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गिनती

लेखक

यहूदी और मसीही परम्परायें वैश्विक रूप से मूसा को गिनती की पुस्तक का लेखक मानती हैं। इस पुस्तक में अनेक आंकड़ें, जनगणना, गोत्रों और पुरोहितों से उठे नायक तथा अन्य संख्यात्मक आंकड़े हैं। इस पुस्तक में 38 वर्षों का वृतान्त है, अर्थात् निर्गमन के बाद दूसरे वर्ष से (जब इस्राएल सीनै पर्वत के निकट छावनी डाले हुए था) 40 वर्ष बाद, जब नई पीढ़ी प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश करने पर थी। इसके अतिरिक्त, इस पुस्तक में निर्गमन के बाद दूसरे वर्ष और 40वें वर्ष की घटनाओं का मुख्य विवरण है, बीच के 38 वर्षों के बारे में वह मौन है, जब इस्राएल जंगल में भटक रहा था।

लेखन तिथि एवं स्थान

लगभग 1446-1405 ई.पू.

इस पुस्तक का वृत्तान्त उन घटनाओं से आरंभ होता है जो इस्राएल द्वारा मिस्र से कूच करने के दूसरे वर्ष में घटी थी, जब वे सीनै पर्वत के निकट छावनी डाले हुए थे (1:1)।

प्रापक

गिनती की पुस्तक इस्राएल के लिए लिखी गई थी कि प्रतिज्ञा के देश की ओर उनकी यात्रा का लेखा प्रस्तुत करे परन्तु यह पुस्तक बाइबल के भावी लेखकों के लिए भी है कि हमारी स्वर्ग की ओर यात्रा में परमेश्वर हमारे साथ है।

उद्देश्य

जब दूसरी पीढ़ी प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश करने पर थी तब मूसा ने यह पुस्तक लिखी थी (गिन. 33:2)। कि परमेश्वर की प्रतिज्ञा के देश को अपनाने के लिए उस पीढ़ी को प्रोत्साहित करे। गिनती की पुस्तक में इस्राएल के प्रति परमेश्वर की शर्तरहित विश्वास- योग्यता दर्शाई गई है। पहली पीढ़ी ने तो वाचा की आशिषों को ठुकरा दिया था परन्तु परमेश्वर अपनी वाचा के निमित्त निष्ठावान था। इस्राएल के कुड़कुड़ाने तथा विद्रोह के उपरान्त भी परमेश्वर उन्हें आशिष देता है और दूसरी पीढ़ी के लिए प्रतिज्ञा के देश की अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करता है।

रूपरेखा

1. प्रतिज्ञा के देश के लिए कूच करने की तैयारी (1:1-10:10)

2. सीनै से कादेश की यात्रा (10:11-12:16)

3. विद्रोह के कारण विलम्ब (13:1-20:13)

4. कादेश से मोआब के मैदानों तक यात्रा (20:14-22:1)

5. मोआब में इस्राएल, प्रतिज्ञा के देश पर अधिकार की आशा के साथ (22:2-32:42)

6. विभिन्न विषयों से संबंधित परिशिष्ट (33:1-36:13)

इस्राएलियों की गिनती

1  1 इस्राएलियों के मिस्र देश से निकल जाने के दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के पहले दिन को, यहोवा ने सीनै के जंगल में मिलापवाले तम्बू में, मूसा से कहा,

2 “इस्राएलियों की सारी मण्डली के कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार, एक-एक पुरुष की गिनती नाम ले लेकर करना।

3 जितने इस्राएली बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के हों, और जो युद्ध करने के योग्य हों, उन सभी को उनके दलों के अनुसार तू और हारून गिन ले।

4 और तुम्हारे साथ प्रत्येक गोत्र का एक पुरुष भी हो जो अपने पितरों के घराने का मुख्य पुरुष हो।

5 तुम्हारे उन साथियों के नाम ये हैं: रूबेन के गोत्र में से शदेऊर का पुत्र एलीसूर;

6 शिमोन के गोत्र में से सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल;

7 यहूदा के गोत्र में से अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन;

8 इस्साकार के गोत्र में से सूआर का पुत्र नतनेल;

9 जबूलून के गोत्र में से हेलोन का पुत्र एलीआब;

10 यूसुफ वंशियों में से ये हैं, अर्थात् एप्रैम के गोत्र में से अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा, और मनश्शे के गोत्र में से पदासूर का पुत्र गम्लीएल;

11 बिन्यामीन के गोत्र में से गिदोनी का पुत्र अबीदान;

12 दान के गोत्र में से अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर;

13 आशेर के गोत्र में से ओक्रान का पुत्र पगीएल;

14 गाद के गोत्र में से दूएल का पुत्र एल्यासाप;

15 नप्ताली के गोत्र में से एनान का पुत्र अहीरा।”

16 मण्डली में से जो पुरुष अपने-अपने पितरों के गोत्रों के प्रधान होकर बुलाए गए, वे ये ही हैं, और ये इस्राएलियों के हज़ारों में मुख्य पुरुष थे।

17 जिन पुरुषों के नाम ऊपर लिखे हैं उनको साथ लेकर मूसा और हारून ने,

18 दूसरे महीने के पहले दिन सारी मण्डली इकट्ठी की, तब इस्राएलियों ने अपने-अपने कुल और अपने-अपने पितरों के घराने के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु वालों के नामों की गिनती करवा के अपनी-अपनी वंशावली लिखवाई;

19 जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी उसी के अनुसार उसने सीनै के जंगल में उनकी गणना की।

20 और इस्राएल के पहलौठे रूबेन के वंश[fn] * के जितने पुरुष अपने कुल और अपने पितरों के घराने के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे और युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने-अपने नाम से गिने गए:

21 और रूबेन के गोत्र के गिने हुए पुरुष साढ़े छियालीस हजार थे।

22 शिमोन के वंश के लोग जितने पुरुष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे, और जो युद्ध करने के योग्य थे वे सब अपने-अपने नाम से गिने गए:

23 और शिमोन के गोत्र के गिने हुए पुरुष उनसठ हजार तीन सौ थे।

24 गाद के वंश के जितने पुरुष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने-अपने नाम से गिने गए:

25 और गाद के गोत्र के गिने हुए पुरुष पैंतालीस हजार साढ़े छः सौ थे।

26 यहूदा के वंश के जितने पुरुष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने-अपने नाम से गिने गए:

27 और यहूदा के गोत्र के गिने हुए पुरुष चौहत्तर हजार छः सौ थे।

28 इस्साकार के वंश के जितने पुरुष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने-अपने नाम से गिने गए:

29 और इस्साकार के गोत्र के गिने हुए पुरुष चौवन हजार चार सौ थे।

30 जबूलून के वंश के जितने पुरुष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने-अपने नाम से गिने गए:

31 और जबूलून के गोत्र के गिने हुए पुरुष सत्तावन हजार चार सौ थे।

32 यूसुफ के वंश में से एप्रैम के वंश के जितने पुरुष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने-अपने नाम से गिने गए:

33 और एप्रैम गोत्र के गिने हुए पुरुष साढ़े चालीस हजार थे।

34 मनश्शे के वंश के जितने पुरुष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने-अपने नाम से गिने गए:

35 और मनश्शे के गोत्र के गिने हुए पुरुष बत्तीस हजार दो सौ थे।

36 बिन्यामीन के वंश के जितने पुरुष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने-अपने नाम से गिने गए:

37 और बिन्यामीन के गोत्र के गिने हुए पुरुष पैंतीस हजार चार सौ थे।

38 दान के वंश के जितने पुरुष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे अपने-अपने नाम से गिने गए:

39 और दान के गोत्र के गिने हुए पुरुष बासठ हजार सात सौ थे।

40 आशेर के वंश के जितने पुरुष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने-अपने नाम से गिने गए:

41 और आशेर के गोत्र के गिने हुए पुरुष साढ़े इकतालीस हजार थे।

42 नप्ताली के वंश के जितने पुरुष अपने कुलों और अपने पितरों के घरानों के अनुसार बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के थे और जो युद्ध करने के योग्य थे, वे सब अपने-अपने नाम से गिने गए:

43 और नप्ताली के गोत्र के गिने हुए पुरुष तिरपन हजार चार सौ थे।

44 इस प्रकार मूसा और हारून और इस्राएल के बारह प्रधानों ने, जो अपने-अपने पितरों के घराने के प्रधान थे, उन सभी को गिन लिया और उनकी गिनती यही थी।

45 अतः जितने इस्राएली बीस वर्ष या उससे अधिक आयु के होने के कारण युद्ध करने के योग्य थे वे अपने पितरों के घरानों के अनुसार गिने गए,

46 और वे सब गिने हुए पुरुष मिलाकर छः लाख तीन हजार साढ़े पाँच सौ थे।

लेवीय गोत्रों का अलग किया जाना

47 इनमें लेवीय[fn] * अपने पितरों के गोत्र के अनुसार नहीं गिने गए।

48 क्योंकि यहोवा ने मूसा से कहा था,

49 “लेवीय गोत्र की गिनती इस्राएलियों के संग न करना;

50 परन्तु तू लेवियों को साक्षी के तम्बू पर, और उसके सम्पूर्ण सामान पर, अर्थात् जो कुछ उससे सम्बन्ध रखता है उस पर अधिकारी नियुक्त करना; और सम्पूर्ण सामान सहित निवास को वे ही उठाया करें, और वे ही उसमें सेवा टहल भी किया करें, और तम्बू के आस-पास वे ही अपने डेरे डाला करें। (प्रेरि. 7:44)

51 और जब-जब निवास को आगे ले जाना हो तब-तब लेवीय उसको गिरा दें, और जब-जब निवास को खड़ा करना हो तब-तब लेवीय उसको खड़ा किया करें; और यदि कोई दूसरा समीप आए तो वह मार डाला जाए।

52 और इस्राएली अपना-अपना डेरा अपनी-अपनी छावनी में और अपने-अपने झण्डे के पास खड़ा किया करें;

53 पर लेवीय अपने डेरे साक्षी के तम्बू ही के चारों ओर खड़े किया करें, कहीं ऐसा न हो कि इस्राएलियों की मण्डली पर मेरा कोप भड़के; और लेवीय साक्षी के तम्बू की रक्षा किया करें।”

54 जो आज्ञाएँ यहोवा ने मूसा को दी थीं, इस्राएलियों ने उन्हीं के अनुसार किया।

इस्राएलियों की छावनी का क्रम

2  1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,

2 “इस्राएली मिलापवाले तम्बू के चारों ओर और उसके सामने अपने-अपने झण्डे और अपने-अपने पितरों के घराने के निशान के समीप अपने डेरे खड़े करें।

3 और जो पूर्व दिशा की ओर जहाँ सूर्योदय होता है, अपने-अपने दलों के अनुसार डेरे खड़े किया करें, वे ही यहूदा की छावनीवाले झण्डे के लोग होंगे, और उनका प्रधान अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन होगा,

4 और उनके दल के गिने हुए पुरुष चौहत्तर हजार छः सौ हैं।

5 उनके समीप जो डेरे खड़े किया करें वे इस्साकार के गोत्र के हों, और उनका प्रधान सूआर का पुत्र नतनेल होगा,

6 और उनके दल के गिने हुए पुरुष चौवन हजार चार सौ हैं।

7 इनके पास जबूलून के गोत्रवाले रहेंगे, और उनका प्रधान हेलोन का पुत्र एलीआब होगा,

8 और उनके दल के गिने हुए पुरुष सत्तावन हजार चार सौ हैं।

9 इस रीति से यहूदा की छावनी में जितने अपने-अपने दलों के अनुसार गिने गए वे सब मिलकर एक लाख छियासी हजार चार सौ हैं। पहले ये ही कूच किया करें।

10 “दक्षिण की ओर रूबेन की छावनी के झण्डे के लोग अपने-अपने दलों के अनुसार रहें, और उनका प्रधान शदेऊर का पुत्र एलीसूर होगा,

11 और उनके दल के गिने हुए पुरुष साढ़े छियालीस हजार हैं।

12 उनके पास जो डेरे खड़े किया करें वे शिमोन के गोत्र के होंगे, और उनका प्रधान सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल होगा,

13 और उनके दल के गिने हुए पुरुष उनसठ हजार तीन सौ हैं।

14 फिर गाद के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान रूएल का पुत्र एल्यासाप होगा,

15 और उनके दल के गिने हुए पुरुष पैंतालीस हजार साढ़े छः सौ हैं।

16 रूबेन की छावनी में जितने अपने-अपने दलों के अनुसार गिने गए वे सब मिलकर एक लाख इक्यावन हजार साढ़े चार सौ हैं। दूसरा कूच इनका हो।

17 “उनके पीछे और सब छावनियों के बीचोंबीच लेवियों की छावनी समेत मिलापवाले तम्बू का कूच हुआ करे; जिस क्रम से वे डेरे खड़े करें उसी क्रम से वे अपने-अपने स्थान पर अपने-अपने झण्डे के पास-पास चलें।

18 “पश्चिम की ओर एप्रैम की छावनी के झण्डे के लोग अपने-अपने दलों के अनुसार रहें, और उनका प्रधान अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा होगा,

19 और उनके दल के गिने हुए पुरुष साढ़े चालीस हजार हैं।

20 उनके समीप मनश्शे के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान पदासूर का पुत्र गम्लीएल होगा,

21 और उनके दल के गिने हुए पुरुष बत्तीस हजार दो सौ हैं।

22 फिर बिन्यामीन के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान गिदोनी का पुत्र अबीदान होगा,

23 और उनके दल के गिने हुए पुरुष पैंतीस हजार चार सौ हैं।

24 एप्रैम की छावनी में जितने अपने-अपने दलों के अनुसार गिने गए वे सब मिलकर एक लाख आठ हजार एक सौ पुरुष हैं। तीसरा कूच इनका हो।

25 “उत्तर की ओर दान की छावनी के झण्डे के लोग अपने-अपने दलों के अनुसार रहें, और उनका प्रधान अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर होगा,

26 और उनके दल के गिने हुए पुरुष बासठ हजार सात सौ हैं।

27 और उनके पास जो डेरे खड़े करें वे आशेर के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान ओक्रान का पुत्र पगीएल होगा,

28 और उनके दल के गिने हुए पुरुष साढ़े इकतालीस हजार हैं।

29 फिर नप्ताली के गोत्र के रहें, और उनका प्रधान एनान का पुत्र अहीरा होगा,

30 और उनके दल के गिने हुए पुरुष तिरपन हजार चार सौ हैं।

31 और दान की छावनी में जितने गिने गए वे सब मिलकर एक लाख सत्तावन हजार छः सौ हैं। ये अपने-अपने झण्डे के पास-पास होकर सबसे पीछे कूच करें।”

32 इस्राएलियों में से जो अपने-अपने पितरों के घराने के अनुसार गिने गए वे ये ही हैं; और सब छावनियों के जितने पुरुष अपने-अपने दलों के अनुसार गिने गए वे सब मिलकर छः लाख तीन हजार साढ़े पाँच सौ थे।

33 परन्तु यहोवा ने मूसा को जो आज्ञा दी थी उसके अनुसार लेवीय तो इस्राएलियों में गिने नहीं गए।

34 इस प्रकार जो-जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, इस्राएली उन आज्ञाओं के अनुसार[fn] * अपने-अपने कुल और अपने-अपने पितरों के घरानों के अनुसार, अपने-अपने झण्डे के पास डेरे खड़े करते और कूच भी करते थे।

हारून के पुत्र

3  1 जिस समय यहोवा ने सीनै पर्वत के पास मूसा से बातें की उस समय हारून और मूसा की यह वंशावली थी।

2 हारून के पुत्रों के नाम ये हैं नादाब जो उसका जेठा था, और अबीहू, एलीआजर और ईतामार;

3 हारून के पुत्र, जो अभिषिक्त याजक थे, और उनका संस्कार याजक का काम करने के लिये हुआ था, उनके नाम ये हैं।

4 नादाब और अबीहू जिस समय सीनै के जंगल में यहोवा के सम्मुख अनुचित आग ले गए उसी समय यहोवा के सामने मर गए थे; और वे पुत्रहीन भी थे। एलीआजर और ईतामार अपने पिता हारून के साथ याजक का काम करते रहे।

लेवियों का याजकों की सेवा के लिये नियुक्ति

5 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

6 “लेवी गोत्रवालों को समीप ले आकर हारून याजक के सामने खड़ा कर कि वे उसकी सहायता करें।

7 जो कुछ उसकी ओर से और सारी मण्डली की ओर से उन्हें सौंपा जाए उसकी देख-रेख वे मिलापवाले तम्बू के सामने करें, इस प्रकार वे तम्बू की सेवा करें[fn] *;

8 वे मिलापवाले तम्बू के सम्पूर्ण सामान की और इस्राएलियों की सौंपी हुई वस्तुओं की भी देख-रेख करें, इस प्रकार वे निवास-स्थान की सेवा करें।

9 और तू लेवियों को हारून और उसके पुत्रों को सौंप दे; और वे इस्राएलियों की ओर से हारून को सम्पूर्ण रीति से अर्पण किए हुए हों।

10 और हारून और उसके पुत्रों को याजक के पद पर नियुक्त कर, और वे अपने याजकपद को सम्भालें; और यदि परदेशी समीप आए, तो वह मार डाला जाए।”

11 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

12 “सुन इस्राएली स्त्रियों के सब पहलौठों के बदले, मैं इस्राएलियों में से लेवियों को ले लेता हूँ; इसलिए लेवीय मेरे ही हों।

13 सब पहलौठे[fn] * मेरे हैं; क्योंकि जिस दिन मैंने मिस्र देश के सब पहलौठों को मारा, उसी दिन मैंने क्या मनुष्य क्या पशु इस्राएलियों के सब पहलौठों को अपने लिये पवित्र ठहराया; इसलिए वे मेरे ही ठहरेंगे; मैं यहोवा हूँ।”

लेवियों की गिनती

14 फिर यहोवा ने सीनै के जंगल में मूसा से कहा,

15 “लेवियों में से जितने पुरुष एक महीने या उससे अधिक आयु के हों उनको उनके पितरों के घरानों और उनके कुलों के अनुसार गिन ले।”

16 यह आज्ञा पाकर मूसा ने यहोवा के कहे अनुसार उनको गिन लिया।

17 लेवी के पुत्रों के नाम ये हैं, अर्थात् गेर्शोन, कहात, और मरारी।

18 और गेर्शोन के पुत्र जिनसे उसके कुल चले उनके नाम ये हैं, अर्थात् लिब्नी और शिमी।

19 कहात के पुत्र जिनसे उसके कुल चले उनके नाम ये हैं, अर्थात् अम्राम, यिसहार, हेब्रोन, और उज्जीएल।

20 और मरारी के पुत्र जिनसे उसके कुल चले ये हैं, अर्थात् महली और मूशी। ये लेवियों के कुल अपने पितरों के घरानों के अनुसार हैं।

21 गेर्शोन से लिब्नायों और शिमियों के कुल चले; गेर्शोनवंशियों के कुल ये ही हैं।

22 इनमें से जितने पुरुषों की आयु एक महीने की या उससे अधिक थी, उन सभी की गिनती साढ़े सात हजार थी।

23 गेर्शोनवाले कुल निवास के पीछे पश्चिम की ओर अपने डेरे डाला करें;

24 और गेर्शोनियों के मूलपुरुष से घराने का प्रधान लाएल का पुत्र एल्यासाप हो।

25 और मिलापवाले तम्बू की जो वस्तुएँ गेर्शोनवंशियों को सौंपी जाएँ वे ये हों, अर्थात् निवास और तम्बू, और उसका आवरण, और मिलापवाले तम्बू के द्वार का परदा,

26 और जो आँगन निवास और वेदी की चारों ओर है उसके पर्दे, और उसके द्वार का परदा, और सब डोरियाँ जो उसमें काम आती हैं।

27 फिर कहात से अम्रामियों, यिसहारियों, हेब्रोनियों, और उज्जीएलियों के कुल चले; कहातियों के कुल ये ही हैं।

28 उनमें से जितने पुरुषों की आयु एक महीने की या उससे अधिक थी उनकी गिनती आठ हजार छः सौ थी। उन पर पवित्रस्थान की देख-रेख का उत्तरदायित्व था।

29 कहातियों के कुल निवास स्थान की उस ओर अपने डेरे डाला करें जो दक्षिण की ओर है;

30 और कहातियों के मूलपुरुष के घराने का प्रधान उज्जीएल का पुत्र एलीसापान हो।

31 और जो वस्तुएँ उनको सौंपी जाएँ वे सन्दूक, मेज, दीवट, वेदियाँ, और पवित्रस्थान का वह सामान जिससे सेवा टहल होती है, और परदा; अर्थात् पवित्रस्थान में काम में आनेवाला सारा सामान हो।

32 और लेवियों के प्रधानों का प्रधान हारून याजक का पुत्र एलीआजर हो, और जो लोग पवित्रस्थान की सौंपी हुई वस्तुओं की देख-रेख करेंगे उन पर वही मुखिया ठहरे।

33 फिर मरारी से महलियों और मूशियों के कुल चले; मरारी के कुल ये ही हैं।

34 इनमें से जितने पुरुषों की आयु एक महीने की या उससे अधिक थी उन सभी की गिनती छः हजार दो सौ थी।

35 और मरारी के कुलों के मूलपुरुष के घराने का प्रधान अबीहैल का पुत्र सूरीएल हो; ये लोग निवास के उत्तर की ओर अपने डेरे खड़े करें।

36 और जो वस्तुएँ मरारीवंशियों को सौंपी जाएँ कि वे उनकी देख-रेख करें, वे निवास के तख्ते, बेंड़े, खम्भे, कुर्सियाँ, और सारा सामान; निदान जो कुछ उसके लगाने में काम आए;

37 और चारों ओर के आँगन के खम्भे, और उनकी कुर्सियाँ, खूँटे और डोरियाँ हों।

38 और जो मिलापवाले तम्बू के सामने, अर्थात् निवास के सामने, पूर्व की ओर जहाँ से सूर्योदय होता है, अपने डेरे डाला करें, वे मूसा और हारून और उसके पुत्रों के डेरे हों, और पवित्रस्थान की देख-रेख इस्राएलियों के बदले वे ही किया करें, और दूसरा जो कोई उसके समीप आए वह मार डाला जाए।

39 यहोवा की इस आज्ञा को पाकर एक महीने की या उससे अधिक आयुवाले जितने लेवीय पुरुषों को मूसा और हारून ने उनके कुलों के अनुसार गिना, वे सब के सब बाईस हजार थे।

लेवियों का पहलौठों की जगह लेना

40 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “इस्राएलियों के जितने पहलौठे पुरुषों की आयु एक महीने की या उससे अधिक है, उन सभी को नाम ले लेकर गिन ले।

41 और मेरे लिये इस्राएलियों के सब पहलौठों के बदले लेवियों को, और इस्राएलियों के पशुओं के सब पहलौठों के बदले लेवियों के पशुओं को ले; मैं यहोवा हूँ।”

42 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने इस्राएलियों के सब पहलौठों को गिन लिया।

43 और सब पहलौठे पुरुष जिनकी आयु एक महीने की या उससे अधिक थी, उनके नामों की गिनती बाईस हजार दो सौ तिहत्तर थी।

44 तब यहोवा ने मूसा से कहा,

45 “इस्राएलियों के सब पहलौठों के बदले लेवियों को, और उनके पशुओं के बदले लेवियों के पशुओं को ले; और लेवीय मेरे ही हों; मैं यहोवा हूँ।

46 और इस्राएलियों के पहलौठों में से जो दो सौ तिहत्तर गिनती में लेवियों से अधिक हैं, उनके छुड़ाने के लिये,

47 पुरुष पाँच शेकेल ले; वे पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से हों, अर्थात् बीस गेरा का शेकेल हो।

48 और जो रुपया उन अधिक पहलौठों की छुड़ौती का होगा उसे हारून और उसके पुत्रों को दे देना।”

49 अतः जो इस्राएली पहलौठे लेवियों के द्वारा छुड़ाए हुओं से अधिक थे उनके हाथ से मूसा ने छुड़ौती का रुपया लिया।

50 और एक हजार तीन सौ पैंसठ शेकेल रुपया पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से वसूल हुआ।

51 और यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा ने छुड़ाए हुओं का रुपया हारून और उसके पुत्रों को दे दिया।

कहातियों के कर्तव्य

4  1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,

2 “लेवियों में से कहातियों की, उनके कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार, गिनती करो,

3 अर्थात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की आयु वालों में, जितने मिलापवाले तम्बू में काम-काज करने को भर्ती हैं।

4 और मिलापवाले तम्बू में परमपवित्र वस्तुओं के विषय कहातियों का यह काम होगा,

5 अर्थात् जब-जब छावनी का कूच हो तब-तब हारून और उसके पुत्र भीतर आकर, बीचवाले पर्दे को उतार कर उससे साक्षीपत्र के सन्दूक को ढाँप दें;

6 तब वे उस पर सुइसों की खालों का आवरण डालें, और उसके ऊपर सम्पूर्ण नीले रंग का कपड़ा डालें, और सन्दूक में डंडों को लगाएँ[fn] *।

7 फिर भेंटवाली रोटी की मेज पर नीला कपड़ा बिछाकर उस पर परातों, धूपदानों, करछों, और उण्डेलने के कटोरों को रखें; और प्रतिदिन की रोटी भी उस पर हो;

8 तब वे उन पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उसको सुइसों की खालों के आवरण से ढाँपें, और मेज के डंडों को लगा दें।

9 फिर वे नीले रंग का कपड़ा लेकर दीपकों, गुलतराशों, और गुलदानों समेत उजियाला देनेवाले दीवट को, और उसके सब तेल के पात्रों को, जिनसे उसकी सेवा टहल होती है, ढाँपें;

10 तब वे सारे सामान समेत दीवट को सुइसों की खालों के आवरण के भीतर रखकर डंडे पर धर दें।

11 फिर वे सोने की वेदी पर एक नीला कपड़ा बिछाकर उसको सुइसों की खालों के आवरण से ढाँपें, और उसके डंडों को लगा दें;

12 तब वे सेवा टहल के सारे सामान को लेकर, जिससे पवित्रस्थान में सेवा टहल होती है, नीले कपड़े के भीतर रखकर सुइसों की खालों के आवरण से ढाँपें, और डण्डे पर धर दें।

13 फिर वे वेदी पर से सब राख उठाकर वेदी पर बैंगनी रंग का कपड़ा बिछाएँ;

14 तब जिस सामान से वेदी पर की सेवा टहल होती है वह सब, अर्थात् उसके करछे, काँटे, फावड़ियाँ, और कटोरे आदि, वेदी का सारा सामान उस पर रखें; और उसके ऊपर सुइसों की खालों का आवरण बिछाकर वेदी में डंडों को लगाएँ।

15 और जब हारून और उसके पुत्र छावनी के कूच के समय पवित्रस्थान और उसके सारे सामान को ढाँप चुकें, तब उसके बाद कहाती उसके उठाने के लिये आएँ, पर किसी पवित्र वस्तु को न छूएँ, कहीं ऐसा न हो कि मर जाएँ। कहातियों के उठाने के लिये मिलापवाले तम्बू की ये ही वस्तुएँ हैं।

16 “जो वस्तुएँ हारून याजक के पुत्र एलीआजर को देख-रेख के लिये सौंपी जाएँ वे ये हैं, अर्थात् उजियाला देने के लिये तेल, और सुगन्धित धूप, और नित्य अन्नबलि, और अभिषेक का तेल, और सारे निवास, और उसमें की सब वस्तुएँ, और पवित्रस्थान और उसके सम्पूर्ण सामान।”

17 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,

18 “कहातियों के कुलों के गोत्रों को लेवियों में से नाश न होने देना;

19 उसके साथ ऐसा करो, कि जब वे परमपवित्र वस्तुओं के समीप आएँ, तब न मरें परन्तु जीवित रहें; इस कारण हारून और उसके पुत्र भीतर आकर एक-एक के लिये उसकी सेवकाई और उसका भार ठहरा दें,

20 और वे पवित्र वस्तुओं के देखने को क्षण भर के लिये भी[fn] * भीतर आने न पाएँ, कहीं ऐसा न हो कि मर जाएँ।”

गेर्शोनियों के कर्तव्य

21 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

22 “गेर्शोनियों की भी गिनती उनके पितरों के घरानों और कुलों के अनुसार कर;

23 तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की आयु वाले, जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करने को भर्ती हों उन सभी को गिन ले।

24 सेवा करने और भार उठाने में गेर्शोनियों के कुलवालों की यह सेवकाई हो;

25 अर्थात् वे निवास के पटों, और मिलापवाले तम्बू और उसके आवरण, और इसके ऊपरवाले सुइसों की खालों के आवरण, और मिलापवाले तम्बू के द्वार के पर्दे,

26 और निवास, और वेदी के चारों ओर के आँगन के पर्दों, और आँगन के द्वार के पर्दे, और उनकी डोरियों, और उनमें काम में आनेवाले सारे सामान, इन सभी को वे उठाया करें; और इन वस्तुओं से जितना काम होता है वह सब भी उनकी सेवकाई में आए।

27 और गेर्शोनियों के वंश की सारी सेवकाई हारून और उसके पुत्रों के कहने से हुआ करे, अर्थात् जो कुछ उनको उठाना, और जो-जो सेवकाई उनको करनी हो, उनका सारा भार तुम ही उन्हें सौंपा करो।

28 मिलापवाले तम्बू में गेर्शोनियों के कुलों की यही सेवकाई ठहरे; और उन पर हारून याजक का पुत्र ईतामार अधिकार रखे।

मरारियों के कर्तव्य

29 “फिर मरारियों को भी तू उनके कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार गिन लें;

30 तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की आयु वाले, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवा करने को भर्ती हों, उन सभी को गिन ले।

31 और मिलापवाले तम्बू में की जिन वस्तुओं के उठाने की सेवकाई उनको मिले वे ये हों, अर्थात् निवास के तख्ते, बेंड़े, खम्भे, और कुर्सियाँ,

32 और चारों ओर आँगन के खम्भे, और इनकी कुर्सियाँ, खूँटे, डोरियाँ, और भाँति-भाँति के काम का सारा सामान ढोने के लिये उनको सौंपा जाए उसमें से एक-एक वस्तु का नाम लेकर तुम गिन लो[fn] *।

33 मरारियों के कुलों की सारी सेवकाई जो उन्हें मिलापवाले तम्बू के विषय करनी होगी वह यही है; वह हारून याजक के पुत्र ईतामार के अधिकार में रहे।”

लेवियों की गिनती

34 तब मूसा और हारून और मण्डली के प्रधानों ने कहातियों के वंश को, उनके कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार,

35 तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष की आयु के, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को भर्ती हुए थे, उन सभी को गिन लिया;

36 और जो अपने-अपने कुल के अनुसार गिने गए, वे दो हजार साढ़े सात सौ थे।

37 कहातियों के कुलों में से जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करनेवाले गिने गए, वे इतने ही थे; जो आज्ञा यहोवा ने मूसा के द्वारा दी थी उसी के अनुसार मूसा और हारून ने इनको गिन लिया।

38 गेर्शोनियों में से जो अपने कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार गिने गए,

39 अर्थात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की आयु के, जो मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को दल में भर्ती हुए थे,

40 उनकी गिनती उनके कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार दो हजार छः सौ तीस थी।

41 गेर्शोनियों के कुलों में से जितने मिलापवाले तम्बू में सेवा करनेवाले गिने गए, वे इतने ही थे; यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा और हारून ने इनको गिन लिया।

42 फिर मरारियों के कुलों में से जो अपने कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार गिने गए,

43 अर्थात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की आयु के, जो मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने को भर्ती हुए थे,

44 उनकी गिनती उनके कुलों के अनुसार तीन हजार दो सौ थी।

45 मरारियों के कुलों में से जिनको मूसा और हारून ने, यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो मूसा के द्वारा मिली थी, गिन लिया वे इतने ही थे।

46 लेवियों में से जिनको मूसा और हारून और इस्राएली प्रधानों ने उनके कुलों और पितरों के घरानों के अनुसार गिन लिया,

47 अर्थात् तीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक की आयु वाले, जितने मिलापवाले तम्बू की सेवकाई करने और बोझ उठाने का काम करने को हाज़िर होनेवाले थे,

48 उन सभी की गिनती आठ हजार पाँच सौ अस्सी थी।

49 ये अपनी-अपनी सेवा और बोझ ढोने के लिए यहोवा के कहने पर गए। जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी उसी के अनुसार वे गिने गए।

अशुद्ध लोगों का बाहर किया जाना

5  1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 “इस्राएलियों को आज्ञा दे, कि वे सब कोढ़ियों को, और जितनों के प्रमेह हो, और जितने लोथ के कारण अशुद्ध हों, उन सभी को छावनी से निकाल दें;

3 ऐसों को चाहे पुरुष हों, चाहे स्त्री, छावनी से निकालकर बाहर कर दें; कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी छावनी, जिसके बीच मैं निवास करता हूँ, उनके कारण अशुद्ध हो जाए।”

4 और इस्राएलियों ने वैसा ही किया, अर्थात् ऐसे लोगों को छावनी से निकालकर बाहर कर दिया; जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था इस्राएलियों ने वैसा ही किया।

दोषों की हानि भरने की विधि

5 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

6 “इस्राएलियों से कह कि जब कोई पुरुष या स्त्री ऐसा कोई पाप करके जो लोग किया करते हैं यहोवा से विश्वासघात करे, और वह मनुष्य दोषी हो,

7 तब वह अपना किया हुआ पाप मान ले; और पूरी क्षतिपूर्ति में पाँचवाँ अंश बढ़ाकर अपने दोष के बदले में उसी को दे, जिसके विषय दोषी हुआ हो।

8 परन्तु यदि उस मनुष्य का कोई कुटुम्बी न हो जिसे दोष का बदला भर दिया जाए, तो उस दोष का जो बदला यहोवा को भर दिया जाए वह याजक का हो, और वह उस प्रायश्चितवाले मेढ़े से अधिक हो जिससे उसके लिये प्रायश्चित किया जाए[fn] *।

9 और जितनी पवित्र की हुई वस्तुएँ इस्राएली उठाई हुई भेंट करके याजक के पास लाएँ, वे उसी की हों;

10 सब मनुष्यों की पवित्र की हुई वस्तुएँ याजक की ठहरें; कोई जो कुछ याजक को दे वह उसका ठहरे।”

व्यभिचार की जाँच

11 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

12 “इस्राएलियों से कह, कि यदि किसी मनुष्य की स्त्री बुरी चाल चलकर उससे विश्वासघात करे,

13 और कोई पुरुष उसके साथ कुकर्म करे, परन्तु यह बात उसके पति से छिपी हो और खुली न हो, और वह अशुद्ध हो गई, परन्तु न तो उसके विरुद्ध कोई साक्षी हो, और न कुकर्म करते पकड़ी गई हो;

14 और उसके पति के मन में संदेह उत्पन्न हो, अर्थात् वह अपनी स्त्री पर जलने लगे और वह अशुद्ध हुई हो; या उसके मन में जलन उत्पन्न हो[fn] *, अर्थात् वह अपनी स्त्री पर जलने लगे परन्तु वह अशुद्ध न हुई हो;

15 तो वह पुरुष अपनी स्त्री को याजक के पास ले जाए, और उसके लिये एपा का दसवाँ अंश जौ का मैदा चढ़ावा करके ले आए; परन्तु उस पर तेल न डाले, न लोबान रखे, क्योंकि वह जलनवाला और स्मरण दिलानेवाला, अर्थात् अधर्म का स्मरण करानेवाला अन्नबलि होगा।

16 “तब याजक उस स्त्री को समीप ले जाकर यहोवा के सामने खड़ा करे;

17 और याजक मिट्टी के पात्र में पवित्र जल ले, और निवास-स्थान की भूमि पर की धूल में से कुछ लेकर उस जल में डाल दे।

18 तब याजक उस स्त्री को यहोवा के सामने खड़ा करके उसके सिर के बाल बिखराए, और स्मरण दिलानेवाले अन्नबलि को जो जलनवाला है उसके हाथों पर धर दे। और अपने हाथ में याजक कड़वा जल लिये रहे जो श्राप लगाने का कारण होगा।

19 तब याजक स्त्री को शपथ धरवाकर कहे, कि यदि किसी पुरुष ने तुझ से कुकर्म न किया हो, और तू पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध न हो गई हो, तो तू इस कड़वे जल के गुण से जो श्राप का कारण होता है बची रहे।

20 पर यदि तू अपने पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हुई हो, और तेरे पति को छोड़ किसी दूसरे पुरुष ने तुझ से प्रसंग किया हो,

21 (और याजक उसे श्राप देनेवाली शपथ धराकर कहे,) यहोवा तेरी जाँघ सड़ाए और तेरा पेट फुलाए[fn] *, और लोग तेरा नाम लेकर श्राप और धिक्कार दिया करें;

22 अर्थात् वह जल जो श्राप का कारण होता है तेरी अंतड़ियों में जाकर तेरे पेट को फुलाए, और तेरी जाँघ को सड़ा दे। तब वह स्त्री कहे, आमीन, आमीन।

23 “तब याजक श्राप के ये शब्द पुस्तक में लिखकर उस कड़वे जल से मिटाकर[fn] *,

24 उस स्त्री को वह कड़वा जल पिलाए[fn] * जो श्राप का कारण होता है, और वह जल जो श्राप का कारण होगा उस स्त्री के पेट में जाकर कड़वा हो जाएगा।

25 और याजक स्त्री के हाथ में से जलनवाले अन्नबलि को लेकर यहोवा के आगे हिलाकर वेदी के समीप पहुँचाए;

26 और याजक उस अन्नबलि में से उसका स्मरण दिलानेवाला भाग, अर्थात् मुट्ठी भर लेकर वेदी पर जलाए, और उसके बाद स्त्री को वह जल पिलाए।

27 और जब वह उसे वह जल पिला चुके, तब यदि वह अशुद्ध हुई हो और अपने पति का विश्वासघात किया हो, तो वह जल जो श्राप का कारण होता है उस स्त्री के पेट में जाकर कड़वा हो जाएगा, और उसका पेट फूलेगा, और उसकी जाँघ सड़ जाएगी, और उस स्त्री का नाम उसके लोगों के बीच श्रापित होगा।

28 पर यदि वह स्त्री अशुद्ध न हुई हो और शुद्ध ही हो, तो वह निर्दोष ठहरेगी और गर्भवती हो सकेगी।

29 “जलन की व्यवस्था यही है, चाहे कोई स्त्री अपने पति को छोड़ दूसरे की ओर फिरके अशुद्ध हो,

30 चाहे पुरुष के मन में जलन उत्पन्न हो और वह अपनी स्त्री पर जलने लगे; तो वह उसको यहोवा के सम्मुख खड़ा कर दे, और याजक उस पर यह सारी व्यवस्था पूरी करे।

31 तब पुरुष अधर्म से बचा रहेगा, और स्त्री अपने अधर्म का बोझ आप उठाएगी।”

नाज़ीरों की व्यवस्था

6  1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 “इस्राएलियों से कह कि जब कोई पुरुष या स्त्री नाज़ीर[fn] * की मन्नत, अर्थात् अपने को यहोवा के लिये अलग करने की विशेष मन्नत माने,

3 तब वह दाखमधु और मदिरा से अलग रहे; वह न दाखमधु का, और न मदिरा का सिरका पीए, और न दाख का कुछ रस भी पीए, वरन् दाख न खाए, चाहे हरी हो चाहे सूखी। (लूका 1:15)

4 जितने दिन यह अलग रहे उतने दिन तक वह बीज से लेकर छिलके तक, जो कुछ दाखलता से उत्पन्न होता है, उसमें से कुछ न खाए।

5 “फिर जितने दिन उसने अलग रहने की मन्नत मानी हो उतने दिन तक वह अपने सिर पर छुरा न फिराए[fn] *; और जब तक वे दिन पूरे न हों जिनमें वह यहोवा के लिये अलग रहे तब तक वह पवित्र ठहरेगा, और अपने सिर के बालों को बढ़ाए रहे। (प्रेरि. 21:23, 24:2)

6 जितने दिन वह यहोवा के लिये अलग रहे उतने दिन तक किसी लोथ के पास न जाए।

7 चाहे उसका पिता, या माता, या भाई, या बहन भी मरे, तो भी वह उनके कारण अशुद्ध न हो; क्योंकि अपने परमेश्वर के लिये अलग रहने का चिन्ह उसके सिर पर होगा।

8 अपने अलग रहने के सारे दिनों में वह यहोवा के लिये पवित्र ठहरा रहे।

9 “यदि कोई उसके पास अचानक मर जाए, और उसके अलग रहने का जो चिन्ह उसके सिर पर होगा वह अशुद्ध हो जाए, तो वह शुद्ध होने के दिन, अर्थात् सातवें दिन अपना सिर मुण्डाएँ।

10 और आठवें दिन वह दो पंडुक या कबूतरी के दो बच्चे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास ले जाए,

11 और याजक एक को पापबलि, और दूसरे को होमबलि करके उसके लिये प्रायश्चित करे, क्योंकि वह लोथ के कारण पापी ठहरा है। और याजक उसी दिन उसका सिर फिर पवित्र करे,

12 और वह अपने अलग रहने के दिनों को फिर यहोवा के लिये अलग ठहराए, और एक वर्ष का एक भेड़ का बच्चा दोषबलि करके ले आए; और जो दिन इससे पहले बीत गए हों वे व्यर्थ गिने जाएँ, क्योंकि उसके अलग रहने का चिन्ह अशुद्ध हो गया।

13 “फिर जब नाज़ीर के अलग रहने के दिन पूरे हों, उस समय के लिये उसकी यह व्यवस्था है; अर्थात् वह मिलापवाले तम्बू के द्वार पर पहुँचाया जाए,

14 और वह यहोवा के लिये होमबलि करके एक वर्ष का एक निर्दोष भेड़ का बच्चा पापबलि करके, और एक वर्ष की एक निर्दोष भेड़ की बच्ची, और मेलबलि के लिये एक निर्दोष मेढ़ा,

15 और अख़मीरी रोटियों की एक टोकरी, अर्थात् तेल से सने हुए मैदे के फुलके, और तेल से चुपड़ी हुई अख़मीरी पापड़ियाँ, और उन बलियों के अन्नबलि और अर्घ; ये सब चढ़ावे समीप ले जाए।

16 इन सब को याजक यहोवा के सामने पहुँचाकर उसके पापबलि और होमबलि को चढ़ाए,

17 और अख़मीरी रोटी की टोकरी समेत मेढ़े को यहोवा के लिये मेलबलि करके, और उस मेलबलि के अन्नबलि और अर्घ को भी चढ़ाए।

18 तब नाज़ीर अपने अलग रहने के चिन्हवाले सिर को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मुण्डाकर[fn] * अपने बालों को उस आग पर डाल दे जो मेलबलि के नीचे होगी।

19 फिर जब नाज़ीर अपने अलग रहने के चिन्हवाले सिर को मुण्डा चुके तब याजक मेढ़े को पकाया हुआ कंधा, और टोकरी में से एक अख़मीरी रोटी, और एक अख़मीरी पापड़ी लेकर नाज़ीर के हाथों पर धर दे,

20 और याजक इनको हिलाने की भेंट करके यहोवा के सामने हिलाए; हिलाई हुई छाती और उठाई हुई जाँघ समेत ये भी याजक के लिये पवित्र ठहरें; इसके बाद वह नाज़ीर दाखमधु पी सकेगा।

21 “नाज़ीर की मन्नत की, और जो चढ़ावा उसको अपने अलग होने के कारण यहोवा के लिये चढ़ाना होगा उसकी भी यही व्यवस्था है। जो चढ़ावा वह अपनी पूँजी के अनुसार चढ़ा सके, उससे अधिक जैसी मन्नत उसने मानी हो, वैसे ही अपने अलग रहने की व्यवस्था के अनुसार उसे करना होगा।”

याजक का आशीर्वाद

22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

23 “हारून और उसके पुत्रों से कह कि तुम इस्राएलियों को इन वचनों से आशीर्वाद दिया करना:

24 “यहोवा तुझे आशीष दे और तेरी रक्षा करे:

25 “यहोवा तुझ पर अपने मुख का प्रकाश चमकाए, और तुझ पर अनुग्रह करे:

26 “यहोवा अपना मुख तेरी ओर करे, और तुझे शान्ति दे।

27 इस रीति से मेरे नाम को इस्राएलियों पर रखें[fn] *, और मैं उन्हें आशीष दिया करूँगा।”

वेदी के अभिषेक पर उत्सव की भेंटें

7  1 फिर जब मूसा ने निवास को खड़ा किया, और सारे सामान समेत उसका अभिषेक करके उसको पवित्र किया, और सारे सामान समेत वेदी का भी अभिषेक करके उसे पवित्र किया,

2 तब इस्राएल के प्रधान जो अपने-अपने पितरों के घरानों के मुख्य पुरुष, और गोत्रों के भी प्रधान होकर गिनती लेने के काम पर नियुक्त थे,

3 वे यहोवा के सामने भेंट ले आए, और उनकी भेंट छः भरी हुई गाड़ियाँ[fn] * और बारह बैल थे, अर्थात् दो-दो प्रधान की ओर से एक-एक गाड़ी, और एक-एक प्रधान की ओर से एक-एक बैल; इन्हें वे निवास के सामने यहोवा के समीप ले गए।

4 तब यहोवा ने मूसा से कहा,

5 “उन वस्तुओं को तू उनसे ले-ले, कि मिलापवाले तम्बू की सेवकाई में काम आएँ, तू उन्हें लेवियों के एक-एक कुल की विशेष सेवकाई के अनुसार उनको बाँट दे।”

6 अतः मूसा ने वे सब गाड़ियाँ और बैल लेकर लेवियों को दे दिये।

7 गेर्शोनियों को उनकी सेवकाई के अनुसार उसने दो गाड़ियाँ और चार बैल दिए;

8 और मरारियों को उनकी सेवकाई के अनुसार उसने चार गाड़ियाँ और आठ बैल दिए; ये सब हारून याजक के पुत्र ईतामार के अधिकार में किए गए।

9 परन्तु कहातियों को उसने कुछ न दिया, क्योंकि उनके लिये पवित्र वस्तुओं की यह सेवकाई थी कि वह उसे अपने कंधों पर उठा लिया करें।

10 फिर जब वेदी का अभिषेक हुआ तब प्रधान उसके संस्कार की भेंट वेदी के समीप ले जाने लगे।

11 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “वेदी के संस्कार के लिये प्रधान लोग अपनी-अपनी भेंट अपने-अपने नियत दिन पर चढ़ाएँ।”

12 इसलिए जो पुरुष पहले दिन अपनी भेंट ले गया[fn] * वह यहूदा गोत्रवाले अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन था;

13 उसकी भेंट यह थी, अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;

14 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;

15 होमबलि के लिये एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

16 पापबलि के लिये एक बकरा;

17 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेड़ी के बच्चे। अम्मीनादाब के पुत्र नहशोन की यही भेंट थी।

18 दूसरे दिन इस्साकार का प्रधान सूआर का पुत्र नतनेल भेंट ले आया;

19 वह यह थी, अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;

20 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;

21 होमबलि के लिये एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

22 पापबलि के लिये एक बकरा;

23 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेड़ी के बच्चे। सूआर के पुत्र नतनेल की यही भेंट थी।

24 और तीसरे दिन जबूलूनियों का प्रधान हेलोन का पुत्र एलीआब यह भेंट ले आया,

25 अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;

26 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;

27 होमबलि के लिये एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

28 पापबलि के लिये एक बकरा;

29 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेड़ी के बच्चे। हेलोन के पुत्र एलीआब की यही भेंट थी।

30 और चौथे दिन रूबेनियों का प्रधान शदेऊर का पुत्र एलीसूर यह भेंट ले आया,

31 अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक फरात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;

32 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;

33 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

34 पापबलि के लिये एक बकरा;

35 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेड़ी के बच्चे। शदेऊर के पुत्र एलीसूर की यही भेंट थी।

36 पाँचवें दिन शिमोनियों का प्रधान सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल यह भेंट ले आया,

37 अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरें हुए थे;

38 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;

39 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

40 पापबलि के लिये एक बकरा;

41 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेड़ी के बच्चे। सूरीशद्दै के पुत्र शलूमीएल की यही भेंट थी।

42 और छठवें दिन गादियों का प्रधान दूएल का पुत्र एल्यासाप यह भेंट ले आया,

43 अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;

44 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;

45 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

46 पापबलि के लिये एक बकरा;

47 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेड़ी के बच्चे। दूएल के पुत्र एल्यासाप की यही भेंट थी।

48 सातवें दिन एप्रैमियों का प्रधान अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा यह भेंट ले आया,

49 अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;

50 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;

51 होमबलि के लिये एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

52 पापबलि के लिये एक बकरा;

53 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेड़ी के बच्चे। अम्मीहूद के पुत्र एलीशामा की यही भेंट थी।

54 आठवें दिन मनश्शेइयों का प्रधान पदासूर का पुत्र गम्लीएल यह भेंट ले आया,

55 अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;

56 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;

57 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

58 पापबलि के लिये एक बकरा;

59 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेडी के बच्चे। पदासूर के पुत्र गम्लीएल की यही भेंट थी।

60 नवें दिन बिन्यामीनियों का प्रधान गिदोनी का पुत्र अबीदान यह भेंट ले आया,

61 अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;

62 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;

63 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

64 पापबलि के लिये एक बकरा;

65 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेड़ी के बच्चे। गिदोनी के पुत्र अबीदान की यही भेंट थी।

66 दसवें दिन दानियों का प्रधान अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर यह भेंट ले आया,

67 अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;

68 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;

69 होमबलि के लिये बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

70 पापबलि के लिये एक बकरा;

71 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेड़ी के बच्चे। अम्मीशद्दै के पुत्र अहीएजेर की यही भेंट थी।

72 ग्यारहवें दिन आशेरियों का प्रधान ओक्रान का पुत्र पगीएल यह भेंट ले आया।

73 अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;

74 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का धूपदान;

75 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

76 पापबलि के लिये एक बकरा;

77 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेड़ी के बच्चे। ओक्रान के पुत्र पगीएल की यही भेंट थी।

78 बारहवें दिन नप्तालियों का प्रधान एनान का पुत्र अहीरा यह भेंट ले आया,

79 अर्थात् पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से एक सौ तीस शेकेल चाँदी का एक परात, और सत्तर शेकेल चाँदी का एक कटोरा, ये दोनों अन्नबलि के लिये तेल से सने हुए और मैदे से भरे हुए थे;

80 फिर धूप से भरा हुआ दस शेकेल सोने का एक धूपदान;

81 होमबलि के लिये एक बछड़ा, और एक मेढ़ा, और एक वर्ष का एक भेड़ी का बच्चा;

82 पापबलि के लिये एक बकरा;

83 और मेलबलि के लिये दो बैल, और पाँच मेढ़े, और पाँच बकरे, और एक-एक वर्ष के पाँच भेड़ी के बच्चे। एनान के पुत्र अहीरा की यही भेंट थी।

84 वेदी के अभिषेक के समय इस्राएल के प्रधानों की ओर से उसके संस्कार की भेंट यही हुई, अर्थात् चाँदी के बारह परात, चाँदी के बारह कटोरे, और सोने के बारह धूपदान।

85 एक-एक चाँदी का परात एक सौ तीस शेकेल का, और एक-एक चाँदी का कटोरा सत्तर शेकेल का था; और पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से ये सब चाँदी के पात्र दो हजार चार सौ शेकेल के थे।

86 फिर धूप से भरे हुए सोने के बारह धूपदान जो पवित्रस्थान के शेकेल के हिसाब से दस-दस शेकेल के थे, वे सब धूपदान एक सौ बीस शेकेल सोने के थे।

87 फिर होमबलि के लिये सब मिलाकर बारह बछड़े, बारह मेढ़े, और एक-एक वर्ष के बारह भेड़ी के बच्चे, अपने-अपने अन्नबलि सहित थे; फिर पापबलि के सब बकरे बारह थे;

88 और मेलबलि के लिये सब मिला कर चौबीस बैल, और साठ मेढ़े, और साठ बकरे, और एक-एक वर्ष के साठ भेड़ी के बच्चे थे। वेदी के अभिषेक होने के बाद उसके संस्कार की भेंट यही हुई।

89 और जब मूसा यहोवा से बातें करने को मिलापवाले तम्बू में गया, तब उसने प्रायश्चित के ढकने पर से, जो साक्षीपत्र के सन्दूक के ऊपर था, दोनों करूबों के मध्य में से उसकी आवाज सुनी जो उससे बातें कर रहा था; और उसने (यहोवा) उससे बातें की।

दीपकों के जलाने की विधि

8  1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 “हारून को समझाकर यह कह कि जब-जब तू दीपकों को जलाए तब-तब सातों दीपक का प्रकाश दीवट के सामने हो।”

3 इसलिए हारून ने वैसा ही किया, अर्थात् जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी उसी के अनुसार उसने दीपकों को जलाया कि वे दीवट के सामने उजियाला दें।

4 और दीवट की बनावट ऐसी थी, अर्थात् यह पाए से लेकर फूलों तक गढ़े हुए सोने का बनाया गया था; जो नमूना यहोवा ने मूसा को दिखलाया था उसी के अनुसार उसने दीवट को बनाया।

लेवियों के नियुक्त होने का वर्णन

5 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

6 “इस्राएलियों के मध्य में से लेवियों को अलग लेकर शुद्ध कर।

7 उन्हें शुद्ध करने के लिये तू ऐसा कर, कि पावन करनेवाला जल[fn] * उन पर छिड़क दे, फिर वे सर्वांग मुण्डन कराएँ, और वस्त्र धोएँ, और वे अपने को शुद्ध करें।

8 तब वे तेल से सने हुए मैदे के अन्नबलि समेत एक बछड़ा ले लें, और तू पापबलि के लिये एक दूसरा बछड़ा लेना।

9 और तू लेवियों को मिलापवाले तम्बू के सामने पहुँचाना, और इस्राएलियों की सारी मण्डली को इकट्ठा करना।

10 तब तू लेवियों को यहोवा के आगे समीप ले आना, और इस्राएली अपने-अपने हाथ उन पर रखें,

11 तब हारून लेवियों को यहोवा के सामने इस्राएलियों की ओर से हिलाई हुई भेंट करके अर्पण करे कि वे यहोवा की सेवा करनेवाले ठहरें।

12 तब लेवीय अपने-अपने हाथ उन बछड़ों के सिरों पर रखें; तब तू लेवियों के लिये प्रायश्चित करने को एक बछड़ा पापबलि और दूसरा होमबलि करके यहोवा के लिये चढ़ाना।

13 और लेवियों को हारून और उसके पुत्रों के सम्मुख खड़ा करना, और उनको हिलाने की भेंट के लिये यहोवा को अर्पण करना।

14 “इस प्रकार तू उन्हें इस्राएलियों में से अलग करना, और वे मेरे ही ठहरेंगे।

15 और जब तू लेवियों को शुद्ध करके हिलाई हुई भेंट के लिये अर्पण कर चुके, उसके बाद वे मिलापवाले तम्बू सम्बन्धी सेवा टहल करने के लिये अन्दर आया करें।

16 क्योंकि वे इस्राएलियों में से मुझे पूरी रीति से अर्पण किए हुए हैं; मैंने उनको सब इस्राएलियों में से एक-एक स्त्री के पहलौठे के बदले अपना कर लिया है।

17 इस्राएलियों के पहलौठे, चाहे मनुष्य के हों, चाहे पशु के, सब मेरे हैं; क्योंकि मैंने उन्हें उस समय अपने लिये पवित्र ठहराया जब मैंने मिस्र देश के सब पहलौठों को मार डाला।

18 और मैंने इस्राएलियों के सब पहलौठों के बदले लेवियों को लिया है।

19 उन्हें लेकर मैंने हारून और उसके पुत्रों को इस्राएलियों में से दान करके दे दिया है, कि वे मिलापवाले तम्बू में इस्राएलियों के निमित्त सेवकाई और प्रायश्चित किया करें[fn] *, कहीं ऐसा न हो कि जब इस्राएली पवित्रस्थान के समीप आएँ तब उन पर कोई महाविपत्ति आ पड़े।”

20 लेवियों के विषय यहोवा की यह आज्ञा पाकर मूसा और हारून और इस्राएलियों की सारी मण्डली ने उनके साथ ठीक वैसा ही किया।

21 लेवियों ने तो अपने को पाप से शुद्ध किया, और अपने वस्त्रों को धो डाला; और हारून ने उन्हें यहोवा के सामने हिलाई हुई भेंट के निमित्त अर्पण किया, और उन्हें शुद्ध करने को उनके लिये प्रायश्चित भी किया।

22 और उसके बाद लेवीय हारून और उसके पुत्रों के सामने मिलापवाले तम्बू में अपनी-अपनी सेवकाई करने को गए; और जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को लेवियों के विषय में दी थी, उसी के अनुसार वे उनसे व्यवहार करने लगे।

23 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

24 “जो लेवियों को करना है वह यह है, कि पच्चीस वर्ष की आयु से लेकर उससे अधिक आयु में वे मिलापवाले तम्बू सम्बन्धी काम करने के लिये भीतर उपस्थित हुआ करें;

25 और जब पचास वर्ष के हों तो फिर उस सेवा के लिये न आए और न काम करें;

26 परन्तु वे अपने भाई-बन्धुओं के साथ मिलापवाले तम्बू के पास रक्षा का काम किया करें, और किसी प्रकार की सेवकाई न करें। लेवियों को जो-जो काम सौंपे जाएँ उनके विषय तू उनसे ऐसा ही करना।”

फसह पर्व

9  1 इस्राएलियों के मिस्र देश से निकलने के दूसरे वर्ष के पहले महीने में यहोवा ने सीनै के जंगल में मूसा से कहा,

2 “इस्राएली फसह नामक पर्व को उसके नियत समय पर मनाया करें।

3 अर्थात् इसी महीने के चौदहवें दिन को सांझ के समय तुम लोग उसे सब विधियों और नियमों के अनुसार मानना।”

4 तब मूसा ने इस्राएलियों से फसह मानने के लिये कह दिया।

5 और उन्होंने पहले महीने के चौदहवें दिन को सांझ के समय सीनै के जंगल में फसह को मनाया; और जो-जो आज्ञाएँ यहोवा ने मूसा को दी थीं उन्हीं के अनुसार इस्राएलियों ने किया।

6 परन्तु कुछ लोग[fn] * एक मनुष्य के शव के द्वारा अशुद्ध होने के कारण उस दिन फसह को न मना सके; वे उसी दिन मूसा और हारून के समीप जाकर मूसा से कहने लगे,

7 “हम लोग एक मनुष्य की लोथ के कारण अशुद्ध हैं; परन्तु हम क्यों रुके रहें, और इस्राएलियों के संग यहोवा का चढ़ावा नियत समय पर क्यों न चढ़ाएँ?”

8 मूसा ने उनसे कहा, “ठहरे रहो, मैं सुन लूँ कि यहोवा तुम्हारे विषय में क्या आज्ञा देता है।”

9 यहोवा ने मूसा से कहा,

10 “इस्राएलियों से कह कि चाहे तुम लोग चाहे तुम्हारे वंश में से कोई भी किसी लोथ के कारण अशुद्ध हो, या दूर की यात्रा पर हो, तो भी वह यहोवा के लिये फसह को माने।

11 वे उसे दूसरे महीने के चौदहवें दिन को सांझ के समय मनाएँ; और फसह के बलिपशु के माँस को अख़मीरी रोटी और कड़वे सागपात के साथ खाएँ।

12 और उसमें से कुछ भी सवेरे तक न रख छोड़े, और न उसकी कोई हड्डी तोड़े; वे फसह के पर्व को सारी विधियों के अनुसार मनाएँ[fn] *। (यूह. 19:36)

13 परन्तु जो मनुष्य शुद्ध हो और यात्रा पर न हो, परन्तु फसह के पर्व को न माने, वह मनुष्य अपने लोगों में से नाश किया जाए, उस मनुष्य को यहोवा का चढ़ावा नियत समय पर न ले आने के कारण अपने पाप का बोझ उठाना पड़ेगा।

14 यदि कोई परदेशी तुम्हारे साथ रहकर चाहे कि यहोवा के लिये फसह मनाए, तो वह उसी विधि और नियम के अनुसार उसको माने; देशी और परदेशी दोनों के लिये तुम्हारी एक ही विधि हो।”

बादल और अग्नि

15 जिस दिन निवास जो, साक्षी का तम्बू भी कहलाता है, खड़ा किया गया, उस दिन बादल[fn] * उस पर छा गया; और संध्या को वह निवास पर आग के समान दिखाई दिया और भोर तक दिखाई देता रहा।

16 प्रतिदिन ऐसा ही हुआ करता था; अर्थात् दिन को बादल छाया रहता, और रात को आग दिखाई देती थी।

17 और जब-जब वह बादल तम्बू पर से उठ जाता तब इस्राएली प्रस्थान करते थे; और जिस स्थान पर बादल ठहर जाता वहीं इस्राएली अपने डेरे खड़े करते थे।

18 यहोवा की आज्ञा से इस्राएली कूच करते थे, और यहोवा ही की आज्ञा से वे डेरे खड़े भी करते थे; और जितने दिन तक वह बादल निवास पर ठहरा रहता, उतने दिन तक वे डेरे डाले पड़े रहते थे।

19 जब बादल बहुत दिन निवास पर छाया रहता, तब भी इस्राएली यहोवा की आज्ञा मानते, और प्रस्थान नहीं करते थे।

20 और कभी-कभी वह बादल थोड़े ही दिन तक निवास पर रहता, और तब भी वे यहोवा की आज्ञा से डेरे डाले पड़े रहते थे; और फिर यहोवा की आज्ञा ही से वे प्रस्थान करते थे।

21 और कभी-कभी बादल केवल संध्या से भोर तक रहता; और जब वह भोर को उठ जाता था तब वे प्रस्थान करते थे, और यदि वह रात दिन बराबर रहता, तो जब बादल उठ जाता, तब ही वे प्रस्थान करते थे।

22 वह बादल चाहे दो दिन, चाहे एक महीना, चाहे वर्ष भर, जब तक निवास पर ठहरा रहता, तब तक इस्राएली अपने डेरों में रहते और प्रस्थान नहीं करते थे; परन्तु जब वह उठ जाता तब वे प्रस्थान करते थे।

23 यहोवा की आज्ञा से वे अपने डेरे खड़े करते, और यहोवा ही की आज्ञा से वे प्रस्थान करते थे; जो आज्ञा यहोवा मूसा के द्वारा देता था, उसको वे माना करते थे।

चाँदी की तुरहियां

10  1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 “चाँदी की दो तुरहियां[fn] * गढ़कर बनाई जाए; तू उनको मण्डली के बुलाने, और छावनियों के प्रस्थान करने में काम में लाना।

3 और जब वे दोनों फूँकी जाएँ, तब सारी मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर तेरे पास इकट्ठी हो जाएँ।

4 यदि एक ही तुरही फूँकी जाए, तो प्रधान लोग जो इस्राएल के हजारों के मुख्य पुरुष हैं तेरे पास इकट्ठे हो जाएँ।

5 जब तुम लोग साँस बाँधकर फूँको, तो पूर्व दिशा की छावनियों का प्रस्थान हो।

6 और जब तुम दूसरी बार साँस बाँधकर फूँको, तब दक्षिण दिशा की छावनियों का प्रस्थान हो। उनके प्रस्थान करने के लिये वे साँस बाँधकर फूँकें।

7 जब लोगों को इकट्ठा करके सभा करनी हो तब भी फूँकना परन्तु साँस बाँधकर नहीं।

8 और हारून के पुत्र[fn] * जो याजक हैं वे उन तुरहियों को फूँका करें। यह बात तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी के लिये सर्वदा की विधि रहे।

9 और जब तुम अपने देश में किसी सतानेवाले बैरी से लड़ने को निकलो, तब तुरहियों को साँस बाँधकर फूँकना, तब तुम्हारे परमेश्वर यहोवा को तुम्हारा स्मरण आएगा, और तुम अपने शत्रुओं से बचाए जाओगे।

10 अपने आनन्द के दिन में, और अपने नियत पर्वों में, और महीनों के आदि में, अपने होमबलियों और मेलबलियों के साथ उन तुरहियों को फूँकना; इससे तुम्हारे परमेश्वर को तुम्हारा स्मरण आएगा; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।”

सीनै से पारान की ओर

11 दूसरे वर्ष के दूसरे महीने के बीसवें दिन को बादल साक्षी के निवास के तम्बू पर से उठ गया,

12 तब इस्राएली सीनै के जंगल में से निकलकर प्रस्थान करके निकले; और बादल पारान नामक जंगल में ठहर गया।

13 उनका प्रस्थान यहोवा की उस आज्ञा के अनुसार जो उसने मूसा को दी थी आरम्भ हुआ।

14 और सबसे पहले तो यहूदियों की छावनी के झण्डे का प्रस्थान हुआ, और वे दल बाँधकर चले; और उनका सेनापति अम्मीनादाब का पुत्र नहशोन था।

15 और इस्साकारियों के गोत्र का सेनापति सूआर का पुत्र नतनेल था।

16 और जबूलूनियों के गोत्र का सेनापति हेलोन का पुत्र एलीआब था।

17 तब निवास का तम्बू उतारा गया, और गेर्शोनियों और मरारियों ने जो निवास के तम्बू को उठाते थे प्रस्थान किया।

18 फिर रूबेन की छावनी के झण्डे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति शदेऊर का पुत्र एलीसूर था।

19 और शिमोनियों के गोत्र का सेनापति सूरीशद्दै का पुत्र शलूमीएल था।

20 और गादियों के गोत्र का सेनापति दूएल का पुत्र एल्यासाप था।

21 तब कहातियों ने पवित्र वस्तुओं को उठाए हुए प्रस्थान किया, और उनके पहुँचने तक गेर्शोनियों और मरारियों ने निवास के तम्बू को खड़ा कर दिया।

22 फिर एप्रैमियों की छावनी के झण्डे का कूच हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति अम्मीहूद का पुत्र एलीशामा था।

23 और मनश्शेइयों के गोत्र का सेनापति पदासूर का पुत्र गम्लीएल था।

24 और बिन्यामीनियों के गोत्र का सेनापति गिदोनी का पुत्र अबीदान था।

25 फिर दानियों की छावनी जो सब छावनियों के पीछे थी, उसके झण्डे का प्रस्थान हुआ, और वे भी दल बनाकर चले; और उनका सेनापति अम्मीशद्दै का पुत्र अहीएजेर था।

26 और आशेरियों के गोत्र का सेनापति ओक्रान का पुत्र पगीएल था।

27 और नप्तालियों के गोत्र का सेनापति एनान का पुत्र अहीरा था।

28 इस्राएली इसी प्रकार अपने-अपने दलों के अनुसार प्रस्थान करते, और आगे बढ़ा करते थे।

29 मूसा ने अपने ससुर रूएल मिद्यानी के पुत्र होबाब से कहा, “हम लोग उस स्थान की यात्रा करते हैं जिसके विषय में यहोवा ने कहा है, ‘मैं उसे तुम को दूँगा’; इसलिए तू भी हमारे संग चल, और हम तेरी भलाई करेंगे; क्योंकि यहोवा ने इस्राएल के विषय में भला ही कहा है।”

30 होबाब ने उसे उत्तर दिया, “मैं नहीं जाऊँगा; मैं अपने देश और कुटुम्बियों में लौट जाऊँगा।”

31 फिर मूसा ने कहा, “हमको न छोड़, क्योंकि जंगल में कहाँ-कहाँ डेरा खड़ा करना चाहिये, यह तुझे ही मालूम है, तू हमारे लिए आँखों का काम करना[fn] *।

32 और यदि तू हमारे संग चले, तो निश्चय जो भलाई यहोवा हम से करेगा उसी के अनुसार हम भी तुझ से वैसा ही करेंगे।”

33 फिर इस्राएलियों ने यहोवा के पर्वत से प्रस्थान करके तीन दिन की यात्रा की; और उन तीनों दिनों के मार्ग में यहोवा की वाचा का सन्दूक उनके लिये विश्राम का स्थान ढूँढ़ता हुआ उनके आगे-आगे चलता रहा।

34 और जब वे छावनी के स्थान से प्रस्थान करते थे तब दिन भर यहोवा का बादल उनके ऊपर छाया रहता था।

35 और जब-जब सन्दूक का प्रस्थान होता था तब-तब मूसा यह कहा करता था, “हे यहोवा, उठ, और तेरे शत्रु तितर-बितर हो जाएँ, और तेरे बैरी तेरे सामने से भाग जाएँ।”

36 और जब-जब वह ठहर जाता था तब-तब मूसा कहा करता था, “हे यहोवा, हजारों-हजार इस्राएलियों में लौटकर आ जा।”

इस्राएलियों का कुड़कुड़ाना और इसका दण्ड पाना

11  1 फिर वे लोग बुड़बुड़ाने और यहोवा के सुनते बुरा कहने लगे; अतः यहोवा ने सुना, और उसका कोप भड़क उठा, और यहोवा की आग उनके मध्य में जल उठी, और छावनी के एक किनारे से भस्म करने लगी।

2 तब लोग मूसा के पास आकर चिल्लाए; और मूसा ने यहोवा से प्रार्थना की, तब वह आग बुझ गई,

3 और उस स्थान का नाम तबेरा[fn] * पड़ा, क्योंकि यहोवा की आग उनके मध्य में जल उठी थी।

भोजन के विषय में शिकायतें

4 फिर जो मिली-जुली भीड़ उनके साथ थी, वह बेहतर भोजन की लालसा करने लगी; और फिर इस्राएली भी रोने और कहने लगे, “हमें माँस खाने को कौन देगा? (1 कुरि. 10:6)

5 हमें वे मछलियाँ स्मरण हैं जो हम मिस्र में सेंत-मेंत खाया करते थे, और वे खीरे, और खरबूजे, और गन्दने, और प्याज, और लहसुन भी;

6 परन्तु अब हमारा जी घबरा गया है, यहाँ पर इस मन्ना को छोड़ और कुछ भी देख नहीं पड़ता।”

7 मन्ना तो धनिये के समान था, और उसका रंग रूप मोती के समान था।

8 लोग इधर-उधर जाकर उसे बटोरते, और चक्की में पीसते या ओखली में कूटते थे, फिर तसले में पकाते, और उसके फुलके बनाते थे; और उसका स्वाद तेल में बने हुए पूए के समान था।

9 और रात को छावनी में ओस पड़ती थी तब उसके साथ मन्ना भी गिरता था। (यूह. 6:31)

10 और मूसा ने सब घरानों के आदमियों को अपने-अपने डेरे के द्वार पर रोते सुना; और यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का, और मूसा को भी उनका बुड़बुड़ाना बुरा लगा।

11 तब मूसा ने यहोवा से कहा, “तू अपने दास से यह बुरा व्यवहार क्यों करता है? और क्या कारण है कि मैंने तेरी दृष्टि में अनुग्रह नहीं पाया, कि तूने इन सब लोगों का भार मुझ पर डाला है?

12 क्या ये सब लोग मेरे ही कोख में पड़े थे? क्या मैं ही ने उनको उत्पन्न किया, जो तू मुझसे कहता है, कि जैसे पिता दूध पीते बालक को अपनी गोद में उठाए-उठाए फिरता है, वैसे ही मैं इन लोगों को अपनी गोद में उठाकर उस देश में ले जाऊँ, जिसके देने की शपथ तूने उनके पूर्वजों से खाई है?

13 मुझे इतना माँस कहाँ से मिले कि इन सब लोगों को दूँ? ये तो यह कह-कहकर मेरे पास रो रहे हैं, कि तू हमें माँस खाने को दे।

14 मैं अकेला इन सब लोगों का भार नहीं सम्भाल सकता, क्योंकि यह मेरी शक्ति के बाहर है।

15 और यदि तुझे मेरे साथ यही व्यवहार करना है, तो मुझ पर तेरा इतना अनुग्रह हो, कि तू मेरे प्राण एकदम ले ले, जिससे मैं अपनी दुर्दशा न देखने पाऊँ।”

मूसा द्वारा सत्तर अगुओं का चुनाव

16 यहोवा ने मूसा से कहा, “इस्राएली पुरनियों में से सत्तर ऐसे पुरुष मेरे पास इकट्ठे कर, जिनको तू जानता है कि वे प्रजा के पुरनिये और उनके सरदार है और मिलापवाले तम्बू के पास ले आ, कि वे तेरे साथ यहाँ खड़े हों।

17 तब मैं उतरकर तुझ से वहाँ बातें करूँगा; और जो आत्मा तुझ में है उसमें से कुछ लेकर[fn] * उनमें समवाऊँगा; और वे इन लोगों का भार तेरे संग उठाए रहेंगे, और तुझे उसको अकेले उठाना न पड़ेगा।

18 और लोगों से कह, ‘कल के लिये अपने को पवित्र करो, तब तुम्हें माँस खाने को मिलेगा; क्योंकि तुम यहोवा के सुनते हुए यह कह-कहकर रोए हो, कि हमें माँस खाने को कौन देगा? हम मिस्र ही में भले थे। इसलिए यहोवा तुम को माँस खाने को देगा, और तुम खाओगे।

19 फिर तुम एक दिन, या दो, या पाँच, या दस, या बीस दिन ही नहीं,

20 परन्तु महीने भर उसे खाते रहोगे, जब तक वह तुम्हारे नथनों से निकलने न लगे और तुम को उससे घृणा न हो जाए, क्योंकि तुम लोगों ने यहोवा को जो तुम्हारे मध्य में है तुच्छ जाना है, और उसके सामने यह कहकर रोए हो कि हम मिस्र से क्यों निकल आए?’”

21 फिर मूसा ने कहा, “जिन लोगों के बीच मैं हूँ उनमें से छः लाख तो प्यादे ही हैं; और तूने कहा है कि मैं उन्हें इतना माँस दूँगा, कि वे महीने भर उसे खाते ही रहेंगे।

22 क्या वे सब भेड़-बकरी गाय-बैल उनके लिये मारे जाएँ कि उनको माँस मिले? या क्या समुद्र की सब मछलियाँ उनके लिये इकट्ठी की जाएँ, कि उनको माँस मिले?”

23 यहोवा ने मूसा से कहा, “क्या यहोवा का हाथ छोटा हो गया है? अब तू देखेगा कि मेरा वचन जो मैंने तुझ से कहा है वह पूरा होता है कि नहीं।”

24 तब मूसा ने बाहर जाकर प्रजा के लोगों को यहोवा की बातें कह सुनाईं; और उनके पुरनियों में से सत्तर पुरुष इकट्ठा करके तम्बू के चारों ओर खड़े किए।

25 तब यहोवा बादल में होकर उतरा और उसने मूसा से बातें की, और जो आत्मा उसमें थी उसमें से लेकर उन सत्तर पुरनियों में समवा दिया; और जब वह आत्मा उनमें आई तब वे भविष्यद्वाणी करने लगे[fn] *। परन्तु फिर और कभी न की।

26 परन्तु दो मनुष्य छावनी में रह गए थे, जिसमें से एक का नाम एलदाद और दूसरे का मेदाद था, उनमें भी आत्मा आई; ये भी उन्हीं में से थे जिनके नाम लिख लिए गये थे, पर तम्बू के पास न गए थे, और वे छावनी ही में भविष्यद्वाणी करने लगे।

27 तब किसी जवान ने दौड़कर मूसा को बताया, कि एलदाद और मेदाद छावनी में भविष्यद्वाणी कर रहे हैं।

28 तब नून का पुत्र यहोशू, जो मूसा का टहलुआ और उसके चुने हुए वीरों में से था, उसने मूसा से कहा, “हे मेरे स्वामी मूसा, उनको रोक दे।”

29 मूसा ने उनसे कहा, “क्या तू मेरे कारण जलता है? भला होता कि यहोवा की सारी प्रजा के लोग भविष्यद्वक्ता होते, और यहोवा अपना आत्मा उन सभी में समवा देता!” (1 कुरि. 14:5)

30 तब फिर मूसा इस्राएल के पुरनियों समेत छावनी में चला गया।

छावनी में बटेरें

31 तब यहोवा की ओर से एक बड़ी आँधी आई, और वह समुद्र से बटेरें उड़ाके छावनी पर और उसके चारों ओर इतनी ले आई, कि वे इधर-उधर एक दिन के मार्ग तक भूमि पर दो हाथ के लगभग ऊँचे तक छा गए।

32 और लोगों ने उठकर उस दिन भर और रात भर, और दूसरे दिन भी दिन भर बटेरों को बटोरते रहे; जिसने कम से कम बटोरा उसने दस होमेर बटोरा; और उन्होंने उन्हें छावनी के चारों ओर फैला दिया।

33 माँस उनके मुँह ही में था, और वे उसे खाने न पाए थे कि यहोवा का कोप उन पर भड़क उठा, और उसने उनको बहुत बड़ी मार से मारा।

34 और उस स्थान का नाम किब्रोतहत्तावा पड़ा, क्योंकि जिन लोगों ने माँस की लालसा की थी उनको वहाँ मिट्टी दी गई। (1 कुरि. 10:6)

35 फिर इस्राएली किब्रोतहत्तावा से प्रस्थान करके हसेरोत में पहुँचे, और वहीं रहे।

मूसा की श्रेष्ठता का प्रमाण

12  1 मूसा ने एक कूशी स्त्री के साथ विवाह कर लिया था। इसलिए मिर्याम और हारून उसकी उस विवाहिता कूशी स्त्री के कारण उसकी निन्दा करने लगे;

2 उन्होंने कहा, “क्या यहोवा ने केवल मूसा ही के साथ बातें की हैं? क्या उसने हम से भी बातें नहीं की?” उनकी यह बात यहोवा ने सुनी।

3 मूसा तो पृथ्वी भर के रहनेवाले सब मनुष्यों से बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था[fn] *।

4 इसलिए यहोवा ने एकाएक मूसा और हारून और मिर्याम से कहा, “तुम तीनों मिलापवाले तम्बू के पास निकल आओ।” तब वे तीनों निकल आए।

5 तब यहोवा ने बादल के खम्भे में उतरकर तम्बू के द्वार पर खड़ा होकर हारून और मिर्याम को बुलाया; अतः वे दोनों उसके पास निकल आए।

6 तब यहोवा ने कहा, “मेरी बातें सुनो यदि तुम में कोई भविष्यद्वक्ता हो, तो उस पर मैं यहोवा दर्शन के द्वारा अपने आप को प्रगट करूँगा, या स्वप्न में उससे बातें करूँगा।

7 परन्तु मेरा दास मूसा ऐसा नहीं है; वह तो मेरे सब घराने में विश्वासयोग्य है।

8 उससे मैं गुप्त रीति से नहीं, परन्तु आमने-सामने और प्रत्यक्ष होकर[fn] * बातें करता हूँ; और वह यहोवा का स्वरूप निहारने पाता है। इसलिए तुम मेरे दास मूसा की निन्दा करते हुए क्यों नहीं डरे?”

9 तब यहोवा का कोप उन पर भड़का, और वह चला गया;

10 तब वह बादल तम्बू के ऊपर से उठ गया, और मिर्याम कोढ़ से हिम के समान श्वेत हो गई। और हारून ने मिर्याम की ओर दृष्टि की, और देखा कि वह कोढ़िन हो गई है।

11 तब हारून मूसा से कहने लगा, “हे मेरे प्रभु, हम दोनों ने जो मूर्खता की वरन् पाप भी किया, यह पाप हम पर न लगने दे।

12 और मिर्याम को उस मरे हुए के समान[fn] * न रहने दे, जिसकी देह अपनी माँ के पेट से निकलते ही अधगली हो।”

13 अतः मूसा ने यह कहकर यहोवा की दुहाई दी, “हे परमेश्वर, कृपा कर, और उसको चंगा कर।”

14 यहोवा ने मूसा से कहा, “यदि उसके पिता ने उसके मुँह पर थूका ही होता, तो क्या सात दिन तक वह लज्जित न रहती? इसलिए वह सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रहे, उसके बाद वह फिर भीतर आने पाए।”

15 अतः मिर्याम सात दिन तक छावनी से बाहर बन्द रही, और जब तक मिर्याम फिर आने न पाई तब तक लोगों ने प्रस्थान न किया।

16 उसके बाद उन्होंने हसेरोत से प्रस्थान करके पारान नामक जंगल में अपने डेरे खड़े किए।

भेदियों को कनान भेजा जाना

13  1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 “कनान देश जिसे मैं इस्राएलियों को देता हूँ, उसका भेद लेने के लिये पुरुषों को भेज; वे उनके पितरों के प्रति गोत्र का एक-एक प्रधान पुरुष हों।”

3 यहोवा से यह आज्ञा पाकर मूसा ने ऐसे पुरुषों को पारान जंगल से भेज दिया, जो सब के सब इस्राएलियों के प्रधान थे।

4 उनके नाम ये हैं रूबेन के गोत्र में से जक्कूर का पुत्र शम्मू;

5 शिमोन के गोत्र में से होरी का पुत्र शापात;

6 यहूदा के गोत्र में से यपुन्ने का पुत्र कालेब;

7 इस्साकार के गोत्र में से यूसुफ का पुत्र यिगाल;

8 एप्रैम के गोत्र में से नून का पुत्र होशे;

9 बिन्यामीन के गोत्र में से रापू का पुत्र पलती;

10 जबूलून के गोत्र में से सोदी का पुत्र गद्दीएल;

11 यूसुफ वंशियों में, मनश्शे के गोत्र में से सूसी का पुत्र गद्दी;

12 दान के गोत्र में से गमल्ली का पुत्र अम्मीएल;

13 आशेर के गोत्र में से मीकाएल का पुत्र सतूर;

14 नप्ताली के गोत्र में से वोप्सी का पुत्र नहूबी;

15 गाद के गोत्र में से माकी का पुत्र गूएल।

16 जिन पुरुषों को मूसा ने देश का भेद लेने के लिये भेजा था उनके नाम ये ही हैं। और नून के पुत्र होशे का नाम मूसा ने यहोशू रखा।

17 उनको कनान देश के भेद लेने को भेजते समय मूसा ने कहा, “इधर से, अर्थात् दक्षिण देश होकर जाओ,

18 और पहाड़ी देश में जाकर उस देश को देख लो कि कैसा है, और उसमें बसे हुए लोगों को भी देखो कि वे बलवान हैं या निर्बल, थोड़े हैं या बहुत,

19 और जिस देश में वे बसे हुए हैं वह कैसा है, अच्छा या बुरा, और वे कैसी-कैसी बस्तियों में बसे हुए हैं, और तम्बूओं में रहते हैं या गढ़ अथवा किलों में रहते हैं,

20 और वह देश कैसा है, उपजाऊ है या बंजर है, और उसमें वृक्ष हैं या नहीं। और तुम हियाव बाँधे चलो, और उस देश की उपज में से कुछ लेते भी आना।” वह समय पहली पक्की दाखों का था।

21 इसलिए वे चल दिए, और सीन नामक जंगल से ले रहोब तक, जो हमात के मार्ग में है, सारे देश को देखभालकर उसका भेद लिया।

22 वे दक्षिण देश होकर चले, और हेब्रोन तक गए; वहाँ अहीमन, शेशै, और तल्मै नामक अनाकवंशी रहते थे। हेब्रोन मिस्र के सोअन से सात वर्ष पहले बसाया गया था।

23 तब वे एशकोल नामक नाले[fn] * तक गए, और वहाँ से एक डाली दाखों के गुच्छे समेत तोड़ ली, और दो मनुष्य उसे एक लाठी पर लटकाए हुए उठा ले चले गए; और वे अनारों और अंजीरों में से भी कुछ-कुछ ले आए।

24 इस्राएली वहाँ से जो दाखों का गुच्छा तोड़ ले आए थे, इस कारण उस स्थान का नाम एशकोल नाला रखा गया।

भेदियों का वापस लौटना

25 चालीस दिन के बाद[fn] * वे उस देश का भेद लेकर लौट आए।

26 और पारान जंगल के कादेश नामक स्थान में मूसा और हारून और इस्राएलियों की सारी मण्डली के पास पहुँचे; और उनको और सारी मण्डली को संदेशा दिया, और उस देश के फल उनको दिखाए।

27 उन्होंने मूसा से यह कहकर वर्णन किया, “जिस देश में तूने हमको भेजा था उसमें हम गए; उसमें सचमुच दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं, और उसकी उपज में से यही है।

28 परन्तु उस देश के निवासी बलवान हैं, और उसके नगर गढ़वाले हैं और बहुत बड़े हैं; और फिर हमने वहाँ अनाकवंशियों को भी देखा।

29 दक्षिण देश में तो अमालेकी बसे हुए हैं; और पहाड़ी देश में हित्ती, यबूसी, और एमोरी रहते हैं; और समुद्र के किनारे-किनारे और यरदन नदी के तट पर कनानी बसे हुए हैं।”

30 पर कालेब ने मूसा के सामने प्रजा के लोगों को चुप कराने के विचार से कहा, “हम अभी चढ़कर उस देश को अपना कर लें; क्योंकि निःसन्देह हम में ऐसा करने की शक्ति है।”

31 पर जो पुरुष उसके संग गए थे उन्होंने कहा, “उन लोगों पर चढ़ने की शक्ति हम में नहीं है; क्योंकि वे हम से बलवान हैं।”

32 और उन्होंने इस्राएलियों के सामने उस देश की जिसका भेद उन्होंने लिया था यह कहकर निन्दा भी की, “वह देश जिसका भेद लेने को हम गये थे ऐसा है, जो अपने निवासियों को निगल जाता है; और जितने पुरुष हमने उसमें देखे वे सब के सब बड़े डील-डौल के हैं।

33 फिर हमने वहाँ नपीलों को, अर्थात् नपीली जातिवाले अनाकवंशियों को देखा; और हम अपनी दृष्टि में तो उनके सामने टिड्डे के सामान दिखाई पड़ते थे, और ऐसे ही उनकी दृष्टि में मालूम पड़ते थे।”

लोगों का बुड़बुड़ाना

14  1 तब सारी मण्डली चिल्ला उठी; और रात भर वे लोग रोते ही रहे। (इब्रा. 3:16-18)

2 और सब इस्राएली मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगे; और सारी मण्डली उससे कहने लगी, “भला होता कि हम मिस्र ही में मर जाते! या इस जंगल ही में मर जाते! (1 कुरि. 10:10)

3 यहोवा हमको उस देश में ले जाकर क्यों तलवार से मरवाना चाहता है? हमारी स्त्रियाँ और बाल-बच्चे तो लूट में चले जाएँगे; क्या हमारे लिये अच्छा नहीं कि हम मिस्र देश को लौट जाएँ?”

4 फिर वे आपस में कहने लगे, “आओ, हम किसी को अपना प्रधान बना लें, और मिस्र को लौट चलें।” (प्रेरि. 7:39)

5 तब मूसा और हारून इस्राएलियों की सारी मण्डली के सामने मुँह के बल गिरे[fn] *।

6 और नून का पुत्र यहोशू और यपुन्ने का पुत्र कालेब, जो देश के भेद लेनेवालों में से थे, अपने-अपने वस्त्र फाड़कर,

7 इस्राएलियों की सारी मण्डली से कहने लगे, “जिस देश का भेद लेने को हम इधर-उधर घूम कर आए हैं, वह अत्यन्त उत्तम देश है।

8 यदि यहोवा हम से प्रसन्न हो, तो हमको उस देश में, जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं, पहुँचाकर उसे हमें दे देगा।

9 केवल इतना करो कि तुम यहोवा के विरुद्ध बलवा न करो; और न उस देश के लोगों से डरो, क्योंकि वे हमारी रोटी ठहरेंगे; छाया उनके ऊपर से हट गई है, और यहोवा हमारे संग है; उनसे न डरो।”

10 तब सारी मण्डली चिल्ला उठी, कि इनको पथरवाह करो। तब यहोवा का तेज मिलापवाले तम्बू में सब इस्राएलियों पर प्रकाशमान हुआ।

लोगों के लिये मूसा की विनती

11 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “ये लोग कब तक मेरा तिरस्कार करते रहेंगे? और मेरे सब आश्चर्यकर्मों को देखने पर भी कब तक मुझ पर विश्वास न करेंगे?

12 मैं उन्हें मरी से मारूँगा, और उनके निज भाग से उन्हें निकाल दूँगा, और तुझ से एक जाति उत्पन्न करूँगा जो उनसे बड़ी और बलवन्त होगी।”

13 मूसा ने यहोवा से कहा, “तब तो मिस्री जिनके मध्य में से तू अपनी सामर्थ्य दिखाकर उन लोगों को निकाल ले आया है यह सुनेंगे,

14 और इस देश के निवासियों से कहेंगे। उन्होंने तो यह सुना है कि तू जो यहोवा है इन लोगों के मध्य में रहता है; और प्रत्यक्ष दिखाई देता है, और तेरा बादल उनके ऊपर ठहरा रहता है, और तू दिन को बादल के खम्भे में, और रात को अग्नि के खम्भे में होकर इनके आगे-आगे चला करता है।

15 इसलिए यदि तू इन लोगों को एक ही बार में मार डाले, तो जिन जातियों ने तेरी कीर्ति सुनी है वे कहेंगी,

16 कि यहोवा उन लोगों को उस देश में जिसे उसने उन्हें देने की शपथ खाई थी, पहुँचा न सका, इस कारण उसने उन्हें जंगल में घात कर डाला है। (1 कुरि. 10:5)

17 इसलिए अब प्रभु की सामर्थ्य की महिमा तेरे कहने के अनुसार हो,

18 कि यहोवा कोप करने में धीरजवन्त और अति करुणामय है, और अधर्म और अपराध का क्षमा करनेवाला है, परन्तु वह दोषी को किसी प्रकार से निर्दोष न ठहराएगा, और पूर्वजों के अधर्म का दण्ड उनके बेटों, और पोतों, और परपोतों को देता है।

19 अब इन लोगों के अधर्म को अपनी बड़ी करुणा के अनुसार, और जैसे तू मिस्र से लेकर यहाँ तक क्षमा करता रहा है वैसे ही अब भी क्षमा कर दे।”

20 यहोवा ने कहा, “तेरी विनती के अनुसार मैं क्षमा करता हूँ;

21 परन्तु मेरे जीवन की शपथ सचमुच सारी पृथ्वी यहोवा की महिमा से परिपूर्ण हो जाएगी; (इब्रा. 3:11)

22 उन सब लोगों ने जिन्होंने मेरी महिमा मिस्र देश में और जंगल में देखी, और मेरे किए हुए आश्चर्यकर्मों को देखने पर भी दस बार मेरी परीक्षा की, और मेरी बातें नहीं मानी, (इब्रा. 3:18)

23 इसलिए जिस देश के विषय मैंने उनके पूर्वजों से शपथ खाई, उसको वे कभी देखने न पाएँगे; अर्थात् जितनों ने मेरा अपमान किया है उनमें से कोई भी उसे देखने न पाएगा। (1 कुरि. 10:5)

24 परन्तु इस कारण से कि मेरे दास कालेब के साथ और ही आत्मा है, और उसने पूरी रीति से मेरा अनुकरण किया है, मैं उसको उस देश में जिसमें वह हो आया है पहुँचाऊँगा, और उसका वंश उस देश का अधिकारी होगा।

25 अमालेकी और कनानी लोग तराई में रहते हैं, इसलिए कल तुम घूमकर प्रस्थान करो, और लाल समुद्र के मार्ग से जंगल में जाओ।”

बुड़बुड़ाने का दण्ड

26 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,

27 “यह बुरी मण्डली मुझ पर बुड़बुड़ाती रहती है, उसको मैं कब तक सहता रहूँ? इस्राएली जो मुझ पर बड़बड़ाते रहते हैं, उनका यह बुड़बुड़ाना मैंने तो सुना है।

28 इसलिए उनसे कह कि यहोवा की यह वाणी है, कि मेरे जीवन की शपथ जो बातें तुमने मेरे सुनते कही हैं, निःसन्देह मैं उसी के अनुसार तुम्हारे साथ व्यवहार करूँगा।

29 तुम्हारी शव इसी जंगल में पड़ी रहेंगी; और तुम सब में से बीस वर्ष की या उससे अधिक आयु के जितने गिने गए थे, और मुझ पर बड़बड़ाते थे, (इब्रा. 3:17)

30 उसमें से यपुन्ने के पुत्र कालेब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़ कोई भी उस देश में न जाने पाएगा, जिसके विषय मैंने शपथ खाई है कि तुम को उसमें बसाऊँगा। (1 कुरि. 10:5, यहू. 1:5)

31 परन्तु तुम्हारे बाल-बच्चे जिनके विषय तुमने कहा है, कि वे लूट में चले जाएँगे, उनको मैं उस देश में पहुँचा दूँगा; और वे उस देश को जान लेंगे जिसको तुमने तुच्छ जाना है।

32 परन्तु तुम लोगों की शव इसी जंगल में पड़े रहेंगे।

33 और जब तक तुम्हारे शव जंगल में न गल जाएँ तब तक, अर्थात् चालीस वर्ष तक, तुम्हारे बाल-बच्चे जंगल में तुम्हारे व्यभिचार का फल भोगते हुए भटकते रहेंगे। (प्रेरि. 7:36)

34 जितने दिन तुम उस देश का भेद लेते रहे, अर्थात् चालीस दिन उनकी गिनती के अनुसार, एक दिन के बदले एक वर्ष, अर्थात् चालीस वर्ष तक तुम अपने अधर्म का दण्ड उठाए रहोगे, तब तुम जान लोगे कि मेरा विरोध क्या है। (प्रेरि. 13:18)

35 मैं यहोवा यह कह चुका हूँ, कि इस बुरी मण्डली के लोग जो मेरे विरुद्ध इकट्ठे हुए हैं इसी जंगल में मर मिटेंगें; और निःसन्देह ऐसा ही करूँगा भी।” (इब्रा. 3:16-18)

36 तब जिन पुरुषों को मूसा ने उस देश के भेद लेने के लिये भेजा था, और उन्होंने लौटकर उस देश की नामधराई करके सारी मण्डली को कुड़कुड़ाने के लिये उभारा था, (यहू. 1:5)

37 उस देश की वे नामधराई करनेवाले पुरुष यहोवा के मारने से उसके सामने मर गये।

38 परन्तु देश के भेद लेनेवाले पुरुषों में से नून का पुत्र यहोशू और यपुन्ने का पुत्र कालेब दोनों जीवित रहे।

39 तब मूसा ने ये बातें सब इस्राएलियों को कह सुनाई और वे बहुत विलाप करने लगे।

40 और वे सवेरे उठकर यह कहते हुए पहाड़ की चोटी पर चढ़ने लगे, “हमने पाप किया है; परन्तु अब तैयार हैं, और उस स्थान को जाएँगे जिसके विषय यहोवा ने वचन दिया था।”

41 तब मूसा ने कहा, “तुम यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन क्यों करते हो? यह सफल न होगा।

42 यहोवा तुम्हारे मध्य में नहीं है, मत चढ़ो, नहीं तो शत्रुओं से हार जाओगे।

43 वहाँ तुम्हारे आगे अमालेकी और कनानी लोग हैं, इसलिए तुम तलवार से मारे जाओगे; तुम यहोवा को छोड़कर फिर गए हो, इसलिए वह तुम्हारे संग नहीं रहेगा।”

44 परन्तु वे ढिठाई करके पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए, परन्तु यहोवा की वाचा का सन्दूक, और मूसा, छावनी से न हटे।

45 तब अमालेकी और कनानी जो उस पहाड़ पर रहते थे उन पर चढ़ आए, और होर्मा तक उनको मारते चले आए।

अन्नबलियों और अर्घों की विधि

15  1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 “इस्राएलियों से कह कि जब तुम अपने निवास के देश में पहुँचो[fn] *, जो मैं तुम्हें देता हूँ,

3 और यहोवा के लिये क्या होमबलि, क्या मेलबलि, कोई हव्य चढ़ाओं, चाहे वह विशेष मन्नत पूरी करने का हो चाहे स्वेच्छाबलि का हो, चाहे तुम्हारे नियत समयों में का हो, या वह चाहे गाय-बैल चाहे भेड़-बकरियों में का हो, जिससे यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्ध हो;

4 तब उस होमबलि या मेलबलि के संग भेड़ के बच्चे यहोवा के लिये चौथाई हीन तेल से सना हुआ एपा का दसवाँ अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाना,

5 और चौथाई हीन दाखमधु अर्घ करके देना।

6 और मेढ़े के बलि के साथ तिहाई हीन तेल से सना हुआ एपा का दो दसवाँ अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाना;

7 और उसका अर्घ यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला तिहाई हीन दाखमधु देना।

8 और जब तू यहोवा को होमबलि या किसी विशेष मन्नत पूरी करने के लिये बलि या मेलबलि करके बछड़ा चढ़ाए,

9 तब बछड़े का चढ़ानेवाला उसके संग आधा हीन तेल से सना हुआ एपा का तीन दसवाँ अंश मैदा अन्नबलि करके चढ़ाए।

10 और उसका अर्घ आधा हीन दाखमधु चढ़ाए, वह यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य होगा।

11 “एक-एक बछड़े, या मेढ़े, या भेड़ के बच्चे, या बकरी के बच्चे के साथ इसी रीति चढ़ावा चढ़ाया जाए।

12 तुम्हारे बलिपशुओं की जितनी गिनती हो, उसी गिनती के अनुसार एक-एक के साथ ऐसा ही किया करना।

13 जितने देशी हों वे यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य चढ़ाते समय ये काम इसी रीति से किया करें।

परदेशियों के लिये नियम

14 “और यदि कोई परदेशी तुम्हारे संग रहता हो, या तुम्हारी किसी पीढ़ी में तुम्हारे बीच कोई रहनेवाला हो, और वह यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य चढ़ाना चाहे, तो जिस प्रकार तुम करोगे उसी प्रकार वह भी करे।

15 मण्डली के लिये, अर्थात् तुम्हारे और तुम्हारे संग रहनेवाले परदेशी दोनों के लिये एक ही विधि हो; तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में यह सदा की विधि ठहरे, कि जैसे तुम हो वैसे ही परदेशी भी यहोवा के लिये ठहरता है।

16 तुम्हारे और तुम्हारे संग रहनेवाले परदेशियों के लिये एक ही व्यवस्था और एक ही नियम है।”

17 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

18 “इस्राएलियों को मेरा यह वचन सुना, कि जब तुम उस देश में पहुँचो जहाँ मैं तुम को लिये जाता हूँ,

19 और उस देश की उपज का अन्न खाओ, तब यहोवा के लिये उठाई हुई भेंट चढ़ाया करो।

20 अपने पहले गुँधे हुए आटे की एक पापड़ी उठाई हुई भेंट करके यहोवा के लिये चढ़ाना; जैसे तुम खलिहान में से उठाई हुई भेंट चढ़ाओगे वैसे ही उसको भी उठाया करना।

21 अपनी पीढ़ी-पीढ़ी में अपने पहले गुँधे हुए आटे में से यहोवा को उठाई हुई भेंट दिया करना।

भूल से किया गया पाप

22 “फिर जब तुम इन सब आज्ञाओं में से जिन्हें यहोवा ने मूसा को दिया है किसी का उल्लंघन भूल से करो,

23 अर्थात् जिस दिन से यहोवा आज्ञा देने लगा, और आगे की तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में उस दिन से उसने जितनी आज्ञाएँ मूसा के द्वारा दी हैं,

24 उसमें यदि भूल से किया हुआ पाप मण्डली के बिना जाने हुआ हो, तो सारी मण्डली यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला होमबलि करके एक बछड़ा, और उसके संग नियम के अनुसार उसका अन्नबलि और अर्घ चढ़ाए, और पापबलि करके एक बकरा चढ़ाए।

25 तब याजक इस्राएलियों की सारी मण्डली के लिये प्रायश्चित करे, और उनकी क्षमा की जाएगी; क्योंकि उनका पाप भूल से हुआ, और उन्होंने अपनी भूल के लिये अपना चढ़ावा, अर्थात् यहोवा के लिये हव्य और अपना पापबलि उसके सामने चढ़ाया।

26 इसलिए इस्राएलियों की सारी मण्डली का, और उसके बीच रहनेवाले परदेशी का भी, वह पाप क्षमा किया जाएगा, क्योंकि वह सब लोगों के अनजाने में हुआ।

27 “फिर यदि कोई मनुष्य भूल से पाप करे, तो वह एक वर्ष की एक बकरी पापबलि करके चढ़ाए।

28 और याजक भूल से पाप करनेवाले मनुष्य के लिये यहोवा के सामने प्रायश्चित करे; अतः इस प्रायश्चित के कारण उसका वह पाप क्षमा किया जाएगा।

29 जो कोई भूल से कुछ करे, चाहे वह इस्राएलियों में देशी हो, चाहे तुम्हारी बीच परदेशी होकर रहता हो, सब के लिये तुम्हारी एक ही व्यवस्था हो।

जान-बूझकर किये गए पाप सम्बन्धित नियम

30 “परन्तु क्या देशी क्या परदेशी, जो मनुष्य ढिठाई से कुछ करे, वह यहोवा का अनादर करनेवाला ठहरेगा, और वह प्राणी अपने लोगों में से नाश किया जाए।

31 वह जो यहोवा का वचन तुच्छ जानता है, और उसकी आज्ञा का टालनेवाला है, इसलिए वह मनुष्य निश्चय नाश किया जाए; उसका अधर्म उसी के सिर पड़ेगा।”

विश्रामदिन के नियम का उल्लंघन

32 जब इस्राएली जंगल में रहते थे, उन दिनों एक मनुष्य विश्राम के दिन लकड़ी बीनता हुआ मिला।

33 और जिनको वह लकड़ी बीनता हुआ मिला, वे उसको मूसा और हारून, और सारी मण्डली के पास ले गए।

34 उन्होंने उसको हवालात में रखा, क्योंकि ऐसे मनुष्य से क्या करना चाहिये वह प्रगट नहीं किया गया था।

35 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “वह मनुष्य निश्चय मार डाला जाए; सारी मण्डली के लोग छावनी के बाहर उस पर पथरवाह करें।”

36 इस प्रकार जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी थी उसी के अनुसार सारी मण्डली के लोगों ने उसको छावनी से बाहर ले जाकर पथरवाह किया, और वह मर गया।

स्मरण करानेवाली झालर

37 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

38 “इस्राएलियों से कह, कि अपनी पीढ़ी-पीढ़ी में अपने वस्त्रों के छोर पर झालर लगाया करना, और एक-एक छोर की झालर पर एक नीला फीता लगाया करना;

39 और वह तुम्हारे लिये ऐसी झालर ठहरे, जिससे जब-जब तुम उसे देखो तब-तब यहोवा की सारी आज्ञाएँ तुम को स्मरण आ जाएँ; और तुम उनका पालन करो, और तुम अपने-अपने मन और अपनी-अपनी दृष्टि के वश में होकर व्यभिचार न करते फिरो जैसे करते आए हो। (रोम. 11:16, मत्ती 23:5)

40 परन्तु तुम यहोवा की सब आज्ञाओं को स्मरण करके उनका पालन करो, और अपने परमेश्वर के लिये पवित्र बनो।

41 मैं यहोवा तुम्हारा परमेश्वर हूँ, जो तुम्हें मिस्र देश से निकाल ले आया कि तुम्हारा परमेश्वर ठहरूँ; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूँ।”

कोरह, दातान और अबीराम का बलवा

16  1 कोरह जो लेवी का परपोता, कहात का पोता, और यिसहार का पुत्र था, वह एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम, और पेलेत के पुत्र ओन,

2 इन तीनों रूबेनियों से मिलकर मण्डली के ढाई सौ प्रधान, जो सभासद और नामी थे, उनको संग लिया;

3 और वे मूसा और हारून के विरुद्ध उठ खड़े हुए, और उनसे कहने लगे, “तुमने बहुत किया, अब बस करो; क्योंकि सारी मण्डली का एक-एक मनुष्य पवित्र है[fn] *, और यहोवा उनके मध्य में रहता है; इसलिए तुम यहोवा की मण्डली में ऊँचे पदवाले क्यों बन बैठे हो?”

4 यह सुनकर मूसा अपने मुँह के बल गिरा;

5 फिर उसने कोरह और उसकी सारी मण्डली से कहा, “सवेरे को यहोवा दिखा देगा कि उसका कौन है, और पवित्र कौन है, और उसको अपने समीप बुला लेगा; जिसको वह आप चुन लेगा उसी को अपने समीप बुला भी लेगा।

6 इसलिए, हे कोरह, तुम अपनी सारी मण्डली समेत यह करो, अर्थात् अपना-अपना धूपदान ठीक करो;

7 और कल उनमें आग रखकर यहोवा के सामने धूप देना, तब जिसको यहोवा चुन ले वही पवित्र ठहरेगा। हे लेवियों, तुम भी बड़ी-बड़ी बातें करते हो, अब बस करो।”

8 फिर मूसा ने कोरह से कहा, “हे लेवियों, सुनो,

9 क्या यह तुम्हें छोटी बात जान पड़ती है कि इस्राएल के परमेश्वर ने तुम को इस्राएल की मण्डली से अलग करके अपने निवास की सेवकाई करने, और मण्डली के सामने खड़े होकर उसकी भी सेवा टहल करने के लिये अपने समीप बुला लिया है;

10 और तुझे और तेरे सब लेवी भाइयों को भी अपने समीप बुला लिया है? फिर भी तुम याजक पद के भी खोजी हो?

11 और इसी कारण तूने अपनी सारी मण्डली को यहोवा के विरुद्ध इकट्ठी किया है[fn] *; हारून कौन है कि तुम उस पर बड़बड़ाते हो?”

12 फिर मूसा ने एलीआब के पुत्र दातान और अबीराम को बुलवा भेजा; परन्तु उन्होंने कहा, “हम तेरे पास नहीं आएँगे।

13 क्या यह एक छोटी बात है कि तू हमको ऐसे देश से जिसमें दूध और मधु की धाराएँ बहती है इसलिए निकाल लाया है, कि हमें जंगल में मार डालें, फिर क्या तू हमारे ऊपर प्रधान भी बनकर अधिकार जताता है?

14 फिर तू हमें ऐसे देश में जहाँ दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं नहीं पहुँचाया, और न हमें खेतों और दाख की बारियों का अधिकारी बनाया। क्या तू इन लोगों की आँखों में धूल डालेगा?[fn] * हम तो नहीं आएँगे।”

15 तब मूसा का कोप बहुत भड़क उठा, और उसने यहोवा से कहा, “उन लोगों की भेंट की ओर दृष्टि न कर। मैंने तो उनसे एक गदहा भी नहीं लिया, और न उनमें से किसी की हानि की है।”

16 तब मूसा ने कोरह से कहा, “कल तू अपनी सारी मण्डली को साथ लेकर हारून के साथ यहोवा के सामने हाजिर होना;

17 और तुम सब अपना-अपना धूपदान लेकर उनमें धूप देना, फिर अपना-अपना धूपदान जो सब समेत ढाई सौ होंगे यहोवा के सामने ले जाना; विशेष करके तू और हारून अपना-अपना धूपदान ले जाना।”

18 इसलिए उन्होंने अपना-अपना धूपदान लेकर और उनमें आग रखकर उन पर धूप डाला; और मूसा और हारून के साथ मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़े हुए।

19 और कोरह ने सारी मण्डली को उनके विरुद्ध मिलापवाले तम्बू के द्वार पर इकट्ठा कर लिया। तब यहोवा का तेज सारी मण्डली को दिखाई दिया।

20 तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,

21 “उस मण्डली के बीच में से अलग हो जाओ कि मैं उन्हें पल भर में भस्म कर डालूँ।”

22 तब वे मुँह के बल गिरकर कहने लगे, “हे परमेश्वर, हे सब प्राणियों के आत्माओं के परमेश्वर, क्या एक पुरुष के पाप के कारण तेरा क्रोध सारी मण्डली पर होगा?” (इब्रा. 12:9)

23 यहोवा ने मूसा से कहा,

24 “मण्डली के लोगों से कह कि कोरह, दातान, और अबीराम के तम्बूओं के आस-पास से हट जाओ।”

25 तब मूसा उठकर दातान और अबीराम के पास गया; और इस्राएलियों के वृद्ध लोग उसके पीछे-पीछे गए।

26 और उसने मण्डली के लोगों से कहा, “तुम उन दुष्ट मनुष्यों के डेरों के पास से हट जाओ, और उनकी कोई वस्तु न छूओ, कहीं ऐसा न हो कि तुम भी उनके सब पापों में फँसकर मिट जाओ।” (2 तीमु. 2:19)

27 यह सुनकर लोग कोरह, दातान, और अबीराम के तम्बूओं के आस-पास से हट गए; परन्तु दातान और अबीराम निकलकर अपनी पत्नियों, बेटों, और बाल-बच्चों समेत अपने-अपने डेरे के द्वार पर खड़े हुए।

28 तब मूसा ने कहा, “इससे तुम जान लोगे कि यहोवा ने मुझे भेजा है कि यह सब काम करूँ, क्योंकि मैंने अपनी इच्छा से कुछ नहीं किया।

29 यदि उन मनुष्यों की मृत्यु और सब मनुष्यों के समान हो, और उनका दण्ड सब मनुष्यों के समान हो, तब जानो कि मैं यहोवा का भेजा हुआ नहीं हूँ।

30 परन्तु यदि यहोवा अपनी अनोखी शक्ति प्रगट करे, और पृथ्वी अपना मुँह पसारकर उनको, और उनका सब कुछ निगल जाए, और वे जीते जी अधोलोक में जा पड़ें, तो तुम समझ लो कि इन मनुष्यों ने यहोवा का अपमान किया है।”

31 वह ये सब बातें कह ही चुका था कि भूमि उन लोगों के पाँव के नीचे फट गई;

32 और पृथ्वी ने अपना मुँह खोल दिया और उनको और उनके समस्त घरबार का सामान, और कोरह के सब मनुष्यों और उनकी सारी सम्पत्ति को भी निगल लिया।

33 और वे और उनका सारा घरबार जीवित ही अधोलोक में जा पड़े; और पृथ्वी ने उनको ढाँप लिया, और वे मण्डली के बीच में से नष्ट हो गए।

34 और जितने इस्राएली उनके चारों ओर थे वे उनका चिल्लाना सुन यह कहते हुए भागे, “कहीं पृथ्वी हमको भी निगल न ले!”

35 तब यहोवा के पास से आग निकली, और उन ढाई सौ धूप चढ़ानेवालों को भस्म कर डाला।

धूपदान

36 तब यहोवा ने मूसा से कहा,

37 “हारून याजक के पुत्र एलीआजर से कह कि उन धूपदानों को आग में से उठा ले; और आग के अंगारों को उधर ही छितरा दे, क्योंकि वे पवित्र हैं।

38 जिन्होंने पाप करके अपने ही प्राणों की हानि की है, उनके धूपदानों के पत्तर पीट-पीट कर बनाए जाएँ जिससे कि वह वेदी के मढ़ने के काम आए; क्योंकि उन्होंने यहोवा के सामने रखा था; इससे वे पवित्र हैं। इस प्रकार वह इस्राएलियों के लिये एक निशान ठहरेगा।” (इब्रा. 12:3)

39 इसलिए एलीआजर याजक ने उन पीतल के धूपदानों को, जिनमें उन जले हुए मनुष्यों ने धूप चढ़ाया था, लेकर उनके पत्तर पीट कर वेदी के मढ़ने के लिये बनवा दिए,

40 कि इस्राएलियों को इस बात का स्मरण रहे कि कोई दूसरा, जो हारून के वंश का न हो, यहोवा के सामने धूप चढ़ाने को समीप न जाए, ऐसा न हो कि वह भी कोरह और उसकी मण्डली के समान नष्ट हो जाए, जैसे कि यहोवा ने मूसा के द्वारा उसको आज्ञा दी थी।

हारून द्वारा लोगों की रक्षा

41 दूसरे दिन इस्राएलियों की सारी मण्डली यह कहकर मूसा और हारून पर बुड़बुड़ाने लगी, “यहोवा की प्रजा को तुमने मार डाला है।”

42 और जब मण्डली के लोग मूसा और हारून के विरुद्ध इकट्ठे हो रहे थे, तब उन्होंने मिलापवाले तम्बू की ओर दृष्टि की; और देखा, कि बादल ने उसे छा लिया है, और यहोवा का तेज दिखाई दे रहा है।

43 तब मूसा और हारून मिलापवाले तम्बू के सामने आए,

44 तब यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,

45 “तुम उस मण्डली के लोगों के बीच से हट जाओ, कि मैं उन्हें पल भर में भस्म कर डालूँ।” तब वे मुँह के बल गिरे।

46 और मूसा ने हारून से कहा, “धूपदान को लेकर उसमें वेदी पर से आग रखकर उस पर धूप डाल, मण्डली के पास फुर्ती से जाकर उसके लिये प्रायश्चित कर; क्योंकि यहोवा का कोप अत्यन्त भड़का है, और मरी फैलने लगी है।”

47 मूसा की आज्ञा के अनुसार हारून धूपदान लेकर मण्डली के बीच में दौड़ा गया; और यह देखकर कि लोगों में मरी फैलने लगी है, उसने धूप जलाकर लोगों के लिये प्रायश्चित किया।

48 और वह मुर्दों और जीवित के मध्य में खड़ा हुआ; तब मरी थम गई।

49 और जो कोरह के संग भागी होकर मर गए थे, उन्हें छोड़ जो लोग इस मरी से मर गए वे चौदह हजार सात सौ थे। (1 कुरि. 10:10)

50 तब हारून मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मूसा के पास लौट गया, और मरी थम गई।

हारून की छड़ी में कलियाँ

17  1 तब यहोवा ने मूसा से कहा,

2 “इस्राएलियों से बातें करके उनके पूर्वजों के घरानों के अनुसार, उनके सब प्रधानों के पास से एक-एक छड़ी ले; और उन बारह छड़ियों में से एक-एक पर एक-एक के मूल पुरुष का नाम लिख,

3 और लेवियों की छड़ी पर हारून का नाम लिख[fn] *। क्योंकि इस्राएलियों के पूर्वजों के घरानों के एक-एक मुख्य पुरुष की एक-एक छड़ी होगी।

4 और उन छड़ियों को मिलापवाले तम्बू में साक्षीपत्र के आगे, जहाँ मैं तुम लोगों से मिला करता हूँ, रख दे।

5 और जिस पुरुष को मैं चुनूँगा उसकी छड़ी में कलियाँ फूट निकलेंगी; और इस्राएली जो तुम पर बड़बड़ाते रहते हैं, वह बुड़बुड़ाना मैं अपने ऊपर से दूर करूँगा।”

6 अतः मूसा ने इस्राएलियों से यह बात कही; और उनके सब प्रधानों ने अपने-अपने लिए, अपने-अपने पूर्वजों के घरानों के अनुसार, एक-एक छड़ी उसे दी, सो बारह छड़ियाँ हुई; और उन छड़ियों में हारून की भी छड़ी थी।

7 उन छड़ियों को मूसा ने साक्षीपत्र के तम्बू में यहोवा के सामने रख दिया।

8 दूसरे दिन मूसा साक्षीपत्र के तम्बू में गया; तो क्या देखा, कि हारून की छड़ी जो लेवी के घराने के लिये थी उसमें कलियाँ फूट निकली, उसमें कलियाँ लगीं, और फूल भी फूले, और पके बादाम भी लगे हैं[fn] *।

9 तब मूसा उन सब छड़ियों को यहोवा के सामने से निकालकर सब इस्राएलियों के पास ले गया; और उन्होंने अपनी-अपनी छड़ी पहचानकर ले ली।

10 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “हारून की छड़ी को साक्षीपत्र के सामने फिर रख दे, कि यह उन बलवा करनेवालों के लिये एक निशान बनकर रखी रहे, कि तू उनका बुड़बुड़ाना जो मेरे विरुद्ध होता रहता है भविष्य में रोक सके, ऐसा न हो कि वे मर जाएँ।” (इब्रा. 9:4)

11 और मूसा ने यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार ही किया।

12 तब इस्राएली मूसा से कहने लगे, देख, “हमारे प्राण निकलने वाले हैं, हम नष्ट हुए, हम सब के सब नष्ट हुए जाते हैं।

13 जो कोई यहोवा के निवास के तम्बू के समीप जाता है वह मारा जाता है। तो क्या हम सब के सब मर ही जाएँगे?”

याजकों और लेवियों के सेवा-कार्य

18  1 फिर यहोवा ने हारून से कहा, “पवित्रस्थान के विरुद्ध अधर्म का भार[fn] * तुझ पर, और तेरे पुत्रों और तेरे पिता के घराने पर होगा; और तुम्हारे याजक कर्म के विरुद्ध अधर्म का भार तुझ पर और तेरे पुत्रों पर होगा।

2 और लेवी का गोत्र, अर्थात् तेरे मूलपुरुष के गोत्रवाले जो तेरे भाई हैं, उनको भी अपने साथ ले आया कर, और वे तुझ से मिल जाएँ, और तेरी सेवा टहल किया करें, परन्तु साक्षीपत्र के तम्बू के सामने तू और तेरे पुत्र ही आया करें।

3 जो तुझे सौंपा गया है उसकी और सारे तम्बू की भी वे रक्षा किया करें; परन्तु पवित्रस्थान के पात्रों के और वेदी के समीप न आएँ, ऐसा न हो कि वे और तुम लोग भी मर जाओ।

4 अतः वे तुझ से मिल जाएँ, और मिलापवाले तम्बू की सारी सेवकाई की वस्तुओं की रक्षा किया करें; परन्तु जो तेरे कुल का न हो वह तुम लोगों के समीप न आने पाए।

5 और पवित्रस्थान और वेदी की रखवाली तुम ही किया करो, जिससे इस्राएलियों पर फिर मेरा कोप न भड़के।

6 परन्तु मैंने आप तुम्हारे लेवी भाइयों को इस्राएलियों के बीच से अलग कर लिया है[fn] *, और वे मिलापवाले तम्बू की सेवा करने के लिये तुम को और यहोवा को सौंप दिये गए हैं। (इब्रा. 9:6)

7 पर वेदी की और बीचवाले पर्दे के भीतर की बातों की सेवकाई के लिये तू और तेरे पुत्र अपने याजकपद की रक्षा करना, और तुम ही सेवा किया करना; क्योंकि मैं तुम्हें याजकपद की सेवकाई दान करता हूँ; और जो तेरे कुल का न हो वह यदि समीप आए तो मार डाला जाए।”

याजकों की सहायता के लिये भेंट

8 फिर यहोवा ने हारून से कहा, “सुन, मैं आप तुझको उठाई हुई भेंट सौंप देता हूँ, अर्थात् इस्राएलियों की पवित्र की हुई वस्तुएँ; जितनी हों उन्हें मैं तेरा अभिषेक वाला भाग ठहराकर तुझे और तेरे पुत्रों को सदा का हक़ करके दे देता हूँ। (1 कुरि. 9:13)

9 जो *परमपवित्र वस्तुएँ आग में भस्म न की जाएँगी वे तेरी ही ठहरें, अर्थात् इस्राएलियों के सब चढ़ावों में से उनके सब अन्नबलि, सब पापबलि, और सब दोषबलि, जो वे मुझ को दें, वह तेरे और तेरे पुत्रों के लिये परमपवित्र ठहरें।

10 उनको परमपवित्र वस्तु जानकर खाया करना[fn] *; उनको हर एक पुरुष खा सकता है; वे तेरे लिये पवित्र हैं।

11 फिर ये वस्तुएँ भी तेरी ठहरें, अर्थात् जितनी भेंटें इस्राएली हिलाने के लिये दें, उनको मैं तुझे और तेरे बेटे-बेटियों को सदा का हक़ करके दे देता हूँ; तेरे घराने में जितने शुद्ध हों वह उन्हें खा सकेंगे।

12 फिर उत्तम से उत्तम नया दाखमधु, और गेहूँ, अर्थात् इनकी पहली उपज जो वे यहोवा को दें, वह मैं तुझको देता हूँ।

13 उनके देश के सब प्रकार की पहली उपज, जो वे यहोवा के लिये ले आएँ, वह तेरी ही ठहरे; तेरे घराने में जितने शुद्ध हों वे उन्हें खा सकेंगे।

14 इस्राएलियों में जो कुछ अर्पण किया जाए वह भी तेरा ही ठहरे।

15 सब प्राणियों में से जितने अपनी-अपनी माँ के पहलौठे हों, जिन्हें लोग यहोवा के लिये चढ़ाएँ, चाहे मनुष्य के चाहे पशु के पहलौठे हों, वे सब तेरे ही ठहरें; परन्तु मनुष्यों और अशुद्ध पशुओं के पहलौठों को दाम लेकर छोड़ देना।

16 और जिन्हें छुड़ाना हो, जब वे महीने भर के हों तब उनके लिये अपने ठहराए हुए मोल के अनुसार, अर्थात् पवित्रस्थान के बीस गेरा के शेकेल के हिसाब से पाँच शेकेल लेकर उन्हें छोड़ना।

17 पर गाय, या भेड़ी, या बकरी के पहलौठे को न छोड़ना; वे तो पवित्र हैं। उनके लहू को वेदी पर छिड़क देना, और उनकी चर्बी को बलि करके जलाना, जिससे यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्ध हो;

18 परन्तु उनका माँस तेरा ठहरे, और हिलाई हुई छाती, और दाहिनी जाँघ भी तेरा ही ठहरे।

19 पवित्र वस्तुओं की जितनी भेंटें इस्राएली यहोवा को दें, उन सभी को मैं तुझे और तेरे बेटे-बेटियों को सदा का हक़ करके दे देता हूँ यह तो तेरे और तेरे वंश के लिये यहोवा की सदा के लिये नमक की अटल वाचा है।”

20 फिर यहोवा ने हारून से कहा, “इस्राएलियों के देश में तेरा कोई भाग न होगा, और न उनके बीच तेरा कोई अंश होगा; उनके बीच तेरा भाग और तेरा अंश मैं ही हूँ।

लेवियों की सहायता के लिये भेंट

21 “फिर मिलापवाले तम्बू की जो सेवा लेवी करते हैं उसके बदले मैं उनको इस्राएलियों का सब दशमांश उनका निज भाग कर देता हूँ। (इब्रा. 7:5)

22 और भविष्य में इस्राएली मिलापवाले तम्बू के समीप न आएँ, ऐसा न हो कि उनके सिर पर पाप लगे, और वे मर जाएँ।

23 परन्तु लेवी मिलापवाले तम्बू की सेवा किया करें, और उनके अधर्म का भार वे ही उठाया करें[fn] *; यह तुम्हारी पीढ़ियों में सदा की विधि ठहरे; और इस्राएलियों के बीच उनका कोई निज भाग न होगा।

24 क्योंकि इस्राएली जो दशमांश यहोवा को उठाई हुई भेंट करके देंगे, उसे मैं लेवियों को निज भाग करके देता हूँ, इसलिए मैंने उनके विषय में कहा है, कि इस्राएलियों के बीच कोई भाग उनको न मिले।”

लेवियों का दशमांश

25 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

26 “तू लेवियों से कह, कि जब-जब तुम इस्राएलियों के हाथ से वह दशमांश लो जिसे यहोवा तुम को तुम्हारा निज भाग करके उनसे दिलाता है, तब-तब उसमें से यहोवा के लिये एक उठाई हुई भेंट करके दशमांश का दशमांश देना।

27 और तुम्हारी उठाई हुई भेंट तुम्हारे हित के लिये ऐसी गिनी जाएगी जैसा खलिहान में का अन्न, या रसकुण्ड में का दाखरस गिना जाता है।

28 इस रीति तुम भी अपने सब दशमांशों में से, जो इस्राएलियों की ओर से पाओगे, यहोवा को एक उठाई हुई भेंट देना; और यहोवा की यह उठाई हुई भेंट हारून याजक को दिया करना।

29 जितने दान तुम पाओ उनमें से हर एक का उत्तम से उत्तम भाग, जो पवित्र ठहरा है, उसे यहोवा के लिये उठाई हुई भेंट करके पूरी-पूरी देना।

30 इसलिए तू लेवियों से कह, कि जब तुम उसमें का उत्तम से उत्तम भाग उठाकर दो, तब यह तुम्हारे लिये खलिहान में के अन्न, और रसकुण्ड के रस के तुल्य गिना जाएगा;

31 और उसको तुम अपने घरानों समेत सब स्थानों में खा सकते हो, क्योंकि मिलापवाले तम्बू की जो सेवा तुम करोगे उसका बदला यही ठहरा है। (मत्ती 10:10, 1 कुरि. 9:13)

32 और जब तुम उसका उत्तम से उत्तम भाग उठाकर दो तब उसके कारण तुम को पाप न लगेगा। परन्तु इस्राएलियों की पवित्र की हुई वस्तुओं को अपवित्र न करना, ऐसा न हो कि तुम मर जाओ।”

शुद्धिकरण की विधि

19  1 फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,

2 “व्यवस्था की जिस विधि की आज्ञा यहोवा देता है वह यह है; कि तू इस्राएलियों से कह, कि मेरे पास एक लाल निर्दोष बछिया ले आओ, जिसमें कोई भी दोष न हो, और जिस पर जूआ कभी न रखा गया हो।

3 तब उसे एलीआजर याजक को दो, और वह उसे छावनी से बाहर ले जाए[fn] *, और कोई उसको एलीआज़ार याजक के सामने बलिदान करे;

4 तब एलीआजर याजक अपनी उँगली से उसका कुछ लहू लेकर मिलापवाले तम्बू के सामने की ओर सात बार छिड़क दे।

5 तब कोई उस बछिया को खाल, माँस, लहू, और गोबर समेत उसके सामने जलाए;

6 और याजक देवदार की लकड़ी, जूफा, और लाल रंग का कपड़ा लेकर उस आग में जिसमें बछिया जलती हो डाल दे। (इब्रा. 9:19)

7 तब वह अपने वस्त्र धोए और स्नान करे, इसके बाद छावनी में तो आए, परन्तु सांझ तक अशुद्ध रहेगा।

8 और जो मनुष्य उसको जलाए वह भी जल से अपने वस्त्र धोए और स्नान करे, और सांझ तक अशुद्ध रहे।

9 फिर कोई शुद्ध पुरुष उस बछिया की राख बटोरकर छावनी के बाहर किसी शुद्ध स्थान में रख छोड़े; और वह राख इस्राएलियों की मण्डली के लिये अशुद्धता से छुड़ानेवाले जल[fn] * के लिये रखी रहे; वह तो पापबलि है। (इब्रा. 9:13)

10 और जो मनुष्य बछिया की राख बटोरे वह अपने वस्त्र धोए, और सांझ तक अशुद्ध रहेगा। और यह इस्राएलियों के लिये, और उनके बीच रहनेवाले परदेशियों के लिये भी सदा की विधि ठहरे।

शव छूने से अशुद्धता

11 “जो किसी मनुष्य के शव को छूए वह सात दिन तक अशुद्ध रहे;

12 ऐसा मनुष्य तीसरे दिन पाप छुड़ाकर अपने को पावन करे, और सातवें दिन शुद्ध ठहरे; परन्तु यदि वह तीसरे दिन अपने आप को पाप छुड़ाकर पावन न करे, तो सातवें दिन शुद्ध न ठहरेगा।

13 जो कोई किसी मनुष्य का शव छूकर पाप छुड़ाकर अपने को पावन न करे, वह यहोवा के निवास-स्थान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, और वह मनुष्य इस्राएल में से नाश किया जाए; क्योंकि अशुद्धता से *छुड़ानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण वह अशुद्ध ठहरेगा, उसकी अशुद्धता उसमें बनी रहेगी।

14 “यदि कोई मनुष्य डेरे में मर जाए तो व्यवस्था यह है, कि जितने उस डेरे में रहें, या उसमें जाएँ, वे सब सात दिन तक अशुद्ध रहें।

15 और हर एक खुला हुआ पात्र, जिस पर कोई ढकना लगा न हो, वह अशुद्ध ठहरे।

16 और जो कोई मैदान में तलवार से मारे हुए को, या मृत शरीर को, या मनुष्य की हड्डी को, या किसी कब्र को छूए, तो सात दिन तक अशुद्ध रहे।

17 अशुद्ध मनुष्य के लिये जलाए हुए पापबलि की राख में से कुछ लेकर पात्र में डालकर उस पर सोते का जल डाला जाए;

18 तब कोई शुद्ध मनुष्य जूफा लेकर उस जल में डुबाकर जल को उस डेरे पर, और जितने पात्र और मनुष्य उसमें हों, उन पर छिड़के, और हड्डी के, या मारे हुए के, या मृत शरीर को, या कब्र के छूनेवाले पर छिड़क दे;

19 वह शुद्ध पुरुष तीसरे दिन और सातवें दिन उस अशुद्ध मनुष्य पर छिड़के; और सातवें दिन वह उसके पाप छुड़ाकर उसको पावन करे, तब वह अपने वस्त्रों को धोकर और जल से स्नान करके सांझ को शुद्ध ठहरे। (इब्रा. 9:13)

20 “जो कोई अशुद्ध होकर अपने पाप छुड़ाकर अपने को पावन न कराए, वह मनुष्य यहोवा के पवित्रस्थान का अशुद्ध करनेवाला ठहरेगा, इस कारण वह मण्डली के बीच में से नाश किया जाए; अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल उस पर न छिड़का गया, इस कारण से वह अशुद्ध ठहरेगा।

21 और यह उनके लिये सदा की विधि ठहरे। जो अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल छिड़के वह अपने वस्त्रों को धोए; और जो जन अशुद्धता से छुड़ानेवाला जल छूए वह भी सांझ तक अशुद्ध रहे।

22 और जो कुछ वह अशुद्ध मनुष्य छूए वह भी अशुद्ध ठहरे; और जो मनुष्य उस वस्तु को छूए वह भी सांझ तक अशुद्ध रहे।”

मिर्याम की मृत्यु

20  1 पहले महीने में सारी इस्राएली मण्डली के लोग सीन नामक जंगल में आ गए, और कादेश में रहने लगे; और वहाँ मिर्याम मर गई, और वहीं उसको मिट्टी दी गई।

मूसा और हारून का पाप

2 वहाँ मण्डली के लोगों के लिये पानी न मिला; इसलिए वे मूसा और हारून के विरुद्ध इकट्ठे हुए[fn] *।

3 और लोग यह कहकर मूसा से झगड़ने लगे, “भला होता कि हम उस समय ही मर गए होते जब हमारे भाई यहोवा के सामने मर गए!

4 और तुम यहोवा की मण्डली को इस जंगल में क्यों ले आए हो, कि हम अपने पशुओं समेत यहाँ मर जाए?

5 और तुमने हमको मिस्र से क्यों निकालकर इस बुरे स्थान में पहुँचाया है? यहाँ तो बीज, या अंजीर, या दाखलता, या अनार, कुछ नहीं है, यहाँ तक कि पीने को कुछ पानी भी नहीं है।” (इब्रा. 3:8)

6 तब मूसा और हारून मण्डली के सामने से मिलापवाले तम्बू के द्वार पर जाकर अपने मुँह के बल गिरे। और यहोवा का तेज उनको दिखाई दिया।

7 तब यहोवा ने मूसा से कहा,

8 “उस लाठी को ले, और तू अपने भाई हारून समेत मण्डली को इकट्ठा करके उनके देखते उस चट्टान से बातें कर, तब वह अपना जल देगी; इस प्रकार से तू चट्टान में से उनके लिये जल निकालकर मण्डली के लोगों और उनके पशुओं को पिला।”

9 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने उसके सामने से लाठी को ले लिया।

10 और मूसा और हारून ने मण्डली को उस चट्टान के सामने इकट्ठा किया, तब मूसा ने उससे कह, “हे बलवा करनेवालों, सुनो; क्या हमको इस चट्टान में से तुम्हारे लिये जल निकालना होगा?”

11 तब मूसा ने हाथ उठाकर लाठी चट्टान पर दो बार मारी[fn] *; और उसमें से बहुत पानी फूट निकला, और मण्डली के लोग अपने पशुओं समेत पीने लगे। (1 कुरि. 10:4)

12 परन्तु मूसा और हारून से यहोवा ने कहा, “तुमने जो मुझ पर विश्वास नहीं किया, और मुझे इस्राएलियों की दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया, इसलिए तुम इस मण्डली को उस देश में पहुँचाने न पाओगे जिसे मैंने उन्हें दिया है।”

13 उस सोते का नाम मरीबा[fn] * पड़ा, क्योंकि इस्राएलियों ने यहोवा से झगड़ा किया था, और वह उनके बीच पवित्र ठहराया गया।

एदोमियों द्वारा रास्ता न देना

14 फिर मूसा ने कादेश से एदोम के राजा के पास दूत भेजे, “तेरा भाई इस्राएल यह कहता है, कि हम पर जो-जो क्लेश पड़े हैं वह तू जानता होगा;

15 अर्थात् यह कि हमारे पुरखा मिस्र में गए थे, और हम मिस्र में बहुत दिन रहे; और मिस्रियों ने हमारे पुरखाओं के साथ और हमारे साथ भी बुरा बर्ताव किया;

16 परन्तु जब हमने यहोवा की दुहाई दी तब उसने हमारी सुनी, और एक दूत को भेजकर हमें मिस्र से निकाल ले आया है; इसलिए अब हम कादेश नगर में हैं जो तेरी सीमा ही पर है।

17 अतः हमें अपने देश में से होकर जाने दे। हम किसी खेत या दाख की बारी से होकर न चलेंगे, और कुओं का पानी न पीएँगे; सड़क ही सड़क से होकर चले जाएँगे, और जब तक तेरे देश से बाहर न हो जाएँ, तब तक न दाएँ न बाएँ मुड़ेंगे।”

18 परन्तु एदोमियों के राजा ने उसके पास कहला भेजा, “तू मेरे देश में से होकर मत जा, नहीं तो मैं तलवार लिये हुए तेरा सामना करने को निकलूँगा।”

19 इस्राएलियों ने उसके पास फिर कहला भेजा, “हम सड़क ही सड़क से चलेंगे, और यदि हम और हमारे पशु तेरा पानी पीएँ, तो उसका दाम देंगे, हमको और कुछ नहीं, केवल पाँव-पाँव चलकर निकल जाने दे।”

20 परन्तु उसने कहा, “तू आने न पाएगा।” और एदोम बड़ी सेना लेकर भुजबल से उसका सामना करने को निकल आया।

21 इस प्रकार एदोम ने इस्राएल को अपने देश के भीतर से होकर जाने देने से इन्कार किया; इसलिए इस्राएल उसकी ओर से मुड़ गए।

हारून की मृत्यु

22 तब इस्राएलियों की सारी मण्डली कादेश से कूच करके होर नामक पहाड़ के पास आ गई। (गिन. 33:37, 21:4)

23 और एदोम देश की सीमा पर होर पहाड़ में यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,

24 “हारून अपने लोगों में जा मिलेगा; क्योंकि तुम दोनों ने जो मरीबा नामक सोते पर मेरा कहना न मानकर मुझसे बलवा किया है, इस कारण वह उस देश में जाने न पाएगा जिसे मैंने इस्राएलियों को दिया है। (व्य. 32:50)

25 इसलिए तू हारून और उसके पुत्र एलीआजर को होर पहाड़ पर ले चल;

26 और हारून के वस्त्र उतारकर उसके पुत्र एलीआजर को पहना; तब हारून वहीं मरकर अपने लोगों में जा मिलेगा।”

27 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने किया; वे सारी मण्डली के देखते होर पहाड़ पर चढ़ गए।

28 तब मूसा ने हारून के वस्त्र उतारकर उसके पुत्र एलीआजर को पहनाए और हारून वहीं पहाड़ की चोटी पर मर गया। तब मूसा और एलीआजर पहाड़ पर से उतर आए।

29 और जब इस्राएल की सारी मण्डली ने देखा कि हारून का प्राण छूट गया है, तब इस्राएल के सब घराने के लोग उसके लिये तीस दिन तक रोते रहे। (उत्प. 50:3, व्य. 34:8)

कनानी राजा पर विजय

21  1 तब अराद का कनानी राजा, जो दक्षिण देश में रहता था, यह सुनकर कि जिस मार्ग से वे भेदिये आए थे उसी मार्ग से अब इस्राएली आ रहे हैं, इस्राएल से लड़ा, और उनमें से कुछ को बन्धुआ कर लिया।

2 तब इस्राएलियों ने यहोवा से यह कहकर मन्नत मानी, “यदि तू सचमुच उन लोगों को हमारे वश में कर दे, तो हम उनके नगरों को सत्यानाश कर देंगे।”

3 इस्राएल की यह बात सुनकर यहोवा ने कनानियों को उनके वश में कर दिया; अतः उन्होंने उनके नगरों समेत उनको भी सत्यानाश किया; इससे उस स्थान का नाम होर्मा रखा गया।

पीतल का बना सर्प

4 फिर उन्होंने होर पहाड़ से कूच करके लाल समुद्र का मार्ग लिया कि एदोम देश से बाहर-बाहर घूमकर जाएँ; और लोगों का मन मार्ग के कारण बहुत व्याकुल हो गया।

5 इसलिए वे परमेश्वर के विरुद्ध बात करने लगे, और मूसा से कहा, “तुम लोग हमको मिस्र से जंगल में मरने के लिये क्यों ले आए हो? यहाँ न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से दुःखित हैं।”

6 अतः यहोवा ने उन लोगों में तेज विषवाले साँप[fn] * भेजे, जो उनको डसने लगे, और बहुत से इस्राएली मर गए। (1 कुरि. 10:9)

7 तब लोग मूसा के पास जाकर कहने लगे, “हमने पाप किया है, कि हमने यहोवा के और तेरे विरुद्ध बातें की हैं; यहोवा से प्रार्थना कर कि वह साँपों को हम से दूर करे।” तब मूसा ने उनके लिये प्रार्थना की।

8 यहोवा ने मूसा से कहा, “एक तेज विषवाले साँप की प्रतिमा बनवाकर[fn] * खम्भे पर लटका; तब जो साँप से डसा हुआ उसको देख ले वह जीवित बचेगा।”

9 अतः मूसा ने पीतल को एक साँप बनवाकर खम्भे पर लटकाया; तब साँप के डसे हुओं में से जिस-जिस ने उस पीतल के साँप की ओर को देखा वह जीवित बच गया। (यूह. 3:14)

होर पर्वत से मोआब की ओर यात्रा

10 फिर इस्राएलियों ने कूच करके ओबोत में डेरे डालें।

11 और ओबोत से कूच करके अबारीम में डेरे डालें, जो पूर्व की ओर मोआब के सामने के जंगल में है।

12 वहाँ से कूच करके उन्होंने जेरेद नामक नाले में डेरे डालें।

13 वहाँ से कूच करके उन्होंने अर्नोन नदी, जो जंगल में बहती और एमोरियों के देश से निकलती है, उसकी दूसरी ओर डेरे खड़े किए; क्योंकि अर्नोन मोआबियों और एमोरियों के बीच होकर मोआब देश की सीमा ठहरी है।

14 इस कारण यहोवा के संग्राम नामक पुस्तक में इस प्रकार लिखा है,

“सूपा में वाहेब,

और अर्नोन की घाटी,

15 और उन घाटियों की ढलान जो आर नामक नगर की ओर है,

और जो मोआब की सीमा पर है।”

16 फिर वहाँ से कूच करके वे बैर तक गए; वहाँ वही कुआँ है जिसके विषय में यहोवा ने मूसा से कहा था, “उन लोगों को इकट्ठा कर, और मैं उन्हें पानी दूँगा।”

17 उस समय इस्राएल ने यह गीत गया,

“हे कुएँ, उमड़ आ, उस कुएँ के विषय में गाओ!

18 जिसको हाकिमों ने खोदा,

और इस्राएल के रईसों ने अपने सोंटों और लाठियों से खोद लिया।”

फिर वे जंगल से मत्ताना को,

19 और मत्ताना से नहलीएल को, और नहलीएल से बामोत को,

20 और बामोत से कूच करके उस तराई तक जो मोआब के मैदान में है, और पिसगा के उस सिरे तक भी जो यशीमोन की ओर झुका है पहुँच गए।

एमोरियों के राजा सीहोन पर विजय

21 तब इस्राएल ने एमोरियों के राजा सीहोन के पास दूतों से यह कहला भेजा,

22 “हमें अपने देश में होकर जाने दे; हम मुड़कर किसी खेत या दाख की बारी में तो न जाएँगे; न किसी कुएँ का पानी पीएँगे; और जब तक तेरे देश से बाहर न हो जाएँ तब तक सड़क ही से चले जाएँगे।”

23 फिर भी सीहोन ने इस्राएल को अपने देश से होकर जाने न दिया; वरन् अपनी सारी सेना को इकट्ठा करके इस्राएल का सामना करने को जंगल में निकल आया, और यहस को आकर उनसे लड़ा।

24 तब इस्राएलियों ने उसको तलवार से मार दिया, और अर्नोन से यब्बोक नदी[fn] * तक, जो अम्मोनियों की सीमा थी, उसके देश के अधिकारी हो गए; अम्मोनियों की सीमा तो दृढ़ थी।

25 इसलिए इस्राएल ने एमोरियों के सब नगरों को ले लिया, और उनमें, अर्थात् हेशबोन[fn] * और उसके आस-पास के नगरों में रहने लगे।

26 हेशबोन एमोरियों के राजा सीहोन का नगर था; उसने मोआब के पिछले राजा से लड़कर उसका सारा देश अर्नोन तक उसके हाथ से छीन लिया था।

27 इस कारण गूढ़ बात के कहनेवाले कहते हैं,

“हेशबोन में आओ,

सीहोन का नगर बसे, और दृढ़ किया जाए।

28 क्योंकि हेशबोन से आग,

सीहोन के नगर से लौ निकली;

जिससे मोआब देश का आर नगर, और अर्नोन के ऊँचे स्थानों के स्वामी भस्म हुए।

29 हे मोआब, तुझ पर हाय!

कमोश देवता की प्रजा नाश हुई,

उसने अपने बेटों को भगोड़ा,

और अपनी बेटियों को एमोरी राजा सीहोन की दासी कर दिया।

30 हमने उन्हें गिरा दिया है,

हेशबोन दीबोन तक नष्ट हो गया है,

और हमने नोपह और मेदबा तक भी उजाड़ दिया है।”

31 इस प्रकार इस्राएल एमोरियों के देश में रहने लगा।

32 तब मूसा ने याजेर नगर का भेद लेने को भेजा; और उन्होंने उसके गाँवों को ले लिया, और वहाँ के एमोरियों को उस देश से निकाल दिया।

बाशान के राजा ओग पर विजय

33 तब वे मुड़कर बाशान के मार्ग से जाने लगे; और बाशान के राजा ओग ने उनका सामना किया, वह लड़ने को अपनी सारी सेना समेत एद्रेई में निकल आया।

34 तब यहोवा ने मूसा से कहा, “उससे मत डर; क्योंकि मैं उसको सारी सेना और देश समेत तेरे हाथ में कर देता हूँ; और जैसा तूने एमोरियों के राजा हेशबोनवासी सीहोन के साथ किया है, वैसा ही उसके साथ भी करना।”

35 तब उन्होंने उसको, और उसके पुत्रों और सारी प्रजा को यहाँ तक मारा कि उसका कोई भी न बचा; और वे उसके देश के अधिकारी को गए।

बिलाम और मोआब का राजा बालाक

22  1 तब इस्राएलियों ने कूच करके यरीहो के पास यरदन नदी के इस पार मोआब के अराबा में डेरे खड़े किए।

2 और सिप्पोर के पुत्र बालाक ने देखा कि इस्राएल ने एमोरियों से क्या-क्या किया है।

3 इसलिए मोआब यह जानकर, कि इस्राएली बहुत हैं, उन लोगों से अत्यन्त डर गया; यहाँ तक कि मोआब इस्राएलियों के कारण अत्यन्त व्याकुल हुआ।

4 तब मोआबियों ने मिद्यानी पुरनियों से कहा, “अब वह दल हमारे चारों ओर के सब लोगों को चट कर जाएगा, जिस तरह बैल खेत की हरी घास को चट कर जाता है।” उस समय सिप्पोर का पुत्र बालाक मोआब का राजा था;

5 और इसने पतोर नगर को, जो फरात के तट पर बोर के पुत्र बिलाम[fn] * के जाति भाइयों की भूमि थी, वहाँ बिलाम के पास दूत भेजे कि वे यह कहकर उसे बुला लाएँ, “सुन एक दल मिस्र से निकल आया है, और भूमि उनसे ढक गई है, और अब वे मेरे सामने ही आकर बस गए हैं।

6 इसलिए आ, और उन लोगों को मेरे निमित्त श्राप दे, क्योंकि वे मुझसे अधिक बलवन्त हैं, तब सम्भव है कि हम उन पर जयवन्त हों, और हम सब इनको अपने देश से मारकर निकाल दें; क्योंकि यह तो मैं जानता हूँ कि जिसको तू आशीर्वाद देता है वह धन्य होता है, और जिसको तू श्राप देता है वह श्रापित होता है।”

7 तब मोआबी और मिद्यानी पुरनिये भावी कहने की दक्षिणा लेकर चले, और बिलाम के पास पहुँचकर बालाक की बातें कह सुनाईं। (2 पत. 2:15, यहू. 1:1)

8 उसने उनसे कहा, “आज रात को यहाँ टिको, और जो बात यहोवा मुझसे कहेगा, उसी के अनुसार मैं तुम को उत्तर दूँगा।” तब मोआब के हाकिम बिलाम के यहाँ ठहर गए।

9 तब परमेश्वर ने बिलाम के पास आकर पूछा, “तेरे यहाँ ये पुरुष कौन हैं?”

10 बिलाम ने परमेश्वर से कहा, “सिप्पोर के पुत्र मोआब के राजा बालाक ने मेरे पास यह कहला भेजा है,

11 ‘सुन, जो दल मिस्र से निकल आया है उससे भूमि ढँप गई है; इसलिए आकर मेरे लिये उन्हें श्राप दे; सम्भव है कि मैं उनसे लड़कर उनको बरबस निकाल सकूँगा।’”

12 परमेश्वर ने बिलाम से कहा, “तू इनके संग मत जा; उन लोगों को श्राप मत दे, क्योंकि वे आशीष के भागी हो चुके हैं।”

13 भोर को बिलाम ने उठकर बालाक के हाकिमों से कहा, “तुम अपने देश को चले जाओ; क्योंकि यहोवा मुझे तुम्हारे साथ जाने की आज्ञा नहीं देता।”

14 तब मोआबी हाकिम चले गए और बालाक के पास जाकर कहा, “बिलाम ने हमारे साथ आने से मना किया है।”

15 इस पर बालाक ने फिर और हाकिम भेजे, जो पहले से प्रतिष्ठित और गिनती में भी अधिक थे।

16 उन्होंने बिलाम के पास आकर कहा, “सिप्पोर का पुत्र बालाक यह कहता है, ‘मेरे पास आने से किसी कारण मना मत कर;

17 क्योंकि मैं निश्चय तेरी बड़ी प्रतिष्ठा करूँगा, और जो कुछ तू मुझसे कहे वही मैं करूँगा; इसलिए आ, और उन लोगों को मेरे निमित्त श्राप दे।’”

18 बिलाम ने बालाक के कर्मचारियों को उत्तर दिया, “चाहे बालाक अपने घर को सोने चाँदी से भरकर मुझे दे दे, तो भी मैं अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को पलट नहीं सकता, कि उसे घटाकर व बढ़ाकर मानूँ।

19 इसलिए अब तुम लोग आज रात को यहीं टिक रहो, ताकि मैं जान लूँ, कि यहोवा मुझसे और क्या कहता है।”

20 और परमेश्वर ने रात को बिलाम के पास आकर कहा, “यदि वे पुरुष तुझे बुलाने आए हैं, तो तू उठकर उनके संग जा; परन्तु जो बात मैं तुझ से कहूँ उसी के अनुसार करना।”

बिलाम और उसकी गदही

21 तब बिलाम भोर को उठा, और अपनी गदही पर काठी बाँधकर मोआबी हाकिमों के संग चल पड़ा।

22 और उसके जाने के कारण परमेश्वर का कोप भड़क उठा, और यहोवा का दूत[fn] * उसका विरोध करने के लिये मार्ग रोककर खड़ा हो गया। वह तो अपनी गदही पर सवार होकर जा रहा था, और उसके संग उसके दो सेवक भी थे।

23 और उस गदही को यहोवा का दूत हाथ में नंगी तलवार लिये हुए मार्ग में खड़ा दिखाई पड़ा; तब गदही मार्ग छोड़कर खेत में चली गई; तब बिलाम ने गदही को मारा कि वह मार्ग पर फिर आ जाए।

24 तब यहोवा का दूत दाख की बारियों के बीच की गली में, जिसके दोनों ओर बारी की दीवार थी, खड़ा हुआ।

25 यहोवा के दूत को देखकर गदही दीवार से ऐसी सट गई कि बिलाम का पाँव दीवार से दब गया; तब उसने उसको फिर मारा।

26 तब यहोवा का दूत आगे बढ़कर एक सकरे स्थान पर खड़ा हुआ, जहाँ न तो दाहिनी ओर हटने की जगह थी और न बाईं ओर।

27 वहाँ यहोवा के दूत को देखकर गदही बिलाम को लिये हुए बैठ गई; फिर तो बिलाम का कोप भड़क उठा, और उसने गदही को लाठी से मारा।

28 तब यहोवा ने गदही का मुँह खोल दिया, और वह बिलाम से कहने लगी, “मैंने तेरा क्या किया है कि तूने मुझे तीन बार मारा?” (2 पत. 2:16)

29 बिलाम ने गदही से कहा, “यह कि तूने मुझसे नटखटी की। यदि मेरे हाथ में तलवार होती तो मैं तुझे अभी मार डालता।”

30 गदही ने बिलाम से कहा, “क्या मैं तेरी वही गदही नहीं, जिस पर तू जन्म से आज तक चढ़ता आया है? क्या मैं तुझ से कभी ऐसा करती थी?” वह बोला, “नहीं।”

31 तब यहोवा ने बिलाम की आँखें खोलीं, और उसको यहोवा का दूत हाथ में नंगी तलवार लिये हुए मार्ग में खड़ा दिखाई पड़ा; तब वह झुक गया, और मुँह के बल गिरकर दण्डवत् किया।

32 यहोवा के दूत ने उससे कहा, “तूने अपनी गदही को तीन बार क्यों मारा? सुन, तेरा विरोध करने को मैं ही आया हूँ, इसलिए कि तू मेरे सामने दुष्ट चाल चलता है;

33 और यह गदही मुझे देखकर मेरे सामने से तीन बार हट गई। यदि वह मेरे सामने से हट न जाती, तो निःसन्देह मैं अब तक तुझको मार ही डालता, परन्तु उसको जीवित छोड़ देता।”

34 तब बिलाम ने यहोवा के दूत से कहा, “मैंने पाप किया है; मैं नहीं जानता था कि तू मेरा सामना करने को मार्ग में खड़ा है। इसलिए अब यदि तुझे बुरा लगता है, तो मैं लौट जाता हूँ।”

35 यहोवा के दूत ने बिलाम से कहा, “इन पुरुषों के संग तू चला जा; परन्तु केवल वही बात कहना जो मैं तुझ से कहूँगा।” तब बिलाम बालाक के हाकिमों के संग चला[fn] * गया।

36 यह सुनकर कि बिलाम आ रहा है, बालाक उससे भेंट करने के लिये मोआब के उस नगर तक जो उस देश के अर्नोनवाले सीमा पर है गया।

37 बालाक ने बिलाम से कहा, “क्या मैंने बड़ी आशा से तुझे नहीं बुलवा भेजा था? फिर तू मेरे पास क्यों नहीं चला आया? क्या मैं इस योग्य नहीं कि सचमुच तेरी उचित प्रतिष्ठा कर सकता?”

38 बिलाम ने बालाक से कहा, “देख, मैं तेरे पास आया तो हूँ! परन्तु अब क्या मैं कुछ कर सकता हूँ? जो बात परमेश्वर मेरे मुँह में डालेगा, वही बात मैं कहूँगा।”

39 तब बिलाम बालाक के संग-संग चला, और वे किर्यथूसोत तक आए।

40 और बालाक ने बैल और भेड़-बकरियों को बलि किया, और बिलाम और उसके साथ के हाकिमों के पास भेजा।

41 भोर को बालाक बिलाम को बाल के ऊँचे स्थानों पर चढ़ा ले गया, और वहाँ से उसको सब इस्राएली लोग दिखाई पड़े।

बिलाम की प्रथम भविष्यद्वाणी

23  1 तब बिलाम ने बालाक से कहा, “यहाँ पर मेरे लिये सात वेदियाँ बनवा, और इसी स्थान पर सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर।”

2 तब बालाक ने बिलाम के कहने के अनुसार किया; और बालाक और बिलाम ने मिलकर प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।

3 फिर बिलाम ने बालाक से कहा, “तू अपने होमबलि के पास खड़ा रह, और मैं जाता हूँ; सम्भव है कि यहोवा मुझसे भेंट करने को आए; और जो कुछ वह मुझ पर प्रगट करेगा वही मैं तुझको बताऊँगा।” तब वह एक मुण्डे पहाड़ पर गया।

4 और परमेश्वर बिलाम से मिला[fn] *; और बिलाम ने उससे कहा, “मैंने सात वेदियाँ तैयार की हैं, और प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया है।”

5 यहोवा ने बिलाम के मुँह में एक बात डाली, और कहा, “बालाक के पास लौट जो, और इस प्रकार कहना।”

6 और वह उसके पास लौटकर आ गया, और क्या देखता है कि वह सारे मोआबी हाकिमों समेत अपने होमबलि के पास खड़ा है।

7 तब बिलाम ने अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा,

“बालाक ने मुझे अराम से, अर्थात् मोआब के राजा ने मुझे पूर्व के पहाड़ों से बुलवा भेजा:

‘आ, मेरे लिये याकूब को श्राप दे, आ, इस्राएल को धमकी दे!’

8 परन्तु जिन्हें परमेश्वर ने नहीं श्राप दिया उन्हें मैं क्यों श्राप दूँ?

और जिन्हें यहोवा ने धमकी नहीं दी उन्हें मैं कैसे धमकी दूँ?

9 चट्टानों की चोटी पर से वे मुझे दिखाई पड़ते हैं, पहाड़ियों पर से मैं उनको देखता हूँ;

वह ऐसी जाति है जो अकेली बसी रहेगी,

और अन्यजातियों से अलग गिनी जाएगी!

10 याकूब के धूलि की किनके को कौन गिन सकता है,

या इस्राएल की चौथाई की गिनती कौन ले सकता है?

सौभाग्य यदि मेरी मृत्यु धर्मियों की सी[fn] *,

और मेरा अन्त भी उन्हीं के समान हो!”

11 तब बालाक ने बिलाम से कहा, “तूने मुझसे क्या किया है? मैंने तुझे अपने शत्रुओं को श्राप देने को बुलवाया था, परन्तु तूने उन्हें आशीष ही आशीष दी है।”

12 उसने कहा, “जो बात यहोवा ने मुझे सिखलाई, क्या मुझे उसी को सावधानी से बोलना न चाहिये?”

बिलाम की दूसरी भविष्यद्वाणी

13 बालाक ने उससे कहा, “मेरे संग दूसरे स्थान पर चल, जहाँ से वे तुझे दिखाई देंगे; तू उन सभी को तो नहीं, केवल बाहरवालों को देख सकेगा; वहाँ से उन्हें मेरे लिये श्राप दे।”

14 तब वह उसको सोपीम नामक मैदान में पिसगा के सिरे पर ले गया, और वहाँ सात वेदियाँ बनवाकर प्रत्येक पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।

15 तब बिलाम ने बालाक से कहा, “अपने होमबलि के पास यहीं खड़ा रह, और मैं उधर जाकर यहोवा से भेंट करूँ।”

16 और यहोवा ने बिलाम से भेंट की, और उसने उसके मुँह में एक बात डाली, और कहा, “बालाक के पास लौट जा, और इस प्रकार कहना।”

17 और वह उसके पास गया, और क्या देखता है कि वह मोआबी हाकिमों समेत अपने होमबलि के पास खड़ा है। और बालाक ने पूछा, “यहोवा ने क्या कहा है?”

18 तब बिलाम ने अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा,

“हे बालाक, मन लगाकर सुन, हे सिप्पोर के पुत्र, मेरी बात पर कान लगा:

19 परमेश्वर मनुष्य नहीं कि झूठ बोले, और न वह आदमी है कि अपनी इच्छा बदले।

क्या जो कुछ उसने कहा उसे न करे?

क्या वह वचन देकर उसे पूरा न करे? (रोम. 9:6, 2 तीमु. 2:13)

20 देख, आशीर्वाद ही देने की आज्ञा मैंने पाई है:

वह आशीष दे चुका है, और मैं उसे नहीं पलट सकता।

21 उसने याकूब में अनर्थ नहीं पाया;

और न इस्राएल में अन्याय देखा है।

उसका परमेश्वर यहोवा उसके संग है,

और उनमें राजा की सी ललकार होती है।

22 उनको मिस्र में से परमेश्वर ही निकाले लिए आ रहा है,

वह तो जंगली सांड के समान बल रखता है।

23 निश्चय कोई मंत्र याकूब पर नहीं चल सकता,

और इस्राएल पर भावी कहना कोई अर्थ नहीं रखता;

परन्तु याकूब और इस्राएल के विषय में अब यह कहा जाएगा,

कि परमेश्वर ने क्या ही विचित्र काम किया है!

24 सुन, वह दल सिंहनी के समान उठेगा,

और सिंह के समान खड़ा होगा;

वह जब तक शिकार को न खा ले, और मरे हुओं के लहू को न पी ले,

तब तक न लेटेगा।”

25 तब बालाक ने बिलाम से कहा, “उनको न तो श्राप देना, और न आशीष देना।”

26 बिलाम ने बालाक से कहा, “क्या मैंने तुझ से नहीं कहा कि जो कुछ यहोवा मुझसे कहेगा, वही मुझे करना पड़ेगा?”

बिलाम की तीसरी भविष्यद्वाणी

27 बालाक ने बिलाम से कहा चल, “चल मैं तुझको एक और स्थान पर ले चलता हूँ; सम्भव है कि परमेश्वर की इच्छा हो कि तू वहाँ से उन्हें मेरे लिये श्राप दे।”

28 तब बालाक बिलाम को पोर के सिरे पर, जहाँ से यशीमोन देश दिखाई देता है, ले गया।

29 और बिलाम ने बालाक से कहा, “यहाँ पर मेरे लिये सात वेदियाँ बनवा, और यहाँ सात बछड़े और सात मेढ़े तैयार कर।”

30 बिलाम के कहने के अनुसार बालाक ने प्रत्येक वेदी पर एक बछड़ा और एक मेढ़ा चढ़ाया।

24  1 यह देखकर कि यहोवा इस्राएल को आशीष ही दिलाना चाहता है, बिलाम पहले के समान शकुन देखने को न गया, परन्तु अपना मुँह जंगल की ओर कर लिया।

2 और बिलाम ने आँखें उठाई, और इस्राएलियों को अपने गोत्र-गोत्र के अनुसार बसे हुए देखा। और परमेश्वर का आत्मा उस पर उतरा।

3 तब उसने अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा,

“बोर के पुत्र बिलाम की यह वाणी है,

जिस पुरुष की आँखें खुली थीं[fn] * उसी की यह वाणी है,

4 परमेश्वर के वचनों का सुननेवाला, जो दण्डवत् में पड़ा हुआ खुली हुई आँखों से सर्वशक्तिमान का दर्शन पाता है, उसी की यह वाणी है कि

5 हे याकूब, तेरे डेरे,

और हे इस्राएल, तेरे निवास-स्थान क्या ही मनभावने हैं!

6 वे तो घाटियों के समान, और नदी के तट की वाटिकाओं के समान ऐसे फैले हुए हैं,

जैसे कि यहोवा के लगाए हुए अगर के वृक्ष, और जल के निकट के देवदारू। (इब्रा. 8:2)

7 और उसके घड़ों से जल उमण्डा करेगा,

और उसका बीज बहुत से जलभरे खेतों में पडे़गा,

और उसका राजा अगाग से भी महान होगा,

और उसका राज्य बढ़ता ही जाएगा।

8 उसको मिस्र में से परमेश्वर ही निकाले लिए आ रहा है;

वह तो जंगली सांड के समान बल रखता है, जाति-जाति के लोग जो उसके द्रोही हैं उनको वह खा जाएगा,

और उनकी हड्डियों को टुकड़े-टुकड़े करेगा,

और अपने तीरों से उनको बेधेगा।

9 वह घात लगाए बैठा है, वह सिंह या सिंहनी के समान लेट गया है; अब उसको कौन छेड़े?

जो कोई तुझे आशीर्वाद दे वह आशीष पाए,

और जो कोई तुझे श्राप दे वह श्रापित हो।”

10 तब बालाक का कोप बिलाम पर भड़क उठा; और उसने हाथ पर हाथ पटककर बिलाम से कहा, “मैंने तुझे अपने शत्रुओं को श्राप देने के लिये बुलवाया, परन्तु तूने तीन बार उन्हें आशीर्वाद ही आशीर्वाद दिया है।

11 इसलिए अब तू अपने स्थान पर भाग जा; मैंने तो सोचा था कि तेरी बड़ी प्रतिष्ठा करूँगा, परन्तु अब यहोवा ने तुझे प्रतिष्ठा पाने से रोक रखा है।”

12 बिलाम ने बालाक से कहा, “जो दूत तूने मेरे पास भेजे थे, क्या मैंने उनसे भी न कहा था,

13 कि चाहे बालाक अपने घर को सोने चाँदी से भरकर मुझे दे, तो भी मैं यहोवा की आज्ञा तोड़कर अपने मन से न तो भला कर सकता हूँ और न बुरा; जो कुछ यहोवा कहेगा वही मैं कहूँगा?

14 अब सुन, मैं अपने लोगों के पास लौटकर जाता हूँ; परन्तु पहले मैं तुझे चेतावनी देता हूँ कि आनेवाले दिनों में वे लोग तेरी प्रजा से क्या-क्या करेंगे।”

बिलाम की चौथी भविष्यद्वाणी

15 फिर वह अपनी गूढ़ बात आरम्भ करके कहने लगा,

“बोर के पुत्र बिलाम की यह वाणी है,

जिस पुरुष की आँखें बन्द थीं उसी की यह वाणी है,

16 परमेश्वर के वचनों का सुननेवाला, और परमप्रधान के ज्ञान का जाननेवाला,

जो दण्डवत् में पड़ा हुआ खुली हुई आँखों से सर्वशक्तिमान का दर्शन पाता है,

उसी की यह वाणी है:

17 मैं उसको देखूँगा तो सही, परन्तु अभी नहीं;

मैं उसको निहारूँगा तो सही, परन्तु समीप होकर नहीं

याकूब में से एक तारा उदय होगा, और इस्राएल में से एक राजदण्ड उठेगा;

जो मोआब की सीमाओं को चूर कर देगा,

और सब शेत के पुत्रों का नाश कर देगा। (मत्ती 2:2)

18 तब एदोम और सेईर भी, जो उसके शत्रु हैं,

दोनों उसके वश में पड़ेंगे,

और इस्राएल वीरता दिखाता जाएगा।

19 और याकूब ही में से एक अधिपति आएगा जो प्रभुता करेगा,

और नगर में से बचे हुओं को भी सत्यानाश करेगा।”

20 फिर उसने अमालेक पर दृष्टि करके अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा,

“अमालेक अन्यजातियों में श्रेष्ठ तो था,

परन्तु उसका अन्त विनाश ही है।”

21 फिर उसने केनियों[fn] * पर दृष्टि करके अपनी गूढ़ बात आरम्भ की, और कहने लगा,

“तेरा निवास-स्थान अति दृढ़ तो है,

और तेरा बसेरा चट्टान पर तो है;

22 तो भी केन उजड़ जाएगा।

और अन्त में अश्शूर तुझे बन्दी बनाकर ले आएगा।”

23 फिर उसने अपनी गूढ़ बात आरम्भ की,

और कहने लगा,

“हाय, जब परमेश्वर यह करेगा तब कौन जीवित बचेगा?

24 तो भी कित्तियों के पास से जहाज वाले आकर अश्शूर को और एबेर को भी दुःख देंगे;

और अन्त में उसका भी विनाश हो जाएगा।”

25 तब बिलाम चल दिया, और अपने स्थान पर लौट गया; और बालाक ने भी अपना मार्ग लिया।

इस्राएलियों का वेश्यागमन और उसका दण्ड

25  1 इस्राएली शित्तीम में रहते थे, और वे लोग मोआबी लड़कियों के संग कुकर्म करने लगे। (1 कुरि. 10:8)

2 और जब उन स्त्रियों ने उन लोगों को अपने देवताओं के यज्ञों में नेवता दिया, तब वे लोग खाकर उनके देवताओं को दण्डवत् करने लगे। (प्रका. 2:14)

3 इस प्रकार इस्राएली बालपोर देवता को पूजने लगे। तब यहोवा का कोप इस्राएल पर भड़क उठा; (प्रका. 2:20)

4 और यहोवा ने मूसा से कहा, “प्रजा के सब प्रधानों को पकड़कर यहोवा के लिये धूप में लटका दे, जिससे मेरा भड़का हुआ कोप इस्राएल के ऊपर से दूर हो जाए।”

5 तब मूसा ने इस्राएली न्यायियों से कहा, “तुम्हारे जो-जो आदमी बालपोर के संग मिल गए हैं उन्हें घात करो।”

6 जब इस्राएलियों की सारी मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर रो रही थी[fn] *, तो एक इस्राएली पुरुष मूसा और सब लोगों की आँखों के सामने एक मिद्यानी स्त्री को अपने साथ अपने भाइयों के पास ले आया।

7 इसे देखकर एलीआजर का पुत्र पीनहास, जो हारून याजक का पोता था, उसने मण्डली में से उठकर हाथ में एक बरछी ली,

8 और उस इस्राएली पुरुष के डेरे में जाने के बाद वह भी भीतर गया, और उस पुरुष और उस स्त्री दोनों के पेट में बरछी बेध दी। इस पर इस्राएलियों में जो मरी फैल गई थी वह थम गई।

9 और मरी से चौबीस हजार मनुष्य मर गए। (1 कुरि. 10:8)

10 तब यहोवा ने मूसा से कहा,

11 “हारून याजक का पोता एलीआजर का पुत्र पीनहास, जिसे इस्राएलियों के बीच मेरी जैसी जलन उठी, उसने मेरी जलजलाहट को उन पर से यहाँ तक दूर किया है, कि मैंने जलकर उनका अन्त नहीं कर डाला।

12 इसलिए तू कह दे, कि मैं उससे शान्ति की वाचा बाँधता हूँ[fn] *;

13 और वह उसके लिये, और उसके बाद उसके वंश के लिये, सदा के याजकपद की वाचा होगी, क्योंकि उसे अपने परमेश्वर के लिये जलन उठी, और उसने इस्राएलियों के लिये प्रायश्चित किया।”

14 जो इस्राएली पुरुष मिद्यानी स्त्री के संग मारा गया, उसका नाम जिम्री था, वह सालू का पुत्र और शिमोनियों में से अपने पितरों के घराने का प्रधान था।

15 और जो मिद्यानी स्त्री मारी गई उसका नाम कोजबी था, वह सूर की बेटी थी, जो मिद्यानी पितरों के एक घराने के लोगों का प्रधान था।

16 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

17 “मिद्यानियों को सता, और उन्हें मार;

18 क्योंकि पोर के विषय और कोजबी के विषय वे तुम को छल करके सताते हैं।” कोजबी तो एक मिद्यानी प्रधान की बेटी और मिद्यानियों की जाति बहन थी, और मरी के दिन में पोर के मामले में मारी गई।

इस्राएलियों की दूसरी बार गिनती

26  1 फिर[fn] * यहोवा ने मूसा और एलीआजर नामक हारून याजक के पुत्र से कहा,

2 “इस्राएलियों की सारी मण्डली में जितने बीस वर्ष के, या उससे अधिक आयु के होने से इस्राएलियों के बीच युद्ध करने के योग्य हैं, उनके पितरों के घरानों के अनुसार उन सभी की गिनती करो।”

3 अतः मूसा और एलीआजर याजक ने यरीहो के पास यरदन नदी के तट पर मोआब के अराबा में उनको समझाके कहा,

4 “बीस वर्ष के और उससे अधिक आयु के लोगों की गिनती लो, जैसे कि यहोवा ने मूसा और इस्राएलियों को मिस्र देश से निकल आने के समय आज्ञा दी थी।”

5 रूबेन जो इस्राएल का जेठा था; उसके ये पुत्र थे; अर्थात् हनोक, जिससे हनोकियों का कुल चला; और पल्लू, जिससे पल्लूइयों का कुल चला;

6 हेस्रोन, जिससे हेस्रोनियों का कुल चला; और कर्मी, जिससे कर्मियों का कुल चला।

7 रूबेनवाले कुल ये ही थे; और इनमें से जो गिने गए वे तैंतालीस हजार सात सौ तीस पुरुष थे।

8 और पल्लू का पुत्र एलीआब था।

9 और एलीआब के पुत्र नमूएल, दातान, और अबीराम थे। ये वही दातान और अबीराम हैं जो सभासद थे; और जिस समय कोरह की मण्डली ने यहोवा से झगड़ा किया था, उस समय उस मण्डली में मिलकर उन्होंने भी मूसा और हारून से झगड़े थे;

10 और जब उन ढाई सौ मनुष्यों के आग में भस्म हो जाने से वह मण्डली मिट गई, उसी समय पृथ्वी ने मुँह खोलकर कोरह समेत इनको भी निगल लिया; और वे एक दृष्टान्त ठहरे।

11 परन्तु कोरह के पुत्र तो नहीं मरे थे[fn] *।

12 शिमोन के पुत्र जिनसे उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् नमूएल, जिससे नमूएलियों का कुल चला; और यामीन, जिससे यामीनियों का कुल चला; और याकीन, जिससे याकीनियों का कुल चला;

13 और जेरह, जिससे जेरहियों का कुल चला; और शाऊल, जिससे शाऊलियों का कुल चला।

14 शिमोनवाले कुल ये ही थे; इनमें से बाईस हजार दो सौ पुरुष गिने गए।

15 गाद के पुत्र जिससे उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् सपोन, जिससे सपोनियों का कुल चला; और हाग्गी, जिससे हाग्गियों का कुल चला; और शूनी, जिससे शूनियों का कुल चला; और ओजनी, जिससे ओजनियों का कुल चला;

16 और एरी, जिससे एरियों का कुल चला; और अरोद, जिससे अरोदियों का कुल चला;

17 और अरेली, जिससे अरेलियों का कुल चला।

18 गाद के वंश के कुल ये ही थे; इनमें से साढ़े चालीस हजार पुरुष गिने गए।

19 और यहूदा के एर और ओनान नाम पुत्र तो हुए, परन्तु वे कनान देश में मर गए।

20 और यहूदा के जिन पुत्रों से उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् शेला, जिससे शेलियों का कुल चला; और पेरेस जिससे पेरेसियों का कुल चला; और जेरह, जिससे जेरहियों का कुल चला।

21 और पेरेस के पुत्र ये थे; अर्थात् हेस्रोन, जिससे हेस्रोनियों का कुल चला; और हामूल, जिससे हामूलियों का कुल चला।

22 यहूदियों के कुल ये ही थे; इनमें से साढ़े छिहत्तर हजार पुरुष गिने गए।

23 इस्साकार के पुत्र जिनसे उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् तोला, जिससे तोलियों का कुल चला; और पुव्वा, जिससे पुव्वियों का कुल चला;

24 और याशूब, जिससे याशूबियों का कुल चला; और शिम्रोन, जिससे शिम्रोनियों का कुल चला।

25 इस्साकारियों के कुल ये ही थे; इनमें से चौसठ हजार तीन सौ पुरुष गिने गए।

26 जबूलून के पुत्र जिनसे उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् सेरेद जिससे सेरेदियों का कुल चला; और एलोन, जिनसे एलोनियों का कुल चला; और यहलेल, जिससे यहलेलियों का कुल चला।

27 जबूलूनियों के कुल ये ही थे; इनमें से साढ़े साठ हजार पुरुष गिने गए।

28 यूसुफ के पुत्र जिससे उनके कुल निकले वे मनश्शे और एप्रैम थे।

29 मनश्शे के पुत्र ये थे; अर्थात् माकीर, जिससे माकीरियों का कुल चला; और माकीर से गिलाद उत्पन्न हुआ; और गिलाद से गिलादियों का कुल चला।

30 गिलाद के तो पुत्र ये थे; अर्थात् ईएजेर, जिससे ईएजेरियों का कुल चला;

31 और हेलेक, जिससे हेलेकियों का कुल चला और अस्रीएल, जिससे अस्रीएलियों का कुल चला; और शेकेम, जिससे शेकेमियों का कुल चला; और शमीदा, जिससे शमीदियों का कुल चला;

32 और हेपेर, जिससे हेपेरियों का कुल चला;

33 और हेपेर के पुत्र सलोफाद के बेटे नहीं, केवल बेटियाँ हुईं; इन बेटियों के नाम महला, नोवा, होग्ला, मिल्का, और तिर्सा हैं।

34 मनश्शेवाले कुल तो ये ही थे; और इनमें से जो गिने गए वे बावन हजार सात सौ पुरुष थे।

35 एप्रैम के पुत्र जिनसे उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् शूतेलह, जिससे शूतेलहियों का कुल चला; और बेकेर, जिससे बेकेरियों का कुल चला; और तहन जिससे तहनियों का कुल चला।

36 और शूतेलह के यह पुत्र हुआ; अर्थात् एरान, जिससे एरानियों का कुल चला।

37 एप्रैमियों के कुल ये ही थे; इनमें से साढ़े बत्तीस हजार पुरुष गिने गए। अपने कुलों के अनुसार यूसुफ के वंश के लोग ये ही थे।

38 और बिन्यामीन के पुत्र जिनसे उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् बेला जिससे बेलियों का कुल चला; और अश्बेल, जिससे अशबेलियों का कुल चला; और अहीराम, जिससे अहीरामियों का कुल चला;

39 और शपूपाम, जिससे शपूपामियों का कुल चला; और हूपाम, जिससे हूपामियों का कुल चला।

40 और बेला के पुत्र अर्द और नामान थे; और अर्द से अर्दियों का कुल, और नामान से नामानियों का कुल चला।

41 अपने कुलों के अनुसार बिन्यामीनी ये ही थे; और इनमें से जो गिने गए वे पैंतालीस हजार छः सौ पुरुष थे।

42 दान का पुत्र जिससे उनका कुल निकला यह था; अर्थात् शूहाम, जिससे शूहामियों का कुल चला। और दान का कुल यही था।

43 और शूहामियों में से जो गिने गए उनके कुल में चौसठ हजार चार सौ पुरुष थे।

44 आशेर के पुत्र जिनसे उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् यिम्ना, जिससे यिम्नियों का कुल चला; यिश्वी, जिससे यिश्वीयों का कुल चला; और बरीआ, जिससे बैरियों का कुल चला।

45 फिर बरीआ के ये पुत्र हुए; अर्थात् हेबेर, जिससे हेबेरियों का कुल चला; और मल्कीएल, जिससे मल्कीएलियों का कुल चला।

46 और आशेर की बेटी का नाम सेरह है।

47 आशेरियों के कुल ये ही थे; इनमें से तिरपन हजार चार सौ पुरुष गिने गए।

48 नप्ताली के पुत्र जिससे उनके कुल निकले वे ये थे; अर्थात् यहसेल, जिससे यहसेलियों का कुल चला; और गूनी, जिससे गूनियों का कुल चला;

49 येसेर, जिससे येसेरियों का कुल चला; और शिल्लेम, जिससे शिल्लेमियों का कुल चला।

50 अपने कुलों के अनुसार नप्ताली के कुल ये ही थे; और इनमें से जो गिने गए वे पैंतालीस हजार चार सौ पुरुष थे।

51 सब इस्राएलियों में से जो गिने गए थे वे ये ही थे; अर्थात् छः लाख एक हजार सात सौ तीस पुरुष थे।

52 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

53 “इनको, इनकी गिनती के अनुसार, वह भूमि इनका भाग होने के लिये बाँट दी जाए।

54 अर्थात् जिस कुल में अधिक हों उनको अधिक भाग, और जिसमें कम हों उनको कम भाग देना; प्रत्येक गोत्र को उसका भाग उसके गिने हुए लोगों के अनुसार दिया जाए।

55 तो भी देश चिट्ठी डालकर बाँटा जाए; इस्राएलियों के पितरों के एक-एक गोत्र का नाम, जैसे-जैसे निकले वैसे-वैसे वे अपना-अपना भाग पाएँ।

56 चाहे बहुतों का भाग हो चाहे थोड़ों का हो, जो-जो भाग बाँटे जाएँ वह चिट्ठी डालकर बाँटे जाएँ।”

57 फिर लेवियों में से जो अपने कुलों के अनुसार गिने गए वे ये हैं; अर्थात् गेर्शोनियों से निकला हुआ गेर्शोनियों का कुल; कहात से निकला हुआ कहातियों का कुल; और मरारी से निकला हुआ मरारियों का कुल।

58 लेवियों के कुल ये हैं; अर्थात् लिब्नायों का, हेब्रोनियों का, महलियों का, मूशियों का, और कोरहियों का कुल। और कहात से अम्राम उत्पन्न हुआ।

59 और अम्राम की पत्नी का नाम योकेबेद है, वह लेवी के वंश की थी जो लेवी के वंश में मिस्र देश में उत्पन्न हुई थी; और वह अम्राम से हारून और मूसा और उनकी बहन मिर्याम को भी जनी।

60 और हारून से नादाब, अबीहू, एलीआजर, और ईतामार उत्पन्न हुए।

61 नादाब और अबीहू तो उस समय मर गए थे, जब वे यहोवा के सामने ऊपरी आग ले गए थे।

62 सब लेवियों में से जो गिने गये, अर्थात् जितने पुरुष एक महीने के या उससे अधिक आयु के थे, वे तेईस हजार थे; वे इस्राएलियों के बीच इसलिए नहीं गिने गए, क्योंकि उनको देश का कोई भाग नहीं दिया गया था।

63 मूसा और एलीआजर याजक जिन्होंने मोआब के अराबा में यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर इस्राएलियों को गिन लिया, उनके गिने हुए लोग इतने ही थे।

64 परन्तु जिन इस्राएलियों को मूसा और हारून याजक ने सीनै के जंगल में गिना था, उनमें से एक भी पुरुष इस समय के गिने हुओं में न था।

65 क्योंकि यहोवा ने उनके विषय कहा था, “वे निश्चय जंगल में मर जाएँगे।” इसलिए यपुन्ने के पुत्र कालेब और नून के पुत्र यहोशू को छोड़, उनमें से एक भी पुरुष नहीं बचा।

सलोफाद की बेटियों की विनती

27  1 तब यूसुफ के पुत्र मनश्शे के वंश के कुलों में से सलोफाद, जो हेपेर का पुत्र, और गिलाद का पोता, और मनश्शे के पुत्र माकीर का परपोता था, उसकी बेटियाँ जिनके नाम महला, नोवा, होग्ला, मिल्का, और तिर्सा हैं वे पास आईं।

2 और वे मूसा और एलीआजर याजक और प्रधानों और सारी मण्डली के सामने मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़ी होकर कहने लगीं,

3 “हमारा पिता जंगल में मर गया; परन्तु वह उस मण्डली में का न था जो कोरह की मण्डली के संग होकर यहोवा के विरुद्ध इकट्ठी हुई थी, वह अपने ही पाप के कारण मरा; और उसके कोई पुत्र न था।

4 तो हमारे पिता का नाम उसके कुल में से पुत्र न होने के कारण क्यों मिट जाए? हमारे चाचाओं के बीच हमें भी कुछ भूमि निज भाग करके दे।”

5 उनकी यह विनती मूसा ने यहोवा को सुनाई।

6 यहोवा ने मूसा से कहा,

7 “सलोफाद की बेटियाँ ठीक कहती हैं; इसलिए तू उनके चाचाओं के बीच उनको भी अवश्य ही कुछ भूमि निज भाग करके दे, अर्थात् उनके पिता का भाग उनके हाथ सौंप दे।

8 और इस्राएलियों से यह कह, ‘यदि कोई मनुष्य बिना पुत्र मर जाए, तो उसका भाग उसकी बेटी के हाथ सौंपना।

9 और यदि उसके कोई बेटी भी न हो, तो उसका भाग उसके भाइयों को देना।

10 और यदि उसके भाई भी न हों, तो उसका भाग चाचाओं को देना।

11 और यदि उसके चाचा भी न हों, तो उसके कुल में से उसका जो कुटुम्बी सबसे समीप हो उनको उसका भाग देना कि वह उसका अधिकारी हो। इस्राएलियों के लिये यह न्याय की विधि ठहरेगी, जैसे कि यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी।’”

यहोशू का चुना जाना

12 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, “इस अबारीम नामक पर्वत के ऊपर चढ़कर उस देश को देख ले जिसे मैंने इस्राएलियों को दिया है।

13 और जब तू उसको देख लेगा, तब अपने भाई हारून के समान तू भी अपने लोगों में जा मिलेगा,

14 क्योंकि सीन नामक जंगल में तुम दोनों ने मण्डली के झगड़ने के समय मेरी आज्ञा को तोड़कर मुझसे बलवा किया, और मुझे सोते के पास उनकी दृष्टि में पवित्र नहीं ठहराया।” (यह मरीबा नामक सोता है जो सीन नामक जंगल के कादेश में है)

15 मूसा ने यहोवा से कहा,

16 “यहोवा, जो सारे प्राणियों की आत्माओं का परमेश्वर है, वह इस मण्डली के लोगों के ऊपर किसी पुरुष को नियुक्त कर दे, (इब्रा. 12:9)

17 जो उसके सामने आया-जाया करे, और उनका निकालने और बैठानेवाला हो; जिससे यहोवा की मण्डली बिना चरवाहे की भेड़-बकरियों के समान न रहे।” (मत्ती 9:36, मर. 6:34)

18 यहोवा ने मूसा से कहा, “तू नून के पुत्र यहोशू को लेकर उस पर हाथ रख; वह तो ऐसा पुरुष है जिसमें मेरा आत्मा बसा है;

19 और उसको एलीआजर याजक के और सारी मण्डली के सामने खड़ा करके उनके सामने उसे आज्ञा दे।

20 और अपनी महिमा में से कुछ उसे दे, जिससे इस्राएलियों की सारी मण्डली उसकी माना करे।

21 और वह एलीआजर याजक के सामने खड़ा हुआ करे, और एलीआजर उसके लिये यहोवा से ऊरीम की आज्ञा पूछा करे; और वह इस्राएलियों की सारी मण्डली समेत उसके कहने से जाया करे, और उसी के कहने से लौट भी आया करे।”

22 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने यहोशू को लेकर, एलीआजर याजक और सारी मण्डली के सामने खड़ा करके,

23 उस पर हाथ रखे, और उसको आज्ञा दी जैसे कि यहोवा ने मूसा के द्वारा कहा था।

नियत समयों के विशेष बलिदान

28  1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 “इस्राएलियों को यह आज्ञा सुना, ‘मेरा चढ़ावा, अर्थात् मुझे सुखदायक सुगन्ध देनेवाला मेरा हव्यरूपी भोजन, तुम लोग मेरे लिये उनके नियत समयों पर चढ़ाने के लिये स्मरण रखना।’

3 और तू उनसे कह: जो-जो तुम्हें यहोवा के लिये चढ़ाना होगा वे ये हैं; अर्थात् नित्य होमबलि के लिये एक-एक वर्ष के दो निर्दोष भेड़ी के नर बच्चे प्रतिदिन चढ़ाया करना।

4 एक बच्चे को भोर को और दूसरे को सांझ के समय चढ़ाना;

5 और भेड़ के बच्चे के साथ एक चौथाई हीन कूटकर निकाले हुए तेल से सने हुए एपा के दसवें अंश मैदे का अन्नबलि चढ़ाना।

6 यह नित्य होमबलि है, जो सीनै पर्वत पर यहोवा का सुखदायक सुगन्धवाला हव्य होने के लिये ठहराया गया।

7 और उसका अर्घ प्रति एक भेड़ के बच्चे के संग एक चौथाई हीन हो; मदिरा का यह अर्घ यहोवा के लिये पवित्रस्थान में देना[fn] *।

8 और दूसरे बच्चे को सांझ के समय चढ़ाना; अन्नबलि और अर्घ समेत भोर के होमबलि के समान उसे यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य करके चढ़ाना।

विश्रामदिन के बलिदान

9 “फिर विश्रामदिन को दो निर्दोष भेड़ के एक साल के नर बच्चे, और अन्नबलि के लिये तेल से सना हुआ एपा का दो दसवाँ अंश मैदा अर्घ समेत चढ़ाना।

10 नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा प्रत्येक विश्रामदिन का यही होमबलि ठहरा है। (मत्ती 12:5)

मासिक बलिदान

11 “फिर अपने महीनों के आरम्भ में प्रतिमाह यहोवा के लिये होमबलि चढ़ाना; अर्थात् दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक-एक वर्ष के निर्दोष भेड़ के सात नर बच्चे;

12 और बछड़े के साथ तेल से सना हुआ एपा का तीन दसवाँ अंश मैदा, और उस एक मेढ़े के साथ तेल से सना हुआ एपा का दो दसवाँ अंश मैदा;

13 और प्रत्येक भेड़ के बच्चे के पीछे तेल से सना हुआ एपा का दसवाँ अंश मैदा, उन सभी को अन्नबलि करके चढ़ाना; वह सुखदायक सुगन्ध देने के लिये होमबलि और यहोवा के लिये हव्य ठहरेगा।

14 और उनके साथ ये अर्घ हों; अर्थात् बछड़े के साथ आधा हीन, मेढ़े के साथ तिहाई हीन, और भेड़ के बच्चे के साथ चौथाई हीन दाखमधु दिया जाए; वर्ष के सब महीनों में से प्रत्येक महीने का यही होमबलि ठहरे।

15 और एक बकरा पापबलि करके यहोवा के लिये चढ़ाया जाए; यह नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा चढ़ाया जाए।

फसह के पर्व के बलिदान

16 “फिर पहले महीने के चौदहवें दिन को यहोवा का फसह[fn] * हुआ करे।

17 और उसी महीने के पन्द्रहवें दिन को पर्व लगा करे; सात दिन तक अख़मीरी रोटी खाई जाए।

18 पहले दिन पवित्र सभा हो; और उस दिन परिश्रम का कोई काम न किया जाए;

19 उसमें तुम यहोवा के लिये हव्य, अर्थात् होमबलि चढ़ाना; अतः दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक-एक वर्ष के सात भेड़ के नर बच्चे हों; ये सब निर्दोष हों;

20 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; बछड़े के साथ एपा का तीन दसवाँ अंश और मेढ़े के साथ एपा का दो दसवाँ अंश मैदा हो।

21 और सातों भेड़ के बच्चों में से प्रति बच्चे के साथ एपा का दसवाँ अंश चढ़ाना।

22 और एक बकरा भी पापबलि करके चढ़ाना, जिससे तुम्हारे लिये प्रायश्चित हो।

23 भोर का होमबलि जो नित्य होमबलि ठहरा है, उसके अलावा इनको चढ़ाना।

24 इस रीति से तुम उन सातों दिनों में भी हव्य का भोजन चढ़ाना, जो यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिये हो; यह नित्य होमबलि और उसके अर्घ के अलावा चढ़ाया जाए।

25 और सातवें दिन भी तुम्हारी पवित्र सभा हो; और उस दिन परिश्रम का कोई काम न करना।

कटनी के पर्व के बलिदान

26 “फिर पहली उपज के दिन में, जब तुम अपने कटनी के पर्व में यहोवा के लिये नया अन्नबलि चढ़ाओगे, तब भी तुम्हारी पवित्र सभा हो; और परिश्रम का कोई काम न करना।

27 और एक होमबलि चढ़ाना, जिससे यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्ध हो; अर्थात् दो बछड़े, एक मेढ़ा, और एक-एक वर्ष के सात भेड़ के नर बच्चे;

28 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्थात् बछड़े के साथ एपा का तीन दसवाँ अंश, और मेढ़े के संग एपा का दो दसवाँ अंश,

29 और सातों भेड़ के बच्चों में से एक-एक बच्चे के पीछे एपा का दसवाँ अंश मैदा चढ़ाना।

30 और एक बकरा भी चढ़ाना, जिससे तुम्हारे लिये प्रायश्चित हो।

31 ये सब निर्दोष हों; और नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा इसको भी चढ़ाना।

तुरहियों के पर्व की भेंट

29  1 “फिर सातवें महीने के पहले दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; उसमें परिश्रम का कोई काम न करना। वह तुम्हारे लिये जयजयकार का नरसिंगा फूँकने का दिन ठहरा है;

2 तुम होमबलि चढ़ाना, जिससे यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्ध हो; अर्थात् एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक-एक वर्ष के सात निर्दोष भेड़ के नर बच्चे;

3 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्थात् बछड़े के साथ एपा का तीन दसवाँ अंश, और मेढ़े के साथ एपा का दसवाँ अंश,

4 और सातों भेड़ के बच्चों में से एक-एक बच्चे के साथ एपा का दसवाँ अंश मैदा चढ़ाना।

5 और एक बकरा भी पापबलि करके चढ़ाना, जिससे तुम्हारे लिये प्रायश्चित हो।

6 इन सभी से अधिक नये चाँद का होमबलि और उसका अन्नबलि, और नित्य होमबलि और उसका अन्नबलि, और उन सभी के अर्घ भी उनके नियम के अनुसार सुखदायक सुगन्ध देने के लिये यहोवा के हव्य करके चढ़ाना।

प्रायश्चित का दिन

7 “फिर उसी सातवें महीने के दसवें दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; तुम उपवास करके अपने-अपने प्राण को दुःख देना[fn] *, और किसी प्रकार का काम-काज न करना;

8 और यहोवा के लिये सुखदायक सुगन्ध देने को होमबलि; अर्थात् एक बछड़ा, एक मेढ़ा, और एक-एक वर्ष के सात भेड़ के नर बच्चे चढ़ाना; फिर ये सब निर्दोष हों;

9 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्थात् बछड़े के साथ एपा का तीन दसवाँ अंश, और मेढ़े के साथ एपा का दो दसवाँ अंश,

10 और सातों भेड़ के बच्चों में से एक-एक बच्चे के पीछे एपा का दसवाँ अंश मैदा चढ़ाना।

11 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये सब प्रायश्चित के पापबलि और नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि के, और उन सभी के अर्घों के अलावा चढ़ाए जाएँ।

झोपड़ियों का पर्व

12 “फिर सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन को तुम्हारी पवित्र सभा हो; और उसमें परिश्रम का कोई काम न करना, और सात दिन तक यहोवा के लिये पर्व मानना[fn] *;

13 तुम होमबलि यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिये हव्य करके चढ़ाना; अर्थात् तेरह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक-एक वर्ष के चौदह भेड़ के नर बच्चे; ये सब निर्दोष हों;

14 और उनका अन्नबलि तेल से सने हुए मैदे का हो; अर्थात् तेरहों बछड़ों में से एक-एक बछड़े के साथ एपा का तीन दसवाँ अंश, और दोनों मेढ़ों में से एक-एक मेढ़े के साथ एपा का दो दसवाँ अंश,

15 और चौदहों भेड़ के बच्चों में से एक-एक बच्चे के साथ एपा का दसवाँ अंश मैदा चढ़ाना।

16 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएँ।

17 “फिर दूसरे दिन बारह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक-एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के नर बच्चे चढ़ाना;

18 और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।

19 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएँ।

20 “फिर तीसरे दिन ग्यारह बछड़े, और दो मेढ़े, और एक-एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के नर बच्चे चढ़ाना;

21 और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।

22 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएँ।

23 “फिर चौथे दिन दस बछड़े, और दो मेढ़े, और एक-एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के नर बच्चे चढ़ाना;

24 बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।

25 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएँ।

26 “फिर पाँचवें दिन नौ बछड़े, दो मेढ़े, और एक-एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के नर बच्चे चढ़ाना;

27 और बछड़ों, मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।

28 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएँ।

29 “फिर छठवें दिन आठ बछड़े, और दो मेढ़े, और एक-एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के नर बच्चे चढ़ाना;

30 और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार और नियम के अनुसार चढ़ाना।

31 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएँ।

32 “फिर सातवें दिन सात बछड़े, और दो मेढ़े, और एक-एक वर्ष के चौदह निर्दोष भेड़ के नर बच्चे चढ़ाना।

33 और बछड़ों, और मेढ़ों, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।

34 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएँ।

35 “फिर आठवें दिन तुम्हारी एक महासभा हो[fn] *; उसमें परिश्रम का कोई काम न करना,

36 और उसमें होमबलि यहोवा को सुखदायक सुगन्ध देने के लिये हव्य करके चढ़ाना; वह एक बछड़े, और एक मेढ़े, और एक-एक वर्ष के सात निर्दोष भेड़ के नर बच्चों का हो;

37 बछड़े, और मेढ़े, और भेड़ के बच्चों के साथ उनके अन्नबलि और अर्घ, उनकी गिनती के अनुसार, और नियम के अनुसार चढ़ाना।

38 और पापबलि के लिये एक बकरा भी चढ़ाना; ये नित्य होमबलि और उसके अन्नबलि और अर्घ के अलावा चढ़ाए जाएँ।

39 “अपनी मन्नतों और स्वेच्छाबलियों के अलावा, अपने-अपने नियत समयों में, ये ही होमबलि, अन्नबलि, अर्घ, और मेलबलि, यहोवा के लिये चढ़ाना।”

40 यह सारी आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी जो उसने इस्राएलियों को सुनाई।

मन्नत मानने की विधि

30  1 फिर मूसा ने इस्राएली गोत्रों के मुख्य-मुख्य पुरुषों से कहा, “यहोवा ने यह आज्ञा दी है:

2 जब कोई पुरुष यहोवा की मन्नत माने, या अपने आप को वाचा से बाँधने के लिये शपथ खाए[fn] *, तो वह अपना वचन न टाले; जो कुछ उसके मुँह से निकला हो उसके अनुसार वह करे। (मत्ती 5:33)

3 और जब कोई स्त्री अपनी कुँवारी अवस्था में, अपने पिता के घर में रहते हुए, यहोवा की मन्नत माने[fn] *, व अपने को वाचा से बाँधे,

4 तो यदि उसका पिता उसकी मन्नत या उसका वह वचन सुनकर, जिससे उसने अपने आप को बाँधा हो, उससे कुछ न कहे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्थिर बनी रहें, और कोई बन्धन क्यों न हो, जिससे उसने अपने आप को बाँधा हो, वह भी स्थिर रहे।

5 परन्तु यदि उसका पिता उसकी सुनकर उसी दिन उसको मना करे, तो उसकी मन्नतें या और प्रकार के बन्धन, जिनसे उसने अपने आप को बाँधा हो, उनमें से एक भी स्थिर न रहे, और यहोवा यह जानकर, कि उस स्त्री के पिता ने उसे मना कर दिया है, उसका यह पाप क्षमा करेगा।

6 फिर यदि वह पति के अधीन हो और मन्नत माने, या बिना सोच विचार किए ऐसा कुछ कहे जिससे वह बन्धन में पड़े,

7 और यदि उसका पति सुनकर उस दिन उससे कुछ न कहे; तब तो उसकी मन्नतें स्थिर रहें, और जिन बन्धनों से उसने अपने आप को बाँधा हो वह भी स्थिर रहें।

8 परन्तु यदि उसका पति सुनकर उसी दिन उसे मना कर दे, तो जो मन्नत उसने मानी है, और जो बात बिना सोच-विचार किए कहने से उसने अपने आप को वाचा से बाँधा हो, वह टूट जाएगी; और यहोवा उस स्त्री का पाप क्षमा करेगा।

9 फिर विधवा या त्यागी हुई स्त्री की मन्नत, या किसी प्रकार की वाचा का बन्धन क्यों न हो, जिससे उसने अपने आप को बाँधा हो, तो वह स्थिर ही रहे।

10 फिर यदि कोई स्त्री अपने पति के घर में रहते मन्नत माने, या शपथ खाकर अपने आप को बाँधे,

11 और उसका पति सुनकर कुछ न कहे, और न उसे मना करे; तब तो उसकी सब मन्नतें स्थिर बनी रहें, और हर एक बन्धन क्यों न हो, जिससे उसने अपने आप को बाँधा हो, वह स्थिर रहे।

12 परन्तु यदि उसका पति उसकी मन्नत आदि सुनकर उसी दिन पूरी रीति से तोड़ दे, तो उसकी मन्नतें आदि, जो कुछ उसके मुँह से अपने बन्धन के विषय निकला हो, उसमें से एक बात भी स्थिर न रहे; उसके पति ने सब तोड़ दिया है; इसलिए यहोवा उस स्त्री का वह पाप क्षमा करेगा।

13 कोई भी मन्नत या शपथ क्यों न हो, जिससे उस स्त्री ने अपने जीव को दुःख देने की वाचा बाँधी हो, उसको उसका पति चाहे तो दृढ़ करे, और चाहे तो तोड़े;

14 अर्थात् यदि उसका पति दिन प्रतिदिन उससे कुछ भी न कहे, तो वह उसको सब मन्नतें आदि बन्धनों को जिनसे वह बंधी हो दृढ़ कर देता है; उसने उनको दृढ़ किया है, क्योंकि सुनने के दिन उसने कुछ नहीं कहा।

15 और यदि वह उन्हें सुनकर बहुत दिन पश्चात् तोड़ दे, तो अपनी स्त्री के अधर्म का भार वही उठाएगा।”

16 पति-पत्नी के बीच, और पिता और उसके घर में रहती हुई कुँवारी बेटी के बीच, जिन विधियों की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी वे ये ही हैं।

मिद्यानियों से पलटा लेने का वर्णन

31  1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 मिद्यानियों[fn] * से इस्राएलियों का पलटा ले; उसके बाद तू अपने लोगों में जा मिलेगा।”

3 तब मूसा ने लोगों से कहा, “अपने में से पुरुषों को युद्ध के लिये हथियार धारण कराओ कि वे मिद्यानियों पर चढ़कर उनसे यहोवा का पलटा लें।

4 इस्राएल के सब गोत्रों में से प्रत्येक गोत्र के एक-एक हजार पुरुषों को युद्ध करने के लिये भेजो।”

5 तब इस्राएल के सब गोत्रों में से प्रत्येक गोत्र के एक-एक हजार पुरुष चुने गये, अर्थात् युद्ध के लिये हथियार-बन्द बारह हजार पुरुष।

6 प्रत्येक गोत्र में से उन हजार-हजार पुरुषों को, और एलीआजर याजक के पुत्र पीनहास को, मूसा ने युद्ध करने के लिये भेजा, और पीनहास के हाथ में पवित्रस्थान के पात्र और वे तुरहियां थीं जो साँस बाँध-बाँध कर फूँकी जाती थीं।

7 और जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, उसके अनुसार उन्होंने मिद्यानियों से युद्ध करके सब पुरुषों को घात किया।

8 और शेष मारे हुओं को छोड़ उन्होंने एवी, रेकेम, सूर, हूर, और रेबा नामक मिद्यान के पाँचों राजाओं को घात किया; और बोर के पुत्र बिलाम को भी उन्होंने तलवार से घात किया।

9 और इस्राएलियों ने मिद्यानी स्त्रियों को बाल-बच्चों समेत बन्दी बना लिया; और उनके गाय-बैल, भेड़-बकरी, और उनकी सारी सम्पत्ति को लूट लिया।

10 और उनके निवास के सब नगरों, और सब छावनियों को फूँक दिया;

11 तब वे, क्या मनुष्य क्या पशु, सब बन्दियों और सारी लूट-पाट को लेकर

12 यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर, मोआब के अराबा में, छावनी के निकट, मूसा और एलीआजर याजक और इस्राएलियों की मण्डली के पास आए।

युद्ध से सेना की वापसी

13 तब मूसा और एलीआजर याजक और मण्डली के सब प्रधान छावनी के बाहर उनका स्वागत करने को निकले।

14 और मूसा सहस्त्रपति-शतपति आदि, सेनापतियों से, जो युद्ध करके लौटे आते थे क्रोधित होकर कहने लगा,

15 “क्या तुमने सब स्त्रियों को जीवित छोड़ दिया?

16 देखे, बिलाम की सम्मति से, पोर के विषय में इस्राएलियों से यहोवा का विश्वासघात इन्हीं स्त्रियों ने कराया, और यहोवा की मण्डली में मरी फैली।

17 इसलिए अब बाल-बच्चों में से हर एक लड़के को, और जितनी स्त्रियों ने पुरुष का मुँह देखा हो उन सभी को घात करो।

18 परन्तु जितनी लड़कियों ने पुरुष का मुँह न देखा हो उन सभी को तुम अपने लिये जीवित रखो।

19 और तुम लोग सात दिन तक छावनी के बाहर रहो, और तुम में से जितनों ने किसी प्राणी को घात किया, और जितनों ने किसी मरे हुए को छुआ हो, वे सब अपने-अपने बन्दियों समेत तीसरे और सातवें दिनों में अपने-अपने को पाप छुड़ाकर पावन करें।

20 और सब वस्त्रों, और चमड़े की बनी हुई सब वस्तुओं, और बकरी के बालों की और लकड़ी की बनी हुई सब वस्तुओं को पावन कर लो।”

21 तब एलीआजर याजक ने सेना के उन पुरुषों से जो युद्ध करने गए थे कहा, “व्यवस्था की जिस विधि की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी है वह यह है:

22 सोना, चाँदी, पीतल, लोहा, टीन, और सीसा,

23 जो कुछ आग में ठहर सके उसको आग में डालो, तब वह शुद्ध ठहरेगा; तो भी वह अशुद्धता से छुड़ानेवाले जल के द्वारा पावन किया जाए; परन्तु जो कुछ आग में न ठहर सके उसे जल में डुबाओ।

24 और सातवें दिन अपने वस्त्रों को धोना, तब तुम शुद्ध ठहरोगे; और तब छावनी में आना।”

लूट का बँटवारा

25 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

26 “एलीआजर याजक और मण्डली के पितरों के घरानों के मुख्य-मुख्य पुरुषों को साथ लेकर तू लूट के मनुष्यों और पशुओं की गिनती कर;

27 तब उनको आधा-आधा करके एक भाग उन सिपाहियों को जो युद्ध करने को गए थे, और दूसरा भाग मण्डली को दे।

28 फिर जो सिपाही युद्ध करने को गए थे, उनके आधे में से यहोवा के लिये, क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या गदहे, क्या भेड़-बकरियाँ

29 पाँच सौ के पीछे एक को मानकर ले ले; और यहोवा की भेंट करके एलीआजर याजक को दे-दे।

30 फिर इस्राएलियों के आधे में से, क्या मनुष्य, क्या गाय-बैल, क्या गदहे, क्या भेड़-बकरियाँ, क्या किसी प्रकार का पशु हो, पचास के पीछे एक लेकर यहोवा के निवास की रखवाली करनेवाले लेवियों को दे।” (गिन. 31:42-47, गिन. 3:7, 8, 25, 31, 36)

31 यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार जो उसने मूसा को दी मूसा और एलीआजर याजक ने किया।

32 और जो वस्तुएँ सेना के पुरुषों ने अपने-अपने लिये लूट ली थीं उनसे अधिक की लूट यह थी; अर्थात् छः लाख पचहत्तर हजार भेड़-बकरियाँ,

33 बहत्तर हजार गाय बैल,

34 इकसठ हजार गदहे,

35 और मनुष्यों में से जिन स्त्रियों ने पुरुष का मुँह नहीं देखा था वह सब बत्तीस हजार थीं।

36 और इसका आधा, अर्थात् उनका भाग जो युद्ध करने को गए थे, उसमें भेड़-बकरियाँ तीन लाख साढ़े सैंतीस हजार,

37 जिनमें से पौने सात सौ भेड़-बकरियाँ यहोवा का कर ठहरीं।

38 और गाय-बैल छत्तीस हजार, जिनमें से बहत्तर यहोवा का कर ठहरे।

39 और गदहे साढ़े तीस हजार, जिनमें से इकसठ यहोवा का कर ठहरे।

40 और मनुष्य सोलह हजार जिनमें से बत्तीस प्राणी यहोवा का कर ठहरे।

41 इस कर को जो यहोवा की भेंट थी मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार एलीआजर याजक को दिया।

42 इस्राएलियों की मण्डली का आधा भाग, जिसे मूसा ने युद्ध करनेवाले पुरुषों के पास से अलग किया था

43 तीन लाख साढ़े सैंतीस हजार भेड़-बकरियाँ

44 छत्तीस हजार गाय-बैल,

45 साढ़े तीस हजार गदहे,

46 और सोलह हजार मनुष्य हुए।

47 इस आधे में से, यहोवा की आज्ञा के अनुसार मूसा ने, क्या मनुष्य क्या पशु, पचास में से एक लेकर यहोवा के निवास की रखवाली करनेवाले लेवियों को दिया।

48 तब सहस्त्रपति-शतपति आदि, जो सरदार सेना के हजारों के ऊपर नियुक्त थे, वे मूसा के पास आकर कहने लगे,

49 “जो सिपाही हमारे अधीन थे उनकी तेरे दासों ने गिनती ली, और उनमें से एक भी नहीं घटा।

50 इसलिए पायजेब, कड़े, मुंदरियाँ, बालियाँ, बाजूबन्द, सोने के जो गहने, जिसने पाया है, उनको हम यहोवा के सामने अपने प्राणों के निमित्त प्रायश्चित करने को यहोवा की भेंट करके ले आए हैं।”

51 तब मूसा और एलीआजर याजक ने उनसे वे सब सोने के नक्काशीदार गहने ले लिए।

52 और सहस्त्रपतियों और शतपतियों ने जो भेंट का सोना यहोवा की भेंट करके दिया वह सब सोलह हजार साढ़े सात सौ शेकेल का था।

53 (योद्धाओं ने तो अपने-अपने लिये लूट ले ली थी।) (गिन. 31:32; व्य. 20:14)

54 यह सोना मूसा और एलीआजर याजक ने सहस्त्रपतियों और शतपतियों से लेकर मिलापवाले तम्बू में पहुँचा दिया, कि इस्राएलियों के लिये यहोवा के सामने स्मरण दिलानेवाली वस्तु ठहरे। (निर्ग. 30:16)

यरदन के पूर्व में बसे गोत्र

32  1 रूबेनियों और गादियों के पास बहुत से जानवर थे। जब उन्होंने याजेर और गिलाद देशों को देखकर विचार किया, कि वह पशुओं के योग्य देश है,

2 तब मूसा और एलीआजर याजक और मण्डली के प्रधानों के पास जाकर कहने लगे,

3 “अतारोत, दीबोन, याजेर, निम्रा, हेशबोन, एलाले, सबाम, नबो, और बोन नगरों का देश

4 जिस पर यहोवा ने इस्राएल की मण्डली को विजय दिलवाई है, वह पशुओं के योग्य है; और तेरे दासों के पास पशु हैं।”

5 फिर उन्होंने कहा, “यदि तेरा अनुग्रह तेरे दासों पर हो, तो यह देश तेरे दासों को मिले कि उनकी निज भूमि हो; हमें यरदन पार न ले चल।”

6 मूसा ने गादियों और रूबेनियों से कहा, “जब तुम्हारे भाई युद्ध करने को जाएँगे तब क्या तुम यहाँ बैठे रहोगे?

7 और इस्राएलियों से भी उस पार के देश जाने के विषय, जो यहोवा ने उन्हें दिया है, तुम क्यों अस्वीकार करवाते हो?

8 जब मैंने तुम्हारे बाप-दादों[fn] * को कादेशबर्ने से कनान देश देखने के लिये भेजा, तब उन्होंने भी ऐसा ही किया था।

9 अर्थात् जब उन्होंने एशकोल नामक घाटी तक पहुँचकर देश को देखा, तब इस्राएलियों से उस देश के विषय जो यहोवा ने उन्हें दिया था अस्वीकार करा दिया।

10 इसलिए उस समय यहोवा ने कोप करके यह शपथ खाई,

11 ‘निःसन्देह जो मनुष्य मिस्र से निकल आए हैं उनमें से, जितने बीस वर्ष के या उससे अधिक आयु के हैं, वे उस देश को देखने न पाएँगे, जिसके देने की शपथ मैंने अब्राहम, इसहाक, और याकूब से खाई है, क्योंकि वे मेरे पीछे पूरी रीति से नहीं हो लिये;

12 परन्तु यपुन्ने कनजी का पुत्र कालेब, और नून का पुत्र यहोशू, ये दोनों जो मेरे पीछे पूरी रीति से हो लिये हैं ये उसे देखने पाएँगे।’

13 अतः यहोवा का कोप इस्राएलियों पर भड़का, और जब तक उस पीढ़ी के सब लोगों का अन्त न हुआ, जिन्होंने यहोवा के प्रति बुरा किया था, तब तक अर्थात् चालीस वर्ष तक वह उन्हें जंगल में मारे-मारे फिराता रहा।

14 और सुनो, तुम लोग उन पापियों के बच्चे होकर इसलिए अपने बाप-दादों के स्थान पर प्रगट हुए हो, कि इस्राएल के विरुद्ध यहोवा के भड़के हुए कोप को और भी भड़काओ!

15 यदि तुम उसके पीछे चलने से फिर जाओ, तो वह फिर हम सभी को जंगल में छोड़ देगा; इस प्रकार तुम इन सारे लोगों का नाश कराओगे।”

16 तब उन्होंने मूसा के और निकट आकर कहा, “हम अपने पशुओं के लिये यहीं भेड़शाले बनाएँगे, और अपने बाल-बच्चों के लिये यहीं नगर बसाएँगे,

17 परन्तु आप इस्राएलियों के आगे-आगे हथियार-बन्द तब तक चलेंगे, जब तक उनको उनके स्थान में न पहुँचा दें; परन्तु हमारे बाल-बच्चे इस देश के निवासियों के डर से गढ़वाले नगरों में रहेंगे।

18 परन्तु जब तक इस्राएली अपने-अपने भाग के अधिकारी न हों तब तक हम अपने घरों को न लौटेंगे।

19 हम उनके साथ यरदन पार या कहीं आगे अपना भाग न लेंगे, क्योंकि हमारा भाग यरदन के इसी पार पूर्व की ओर मिला है।”

20 तब मूसा ने उनसे कहा, “यदि तुम ऐसा करो, अर्थात् यदि तुम यहोवा के आगे-आगे युद्ध करने को हथियार बाँधो।

21 और हर एक हथियार-बन्द यरदन के पार तब तक चले, जब तक यहोवा अपने आगे से अपने शत्रुओं को न निकाले

22 और देश यहोवा के वश में न आए; तो उसके पीछे तुम यहाँ लौटोगे, और यहोवा के और इस्राएल के विषय निर्दोष ठहरोगे; और यह देश यहोवा के प्रति तुम्हारी निज भूमि ठहरेगा।

23 और यदि तुम ऐसा न करो, तो यहोवा के विरुद्ध पापी ठहरोगे; और जान रखो कि तुम को तुम्हारा पाप लगेगा[fn] *।

24 तुम अपने बाल-बच्चों के लिये नगर बसाओ, और अपनी भेड़-बकरियों के लिये भेड़शाले बनाओ; और जो तुम्हारे मुँह से निकला है वही करो।”

25 तब गादियों और रूबेनियों ने मूसा से कहा, “अपने प्रभु की आज्ञा के अनुसार तेरे दास करेंगे।

26 हमारे बाल-बच्चे, स्त्रियाँ, भेड़-बकरी आदि, सब पशु तो यहीं गिलाद के नगरों में रहेंगे;

27 परन्तु अपने प्रभु के कहे के अनुसार तेरे दास सब के सब युद्ध के लिये हथियार-बन्द यहोवा के आगे-आगे लड़ने को पार जाएँगे।”

28 “तब मूसा ने उनके विषय में एलीआजर याजक, और नून के पुत्र यहोशू, और इस्राएलियों के गोत्रों के पितरों के घरानों के मुख्य-मुख्य पुरुषों को यह आज्ञा दी,

29 कि यदि सब गादी और रूबेनी पुरुष युद्ध के लिये हथियार-बन्द तुम्हारे संग यरदन पार जाएँ, और देश तुम्हारे वश में आ जाए, तो गिलाद देश उनकी निज भूमि होने को उन्हें देना।

30 परन्तु यदि वे तुम्हारे संग हथियार-बन्द पार न जाएँ, तो उनकी निज भूमि तुम्हारे बीच कनान देश में ठहरे।”

31 तब गादी और रूबेनी बोल उठे, “यहोवा ने जैसा तेरे दासों से कहलाया है वैसा ही हम करेंगे।

32 हम हथियार-बन्द यहोवा के आगे-आगे उस पार कनान देश में जाएँगे, परन्तु हमारी निज भूमि यरदन के इसी पार रहे।”

33 तब मूसा ने गादियों और रूबेनियों को, और यूसुफ के पुत्र मनश्शे के आधे गोत्रियों को एमोरियों के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग, दोनों के राज्यों का देश, नगरों, और उनके आस-पास की भूमि समेत दे दिया।

34 तब गादियों ने दीबोन, अतारोत, अरोएर,

35 अत्रौत, शोपान, याजेर, योगबहा,

36 बेतनिम्रा, और बेत-हारन नामक नगरों को दृढ़ किया, और उनमें भेड़-बकरियों के लिये भेड़शाला बनाए।

37 और रूबेनियों ने हेशबोन, एलाले, और किर्यातैम को,

38 फिर नबो और बालमोन के नाम बदलकर उनको, और सिबमा को दृढ़ किया; और उन्होंने अपने दृढ़ किए हुए नगरों के और-और नाम रखे।

39 और मनश्शे के पुत्र माकीर के वंशवालों ने गिलाद देश[fn] * में जाकर उसे ले लिया, और जो एमोरी उसमें रहते थे उनको निकाल दिया।

40 तब मूसा ने मनश्शे के पुत्र माकीर के वंश को गिलाद दे दिया, और वे उसमें रहने लगे।

41 और मनश्शेई याईर ने जाकर गिलाद की कितनी बस्तियाँ ले लीं, और उनके नाम हव्वोत्याईर रखे।

42 और नोबह ने जाकर गाँवों समेत कनात को ले लिया, और उसका नाम अपने नाम पर नोबह रखा।

मिस्र से इस्राएलियों की यात्रा का वर्णन

33  1 जब से इस्राएली मूसा और हारून की अगुआई में दल बाँधकर मिस्र देश से निकले, तब से उनके ये पड़ाव हुए।

2 मूसा ने यहोवा से आज्ञा पाकर उनके कूच उनके पड़ावों के अनुसार लिख दिए[fn] *; और वे ये हैं।

3 पहले महीने के पन्द्रहवें दिन को उन्होंने रामसेस से कूच किया; फसह के दूसरे दिन इस्राएली सब मिस्रियों के देखते बेखटके निकल गए,

4 जब कि मिस्री अपने सब पहलौठों को मिट्टी दे रहे थे जिन्हें यहोवा ने मारा था; और उसने उनके देवताओं को भी दण्ड दिया था।

5 इस्राएलियों ने रामसेस से कूच करके सुक्कोत में डेरे डाले।

6 और सुक्कोत से कूच करके एताम में, जो जंगल के छोर पर है, डेरे डाले।

7 और एताम से कूच करके वे पीहहीरोत को मुड़ गए, जो बाल-सपोन के सामने है; और मिग्दोल के सामने डेरे खड़े किए।

8 तब वे पीहहीरोत के सामने से कूच कर समुद्र के बीच होकर जंगल में गए, और एताम नामक जंगल[fn] * में तीन दिन का मार्ग चलकर मारा में डेरे डाले।

9 फिर मारा से कूच करके वे एलीम को गए, और एलीम में जल के बारह सोते और सत्तर खजूर के वृक्ष मिले, और उन्होंने वहाँ डेरे खड़े किए।

10 तब उन्होंने एलीम से कूच करके लाल समुद्र के तट पर डेरे खड़े किए।

11 और लाल समुद्र से कूच करके सीन नामक जंगल में डेरे खड़े किए।

12 फिर सीन नामक जंगल से कूच करके उन्होंने दोपका में डेरा किया।

13 और दोपका से कूच करके आलूश में डेरा किया।

14 और आलूश से कूच करके रपीदीम में डेरा किया, और वहाँ उन लोगों को पीने का पानी न मिला।

15 फिर उन्होंने रपीदीम से कूच करके सीनै के जंगल में डेरे डाले।

16 और सीनै के जंगल से कूच करके किब्रोतहत्तावा में डेरा किया।

17 और किब्रोतहत्तावा से कूच करके हसेरोत में डेरे डाले।

18 और हसेरोत से कूच करके रित्मा में डेरे डाले।

19 फिर उन्होंने रित्मा से कूच करके रिम्मोनपेरेस में डेरे खड़े किए।

20 और रिम्मोनपेरेस से कूच करके लिब्ना में डेरे खड़े किए।

21 और लिब्ना से कूच करके रिस्सा में डेरे खड़े किए।

22 और रिस्सा से कूच करके कहेलाता में डेरा किया।

23 और कहेलाता से कूच करके शेपेर पर्वत के पास डेरा किया।

24 फिर उन्होंने शेपेर पर्वत से कूच करके हरादा में डेरा किया।

25 और हरादा से कूच करके मखेलोत में डेरा किया।

26 और मखेलोत से कूच करके तहत में डेरे खड़े किए।

27 और तहत से कूच करके तेरह में डेरे डाले।

28 और तेरह से कूच करके मित्का में डेरे डाले।

29 फिर मित्का से कूच करके उन्होंने हशमोना में डेरे डाले।

30 और हशमोना से कूच करके मोसेरोत में डेरे खड़े किए।

31 और मोसेरोत से कूच करके याकानियों के बीच डेरा किया।

32 और याकानियों के बीच से कूच करके होर्हग्गिदगाद में डेरा किया।

33 और होर्हग्गिदगाद से कूच करके योतबाता में डेरा किया।

34 और योतबाता से कूच करके अब्रोना में डेरे खड़े किए।

35 और अब्रोना से कूच करके एस्योनगेबेर में डेरे खड़े किए।

36 और एस्योनगेबेर के कूच करके उन्होंने सीन नामक जंगल के कादेश में डेरा किया।

37 फिर कादेश से कूच करके होर पर्वत के पास, जो एदोम देश की सीमा पर है, डेरे डाले।

38 वहाँ इस्राएलियों के मिस्र देश से निकलने के चालीसवें वर्ष के पाँचवें महीने के पहले दिन को हारून याजक यहोवा की आज्ञा पाकर होर पर्वत पर चढ़ा, और वहाँ मर गया।

39 और जब हारून होर पर्वत पर मर गया तब वह एक सौ तेईस वर्ष का था।

40 और अराद का कनानी राजा, जो कनान देश के दक्षिण भाग में रहता था, उसने इस्राएलियों के आने का समाचार पाया।

41 तब इस्राएलियों ने होर पर्वत से कूच करके सलमोना में डेरे डाले।

42 और सलमोना से कूच करके पूनोन में डेरे डाले।

43 और पूनोन से कूच करके ओबोत में डेरे डालें।

44 और ओबोत से कूच करके अबारीम नामक डीहों में जो मोआब की सीमा पर हैं, डेरे डाले।

45 तब उन डीहों से कूच करके उन्होंने दीबोन में डेरा किया।

46 और दीबोन से कूच करके अल्मोनदिबलातैम में डेरा किया।

47 और अल्मोनदिबलातैम से कूच करके उन्होंने अबारीम नामक पहाड़ों में नबो के सामने डेरा किया।

48 फिर अबारीम पहाड़ों से कूच करके मोआब के अराबा में, यरीहो के पास यरदन नदी के तट पर डेरा किया।

49 और उन्होंने मोआब के अराबा में बेत्यशीमोत से लेकर आबेलशित्तीम तक यरदन के किनारे-किनारे डेरे डाले।

कनान पर आक्रमण का निर्देश

50 फिर मोआब के अराबा में, यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर, यहोवा ने मूसा से कहा,

51 “इस्राएलियों को समझाकर कह: जब तुम यरदन पार होकर कनान देश में पहुँचो

52 तब उस देश के निवासियों को उनके देश से निकाल देना; और उनके सब नक्काशीदार पत्थरों को और ढली हुई मूर्तियों को नाश करना, और उनके सब पूजा के ऊँचे स्थानों को ढा देना।

53 और उस देश को अपने अधिकार में लेकर उसमें निवास करना, क्योंकि मैंने वह देश तुम्हीं को दिया है कि तुम उसके अधिकारी हो।

54 और तुम उस देश को चिट्ठी डालकर अपने कुलों के अनुसार बाँट लेना; अर्थात् जो कुल अधिकवाले हैं उन्हें अधिक, और जो थोड़ेवाले हैं उनको थोड़ा भाग देना; जिस कुल की चिट्ठी जिस स्थान के लिये निकले वही उसका भाग ठहरे; अपने पितरों के गोत्रों के अनुसार अपना-अपना भाग लेना।

55 परन्तु यदि तुम उस देश के निवासियों को अपने आगे से न निकालोगे, तो उनमें से जिनको तुम उसमें रहने दोगे, वे मानो तुम्हारी आँखों में काँटे और तुम्हारे पांजरों में कीलें ठहरेंगे, और वे उस देश में जहाँ तुम बसोगे, तुम्हें संकट में डालेंगे।

56 और उनसे जैसा बर्ताव करने की मनसा मैंने की है वैसा ही तुम से करूँगा।”

कनान देश की सीमा

34  1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 “इस्राएलियों को यह आज्ञा दे: कि जो देश तुम्हारा भाग होगा वह तो चारों ओर की सीमा तक का कनान देश है, इसलिए जब तुम कनान देश[fn] * में पहुँचो,

3 तब तुम्हारा दक्षिणी प्रान्त सीन नामक जंगल से ले एदोम देश के किनारे-किनारे होता हुआ चला जाए, और तुम्हारा दक्षिणी सीमा खारे ताल के सिरे पर आरम्भ होकर पश्चिम की ओर चले;

4 वहाँ से तुम्हारी सीमा अक्रब्बीम नामक चढ़ाई की दक्षिण की ओर पहुँचकर मुड़ें, और सीन तक आए, और कादेशबर्ने के दक्षिण की ओर निकले, और हसरद्दार तक बढ़के अस्मोन तक पहुँचे;

5 फिर वह सीमा अस्मोन से घूमकर मिस्र के नाले तक पहुँचे, और उसका अन्त समुद्र का तट ठहरे।

6 “फिर पश्चिमी सीमा महासमुद्र हो; तुम्हारा पश्चिमी सीमा यही ठहरे।

7 “तुम्हारी उत्तरी सीमा यह हो, अर्थात् तुम महासमुद्र से ले होर पर्वत[fn] * तक सीमा बाँधना;

8 और होर पर्वत से हमात की घाटी तक सीमा बाँधना, और वह सदाद पर निकले;

9 फिर वह सीमा जिप्रोन तक पहुँचे, और हसरेनान पर निकले; तुम्हारी उत्तरी सीमा यही ठहरे।

10 “फिर अपनी पूर्वी सीमा हसरेनान से शपाम तक बाँधना;

11 और वह सीमा शपाम से रिबला तक, जो ऐन की पूर्व की ओर है, नीचे को उतरते-उतरते किन्नेरेत नामक ताल के पूर्व से लग जाए;

12 और वह सीमा यरदन तक उतरके खारे ताल के तट पर निकले। तुम्हारे देश के चारों सीमाएँ ये ही ठहरें।”

13 तब मूसा ने इस्राएलियों से फिर कहा, “जिस देश के तुम चिट्ठी डालकर अधिकारी होंगे, और यहोवा ने उसे साढ़े नौ गोत्र के लोगों को देने की आज्ञा दी है, वह यही है;

14 परन्तु रूबेनियों और गादियों के गोत्र तो अपने-अपने पितरों के कुलों के अनुसार अपना-अपना भाग पा चुके हैं, और मनश्शे के आधे गोत्र के लोग भी अपना भाग पा चुके हैं;

15 अर्थात् उन ढाई गोत्रों के लोग यरीहो के पास की यरदन के पार पूर्व दिशा में, जहाँ सूर्योदय होता है, अपना-अपना भाग पा चुके हैं।”

देश बाँटने वाले प्रधान

16 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

17 “जो पुरुष तुम लोगों के लिये उस देश को बाँटेंगे उनके नाम ये हैं एलीआजर याजक और नून का पुत्र यहोशू।

18 और देश को बाँटने के लिये एक-एक गोत्र का एक-एक प्रधान ठहराना।

19 और इन पुरुषों के नाम ये हैं यहूदागोत्री यपुन्ने का पुत्र कालेब,

20 शिमोनगोत्री अम्मीहूद का पुत्र शमूएल,

21 बिन्यामीनगोत्री किसलोन का पुत्र एलीदाद,

22 दान के गोत्र का प्रधान योग्ली का पुत्र बुक्की,

23 यूसुफियों में से मनश्शेइयों के गोत्र का प्रधान एपोद का पुत्र हन्नीएल,

24 और एप्रैमियों के गोत्र का प्रधान शिप्तान का पुत्र कमूएल,

25 जबूलूनियों के गोत्र का प्रधान पर्नाक का पुत्र एलीसापान,

26 इस्साकारियों के गोत्र का प्रधान अज्जान का पुत्र पलतीएल,

27 आशेरियों के गोत्र का प्रधान शलोमी का पुत्र अहीहूद,

28 और नप्तालियों के गोत्र का प्रधान अम्मीहूद का पुत्र पदहेल।”

29 जिन पुरुषों को यहोवा ने कनान देश को इस्राएलियों के लिये बाँटने की आज्ञा दी वे ये ही हैं।

लेवियों के नगर

35  1 फिर यहोवा ने, मोआब के अराबा में, यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर मूसा से कहा,

2 “इस्राएलियों को आज्ञा दे, कि तुम अपने-अपने निज भाग की भूमि में से लेवियों को रहने के लिये नगर देना; और नगरों के चारों ओर की चराइयाँ भी उनको देना।

3 नगर तो उनके रहने के लिये, और चराइयाँ उनके गाय-बैल और भेड़-बकरी आदि, उनके सब पशुओं के लिये होंगी।

4 और नगरों की चराइयाँ, जिन्हें तुम लेवियों को दोगे, वह एक-एक नगर की शहरपनाह से बाहर चारों ओर एक-एक हजार हाथ तक की हों।

5 और नगर के बाहर पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, और उत्तर की ओर, दो-दो हजार हाथ इस रीति से नापना कि नगर बीचोंबीच हो; लेवियों के एक-एक नगर की चराई इतनी ही भूमि की हो।

6 और जो नगर तुम लेवियों को दोगे उनमें से छः[fn] * शरणनगर हों, जिन्हें तुम को खूनी के भागने के लिये ठहराना होगा, और उनसे अधिक बयालीस नगर और भी देना।

7 जितने नगर तुम लेवियों को दोगे वे सब अड़तालीस हों, और उनके साथ चराइयाँ देना।

8 और जो नगर तुम इस्राएलियों की निज भूमि में से दो, वे जिनके बहुत नगर हों उनसे बहुत, और जिनके थोड़े नगर हों उनसे थोड़े लेकर देना; सब अपने-अपने नगरों में से लेवियों को अपने ही अपने भाग के अनुसार दें।”

खूनी के लिये शरणनगर

9 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

10 “इस्राएलियों से कह: जब तुम यरदन पार होकर कनान देश में पहुँचो,

11 तक ऐसे नगर ठहराना जो तुम्हारे लिये शरणनगर हों, कि जो कोई किसी को भूल से मारकर खूनी ठहरा हो वह वहाँ भाग जाए।

12 वे नगर तुम्हारे निमित्त पलटा लेनेवाले से शरण लेने के काम आएँगे, कि जब तक खूनी न्याय के लिये मण्डली के सामने खड़ा न हो तब तक वह न मार डाला जाए।

13 और शरण के जो नगर तुम दोगे वे छः हों।

14 तीन नगर तो यरदन के इस पार, और तीन कनान देश में देना; शरणनगर इतने ही रहें।

15 ये छहों नगर इस्राएलियों के और उनके बीच रहनेवाले परदेशियों के लिये भी शरणस्थान ठहरें, कि जो कोई किसी को भूल से मार डाले वह वहीं भाग जाए।

16 “परन्तु यदि कोई किसी को लोहे के किसी हथियार से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो वह खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए[fn] *।

17 और यदि कोई ऐसा पत्थर हाथ में लेकर, जिससे कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए।

18 या कोई हाथ में ऐसी लकड़ी लेकर, जिससे कोई मर सकता है, किसी को मारे, और वह मर जाए, तो वह भी खूनी ठहरेगा; और वह खूनी अवश्य मार डाला जाए।

19 लहू का पलटा लेनेवाला आप की उस खूनी को मार डाले; जब भी वह मिले तब ही वह उसे मार डाले।

20 और यदि कोई किसी को बैर से ढकेल दे, या घात लगाकर कुछ उस पर ऐसे फेंक दे कि वह मर जाए,

21 या शत्रुता से उसको अपने हाथ से ऐसा मारे कि वह मर जाए, तो जिसने मारा हो वह अवश्य मार डाला जाए; वह खूनी ठहरेगा; लहू का पलटा लेनेवाला जब भी वह खूनी उसे मिल जाए तब ही उसको मार डाले।

22 “परन्तु यदि कोई किसी को बिना सोचे, और बिना शत्रुता रखे ढकेल दे, या बिना घात लगाए उस पर कुछ फेंक दे,

23 या ऐसा कोई पत्थर लेकर, जिससे कोई मर सकता है, दूसरे को बिना देखे उस पर फेंक दे, और वह मर जाए, परन्तु वह न उसका शत्रु हो, और न उसकी हानि का खोजी रहा हो;

24 तो मण्डली मारनेवाले और लहू का पलटा लेनेवाले के बीच इन नियमों के अनुसार न्याय करे; (गिन. 35:12, यहो. 20:6)

25 और मण्डली उस खूनी को लहू के पलटा लेनेवाले के हाथ से बचाकर उस शरणनगर में जहाँ वह पहले भाग गया हो लौटा दे, और जब तक पवित्र तेल से अभिषेक किया हुआ महायाजक न मर जाए तब तक वह वहीं रहे।

26 परन्तु यदि वह खूनी उस शरणस्थान की सीमा से जिसमें वह भाग गया हो बाहर निकलकर और कहीं जाए,

27 और लहू का पलटा लेनेवाला उसको शरणनगर की सीमा के बाहर कहीं पाकर मार डाले, तो वह लहू बहाने का दोषी न ठहरे।

28 क्योंकि खूनी को महायाजक की मृत्यु तक शरणनगर में रहना चाहिये; और महायाजक के मरने के पश्चात् वह अपनी निज भूमि को लौट सकेगा।

29 “तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में तुम्हारे सब रहने के स्थानों में न्याय की यह विधि होगी।

30 और जो कोई किसी मनुष्य को मार डाले वह साक्षियों के कहने पर मार डाला जाए, परन्तु एक ही साक्षी की साक्षी से कोई न मार डाला जाए। (व्य. 17:6, मत्ती 18:16)

31 और जो खूनी प्राणदण्ड के योग्य ठहरे उससे प्राणदण्ड के बदले में जुर्माना न लेना; वह अवश्य मार डाला जाए।

32 और जो किसी शरणस्थान में भागा हो उसके लिये भी इस मतलब से जुर्माना न लेना, कि वह याजक के मरने से पहले फिर अपने देश में रहने को लौटने पाए।

33 इसलिए जिस देश में तुम रहोगे उसको अशुद्ध न करना; खून से तो देश अशुद्ध हो जाता है, और जिस देश में जब खून किया जाए तब केवल खूनी के लहू बहाने ही से उस देश का प्रायश्चित हो सकता है। (व्य. 21:7)

34 जिस देश में तुम निवास करोगे उसके बीच मैं रहूँगा, उसको अशुद्ध न करना; मैं यहोवा तो इस्राएलियों के बीच रहता हूँ।” (लैव्य. 18:24)

सलोफाद की बेटियों का भाग

36  1 फिर यूसुफियों के कुलों में से गिलाद, जो माकीर का पुत्र और मनश्शे का पोता था, उसके वंश के कुल के पितरों के घरानों के मुख्य-मुख्य पुरुष मूसा के समीप जाकर उन प्रधानों के सामने, जो इस्राएलियों के पितरों के घरानों के मुख्य पुरुष थे, कहने लगे,

2 “यहोवा ने हमारे प्रभु को आज्ञा दी थी, कि इस्राएलियों को चिट्ठी डालकर देश बाँट देना; और फिर यहोवा की यह भी आज्ञा हमारे प्रभु को मिली, कि हमारे सगोत्री सलोफाद का भाग उसकी बेटियों को देना[fn] *।

3 पर यदि वे इस्राएलियों के और किसी गोत्र के पुरुषों से ब्याही जाएँ, तो उनका भाग हमारे पितरों के भाग से छूट जाएगा, और जिस गोत्र में से ब्याही जाएँ उसी गोत्र के भाग में मिल जाएगा; तब हमारा भाग घट जाएगा।

4 और जब इस्राएलियों की जुबली होगी, तब जिस गोत्र में वे ब्याही जाएँ उसके भाग में उनका भाग पक्की रीति से मिल जाएगा; और वह हमारे पितरों के गोत्र के भाग से सदा के लिये छूट जाएगा[fn] *।”

5 तब यहोवा से आज्ञा पाकर मूसा ने इस्राएलियों से कहा, “यूसुफियों के गोत्री ठीक कहते हैं।

6 सलोफाद की बेटियों के विषय में यहोवा ने यह आज्ञा दी है, कि जो वर जिसकी दृष्टि में अच्छा लगे वह उसी से ब्याही जाए; परन्तु वे अपने मूलपुरुष ही के गोत्र के कुल में ब्याही जाएँ।

7 और इस्राएलियों के किसी गोत्र का भाग दूसरे के गोत्र के भाग में न मिलने पाए; इस्राएली अपने-अपने मूलपुरुष के गोत्र के भाग पर बने रहें।

8 और इस्राएलियों के किसी गोत्र में किसी की बेटी हो जो भाग पानेवाली हो, वह अपने ही मूलपुरुष के गोत्र के किसी पुरुष से ब्याही जाए, इसलिए कि इस्राएली अपने-अपने मूलपुरुष के भाग के अधिकारी रहें।

9 किसी गोत्र का भाग दूसरे गोत्र के भाग में मिलने न पाएँ; इस्राएलियों के एक-एक गोत्र के लोग अपने-अपने भाग पर बने रहें।”

10 यहोवा की आज्ञा के अनुसार जो उसने मूसा को दी सलोफाद की बेटियों ने किया।

11 अर्थात् महला, तिर्सा, होग्ला, मिल्का, और नोवा, जो सलोफाद की बेटियाँ थी, उन्होंने अपने चचेरे भाइयों से ब्याह किया।

12 वे यूसुफ के पुत्र मनश्शे के वंश के कुलों में ब्याही गईं, और उनका भाग उनके मूलपुरुष के कुल के गोत्र के अधिकार में बना रहा।

13 जो आज्ञाएँ और नियम यहोवा ने मोआब के अराबा में यरीहो के पास की यरदन नदी के तट पर मूसा के द्वारा इस्राएलियों को दिए वे ये ही हैं।

Footnotes

1.20 रूबेन के वंश: यह पंजीकरण विशेष करके सेना के उद्देश्य से था

1.47 लेवीय: लेवी गोत्र की जनगणना की जाती है तब सब पुरुषों को गिना जाता हैं एक माह की आयु से ऊपर तक जैसा अन्य गोत्रों में नहीं किया जाता था।

2.34 जो-जो आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी थी, इस्राएली उन आज्ञाओं के अनुसार: इस प्रकार परमेश्वर की सांसारिक प्रजा की छावनी दिव्य व्यवस्था में आ गई और मिलापवाला तम्बू छावनी के मध्य था सबकी निर्भरता परमेश्वर पर और परमेश्वर की निकटता जिसका सब आनन्द लेते थे

3.7 सेवा करें: उसको जेसा सहयोग दें कि उस पर और कलीसिया पर जो दायित्व बोझ था वह निभाया जाए

3.13 सब पहलौठे: वे सब मेरे ही होंगे वे मेरे ही ठहरेंगे यहोवा के पहिलौठों के स्थान में

4.6 डंडों को लगाएँ: वे उन सोने के छल्लों से कभी न निकाले जाएँ जिनके द्वारा वाचा का सन्दूक उठाया जाता था।

4.20 देखने को क्षण भर के लिये भी: पवित्र वस्तुओं को पल भर के लिए भी देखना

4.32 एक-एक वस्तु का नाम लेकर तुम गिन लो: प्रत्येक वस्तु उसके ढोनेवाले का नाम लेकर सौंप दी जाए। ये वस्तुएँ मिलापवाले तम्बू का भारी सामान था

5.8 उसके लिये प्रायश्चित किया जाए: जो उसे दोष मुक्त करे।

5.14 जलन उत्पन्न हो: क्योंकि व्यभिचार विशेष करके सामाजिक व्यवस्था की नींव को अशुद्ध एवं ध्वंस करता हैं।

5.21 पेट फुलाए: अर्थात् ‘बाँझ’

5.23 कड़वे जल से मिटाकर: कि शाप कड़वे जल में चला जाए

5.24 स्त्री को वह कड़वा जल पिलाए: यह उसके द्वारा काल्पनिक शाप का स्वीकरण और उस पर उसका वास्तविक क्रियान्वन यदि वह दोषी है दोनों का स्वीकरण होगा।

6.2 नाज़ीर: इसका अर्थ है “प्रथक किया जाना जैसे आगे लिखा है “ यहोवा के लिए”

6.5 अपने सिर पर छुरा न फिराए: सिर पर बालों का बढ़ना पुरुष के द्वारा संपूर्ण बल एवं शक्ति से परमेश्वर की सेवा में समर्पण प्रगट करता है।

6.18 सिर को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर मुण्डाकर: नाज़िर परमेश्वर से सम्मान में बाल नहीं काटता है तो समय पूरा हो जाने पर उसकी शपथ का प्रतीक उसके बाल मुण्डा कर पवित्र स्थान में परमेश्वर को चढ़ाए जाए

6.27 इस रीति से मेरे नाम को इस्राएलियों पर रखें: अर्थात् मेरे पवित्र नाम को उन पर आशीष हेतु घोषित करें। पुरोहितों आशीर्वाद दें तो परमेश्वर उसे प्रभावी करेगा।

7.3 भरी हुई गाड़ियाँ: अर्थात् जिन गाड़ियों के पहिए नहीं केवल दो बैलों द्वारा चलाई जाए, एक बैल आगे और एक पीछे।

7.12 अपनी भेंट ले गया: अगुवे गोत्रों के निर्धारित क्रम के अनुसार भेंट लाते थे। ये बारह भेंटें

8.7 पावन करनेवाला जल: पाप शोधन का जल नि:सन्देह पवित्र स्थान के हो दे से लिया गया जो मिलापवाले तम्बू में सेवा हेतु प्रवेश करने से पूर्व पुरोहितों द्वारा शोधन के लिए काम में लिया जाता था।

8.19 प्रायश्चित किया करें: इस्राएल की सन्तान के लिए की जानेवाले सेवाओं को पूरा करें।

9.6 कुछ लोग: मिशाएल और एलिजापन जिन्होंने अपने चचेरे भाइयों नादाव और ऐली को उस फसह के एक सप्ताह में दफ़न किया था।

9.12 फसह के पर्व को सारी विधियों के अनुसार मनाएँ: फसह के मेम्ने से संबन्धित

9.15 बादल: बादल संपूर्ण तम्बू पर नहीं केवल “साक्षी के तम्बू पर” छाया करता था अर्थात् वह स्थान जिसमें “साक्षी का सन्दूक” निर्ग. 25:16, निर्ग. 25:22 तथा पवित्र स्थान था।

10.2 तुरहियां: गोलाकार नहीं सीधी तुरहियां

10.8 हारून के पुत्र: ये तुरहियां परमेश्वर की वाणी का चिन्ह थीं, अत: केवल पुरोहित उनको काम में लें । इस समय हारून के केवल दो ही पुत्र थे।

10.31 तू हमारे लिए आँखों का काम करना: होबाब उन स्थानों को बताता था जहां पानी इंधन तथा चारागाह थीं और उन्हें आंधियों की चेतावनी देता था

11.3 तबेरा: अर्थात् जलना, जहां आग लगी थी उस स्थान का नाम “तबेरा”` पड़ा।

11.17 जो आत्मा तुझ में है उसमें से कुछ लेकर: अर्थात् आत्मा में से अलग करके अर्थात् वे उसी दिव्य वरदान में से जो तुम में है अपना भाग प्राप्त करेंगे।

11.25 वे भविष्यद्वाणी करने लगे: पवित्र आत्मा की असाधारण प्रेरणा से उन्होंने परमेश्वर की स्तुति की या उसकी इच्छा प्रगट की।

12.3 मूसा .... बहुत अधिक नम्र स्वभाव का था: इन शब्दों द्वारा व्यक्त किया गया है कि मूसा द्वारा बदला न लेने का क्या कारण था और परिणाम स्वरूप परमेश्वर ने ऐसी शीघ्रता से हस्तक्षेप किया।

12.8 आमने-सामने और प्रत्यक्ष होकर: मूसा सीधा परमेश्वर से वचन ग्रहण करता था न कि स्वप्न और दर्शन के माध्यम से।

12.12 मरे हुए के समान: कोढ़ सदृश्य था शरीर का शनैःशनैः गलाना कि एक पैर के बाद दूसरा पैर सड़ जाता था।

13.23 एशकोल नामक नाले: कुछ विचारक इसे हेब्रोन निकट उत्तर की समृद्ध तराई कहते हैं।

13.25 चालीस दिन के बाद: नि:सन्देह इस बीच उन्होंने देश का निरिक्षण कर लिया था।

14.5 तब मूसा और हारून इस्राएलियों की सारी मण्डली के सामने मुँह के बल गिरे: कालेब ने प्रजा के लोगों को मूसा की सामने चुप कराने का विचार किया था। (गिन: 13:30) उसके प्रयास के विफल हो जाने पर मूसा और परन्तु न परमेश्वर के समक्ष मुंह के बल गिरकर प्रार्थना की।

15.2 जब तुम अपने निवास के देश में पहुँचो: युवा पीढ़ी के इस्राएलियों को आशा बन्धाई गई कि वे प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश अवश्य करेंगे।

16.3 सारी मण्डली का एक-एक मनुष्य पवित्र है: कोरह का उद्देश्य लेवियों और जन साधारण में अन्तर समाप्त करना नहीं था, वरन् स्वयं के लिए और अपने परिजनों के लिए पुरोहितीय उपाधि जीतना था।

16.11 यहोवा के विरुद्ध इकट्ठी किया है: क्रोध के कारण मूसा के शब्द टूट गए। हारून का पुरोहित होना परमेश्वर की ओर से था अत: उसका तिरस्कार करना परमेश्वर का तिरस्कार करना था।

16.14 क्या तू इन लोगों की आँखों में धूल डालेगा?: अपनी प्रतिज्ञा पूरी न करने के तथ्य के प्रति इन्हे अंधा करेगा “इनकी आँखों में धूल झोंकेगा।”

17.3 लेवियों की छड़ी पर हारून का नाम लिख: रून के घराने की श्रेष्ठता को उचित ठहराना आवश्यक क्योंकि इस्राएली उन पर बुड़बुड़ाने लगे थे।

17.8 पके बादाम भी लगे हैं: शीघ्रता और निश्चितता जिससे परमेश्वर उद्देश्य पूर्ण होते हैं परमेश्वर की इच्छा पर।

18.1 पवित्रस्थान के विरुद्ध अधर्म का भार: अधर्म का भार अर्थात् चूक करने वालों द्वारा परमेश्वर की महिमा के विरुद्ध लगातार अपराध करना।

18.6 परन्तु मैंने आप तुम्हारे लेवी भाइयों को इस्राएलियों के बीच से अलग कर लिया है: परमेश्वर पुरोहितों को निर्देश देता है कि उनका पद और जिस सहायता का वे आनन्द लेते हैं परमेश्वर के वरदान हैं और वैसे ही समझे जाए।

18.10 परमपवित्र वस्तु जानकर खाया करना: तद्नुसार पुरोहितों के परिवार के केवल पुरुष ही यहां निर्दिष्ट वस्तुओं को खाएँ।

18.23 उनके अधर्म का भार वे ही उठाया करें: इन शब्दों का सर्न्दभ संभवतः प्रजा के अपराधों से है जो मिलापवाले तम्बू में यदि प्रवेश करें तो अपराध करने की प्रवणता से गिर जाएँ।

19.3 छावनी से बाहर ले जाए: अशुद्धता को शिकार पर स्थानान्तरित माना जाता था जो उस के मोक्ष हेतु बलि चढ़ाया जाता था।

19.9 अशुद्धता से छुड़ानेवाले जल: देखें टिप्पणी गिन 8:7.

20.2 विरुद्ध इकट्ठे हुए: कुढ़कुढ़ाने वालों की भाषा ध्यान देने योग्य है। उस में पिछली पीढ़ी से आई पारम्परिक सविनय विरोध का भाव था।

20.11 लाठी चट्टान पर दो बार मारी: चट्टान पर लाठी मारना और दो बार मारना मूसा के उग्र रिस को प्रगट करता है परमेश्वर का विश्वासयोग्य सेवक उनकी बार बार दोहराई जानेवाले दुराग्रह से थक चुका था वह रोपड़ता हैं इस्राएल के समक्ष परमेश्वर के प्रति निधि के रूप में अपने दायित्व वहन में भी।

20.13 मरीबा: अर्थात् झगड़ा इस्राएलियों ने पानी के लिए मूसा से झगड़ा किया।

21.6 तेज विषवाले साँप: उनके डसने का जलनशील प्रभाव दर्शाता है।

21.8 साँप की प्रतिमा बनवाकर: पीतल का साँप उनके दण्ड का दूयोतक था और उसे निहारना उनका पाप स्वीकरण और उसके दण्ड से मुक्ति की कामना करना तथा परमेश्वर द्वारा नियुक्त विषहरण के साधन में विश्वास दर्शाता है।

21.24 यब्बोक नदी: अम्मोनियों की संतान के राबाह के अधीन पूर्व की ओर तब पश्चिम की ओर होती हुई यरदन तक पहुंचती है जो अम्मोन से 45 मील उत्तर में है।

21.25 हेशबोन: एक खण्डहर नगर मृत सागर में यरदन के प्रवेश के पूर्व में स्थित।

22.5 बोर के पुत्र बिलाम: वह पहले ही से किसी प्रकार के सच्चे परमेश्वर का उपासक था। और अपने परिवार में पवित्र एवं सच्चे धर्म की बात सीखी थीं।

22.22 यहोवा का दूत: जंगल में इस्राएलियों की अगुआई करने वाला और यहोवा की सेना का सेनापति जो यहोशू को दिखाई दिया था।

22.35 बालाक के हाकिमों के संग चला: अनुमति ही नहीं एक आज्ञा बिलाम अब परमेश्वर का निष्ठावान सेवक न रहा, अपने सब कामों में उससे आगे अधीनस्थ हो गया कि वह परमेश्वर के उद्देश्य को साधन स्वरूप उपयोगी बनाए।

23.4 परमेश्वर बिलाम से मिला: परमेश्वर ने बिलाम के माध्यम से अपने उद्देश्य पूरे किए और उसकी खोज करने के लिए निवेश किए गए अभिकरणों द्वारा अपनी इच्छा प्रगट की इस प्रकार एक असाधारण रूप में बिलाम के साथ व्यवहार किया।

23.10 मेरी मृत्यु धर्मियों की सी: अर्थात् इस्राएल के पूर्वज जो “ विश्वास की अवस्था में मरे” और प्रतिज्ञाए प्राप्त नहीं की परन्तु दूर ही से उन्हें देखा।

24.3 जिस पुरुष की आँखें खुली थीं: मन की आँखें खोली कि खोलीं कि उन बातों को देखे जो साधारण देखने वाले से दिखी है।

24.21 केनियों: सबसे पहले उत्त्पत्ति 15:19 में उनका उल्लेख किया गया है कि वह एक जाति जिसकी भूमि की प्रतिज्ञा अब्राहम से की गई थी।

25.6 मिलापवाले तम्बू के द्वार पर रो रही थी: लोगों में महामारी फ़ैल गई थी (गिनती 25:6) और परमेश्वर का भय माननेवाले और अधिक जन मिलाप वाले तम्बू के द्वार पर एकत्र होकर परमेश्वर से दया की याचना कर रहे थे।

25.12 शान्ति की वाचा बाँधता हूँ: “मेरी शान्ति की वाचा” के जैसा ही है।

26.1 फिर: यह शब्द जनगणना की संभावित तिथि दर्शाता है और संख्या में कमी जो कुछ गोत्रों में देखी गई उसका कारण बताता है।

26.11 परन्तु कोरह के पुत्र तो नहीं मरे थे: भविष्यद्वक्ता शमूएल इसी परिवार से था। उनके भजन भी कोरह के पुत्रों द्वारा लिखे गए थे जिन पर उनका नाम है- देखें भजन सहिंता 42:1-11;44;45 आदि के शीर्षक।

28.7 यह अर्घ यहोवा के लिये पवित्रस्थान में देना: मदिरा का अर्घ वेदी के चारों और उण्डेला जाता था या वेदी पर उण्डेला जाता था, अत: बलि का जो पशु था उसके ऊपर जो वेदी पर रखा होता था। (निर्ग. 30:9)

28.16 यहोवा का फसह: फसह का चढ़ावा वैसा ही होता था जैसा नए चाँद का और त्यौहार के सात दिनों में से हर एक दिन किया जाना था।

29.7 प्राण को दुःख देना: अर्थात् ‘स्वयं को नम्र करो’

29.12 सात दिन तक यहोवा के लिये पर्व मानना: झोपड़ियों का त्यौहार (लेव्य: 23:33) इस त्यौहार के समय जिन चढ़ावों की अनिवार्यता थी, वे सबसे अधिक थे। यह त्यौहार मुख्यतः परमेश्वर को धन्यवाद देने के त्यौहार में से एक था जो भूमि के फलों के लिए परमेश्वर के प्रति आभार व्यक्त था और चढ़ावे की मात्रा।

29.35 आठवें दिन तुम्हारी एक महासभा हो: झोपड़ियों के अन्तिम दिन के अनुष्ठान के लिए चढ़ावें वैसी ही थे जैसे तुरहियों के त्यौहार और प्रायश्चित दिवस के थे।

30.2 जब कोई पुरुष यहोवा की मन्नत माने, या अपने आप को वाचा से बाँधने के लिये शपथ खाए: “मन्नत” व्यवहार आधारित थी, “शपथ” निषेध गर्भित या वर्जन आधारित थी। मन्नत खाने में मनुष्य परमेश्वर को कुछ देने के लिए बन्धक होता था या उसके लिए कुछ करने हेतु, शपथ खाने में वह स्वयं को कुछ लोगों और विलासिता से स्वयं को अलग रखता था। शपथ खाने में कुछ करने की विवशता थी जबकि मन्नत में कुछ करने को सहना आवश्यक था।

30.3 जब कोई स्त्री .... अपने पिता के घर में रहते हुए, यहोवा की मन्नत माने: यह सामान्यतः उसकी मंगनी या विवाह तक वह अपने पिता के अधिकार से अपने पति के अधिकाराधीन नहीं होती थी।

31.2 मिद्यानियों: मिद्यानी अलग किए गए थे। ऐसा ज्ञात होगा कि मिद्यानी ही थे जिन्होंने यह संकल्प किया था कि इस्राएल में भ्रष्टाचार फैलाएं।

32.8 तुम्हारे बाप-दादों: मिस्र से प्रस्थान करनेवाली पीढ़ी अब लगभग विलोप हो गई थी।

32.23 तुम को तुम्हारा पाप लगेगा: मूसा के कहने का अर्थ था कि उनका पाप अन्ततः अपने साथ दण्ड भी लाएगा।

32.39 गिलाद देश: उत्तरी गिलाद यद्यपि अम्मोरियों के निवास का था, वास्तव में आगे का क्षेत्र था।

33.2 मूसा ने यहोवा से आज्ञा पाकर उनके कूच उनके पड़ावों के अनुसार लिख दिए: यह सूची मूसा ने यहोवा की आज्ञा के अनुसार लिखी। (गिन. 33:2) जो नि:सन्देह परमेश्वर द्वारा अपनी प्रजा के दीर्घकालीन कष्टों के युग में परमेश्वर के प्रावधानों की स्मृति थी।

33.8 एताम नामक जंगल: एताम से जुड़ा हुआ विशाल जंगल।

34.2 कनान देश: यहां कनान नाम उस क्षेत्र को दिया गया है जो यरदन के पश्चिम का क्षेत्र हैं।

34.7 होर पर्वत: लबानॉन पर्वत का पश्चिम शिखर जिसकी लम्बाई 80 मील की हैं।

35.6 जो नगर तुम लेवियों को दोगे उनमें से छः शरण नगर हों। : इन शरण नगरों में मनुष्यों के हत्यारे परमेश्वर की दया द्वारा निर्धारित विशेष प्रावधान के अधीन शुरक्षा में रहेंगे। इन नगरों को उचित रूप से चुना गया था। नि:सन्देह पुरोहित एवं लेवी संदिग्ध स्थितियों में नियम लागू करने के लिए सबसे अधिक उचित व्यक्ति होंगे जिसका होना निश्चित हैं।

35.16 वह खूनी अवश्य मार डाला जाए: कहने का अर्थ हैं किसी भी प्रकार से मनुष्य की हत्या करना हत्या का अपराध हैं। यदि वह काम बैर भाव से किया गया है तो वह वास्तव में हत्या हैं। अत: हत्यारे को मृत्यु दण्ड दिया जाए।

36.2 उसकी बेटियों को देना: सलोफाद की पुत्रियां ने गिन. 28:6-11 में अध्यादेश का प्रावधान प्राप्त किया था जिसके अनुसार यदि कोई इस्राएली पुरुष बिना पुत्र के मर जाता है तो उसकी सम्पदा उसकी पुत्रियों को प्राप्त होगी।

36.4 पितरों के गोत्र के भाग से सदा के लिये छूट जाएगा: जिस गोत्र में वह मूल रूप से थी उस के भाग से वे जुबली वर्ष में वंचित हो जाएगी।