनन्तकाल तक हमारे अधर्म को स्मरण न रख। विचार करके देख, हम तेरी विनती करते हैं, हम सब तेरी प्रजा हैं।

10 देख, तेरे पवित्र नगर जंगल हो गए, सिय्योन सुनसान हो गया है, यरूशलेम उजड़ गया है।

11 हमारा पवित्र और शोभायमान मन्दिर, जिसमें हमारे पूर्वज तेरी स्तुति करते थे, आग से जलाया गया, और हमारी मनभावनी वस्तुएँ सब नष्ट हो गई हैं।

12 हे यहोवा, क्या इन बातों के होते हुए भी तू अपने को रोके रहेगा? क्या तू हम लोगों को इस अत्यन्त दुर्दशा में रहने देगा?

सभी लोग परमेश्वर के बारे में जानेंगे

65  1 जो मुझ को पूछते भी न थे वे मेरे खोजी हैं; जो मुझे ढूँढ़ते भी न थे उन्होंने मुझे पा लिया, और जो जाति मेरी नहीं कहलाई थी, उससे भी मैं कहता हूँ, “देख, मैं उपस्थित हूँ।”

2 मैं एक हठीली जाति के लोगों की ओर दिन भर हाथ फैलाए रहा, जो अपनी युक्तियों के अनुसार बुरे मार्गों में चलते हैं। (रोम. 10:20, 21)

3 ऐसे लोग, जो मेरे सामने ही बारियों में बलि चढ़ा-चढ़ाकर और ईटों पर धूप जला-जलाकर, मुझे लगातार क्रोध दिलाते हैं।

4 ये कब्र के बीच बैठते और छिपे हुए स्थानों में रात बिताते; जो सूअर का माँस खाते[fn] *, और घृणित वस्तुओं का रस अपने बर्तनों में रखते;

5 जो कहते हैं, “हट जा, मेरे निकट मत आ, क्योंकि मैं तुझ से पवित्र हूँ।” ये मेरी नाक में धुएँ व उस आग के समान हैं जो दिन भर जलती रहती है। विद्रोहियों को दण्ड

6 देखो, यह बात मेरे सामने लिखी हुई है: “ मैं चुप न रहूँगा[fn] *, मैं निश्चय बदला दूँगा वरन् तुम्हारे और तुम्हारे पुरखाओं के भी अधर्म के कामों का बदला तुम्हारी गोद में भर दूँगा।

7 क्योंकि उन्होंने पहाड़ों पर धूप जलाया और पहाड़ियों पर मेरी निन्दा की है, इसलिए मैं यहोवा कहता हूँ, कि, उनके पिछले कामों के बदले को मैं इनकी गोद में तौलकर दूँगा।”

8 यहोवा यह कहता है: “जिस भाँति दाख के किसी गुच्छे में जब नया दाखमधु भर आता है, तब लोग कहते हैं, उसे नाश मत कर, क्योंकि उसमें आशीष है, उसी भाँति मैं अपने दासों के निमित्त ऐसा करूँगा कि सभी को नाश न करूँगा।

9 मैं याकूब में से एक वंश, और यहूदा में से अपने पर्वतों का एक वारिस उत्पन्न करूँगा; मेरे चुने हुए उसके वारिस होंगे, और मेरे दास वहाँ निवास करेंगे।

10 मेरी प्रजा जो मुझे ढूँढ़ती है, उसकी भेंड़-बकरियाँ तो शारोन में चरेंगी, और उसके गाय-बैल आकोर नामक तराई में विश्राम करेंगे।

11 परन्तु तुम जो यहोवा को त्याग देते और मेरे पवित्र पर्वत को भूल जाते हो, जो भाग्य देवता के लिये मेज पर भोजन की वस्तुएँ सजाते और भावी देवी के लिये मसाला मिला हुआ दाखमधु भर देते हो;

12 मैं तुम्हें गिन-गिनकर तलवार का कौर बनाऊँगा, और तुम सब घात होने के लिये झुकोगे; क्योंकि, जब मैंने तुम्हें बुलाया तुमने उत्तर न दिया, जब मैं बोला, तब तुमने मेरी न सुनी; वरन् जो मुझे बुरा लगता है वही तुमने नित किया, और जिससे मैं अप्रसन्न होता हूँ, उसी को तुमने अपनाया।”

13 इस कारण प्रभु यहोवा यह कहता है: “देखो, मेरे दास तो खाएँगे, पर तुम भूखे रहोगे; मेरे दास पीएँगे, पर तुम प्यासे रहोगे; मेरे दास आनन्द करेंगे, पर तुम लज्जित होंगे;

14 देखो, मेरे दास हर्ष के मारे जयजयकार करेंगे, परन्तु तुम शोक से चिल्लाओगे और खेद के मारे[fn] * हाय! हाय!, करोगे।

15 मेरे चुने हुए लोग तुम्हारी उपमा दे-देकर श्राप देंगे, और प्रभु यहोवा तुझको नाश करेगा; परन्तु अपने दासों का दूसरा नाम रखेगा। (जक. 8:13, प्रका. 2:17, प्रका. 3:12)

16 तब सारे देश में जो कोई अपने को धन्य कहेगा वह सच्चे परमेश्वर का नाम लेकर अपने को धन्य कहेगा, और जो कोई देश में शपथ खाए वह सच्चे परमेश्वर के नाम से शपथ खाएगा; क्योंकि पिछला कष्ट दूर हो गया और वह मेरी आँखों से छिप गया है।

एक नई सृष्टि

17 “क्योंकि देखो, मैं नया आकाश और नई पृथ्वी उत्पन्न करता हूँ; और पहली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच-विचार में भी न आएँगी। (2 पत. 3:13, प्रका. 21:1-4)

18 इसलिए जो मैं उत्पन्न करने पर हूँ, उसके कारण तुम हर्षित हो और सदा सर्वदा मगन रहो; क्योंकि देखो, मैं यरूशलेम को मगन और उसकी प्रजा को आनन्दित बनाऊँगा।

19 मैं आप यरूशलेम के कारण मगन, और अपनी प्रजा के हेतु हर्षित हूँगा; उसमें फिर रोने या चिल्लाने का शब्द न सुनाई पड़ेगा। (प्रका. 21:4)

20 उसमें फिर न तो थोड़े दिन का बच्चा, और न ऐसा बूढ़ा जाता रहेगा जिसने अपनी आयु पूरी न की हो[fn] *; क्योंकि जो लड़कपन में मरनेवाला है वह सौ वर्ष का होकर मरेगा, परन्तु पापी सौ वर्ष का होकर श्रापित ठहरेगा।

21 वे घर बनाकर उनमें बसेंगे; वे दाख की बारियाँ लगाकर उनका फल खाएँगे।

22 ऐसा नहीं होगा कि वे बनाएँ और दूसरा बसे; या वे लगाएँ, और दूसरा खाए; क्योंकि मेरी प्रजा की आयु वृक्षों की सी होगी, और मेरे चुने हुए अपने कामों का पूरा लाभ उठाएँगे।

23 उनका परिश्रम व्यर्थ न होगा, न उनके बालक घबराहट के लिये उत्पन्न होंगे; क्योंकि वे यहोवा के धन्य लोगों का वंश ठहरेंगे, और उनके बाल-बच्चे उनसे अलग न होंगे। (भज. 115:14, 15)

24 उनके पुकारने से पहले ही मैं उनको उत्तर दूँगा, और उनके माँगते ही मैं उनकी सुन लूँगा।

25 भेड़िया और मेम्ना एक संग चरा करेंगे, और सिंह बैल के समान भूसा खाएगा; और सर्प का आहार मिट्टी ही रहेगा। मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई किसी को दुःख देगा और न कोई किसी की हानि करेगा, यहोवा का यही वचन है।”

परमेश्वर द्वारा जाति-जाति का न्याय

66  1 यहोवा यह कहता है: “आकाश मेरा सिंहासन और पृथ्वी मेरे चरणों की चौकी है; तुम मेरे लिये कैसा भवन बनाओगे, और मेरे विश्राम का कौन सा स्थान होगा? (प्रेरि. 7:48-50, मत्ती 5:34, 35)

2 यहोवा की यह वाणी है, ये सब वस्तुएँ मेरे ही हाथ की बनाई हुई हैं, इसलिए ये सब मेरी ही हैं। परन्तु मैं उसी की ओर दृष्टि करूँगा जो दीन और खेदित मन[fn] * का हो, और मेरा वचन सुनकर थरथराता हो। (भज. 34:18, मत्ती 5:3)

3 “बैल का बलि करनेवाला मनुष्य के मार डालनेवाले के समान है; जो भेड़ का चढ़ानेवाला है वह उसके समान है जो कुत्ते का गला काटता है; जो अन्नबलि चढ़ाता है वह मानो सूअर का लहू चढ़ानेवाले के समान है; और जो लोबान जलाता है, वह उसके समान है जो मूरत को धन्य कहता है। इन सभी ने अपना-अपना मार्ग चुन लिया है, और घिनौनी वस्तुओं से उनके मन प्रसन्न होते हैं।

4 इसलिए मैं भी उनके लिये दुःख की बातें निकालूँगा, और जिन बातों से वे डरते हैं उन्हीं को उन पर लाऊँगा; क्योंकि जब मैंने उन्हें बुलाया, तब कोई न बोला, और जब मैंने उनसे बातें की, तब उन्होंने मेरी न सुनी; परन्तु जो मेरी दृष्टि में बुरा था वही वे करते रहे, और जिससे मैं अप्रसन्न होता था उसी को उन्होंने अपनाया।”

5 तुम जो यहोवा का वचन सुनकर थरथराते हो यहोवा का यह वचन सुनो: “तुम्हारे भाई जो तुम से बैर रखते और मेरे नाम के निमित्त तुम को अलग कर देते हैं उन्होंने कहा है, ‘यहोवा की महिमा तो बढ़े, जिससे हम तुम्हारा आनन्द देखने पाएँ;’ परन्तु उन्हीं को लज्जित होना पड़ेगा। (2 थिस्स. 1:12)

दण्ड और नई जाति

6 “सुनो, नगर से कोलाहल की धूम! मन्दिर से एक शब्द, सुनाई देता है! वह यहोवा का शब्द है, वह अपने शत्रुओं को उनकी करनी का फल दे रहा है! (प्रका. 16:1, 17)

7 “उसकी प्रसव-पीड़ा उठने से पहले ही उसने जन्मा दिया; उसको पीड़ाएँ होने से पहले ही उससे बेटा जन्मा। (प्रका. 12:2, 5)

8 ऐसी बात किसने कभी सुनी? किसने कभी ऐसी बातें देखी? क्या देश एक ही दिन में उत्पन्न हो सकता है? क्या एक जाति क्षण मात्र में ही उत्पन्न हो सकती है? क्योंकि सिय्योन की प्रसव-पीड़ा उठी ही थीं कि उससे सन्तान उत्पन्न हो गए।

9 यहोवा कहता है, क्या मैं उसे जन्माने के समय तक पहुँचाकर न जन्माऊँ? तेरा परमेश्वर कहता है, मैं जो गर्भ देता हूँ क्या मैं कोख बन्द करूँ?

10 “हे यरूशलेम से सब प्रेम रखनेवालों, उसके साथ आनन्द करो और उसके कारण मगन हो; हे उसके विषय सब विलाप करनेवालों उसके साथ हर्षित हो!

11 जिससे तुम उसके शान्तिरूपी स्तन से दूध पी-पीकर तृप्त हो; और दूध पीकर उसकी महिमा की बहुतायत से अत्यन्त सुखी हो।”

12 क्योंकि यहोवा यह कहता है, “देखो, मैं उसकी ओर शान्ति को नदी के समान, और जाति-जाति के धन को नदी की बाढ़ के समान बहा दूँगा; और तुम उससे पीओगे, तुम उसकी गोद में उठाए जाओगे और उसके घुटनों पर कुदाए जाओगे।

13 जिस प्रकार माता अपने पुत्र को शान्ति देती है, वैसे ही मैं भी तुम्हें शान्ति दूँगा; तुम को यरूशलेम ही में शान्ति मिलेगी।

14 तुम यह देखोगे और प्रफुल्लित होंगे; तुम्हारी हड्डियाँ घास के समान हरी-भरी होंगी; और यहोवा का हाथ उसके दासों के लिये प्रगट होगा, और उसके शत्रुओं के ऊपर उसका क्रोध भड़केगा। (यूह. 16:22)

15 “क्योंकि देखो, यहोवा आग के साथ आएगा[fn] *, और उसके रथ बवण्डर के समान होंगे, जिससे वह अपने क्रोध को जलजलाहट के साथ और अपनी चितौनी को भस्म करनेवाली आग की लपट से प्रगट करे। (2 थिस्स. 1:8)

16 क्योंकि यहोवा सब प्राणियों का न्याय आग से और अपनी तलवार से करेगा; और यहोवा के मारे हुए बहुत होंगे।

17 “जो लोग अपने को इसलिए पवित्र और शुद्ध करते हैं कि बारियों में जाएँ और किसी के पीछे खड़े होकर सूअर या चूहे का माँस और अन्य घृणित वस्तुएँ खाते हैं, वे एक ही संग नाश हो जाएँगे, यहोवा की यही वाणी है।

18 “क्योंकि मैं उनके काम और उनकी कल्पनाएँ, दोनों अच्छी रीति से जानता हूँ; और वह समय आता है जब मैं सारी जातियों और भिन्न-भिन्न भाषा बोलनेवालों को इकट्ठा करूँगा; और वे आकर मेरी महिमा देखेंगे।

19 मैं उनमें एक चिन्ह प्रगट करूँगा; और उनके बचे हुओं को मैं उन जातियों के पास भेजूँगा जिन्होंने न तो मेरा समाचार सुना है और न मेरी महिमा देखी है, अर्थात् तर्शीशियों और धनुर्धारी पूलियों और लूदियों के पास, और तुबलियों और यूनानियों और दूर द्वीपवासियों के पास भी भेज दूँगा और वे जाति-जाति में मेरी महिमा का वर्णन करेंगे।

20 जैसे इस्राएली लोग अन्नबलि को शुद्ध पात्र में रखकर यहोवा के भवन में ले आते हैं, वैसे ही वे तुम्हारे सब भाइयों को भाइयों को जातियों से घोड़ों, रथों, पालकियों, खच्चरों और साँड़नियों पर चढ़ा-चढ़ाकर मेरे पवित्र पर्वत यरूशलेम पर यहोवा की भेंट के लिये ले आएँगे, यहोवा का यही वचन है।

21 और उनमें से मैं कुछ लोगों को याजक और लेवीय पद के लिये भी चुन लूँगा।

नया आकाश और नई पृथ्वी

22 “क्योंकि जिस प्रकार नया आकाश और नई पृथ्वी, जो मैं बनाने पर हूँ, मेरे सम्मुख बनी रहेगी[fn] *, उसी प्रकार तुम्हारा वंश और तुम्हारा नाम भी बना रहेगा; यहोवा की यही वाणी है। (2 पत. 3:13, प्रका. 21:1)

23 फिर ऐसा होगा कि एक नये चाँद से दूसरे नये चाँद के दिन तक और एक विश्रामदिन से दूसरे विश्रामदिन तक समस्त प्राणी मेरे सामने दण्डवत् करने को आया करेंगे; यहोवा का यही वचन है।

24 “तब वे निकलकर उन लोगों के शवों पर जिन्होंने मुझसे बलवा किया दृष्टि डालेंगे; क्योंकि उनमें पड़े हुए कीड़े कभी न मरेंगे, उनकी आग कभी न बुझेगी, और सारे मनुष्यों को उनसे अत्यन्त घृणा होगी।” (मर. 9:48)

Footnotes

1.3 बैल: इस तुलना द्वारा यहूदियों की महामूर्खता और कृतघ्नता को दर्शाया गया है।

1.18 आओ: यह इस्राएल राष्ट्र को संबोधित करता है और यही आग्रह सब पापियों के लिए है।

1.22 मैल: धातु को पिघलाने के बाद उसका मैल अलग हो जाता है। इसका महत्त्व कम वरन् नगण्य है। इस अभिव्यक्ति का अर्थ है, शाशक भ्रष्ट एवं पतित हो गए थे जैसे कि मानो शुद्ध चाँदी पूर्णतः मैल हो गई।

1.29 बांज वृक्षों: प्राचीन युग में ये मूर्तिपूजा के लिए मनभावन स्थान थे।

2.5 आ, हम यहोवा के प्रकाश में चलें: इसका अभिप्रेत अर्थ है, हम यहोवा की आज्ञाओं का पालन करें।

2.7 उनका देश चाँदी और सोने से भरपूर है: सुलैमान ने विदेशों से बहुत सोना-चाँदी आयात किया था। सोना-चाँदी एकत्र करना मूसा की व्यवस्था में वर्जित था। (व्य. 17:17)

2.22 जिसकी श्वास उसके नथनों में है: अर्थात् जो दुर्बल और लघु आयु है और जिसे अपने आप पर नियन्त्रण नहीं। उसका सामर्थ्य तब तक ही है जब तक उसकी साँस चल रही है।

3.13 उनका न्याय करने के लिये खड़ा है: परमेश्वर शान्त रहकर उनके दुष्टता के आचरण को नहीं देखता रहेगा। परन्तु वह आकर उनको उनके योग्य कठोर दण्ड देगा।

3.26 उसके फाटकों: उस युग के नगरों की शहरपनाह होती थीं और नगर में प्रवेश करने के लिए मुख्य मार्गों में द्वार खुलते थे।

4.5 प्रकाश सिरजेगा: इस पद और अगले पद का अर्थ है कि परमेश्वर अपने लोगों को पवित्र देख-रेख और सुरक्षा में रखेगा।

5.7 दाख की बारी: परमेश्वर यहूदियों के साथ ऐसा व्यवहार करता था जैसे एक किसान अपनी दाख की बारी को संभालता है। वह उसकी दाख की बारी थी, उसकी निष्ठावान एवं निरन्तर देखरेख का पात्र थी।

5.28 रथों के पहिये बवण्डर सरीखे हैं: अर्थात् उनके रथ बहुत तेज दौड़ते हैं और बवण्डर के जैसी धूल उड़ाते हैं।

6.2 दो पंखों से वे अपने मुँह को ढाँपे थे: यह दर्शाने के लिए है जो परमेश्वर की निकट उपस्थित में उत्पन्न होता है।

6.10 मन को मोटे: यहाँ मन के उपयोग का अभिप्राय उनकी सब मानसिक शक्तियों से है।

7.3 शार्याशूब: शार्यशूब का अर्थ है बचे हुए लौटेंगे।

7.13 मेरे परमेश्वर को भी थका दोगे: क्या तुम उसकी आज्ञाओं का पालन करने से इन्कार करोगे? उसके धीरज को परखोगे और उसकी सहनशीलता की सीमा पार कर जाओगे?

7.14 इम्मानुएल: इस नाम का अर्थ है कि परमेश्वर उस जाति के साथ एक रक्षक के जैसे रहेगा और इस बालक का जन्म इसका चिन्ह एवं शपथ है।

8.1 महेर्शालाल्हाशबज: इस नाम का अर्थ है शिकार या लूट पकड़ने में शीघ्रता और इसका दोहराया जाना उस पर बल बढ़ाता है तथा ध्यानाकर्षित करने के लिए उत्तेजित करता है। यहाँ विचार यह है कि अश्शूर लूट के लिए शीघ्रता करेंगे कि वह अतिशीघ्र हो।

8.14 वह शरणस्थान होगा: यहाँ शरणस्थान का मूल अर्थ है पवित्र स्थान, एक अभिषिक्त स्थान जिसका उपयोग प्रायः मिलाप वाले तम्बू के लिए किया जाता था या शरण स्थान के लिए जहाँ संकट के समय कोई भाग जाए।

8.21 अपना मुख ऊपर आकाश की ओर उठाएँगे: राहत के लिए यह उक्ति गहन निराशा की स्थिति दर्शाती है, सहायता के लिए आँखें स्वतः ही स्वर्ग की ओर उठ जाती है।

9.2 अंधियारे में चल रहे थे: गलील क्षेत्र के निवासियों को उन्हें अंधकार में दर्शाया गया है क्योंकि वे राजधानी से और मन्दिर से बहुत दूर थे।

9.6 प्रभुता उसके काँधे पर होगी: इस उक्ति का आशय है कि वह शासन करेगा या प्रभुता उसमें निहित होगी।

10.5 अश्शूर: यह अश्शूर के राजा को संदर्भित करता है।

10.5 क्रोध का लठ: या साधन जिसके प्रयोग से मैं दोषी प्रजा को दण्ड दूँगा।

10.16 आग की सी जलन: अर्थात् परमेश्वर अकस्मात ही उसके वैभव और घमण्ड को पूर्णतः नष्ट कर देगा। जैसे किसी भव्य मन्दिर के नीचे आग जला दी गई हो।

10.20 मारनेवाले: अर्थात् अश्शूर का राजा

10.26 ओरेब नामक चट्टान: इस चट्टान पर गिदोन ने दो मिद्यानियों को मार डाला था ओरेब और जीब्र।

10.32 नोब: बिन्यामीन गोत्र का एक नगर जिसमें पुरोहित थे।

11.1 यिशै: दाऊद का पिता अर्थात् जिसकी चर्चा की जा रही है वह यिशै के कुटुम्ब या दाऊद के वंश का है।

11.7 गाय और रीछनी मिलकर चरेंगी: अर्थात् एक साथ ये पशु स्वभाव से ही संगति नहीं करते हैं क्योंकि एक-दूसरे का शिकार होता है, वे एक साथ रहेंगे।

12.1 उस दिन: पिछले अध्याय में जिस दिन का संदर्भ है, मसीह के आगमन का समय जब उसके राज्य का प्रभाव हर जगह दिखाई देगा।

12.5 यहोवा .... उसने प्रतापमय काम किए हैं: महिमा की बातें, जो उत्सव के योग्य हैं, स्मरण योग्य रही हैं, जो बातें गौरव की, महान और अद्भुत हैं।

13.13 पृथ्वी अपने स्थान से टल जाएगी: यह परमेश्वर के प्रकोप का महान प्रभाव दर्शाता है, जैसे कि उसकी उपस्थिति से पृथ्वी को भी डरना और कांपना और उसके क्रोध के भय से दूर भागना आवश्यक है।

14.5 शासन करनेवालों के लठ को: अर्थात् बाबेल के राजा का राजदण्ड। इसका अर्थ है कि यहोवा ने बाबेल से अधिकार छीन लिया और उसकी प्रभुता नष्ट कर दी।

14.13 मैं स्वर्ग पर चढूँगा: अर्थात् उसने अपने को सर्वोच्च स्थान पर लाने की इच्छा की, उसकी मनोकामना थी कि सब उसे सम्मान दें। वह परमेश्वर के अधिकार को स्वीकार करना नहीं चाहता था।

14.24 शपथ खाई है: किसी बात का दृढ़ पुष्टिकरण करते समय यहोवा को शपथ खाते दिखाया जाता है जिसका अर्थ है कि वह जो कहता है वह पूर्णतः निश्चित है।

15.2 मेदबा: यह यरदन नदी के पूर्व में रूबेन को दिए गये क्षेत्र के दक्षिणी भाग में एक नगर था।

15.5 मेरा मन मोआब के लिये दुहाई देता है: यह गहन अनुकंपा को व्यक्त करता है, और प्रमाण है कि भविष्यद्वक्ता की समझ में उस पर आने वाली आपदायें विप्लवकारी होंगी।

16.3 सम्मति अर्थात् वह करो जो न्याय संगत एवं उचित हो।

16.9 रोऊँगा: उजाड़ा जाना ऐसा भयानक होगा कि मैं भविष्यद्वक्ता विलाप करूँगा, यद्यपि वह मेरा देश नहीं, दूसरा देश है।

16.14 अब यहोवा ने यह कहा है: यह यशायाह की विशेष एवं निश्चित भविष्यवाणी के संदर्भ में है कि उनका विनाश तीन वर्ष में होगा।

17.1 दमिश्क के विषय भारी भविष्यद्वाणी: अर्थात् वह निश्चय ही नष्ट होगा। भविष्यद्वक्ता ने दर्शन में देखा कि वह नष्ट हो चुका है।

17.4 उसकी मोटी देह दुबली हो जाएगी: वह दुर्बल हो जाएगा जैसे रोगग्रस्त मनुष्य हो जाता है।

17.13 वह उनको घुड़केगा: अर्थात् वह उनकी योजनाओं को निरर्थक कर देगा, उनकी सफलता को रोकेगा और उनके उद्देश्यों को परास्त कर देगा। यह परमेश्वर के महान सामर्थ्य को प्रगट करता है।

18.4 मैं शान्त होकर निहारूँगा: मैं हस्तक्षेप नहीं करूँगा। मैं शान्त रहूँगा। उनका विरोध नहीं करूँगा। ऐसा शान्त एवं निश्छल रहूँगा जैसे उनकी योजनाओं का पक्षधर हूं।

19.3 मिस्रियों की बुद्धि मारी जाएगी: वे आन्तरिक झगड़ों और विरोधों के कारण क्षीण हो जाएगे और उनके पास मुक्ति की आशा न दिखाई देगी और अव्यवस्था के अन्त होने की चिन्ता में वे अपने देवी-देवताओं की शरण लेंगे।

19.14 यहोवा ने उसमें भ्रमता उत्पन्न की है: परमेश्वर ने उनमें मतवालेपन की आत्मा डाल दी अर्थात् उसने उनमें भय और घबराहट उत्पन्न कर दी।

20.2 नंगा .... घूमता फिरता था: अर्थात् भविष्यद्वक्ता के विशेष वस्त्रों के बिना।

20.4 मिस्र लज्जित हो: परास्त होना उनके लिए लज्जा का कारण होगा और बन्दी बनाकर ले जाया जाना अपमानजनक होगा।

21.5 ढाल में तेल मलो: अर्थात् युद्ध की तैयारी करो।

21.12 भोर होती है: दिन होने के चिन्ह दिखाई दे रहे हैं। यहां भोर समृद्धि का प्रतीक है।

22.4 मेरी ओर से मुँह फेर लो: मुझ से आशा मत रखो, गहरे दु:ख का संकेत, क्योंकि दु:ख अकेलापन खोजता है, और विशाद सार्वजनिक चर्चा एवं सामने आने से बचता है।

22.20 अपने दास एलयाकीम: वह पुरुष मेरा स्वामीभक्त होगा, वह विश्वासयोग्य होगा जिनमें नगर का लाभ सुरक्षित रखा जा सकता है।

22.21 पिता ठहरेगा: एक परामर्शदाता, पथ प्रदर्शक संकट और कठिनाइयों के समय जिस पर विश्वास किया जा सके।

23.13 कसदियों के देश को देखो: यह एक अत्यधिक महत्वपूर्ण पद है क्योंकि इसमें सूर देश पर आने वाली आपदाओं के स्रोत को दर्शाया गया है।

24.19 पृथ्वी फटकर टुकड़े-टुकड़े हो जाएगी: उसका प्रभाव एक भूकंप के समान होगा जब कोलाहल एवं विनाश होता है।

24.21 पृथ्वी के राजाओं: सर्वोच्च विश्वास और सम्मान की तुलना में हीन और नीचे हैं।

25.10 यहोवा का हाथ सर्वदा बना: अर्थात् वह रक्षक होगा, उसकी सुरक्षा हटेगी नहीं, वरन् स्थाई होगी।

26.10 दुष्ट पर चाहे दया भी की जाए: दण्ड देना आवश्यक है कि दुष्ट जन धर्मनिष्ठा के मार्ग पर आ जायें।

26.18 हमने मानो वायु ही को जन्म दिया: हमारे प्रयास सब व्यर्थ रहे।

26.19 पृथ्वी मुर्दों को लौटा देगी: अर्थात् पुनरुत्थान के दिन पृथ्वी अपने मृतक खड़े कर देगी कि बाबेल में परमेश्वर के लोग पुनः जीवित हो जायें।

27.3 क्षण-क्षण उसको सींचता रहूँगा: अर्थात् लगातार, जैसा दाख की बारी का रखवाला उसकी सुधि लेता है।

27.11 तोड़ी जाएँगी: स्वयं ही गिर जायेंगी या उनके द्वारा जो जलाने के लिए लकड़ी एकत्र करते हैं।

28.6 जो न्याय करने को बैठते हैं उनके लिये न्याय करनेवाली आत्मा: इस गद्यांश का अर्थ है कि यहोवा उस देश के न्यायियों को ज्ञान प्रदान करेगा जिससे कि उनमें उचित को समझने की बुद्धि उत्पन्न हो और वे उसे करेंगी।

28.14 ठट्ठा करनेवालों: तुम जो परमेश्वर के सन्देश की अवहेलना करते हो, उससे घृणा करते हो, जो सुरक्षा के भ्रम की उत्तम कल्पना करते हो और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के दण्ड की चेतावनी का ठट्ठा करते हो।

28.22 तुम्हारे बन्धन कसे जाएँगे: अन्यथा तुम्हारा बन्दीकरण और भी अधिक कठोर एवं निर्दयी होगा। परमेश्वर उन्हें उनके पापों के अनुसार दण्ड देगा।

29.1 अरीएल: निःसंदेह यह यरूशलेम के लिए उपयोग किया गया है।

29.9 वे मतवाले तो हैं, परन्तु दाखमधु से नहीं: यरूशलेम की प्रजा। यह नैतिक एवं आत्मिक नशा है। वे अपने धर्मसिद्धान्तों एवं अभ्यासों में चूक गये हैं। वे एक मतवाले के सदृश्य कुछ भी स्पष्ट एवं उचित रूप में नहीं देख पाते हैं।

29.22 अब्राहम का छुड़ानेवाला: जो उसे मूर्तिपूजकों के देश से निकालकर लाया और मूर्तिपूजा की घृणित अवस्था से बचाया।

30.10 चिकनी-चुपड़ी बातें बोलो: ऐसी बातें जो हमारी भावनाओं, हमारे मान-सम्मान, और लालसाओं के अनुकूल हों जो हमें समृद्धि और सफलता का आश्वासन दें और हमें दण्ड की कल्पना से परेशान न करें।

30.18 क्या ही धन्य हैं वे जो उस पर आशा लगाए रहते हैं: परमेश्वर पर अपना भरोसा रखो और यह विश्वास करो कि वो प्रगट होकर अपने राज्य को ज्यों का त्यों कर देगा।

30.28 उनके जबड़ों में लगाम लगाएगा: यहां विचार यह है कि सब जातियां उसके वश में है जैसे कि घोड़ा लगाम द्वारा मनुष्य के वश में रहता है।

30.33 तोपेत: वह स्थान था जहां यरूशलेम का कचरा जलाया जाता था। यह शहर के बाहर हिनोम घाटी में स्थित था।

31.2 परन्तु वह भी बुद्धिमान है: परमेश्वर बुद्धिमान है। उसे धोखा देना व्यर्थ है, या उससे छिप कर कुछ करना व्यर्थ है।

31.4 जवान सिंह: एक शक्तिशाली भयानक शेर यह दो शेरों का उपयोग तुलना की प्रबलता एवं बल के लिए है।

31.6 फिरो: मन फिराओ। मनुष्यों के लिए यह हर समय परमेश्वर की पुकार है।

31.7 तुम बनाकर पापी हो गए: कहने का अर्थ है कि मूर्तियां बनाना पाप है वरन् मूर्तियां पाप हैं। मूर्तियों को महिमा देने पाप है, जिसका दोष उन पर है।

32.6 मूर्ख तो मूर्खता ही की बातें बोलता: अर्थात् वह तो अपने स्वभाव के अनुसार ही बातें करेगा। उसका स्वभाव ही मूढ़ता की बातें करना है, अतः वह मूढ़ता ही उगलेगा।

33.13 हे दूर-दूर के लोगों: यह यहोवा की वाणी है कि अश्शूरों की सेना का विनाश ऐसा संकेत है जो दूर-दूर के देशों तक पहुंचता है और यह उनके लिए एक चेतावनी है।

33.23 मस्तूल की जड़ को दृढ़ न रख सकीं: वे उसे दृढ़ता से बांध न सकीं। यह तो स्पष्ट ही है कि यदि मस्तूल दृढ़ न हो तो जहाज को चलाना असंभव है।

34.2 उनकी सारी सेना पर उसकी जलजलाहट भड़की हुई है: यहोवा अपनी प्रजा के सब विरोधी देशों पर अपना क्रोध प्रगट करेगा।

34.6 यहोवा की तलवार लहू से भर गई है: यहां संकेत पापबलियों का है जिनमें लहू और चर्बी परमेश्वर को चढ़ाई जाती थी।

35.2 उसकी शोभा लबानोन की सी होगी: लबानोन की शोभा या सजावट उसके देवदार वृक्ष थे।

35.8 कोई अशुद्ध जन उस पर से न चलने पाएगा: वहां एक भी मूर्तिपूजक नहीं होंगे, जो यहोवा का भक्त नहीं उसे वहां आने न दिया जाएगा।

36.6 कुचले हुए नरकट: यहां अभिप्रेत का अर्थ है कि जब कोई किसी सरकण्डे का सहारा लेता है तो वह टूटकर उसके हाथों में चुभ जाता है। इसी प्रकार मिस्र और मिस्र का सहारा लेना उन्हें ही हानि पहुंचायेगा।

36.14 हिजकिय्याह तुम को धोखा न दे: यहोवा में या उसमें भरोसा रखो या मुक्ति की प्रतिज्ञाओं में विश्वास करो।

36.21 परन्तु वे चुप रहे: हिजकिय्याह की आज्ञा थी कि वे प्रतिक्रिया न दिखायें। उन्हें केवल रबशाके की बातें सुननी थीं और उसे समाचार देना था कि वह आगे की कार्यवाही सोचे।

37.4 जीविते परमेश्वर की निन्दा करने को भेजा: जीवित परमेश्वर मूर्तियों से तुलना करने से घृणा करता है। मूर्तियां तो मात्र लकड़ी या पत्थर के टुकड़े होती थीं।

37.26 मैंने यह पूरा भी किया है: तुम गर्व से कहते हो कि यह सब तुम्हारी सम्मति एवं सामर्थ्य से है। परन्तु मैंने यह किया है अर्थात् मैंने बहुत पहले से ही इसका विचार किया, इसकी योजना बनाई और इसका प्रबंध किया था।

37.35 इस नगर की रक्षा करके उसे बचाऊँगा: हिजकिय्याह ने उस नगर की सुरक्षा के लिए जो कुछ भी किया था उसके उपरान्त भी यहोवा ही है जो उसको सुरक्षित रख सकता है।

38.2 हिजकिय्याह ने दीवार की ओर मुँह फेरकर: उसने दीवार की ओर मुंह शायद इसलिए फेरा कि उसकी भावानायें और उसके आँसू पास खड़े लोगों से छिपे रहें या कि वह अधिक भक्ति की मुद्रा में हो।

38.13 वह सिंह के समान मेरी सब हड्डियों को तोड़ता है: जैसे शेर अपने शिकार की हड्डियां तोड़ता है जिससे घोर पीड़ा एवं तात्कालिक मृत्यु हो जाये उसी प्रकार यहोवा भी घोर पीड़ा एवं तात्कालिक मृत्यु देगा।

39.4 तेरे भवन में उन्होंने क्या-क्या देखा: यह अति संभव है कि हिजकिय्याह ने उन्हें अपने राज्य का खजाना दिखाया था यरूशलेम में सर्वविदित था। ऐसा तथ्य सार्वजनिक ध्यानाकर्षक का कारण हो सकता है और मनुष्यों द्वारा कारण की खोज उत्पन्न कर सकता है।

40.8 हमारे परमेश्वर का वचन सदैव अटल रहेगा: परमेश्वर का वचन का संदर्भ या तो दासत्व से उसकी प्रजा की रक्षा एवं मोक्ष की प्रतिज्ञा से है या सामान्य अर्थ हो सकता है कि उसकी प्रतिज्ञायें दृढ़ एवं अपरिवर्तनीय हैं।

40.13 सलाहकार होकर उसको ज्ञान सिखाया: वह परामर्श के लिए न तो मनुष्यों पर न ही स्वर्गदूतों पर निर्भर करता है। वह सर्वोच्च है, आत्मनिर्भर है और अनन्त है। उसे परामर्श देने योग्य कोई नहीं है।

41.3 उन्हें खदेड़ता: जब वे भाग रहे थे तब उसने उनका पीछा और उन्हें घबराहट एवं विनाश के अधीन कर दिया।

41.15 तू पहाड़ों को दाँव-दाँवकर: और पहाड़ियों से अभिप्राय है यहूदियों के विरुद्ध बड़े और छोटे सब देश उनके अधीन हो जाएगे।

41.24 तुम कुछ नहीं हो: यह मूर्तियों के लिए कहा गया है और कहने का अर्थ है कि वे व्यर्थ और शक्तिहीन है। वे अपने उपासकों की सहायता करने में समर्थ नहीं है।

42.3 कुचले हुए नरकट: नरकट दलदल में उगने वाली लम्बी घास है।

42.8 जो स्तुति मेरे योग्य है वह खुदी हुई मूरतों को न दूँगा: परमेश्वर ने जो कुछ किया है उसका श्रेय एवं गुणगान वह मूर्तियों को नहीं देगा।

42.20 कान तो खुले हैं परन्तु सुनता नहीं है: उन्होंने मूसा द्वारा दिये गये विधान के नियमों को सुना और पितरों के निर्देशनों को परम्परा में ग्रहण किया परन्तु उन्हें मन में नहीं बसाया या उन पर ध्यान नहीं दिया।

43.9 कौन यह बात बता सकता: उनमें से कौन है जो इस अवस्था का पूर्वानुमान लगा सकता है? कौन है जो आगामी घटनाओं को बता सकता है। यहां अभिप्रेत अर्थ है कि यहोवा ने ऐसा किया है जो अन्यजाति देवी-देवता कभी नहीं कर सकते।

44.15 वह मनुष्य के ईंधन के काम में आता है: यह पद और अगला पद उपहासगर्भित है कि जिस लकड़ी से मूर्तियां बनाई जाती हैं उसी लकड़ी को तापने के लिए और खाना पकाने के लिए काम में लेते हैं।

44.20 वह राख खाता है: इसका अर्थ है कि मूर्ति पूजा करके उनकी मनोकामना पूरी नहीं होगी। यह ऐसा है जैसे मनुष्य भोजन की खोज करे और अन्ततः वह भोजन राख निगले।

45.2 मैं तेरे आगे-आगे चलूँगा: विजय का मार्ग तैयार करने के लिए, यह सिद्ध करने हेतु कि पृथ्वी के घमण्डी विजेताओं की विजय परमेश्वर के प्रावधान ही है। यहां निहित विचार है, तुम्हारी विजय यात्रा को घटाने या उसका विरोध करने वाली हर एक बाधा को मैं दूर कर दूँगा।

45.19 मुझे व्यर्थ में ढूँढ़ो: कहने का अर्थ है कि परमेश्वर की सेवा करना व्यर्थ और निरर्थक नहीं रहा है क्योंकि वह उनका रक्षक एवं मित्र रहा है और उनका उसके निकट जाकर अपनी आवश्यकतायें प्रस्तुत करना व्यर्थ नहीं था।

46.1 बेल देवता झुक गया: बाबेल का प्रमुख गृह देवता।

46.10 मेरी युक्ति स्थिर रहेगी: मेरा उद्देश्य, मेरी योजना, मेरी मर्जी स्थिर रहेगी का अर्थ है, अचल, बस जाना, निश्चित होना, स्थापित होना

47.3 तेरी नग्नता उघाड़ी जाएगी: यह नगर के सर्वनाश की दयनीय दशा को दर्शाता है। उसका घमण्ड समाप्त हो जाएगा और उसकी स्थिति ऐसी होगी कि उसके निवासी अपमान एवं लज्जा से भर जाएगे।

47.10 तूने अपनी दुष्टता पर भरोसा रखा: यहां निसंदेह, दुष्टता का अर्थ घमण्ड है अर्थात् उसने यह सोचा था कि वह इनके द्वारा अन्य देशों पर अपनी श्रेष्ठता एवं प्रभुता बनाये रखेगा।

48.13 जब मैं उनको बुलाता हूँ: यहां निहितार्थ है कि जिसके पास स्वर्ग की सेना को आज्ञा देने और उसके वचन के द्वारा सिद्ध आज्ञाकारिता का अधिकार है, उसमें अपनी प्रजा की रक्षा करने का सामर्थ्य भी है।

48.18 तूने मेरी आज्ञाओं को ध्यान से सुना होता: यहां जो शिक्षा है वह यह है कि परमेश्वर चाहता है कि मनुष्य उसके नियमों का पालन करे। उसकी इच्छा में उनके द्वारा पाप करना या परमेश्वर से दण्ड पाना नहीं था।

49.2 उसने मेरे मुँह को चोखी तलवार के समान बनाया: यहां अन्तर्निहित अर्थ है उसने स्वयं को विश्वास जनक एवं प्रभावी भाषण के योग्य बना लिया है कि उसके शब्द श्रोताओं के मन को तलवार के जैसे भेद दें।

49.8 अपनी प्रसन्नता के समय: यहां मुख्य विचार स्पष्ट है कि यहोवा उसकी पुकार को सुनकर अति प्रसन्न होता है और उसकी प्रार्थनाओं का उत्तर देगा। उद्धार का समय अर्थात् उद्धार के उद्देश्यों के लिए उपयुक्त समय।

49.22 मैं अपना हाथ जाति-जाति के लोगों की ओर उठाऊँगा: हाथ उठाने का अर्थ है संकेत करना या किसी को बुलाना। यहां विचार यह है कि परमेश्वर अन्य जातियों को बुलायेगा कि वे आशिषों में सहभागी हों और मसीह को गले लगायें।

50.4 मेरा कान खोलता है: कान खोलने का अर्थ है कि निर्देशनों को ग्रहण करने के लिए किसी को तैयार करना।

50.11 तुम सब जो आग जलाते: यह पद दुष्टों के संदर्भ में है। पिछले पद में मसीह भक्तों को परमेश्वर में भरोसा रखने का आव्हान करता है और अर्थ निहित है कि वे ऐसा करते है। परन्तु दुष्ट ऐसा नहीं करते हैं।

51.9 रहब को टुकड़े-टुकड़े किया: अर्थात् उसे नष्ट कर दिया था। उसी भुजा ने न्याय की ओर प्रतिशोध की तलवार चलाई थी जिससे रहब मारा गया था। यहां रहब: का अर्थ है मिस्र।

51.17 तूने यहोवा के हाथ से उसकी जलजलाहट के कटोरे में से पिया है: यहोवा के क्रोध की तुलना नशा उत्पन्न करने वाले कटोरे से बार-बार की गई है। कारण है कि उसका प्रभाव वैसा ही है। वह अशक्त बनाता है और उसके पात्र को लड़खड़ाता और चकराकर गिरा देता है।

52.1 अपना बल धारण कर: बल काम में ले, शक्तिशाली हो, निर्भीक हो, आत्माविश्वास रख, निराशा से उभर आ और ऐसा उत्साह रख जैसे कि सफलता का काम करने जा रहा है।

52.10 यहोवा ने ....अपनी पवित्र भुजा प्रगट की है: अर्थात् अपनी प्रजा को दासत्व से छुड़ाने के लिए। यह उपमा योद्धाओं से ली गई है जो युद्ध के लिए अपनी भुजा को प्रगट करते हैं। इसका अभिप्राय है कि परमेश्वर अपने लोगों को बचाने के लिए एक योद्धा के रूप में आता है।

53.2 निर्जल भूमि: ऐसी ऊसर भूमि जहां नमी नहीं वहां, जो कुछ उगता है वह छोटी और मुरझाई हुई होती है।

54.4 तू अपनी जवानी की लज्जा भूल जाएगी: भविष्य की विपुल बहुतायत और वैभव में उनकी पूर्वकालिक इतिहास की लज्जा की परिस्थितियां सब भूलाई जायेंगी।

54.7 क्षण भर ही के लिये: यहां संभवत बाबेल की बन्धुआई की प्रजा के संदर्भ में है, जो प्रत्यक्ष रूप से परमेश्वर द्वारा भूलाए हुए प्रतीत होते थे।

55.1 बिन रुपये और बिना दाम: ऐसा कोई भी गरीब नहीं होगा कि खरीद न सके, और कोई ऐसा धनवान भी नहीं होगा कि सोने से खरीदे। अगर गरीब या उसे धनवान प्राप्त करे तो वह बिना पैसे या मोल लिए होगा।

55.6 जब तक वह निकट है: इसका महत्वपूर्ण अर्थ है कि परमेश्वर हर समय हमारे निकट ही रहता है और दर्शाता है कि कुछ समय अन्य समय की तुलना में ऐसे होते हैं जब उसको खोजना अधिक अनुकूल परिस्थिति में हो जाता है।

55.11 जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा: मेरी इच्छा पूरी किये बिना वह लौटेगा नहीं।

56.3 हम तो सूखे वृक्ष हैं: सूखा वृक्ष ऊसर, अनुपयोगी और फलहीन दशा दर्शाता है। यहां कहने का अर्थ है कि अब से आगे वे धार्मिक एवं नागरिक अयोग्यताओं के अधीन नहीं होंगे जिसके अधीन वे अब तक रहे।

56.11 वे चरवाहे हैं जिनमें समझ ही नहीं: जो मनुष्यों की आवश्यकताओं के प्रति उदासीन हैं और जो समझ नहीं पाते कि उनसे क्या अपेक्षा की गई है।

57.9 राजा: अर्थात् मोलेक देवता।

57.12 मैं आप तेरी धार्मिकता और कर्मों का वर्णन करूँगा: यह स्पष्टतः उपहास में कहा गया है। इसका अर्थ है, तुमने मूर्तियों की पूजा की और परदेशियों की सहायता खोजी।

57.20 लहराते हुए समुद्र: विचलित, सदा चलायमान, अशान्त समुद्र कभी भी शान्त नहीं रहता है, उसमें लहरें उठती रहती हैं। वह प्राय झाग उगलता है और उथल-पुथल में रहता है।

58.11 अकाल के समय तुझे तृप्त .... करेगा: कहने का अर्थ है कि परमेश्वर उनके लिए ऐसा प्रावधान करेगा जैसे विपुल वर्षा और सुखदाई जल के झरने फूट निकले हैं।

58.13 यदि तू विश्रामदिन को अशुद्ध न करे: स्पष्ट अर्थ यह है कि उन्हें विश्राम दिवस का गंभीरता से पालन करना था। उसका उल्लंघन नहीं करना था और न ही उसे अशुद्ध करना था।

59.7 उनकी युक्तियाँ: अर्थात् उनकी योजनायें एवं उद्देश्य बुरे हैं। महज यह नहीं की बुराई किया गया था, परन्तु यह की उन्होंने बुराई करने का इरादा बनाया था।

59.12 हमारे विरुद्ध साक्षी दे रहे हैं: अर्थात् उनका पूर्वकालिक जीवन ऐसा पतित था कि वह उनके विरुद्ध गवाही देता था।

60.10 परदेशी लोग तेरी शहरपनाह को उठाएँगे: जो लोग विदेशी, झूठे धर्म के हैं, वे सच्चे धर्म के भक्त होकर सच्चे परमेश्वर की सेवा करेंगे।

60.18 तेरे देश में फिर कभी उपद्रव .... की चर्चा न सुनाई पड़ेगी: यह मसीह के युग में शान्ति और समृद्धि का अति सुन्दर वर्णन है।

60.22 छोटे से छोटा एक हजार हो जाएगा: उस समय महान विकास होगा जैसे कि एक छोटे से छोटा है बढ़कर एक हज़ार हो जाएगा। कहने का अर्थ है कि थोड़े से लोग बहुत अधिक हो जाएगे।

61.6 तुम यहोवा के याजक कहलाओगे: संसार तुम्हें श्रद्धा अर्पित करेगा और तुम सब देशों की उपज का आनन्द लोगे और इस कारण तुम केवल यहोवा की सेवा में समर्पित रहोगे।

61.10 मैं यहोवा के कारण अति आनन्दित होऊँगा: इसका अर्थ है कि यहोवा की विश्वासयोग्यता और सिद्धता के कारण आनंद बड़ेगा, जो उनके लोगों के छुटकारे के द्वारा प्रगट होगा।

62.2 तेरा एक नया नाम रखा जाएगा: अर्थात् उनकी दशा ऐसी नहीं होगी जिसमें उनका नाम अपमान, गरीबी और अत्याचार का द्योतक हो।

62.4 तेरी भूमि ब्यूला: यह उपमा एक स्त्री की है जो तलाकशुदा है और उसका उचित नाम परित्यक्त है। परमेश्वर कहता है कि उसका नाम अब परित्यक्त स्त्री नहीं होगा, विवाहित होगा।

62.10 प्रजा के लिये मार्ग सुधारो; राजमार्ग सुधारकर ऊँचा करो: अर्थात् उनके शहर द्वार निर्वासितों के लौट आने के लिए खुले रखे जायें और मार्ग की सब बाधायें दूर की जायें।

63.3 मैंने तो अकेले ही हौद में दाखें रौंदी हैं: मैं, यहोवा निश्चय ही अपने क्रोध के दाख रौंदता हूं और मैं अकेला ही ऐसा करता हूं। यहां निहितार्थ है कि उसने बैरियों को पूर्णतः नष्ट कर दिया है।

63.15 स्वर्ग से, .... दृष्टि कर: यह एक हार्दिक विनती का आरम्भ है कि परमेश्वर उनकी वर्तमान आपदाओं और उनके कष्टों में उन पर दया करे। वे उससे निवेदन करते हैं, कि वह अपनी पूर्वकालिक दया को स्मरण करके लौट आए और उन्हें आशिषित करे।

64.6 हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं: यहां भावार्थ है कि जैसा लैव्यव्यवस्था में अशुद्ध होना कहा गया है वैसे अशुद्ध एवं दूषित। कहने का अर्थ है कि वे स्वयं को पूर्णत अशुद्ध एवं पतित मानते हैं।

64.8 हम सब के सब तेरे हाथ के काम हैं: जैसे मिट्टी का पात्र कुम्हार के हाथ का काम होता है। हम तेरे द्वारा बनाये गये हैं और तुम ही पर निर्भर हैं कि तू हमें जैसा चाहे वैसा बनाये।

65.4 सूअर का माँस खाते: यहूदियों के लिए अशुद्ध भोजन।

65.6 मैं चुप न रहूँगा: न्यायोचित्त एवं उचित बात कहने से मुझे कोई नहीं दूर रख सकता है।

65.14 खेद के मारे: अर्थात् आपदाओं से दबकर तुम टूट जाओगे और हताश हो जाओगे।

65.20 बूढ़ा जाता रहेगा जिसने अपनी आयु पूरी न की हो: वे दीर्घायु की आशिषों का आनन्द लेंगे और ऐसी दीर्घायु नहीं जो दुर्बल एवं हताशा से भरी हो वरन् शक्ति एवं आनन्द से भरपूर।

66.2 दीन और खेदित मन: ऐसा मन जो टूटा हुआ हो, कुचला हुआ हो या पाप से अत्यधिक प्रभावित रहा हो।

66.15 यहोवा आग के साथ आएगा: आग परमेश्वर द्वारा न्याय करने और दण्ड देने आने का प्रतीक है।

66.22 मेरे सम्मुख बनी रहेगी: वे समाप्त न होंगे, न ही उनके स्थान पर नया आकाश और नयी पृथ्वी आएगे। अर्थात् जिन बातों की चर्चा की गई है, वे स्थाई एवं सदाकालीन होंगी।