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1 राजाओं

अदोनिय्याह की राजद्रोह की गोष्ठी

1  1 \zaln-s | x-strong="H1732" x-lemma="דָּוִד" x-morph="He,Np" x-occurrence="1" x-occurrences="1" x-content="דָּוִד֙"\*दाऊद\zaln-e\* राजा बूढ़ा और उसकी आयु बहुत बढ़ गई थी; और यद्यपि उसको कपड़े ओढ़ाये जाते थे तो भी वह गर्म न होता था। 2 उसके कर्मचारियों ने उससे कहा हमारे प्रभु राजा के लिये कोई जवान कुँवारी ढूँढ़ी जाए जो राजा के सम्मुख रहकर उसकी सेवा किया करे और तेरे पास लेटा करे कि हमारे प्रभु राजा को गर्मी पहुँचे। 3 तब उन्होंने समस्त इस्राएली देश में सुन्दर कुँवारी ढूँढ़ते-ढूँढ़ते अबीशग नामक एक शूनेमिन कन्या को पाया और राजा के पास ले आए। 4 वह कन्या बहुत ही सुन्दर थी; और वह राजा की दासी होकर उसकी सेवा करती रही; परन्तु राजा का उससे सहवास न हुआ। 5 तब हग्गीत का पुत्र अदोनिय्याह सिर ऊँचा करके कहने लगा मैं राजा बनूँगा। सो उसने रथ और सवार और अपने आगे-आगे दौड़ने को पचास अंगरक्षकों को रख लिए। 6 उसके पिता ने तो जन्म से लेकर उसे कभी यह कहकर उदास न किया था तूने ऐसा क्यों किया। वह बहुत रूपवान था और अबशालोम के बाद उसका जन्म हुआ था। 7 उसने सरूयाह के पुत्र योआब से और एब्यातार याजक से बातचीत की और उन्होंने उसके पीछे होकर उसकी सहायता की। 8 परन्तु सादोक याजक यहोयादा का पुत्र बनायाह नातान नबी शिमी रेई और दाऊद के शूरवीरों ने अदोनिय्याह का साथ न दिया। 9 अदोनिय्याह ने जोहेलेत नामक पत्थर के पास जो एनरोगेल के निकट है भेड़-बैल और तैयार किए हुए पशु बलि किए और अपने सब भाइयों राजकुमारों और राजा के सब यहूदी कर्मचारियों को बुला लिया। 10 परन्तु नातान नबी और बनायाह और शूरवीरों को और अपने भाई सुलैमान को उसने न बुलाया। 11 तब नातान ने सुलैमान की माता बतशेबा से कहा क्या तूने सुना है कि हग्गीत का पुत्र अदोनिय्याह राजा बन बैठा है और हमारा प्रभु दाऊद इसे नहीं जानता? 12 इसलिए अब आ मैं तुझे ऐसी सम्मति देता हूँ जिससे तू अपना और अपने पुत्र सुलैमान का प्राण बचाए। 13 तू दाऊद राजा के पास जाकर उससे यह पूछ ‘हे मेरे प्रभु हे राजा क्या तूने शपथ खाकर अपनी दासी से नहीं कहा कि तेरा पुत्र सुलैमान मेरे बाद राजा होगा और वह मेरी राजगद्दी पर विराजेगा? फिर अदोनिय्याह क्यों राजा बन बैठा है?’ 14 और जब तू वहाँ राजा से ऐसी बातें करती रहेगी तब मैं तेरे पीछे आकर तेरी बातों की पुष्टि करूँगा। 15 तब बतशेबा राजा के पास कोठरी में गई; राजा तो बहुत बूढ़ा था और उसकी सेवा टहल शूनेमिन अबीशग करती थी। 16 बतशेबा ने झुककर राजा को दण्डवत् किया और राजा ने पूछा तू क्या चाहती है? 17 उसने उत्तर दिया हे मेरे प्रभु तूने तो अपने परमेश्‍वर यहोवा की शपथ खाकर अपनी दासी से कहा था ‘तेरा पुत्र सुलैमान मेरे बाद राजा होगा और वह मेरी गद्दी पर विराजेगा।’ 18 अब देख अदोनिय्याह राजा बन बैठा है और अब तक मेरा प्रभु राजा इसे नहीं जानता। 19 उसने बहुत से बैल तैयार किए पशु और भेड़ें बलि की और सब राजकुमारों को और एब्यातार याजक और योआब सेनापति को बुलाया है परन्तु तेरे दास सुलैमान को नहीं बुलाया। 20 और हे मेरे प्रभु हे राजा सब इस्राएली तुझे ताक रहे हैं कि तू उनसे कहे कि हमारे प्रभु राजा की गद्दी पर उसके बाद कौन बैठेगा। 21 नहीं तो जब हमारा प्रभु राजा अपने पुरखाओं के संग सोएगा तब मैं और मेरा पुत्र सुलैमान दोनों अपराधी गिने जाएँगे। 22 जब बतशेबा राजा से बातें कर ही रही थी कि नातान नबी भी आ गया। 23 और राजा से कहा गया नातान नबी हाज़िर है; तब वह राजा के सम्मुख आया और मुँह के बल गिरकर राजा को दण्डवत् की। 24 तब नातान कहने लगा हे मेरे प्रभु हे राजा क्या तूने कहा है ‘अदोनिय्याह मेरे बाद राजा होगा और वह मेरी गद्दी पर विराजेगा?’ 25 देख उसने आज नीचे जाकर बहुत से बैल तैयार किए हुए पशु और भेड़ें बलि की हैं और सब राजकुमारों और सेनापतियों को और एब्यातार याजक को भी बुला लिया है; और वे उसके सम्मुख खाते पीते हुए कह रहे हैं ‘अदोनिय्याह राजा जीवित रहे।’ 26 परन्तु मुझ तेरे दास को और सादोक याजक और यहोयादा के पुत्र बनायाह और तेरे दास सुलैमान को उसने नहीं बुलाया। 27 क्या यह मेरे प्रभु राजा की ओर से हुआ? तूने तो अपने दास को यह नहीं जताया है कि प्रभु राजा की गद्दी पर कौन उसके बाद विराजेगा। 28 दाऊद राजा ने कहा बतशेबा को मेरे पास बुला लाओ। तब वह राजा के पास आकर उसके सामने खड़ी हुई। 29 राजा ने शपथ खाकर कहा यहोवा जो मेरा प्राण सब जोखिमों से बचाता आया है 30 उसके जीवन की शपथ जैसा मैंने तुझ से इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा की शपथ खाकर कहा था ‘तेरा पुत्र सुलैमान मेरे बाद राजा होगा और वह मेरे बदले मेरी गद्दी पर विराजेगा’ वैसा ही मैं निश्चय आज के दिन करूँगा। 31 तब बतशेबा ने भूमि पर मुँह के बल गिर राजा को दण्डवत् करके कहा मेरा प्रभु राजा दाऊद सदा तक जीवित रहे 32 तब दाऊद राजा ने कहा मेरे पास सादोक याजक नातान नबी यहोयादा के पुत्र बनायाह को बुला लाओ। अतः वे राजा के सामने आए। 33 राजा ने उनसे कहा अपने प्रभु के कर्मचारियों को साथ लेकर मेरे पुत्र सुलैमान को मेरे निज खच्चर पर चढ़ाओ; और गीहोन को ले जाओ; 34 और वहाँ सादोक याजक और नातान नबी इस्राएल का राजा होने को उसका अभिषेक करें; तब तुम सब नरसिंगा फूँककर कहना ‘राजा सुलैमान जीवित रहे।’ 35 और तुम उसके पीछे-पीछे इधर आना और वह आकर मेरे सिंहासन पर विराजे क्योंकि मेरे बदले में वही राजा होगा; और उसी को मैंने इस्राएल और यहूदा का प्रधान होने को ठहराया है। 36 तब यहोयादा के पुत्र बनायाह ने कहा आमीन मेरे प्रभु राजा का परमेश्‍वर यहोवा भी ऐसा ही कहे। 37 जिस रीति यहोवा मेरे प्रभु राजा के संग रहा उसी रीति वह सुलैमान के भी संग रहे और उसका राज्य मेरे प्रभु दाऊद राजा के राज्य से भी अधिक बढ़ाए। 38 तब सादोक याजक और नातान नबी और यहोयादा का पुत्र बनायाह और करेतियों और पलेतियों को संग लिए हुए नीचे गए और सुलैमान को राजा दाऊद के खच्चर पर चढ़ाकर गीहोन को ले चले। 39 तब सादोक याजक ने यहोवा के तम्बू में से तेल भरा हुआ सींग निकाला और सुलैमान का राज्याभिषेक किया। और वे नरसिंगे फूँकने लगे; और सब लोग बोल उठे राजा सुलैमान जीवित रहे। 40 तब सब लोग उसके पीछे-पीछे बाँसुरी बजाते और इतना बड़ा आनन्द करते हुए ऊपर गए कि उनकी ध्वनि से पृथ्वी डोल उठी। 41 जब अदोनिय्याह और उसके सब अतिथि खा चुके थे तब यह ध्वनि उनको सुनाई पड़ी। योआब ने नरसिंगे का शब्द सुनकर पूछा नगर में हलचल और चिल्लाहट का शब्द क्यों हो रहा है? 42 वह यह कहता ही था कि एब्यातार याजक का पुत्र योनातान आया और अदोनिय्याह ने उससे कहा भीतर आ; तू तो भला मनुष्य है और भला समाचार भी लाया होगा। 43 योनातान ने अदोनिय्याह से कहा सचमुच हमारे प्रभु राजा दाऊद ने सुलैमान को राजा बना दिया। 44 और राजा ने सादोक याजक नातान नबी और यहोयादा के पुत्र बनायाह और करेतियों और पलेतियों को उसके संग भेज दिया और उन्होंने उसको राजा के खच्चर पर चढ़ाया है। 45 और सादोक याजक और नातान नबी ने गीहोन में उसका राज्याभिषेक किया है; और वे वहाँ से ऐसा आनन्द करते हुए ऊपर गए हैं कि नगर में हलचल मच गई और जो शब्द तुम को सुनाई पड़ रहा है वही है। 46 सुलैमान राजगद्दी पर विराज भी रहा है। 47 फिर राजा के कर्मचारी हमारे प्रभु दाऊद राजा को यह कहकर धन्य कहने आए ‘तेरा परमेश्‍वर सुलैमान का नाम तेरे नाम से भी महान करे और उसका राज्य तेरे राज्य से भी अधिक बढ़ाए;’ और राजा ने अपने पलंग पर दण्डवत् की। 48 फिर राजा ने यह भी कहा ‘इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा धन्य है जिस ने आज मेरे देखते एक को मेरी गद्दी पर विराजमान किया है।’ 49 तब जितने अतिथि अदोनिय्याह के संग थे वे सब थरथरा उठे और उठकर अपना-अपना मार्ग लिया। 50 और अदोनिय्याह सुलैमान से डरकर उठा और जाकर वेदी के सींगों को पकड़ लिया। 51 तब सुलैमान को यह समाचार मिला अदोनिय्याह सुलैमान राजा से ऐसा डर गया है कि उसने वेदी के सींगों को यह कहकर पकड़ लिया है ‘आज राजा सुलैमान शपथ खाए कि अपने दास को तलवार से न मार डालेगा।’ 52 सुलैमान ने कहा यदि वह भलमनसी दिखाए तो उसका एक बाल भी भूमि पर गिरने न पाएगा परन्तु यदि उसमें दुष्टता पाई जाए तो वह मारा जाएगा। 53 तब राजा सुलैमान ने लोगों को भेज दिया जो उसको वेदी के पास से उतार ले आए तब उसने आकर राजा सुलैमान को दण्डवत् की और सुलैमान ने उससे कहा अपने घर चला जा।

दाऊद की मृत्यु और सुलैमान के राज्य का आरम्भ

2  1 जब दाऊद के मरने का समय निकट आया तब उसने अपने पुत्र सुलैमान से कहा 2 मैं संसार की रीति पर कूच करनेवाला हूँ इसलिए तू हियाव बाँधकर पुरुषार्थ दिखा। 3 और जो कुछ तेरे परमेश्‍वर यहोवा ने तुझे सौंपा है उसकी रक्षा करके उसके मार्गों पर चला करना और जैसा मूसा की व्यवस्था में लिखा है वैसा ही उसकी विधियों तथा आज्ञाओं और नियमों और चितौनियों का पालन करते रहना; जिससे जो कुछ तू करे और जहाँ कहीं तू जाए उसमें तू सफल होए; 4 और यहोवा अपना वह वचन पूरा करे जो उसने मेरे विषय में कहा था ‘यदि तेरी सन्तान अपनी चाल के विषय में ऐसे सावधान रहें कि अपने सम्पूर्ण हृदय और सम्पूर्ण प्राण से सच्चाई के साथ नित मेरे सम्मुख चलते रहें तब तो इस्राएल की राजगद्दी पर विराजनेवाले की तेरे कुल परिवार में घटी कभी न होगी।’ 5 फिर तू स्वयं जानता है कि सरूयाह के पुत्र योआब ने मुझसे क्या-क्या किया अर्थात् उसने नेर के पुत्र अब्नेर और येतेर के पुत्र अमासा इस्राएल के इन दो सेनापतियों से क्या-क्या किया। उसने उन दोनों को घात किया और मेल के समय युद्ध का लहू बहाकर उससे अपनी कमर का कमरबन्द और अपने पाँवों की जूतियाँ भिगो दीं। 6 इसलिए तू अपनी बुद्धि से काम लेना और उस पक्के बालवाले को अधोलोक में शान्ति से उतरने न देना। 7 फिर गिलादी बर्जिल्लै के पुत्रों पर कृपा रखना और वे तेरी मेज पर खानेवालों में रहें क्योंकि जब मैं तेरे भाई अबशालोम के सामने से भागा जा रहा था तब उन्होंने मेरे पास आकर वैसा ही किया था। 8 फिर सुन तेरे पास बिन्यामीनी गेरा का पुत्र बहूरीमी शिमी रहता है जिस दिन मैं महनैम को जाता था उस दिन उसने मुझे कड़ाई से श्राप दिया था पर जब वह मेरी भेंट के लिये यरदन को आया तब मैंने उससे यहोवा की यह शपथ खाई कि मैं तुझे तलवार से न मार डालूँगा। 9 परन्तु अब तू इसे निर्दोष न ठहराना तू तो बुद्धिमान पुरुष है; तुझे मालूम होगा कि उसके साथ क्या करना चाहिये और उस पक्के बालवाले का लहू बहाकर उसे अधोलोक में उतार देना। 10 तब दाऊद अपने पुरखाओं के संग जा मिला और दाऊदपुर में उसे मिट्टी दी गई। 11 दाऊद ने इस्राएल पर चालीस वर्ष राज्य किया सात वर्ष तो उसने हेब्रोन में और तैंतीस वर्ष यरूशलेम में राज्य किया था। 12 तब सुलैमान अपने पिता दाऊद की गद्दी पर विराजमान हुआ और उसका राज्य बहुत दृढ़ हुआ। 13 तब हग्गीत का पुत्र अदोनिय्याह सुलैमान की माता बतशेबा के पास आया बतशेबा ने पूछा क्या तू मित्रभाव से आता है? 14 उसने उत्तर दिया हाँ मित्रभाव से फिर वह कहने लगा मुझे तुझ से एक बात कहनी है। उसने कहा कह 15 उसने कहा तुझे तो मालूम है कि राज्य मेरा हो गया था और समस्त इस्राएली मेरी ओर मुँह किए थे कि मैं राज्य करूँ; परन्तु अब राज्य पलटकर मेरे भाई का हो गया है क्योंकि वह यहोवा की ओर से उसको मिला है। 16 इसलिए अब मैं तुझ से एक बात माँगता हूँ मुझ को मना न करना। उसने कहा कहे जा। 17 उसने कहा राजा सुलैमान तुझे इनकार नहीं करेगा; इसलिए उससे कह कि वह मुझे शूनेमिन अबीशग को ब्याह दे। 18 बतशेबा ने कहा अच्छा मैं तेरे लिये राजा से कहूँगी। 19 तब बतशेबा अदोनिय्याह के लिये राजा सुलैमान से बातचीत करने को उसके पास गई और राजा उसकी भेंट के लिये उठा और उसे दण्डवत् करके अपने सिंहासन पर बैठ गया: फिर राजा ने अपनी माता के लिये एक सिंहासन रख दिया और वह उसकी दाहिनी ओर बैठ गई। 20 तब वह कहने लगी मैं तुझ से एक छोटा सा वरदान माँगती हूँ इसलिए मुझ को मना न करना राजा ने कहा हे माता माँग; मैं तुझे इनकार नहीं करूँगा। 21 उसने कहा वह शूनेमिन अबीशग तेरे भाई अदोनिय्याह को ब्याह दी जाए। 22 राजा सुलैमान ने अपनी माता को उत्तर दिया तू अदोनिय्याह के लिये शूनेमिन अबीशग ही को क्यों माँगती है? उसके लिये राज्य भी माँग क्योंकि वह तो मेरा बड़ा भाई है और उसी के लिये क्या एब्यातार याजक और सरूयाह के पुत्र योआब के लिये भी माँग। 23 और राजा सुलैमान ने यहोवा की शपथ खाकर कहा यदि अदोनिय्याह ने यह बात अपने प्राण पर खेलकर न कही हो तो परमेश्‍वर मुझसे वैसा ही क्या वरन् उससे भी अधिक करे। 24 अब यहोवा जिस ने मुझे स्थिर किया और मेरे पिता दाऊद की राजगद्दी पर विराजमान किया है और अपने वचन के अनुसार मेरा घर बसाया है उसके जीवन की शपथ आज ही अदोनिय्याह मार डाला जाएगा। 25 अतः राजा सुलैमान ने यहोयादा के पुत्र बनायाह को भेज दिया और उसने जाकर उसको ऐसा मारा कि वह मर गया। 26 तब एब्यातार याजक से राजा ने कहा अनातोत में अपनी भूमि को जा; क्योंकि तू भी प्राणदण्ड के योग्य है। आज के दिन तो मैं तुझे न मार डालूँगा क्योंकि तू मेरे पिता दाऊद के सामने प्रभु यहोवा का सन्दूक उठाया करता था; और उन सब दुःखों में जो मेरे पिता पर पड़े थे तू भी दुःखी था। 27 और सुलैमान ने एब्यातार को यहोवा के याजक होने के पद से उतार दिया इसलिए कि जो वचन यहोवा ने एली के वंश के विषय में शीलो में कहा था वह पूरा हो जाए। 28 इसका समाचार योआब तक पहुँचा; योआब अबशालोम के पीछे तो नहीं हो लिया था परन्तु अदोनिय्याह के पीछे हो लिया था। तब योआब यहोवा के तम्बू को भाग गया और वेदी के सींगों को पकड़ लिया। 29 जब राजा सुलैमान को यह समाचार मिला योआब यहोवा के तम्बू को भाग गया है और वह वेदी के पास है तब सुलैमान ने यहोयादा के पुत्र बनायाह को यह कहकर भेज दिया कि तू जाकर उसे मार डाल। 30 तब बनायाह ने यहोवा के तम्बू के पास जाकर उससे कहा राजा की यह आज्ञा है कि निकल आ। उसने कहा नहीं मैं यहीं मर जाऊँगा। तब बनायाह ने लौटकर यह सन्देश राजा को दिया योआब ने मुझे यह उत्तर दिया। 31 राजा ने उससे कहा उसके कहने के अनुसार उसको मार डाल और उसे मिट्टी दे; ऐसा करके निर्दोषों का जो खून योआब ने किया है उसका दोष तू मुझ पर से और मेरे पिता के घराने पर से दूर करेगा। 32 और यहोवा उसके सिर वह खून लौटा देगा क्योंकि उसने मेरे पिता दाऊद के बिना जाने अपने से अधिक धर्मी और भले दो पुरुषों पर अर्थात् इस्राएल के प्रधान सेनापति नेर के पुत्र अब्नेर और यहूदा के प्रधान सेनापति येतेर के पुत्र अमासा पर टूटकर उनको तलवार से मार डाला था। 33 अतः योआब के सिर पर और उसकी सन्तान के सिर पर खून सदा तक रहेगा परन्तु दाऊद और उसके वंश और उसके घराने और उसके राज्य पर यहोवा की ओर से शान्ति सदैव तक रहेगी। 34 तब यहोयादा के पुत्र बनायाह ने जाकर योआब को मार डाला; और उसको जंगल में उसी के घर में मिट्टी दी गई। 35 तब राजा ने उसके स्थान पर यहोयादा के पुत्र बनायाह को प्रधान सेनापति ठहराया; और एब्यातार के स्थान पर सादोक याजक को ठहराया। 36 तब राजा ने शिमी को बुलवा भेजा और उससे कहा तू यरूशलेम में अपना एक घर बनाकर वहीं रहना और नगर से बाहर कहीं न जाना। 37 तू निश्चय जान रख कि जिस दिन तू निकलकर किद्रोन नाले के पार उतरे उसी दिन तू निःसन्देह मार डाला जाएगा और तेरा लहू तेरे ही सिर पर पड़ेगा। 38 शिमी ने राजा से कहा बात अच्छी है; जैसा मेरे प्रभु राजा ने कहा है वैसा ही तेरा दास करेगा। तब शिमी बहुत दिन यरूशलेम में रहा। 39 परन्तु तीन वर्ष के व्यतीत होने पर शिमी के दो दास गत नगर के राजा माका के पुत्र आकीश के पास भाग गए और शिमी को यह समाचार मिला तेरे दास गत में हैं। 40 तब शिमी उठकर अपने गदहे पर काठी कसकर अपने दास को ढूँढ़ने के लिये गत को आकीश के पास गया और अपने दासों को गत से ले आया। 41 जब सुलैमान राजा को इसका समाचार मिला शिमी यरूशलेम से गत को गया और फिर लौट आया है 42 तब उसने शिमी को बुलवा भेजा और उससे कहा क्या मैंने तुझे यहोवा की शपथ न खिलाई थी? और तुझ से चिताकर न कहा था ‘यह निश्चय जान रख कि जिस दिन तू निकलकर कहीं चला जाए उसी दिन तू निःसन्देह मार डाला जाएगा?’ और क्या तूने मुझसे न कहा था ‘जो बात मैंने सुनी वह अच्छी है?’ 43 फिर तूने यहोवा की शपथ और मेरी दृढ़ आज्ञा क्यों नहीं मानी? 44 और राजा ने शिमी से कहा तू आप ही अपने मन में उस सब दुष्टता को जानता है जो तूने मेरे पिता दाऊद से की थी? इसलिए यहोवा तेरे सिर पर तेरी दुष्टता लौटा देगा। 45 परन्तु राजा सुलैमान धन्य रहेगा और दाऊद का राज्य यहोवा के सामने सदैव दृढ़ रहेगा। 46 तब राजा ने यहोयादा के पुत्र बनायाह को आज्ञा दी और उसने बाहर जाकर उसको ऐसा मारा कि वह भी मर गया। इस प्रकार सुलैमान के हाथ में राज्य दृढ़ हो गया।

बुद्धि के लिए सुलैमान की प्रार्थना

3  1 फिर राजा सुलैमान मिस्र के राजा फ़िरौन की बेटी को ब्याह कर उसका दामाद बन गया और उसको दाऊदपुर में लाकर तब तक अपना भवन और यहोवा का भवन और यरूशलेम के चारों ओर की शहरपनाह न बनवा चुका तब तक उसको वहीं रखा। 2 क्योंकि प्रजा के लोग तो ऊँचे स्थानों पर बलि चढ़ाते थे और उन दिनों तक यहोवा के नाम का कोई भवन नहीं बना था। 3 सुलैमान यहोवा से प्रेम रखता था और अपने पिता दाऊद की विधियों पर चलता तो रहा परन्तु वह ऊँचे स्थानों पर भी बलि चढ़ाया और धूप जलाया करता था। 4 और राजा गिबोन को बलि चढ़ाने गया क्योंकि मुख्य ऊँचा स्थान वही था तब वहाँ की वेदी पर सुलैमान ने एक हजार होमबलि चढ़ाए। 5 गिबोन में यहोवा ने रात को स्वप्न के द्वारा सुलैमान को दर्शन देकर कहा जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूँ वह माँग। 6 सुलैमान ने कहा तू अपने दास मेरे पिता दाऊद पर बड़ी करुणा करता रहा क्योंकि वह अपने को तेरे सम्मुख जानकर तेरे साथ सच्चाई और धार्मिकता और मन की सिधाई से चलता रहा; और तूने यहाँ तक उस पर करुणा की थी कि उसे उसकी गद्दी पर बिराजनेवाला एक पुत्र दिया है जैसा कि आज वर्तमान है। 7 और अब हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा तूने अपने दास को मेरे पिता दाऊद के स्थान पर राजा किया है परन्तु मैं छोटा लड़का सा हूँ जो भीतर बाहर आना-जाना नहीं जानता। 8 फिर तेरा दास तेरी चुनी हुई प्रजा के बहुत से लोगों के मध्य में है जिनकी गिनती बहुतायत के मारे नहीं हो सकती। 9 तू अपने दास को अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये समझने की ऐसी शक्ति दे कि मैं भले बुरे को परख सकूँ; क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके? 10 इस बात से प्रभु प्रसन्‍न हुआ कि सुलैमान ने ऐसा वरदान माँगा है। 11 तब परमेश्‍वर ने उससे कहा इसलिए कि तूने यह वरदान माँगा है और न तो दीर्घायु और न धन और न अपने शत्रुओं का नाश माँगा है परन्तु समझने के विवेक का वरदान माँगा है इसलिए सुन 12 मैं तेरे वचन के अनुसार करता हूँ तुझे बुद्धि और विवेक से भरा मन देता हूँ यहाँ तक कि तेरे समान न तो तुझ से पहले कोई कभी हुआ और न बाद में कोई कभी होगा। 13 फिर जो तूने नहीं माँगा अर्थात् धन और महिमा वह भी मैं तुझे यहाँ तक देता हूँ कि तेरे जीवन भर कोई राजा तेरे तुल्य न होगा। 14 फिर यदि तू अपने पिता दाऊद के समान मेरे मार्गों में चलता हुआ मेरी विधियों और आज्ञाओं को मानता रहेगा तो मैं तेरी आयु को बढ़ाऊँगा। 15 तब सुलैमान जाग उठा; और देखा कि यह स्वप्न था; फिर वह यरूशलेम को गया और यहोवा की वाचा के सन्दूक के सामने खड़ा होकर होमबलि और मेलबलि चढ़ाए और अपने सब कर्मचारियों के लिये भोज किया। 16 उस समय दो वेश्याएँ राजा के पास आकर उसके सम्मुख खड़ी हुईं। 17 उनमें से एक स्त्री कहने लगी हे मेरे प्रभु मैं और यह स्त्री दोनों एक ही घर में रहती हैं; और इसके संग घर में रहते हुए मेरे एक बच्चा हुआ। 18 फिर मेरे जच्चा के तीन दिन के बाद ऐसा हुआ कि यह स्त्री भी जच्चा हो गई; हम तो संग ही संग थीं हम दोनों को छोड़कर घर में और कोई भी न था। 19 और रात में इस स्त्री का बालक इसके नीचे दबकर मर गया। 20 तब इसने आधी रात को उठकर जब तेरी दासी सो ही रही थी तब मेरा लड़का मेरे पास से लेकर अपनी छाती में रखा और अपना मरा हुआ बालक मेरी छाती में लिटा दिया। 21 भोर को जब मैं अपना बालक दूध पिलाने को उठी तब उसे मरा हुआ पाया; परन्तु भोर को मैंने ध्यान से यह देखा कि वह मेरा पुत्र नहीं है। 22 तब दूसरी स्त्री ने कहा नहीं जीवित पुत्र मेरा है और मरा पुत्र तेरा है। परन्तु वह कहती रही नहीं मरा हुआ तेरा पुत्र है और जीवित मेरा पुत्र है इस प्रकार वे राजा के सामने बातें करती रहीं। 23 राजा ने कहा एक तो कहती है ‘जो जीवित है वही मेरा पुत्र है और मरा हुआ तेरा पुत्र है;’ और दूसरी कहती है ‘नहीं जो मरा है वही तेरा पुत्र है और जो जीवित है वह मेरा पुत्र है’। 24 फिर राजा ने कहा मेरे पास तलवार ले आओ; अतः एक तलवार राजा के सामने लाई गई। 25 तब राजा बोला जीविते बालक को दो टुकड़े करके आधा इसको और आधा उसको दो। 26 तब जीवित बालक की माता का मन अपने बेटे के स्नेह से भर आया और उसने राजा से कहा हे मेरे प्रभु जीवित बालक उसी को दे; परन्तु उसको किसी भाँति न मार। दूसरी स्त्री ने कहा वह न तो मेरा हो और न तेरा वह दो टुकड़े किया जाए। 27 तब राजा ने कहा पहली को जीवित बालक दो; किसी भाँति उसको न मारो; क्योंकि उसकी माता वही है। 28 जो न्याय राजा ने चुकाया था उसका समाचार समस्त इस्राएल को मिला और उन्होंने राजा का भय माना क्योंकि उन्होंने यह देखा कि उसके मन में न्याय करने के लिये परमेश्‍वर की बुद्धि है।

सुलैमान का राजप्रबन्ध और माहात्म्य

4  1 राजा सुलैमान तो समस्त इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त हुआ था। 2 और उसके हाकिम ये थे अर्थात् सादोक का पुत्र अजर्याह याजक 3 और शीशा के पुत्र एलीहोरोप और अहिय्याह राजसी आधिकारिक थे। अहीलूद का पुत्र यहोशापात इतिहास का लेखक था। 4 फिर यहोयादा का पुत्र बनायाह प्रधान सेनापति था और सादोक और एब्यातार याजक थे 5 नातान का पुत्र अजर्याह भण्डारियों के ऊपर था और नातान का पुत्र जाबूद याजक और राजा का मित्र भी था। 6 अहीशार राजपरिवार के ऊपर था और अब्दा का पुत्र अदोनीराम बेगारों के ऊपर मुखिया था। 7 और सुलैमान के बारह भण्डारी थे जो समस्त इस्राएलियों के अधिकारी होकर राजा और उसके घराने के लिये भोजन का प्रबन्ध करते थे। एक-एक पुरुष प्रति वर्ष अपने-अपने नियुक्त महीने में प्रबन्ध करता था। 8 उनके नाम ये थे अर्थात् एप्रैम के पहाड़ी देश में बेन्हूर। 9 और माकस शाल्बीम बेतशेमेश और एलोन-बेतानान में बेन्देकेर था। 10 अरुब्बोत में बेन्हेसेद जिसके अधिकार में सोको और हेपेर का समस्त देश था। 11 दोर के समस्त ऊँचे देश में बेन-अबीनादब जिसकी स्त्री सुलैमान की बेटी तापत थी। 12 अहीलूद का पुत्र बाना जिसके अधिकार में तानाक मगिद्दो और बेतशान का वह सब देश था जो सारतान के पास और यिज्रेल के नीचे और बेतशान से आबेल-महोला तक अर्थात् योकमाम की परली ओर तक है। 13 और गिलाद के रामोत में बेनगेबेर था जिसके अधिकार में मनश्शेई याईर के गिलाद के गाँव थे अर्थात् इसी के अधिकार में बाशान के अर्गोब का देश था जिसमें शहरपनाह और पीतल के बेंड़ेवाले साठ बड़े-बड़े नगर थे। 14 इद्दो के पुत्र अहीनादाब के हाथ में महनैम था। 15 नप्ताली में अहीमास था जिस ने सुलैमान की बासमत नाम बेटी को ब्याह लिया था। 16 आशेर और आलोत में हूशै का पुत्र बाना 17 इस्साकार में पारुह का पुत्र यहोशापात 18 और बिन्यामीन में एला का पुत्र शिमी था। 19 ऊरी का पुत्र गेबेर गिलाद में अर्थात् एमोरियों के राजा सीहोन और बाशान के राजा ओग के देश में था इस समस्त देश में वही अधिकारी था। 20 यहूदा और इस्राएल के लोग बहुत थे वे समुद्र तट पर के रेतकणों के समान बहुत थे और खाते-पीते और आनन्द करते रहे। 21 सुलैमान तो महानद से लेकर पलिश्तियों के देश और मिस्र की सीमा तक के सब राज्यों के ऊपर प्रभुता करता था और उनके लोग सुलैमान के जीवन भर भेंट लाते और उसके अधीन रहते थे। 22 सुलैमान की एक दिन की रसोई में इतना उठता था अर्थात् तीस कोर मैदा साठ कोर आटा 23 दस तैयार किए हुए बैल और चराइयों में से बीस बैल और सौ भेड़-बकरी और इनको छोड़ हिरन चिकारे यखमूर और तैयार किए हुए पक्षी। 24 क्योंकि फरात के इस पार के समस्त देश पर अर्थात् तिप्सह से लेकर गाज़ा तक जितने राजा थे उन सभी पर सुलैमान प्रभुता करता और अपने चारों ओर के सब रहनेवालों से मेल रखता था। 25 और दान से बेर्शेबा तक के सब यहूदी और इस्राएली अपनी-अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले सुलैमान के जीवन भर निडर रहते थे। 26 फिर उसके रथ के घोड़ों के लिये सुलैमान के चालीस हजार घुड़साल थे और उसके बारह हजार घुड़सवार थे। 27 और वे भण्डारी अपने-अपने महीने में राजा सुलैमान के लिये और जितने उसकी मेज पर आते थे उन सभी के लिये भोजन का प्रबन्ध करते थे किसी वस्तु की घटी होने नहीं पाती थी। 28 घोड़ों और वेग चलनेवाले घोड़ों के लिये जौ और पुआल जहाँ प्रयोजन होता था वहाँ आज्ञा के अनुसार एक-एक जन पहुँचाया करता था। 29 और परमेश्‍वर ने सुलैमान को बुद्धि दी और उसकी समझ बहुत ही बढ़ाई और उसके हृदय में समुद्र तट के रेतकणों के तुल्य अनगिनत गुण दिए। 30 और सुलैमान की बुद्धि पूर्व देश के सब निवासियों और मिस्रियों की भी बुद्धि से बढ़कर बुद्धि थी। 31 वह तो और सब मनुष्यों से वरन् एतान एज्रेही और हेमान और माहोल के पुत्र कलकोल और दर्दा से भी अधिक बुद्धिमान था और उसकी कीर्ति चारों ओर की सब जातियों में फैल गई। 32 उसने तीन हजार नीतिवचन कहे और उसके एक हजार पाँच गीत भी हैं। 33 फिर उसने लबानोन के देवदारुओं से लेकर दीवार में से उगते हुए जूफा तक के सब पेड़ों की चर्चा और पशुओं पक्षियों और रेंगनेवाले जन्तुओं और मछलियों की चर्चा की। 34 और देश-देश के लोग पृथ्वी के सब राजाओं की ओर से जिन्होंने सुलैमान की बुद्धि की कीर्ति सुनी थी उसकी बुद्धि की बातें सुनने को आया करते थे।

मन्दिर बनने की तैयारी

5  1 सोर नगर के राजा हीराम ने अपने दूत सुलैमान के पास भेजे क्योंकि उसने सुना था कि वह अभिषिक्त होकर अपने पिता के स्थान पर राजा हुआ है: और दाऊद के जीवन भर हीराम उसका मित्र बना रहा। 2 सुलैमान ने हीराम के पास यह सन्देश भेजा तुझे मालूम है 3 कि मेरा पिता दाऊद अपने परमेश्‍वर यहोवा के नाम का एक भवन इसलिए न बनवा सका कि वह चारों ओर लड़ाइयों में तब तक उलझा रहा जब तक यहोवा ने उसके शत्रुओं को उसके पाँव तले न कर दिया। 4 परन्तु अब मेरे परमेश्‍वर यहोवा ने मुझे चारों ओर से विश्राम दिया है और न तो कोई विरोधी है और न कुछ विपत्ति देख पड़ती है। 5 मैंने अपने परमेश्‍वर यहोवा के नाम का एक भवन बनवाने की ठान रखी है अर्थात् उस बात के अनुसार जो यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कही थी ‘तेरा पुत्र जिसे मैं तेरे स्थान में गद्दी पर बैठाऊँगा वही मेरे नाम का भवन बनवाएगा।’ 6 इसलिए अब तू मेरे लिये लबानोन पर से देवदार काटने की आज्ञा दे और मेरे दास तेरे दासों के संग रहेंगे और जो कुछ मजदूरी तू ठहराए वही मैं तुझे तेरे दासों के लिये दूँगा तुझे मालूम तो है कि सीदोनियों के बराबर लकड़ी काटने का भेद हम लोगों में से कोई भी नहीं जानता। 7 सुलैमान की ये बातें सुनकर हीराम बहुत आनन्दित हुआ और कहा आज यहोवा धन्य है जिस ने दाऊद को उस बड़ी जाति पर राज्य करने के लिये एक बुद्धिमान पुत्र दिया है। 8 तब हीराम ने सुलैमान के पास यह सन्देश भेजा जो तूने मेरे पास कहला भेजा है वह मेरी समझ में आ गया देवदार और सनोवर की लकड़ी के विषय जो कुछ तू चाहे वही मैं करूँगा। 9 मेरे दास लकड़ी को लबानोन से समुद्र तक पहुँचाएँगे फिर मैं उनके बेंड़े बनवाकर जो स्थान तू मेरे लिये ठहराए वहीं पर समुद्र के मार्ग से उनको पहुँचवा दूँगा: वहाँ मैं उनको खोलकर डलवा दूँगा और तू उन्हें ले लेना: और तू मेरे परिवार के लिये भोजन देकर मेरी भी इच्छा पूरी करना। 10 इस प्रकार हीराम सुलैमान की इच्छा के अनुसार उसको देवदार और सनोवर की लकड़ी देने लगा। 11 और सुलैमान ने हीराम के परिवार के खाने के लिये उसे बीस हजार कोर गेहूँ और बीस कोर पेरा हुआ तेल दिया; इस प्रकार सुलैमान हीराम को प्रति वर्ष दिया करता था। 12 यहोवा ने सुलैमान को अपने वचन के अनुसार बुद्धि दी और हीराम और सुलैमान के बीच मेल बना रहा वरन् उन दोनों ने आपस में वाचा भी बाँध ली। 13 राजा सुलैमान ने पूरे इस्राएल में से तीस हजार पुरुष बेगार लगाए 14 और उन्हें लबानोन पहाड़ पर बारी-बारी करके महीने-महीने दस हजार भेज दिया करता था और एक महीना वे लबानोन पर और दो महीने घर पर रहा करते थे; और बेगारियों के ऊपर अदोनीराम ठहराया गया। 15 सुलैमान के सत्तर हजार बोझ ढोनेवाले और पहाड़ पर अस्सी हजार वृक्ष काटनेवाले और पत्थर निकालनेवाले थे। 16 इनको छोड़ सुलैमान के तीन हजार तीन सौ मुखिये थे जो काम करनेवालों के ऊपर थे। 17 फिर राजा की आज्ञा से बड़े-बड़े अनमोल पत्थर इसलिए खोदकर निकाले गए कि भवन की नींव गढ़े हुए पत्थरों से डाली जाए। 18 सुलैमान के कारीगरों और हीराम के कारीगरों और गबालियों ने उनको गढ़ा और भवन के बनाने के लिये लकड़ी और पत्थर तैयार किए।

मन्दिर का निर्माण

6  1 इस्राएलियों के मिस्र देश से निकलने के चार सौ अस्सीवें वर्ष के बाद जो सुलैमान के इस्राएल पर राज्य करने का चौथा वर्ष था उसके जीव नामक दूसरे महीने में वह यहोवा का भवन बनाने लगा। 2 जो भवन राजा सुलैमान ने यहोवा के लिये बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ चौड़ाई बीस हाथ और ऊँचाई तीस हाथ की थी। 3 और भवन के मन्दिर के सामने के ओसारे की लम्बाई बीस हाथ की थी अर्थात् भवन की चौड़ाई के बराबर थी और ओसारे की चौड़ाई जो भवन के सामने थी वह दस हाथ की थी। 4 फिर उसने भवन में चौखट सहित जालीदार खिड़कियाँ बनाईं। 5 और उसने भवन के आस-पास की दीवारों से सटे हुए अर्थात् मन्दिर और दर्शन-स्थान दोनों दीवारों के आस-पास उसने मंजिलें और कोठरियाँ बनाई। 6 सबसे नीचेवाली मंजिल की चौड़ाई पाँच हाथ और बीचवाली की छः हाथ और ऊपरवाली की सात हाथ की थी क्योंकि उसने भवन के आस-पास दीवारों को बाहर की ओर कुर्सीदार बनाया था इसलिए कि कड़ियाँ भवन की दीवारों को पकड़े हुए न हों। 7 बनाते समय भवन ऐसे पत्थरों का बनाया गया जो वहाँ ले आने से पहले गढ़कर ठीक किए गए थे और भवन के बनते समय हथौड़े बसूली या और किसी प्रकार के लोहे के औज़ार का शब्द कभी सुनाई नहीं पड़ा। 8 बाहर की बीचवाली कोठरियों का द्वार भवन की दाहिनी ओर था और लोग चक्करदार सीढ़ियों पर होकर बीचवाली कोठरियों में जाते और उनसे ऊपरवाली कोठरियों पर जाया करते थे। 9 उसने भवन को बनाकर पूरा किया और उसकी छत देवदार की कड़ियों और तख्तों से बनी थी। 10 और पूरे भवन से लगी हुई जो मंजिलें उसने बनाईं वह पाँच हाथ ऊँची थीं और वे देवदार की कड़ियों के द्वारा भवन से मिलाई गई थीं। 11 तब यहोवा का यह वचन सुलैमान के पास पहुँचा 12 यह भवन जो तू बना रहा है यदि तू मेरी विधियों पर चलेगा और मेरे नियमों को मानेगा और मेरी सब आज्ञाओं पर चलता हुआ उनका पालन करता रहेगा तो जो वचन मैंने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया था उसको मैं पूरा करूँगा। 13 और मैं इस्राएलियों के मध्य में निवास करूँगा और अपनी इस्राएली प्रजा को न तजूँगा। 14 अतः सुलैमान ने भवन को बनाकर पूरा किया। 15 उसने भवन की दीवारों पर भीतर की ओर देवदार की तख्ताबंदी की; और भवन के फ़र्श से छत तक दीवारों पर भीतर की ओर लकड़ी की तख्ताबंदी की और भवन के फ़र्श को उसने सनोवर के तख्तो से बनाया। 16 और भवन के पीछे की ओर में भी उसने बीस हाथ की दूरी पर फ़र्श से ले दीवारों के ऊपर तक देवदार की तख्ताबंदी की; इस प्रकार उसने परमपवित्र स्थान के लिये भवन की एक भीतरी कोठरी बनाई। 17 उसके सामने का भवन अर्थात् मन्दिर की लम्बाई चालीस हाथ की थी। 18 भवन की दीवारों पर भीतर की ओर देवदार की लकड़ी की तख्ताबंदी थी और उसमें कलियाँ और खिले हुए फूल खुदे थे सब देवदार ही था : पत्थर कुछ नहीं दिखाई पड़ता था। 19 भवन के भीतर उसने एक पवित्रस्‍थान यहोवा की वाचा का सन्दूक रखने के लिये तैयार किया। 20 और उस पवित्र-स्थान की लम्बाई चौड़ाई और ऊँचाई बीस-बीस हाथ की थी; और उसने उस पर उत्तम सोना मढ़वाया और वेदी की तख्ताबंदी देवदार से की। 21 फिर सुलैमान ने भवन को भीतर-भीतर शुद्ध सोने से मढ़वाया और पवित्र-स्थान के सामने सोने की साँकलें लगाई; और उसको भी सोने से मढ़वाया। 22 और उसने पूरे भवन को सोने से मढ़वाकर उसका काम पूरा किया। और पवित्र-स्थान की पूरी वेदी को भी उसने सोने से मढ़वाया। 23 पवित्र-स्थान में उसने दस-दस हाथ ऊँचे जैतून की लकड़ी के दो करूब बना रखे। 24 एक करूब का एक पंख पाँच हाथ का था और उसका दूसरा पंख भी पाँच हाथ का था एक पंख के सिरे से दूसरे पंख के सिरे तक लम्बाई दस हाथ थी। 25 दूसरा करूब भी दस हाथ का था; दोनों करूब एक ही नाप और एक ही आकार के थे। 26 एक करूब की ऊँचाई दस हाथ की और दूसरे की भी इतनी ही थी। 27 उसने करूबों को भीतरवाले स्थान में रखवा दिया; और करूबों के पंख ऐसे फैले थे कि एक करूब का एक पंख एक दीवार से और दूसरे का दूसरा पंख दूसरी दीवार से लगा हुआ था फिर उनके दूसरे दो पंख भवन के मध्य में एक दूसरे को स्पर्श करते थे। 28 उसने करूबों को सोने से मढ़वाया। 29 उसने भवन की दीवारों पर बाहर और भीतर चारों ओर करूब खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए। 30 भवन के भीतर और बाहरवाली कोठरी के फर्श उसने सोने से मढ़वाए। 31 पवित्र-स्थान के प्रवेश-द्वार के लिये उसने जैतून की लकड़ी के दरवाज़े लगाए और चौखट के सिरहाने और बाजुओं की बनावट पंचकोणीय थी। 32 दोनों किवाड़ जैतून की लकड़ी के थे और उसने उनमें करूब खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और सोने से मढ़ा और करूबों और खजूरों के ऊपर सोना मढ़वा दिया गया। 33 इसी की रीति उसने मन्दिर के प्रवेश-द्वार के लिये भी जैतून की लकड़ी के चौखट के बाजू बनाए ये चौकोर थे। 34 दोनों दरवाज़े सनोवर की लकड़ी के थे जिनमें से एक दरवाज़े के दो पल्ले थे; और दूसरे दरवाज़े के दो पल्ले थे जो पलटकर दुहर जाते थे। 35 उन पर भी उसने करूब और खजूर के वृक्ष और खिले हुए फूल खुदवाए और खुदे हुए काम पर उसने सोना मढ़वाया। 36 उसने भीतरवाले आँगन के घेरे को गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे और एक परत देवदार की कड़ियाँ लगाकर बनाया। 37 चौथे वर्ष के जीव नामक महीने में यहोवा के भवन की नींव डाली गई। 38 और ग्यारहवें वर्ष के बूल नामक आठवें महीने में वह भवन उस सब समेत जो उसमें उचित समझा गया बन चुकाः इस रीति सुलैमान को उसके बनाने में सात वर्ष लगे।

सुलैमान के अन्य निर्माण

7  1 सुलैमान ने अपना महल भी बनाया और उसके निर्माण-कार्य में तेरह वर्ष लगे। 2 उसने लबानोन का वन नामक महल बनाया जिसकी लम्बाई सौ हाथ चौड़ाई पचास हाथ और ऊँचाई तीस हाथ की थी; वह तो देवदार के खम्भों की चार पंक्तियों पर बना और खम्भों पर देवदार की कड़ियाँ रखी गई। 3 और पैंतालीस खम्भों के ऊपर देवदार की छतवाली कोठरियाँ बनीं अर्थात् एक-एक मंजिल में पन्द्रह कोठरियाँ बनीं। 4 तीनों मंजिलों में कड़ियाँ धरी गईं और तीनों में खिड़कियाँ आमने-सामने बनीं। 5 और सब द्वार और बाजुओं की कड़ियाँ भी चौकोर थीं और तीनों मंजिलों में खिड़कियाँ आमने-सामने बनीं। 6 उसने एक खम्भेवाला ओसारा भी बनाया जिसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई तीस हाथ की थी और इन खम्भों के सामने एक खम्भेवाला ओसारा और उसके सामने डेवढ़ी बनाई। 7 फिर उसने न्याय के सिंहासन के लिये भी एक ओसारा बनाया जो न्याय का ओसारा कहलाया; और उसमें एक फ़र्श से दूसरे फ़र्श तक देवदार की तख्ताबंदी थी। 8 उसके रहने का भवन जो उस ओसारे के भीतर के एक और आँगन में बना वह भी उसी ढंग से बना। फिर उसी ओसारे के समान से सुलैमान ने फ़िरौन की बेटी के लिये जिसको उसने ब्याह लिया था एक और भवन बनाया। 9 ये सब घर बाहर भीतर नींव से मुंडेर तक ऐसे अनमोल और गढ़े हुए पत्थरों के बने जो नापकर और आरों से चीरकर तैयार किये गए थे और बाहर के आँगन से ले बड़े आँगन तक लगाए गए। 10 उसकी नींव बहुमूल्य और बड़े-बड़े अर्थात् दस-दस और आठ-आठ हाथ के पत्थरों की डाली गई थी। 11 और ऊपर भी बहुमूल्य पत्थर थे जो नाप से गढ़े हुए थे और देवदार की लकड़ी भी थी। 12 बड़े आँगन के चारों ओर के घेरे में गढ़े हुए पत्थरों के तीन रद्दे और देवदार की कड़ियों की एक परत थी जैसे कि यहोवा के भवन के भीतरवाले आँगन और भवन के ओसारे में लगे थे। 13 फिर राजा सुलैमान ने सोर से हूराम को बुलवा भेजा। 14 वह नप्ताली के गोत्र की किसी विधवा का बेटा था और उसका पिता एक सोरवासी ठठेरा था और वह पीतल की सब प्रकार की कारीगरी में पूरी बुद्धि निपुणता और समझ रखता था। सो वह राजा सुलैमान के पास आकर उसका सब काम करने लगा। 15 उसने पीतल ढालकर अठारह-अठारह हाथ ऊँचे दो खम्भे बनाए और एक-एक का घेरा बारह हाथ के सूत का था ये भीतर से खोखले थे और इसकी धातु की मोटाई चार अंगुल थी। 16 उसने खम्भों के सिरों पर लगाने को पीतल ढालकर दो कँगनी बनाई; एक-एक कँगनी की ऊँचाई पाँच-पाँच हाथ की थी। 17 खम्भों के सिरों पर की कँगनियों के लिये चार खाने की सात-सात जालियाँ और साँकलों की सात-सात झालरें बनीं। 18 उसने खम्भों को भी इस प्रकार बनाया कि खम्भों के सिरों पर की एक-एक कँगनी को ढाँपने के लिये चारों ओर जालियों की एक-एक पाँति पर अनारों की दो पंक्तियाँ हों। 19 जो कँगनियाँ ओसारों में खम्भों के सिरों पर बनीं उनमें चार-चार हाथ ऊँचे सोसन के फूल बने हुए थे। 20 और एक-एक खम्भे के सिरे पर उस गोलाई के पास जो जाली से लगी थी एक और कँगनी बनी और एक-एक कँगनी पर जो अनार चारों ओर पंक्ति-पंक्ति करके बने थे वह दो सौ थे। 21 उन खम्भों को उसने मन्दिर के ओसारे के पास खड़ा किया और दाहिनी ओर के खम्भे को खड़ा करके उसका नाम याकीन रखा; फिर बाईं ओर के खम्भे को खड़ा करके उसका नाम बोअज रखा। 22 और खम्भों के सिरों पर सोसन के फूल का काम बना था खम्भों का काम इसी रीति पूरा हुआ। 23 फिर उसने एक ढाला हुआ एक बड़ा हौज़ बनाया जो एक छोर से दूसरी छोर तक दस हाथ चौड़ा था उसका आकार गोल था और उसकी ऊँचाई पाँच हाथ की थी और उसके चारों ओर का घेरा तीस हाथ के सूत के बराबर था। 24 और उसके चारों ओर के किनारे के नीचे एक-एक हाथ में दस-दस कलियाँ बनीं जो हौज को घेरे थीं; जब वह ढाला गया; तब ये कलियाँ भी दो पंक्तियों में ढाली गईं। 25 और वह बारह बने हुए बैलों पर रखा गया जिनमें से तीन उत्तर तीन पश्चिम तीन दक्षिण और तीन पूर्व की ओर मुँह किए हुए थे; और उन ही के ऊपर हौज था और उन सभी का पिछला अंग भीतर की ओर था। 26 उसकी मोटाई मुट्ठी भर की थी और उसका किनारा कटोरे के किनारे के समान सोसन के फूलों के जैसा बना था और उसमें दो हजार बत पानी समाता था। 27 फिर उसने पीतल के दस ठेले बनाए एक-एक ठेले की लम्बाई चार हाथ चौड़ाई भी चार हाथ और ऊँचाई तीन हाथ की थी। 28 उन पायों की बनावट इस प्रकार थी; उनके पटरियाँ थीं और पटरियों के बीचों बीच जोड़ भी थे। 29 और जोड़ों के बीचों बीच की पटरियों पर सिंह बैल और करूब बने थे और जोड़ों के ऊपर भी एक-एक और ठेला बना और सिंहों और बैलों के नीचे लटकती हुई झालरें बनी थीं। 30 एक-एक ठेले के लिये पीतल के चार पहिये और पीतल की धुरियाँ बनीं; और एक-एक के चारों कोनों से लगे हुए आधार भी ढालकर बनाए गए जो हौदी के नीचे तक पहुँचते थे और एक-एक आधार के पास झालरें बनी हुई थीं। 31 हौदी का मुँह जो ठेले की कँगनी के भीतर और ऊपर भी था वह एक हाथ ऊँचा था और ठेले का मुँह जिसकी चौड़ाई डेढ़ हाथ की थी वह पाये की बनावट के समान गोल बना; और उसके मुँह पर भी कुछ खुदा हुआ काम था और उनकी पटरियाँ गोल नहीं चौकोर थीं। 32 और चारों पहिये पटरियों के नीचे थे और एक-एक ठेले के पहियों में धुरियाँ भी थीं; और एक-एक पहिये की ऊँचाई डेढ़-डेढ़ हाथ की थी। 33 पहियों की बनावट रथ के पहिये की सी थी और उनकी धुरियाँ चक्र आरे और नाभें सब ढाली हुई थीं। 34 और एक-एक ठेले के चारों कोनों पर चार आधार थे और आधार और ठेले दोनों एक ही टुकड़े के बने थे। 35 और एक-एक ठेले के सिरे पर आधा हाथ ऊँची चारों ओर गोलाई थी और ठेले के सिरे पर की टेकें और पटरियाँ ठेले से जुड़े हुए एक ही टुकड़े के बने थे। 36 और टेकों के पाटों और पटरियों पर जितनी जगह जिस पर थी उसमें उसने करूब और सिंह और खजूर के वृक्ष खोदकर भर दिये और चारों ओर झालरें भी बनाईं। 37 इसी प्रकार से उसने दसों ठेलों को बनाया; सभी का एक ही साँचा और एक ही नाप और एक ही आकार था। 38 उसने पीतल की दस हौदी बनाईं। एक-एक हौदी में चालीस-चालीस बत पानी समाता था; और एक-एक चार-चार हाथ चौड़ी थी और दसों ठेलों में से एक-एक पर एक-एक हौदी थी। 39 उसने पाँच हौदी भवन के दक्षिण की ओर और पाँच उसकी उत्तर की ओर रख दीं; और हौज़ को भवन की दाहिनी ओर अर्थात् दक्षिण-पूर्व की ओर रख दिया। 40 हूराम ने हौदियों फावड़ियों और कटोरों को भी बनाया। सो हूराम ने राजा सुलैमान के लिये यहोवा के भवन में जितना काम करना था वह सब पूरा कर दिया 41 अर्थात् दो खम्भे और उन कँगनियों की गोलाइयाँ जो दोनों खम्भों के सिरे पर थीं और दोनों खम्भों के सिरों पर की गोलाइयों के ढाँपने को दो-दो जालियाँ और दोनों जालियों के लिए चार-चार सौ अनार 42 अर्थात् खम्भों के सिरों पर जो गोलाइयाँ थीं उनके ढाँपने के लिये अर्थात् एक-एक जाली के लिये अनारों की दो-दो पंक्तियाँ; 43 दस ठेले और इन पर की दस हौदियाँ 44 एक हौज़ और उसके नीचे के बारह बैल और हंडे फावड़ियां 45 और कटोरे बने। ये सब पात्र जिन्हें हूराम ने यहोवा के भवन के निमित्त राजा सुलैमान के लिये बनाया वह झलकाये हुए पीतल के बने। 46 राजा ने उनको यरदन की तराई में अर्थात् सुक्कोत और सारतान के मध्य की चिकनी मिट्टीवाली भूमि में ढाला। 47 और सुलैमान ने बहुत अधिक होने के कारण सब पत्रों को बिना तौले छोड़ दिया अतः पीतल के तौल का वज़न मालूम न हो सका। 48 यहोवा के भवन के जितने पात्र थे सुलैमान ने सब बनाए अर्थात् सोने की वेदी और सोने की वह मेज जिस पर भेंट की रोटी रखी जाती थी 49 और शुद्ध सोने की दीवटें जो भीतरी कोठरी के आगे पाँच तो दक्षिण की ओर और पाँच उत्तर की ओर रखी गईं; और सोने के फूल 50 दीपक और चिमटे और शुद्ध सोने के तसले कैंचियाँ कटोरे धूपदान और करछे और भीतरवाला भवन जो परमपवित्र स्थान कहलाता है और भवन जो मन्दिर कहलाता है दोनों के किवाड़ों के लिये सोने के कब्जे बने। 51 इस प्रकार जो-जो काम राजा सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिये किया वह सब पूरा हुआ। तब सुलैमान ने अपने पिता दाऊद के पवित्र किए हुए सोने चाँदी और पात्रों को भीतर पहुँचा कर यहोवा के भवन के भण्डारों में रख दिया।

मन्दिर की प्रतिष्ठा

8  1 तब सुलैमान ने इस्राएली पुरनियों को और गोत्रों के सब मुख्य पुरुषों को भी जो इस्राएलियों के पूर्वजों के घरानों के प्रधान थे यरूशलेम में अपने पास इस मनसा से इकट्ठा किया कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर अर्थात् सिय्योन से ऊपर ले आएँ। 2 अतः सब इस्राएली पुरुष एतानीम नामक सातवें महीने के पर्व के समय राजा सुलैमान के पास इकट्ठे हुए। 3 जब सब इस्राएली पुरनिये आए तब याजकों ने सन्दूक को उठा लिया। 4 और यहोवा का सन्दूक और मिलापवाले तम्बू और जितने पवित्र पात्र उस तम्बू में थे उन सभी को याजक और लेवीय लोग ऊपर ले गए। 5 और राजा सुलैमान और समस्त इस्राएली मंडली जो उसके पास इकट्ठी हुई थी वे सब सन्दूक के सामने इतने भेड़ और बैल बलि कर रहे थे जिनकी गिनती किसी रीति से नहीं हो सकती थी। 6 तब याजकों ने यहोवा की वाचा का सन्दूक उसके स्थान को अर्थात् भवन के पवित्र-स्थान में जो परमपवित्र स्थान है पहुँचाकर करूबों के पंखों के तले रख दिया। 7 करूब सन्दूक के स्थान के ऊपर पंख ऐसे फैलाए हुए थे कि वे ऊपर से सन्दूक और उसके डंडों को ढाँके थे। 8 डंडे तो ऐसे लम्बे थे कि उनके सिरे उस पवित्रस्‍थान से जो पवित्र-स्थान के सामने था दिखाई पड़ते थे परन्तु बाहर से वे दिखाई नहीं पड़ते थे। वे आज के दिन तक यहीं वर्तमान हैं। 9 सन्दूक में कुछ नहीं था उन दो पटियाओं को छोड़ जो मूसा ने होरेब में उसके भीतर उस समय रखीं जब यहोवा ने इस्राएलियों के मिस्र से निकलने पर उनके साथ वाचा बाँधी थी। 10 जब याजक पवित्रस्‍थान से निकले तब यहोवा के भवन में बादल भर आया। 11 और बादल के कारण याजक सेवा टहल करने को खड़े न रह सके क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया था। 12 तब सुलैमान कहने लगा यहोवा ने कहा था कि मैं घोर अंधकार में वास किए रहूँगा। 13 सचमुच मैंने तेरे लिये एक वासस्थान वरन् ऐसा दृढ़ स्थान बनाया है जिसमें तू युगानुयुग बना रहे। 14 तब राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुँह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया; और पूरी सभा खड़ी रही। 15 और उसने कहा धन्य है इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा जिस ने अपने मुँह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया था और अपने हाथ से उसे पूरा किया है 16 ‘जिस दिन से मैं अपनी प्रजा इस्राएल को मिस्र से निकाल लाया तब से मैंने किसी इस्राएली गोत्र का कोई नगर नहीं चुना जिसमें मेरे नाम के निवास के लिये भवन बनाया जाए; परन्तु मैंने दाऊद को चुन लिया कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का अधिकारी हो।’ 17 मेरे पिता दाऊद की यह इच्छा तो थी कि इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाए। 18 परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा ‘यह जो तेरी इच्छा है कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए ऐसी इच्छा करके तूने भला तो किया; 19 तो भी तू उस भवन को न बनाएगा; तेरा जो निज पुत्र होगा वही मेरे नाम का भवन बनाएगा।’ 20 यह जो वचन यहोवा ने कहा था उसे उसने पूरा भी किया है और मैं अपने पिता दाऊद के स्थान पर उठकर यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ और इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा के नाम से इस भवन को बनाया है। 21 और इसमें मैंने एक स्थान उस सन्दूक के लिये ठहराया है जिसमें यहोवा की वह वाचा है जो उसने हमारे पुरखाओं को मिस्र देश से निकालने के समय उनसे बाँधी थी। 22 तब सुलैमान इस्राएल की पूरी सभा के देखते यहोवा की वेदी के सामने खड़ा हुआ और अपने हाथ स्वर्ग की ओर फैलाकर कहा हे यहोवा 23 हे इस्राएल के परमेश्‍वर तेरे समान न तो ऊपर स्वर्ग में और न नीचे पृथ्वी पर कोई परमेश्‍वर है: तेरे जो दास अपने सम्पूर्ण मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलते हैं उनके लिये तू अपनी वाचा पूरी करता और करुणा करता रहता है। 24 जो वचन तूने मेरे पिता दाऊद को दिया था उसका तूने पालन किया है जैसा तूने अपने मुँह से कहा था वैसा ही अपने हाथ से उसको पूरा किया है जैसा कि आज है। 25 इसलिए अब हे इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा इस वचन को भी पूरा कर जो तूने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था ‘तेरे कुल में मेरे सामने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदैव बने रहेंगे इतना हो कि जैसे तू स्वयं मुझे सम्मुख जानकर चलता रहा वैसे ही तेरे वंश के लोग अपनी चालचलन में ऐसी ही चौकसी करें।’ 26 इसलिए अब हे इस्राएल के परमेश्‍वर अपना जो वचन तूने अपने दास मेरे पिता दाऊद को दिया था उसे सच्चा सिद्ध कर। 27 क्या परमेश्‍वर सचमुच पृथ्वी पर वास करेगा स्वर्ग में वरन् सबसे ऊँचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में कैसे समाएगा। 28 तो भी हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा अपने दास की प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट की ओर कान लगाकर मेरी चिल्लाहट और यह प्रार्थना सुन जो मैं आज तेरे सामने कर रहा हूँ; 29 कि तेरी आँख इस भवन की ओर अर्थात् इसी स्थान की ओर जिसके विषय तूने कहा है ‘मेरा नाम वहाँ रहेगा’ रात दिन खुली रहें और जो प्रार्थना तेरा दास इस स्थान की ओर करे उसे तू सुन ले। 30 और तू अपने दास और अपनी प्रजा इस्राएल की प्रार्थना जिसको वे इस स्थान की ओर गिड़गिड़ा के करें उसे सुनना वरन् स्वर्ग में से जो तेरा निवास-स्थान है सुन लेना और सुनकर क्षमा करना। 31 जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे और उसको शपथ खिलाई जाए और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के सामने शपथ खाए 32 तब तू स्वर्ग में सुन कर अर्थात् अपने दासों का न्याय करके दुष्ट को दुष्ट ठहरा और उसकी चाल उसी के सिर लौटा दे और निर्दोष को निर्दोष ठहराकर उसके धार्मिकता के अनुसार उसको फल देना। 33 फिर जब तेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरुद्ध पाप करने के कारण अपने शत्रुओं से हार जाए और तेरी ओर फिरकर तेरा नाम ले और इस भवन में तुझ से गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करे 34 तब तू स्वर्ग में से सुनकर अपनी प्रजा इस्राएल का पाप क्षमा करना: और उन्हें इस देश में लौटा ले आना जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था। 35 जब वे तेरे विरुद्ध पाप करें और इस कारण आकाश बन्द हो जाए कि वर्षा न होए ऐसे समय यदि वे इस स्थान की ओर प्रार्थना करके तेरे नाम को मानें जब तू उन्हें दुःख देता है और अपने पाप से फिरें तो तू स्वर्ग में से सुनकर क्षमा करना 36 और अपने दासों अपनी प्रजा इस्राएल के पाप को क्षमा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है जिस पर उन्हें चलना चाहिये इसलिए अपने इस देश पर जो तूने अपनी प्रजा का भाग कर दिया है पानी बरसा देना। 37 जब इस देश में अकाल या मरी या झुलस हो या गेरूई या टिड्डियाँ या कीड़े लगें या उनके शत्रु उनके देश के फाटकों में उन्हें घेर रखें अथवा कोई विपत्ति या रोग क्यों न हों 38 तब यदि कोई मनुष्य या तेरी प्रजा इस्राएल अपने-अपने मन का दुःख जान लें और गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करके अपने हाथ इस भवन की ओर फैलाए; 39 तो तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से सुनकर क्षमा करना और ऐसा करना कि एक-एक के मन को जानकर उसकी समस्त चाल के अनुसार उसको फल देना: तू ही तो सब मनुष्यों के मन के भेदों का जानने वाला है। 40 तब वे जितने दिन इस देश में रहें जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था उतने दिन तक तेरा भय मानते रहें। 41 फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो जब वह तेरा नाम सुनकर दूर देश से आए 42 वह तो तेरे बड़े नाम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा का समाचार पाए; इसलिए जब ऐसा कोई आकर इस भवन की ओर प्रार्थना करे 43 तब तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से सुन और जिस बात के लिये ऐसा परदेशी तुझे पुकारे उसी के अनुसार व्यवहार करना जिससे पृथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर तेरी प्रजा इस्राएल के समान तेरा भय मानें और निश्चय जानें कि यह भवन जिसे मैंने बनाया है वह तेरा ही कहलाता है। 44 जब तेरी प्रजा के लोग जहाँ कहीं तू उन्हें भेजे वहाँ अपने शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएँ और इस नगर की ओर जिसे तूने चुना है और इस भवन की ओर जिसे मैंने तेरे नाम पर बनाया है यहोवा से प्रार्थना करें 45 तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनकर उनका न्याय कर। 46 निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है: यदि ये भी तेरे विरुद्ध पाप करें और तू उन पर कोप करके उन्हें शत्रुओं के हाथ कर दे और वे उनको बन्दी बनाकर अपने देश को चाहे वह दूर हो चाहे निकट ले जाएँ 47 और यदि वे बँधुआई के देश में सोच विचार करें और फिरकर अपने बन्दी बनानेवालों के देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें ‘हमने पाप किया और कुटिलता और दुष्टता की है;’ 48 और यदि वे अपने उन शत्रुओं के देश में जो उन्हें बन्दी करके ले गए हों अपने सम्पूर्ण मन और सम्पूर्ण प्राण से तेरी ओर फिरें और अपने इस देश की ओर जो तूने उनके पुरखाओं को दिया था और इस नगर की ओर जिसे तूने चुना है और इस भवन की ओर जिसे मैंने तेरे नाम का बनाया है तुझ से प्रार्थना करें 49 तो तू अपने स्वर्गीय निवास-स्थान में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनना; और उनका न्याय करना 50 और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरुद्ध करेंगे और जितने अपराध वे तेरे विरुद्ध करेंगे सब को क्षमा करके उनके बन्दी करनेवालों के मन में ऐसी दया उपजाना कि वे उन पर दया करें। 51 क्योंकि वे तो तेरी प्रजा और तेरा निज भाग हैं जिन्हें तू लोहे के भट्ठे के मध्य में से अर्थात् मिस्र से निकाल लाया है। 52 इसलिए तेरी आँखें तेरे दास की गिड़गिड़ाहट और तेरी प्रजा इस्राएल की गिड़गिड़ाहट की ओर ऐसी खुली रहें कि जब-जब वे तुझे पुकारें तब-तब तू उनकी सुन ले; 53 क्योंकि हे प्रभु यहोवा अपने उस वचन के अनुसार जो तूने हमारे पुरखाओं को मिस्र से निकालने के समय अपने दास मूसा के द्वारा दिया था तूने इन लोगों को अपना निज भाग होने के लिये पृथ्वी की सब जातियों से अलग किया है। 54 जब सुलैमान यहोवा से यह सब प्रार्थना गिड़गिड़ाहट के साथ कर चुका तब वह जो घुटने टेके और आकाश की ओर हाथ फैलाए हुए था यहोवा की वेदी के सामने से उठा 55 और खड़ा हो समस्त इस्राएली सभा को ऊँचे स्वर से यह कहकर आशीर्वाद दिया 56 धन्य है यहोवा जिस ने ठीक अपने कथन के अनुसार अपनी प्रजा इस्राएल को विश्राम दिया है जितनी भलाई की बातें उसने अपने दास मूसा के द्वारा कही थीं उनमें से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही। 57 हमारा परमेश्‍वर यहोवा जैसे हमारे पुरखाओं के संग रहता था वैसे ही हमारे संग भी रहे वह हमको त्याग न दे और न हमको छोड़ दे। 58 वह हमारे मन अपनी ओर ऐसा फिराए रखे कि हम उसके सब मार्गों पर चला करें और उसकी आज्ञाएँ और विधियाँ और नियम जिन्हें उसने हमारे पुरखाओं को दिया था नित माना करें। 59 और मेरी ये बातें जिनकी मैंने यहोवा के सामने विनती की है वह दिन और रात हमारे परमेश्‍वर यहोवा के मन में बनी रहें और जैसी प्रतिदिन आवश्यकता हो वैसा ही वह अपने दास का और अपनी प्रजा इस्राएल का भी न्याय किया करे 60 और इससे पृथ्वी की सब जातियाँ यह जान लें कि यहोवा ही परमेश्‍वर है; और कोई दूसरा नहीं। 61 तो तुम्हारा मन हमारे परमेश्‍वर यहोवा की ओर ऐसी पूरी रीति से लगा रहे कि आज के समान उसकी विधियों पर चलते और उसकी आज्ञाएँ मानते रहो। 62 तब राजा समस्त इस्राएल समेत यहोवा के सम्मुख मेलबलि चढ़ाने लगा। 63 और जो पशु सुलैमान ने मेलबलि में यहोवा को चढ़ाए वे बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ें थीं। इस रीति राजा ने सब इस्राएलियों समेत यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की। 64 उस दिन राजा ने यहोवा के भवन के सामनेवाले आँगन के मध्य भी एक स्थान पवित्र किया और होमबलि और अन्नबलि और मेलबलियों की चर्बी वहीं चढ़ाई; क्योंकि जो पीतल की वेदी यहोवा के सामने थी वह उनके लिये छोटी थी। 65 अतः सुलैमान ने और उसके संग समस्त इस्राएल की एक बड़ी सभा ने जो हमात के प्रवेशद्वार से लेकर मिस्र के नाले तक के सब देशों से इकट्ठी हुई थी दो सप्ताह तक अर्थात् चौदह दिन तक हमारे परमेश्‍वर यहोवा के सामने पर्व को माना। 66 फिर आठवें दिन उसने प्रजा के लोगों को विदा किया। और वे राजा को धन्य धन्य कहकर उस सब भलाई के कारण जो यहोवा ने अपने दास दाऊद और अपनी प्रजा इस्राएल से की थी आनन्दित और मगन होकर अपने-अपने डेरे को चले गए।

सुलैमान को यहोवा का दूसरा दर्शन

9  1 जब सुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका और जो कुछ उसने करना चाहा था उसे कर चुका 2 तब यहोवा ने जैसे गिबोन में उसको दर्शन दिया था वैसे ही दूसरी बार भी उसे दर्शन दिया। 3 और यहोवा ने उससे कहा जो प्रार्थना गिड़गिड़ाहट के साथ तूने मुझसे की है उसको मैंने सुना है यह जो भवन तूने बनाया है उसमें मैंने अपना नाम सदा के लिये रखकर उसे पवित्र किया है; और मेरी आँखें और मेरा मन नित्य वहीं लगे रहेंगे। 4 और यदि तू अपने पिता दाऊद के समान मन की खराई और सिधाई से अपने को मेरे सामने जानकर चलता रहे और मेरी सब आज्ञाओं के अनुसार किया करे और मेरी विधियों और नियमों को मानता रहे तो मैं तेरा राज्य इस्राएल के ऊपर सदा के लिये स्थिर करूँगा; 5 जैसे कि मैंने तेरे पिता दाऊद को वचन दिया था ‘तेरे कुल में इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदा बने रहेंगे।’ 6 परन्तु यदि तुम लोग या तुम्हारे वंश के लोग मेरे पीछे चलना छोड़ दें; और मेरी उन आज्ञाओं और विधियों को जो मैंने तुम को दी हैं न मानें और जाकर पराये देवताओं की उपासना करें और उन्हें दण्डवत् करने लगें 7 तो मैं इस्राएल को इस देश में से जो मैंने उनको दिया है काट डालूँगा और इस भवन को जो मैंने अपने नाम के लिये पवित्र किया है अपनी दृष्टि से उतार दूँगा; और सब देशों के लोगों में इस्राएल की उपमा दी जाएगी और उसका दृष्टान्त चलेगा। 8 और यह भवन जो ऊँचे पर रहेगा तो जो कोई इसके पास होकर चलेगा वह चकित होगा और ताली बजाएगा और वे पूछेंगे ‘यहोवा ने इस देश और इस भवन के साथ क्यों ऐसा किया है;’ 9 तब लोग कहेंगे ‘उन्होंने अपने परमेश्‍वर यहोवा को जो उनके पुरखाओं को मिस्र देश से निकाल लाया था। तजकर पराये देवताओं को पकड़ लिया और उनको दण्डवत् की और उनकी उपासना की इस कारण यहोवा ने यह सब विपत्ति उन पर डाल दी’। 10 सुलैमान को तो यहोवा के भवन और राजभवन दोनों के बनाने में बीस वर्ष लग गए। 11 तब सुलैमान ने सोर के राजा हीराम को जिस ने उसके मनमाने देवदार और सनोवर की लकड़ी और सोना दिया था गलील देश के बीस नगर दिए। 12 जब हीराम ने सोर से जाकर उन नगरों को देखा जो सुलैमान ने उसको दिए थे तब वे उसको अच्छे न लगे। 13 तब उसने कहा हे मेरे भाई ये कैसे नगर तूने मुझे दिए हैं? और उसने उनका नाम कबूल देश रखा। और यही नाम आज के दिन तक पड़ा है। 14 फिर हीराम ने राजा के पास एक सौ बीस किक्कार सोना भेजा था। 15 राजा सुलैमान ने लोगों को जो बेगारी में रखा इसका प्रयोजन यह था कि यहोवा का और अपना भवन बनाए और मिल्लो और यरूशलेम की शहरपनाह और हासोर मगिद्दो और गेजेर नगरों को दृढ़ करे। 16 गेजेर पर तो मिस्र के राजा फ़िरौन ने चढ़ाई करके उसे ले लिया था और आग लगाकर फूँक दिया और उस नगर में रहनेवाले कनानियों को मार डाला और उसे अपनी बेटी सुलैमान की रानी का निज भाग करके दिया था 17 अतः सुलैमान ने गेजेर और नीचेवाले बेथोरोन 18 बालात और तामार को जो जंगल में हैं दृढ़ किया ये तो देश में हैं। 19 फिर सुलैमान के जितने भण्डारवाले नगर थे और उसके रथों और सवारों के नगर उनको वरन् जो कुछ सुलैमान ने यरूशलेम लबानोन और अपने राज्य के सब देशों में बनाना चाहा उन सब को उसने दृढ़ किया। 20 एमोरी हित्ती परिज्जी हिव्वी और यबूसी जो रह गए थे जो इस्राएली न थे 21 उनके वंश जो उनके बाद देश में रह गए और उनको इस्राएली सत्यानाश न कर सके उनको तो सुलैमान ने दास कर के बेगारी में रखा और आज तक उनकी वही दशा है। 22 परन्तु इस्राएलियों में से सुलैमान ने किसी को दास न बनाया; वे तो योद्धा और उसके कर्मचारी उसके हाकिम उसके सरदार और उसके रथों और सवारों के प्रधान हुए। 23 जो मुख्य हाकिम सुलैमान के कामों के ऊपर ठहरके काम करनेवालों पर प्रभुता करते थे ये पाँच सौ पचास थे। 24 जब फ़िरौन की बेटी दाऊदपुर से अपने उस भवन को आ गई जो सुलैमान ने उसके लिये बनाया था तब उसने मिल्लो को बनाया। 25 सुलैमान उस वेदी पर जो उसने यहोवा के लिये बनाई थी प्रति वर्ष तीन बार होमबलि और मेलबलि चढ़ाया करता था और साथ ही उस वेदी पर जो यहोवा के सम्मुख थी धूप जलाया करता था इस प्रकार उसने उस भवन को तैयार कर दिया। 26 फिर राजा सुलैमान ने एस्योनगेबेर में जो एदोम देश में लाल समुद्र के किनारे एलोत के पास है जहाज बनाए। 27 और जहाजों में हीराम ने अपने अधिकार के मल्लाहों को जो समुद्र की जानकारी रखते थे सुलैमान के सेवकों के संग भेज दिया। 28 उन्होंने ओपीर को जाकर वहाँ से चार सौ बीस किक्कार सोना राजा सुलैमान को लाकर दिया।

शेबा की रानी द्वारा सुलैमान की तारीफ़

10  1 जब शेबा की रानी ने यहोवा के नाम के विषय सुलैमान की कीर्ति सुनी तब वह कठिन-कठिन प्रश्‍नों से उसकी परीक्षा करने को चल पड़ी। 2 वह तो बहुत भारी दल के साथ मसालों और बहुत सोने और मणि से लदे ऊँट साथ लिये हुए यरूशलेम को आई; और सुलैमान के पास पहुँचकर अपने मन की सब बातों के विषय में उससे बातें करने लगी। 3 सुलैमान ने उसके सब प्रश्‍नों का उत्तर दिया कोई बात राजा की बुद्धि से ऐसी बाहर न रही कि वह उसको न बता सका। 4 जब शेबा की रानी ने सुलैमान की सब बुद्धिमानी और उसका बनाया हुआ भवन और उसकी मेज पर का भोजन देखा 5 और उसके कर्मचारी किस रीति बैठते और उसके टहलुए किस रीति खड़े रहते और कैसे-कैसे कपड़े पहने रहते हैं और उसके पिलानेवाले कैसे हैं और वह कैसी चढ़ाई है जिससे वह यहोवा के भवन को जाया करता है यह सब जब उसने देखा तब वह चकित रह गई। 6 तब उसने राजा से कहा तेरे कामों और बुद्धिमानी की जो कीर्ति मैंने अपने देश में सुनी थी वह सच ही है। 7 परन्तु जब तक मैंने आप ही आकर अपनी आँखों से यह न देखा तब तक मैंने उन बातों पर विश्वास न किया परन्तु इसका आधा भी मुझे न बताया गया था; तेरी बुद्धिमानी और कल्याण उस कीर्ति से भी बढ़कर है जो मैंने सुनी थी। 8 धन्य हैं तेरे जन धन्य हैं तेरे ये सेवक जो नित्य तेरे सम्मुख उपस्थित रहकर तेरी बुद्धि की बातें सुनते हैं। 9 धन्य है तेरा परमेश्‍वर यहोवा जो तुझ से ऐसा प्रसन्‍न हुआ कि तुझे इस्राएल की राजगद्दी पर विराजमान किया यहोवा इस्राएल से सदा प्रेम रखता है इस कारण उसने तुझे न्याय और धार्मिकता करने को राजा बना दिया है। 10 उसने राजा को एक सौ बीस किक्कार सोना बहुत सा सुगन्ध-द्रव्य और मणि दिया; जितना सुगन्ध-द्रव्य शेबा की रानी ने राजा सुलैमान को दिया उतना फिर कभी नहीं आया। 11 फिर हीराम के जहाज भी जो ओपीर से सोना लाते थे बहुत सी चन्दन की लकड़ी और मणि भी लाए। 12 और राजा ने चन्दन की लकड़ी से यहोवा के भवन और राजभवन के लिये खम्भे और गवैयों के लिये वीणा और सारंगियाँ बनवाईं; ऐसी चन्दन की लकड़ी आज तक फिर नहीं आई और न दिखाई पड़ी है। 13 शेबा की रानी ने जो कुछ चाहा वही राजा सुलैमान ने उसकी इच्छा के अनुसार उसको दिया फिर राजा सुलैमान ने उसको अपनी उदारता से बहुत कुछ दिया तब वह अपने जनों समेत अपने देश को लौट गई। 14 जो सोना प्रति वर्ष सुलैमान के पास पहुँचा करता था उसका तौल छः सौ छियासठ किक्कार था। 15 इसके अतिरिक्त सौदागरों से और व्यापारियों के लेन-देन से और अरब देशों के सब राजाओं और अपने देश के राज्यपालों से भी बहुत कुछ मिलता था। 16 राजा सुलैमान ने सोना गढ़वाकर दो सौ बड़ी-बड़ी ढालें बनवाई; एक-एक ढाल में छः-छः सौ शेकेल सोना लगा। 17 फिर उसने सोना गढ़वाकर तीन सौ छोटी ढालें भी बनवाईं; एक-एक छोटी ढाल में तीन माने सोना लगा; और राजा ने उनको लबानोन का वन नामक महल में रखवा दिया। 18 राजा ने हाथी दाँत का एक बड़ा सिंहासन भी बनवाया और उत्तम कुन्दन से मढ़वाया। 19 उस सिंहासन में छः सीढ़ियाँ थीं; और सिंहासन का पिछला भाग गोलाकार था और बैठने के स्थान के दोनों ओर टेक लगी थीं और दोनों टेकों के पास एक-एक सिंह खड़ा हुआ बना था। 20 और छहों सीढ़ियों के दोनों ओर एक-एक सिंह खड़ा हुआ बना था कुल बारह सिंह बने थे। किसी राज्य में ऐसा सिंहासन कभी नहीं बना; 21 राजा सुलैमान के पीने के सब पात्र सोने के बने थे और लबानोन का वन नामक महल के सब पात्र भी शुद्ध सोने के थे चाँदी का कोई भी न था। सुलैमान के दिनों में उसका कुछ मूल्य न था। 22 क्योंकि समुद्र पर हीराम के जहाजों के साथ राजा भी तर्शीश के जहाज रखता था और तीन-तीन वर्ष पर तर्शीश के जहाज सोना चाँदी हाथी दाँत बंदर और मयूर ले आते थे। 23 इस प्रकार राजा सुलैमान धन और बुद्धि में पृथ्वी के सब राजाओं से बढ़कर हो गया। 24 और समस्त पृथ्वी के लोग उसकी बुद्धि की बातें सुनने को जो परमेश्‍वर ने उसके मन में उत्‍पन्‍न की थीं सुलैमान का दर्शन पाना चाहते थे। 25 और वे प्रति वर्ष अपनी-अपनी भेंट अर्थात् चाँदी और सोने के पात्र वस्त्र शस्त्र सुगन्ध-द्रव्य घोड़े और खच्चर ले आते थे। 26 सुलैमान ने रथ और सवार इकट्ठे कर लिए उसके चौदह सौ रथ और बारह हजार सवार हो गए और उनको उसने रथों के नगरों में और यरूशलेम में राजा के पास ठहरा रखा। 27 और राजा ने बहुतायत के कारण यरूशलेम में चाँदी को तो ऐसा कर दिया जैसे पत्थर और देवदार को ऐसा जैसे नीचे के देश के गूलर। 28 और जो घोड़े सुलैमान रखता था वे मिस्र से आते थे और राजा के व्यापारी उन्हें झुण्ड-झुण्ड करके ठहराए हुए दाम पर लिया करते थे। 29 एक रथ तो छः सौ शेकेल चाँदी में और एक घोड़ा डेढ़ सौ शेकेल में मिस्र से आता था और इसी दाम पर वे हित्तियों और अराम के सब राजाओं के लिये भी व्यापारियों के द्वारा आते थे।

सुलैमान का हृदय परमेश्‍वर से फिर जाना

11  1 परन्तु राजा सुलैमान फ़िरौन की बेटी और बहुत सी विजातीय स्त्रियों से जो मोआबी अम्मोनी एदोमी सीदोनी और हित्ती थीं प्रीति करने लगा। 2 वे उन जातियों की थीं जिनके विषय में यहोवा ने इस्राएलियों से कहा था तुम उनके मध्य में न जाना और न वे तुम्हारे मध्य में आने पाएँ वे तुम्हारा मन अपने देवताओं की ओर निःसन्देह फेरेंगी; उन्हीं की प्रीति में सुलैमान लिप्त हो गया। 3 उसके सात सौ रानियाँ और तीन सौ रखैलियाँ हो गई थीं और उसकी इन स्त्रियों ने उसका मन बहका दिया। 4 अतः जब सुलैमान बूढ़ा हुआ तब उसकी स्त्रियों ने उसका मन पराये देवताओं की ओर बहका दिया और उसका मन अपने पिता दाऊद की समान अपने परमेश्‍वर यहोवा पर पूरी रीति से लगा न रहा। 5 सुलैमान तो सीदोनियों की अश्तोरेत नामक देवी और अम्मोनियों के मिल्कोम नामक घृणित देवता के पीछे चला। 6 इस प्रकार सुलैमान ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है और यहोवा के पीछे अपने पिता दाऊद के समान पूरी रीति से न चला। 7 उन दिनों सुलैमान ने यरूशलेम के सामने के पहाड़ पर मोआबियों के कमोश नामक घृणित देवता के लिये और अम्मोनियों के मोलेक नामक घृणित देवता के लिये एक-एक ऊँचा स्थान बनाया। 8 और अपनी सब विजातीय स्त्रियों के लिये भी जो अपने-अपने देवताओं को धूप जलाती और बलिदान करती थीं उसने ऐसा ही किया। 9 तब यहोवा ने सुलैमान पर क्रोध किया क्योंकि उसका मन इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा से फिर गया था जिस ने दो बार उसको दर्शन दिया था। 10 और उसने इसी बात के विषय में आज्ञा दी थी कि पराये देवताओं के पीछे न हो लेना तो भी उसने यहोवा की आज्ञा न मानी। 11 इसलिए यहोवा ने सुलैमान से कहा तुझ से जो ऐसा काम हुआ है और मेरी बँधाई हुई वाचा और दी हुई विधि तूने पूरी नहीं की इस कारण मैं राज्य को निश्चय तुझ से छीनकर तेरे एक कर्मचारी को दे दूँगा। 12 तो भी तेरे पिता दाऊद के कारण तेरे दिनों में तो ऐसा न करूँगा; परन्तु तेरे पुत्र के हाथ से राज्य छीन लूंगा। 13 फिर भी मैं पूर्ण राज्य तो न छीन लूंगा परन्तु अपने दास दाऊद के कारण और अपने चुने हुए यरूशलेम के कारण मैं तेरे पुत्र के हाथ में एक गोत्र छोड़ दूँगा। 14 तब यहोवा ने एदोमी हदद को जो एदोमी राजवंश का था सुलैमान का शत्रु बना दिया। 15 क्योंकि जब दाऊद एदोम में था और योआब सेनापति मारे हुओं को मिट्टी देने गया 16 undefined 17 तब हदद जो छोटा लड़का था अपने पिता के कई एक एदोमी सेवकों के संग मिस्र को जाने की मनसा से भागा। 18 और वे मिद्यान से होकर पारान को आए और पारान में से कई पुरुषों को संग लेकर मिस्र में फ़िरौन राजा के पास गए और फ़िरौन ने उसको घर दिया और उसके भोजन व्यवस्था की आज्ञा दी और कुछ भूमि भी दी। 19 और हदद पर फ़िरौन की बड़े अनुग्रह की दृष्टि हुई और उसने उससे अपनी साली अर्थात् तहपनेस रानी की बहन ब्याह दी। 20 और तहपनेस की बहन से गनूबत उत्‍पन्‍न हुआ और इसका दूध तहपनेस ने फ़िरौन के भवन में छुड़ाया; तब गनूबत फ़िरौन के भवन में उसी के पुत्रों के साथ रहता था। 21 जब हदद ने मिस्र में रहते यह सुना कि दाऊद अपने पुरखाओं के संग जा मिला और योआब सेनापति भी मर गया है तब उसने फ़िरौन से कहा मुझे आज्ञा दे कि मैं अपने देश को जाऊँ 22 फ़िरौन ने उससे कहा क्यों? मेरे यहाँ तुझे क्या घटी हुई कि तू अपने देश को चला जाना चाहता है? उसने उत्तर दिया कुछ नहीं हुई तो भी मुझे अवश्य जाने दे। 23 फिर परमेश्‍वर ने उसका एक और शत्रु कर दिया अर्थात् एल्यादा के पुत्र रजोन को वह तो अपने स्वामी सोबा के राजा हदादेजेर के पास से भागा था; 24 और जब दाऊद ने सोबा के जनों को घात किया तब रजोन अपने पास कई पुरुषों को इकट्ठे करके एक दल का प्रधान हो गया और वह दमिश्क को जाकर वहीं रहने और राज्य करने लगा। 25 उस हानि के साथ-साथ जो हदद ने की रजोन भी सुलैमान के जीवन भर इस्राएल का शत्रु बना रहा; और वह इस्राएल से घृणा रखता हुआ अराम पर राज्य करता था। 26 फिर नबात का और सरूआह नामक एक विधवा का पुत्र यारोबाम नामक एक एप्रैमी सरेदावासी जो सुलैमान का कर्मचारी था उसने भी राजा के विरुद्ध सिर उठाया। 27 उसका राजा के विरुद्ध सिर उठाने का यह कारण हुआ कि सुलैमान मिल्लो को बना रहा था और अपने पिता दाऊद के नगर के दरार बन्द कर रहा था। 28 यारोबाम बड़ा शूरवीर था और जब सुलैमान ने जवान को देखा कि यह परिश्रमी है; तब उसने उसको यूसुफ के घराने के सब काम पर मुखिया ठहराया। 29 उन्हीं दिनों में यारोबाम यरूशलेम से निकलकर जा रहा था कि शीलोवासी अहिय्याह नबी नई चद्दर ओढ़े हुए मार्ग पर उससे मिला; और केवल वे ही दोनों मैदान में थे। 30 तब अहिय्याह ने अपनी उस नई चद्दर को ले लिया और उसे फाड़कर बारह टुकड़े कर दिए। 31 तब उसने यारोबाम से कहा दस टुकड़े ले ले; क्योंकि इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा यह कहता है ‘सुन मैं राज्य को सुलैमान के हाथ से छीन कर दस गोत्र तेरे हाथ में कर दूँगा। 32 परन्तु मेरे दास दाऊद के कारण और यरूशलेम के कारण जो मैंने इस्राएल के सब गोत्रों में से चुना है उसका एक गोत्र बना रहेगा। 33 इसका कारण यह है कि उन्होंने मुझे त्याग कर सीदोनियों की देवी अश्तोरेत और मोआबियों के देवता कमोश और अम्मोनियों के देवता मिल्कोम को दण्डवत् की और मेरे मार्गों पर नहीं चले: और जो मेरी दृष्टि में ठीक है वह नहीं किया और मेरी विधियों और नियमों को नहीं माना जैसा कि उसके पिता दाऊद ने किया। 34 तो भी मैं उसके हाथ से पूर्ण राज्य न ले लूँगा परन्तु मेरा चुना हुआ दास दाऊद जो मेरी आज्ञाएँ और विधियाँ मानता रहा उसके कारण मैं उसको जीवन भर प्रधान ठहराए रखूँगा। 35 परन्तु उसके पुत्र के हाथ से मैं राज्य अर्थात् दस गोत्र लेकर तुझे दे दूँगा। 36 और उसके पुत्र को मैं एक गोत्र दूँगा इसलिए कि यरूशलेम अर्थात् उस नगर में जिसे अपना नाम रखने को मैंने चुना है मेरे दास दाऊद का दीपक मेरे सामने सदैव बना रहे। 37 परन्तु तुझे मैं ठहरा लूँगा और तू अपनी इच्छा भर इस्राएल पर राज्य करेगा। 38 और यदि तू मेरे दास दाऊद के समान मेरी सब आज्ञाएँ माने और मेरे मार्गों पर चले और जो काम मेरी दृष्टि में ठीक है वही करे और मेरी विधियाँ और आज्ञाएँ मानता रहे तो मैं तेरे संग रहूँगा और जिस तरह मैंने दाऊद का घराना बनाए रखा है वैसे ही तेरा भी घराना बनाए रखूँगा और तेरे हाथ इस्राएल को दूँगा। 39 इस पाप के कारण मैं दाऊद के वंश को दुःख दूँगा तो भी सदा तक नहीं’। 40 इसलिए सुलैमान ने यारोबाम को मार डालना चाहा परन्तु यारोबाम मिस्र के राजा शीशक के पास भाग गया और सुलैमान के मरने तक वहीं रहा। 41 सुलैमान की और सब बातें और उसके सब काम और उसकी बुद्धिमानी का वर्णन क्या सुलैमान के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 42 सुलैमान को यरूशलेम में सब इस्राएल पर राज्य करते हुए चालीस वर्ष बीते। 43 और सुलैमान मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसको उसके पिता दाऊद के नगर में मिट्टी दी गई और उसका पुत्र रहबाम उसके स्थान पर राजा हुआ।

इस्राएल से राज्य का दो भाग हो जाना

12  1 रहबाम शेकेम को गया क्योंकि सब इस्राएली उसको राजा बनाने के लिये वहीं गए थे। 2 जब नबात के पुत्र यारोबाम ने यह सुना (जो अब तक मिस्र में ही रहता था क्योंकि यारोबाम सुलैमान राजा के डर के मारे भाग कर मिस्र में रहता था। 3 अतः उन लोगों ने उसको बुलवा भेजा) तब यारोबाम और इस्राएल की समस्त सभा रहबाम के पास जाकर यह कहने लगी 4 तेरे पिता ने तो हम लोगों पर भारी जूआ डाल रखा था तो अब तू अपने पिता की कठिन सेवा को और उस भारी जूआ को जो उसने हम पर डाल रखा है कुछ हलका कर; तब हम तेरे अधीन रहेंगे। 5 उसने कहा अभी तो जाओ और तीन दिन के बाद मेरे पास फिर आना। तब वे चले गए। 6 तब राजा रहबाम ने उन बूढ़ों से जो उसके पिता सुलैमान के जीवन भर उसके सामने उपस्थित रहा करते थे सम्मति ली इस प्रजा को कैसा उत्तर देना उचित है इसमें तुम क्या सम्मति देते हो? 7 उन्होंने उसको यह उत्तर दिया यदि तू अभी प्रजा के लोगों का दास बनकर उनके अधीन हो और उनसे मधुर बातें कहे तो वे सदैव तेरे अधीन बने रहेंगे। 8 रहबाम ने उस सम्मति को छोड़ दिया जो बूढ़ों ने उसको दी थी और उन जवानों से सम्मति ली जो उसके संग बड़े हुए थे और उसके सम्मुख उपस्थित रहा करते थे। 9 उनसे उसने पूछा मैं प्रजा के लोगों को कैसा उत्तर दूँ? इसमें तुम क्या सम्मति देते हो? उन्होंने तो मुझसे कहा है ‘जो जूआ तेरे पिता ने हम पर डाल रखा है उसे तू हलका कर’। 10 जवानों ने जो उसके संग बड़े हुए थे उसको यह उत्तर दिया उन लोगों ने तुझ से कहा है ‘तेरे पिता ने हमारा जूआ भारी किया था परन्तु तू उसे हमारे लिए हलका कर;’ तू उनसे यह कहना ‘मेरी छिंगुलिया मेरे पिता की कमर से भी मोटी है। 11 मेरे पिता ने तुम पर जो भारी जूआ रखा था उसे मैं और भी भारी करूँगा; मेरा पिता तो तुम को कोड़ों से ताड़ना देता था परन्तु मैं बिच्छुओं से दूँगा’। 12 तीसरे दिन जैसे राजा ने ठहराया था कि तीसरे दिन मेरे पास फिर आना वैसे ही यारोबाम और समस्त प्रजागण रहबाम के पास उपस्थित हुए। 13 तब राजा ने प्रजा से कड़ी बातें की 14 और बूढ़ों की दी हुई सम्मति छोड़कर जवानों की सम्मति के अनुसार उनसे कहा मेरे पिता ने तो तुम्हारा जूआ भारी कर दिया परन्तु मैं उसे और भी भारी कर दूँगा: मेरे पिता ने तो कोड़ों से तुम को ताड़ना दी परन्तु मैं तुम को बिच्छुओं से ताड़ना दूँगा। 15 इस प्रकार राजा ने प्रजा की बात नहीं मानी इसका कारण यह है कि जो वचन यहोवा ने शीलोवासी अहिय्याह के द्वारा नबात के पुत्र यारोबाम से कहा था उसको पूरा करने के लिये उसने ऐसा ही ठहराया था। 16 जब समस्त इस्राएल ने देखा कि राजा हमारी नहीं सुनता तब वे बोले 17 अतः इस्राएल अपने-अपने डेरे को चले गए। केवल जितने इस्राएली यहूदा के नगरों में बसे हुए थे उन पर रहबाम राज्य करता रहा। 18 तब राजा रहबाम ने अदोराम को जो सब बेगारों पर अधिकारी था भेज दिया और सब इस्राएलियों ने उसको पथराव किया और वह मर गया: तब रहबाम फुर्ती से अपने रथ पर चढ़कर यरूशलेम को भाग गया। 19 इस प्रकार इस्राएल दाऊद के घराने से फिर गया और आज तक फिरा हुआ है। 20 यह सुनकर कि यारोबाम लौट आया है समस्त इस्राएल ने उसको मण्डली में बुलवा भेजा और सम्पूर्ण इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त किया और यहूदा के गोत्र को छोड़कर दाऊद के घराने से कोई मिला न रहा। 21 जब रहबाम यरूशलेम को आया तब उसने यहूदा के समस्त घराने को और बिन्यामीन के गोत्र को जो मिलकर एक लाख अस्सी हजार अच्छे योद्धा थे इकट्ठा किया कि वे इस्राएल के घराने के साथ लड़कर सुलैमान के पुत्र रहबाम के वश में फिर राज्य कर दें। 22 तब परमेश्‍वर का यह वचन परमेश्‍वर के जन शमायाह के पास पहुँचा यहूदा के राजा सुलैमान के पुत्र रहबाम से 23 और यहूदा और बिन्यामीन के सब घराने से और सब लोगों से कह ‘यहोवा यह कहता है 24 कि अपने भाई इस्राएलियों पर चढ़ाई करके युद्ध न करो; तुम अपने-अपने घर लौट जाओ क्योंकि यह बात मेरी ही ओर से हुई है।’ undefined यहोवा का यह वचन मानकर उन्होंने उसके अनुसार लौट जाने को अपना-अपना मार्ग लिया।। 25 तब यारोबाम एप्रैम के पहाड़ी देश के शेकेम नगर को दृढ़ करके उसमें रहने लगा; फिर वहाँ से निकलकर पनूएल को भी दृढ़ किया। 26 तब यारोबाम सोचने लगा अब राज्य दाऊद के घराने का हो जाएगा। 27 यदि प्रजा के लोग यरूशलेम में बलि करने को जाएँ तो उनका मन अपने स्वामी यहूदा के राजा रहबाम की ओर फिरेगा और वे मुझे घात करके यहूदा के राजा रहबाम के हो जाएँगे। 28 अतः राजा ने सम्मति लेकर सोने के दो बछड़े बनाए और लोगों से कहा यरूशलेम को जाना तुम्हारी शक्ति से बाहर है इसलिए हे इस्राएल अपने देवताओं को देखो जो तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाए हैं। 29 उसने एक बछड़े को बेतेल और दूसरे को दान में स्थापित किया। 30 और यह बात पाप का कारण हुई; क्योंकि लोग उनमें से एक के सामने दण्डवत् करने को दान तक जाने लगे। 31 और उसने ऊँचे स्थानों के भवन बनाए और सब प्रकार के लोगों में से जो लेवीवंशी न थे याजक ठहराए। 32 फिर यारोबाम ने आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन यहूदा के पर्व के समान एक पर्व ठहरा दिया और वेदी पर बलि चढ़ाने लगा; इस रीति उसने बेतेल में अपने बनाए हुए बछड़ों के लिये वेदी पर बलि किया और अपने बनाए हुए ऊँचे स्थानों के याजकों को बेतेल में ठहरा दिया। 33 जिस महीने की उसने अपने मन में कल्पना की थी अर्थात् आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन को वह बेतेल में अपनी बनाई हुई वेदी के पास चढ़ गया। उसने इस्राएलियों के लिये एक पर्व ठहरा दिया और धूप जलाने को वेदी के पास चढ़ गया।

परमेश्‍वर के दास का सन्देश

13  1 तब यहोवा से वचन पाकर परमेश्‍वर का एक जन यहूदा से बेतेल को आया और यारोबाम धूप जलाने के लिये वेदी के पास खड़ा था। 2 उस जन ने यहोवा से वचन पाकर वेदी के विरुद्ध यह पुकारा वेदी हे वेदी यहोवा यह कहता है कि सुन दाऊद के कुल में योशिय्याह नामक एक लड़का उत्‍पन्‍न होगा वह उन ऊँचे स्थानों के याजकों को जो तुझ पर धूप जलाते हैं तुझ पर बलि कर देगा; और तुझ पर मनुष्यों की हड्डियाँ जलाई जाएँगी। 3 और उसने उसी दिन यह कहकर उस बात का एक चिन्ह भी बताया यह वचन जो यहोवा ने कहा है इसका चिन्ह यह है कि यह वेदी फट जाएगी और इस पर की राख गिर जाएगी। 4 तब ऐसा हुआ कि परमेश्‍वर के जन का यह वचन सुनकर जो उसने बेतेल की वेदी के विरुद्ध पुकारकर कहा यारोबाम ने वेदी के पास से हाथ बढ़ाकर कहा उसको पकड़ लो तब उसका हाथ जो उसकी ओर बढ़ाया गया था सूख गया और वह उसे अपनी ओर खींच न सका। 5 और वेदी फट गई और उस पर की राख गिर गई; अतः: वह चिन्ह पूरा हुआ जो परमेश्‍वर के जन ने यहोवा से वचन पाकर कहा था। 6 तब राजा ने परमेश्‍वर के जन से कहा अपने परमेश्‍वर यहोवा को मना और मेरे लिये प्रार्थना कर कि मेरा हाथ ज्यों का त्यों हो जाए तब परमेश्‍वर के जन ने यहोवा को मनाया और राजा का हाथ फिर ज्यों का त्यों हो गया। 7 तब राजा ने परमेश्‍वर के जन से कहा मेरे संग घर चलकर अपना प्राण ठण्डा कर और मैं तुझे दान भी दूँगा। 8 परमेश्‍वर के जन ने राजा से कहा चाहे तू मुझे अपना आधा घर भी दे तो भी तेरे घर न चलूँगा और इस स्थान में मैं न तो रोटी खाऊँगा और न पानी पीऊँगा। 9 क्योंकि यहोवा के वचन के द्वारा मुझे यह आज्ञा मिली है कि न तो रोटी खाना और न पानी पीना और न उस मार्ग से लौटना जिससे तू जाएगा। 10 इसलिए वह उस मार्ग से जिससे बेतेल को गया था न लौटकर दूसरे मार्ग से चला गया। 11 बेतेल में एक बूढ़ा नबी रहता था और उसके एक बेटे ने आकर उससे उन सब कामों का वर्णन किया जो परमेश्‍वर के जन ने उस दिन बेतेल में किए थे; और जो बातें उसने राजा से कही थीं उनको भी उसने अपने पिता से कह सुनाया। 12 उसके बेटों ने तो यह देखा था कि परमेश्‍वर का वह जन जो यहूदा से आया था किस मार्ग से चला गया अतः उनके पिता ने उनसे पूछा वह किस मार्ग से चला गया? 13 और उसने अपने बेटों से कहा मेरे लिये गदहे पर काठी बाँधो; तब उन्होंने गदहे पर काठी बाँधी और वह उस पर चढ़ा 14 और परमेश्‍वर के जन के पीछे जाकर उसे एक बांज वृक्ष के तले बैठा हुआ पाया; और उससे पूछा परमेश्‍वर का जो जन यहूदा से आया था क्या तू वही है? 15 उसने कहा हाँ वही हूँ। उसने उससे कहा मेरे संग घर चलकर भोजन कर। 16 उसने उससे कहा मैं न तो तेरे संग लौट सकता और न तेरे संग घर में जा सकता हूँ और न मैं इस स्थान में तेरे संग रोटी खाऊँगा या पानी पीऊँगा। 17 क्योंकि यहोवा के वचन के द्वारा मुझे यह आज्ञा मिली है कि वहाँ न तो रोटी खाना और न पानी पीना और जिस मार्ग से तू जाएगा उससे न लौटना। 18 उसने कहा जैसा तू नबी है वैसा ही मैं भी नबी हूँ; और मुझसे एक दूत ने यहोवा से वचन पाकर कहा कि उस पुरुष को अपने संग अपने घर लौटा ले आ कि वह रोटी खाए और पानी पीए। यह उसने उससे झूठ कहा। 19 अतएव वह उसके संग लौट गया और उसके घर में रोटी खाई और पानी पीया। 20 जब वे मेज पर बैठे ही थे कि यहोवा का वचन उस नबी के पास पहुँचा जो दूसरे को लौटा ले आया था। 21 उसने परमेश्‍वर के उस जन को जो यहूदा से आया था पुकार के कहा यहोवा यह कहता है इसलिए कि तूने यहोवा का वचन न माना और जो आज्ञा तेरे परमेश्‍वर यहोवा ने तुझे दी थी उसे भी नहीं माना; 22 परन्तु जिस स्थान के विषय उसने तुझ से कहा था ‘उसमें न तो रोटी खाना और न पानी पीना’ उसी में तूने लौटकर रोटी खाई और पानी भी पिया है इस कारण तुझे अपने पुरखाओं के कब्रिस्तान में मिट्टी नहीं दी जाएगी। 23 जब वह खा पी चुका तब उसने परमेश्‍वर के उस जन के लिये जिसको वह लौटा ले आया था गदहे पर काठी बँधाई। 24 जब वह मार्ग में चल रहा था तो एक सिंह उसे मिला और उसको मार डाला और उसका शव मार्ग पर पड़ा रहा और गदहा उसके पास खड़ा रहा और सिंह भी लोथ के पास खड़ा रहा। 25 जो लोग उधर से चले आ रहे थे उन्होंने यह देखकर कि मार्ग पर एक शव पड़ा है और उसके पास सिंह खड़ा है उस नगर में जाकर जहाँ वह बूढ़ा नबी रहता था यह समाचार सुनाया। 26 यह सुनकर उस नबी ने जो उसको मार्ग पर से लौटा ले आया था कहा परमेश्‍वर का वही जन होगा जिस ने यहोवा के वचन के विरुद्ध किया था इस कारण यहोवा ने उसको सिंह के पंजे में पड़ने दिया; और यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उसने उससे कहा था सिंह ने उसे फाड़कर मार डाला होगा। 27 तब उसने अपने बेटों से कहा मेरे लिये गदहे पर काठी बाँधो; जब उन्होंने काठी बाँधी 28 तब उसने जाकर उस जन का शव मार्ग पर पड़ा हुआ और गदहे और सिंह दोनों को शव के पास खड़े हुए पाया और यह भी कि सिंह ने न तो शव को खाया और न गदहे को फाड़ा है। 29 तब उस बूढ़े नबी ने परमेश्‍वर के जन के शव को उठाकर गदहे पर लाद लिया और उसके लिये छाती पीटने लगा और उसे मिट्टी देने को अपने नगर में लौटा ले गया। 30 और उसने उसके शव को अपने कब्रिस्तान में रखा और लोग हाय मेरे भाई यह कहकर छाती पीटने लगे। 31 फिर उसे मिट्टी देकर उसने अपने बेटों से कहा जब मैं मर जाऊँगा तब मुझे इसी कब्रिस्तान में रखना जिसमें परमेश्‍वर का यह जन रखा गया है और मेरी हड्डियां उसी की हड्डियों के पास रख देना। 32 क्योंकि जो वचन उसने यहोवा से पाकर बेतेल की वेदी और सामरिया के नगरों के सब ऊँचे स्थानों के भवनों के विरुद्ध पुकार के कहा है वह निश्चय पूरा हो जाएगा। 33 इसके बाद यारोबाम अपनी बुरी चाल से न फिरा। उसने फिर सब प्रकार के लोगों में से ऊँचे स्थानों के याजक बनाए वरन् जो कोई चाहता था उसका संस्कार करके वह उसको ऊँचे स्थानों का याजक होने को ठहरा देता था। 34 यह बात यारोबाम के घराने का पाप ठहरी इस कारण उसका विनाश हुआ और वह धरती पर से नाश किया गया।

यारोबाम के घराने का न्याय

14  1 उस समय यारोबाम का बेटा अबिय्याह रोगी हुआ। 2 तब यारोबाम ने अपनी स्त्री से कहा ऐसा भेष बना कि कोई तुझे पहचान न सके कि यह यारोबाम की स्त्री है और शीलो को चली जा वहाँ अहिय्याह नबी रहता है जिस ने मुझसे कहा था ‘तू इस प्रजा का राजा हो जाएगा।’ 3 उसके पास तू दस रोटी और टिकियाँ और एक कुप्पी मधु लिये हुए जा और वह तुझे बताएगा कि लड़के का क्या होगा। 4 यारोबाम की स्त्री ने वैसा ही किया और चलकर शीलो को पहुँची और अहिय्याह के घर पर आई: अहिय्याह को तो कुछ सूझ न पड़ता था क्योंकि बुढ़ापे के कारण उसकी आँखें धुन्धली पड़ गई थीं। 5 और यहोवा ने अहिय्याह से कहा सुन यारोबाम की स्त्री तुझ से अपने बेटे के विषय में जो रोगी है कुछ पूछने को आती है तू उससे ये-ये बातें कहना; वह तो आकर अपने को दूसरी औरत बताएगी। 6 जब अहिय्याह ने द्वार में आते हुए उसके पाँव की आहट सुनी तब कहा हे यारोबाम की स्त्री भीतर आ; तू अपने को क्यों दूसरी स्त्री बनाती है? मुझे तेरे लिये बुरा सन्देशा मिला है। 7 तू जाकर यारोबाम से कह कि इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा तुझ से यह कहता है ‘मैंने तो तुझको प्रजा में से बढ़ाकर अपनी प्रजा इस्राएल पर प्रधान किया 8 और दाऊद के घराने से राज्य छीनकर तुझको दिया परन्तु तू मेरे दास दाऊद के समान न हुआ जो मेरी आज्ञाओं को मानता और अपने पूर्ण मन से मेरे पीछे-पीछे चलता और केवल वही करता था जो मेरी दृष्टि में ठीक है। 9 तूने उन सभी से बढ़कर जो तुझ से पहले थे बुराई की है और जाकर पराये देवता की उपासना की और मूरतें ढालकर बनाईं जिससे मुझे क्रोधित कर दिया और मुझे तो पीठ के पीछे फेंक दिया है। 10 इस कारण मैं यारोबाम के घराने पर विपत्ति डालूँगा वरन् मैं यारोबाम के कुल में से हर एक लड़के को और क्या बन्धुए क्या स्वाधीन इस्राएल के मध्य हर एक रहनेवाले को भी नष्ट कर डालूँगा: और जैसा कोई गोबर को तब तक उठाता रहता है जब तक वह सब उठा नहीं लिया जाता वैसे ही मैं यारोबाम के घराने की सफाई कर दूँगा। 11 यारोबाम के घराने का जो कोई नगर में मर जाए उसको कुत्ते खाएँगे; और जो मैदान में मरे उसको आकाश के पक्षी खा जाएँगे; क्योंकि यहोवा ने यह कहा है।’ 12 इसलिए तू उठ और अपने घर जा और नगर के भीतर तेरे पाँव पड़ते ही वह बालक मर जाएगा। 13 उसे तो समस्त इस्राएली छाती पीट कर मिट्टी देंगे; यारोबाम के सन्तानों में से केवल उसी को कब्र मिलेगी क्योंकि यारोबाम के घराने में से उसी में कुछ पाया जाता है जो यहोवा इस्राएल के प्रभु की दृष्टि में भला है। 14 फिर यहोवा इस्राएल के लिये एक ऐसा राजा खड़ा करेगा जो उसी दिन यारोबाम के घराने को नाश कर डालेगा परन्तु कब? यह अभी होगा। 15 क्योंकि यहोवा इस्राएल को ऐसा मारेगा जैसा जल की धारा से नरकट हिलाया जाता है और वह उनको इस अच्छी भूमि में से जो उसने उनके पुरखाओं को दी थी उखाड़कर फरात के पार तितर-बितर करेगा; क्योंकि उन्होंने अशेरा नामक मूरतें अपने लिये बनाकर यहोवा को क्रोध दिलाया है। 16 और उन पापों के कारण जो यारोबाम ने किए और इस्राएल से कराए थे यहोवा इस्राएल को त्याग देगा। 17 तब यारोबाम की स्त्री विदा होकर चली और तिर्सा को आई और वह भवन की डेवढ़ी पर जैसे ही पहुँची कि वह बालक मर गया। 18 तब यहोवा के वचन के अनुसार जो उसने अपने दास अहिय्याह नबी से कहलाया था समस्त इस्राएल ने उसको मिट्टी देकर उसके लिये शोक मनाया। 19 यारोबाम के और काम अर्थात् उसने कैसा-कैसा युद्ध किया और कैसा राज्य किया यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है। 20 यारोबाम बाईस वर्ष तक राज्य करके मर गया और अपने पुरखाओं के संग जा मिला और नादाब नामक उसका पुत्र उसके स्थान पर राजा हुआ। 21 सुलैमान का पुत्र रहबाम यहूदा में राज्य करने लगा। रहबाम इकतालीस वर्ष का होकर राज्य करने लगा; और यरूशलेम जिसको यहोवा ने सारे इस्राएली गोत्रों में से अपना नाम रखने के लिये चुन लिया था उस नगर में वह सत्रह वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम नामाह था जो अम्मोनी स्त्री थी। 22 और यहूदी लोग वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है और अपने पुरखाओं से भी अधिक पाप करके उसकी जलन भड़काई। 23 उन्होंने तो सब ऊँचे टीलों पर और सब हरे वृक्षों के तले ऊँचे स्थान और लाठें और अशेरा नामक मूरतें बना लीं। 24 और उनके देश में पुरुषगामी भी थे; वे उन जातियों के से सब घिनौने काम करते थे जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियों के सामने से निकाल दिया था। 25 राजा रहबाम के पाँचवें वर्ष में मिस्र का राजा शीशक यरूशलेम पर चढ़ाई करके 26 यहोवा के भवन की अनमोल वस्तुएँ और राजभवन की अनमोल वस्तुएँ सब की सब उठा ले गया; और सोने की जो ढालें सुलैमान ने बनाई थी सब को वह ले गया। 27 इसलिए राजा रहबाम ने उनके बदले पीतल की ढालें बनवाई और उन्हें पहरुओं के प्रधानों के हाथ सौंप दिया जो राजभवन के द्वार की रखवाली करते थे। 28 और जब-जब राजा यहोवा के भवन में जाता था तब-तब पहरुए उन्हें उठा ले चलते और फिर अपनी कोठरी में लौटाकर रख देते थे। 29 रहबाम के और सब काम जो उसने किए वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 30 रहबाम और यारोबाम में तो सदा लड़ाई होती रही। 31 और रहबाम जिसकी माता नामाह नामक एक अम्मोनिन थी वह मर कर अपने पुरखाओं के साथ जा मिला; और उन्हीं के पास दाऊदपुर में उसको मिट्टी दी गई: और उसका पुत्र अबिय्याम उसके स्थान पर राज्य करने लगा।

अबिय्याम का राज्य

15  1 नबात के पुत्र यारोबाम के राज्य के अठारहवें वर्ष में अबिय्याम यहूदा पर राज्य करने लगा। 2 और वह तीन वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम माका था जो अबशालोम की पुत्री थीः 3 वह वैसे ही पापों की लीक पर चलता रहा जैसे उसके पिता ने उससे पहले किए थे और उसका मन अपने परमेश्‍वर यहोवा की ओर अपने परदादा दाऊद के समान पूरी रीति से सिद्ध न था; 4 तो भी दाऊद के कारण उसके परमेश्‍वर यहोवा ने यरूशलेम में उसे एक दीपक दिया अर्थात् उसके पुत्र को उसके बाद ठहराया और यरूशलेम को बनाए रखा। 5 क्योंकि दाऊद वह किया करता था जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था और हित्ती ऊरिय्याह की बात के सिवाय और किसी बात में यहोवा की किसी आज्ञा से जीवन भर कभी न मुड़ा। 6 रहबाम के जीवन भर उसके और यारोबाम के बीच लड़ाई होती रही। 7 अबिय्याम के और सब काम जो उसने किए क्या वे यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? और अबिय्याम की यारोबाम के साथ लड़ाई होती रही। 8 अबिय्याम मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई और उसका पुत्र आसा उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 9 इस्राएल के राजा यारोबाम के राज्य के बीसवें वर्ष में आसा यहूदा पर राज्य करने लगा; 10 और यरूशलेम में इकतालीस वर्ष तक राज्य करता रहा और उसकी माता अबशालोम की पुत्री माका थी। 11 और आसा ने अपने मूलपुरुष दाऊद के समान वही किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था। 12 उसने तो पुरुषगामियों को देश से निकाल दिया और जितनी मूरतें उसके पुरखाओं ने बनाई थीं उन सभी को उसने दूर कर दिया। 13 वरन् उसकी माता माका जिस ने अशेरा के लिये एक घिनौनी मूरत बनाई थी उसको उसने राजमाता के पद से उतार दिया और आसा ने उसकी मूरत को काट डाला और किद्रोन के नाले में फूँक दिया। 14 परन्तु ऊँचे स्थान तो ढाए न गए; तो भी आसा का मन जीवन भर यहोवा की ओर पूरी रीति से लगा रहा। 15 और जो सोना चाँदी और पात्र उसके पिता ने अर्पण किए थे और जो उसने स्वयं अर्पण किए थे उन सभी को उसने यहोवा के भवन में पहुँचा दिया। 16 आसा और इस्राएल के राजा बाशा के बीच उनके जीवन भर युद्ध होता रहा। 17 इस्राएल के राजा बाशा ने यहूदा पर चढ़ाई की और रामाह को इसलिए दृढ़ किया कि कोई यहूदा के राजा आसा के पास आने-जाने न पाए। 18 तब आसा ने जितना सोना चाँदी यहोवा के भवन और राजभवन के भण्डारों में रह गया था उस सब को निकाल अपने कर्मचारियों के हाथ सौंपकर दमिश्कवासी अराम के राजा बेन्हदद के पास जो हेज्योन का पोता और तब्रिम्मोन का पुत्र था भेजकर यह कहा 19 जैसा मेरे और तेरे पिता के मध्य में वैसा ही मेरे और तेरे मध्य भी वाचा बाँधी जाएः देख मैं तेरे पास चाँदी सोने की भेंट भेजता हूँ इसलिए आ इस्राएल के राजा बाशा के साथ की अपनी वाचा को टाल दे कि वह मेरे पास से चला जाए। 20 राजा आसा की यह बात मानकर बेन्हदद ने अपने दलों के प्रधानों से इस्राएली नगरों पर चढ़ाई करवाकर इय्योन दान आबेल्वेत्माका और समस्त किन्नेरेत को और नप्ताली के समस्त देश को पूरा जीत लिया। 21 यह सुनकर बाशा ने रामाह को दृढ़ करना छोड़ दिया और तिर्सा में रहने लगा। 22 तब राजा आसा ने सारे यहूदा में प्रचार करवाया और कोई अनसुना न रहा तब वे रामाह के पत्थरों और लकड़ी को जिनसे बाशा उसे दृढ़ करता था उठा ले गए और उनसे राजा आसाप ने बिन्यामीन के गेबा और मिस्पा को दृढ़ किया। 23 आसा के अन्य काम और उसकी वीरता और जो कुछ उसने किया और जो नगर उसने दृढ़ किए यह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? परन्तु उसके बुढ़ापे में तो उसे पाँवों का रोग लग गया। 24 आसा मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसे उसके मूलपुरुष दाऊद के नगर में उन्हीं के पास मिट्टी दी गई और उसका पुत्र यहोशापात उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 25 यहूदा के राजा आसा के राज्य के दूसरे वर्ष में यारोबाम का पुत्र नादाब इस्राएल पर राज्य करने लगा; और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 26 उसने वह काम किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था और अपने पिता के मार्ग पर वही पाप करता हुआ चलता रहा जो उसने इस्राएल से करवाया था। 27 नादाब सब इस्राएल समेत पलिश्तियों के देश के गिब्बतोन नगर को घेरे था। और इस्साकार के गोत्र के अहिय्याह के पुत्र बाशा ने उसके विरुद्ध राजद्रोह की गोष्ठी करके गिब्बतोन के पास उसको मार डाला। 28 और यहूदा के राजा आसा के राज्य के तीसरे वर्ष में बाशा ने नादाब को मार डाला और उसके स्थान पर राजा बन गया। 29 राजा होते ही बाशा ने यारोबाम के समस्त घराने को मार डाला; उसने यारोबाम के वंश को यहाँ तक नष्ट किया कि एक भी जीवित न रहा। यह सब यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ जो उसने अपने दास शीलोवासी अहिय्याह से कहलवाया था। 30 यह इस कारण हुआ कि यारोबाम ने स्वयं पाप किए और इस्राएल से भी करवाए थे और उसने इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा को क्रोधित किया था। 31 नादाब के और सब काम जो उसने किए वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 32 आसा और इस्राएल के राजा बाशा के मध्य में तो उनके जीवन भर युद्ध होता रहा। 33 यहूदा के राजा आसा के राज्य के तीसरे वर्ष में अहिय्याह का पुत्र बाशा तिर्सा में समस्त इस्राएल पर राज्य करने लगा और चौबीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 34 और उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था और यारोबाम के मार्ग पर वही पाप करता रहा जिसे उसने इस्राएल से करवाया था।

16  1 तब बाशा के विषय यहोवा का यह वचन हनानी के पुत्र येहू के पास पहुँचा 2 मैंने तुझको मिट्टी पर से उठाकर अपनी प्रजा इस्राएल का प्रधान किया परन्तु तू यारोबाम की सी चाल चलता और मेरी प्रजा इस्राएल से ऐसे पाप कराता आया है जिनसे वे मुझे क्रोध दिलाते हैं। 3 सुन मैं बाशा और उसके घराने की पूरी रीति से सफाई कर दूँगा और तेरे घराने को नबात के पुत्र यारोबाम के समान कर दूँगा। 4 बाशा के घर का जो कोई नगर में मर जाए उसको कुत्ते खा डालेंगे और उसका जो कोई मैदान में मर जाए उसको आकाश के पक्षी खा डालेंगे। 5 बाशा के और सब काम जो उसने किए और उसकी वीरता यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 6 अन्त में बाशा मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और तिर्सा में उसे मिट्टी दी गई और उसका पुत्र एला उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 7 यहोवा का जो वचन हनानी के पुत्र येहू के द्वारा बाशा और उसके घराने के विरुद्ध आया वह न केवल उन सब बुराइयों के कारण आया जो उसने यारोबाम के घराने के समान होकर यहोवा की दृष्टि में किया था और अपने कामों से उसको क्रोधित किया वरन् इस कारण भी आया कि उसने उसको मार डाला था। 8 यहूदा के राजा आसा के राज्य के छब्बीसवें वर्ष में बाशा का पुत्र एला तिर्सा में इस्राएल पर राज्य करने लगा और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 9 जब वह तिर्सा में अर्सा नामक भण्डारी के घर में जो उसके तिर्सावाले भवन का प्रधान था पीकर मतवाला हो गया था तब उसके जिम्री नामक एक कर्मचारी ने जो उसके आधे रथों का प्रधान था 10 राजद्रोह की गोष्ठी की और भीतर जाकर उसको मार डाला और उसके स्थान पर राजा बन गया। यह यहूदा के राजा आसा के राज्य के सताईसवें वर्ष में हुआ। 11 और जब वह राज्य करने लगा तब गद्दी पर बैठते ही उसने बाशा के पूरे घराने को मार डाला वरन् उसने न तो उसके कुटुम्बियों और न उसके मित्रों में से एक लड़के को भी जीवित छोड़ा। 12 इस रीति यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उसने येहू नबी के द्वारा बाशा के विरुद्ध कहा था जिम्री ने बाशा का समस्त घराना नष्ट कर दिया। 13 इसका कारण बाशा के सब पाप और उसके पुत्र एला के भी पाप थे जो उन्होंने स्वयं आप करके और इस्राएल से भी करवा के इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा को व्यर्थ बातों से क्रोध दिलाया था। 14 एला के और सब काम जो उसने किए वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं। 15 यहूदा के राजा आसा के सताईसवें वर्ष में जिम्री तिर्सा में राज्य करने लगा और तिर्सा में सात दिन तक राज्य करता रहा। उस समय लोग पलिश्तियों के देश गिब्बतोन के विरुद्ध डेरे किए हुए थे। 16 तो जब उन डेरे लगाए हुए लोगों ने सुना कि जिम्री ने राजद्रोह की गोष्ठी करके राजा को मार डाला है तो उसी दिन समस्त इस्राएल ने ओम्री नामक प्रधान सेनापति को छावनी में इस्राएल का राजा बनाया। 17 तब ओम्री ने समस्त इस्राएल को संग ले गिब्बतोन को छोड़कर तिर्सा को घेर लिया। 18 जब जिम्री ने देखा कि नगर ले लिया गया है तब राजभवन के गुम्मट में जाकर राजभवन में आग लगा दी और उसी में स्वयं जल मरा। 19 यह उसके पापों के कारण हुआ क्योंकि उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था क्योंकि वह यारोबाम की सी चाल और उसके किए हुए और इस्राएल से करवाए हुए पाप की लीक पर चला। 20 जिम्री के और काम और जो राजद्रोह की गोष्ठी उसने की यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 21 तब इस्राएली प्रजा दो भागों में बँट गई प्रजा के आधे लोग तो तिब्नी नामक गीनत के पुत्र को राजा बनाने के लिये उसी के पीछे हो लिए और आधे ओम्री के पीछे हो लिए। 22 अन्त में जो लोग ओम्री के पीछे हुए थे वे उन पर प्रबल हुए जो गीनत के पुत्र तिब्नी के पीछे हो लिए थे इसलिए तिब्नी मारा गया और ओम्री राजा बन गया। 23 यहूदा के राजा आसा के इकतीसवें वर्ष में ओम्री इस्राएल पर राज्य करने लगा और बारह वर्ष तक राज्य करता रहा; उसने छः वर्ष तो तिर्सा में राज्य किया। 24 और उसने शेमेर से सामरिया पहाड़ को दो किक्कार चाँदी में मोल लेकर उस पर एक नगर बसाया; और अपने बसाए हुए नगर का नाम पहाड़ के मालिक शेमेर के नाम पर सामरिया रखा। 25 ओम्री ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था वरन् उन सभी से भी जो उससे पहले थे अधिक बुराई की। 26 वह नबात के पुत्र यारोबाम की सी सब चाल चला और उसके सब पापों के अनुसार जो उसने इस्राएल से करवाए थे जिसके कारण इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा को उन्होंने अपने व्यर्थ कर्मों से क्रोध दिलाया था। 27 ओम्री के और काम जो उसने किए और जो वीरता उसने दिखाई यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 28 ओम्री मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और सामरिया में उसको मिट्टी दी गई और उसका पुत्र अहाब उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 29 यहूदा के राजा आसा के राज्य के अड़तीसवें वर्ष में ओम्री का पुत्र अहाब इस्राएल पर राज्य करने लगा और इस्राएल पर सामरिया में बाईस वर्ष तक राज्य करता रहा। 30 और ओम्री के पुत्र अहाब ने उन सबसे अधिक जो उससे पहले थे वह कर्म किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे थे। 31 उसने तो नबात के पुत्र यारोबाम के पापों में चलना हलकी सी बात जानकर सीदोनियों के राजा एतबाल की बेटी ईजेबेल से विवाह करके बाल देवता की उपासना की और उसको दण्डवत् किया। 32 उसने बाल का एक भवन सामरिया में बनाकर उसमें बाल की एक वेदी बनाई। 33 और अहाब ने एक अशेरा भी बनाया वरन् उसने उन सब इस्राएली राजाओं से बढ़कर जो उससे पहले थे इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा को क्रोध दिलाने के काम किए। 34 उसके दिनों में बेतेलवासी हीएल ने यरीहो को फिर बसाया; जब उसने उसकी नींव डाली तब उसका जेठा पुत्र अबीराम मर गया और जब उसने उसके फाटक खड़े किए तब उसका छोटा पुत्र सगूब मर गया यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ जो उसने नून के पुत्र यहोशू के द्वारा कहलवाया था।

एलिय्याह के काम का आरम्भ

17  1 तिशबी एलिय्याह जो गिलाद का निवासी था उसने अहाब से कहा इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्थित रहता हूँ उसके जीवन की शपथ इन वर्षों में मेरे बिना कहे न तो मेंह बरसेगा और न ओस पड़ेगी। 2 तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुँचा 3 यहाँ से चलकर पूरब की ओर जा और करीत नामक नाले में जो यरदन के पूर्व में है छिप जा। 4 उसी नदी का पानी तू पिया कर और मैंने कौवों को आज्ञा दी है कि वे तुझे वहाँ खिलाएँ। 5 यहोवा का यह वचन मानकर वह यरदन के पूर्व में करीत नामक नदी में जाकर छिपा रहा। 6 और सवेरे और सांझ को कौवे उसके पास रोटी और माँस लाया करते थे और वह नदी का पानी पिया करता था। 7 कुछ दिनों के बाद उस देश में वर्षा न होने के कारण नदी सूख गई। 8 तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुँचा 9 चलकर सीदोन के सारफत नगर में जाकर वहीं रह। सुन मैंने वहाँ की एक विधवा को तेरे खिलाने की आज्ञा दी है। 10 अतः वह वहाँ से चल दिया और सारफत को गया; नगर के फाटक के पास पहुँचकर उसने क्या देखा कि एक विधवा लकड़ी बीन रही है उसको बुलाकर उसने कहा किसी पात्र में मेरे पीने को थोड़ा पानी ले आ। 11 जब वह लेने जा रही थी तो उसने उसे पुकार के कहा अपने हाथ में एक टुकड़ा रोटी भी मेरे पास लेती आ। 12 उसने कहा तेरे परमेश्‍वर यहोवा के जीवन की शपथ मेरे पास एक भी रोटी नहीं है केवल घड़े में मुट्ठी भर मैदा और कुप्पी में थोड़ा सा तेल है और मैं दो एक लकड़ी बीनकर लिए जाती हूँ कि अपने और अपने बेटे के लिये उसे पकाऊँ और हम उसे खाएँ फिर मर जाएँ। 13 एलिय्याह ने उससे कहा मत डर; जाकर अपनी बात के अनुसार कर परन्तु पहले मेरे लिये एक छोटी सी रोटी बनाकर मेरे पास ले आ फिर इसके बाद अपने और अपने बेटे के लिये बनाना। 14 क्योंकि इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा यह कहता है कि जब तक यहोवा भूमि पर मेंह न बरसाएगा तब तक न तो उस घड़े का मैदा समाप्त होगा और न उस कुप्पी का तेल घटेगा। 15 तब वह चली गई और एलिय्याह के वचन के अनुसार किया तब से वह और स्त्री और उसका घराना बहुत दिन तक खाते रहे। 16 यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उसने एलिय्याह के द्वारा कहा था न तो उस घड़े का मैदा समाप्त हुआ और न उस कुप्पी का तेल घटा। 17 इन बातों के बाद उस स्त्री का बेटा जो घर की स्वामिनी थी रोगी हुआ और उसका रोग यहाँ तक बढ़ा कि उसका साँस लेना बन्द हो गया। 18 तब वह एलिय्याह से कहने लगी हे परमेश्‍वर के जन मेरा तुझ से क्या काम? क्या तू इसलिए मेरे यहाँ आया है कि मेरे बेटे की मृत्यु का कारण हो और मेरे पाप का स्मरण दिलाए? 19 उसने उससे कहा अपना बेटा मुझे दे; तब वह उसे उसकी गोद से लेकर उस अटारी पर ले गया जहाँ वह स्वयं रहता था और अपनी खाट पर लिटा दिया। 20 तब उसने यहोवा को पुकारकर कहा हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा क्या तू इस विधवा का बेटा मार डालकर जिसके यहाँ मैं टिका हूँ इस पर भी विपत्ति ले आया है? 21 तब वह बालक पर तीन बार पसर गया और यहोवा को पुकारकर कहा हे मेरे परमेश्‍वर यहोवा इस बालक का प्राण इसमें फिर डाल दे। 22 एलिय्याह की यह बात यहोवा ने सुन ली और बालक का प्राण उसमें फिर आ गया और वह जी उठा। 23 तब एलिय्याह बालक को अटारी पर से नीचे घर में ले गया और एलिय्याह ने यह कहकर उसकी माता के हाथ में सौंप दिया देख तेरा बेटा जीवित है। 24 स्त्री ने एलिय्याह से कहा अब मुझे निश्चय हो गया है कि तू परमेश्‍वर का जन है और यहोवा का जो वचन तेरे मुँह से निकलता है वह सच होता है।

यहोवा की विजय और बाल का पराजय

18  1 बहुत दिनों के बाद तीसरे वर्ष में यहोवा का यह वचन एलिय्याह के पास पहुँचा जाकर अपने आप को अहाब को दिखा और मैं भूमि पर मेंह बरसा दूँगा। 2 तब एलिय्याह अपने आप को अहाब को दिखाने गया। उस समय सामरिया में अकाल भारी था। 3 अहाब ने ओबद्याह को जो उसके घराने का दीवान था बुलवाया। 4 ओबद्याह तो यहोवा का भय यहाँ तक मानता था कि जब ईजेबेल यहोवा के नबियों को नाश करती थी तब ओबद्याह ने एक सौ नबियों को लेकर पचास-पचास करके गुफाओं में छिपा रखा; और अन्न जल देकर उनका पालन-पोषण करता रहा। 5 और अहाब ने ओबद्याह से कहा देश में जल के सब सोतों और सब नदियों के पास जा कदाचित् इतनी घास मिले कि हम घोड़ों और खच्चरों को जीवित बचा सके और हमारे सब पशु न मर जाएँ। 6 अतः उन्होंने आपस में देश बाँटा कि उसमें होकर चलें; एक ओर अहाब और दूसरी ओर ओबद्याह चला। 7 ओबद्याह मार्ग में था कि एलिय्याह उसको मिला; उसे पहचान कर वह मुँह के बल गिरा और कहा हे मेरे प्रभु एलिय्याह क्या तू है? 8 उसने कहा हाँ मैं ही हूँ: जाकर अपने स्वामी से कह ‘एलिय्याह मिला है’। 9 उसने कहा मैंने ऐसा क्या पाप किया है कि तू मुझे मरवा डालने के लिये अहाब के हाथ करना चाहता है? 10 तेरे परमेश्‍वर यहोवा के जीवन की शपथ कोई ऐसी जाति या राज्य नहीं जिसमें मेरे स्वामी ने तुझे ढूँढ़ने को न भेजा हो और जब उन लोगों ने कहा ‘वह यहाँ नहीं है’ तब उसने उस राज्य या जाति को इसकी शपथ खिलाई कि वह नहीं मिला। 11 और अब तू कहता है ‘जाकर अपने स्वामी से कह कि एलिय्याह यहाँ है।’ 12 फिर ज्यों ही मैं तेरे पास से चला जाऊँगा त्यों ही यहोवा का आत्मा तुझे न जाने कहाँ उठा ले जाएगा अतः जब मैं जाकर अहाब को बताऊँगा और तू उसे न मिलेगा तब वह मुझे मार डालेगा: परन्तु मैं तेरा दास अपने लड़कपन से यहोवा का भय मानता आया हूँ 13 क्या मेरे प्रभु को यह नहीं बताया गया कि जब ईजेबेल यहोवा के नबियों को घात करती थी तब मैंने क्या किया? कि यहोवा के नबियों में से एक सौ लेकर पचास-पचास करके गुफाओं में छिपा रखा और उन्हें अन्न जल देकर पालता रहा। 14 फिर अब तू कहता है ‘जाकर अपने स्वामी से कह कि एलिय्याह मिला है’ तब वह मुझे घात करेगा। 15 एलिय्याह ने कहा सेनाओं का यहोवा जिसके सामने मैं रहता हूँ उसके जीवन की शपथ आज मैं अपने आप को उसे दिखाऊँगा। 16 तब ओबद्याह अहाब से मिलने गया और उसको बता दिया; अतः अहाब एलिय्याह से मिलने चला। 17 एलिय्याह को देखते ही अहाब ने कहा हे इस्राएल के सतानेवाले क्या तू ही है? 18 उसने कहा मैंने इस्राएल को कष्ट नहीं दिया परन्तु तू ही ने और तेरे पिता के घराने ने दिया है; क्योंकि तुम यहोवा की आज्ञाओं को टालकर बाल देवताओं की उपासना करने लगे। 19 अब दूत भेजकर सारे इस्राएल को और बाल के साढ़े चार सौ नबियों और अशेरा के चार सौ नबियों को जो ईजेबेल की मेज पर खाते हैं मेरे पास कर्मेल पर्वत पर इकट्ठा कर ले। 20 तब अहाब ने सारे इस्राएलियों को बुला भेजा और नबियों को कर्मेल पर्वत पर इकट्ठा किया। 21 और एलिय्याह सब लोगों के पास आकर कहने लगा तुम कब तक दो विचारों में लटके रहोगे यदि यहोवा परमेश्‍वर हो तो उसके पीछे हो लो; और यदि बाल हो तो उसके पीछे हो लो। लोगों ने उसके उत्तर में एक भी बात न कही। 22 तब एलिय्याह ने लोगों से कहा यहोवा के नबियों में से केवल मैं ही रह गया हूँ; और बाल के नबी साढ़े चार सौ मनुष्य हैं। 23 इसलिए दो बछड़े लाकर हमें दिए जाएँ और वे एक अपने लिये चुनकर उसे टुकड़े-टुकड़े काटकर लकड़ी पर रख दें और कुछ आग न लगाएँ; और मैं दूसरे बछड़े को तैयार करके लकड़ी पर रखूँगा और कुछ आग न लगाऊँगा। 24 तब तुम अपने देवता से प्रार्थना करना और मैं यहोवा से प्रार्थना करूँगा और जो आग गिराकर उत्तर दे वही परमेश्‍वर ठहरे। तब सब लोग बोल उठे अच्छी बात। 25 और एलिय्याह ने बाल के नबियों से कहा पहले तुम एक बछड़ा चुनकर तैयार कर लो क्योंकि तुम तो बहुत हो; तब अपने देवता से प्रार्थना करना परन्तु आग न लगाना। 26 तब उन्होंने उस बछड़े को जो उन्हें दिया गया था लेकर तैयार किया और भोर से लेकर दोपहर तक वह यह कहकर बाल से प्रार्थना करते रहे हे बाल हमारी सुन हे बाल हमारी सुन परन्तु न कोई शब्द और न कोई उत्तर देनेवाला हुआ। तब वे अपनी बनाई हुई वेदी पर उछलने कूदने लगे। 27 दोपहर को एलिय्याह ने यह कहकर उनका उपहास किया ऊँचे शब्द से पुकारो वह तो देवता है; वह तो ध्यान लगाए होगा या कहीं गया होगा या यात्रा में होगा या हो सकता है कि सोता हो और उसे जगाना चाहिए। 28 और उन्होंने बड़े शब्द से पुकार-पुकार के अपनी रीति के अनुसार छुरियों और बर्छियों से अपने-अपने को यहाँ तक घायल किया कि लहू लुहान हो गए। 29 वे दोपहर भर ही क्या वरन् भेंट चढ़ाने के समय तक नबूवत करते रहे परन्तु कोई शब्द सुन न पड़ा; और न तो किसी ने उत्तर दिया और न कान लगाया। 30 तब एलिय्याह ने सब लोगों से कहा मेरे निकट आओ; और सब लोग उसके निकट आए। तब उसने यहोवा की वेदी की जो गिराई गई थी मरम्मत की। 31 फिर एलिय्याह ने याकूब के पुत्रों की गिनती के अनुसार जिसके पास यहोवा का यह वचन आया था तेरा नाम इस्राएल होगा बारह पत्थर छाँटे 32 और उन पत्थरों से यहोवा के नाम की एक वेदी बनाई; और उसके चारों ओर इतना बड़ा एक गड्ढा खोद दिया कि उसमें दो सआ बीज समा सके। 33 तब उसने वेदी पर लकड़ी को सजाया और बछड़े को टुकड़े-टुकड़े काटकर लकड़ी पर रख दिया और कहा चार घड़े पानी भर के होमबलि पशु और लकड़ी पर उण्डेल दो। 34 तब उसने कहा दूसरी बार वैसा ही करो; तब लोगों ने दूसरी बार वैसा ही किया। फिर उसने कहा तीसरी बार करो; तब लोगों ने तीसरी बार भी वैसा ही किया। 35 और जल वेदी के चारों ओर बह गया और गड्ढे को भी उसने जल से भर दिया। 36 फिर भेंट चढ़ाने के समय एलिय्याह नबी समीप जाकर कहने लगा हे अब्राहम इसहाक और इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा आज यह प्रगट कर कि इस्राएल में तू ही परमेश्‍वर है और मैं तेरा दास हूँ और मैंने ये सब काम तुझ से वचन पाकर किए हैं। 37 हे यहोवा मेरी सुन मेरी सुन कि ये लोग जान लें कि हे यहोवा तू ही परमेश्‍वर है और तू ही उनका मन लौटा लेता है। 38 तब यहोवा की आग आकाश से प्रगट हुई और होमबलि को लकड़ी और पत्थरों और धूलि समेत भस्म कर दिया और गड्ढे में का जल भी सूखा दिया। 39 यह देख सब लोग मुँह के बल गिरकर बोल उठे यहोवा ही परमेश्‍वर है यहोवा ही परमेश्‍वर है; 40 एलिय्याह ने उनसे कहा बाल के नबियों को पकड़ लो उनमें से एक भी छूटने न पाए; तब उन्होंने उनको पकड़ लिया और एलिय्याह ने उन्हें नीचे कीशोन के नाले में ले जाकर मार डाला। 41 फिर एलिय्याह ने अहाब से कहा उठकर खा पी क्योंकि भारी वर्षा की सनसनाहट सुन पड़ती है। 42 तब अहाब खाने-पीने चला गया और एलिय्याह कर्मेल की चोटी पर चढ़ गया और भूमि पर गिरकर अपना मुँह घुटनों के बीच किया 43 और उसने अपने सेवक से कहा चढ़कर समुद्र की ओर दृष्टि करके देख तब उसने चढ़कर देखा और लौटकर कहा कुछ नहीं दिखता। एलिय्याह ने कहा फिर सात बार जा। 44 सातवीं बार उसने कहा देख समुद्र में से मनुष्य का हाथ सा एक छोटा बादल उठ रहा है। एलिय्याह ने कहा अहाब के पास जाकर कह ‘रथ जुतवा कर नीचे जा कहीं ऐसा न हो कि तू वर्षा के कारण रुक जाए।’ 45 थोड़ी ही देर में आकाश वायु से उड़ाई हुई घटाओं और आँधी से काला हो गया और भारी वर्षा होने लगी; और अहाब सवार होकर यिज्रेल को चला। 46 तब यहोवा की शक्ति एलिय्याह पर ऐसी हुई; कि वह कमर बाँधकर अहाब के आगे-आगे यिज्रेल तक दौड़ता चला गया।

एलिय्याह का निराश होना

19  1 जब अहाब ने ईजेबेल को एलिय्याह के सब काम विस्तार से बताए कि उसने सब नबियों को तलवार से किस प्रकार मार डाला। 2 तब ईजेबेल ने एलिय्याह के पास एक दूत के द्वारा कहला भेजा यदि मैं कल इसी समय तक तेरा प्राण उनका सा न कर डालूँ तो देवता मेरे साथ वैसा ही वरन् उससे भी अधिक करें। 3 यह देख एलिय्याह अपना प्राण लेकर भागा और यहूदा के बेर्शेबा को पहुँचकर अपने सेवक को वहीं छोड़ दिया। 4 और आप जंगल में एक दिन के मार्ग पर जाकर एक झाऊ के पेड़ के तले बैठ गया वहाँ उसने यह कहकर अपनी मृत्यु माँगी हे यहोवा बस है अब मेरा प्राण ले ले क्योंकि मैं अपने पुरखाओं से अच्छा नहीं हूँ। 5 वह झाऊ के पेड़ तले लेटकर सो गया और देखो एक दूत ने उसे छूकर कहा उठकर खा। 6 उसने दृष्टि करके क्या देखा कि मेरे सिरहाने पत्थरों पर पकी हुई एक रोटी और एक सुराही पानी रखा है; तब उसने खाया और पिया और फिर लेट गया। 7 दूसरी बार यहोवा का दूत आया और उसे छूकर कहा उठकर खा क्योंकि तुझे बहुत लम्बी यात्रा करनी है। 8 तब उसने उठकर खाया पिया; और उसी भोजन से बल पाकर चालीस दिन-रात चलते-चलते परमेश्‍वर के पर्वत होरेब को पहुँचा। 9 वहाँ वह एक गुफा में जाकर टिका और यहोवा का यह वचन उसके पास पहुँचा हे एलिय्याह तेरा यहाँ क्या काम? 10 उसने उत्तर दिया सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के निमित्त मुझे बड़ी जलन हुई है क्योंकि इस्राएलियों ने तेरी वाचा टाल दी तेरी वेदियों को गिरा दिया और तेरे नबियों को तलवार से घात किया है और मैं ही अकेला रह गया हूँ; और वे मेरे प्राणों के भी खोजी हैं। 11 उसने कहा निकलकर यहोवा के सम्मुख पर्वत पर खड़ा हो। और यहोवा पास से होकर चला और यहोवा के सामने एक बड़ी प्रचण्ड आँधी से पहाड़ फटने और चट्टानें टूटने लगीं तो भी यहोवा उस आँधी में न था; फिर आँधी के बाद भूकम्प हुआ तो भी यहोवा उस भूकम्प में न था। 12 फिर भूकम्प के बाद आग दिखाई दी तो भी यहोवा उस आग में न था; फिर आग के बाद एक दबा हुआ धीमा शब्द सुनाई दिया। 13 यह सुनते ही एलिय्याह ने अपना मुँह चद्दर से ढाँपा और बाहर जाकर गुफा के द्वार पर खड़ा हुआ। फिर एक शब्द उसे सुनाई दिया हे एलिय्याह तेरा यहाँ क्या काम? 14 उसने कहा मुझे सेनाओं के परमेश्‍वर यहोवा के निमित्त बड़ी जलन हुई क्योंकि इस्राएलियों ने तेरी वाचा टाल दी और तेरी वेदियों को गिरा दिया है और तेरे नबियों को तलवार से घात किया है; और मैं ही अकेला रह गया हूँ; और वे मेरे प्राणों के भी खोजी हैं। 15 यहोवा ने उससे कहा लौटकर दमिश्क के जंगल को जा और वहाँ पहुँचकर अराम का राजा होने के लिये हजाएल का 16 और इस्राएल का राजा होने को निमशी के पोते येहू का और अपने स्थान पर नबी होने के लिये आबेल-महोला के शापात के पुत्र एलीशा का अभिषेक करना। 17 और हजाएल की तलवार से जो कोई बच जाए उसको येहू मार डालेगा; और जो कोई येहू की तलवार से बच जाए उसको एलीशा मार डालेगा। 18 तो भी मैं सात हजार इस्राएलियों को बचा रखूँगा। ये तो वे सब हैं जिन्होंने न तो बाल के आगे घुटने टेके और न मुँह से उसे चूमा है। 19 तब वह वहाँ से चल दिया और शापात का पुत्र एलीशा उसे मिला जो बारह जोड़ी बैल अपने आगे किए हुए आप बारहवीं के साथ होकर हल जोत रहा था। उसके पास जाकर एलिय्याह ने अपनी चद्दर उस पर डाल दी। 20 तब वह बैलों को छोड़कर एलिय्याह के पीछे दौड़ा और कहने लगा मुझे अपने माता-पिता को चूमने दे तब मैं तेरे पीछे चलूँगा। उसने कहा लौट जा मैंने तुझ से क्या किया है? 21 तब वह उसके पीछे से लौट गया और एक जोड़ी बैल लेकर बलि किए और बैलों का सामान जलाकर उनका माँस पका के अपने लोगों को दे दिया और उन्होंने खाया; तब वह कमर बाँधकर एलिय्याह के पीछे चला और उसकी सेवा टहल करने लगा।

अहाब की अरामियों पर विजय

20  1 अराम के राजा बेन्हदद ने अपनी सारी सेना इकट्ठी की और उसके साथ बत्तीस राजा और घोड़े और रथ थे; उन्हें संग लेकर उसने सामरिया पर चढ़ाई की और उसे घेर के उसके विरुद्ध लड़ा। 2 और उसने नगर में इस्राएल के राजा अहाब के पास दूतों को यह कहने के लिये भेजा बेन्हदद तुझ से यह कहता है 3 ‘तेरा चाँदी सोना मेरा है और तेरी स्त्रियों और बच्चों में जो-जो उत्तम हैं वह भी सब मेरे हैं।’ 4 इस्राएल के राजा ने उसके पास कहला भेजा हे मेरे प्रभु हे राजा तेरे वचन के अनुसार मैं और मेरा जो कुछ है सब तेरा है। 5 उन्हीं दूतों ने फिर आकर कहा बेन्हदद तुझ से यह कहता है ‘मैंने तेरे पास यह कहला भेजा था कि तुझे अपनी चाँदी सोना और स्त्रियाँ और बालक भी मुझे देने पड़ेंगे। 6 परन्तु कल इसी समय मैं अपने कर्मचारियों को तेरे पास भेजूँगा और वे तेरे और तेरे कर्मचारियों के घरों में ढूँढ़-ढाँढ़ करेंगे और तेरी जो-जो मनभावनी वस्तुएँ निकालें उन्हें वे अपने-अपने हाथ में लेकर आएँगे।’ 7 तब इस्राएल के राजा ने अपने देश के सब पुरनियों को बुलवाकर कहा सोच विचार करो कि वह मनुष्य हमारी हानि ही का अभिलाषी है; उसने मुझसे मेरी स्त्रियाँ बालक चाँदी सोना मँगा भेजा है और मैंने इन्कार न किया। 8 तब सब पुरनियों ने और सब साधारण लोगों ने उससे कहा उसकी न सुनना; और न मानना। 9 तब राजा ने बेन्हदद के दूतों से कहा मेरे प्रभु राजा से मेरी ओर से कहो ‘जो कुछ तूने पहले अपने दास से चाहा था वह तो मैं करूँगा परन्तु यह मुझसे न होगा।’ undefined तब बेन्हदद के दूतों ने जाकर उसे यह उत्तर सुना दिया। 10 तब बेन्हदद ने अहाब के पास कहला भेजा यदि सामरिया में इतनी धूल निकले कि मेरे सब पीछे चलनेहारों की मुट्ठी भर जाए तो देवता मेरे साथ ऐसा ही वरन् इससे भी अधिक करें। 11 इस्राएल के राजा ने उत्तर देकर कहा उससे कहो ‘जो हथियार बाँधता हो वह उसके समान न फूले जो उन्हें उतारता हो।’ 12 यह वचन सुनते ही वह जो अन्य राजाओं समेत डेरों में पी रहा था उसने अपने कर्मचारियों से कहा पाँति बाँधो तब उन्होंने नगर के विरुद्ध पाँति बाँधी। 13 तब एक नबी ने इस्राएल के राजा अहाब के पास जाकर कहा यहोवा तुझ से यह कहता है ‘यह बड़ी भीड़ जो तूने देखी है उस सब को मैं आज तेरे हाथ में कर दूँगा इससे तू जान लेगा कि मैं यहोवा हूँ।’ 14 अहाब ने पूछा किस के द्वारा? उसने कहा यहोवा यह कहता है कि प्रदेशों के हाकिमों के सेवकों के द्वारा फिर उसने पूछा युद्ध को कौन आरम्भ करे? उसने उत्तर दिया तू ही। 15 तब उसने प्रदेशों के हाकिमों के सेवकों की गिनती ली और वे दो सौ बत्तीस निकले; और उनके बाद उसने सब इस्राएली लोगों की गिनती ली और वे सात हजार निकले। 16 ये दोपहर को निकल गए उस समय बेन्हदद अपने सहायक बत्तीसों राजाओं समेत डेरों में शराब पीकर मतवाला हो रहा था। 17 प्रदेशों के हाकिमों के सेवक पहले निकले। तब बेन्हदद ने दूत भेजे और उन्होंने उससे कहा सामरिया से कुछ मनुष्य निकले आते हैं। 18 उसने कहा चाहे वे मेल करने को निकले हों चाहे लड़ने को तो भी उन्हें जीवित ही पकड़ लाओ। 19 तब प्रदेशों के हाकिमों के सेवक और उनके पीछे की सेना के सिपाही नगर से निकले। 20 और वे अपने-अपने सामने के पुरुष को मारने लगे; और अरामी भागे और इस्राएल ने उनका पीछा किया और अराम का राजा बेन्हदद सवारों के संग घोड़े पर चढ़ा और भागकर बच गया। 21 तब इस्राएल के राजा ने भी निकलकर घोड़ों और रथों को मारा और अरामियों को बड़ी मार से मारा। 22 तब उस नबी ने इस्राएल के राजा के पास जाकर कहा जाकर लड़ाई के लिये अपने को दृढ़ कर और सचेत होकर सोच कि क्या करना है क्योंकि नये वर्ष के लगते ही अराम का राजा फिर तुझ पर चढ़ाई करेगा। 23 तब अराम के राजा के कर्मचारियों ने उससे कहा उन लोगों का देवता पहाड़ी देवता है इस कारण वे हम पर प्रबल हुए; इसलिए हम उनसे चौरस भूमि पर लड़ें तो निश्चय हम उन पर प्रबल हो जाएँगे। 24 और यह भी काम कर अर्थात् सब राजाओं का पद ले-ले और उनके स्थान पर सेनापतियों को ठहरा दे। 25 फिर एक और सेना जो तेरी उस सेना के बराबर हो जो नष्ट हो गई है घोड़े के बदले घोड़ा और रथ के बदले रथ अपने लिये गिन ले; तब हम चौरस भूमि पर उनसे लड़ें और निश्चय उन पर प्रबल हो जाएँगे। उनकी यह सम्मति मानकर बेन्हदद ने वैसा ही किया। 26 और नये वर्ष के लगते ही बेन्हदद ने अरामियों को इकट्ठा किया और इस्राएल से लड़ने के लिये अपेक को गया। 27 और इस्राएली भी इकट्ठे किए गए और उनके भोजन की तैयारी हुई; तब वे उनका सामना करने को गए और इस्राएली उनके सामने डेरे डालकर बकरियों के दो छोटे झुण्ड से देख पड़े परन्तु अरामियों से देश भर गया। 28 तब परमेश्‍वर के उसी जन ने इस्राएल के राजा के पास जाकर कहा यहोवा यह कहता है ‘अरामियों ने यह कहा है कि यहोवा पहाड़ी देवता है परन्तु नीची भूमि का नहीं है; इस कारण मैं उस बड़ी भीड़ को तेरे हाथ में कर दूँगा तब तुम्हें ज्ञात हो जाएगा कि मैं यहोवा हूँ।’ 29 और वे सात दिन आमने-सामने डेरे डाले पड़े रहे; तब सातवें दिन युद्ध छिड़ गया; और एक दिन में इस्राएलियों ने एक लाख अरामी प्यादे मार डाले। 30 जो बच गए वह अपेक को भागकर नगर में घुसे और वहाँ उन बचे हुए लोगों में से सताईस हजार पुरुष शहरपनाह की दीवार के गिरने से दबकर मर गए। बेन्हदद भी भाग गया और नगर की एक भीतरी कोठरी में गया। 31 तब उसके कर्मचारियों ने उससे कहा सुन हमने तो सुना है कि इस्राएल के घराने के राजा दयालु राजा होते हैं इसलिए हमें कमर में टाट और सिर पर रस्सियाँ बाँधे हुए इस्राएल के राजा के पास जाने दे सम्भव है कि वह तेरा प्राण बचा ले। 32 तब वे कमर में टाट और सिर पर रस्सियाँ बाँध कर इस्राएल के राजा के पास जाकर कहने लगे तेरा दास बेन्हदद तुझ से कहता है ‘कृपा कर के मुझे जीवित रहने दे।’ राजा ने उत्तर दिया क्या वह अब तक जीवित है? वह तो मेरा भाई है। 33 उन लोगों ने इसे शुभ शकुन जानकर फुर्ती से बूझ लेने का यत्न किया कि यह उसके मन की बात है कि नहीं और कहा हाँ तेरा भाई बेन्हदद। राजा ने कहा जाकर उसको ले आओ। तब बेन्हदद उसके पास निकल आया और उसने उसे अपने रथ पर चढ़ा लिया। 34 तब बेन्हदद ने उससे कहा जो नगर मेरे पिता ने तेरे पिता से ले लिए थे उनको मैं फेर दूँगा; और जैसे मेरे पिता ने सामरिया में अपने लिये सड़कें बनवाईं वैसे ही तू दमिश्क में सड़कें बनवाना। अहाब ने कहा मैं इसी वाचा पर तुझे छोड़ देता हूँ तब उसने बेन्हदद से वाचा बाँधकर उसे स्वतन्त्र कर दिया। 35 इसके बाद नबियों के दल में से एक जन ने यहोवा से वचन पाकर अपने संगी से कहा मुझे मार जब उस मनुष्य ने उसे मारने से इन्कार किया 36 तब उसने उससे कहा तूने यहोवा का वचन नहीं माना इस कारण सुन जैसे ही तू मेरे पास से चला जाएगा वैसे ही सिंह से मार डाला जाएगा। तब जैसे ही वह उसके पास से चला गया वैसे ही उसे एक सिंह मिला और उसको मार डाला। 37 फिर उसको दूसरा मनुष्य मिला और उससे भी उसने कहा मुझे मार। और उसने उसको ऐसा मारा कि वह घायल हुआ। 38 तब वह नबी चला गया और आँखों को पगड़ी से ढाँपकर राजा की बाट जोहता हुआ मार्ग पर खड़ा रहा। 39 जब राजा पास होकर जा रहा था तब उसने उसकी दुहाई देकर कहा जब तेरा दास युद्ध क्षेत्र में गया था तब कोई मनुष्य मेरी ओर मुड़कर किसी मनुष्य को मेरे पास ले आया और मुझसे कहा ‘इस मनुष्य की चौकसी कर; यदि यह किसी रीति छूट जाए तो उसके प्राण के बदले तुझे अपना प्राण देना होगा; नहीं तो किक्कार भर चाँदी देना पड़ेगा।’ 40 उसके बाद तेरा दास इधर-उधर काम में फंस गया फिर वह न मिला। इस्राएल के राजा ने उससे कहा तेरा ऐसा ही न्याय होगा; तूने आप अपना न्याय किया है। 41 नबी ने झट अपनी आँखों से पगड़ी उठाई तब इस्राएल के राजा ने उसे पहचान लिया कि वह कोई नबी है। 42 तब उसने राजा से कहा यहोवा तुझ से यह कहता है ‘इसलिए कि तूने अपने हाथ से ऐसे एक मनुष्य को जाने दिया जिसे मैंने सत्यानाश हो जाने को ठहराया था तुझे उसके प्राण के बदले अपना प्राण और उसकी प्रजा के बदले अपनी प्रजा देनी पड़ेगी।’ 43 तब इस्राएल का राजा उदास और अप्रसन्न होकर घर की ओर चला और सामरिया को आया।

नाबोत की हत्या और परमेश्‍वर का क्रोध

21  1 नाबोत नाम एक यिज्रेली की एक दाख की बारी सामरिया के राजा अहाब के राजभवन के पास यिज्रेल में थी। 2 इन बातों के बाद अहाब ने नाबोत से कहा तेरी दाख की बारी मेरे घर के पास है तू उसे मुझे दे कि मैं उसमें साग-पात की बारी लगाऊँ; और मैं उसके बदले तुझे उससे अच्छी एक वाटिका दूँगा नहीं तो तेरी इच्छा हो तो मैं तुझे उसका मूल्य दे दूँगा। 3 नाबोत ने अहाब से कहा यहोवा न करे कि मैं अपने पुरखाओं का निज भाग तुझे दूँ 4 यिज्रेली नाबोत के इस वचन के कारण मैं तुझे अपने पुरखाओं का निज भाग न दूँगा अहाब उदास और अप्रसन्न होकर अपने घर गया और बिछौने पर लेट गया और मुँह फेर लिया और कुछ भोजन न किया। 5 तब उसकी पत्‍नी ईजेबेल ने उसके पास आकर पूछा तेरा मन क्यों ऐसा उदास है कि तू कुछ भोजन नहीं करता? 6 उसने कहा कारण यह है कि मैंने यिज्रेली नाबोत से कहा ‘रुपया लेकर मुझे अपनी दाख की बारी दे नहीं तो यदि तू चाहे तो मैं उसके बदले दूसरी दाख की बारी दूँगा’; और उसने कहा ‘मैं अपनी दाख की बारी तुझे न दूँगा’। 7 उसकी पत्‍नी ईजेबेल ने उससे कहा क्या तू इस्राएल पर राज्य करता है कि नहीं? उठकर भोजन कर; और तेरा मन आनन्दित हो; यिज्रेली नाबोत की दाख की बारी मैं तुझे दिलवा दूँगी। 8 तब उसने अहाब के नाम से चिट्ठी लिखकर उसकी अंगूठी की छाप लगाकर उन पुरनियों और रईसों के पास भेज दी जो उसी नगर में नाबोत के पड़ोस में रहते थे। 9 उस चिट्ठी में उसने यह लिखा उपवास का प्रचार करो और नाबोत को लोगों के सामने ऊँचे स्थान पर बैठाना। 10 तब दो नीच जनों को उसके सामने बैठाना जो साक्षी देकर उससे कहें ‘तूने परमेश्‍वर और राजा दोनों की निन्दा की।’ तब तुम लोग उसे बाहर ले जाकर उसको पथरवाह करना कि वह मर जाए। 11 ईजेबेल की चिट्ठी में की आज्ञा के अनुसार नगर में रहनेवाले पुरनियों और रईसों ने उपवास का प्रचार किया 12 और नाबोत को लोगों के सामने ऊँचे स्थान पर बैठाया। 13 तब दो नीच जन आकर उसके सम्मुख बैठ गए; और उन नीच जनों ने लोगों के सामने नाबोत के विरुद्ध यह साक्षी दी नाबोत ने परमेश्‍वर और राजा दोनों की निन्दा की। इस पर उन्होंने उसे नगर से बाहर ले जाकर उसको पथरवाह किया और वह मर गया। 14 तब उन्होंने ईजेबेल के पास यह कहला भेजा कि नाबोत पथरवाह करके मार डाला गया है। 15 यह सुनते ही कि नाबोत पथरवाह करके मार डाला गया है ईजेबेल ने अहाब से कहा उठकर यिज्रेली नाबोत की दाख की बारी को जिसे उसने तुझे रुपया लेकर देने से भी इन्कार किया था अपने अधिकार में ले क्योंकि नाबोत जीवित नहीं परन्तु वह मर गया है। 16 यिज्रेली नाबोत की मृत्यु का समाचार पाते ही अहाब उसकी दाख की बारी अपने अधिकार में लेने के लिये वहाँ जाने को उठ खड़ा हुआ। 17 तब यहोवा का यह वचन तिशबी एलिय्याह के पास पहुँचा 18 चल सामरिया में रहनेवाले इस्राएल के राजा अहाब से मिलने को जा; वह तो नाबोत की दाख की बारी में है उसे अपने अधिकार में लेने को वह वहाँ गया है। 19 और उससे यह कहना कि यहोवा यह कहता है ‘क्या तूने घात किया और अधिकारी भी बन बैठा?’ फिर तू उससे यह भी कहना कि यहोवा यह कहता है ‘जिस स्थान पर कुत्तों ने नाबोत का लहू चाटा उसी स्थान पर कुत्ते तेरा भी लहू चाटेंगे।’ 20 एलिय्याह को देखकर अहाब ने कहा हे मेरे शत्रु क्या तूने मेरा पता लगाया है? उसने कहा हाँ लगाया तो है; और इसका कारण यह है कि जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है उसे करने के लिये तूने अपने को बेच डाला है। 21 मैं तुझ पर ऐसी विपत्ति डालूँगा कि तुझे पूरी रीति से मिटा डालूँगा; और तेरे घर के एक-एक लड़के को और क्या बन्धुए क्या स्वाधीन इस्राएल में हर एक रहनेवाले को भी नाश कर डालूँगा। 22 और मैं तेरा घराना नबात के पुत्र यारोबाम और अहिय्याह के पुत्र बाशा का सा कर दूँगा; इसलिए कि तूने मुझे क्रोधित किया है और इस्राएल से पाप करवाया है। 23 और ईजेबेल के विषय में यहोवा यह कहता है ‘यिज्रेल के किले के पास कुत्ते ईज़ेबेल को खा डालेंगे।’ 24 अहाब का जो कोई नगर में मर जाएगा उसको कुत्ते खा लेंगे; और जो कोई मैदान में मर जाएगा उसको आकाश के पक्षी खा जाएँगे। 25 सचमुच अहाब के तुल्य और कोई न था जिसने अपनी पत्‍नी ईजेबेल के उकसाने पर वह काम करने को जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है अपने को बेच डाला था। 26 वह तो उन एमोरियों के समान जिनको यहोवा ने इस्राएलियों के सामने से देश से निकाला था बहुत ही घिनौने काम करता था अर्थात् मूरतों की उपासना करने लगा था। 27 एलिय्याह के ये वचन सुनकर अहाब ने अपने वस्त्र फाड़े और अपनी देह पर टाट लपेटकर उपवास करने और टाट ही ओढ़े पड़ा रहने लगा और दबे पाँवों चलने लगा। 28 और यहोवा का यह वचन तिशबी एलिय्याह के पास पहुँचा 29 क्या तूने देखा है कि अहाब मेरे सामने नम्र बन गया है? इस कारण कि वह मेरे सामने नम्र बन गया है मैं वह विपत्ति उसके जीते जी उस पर न डालूँगा परन्तु उसके पुत्र के दिनों में मैं उसके घराने पर वह विपत्ति भेजूँगा।

अहाब की मृत्यु

22  1 तीन वर्ष तक अरामी और इस्राएली बिना युद्ध के रहे। 2 तीसरे वर्ष में यहूदा का राजा यहोशापात इस्राएल के राजा के पास गया। 3 तब इस्राएल के राजा ने अपने कर्मचारियों से कहा क्या तुम को मालूम है कि गिलाद का रामोत हमारा है? फिर हम क्यों चुपचाप रहते और उसे अराम के राजा के हाथ से क्यों नहीं छीन लेते हैं? 4 और उसने यहोशापात से पूछा क्या तू मेरे संग गिलाद के रामोत से लड़ने के लिये जाएगा? यहोशापात ने इस्राएल के राजा को उत्तर दिया जैसा तू है वैसा मैं भी हूँ। जैसी तेरी प्रजा है वैसी ही मेरी भी प्रजा है और जैसे तेरे घोड़े हैं वैसे ही मेरे भी घोड़े हैं। 5 फिर यहोशापात ने इस्राएल के राजा से कहा आज यहोवा की इच्छा मालूम कर ले। 6 तब इस्राएल के राजा ने नबियों को जो कोई चार सौ पुरुष थे इकट्ठा करके उनसे पूछा क्या मैं गिलाद के रामोत से युद्ध करने के लिये चढ़ाई करूँ या रुका रहूँ? उन्होंने उत्तर दिया चढ़ाई कर: क्योंकि प्रभु उसको राजा के हाथ में कर देगा। 7 परन्तु यहोशापात ने पूछा क्या यहाँ यहोवा का और भी कोई नबी नहीं है जिससे हम पूछ लें? 8 इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा हाँ यिम्ला का पुत्र मीकायाह एक पुरुष और है जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछ सकते हैं? परन्तु मैं उससे घृणा रखता हूँ क्योंकि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं वरन् हानि ही की भविष्यद्वाणी करता है। 9 यहोशापात ने कहा राजा ऐसा न कहे। तब इस्राएल के राजा ने एक हाकिम को बुलवाकर कहा यिम्ला के पुत्र मीकायाह को फुर्ती से ले आ। 10 इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा यहोशापात अपने-अपने राजवस्त्र पहने हुए सामरिया के फाटक में एक खुले स्थान में अपने-अपने सिंहासन पर विराजमान थे और सब भविष्यद्वक्ता उनके सम्मुख भविष्यद्वाणी कर रहे थे। 11 तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने लोहे के सींग बनाकर कहा यहोवा यह कहता है ‘इनसे तू अरामियों को मारते-मारते नाश कर डालेगा।’ 12 और सब नबियों ने इसी आशय की भविष्यद्वाणी करके कहा गिलाद के रामोत पर चढ़ाई कर और तू कृतार्थ हो; क्योंकि यहोवा उसे राजा के हाथ में कर देगा। 13 और जो दूत मीकायाह को बुलाने गया था उसने उससे कहा सुन भविष्यद्वक्ता एक ही मुँह से राजा के विषय शुभ वचन कहते हैं तो तेरी बातें उनकी सी हों; तू भी शुभ वचन कहना। 14 मीकायाह ने कहा यहोवा के जीवन की शपथ जो कुछ यहोवा मुझसे कहे वही मैं कहूँगा। 15 जब वह राजा के पास आया तब राजा ने उससे पूछा हे मीकायाह क्या हम गिलाद के रामोत से युद्ध करने के लिये चढ़ाई करें या रुके रहें? उसने उसको उत्तर दिया हाँ चढ़ाई कर और तू कृतार्थ हो; और यहोवा उसको राजा के हाथ में कर दे। 16 राजा ने उससे कहा मुझे कितनी बार तुझे शपथ धराकर चिताना होगा कि तू यहोवा का स्मरण करके मुझसे सच ही कह। 17 मीकायाह ने कहा मुझे समस्त इस्राएल बिना चरवाहे की भेड़-बकरियों के समान पहाड़ों पर; तितर बितर दिखाई पड़ा और यहोवा का यह वचन आया ‘उनका कोई चरवाहा नहीं हैं; अतः वे अपने-अपने घर कुशल क्षेम से लौट जाएँ।’ 18 तब इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा क्या मैंने तुझ से न कहा था कि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं हानि ही की भविष्यद्वाणी करेगा। 19 मीकायाह ने कहा इस कारण तू यहोवा का यह वचन सुन मुझे सिंहासन पर विराजमान यहोवा और उसके पास दाएँ-बाएँ खड़ी हुई स्वर्ग की समस्त सेना दिखाई दी है। 20 तब यहोवा ने पूछा ‘अहाब को कौन ऐसा बहकाएगा कि वह गिलाद के रामोत पर चढ़ाई करके खेत आए?’ तब किसी ने कुछ और किसी ने कुछ कहा। 21 अन्त में एक आत्मा पास आकर यहोवा के सम्मुख खड़ी हुई और कहने लगी ‘मैं उसको बहकाऊँगी’ यहोवा ने पूछा ‘किस उपाय से?’ 22 उसने कहा ‘मैं जाकर उसके सब भविष्यद्वक्ताओं में पैठकर उनसे झूठ बुलवाऊँगी।’ यहोवा ने कहा ‘तेरा उसको बहकाना सफल होगा जाकर ऐसा ही कर।’ 23 तो अब सुन यहोवा ने तेरे इन सब भविष्यद्वक्ताओं के मुँह में एक झूठ बोलनेवाली आत्मा बैठाई है और यहोवा ने तेरे विषय हानि की बात कही है। 24 तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने मीकायाह के निकट जा उसके गाल पर थप्पड़ मार कर पूछा यहोवा का आत्मा मुझे छोड़कर तुझ से बातें करने को किधर गया? 25 मीकायाह ने कहा जिस दिन तू छिपने के लिये कोठरी से कोठरी में भागेगा तब तुझे ज्ञात होगा। 26 तब इस्राएल के राजा ने कहा मीकायाह को नगर के हाकिम आमोन और योआश राजकुमार के पास ले जा; 27 और उनसे कह ‘राजा यह कहता है कि इसको बन्दीगृह में डालो और जब तक मैं कुशल से न आऊँ तब तक इसे दुःख की रोटी और पानी दिया करो।’ 28 और मीकायाह ने कहा यदि तू कभी कुशल से लौटे तो जान कि यहोवा ने मेरे द्वारा नहीं कहा। फिर उसने कहा हे लोगों तुम सब के सब सुन लो। 29 तब इस्राएल के राजा और यहूदा के राजा यहोशापात दोनों ने गिलाद के रामोत पर चढ़ाई की। 30 और इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा मैं तो भेष बदलकर युद्ध क्षेत्र में जाऊँगा परन्तु तू अपने ही वस्त्र पहने रहना। तब इस्राएल का राजा भेष बदलकर युद्ध क्षेत्र में गया। 31 अराम के राजा ने तो अपने रथों के बत्तीसों प्रधानों को आज्ञा दी थी न तो छोटे से लड़ो और न बड़े से केवल इस्राएल के राजा से युद्ध करो। 32 अतः जब रथों के प्रधानों ने यहोशापात को देखा तब कहा निश्चय इस्राएल का राजा वही है। और वे उसी से युद्ध करने को मुड़ें; तब यहोशपात चिल्ला उठा। 33 यह देखकर कि वह इस्राएल का राजा नहीं है रथों के प्रधान उसका पीछा छोड़कर लौट गए। 34 तब किसी ने अटकल से एक तीर चलाया और वह इस्राएल के राजा के झिलम और निचले वस्त्र के बीच छेदकर लगा; तब उसने अपने सारथी से कहा मैं घायल हो गया हूँ इसलिए बागडोर फेर कर मुझे सेना में से बाहर निकाल ले चल। 35 और उस दिन युद्ध बढ़ता गया और राजा अपने रथ में औरों के सहारे अरामियों के सम्मुख खड़ा रहा और सांझ को मर गया; और उसके घाव का लहू बहकर रथ के पायदान में भर गया। 36 सूर्य डूबते हुए सेना में यह पुकार हुई हर एक अपने नगर और अपने देश को लौट जाए। 37 जब राजा मर गया तब सामरिया को पहुँचाया गया और सामरिया में उसे मिट्टी दी गई। 38 और यहोवा के वचन के अनुसार जब उसका रथ सामरिया के जलकुण्ड में धोया गया तब कुत्तों ने उसका लहू चाट लिया और वेश्याएँ यहीं स्नान करती थीं। 39 अहाब के और सब काम जो उसने किए और हाथी दाँत का जो भवन उसने बनाया और जो-जो नगर उसने बसाए थे यह सब क्या इस्राएली राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 40 अतः अहाब मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसका पुत्र अहज्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा।। 41 इस्राएल के राजा अहाब के राज्य के चौथे वर्ष में आसा का पुत्र यहोशापात यहूदा पर राज्य करने लगा। 42 जब यहोशापात राज्य करने लगा तब वह पैंतीस वर्ष का था और पच्चीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम अजूबा था जो शिल्ही की बेटी थी। 43 और उसकी चाल सब प्रकार से उसके पिता आसा की सी थी अर्थात् जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वही वह करता रहा और उससे कुछ न मुड़ा। तो भी ऊँचे स्थान ढाए न गए प्रजा के लोग ऊँचे स्थानों पर उस समय भी बलि किया करते थे और धूप भी जलाया करते थे। 44 यहोशापात ने इस्राएल के राजा से मेल किया। 45 यहोशापात के काम और जो वीरता उसने दिखाई और उसने जो-जो लड़ाइयाँ की यह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 46 पुरुषगामियों में से जो उसके पिता आसा के दिनों में रह गए थे उनको उसने देश में से नाश किया। 47 उस समय एदोम में कोई राजा न था; एक नायब राजकाज का काम करता था। 48 फिर यहोशापात ने तर्शीश के जहाज सोना लाने के लिये ओपीर जाने को बनवा लिए परन्तु वे एस्योनगेबेर में टूट गए इसलिए वहाँ न जा सके। 49 तब अहाब के पुत्र अहज्याह ने यहोशापात से कहा मेरे जहाजियों को अपने जहाजियों के संग जहाजों में जाने दे; परन्तु यहोशापात ने इन्कार किया। 50 यहोशापात मर कर अपने पुरखाओं के संग जा मिला और उसको उसके पुरखाओं के साथ उसके मूलपुरुष दाऊद के नगर में मिट्टी दी गई। और उसका पुत्र यहोराम उसके स्थान पर राज्य करने लगा। 51 यहूदा के राजा यहोशापात के राज्य के सत्रहवें वर्ष में अहाब का पुत्र अहज्याह सामरिया में इस्राएल पर राज्य करने लगा और दो वर्ष तक इस्राएल पर राज्य करता रहा। 52 और उसने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था। और उसकी चाल उसके माता पिता और नबात के पुत्र यारोबाम की सी थी जिस ने इस्राएल से पाप करवाया था। 53 जैसे उसका पिता बाल की उपासना और उसे दण्डवत् करने से इस्राएल के परमेश्‍वर यहोवा को क्रोधित करता रहा वैसे ही अहज्याह भी करता रहा।